Tuesday, June 26, 2018

आप भी जानिए ‘वंदे मातरम्’ की कैसे हुई थी रचना, रचनाकार की आज है जयंती

26 June 2018

🚩‘वंदे मातरम्’ इस वंदनीय गीतकी रचना अक्षयनवमी अर्थात् कार्तिक शुक्ल नवमी (७.११.१८७५) के दिन बंकिमचंद्र चटोपाध्यायजीने की । भारतीयोंको प्रेरित करनेवाल, स्वतंत्रता संग्राममें प्रेरणादायी बने ‘वंदे मातरम्’ के संदर्भमें जानकारी प्रस्तुत है !

🚩‘वंदे मातरम्’की उत्प्रेरणा और मार्गक्रमण
You also know how the 'Vande Mataram' was
composed, the creation of today is Jayanti

🚩अनेक प्रमाणोंद्वारा अब सिद्ध हुआ है कि, ‘वंदे मातरम्’ यह गीत नवंबर 1875 में रचा गया । ‘आमार दुर्गोत्सव’ तथा ‘एकटी गीत’, ये बंकिमचंद्रजीके दो लेख और ‘कमलाकान्तेर ऐसो ऐसो’ यह पूर्णचंद्र चटोपाध्यायजीका लेख, इन तीनों लेखोंके आधारपर वर्ष 1875 की दुर्गापूजामें अष्टमीकी रात्रि बंकिमचंद्रजीको भारतमाताके दर्शन हुए होंगे । उन्हींके शब्दोंमें उसे पढना चाहिए – मैं अपनी नौकामें विहार कर रहा था । मैंने क्षितिजके छोरपर अत्यंत दूर लहरोंपर देखा, तो मातृदेवताकी स्वर्णमूर्ति थी । हां, वही मेरी माता, मेरी मातृभूमि थी । भूमिके रूपमें माता, पृथ्वीके रूपमें असंख्य रत्नोंसे अलंकृत । उसकी रत्नजडित दशभुजाएं दसों दिशाओंमें फैली हुई थीं । उन दसों भुजाओंमें विविध शस्त्र और अस्त्र विभिन्न शक्तियोंके रूपमें चमक रहे थे । उसके पैरोंतले शत्रु छिन्न-भिन्न और हीन-दीन होकर कुचला गया था । उसका शक्तिशाली वाहन सिंह उसके चरणोंके समीप ही शत्रुको खींचकर नीचे गिराता हुआ दिखाई दे रहा था । अरिमर्दिनी, सिंहवाहिनी माते, तुम्हें मेरा प्रणाम ! वंदे मातरम् !!’

🚩मनकी ऐसी उन्नत भावावस्थामें बंकिमचंद्रजी ने यह गीत लिखकर पूरा तो किया, परंतु उस कालमें अधिकांश लोगोंको वह जंचा नहीं । बंकिमचंद्रजीके घर अनेक लेखकमित्र अपने- अपने नवीन लेखनके विषयमें चर्चा करने हेतु एकत्र आते थे । इस गीतपर भी भली चर्चा हुई । किसीने कहा कि, इसमें श्रुतिमाधुर्य नहीं, तो किसीने कहा, ‘‘इसका व्याकरण बिगड गया है । ‘सस्य शामलाम’, ‘भुजैधृत’, ‘द्वित्रिंशत्कोटी’ जैसे शब्द रसहानि कर रहे हैं । इतना अच्छा गीत है, परंतु आधा बंगाली और आधा संस्कृत भाषामें लिखकर पूरा बिगाड दिया है ।’’ बंकिमचंद्रजीने उनसे इतना ही कहा कि, आपको न भाया हो, तो मत पढिए । मुझे जो अच्छा लगा, वही मैंने लिखा है । लोगोंको क्या अच्छा लगता है, क्या भाता है, इसीका विचार कर क्या मैं लिखूं ? उसी कालावधिमें वे और उनके बडे बंधु संजीबचंद्र ‘बंगदर्शन’के संपादक थे । ‘बंगदर्शन’की नवीन पत्रिकाके मिलानका काम अंतिम स्तरपर था, तब उसमें कुछ स्थान शेष था । बंकिमचंद्रजीके पटलके खंडमें (दराजमें) रखी कविताकी व्यवस्थापकोंने परिशिष्टके रूपमें मांग की । कुछ रुष्ट होकर ही उन्होंने कविता देनेके लिए हां की । एक बार उनकी बेटीने भी बताया, ‘लोगोंको यह गीत कुछ भाया नहीं । मुझे भी अधिक नहीं भाया’ । उन्होंने कहा, ‘‘यह कविता अच्छी है अथवा नहीं, इसका पता अब नहीं चलेगा, कुछ समयोपरांत उसका महत्त्व लोगोंको समझमें आएगा । उस समय कदाचित मैं जीवित भी न रहूं; परंतु आप रहेंगे । एक दिन ऐसा आएगा कि पूरे देश और देशवासियोंके मुखमें यह गीत वेदमंत्रसमान होगा ।’’

🚩यथार्थमें वैसा ही होना था । केवल 56 वर्षकी आयुमें 14-15 उपन्यास, गद्य लेखनके कुछ ग्रंथ, कविता संग्रह और ‘वंदे मातरम्’ यह महामंत्र भारतवासियोंके लिए छोडकर बंकिमचंद्र स्वर्ग सिधार गए । उनकी पूरी आयुमें गीतकी धुन बनाने, स्वरलेखन करने जैसी बातें हुर्इं अवश्य; परंतु खरे अर्थमें वर्ष 1896 में कलकत्ता (आजका कोलकाता) में हुए कांग्रेसके अधिवेशनमें उनका कार्य लोगोंके सामने आया । खुले अधिवेशनमें गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोरजीने उसे गाया; परंतु उसके 9 वर्ष उपरांत ही बंगालके विभाजनके समय वह जनमानसमें घर करने लगा । प्रशासकीय सुविधाओंके लिए किया गया विभाजन इतना महंगा पडेगा, ऐसा लॉर्ड कर्जनने सोचा भी न था । वर्ष 1907 में अरविंद घोषने लिखा कि बंगालके लोग विभाजनके प्रति उदासीन थे । जब वे प्रेरणाके लिए यहां-वहां देख रहे थे, तब उसी मंगलक्षण किसीने ‘वंदे मातरम्’ कहा । लोगोंको मंत्र मिल गया और एक ही दिनमें पूरा राष्ट्र ‘देशभक्ति’ नामक धर्मका अनुयायी बन गया । ‘उत्तिष्ठ, जाग्रत’ (उठो, जागो) ऐसा संदेश ‘वंदे मातरम्’ने दिया । धार्मिक संकल्पनोंसे देशभक्ति, मांगल्य और मातृपूजनकी भावना जोडते हुए एक महान मंत्र बंकिमचंद्रजीने राष्ट्रको दिया ।

🚩भारतीयोंको प्रेरित करनेवाले ‘वंदे मातरम्’पर बंदी लानेवाला ब्रिटिश शासन

🚩‘वंदे मातरम्’ ये शब्द केवल बंगाली लोगोंके होंठोंपर ही नहीं, अपितु चूडियोंकी कलाकृतिमें (नक्काशीमें), कुर्ते और साडियोंके छोरोंपर (किनारोंपर) तथा दियासलाईके वेष्टनोंपर (कवरपर) भी दिखाई देने लगे । यह गीत राष्ट्रीय गीतके रूपमें सर्वत्र गाया जाने लगा । उसकी बढती लोकप्रियताके कारण वर्ष 1908 के आसपास ब्रिटिशने इस गीतके गायनपर बंदी लगा दी । विशेष बात तो यह थी कि ब्रिटिश और फ्रांसीसी ग्रामोफोनके आस्थापनोंने (कंपनियोंने) ही एवं उनके दलालोंने इस गीतका महत्त्व तथा लोकप्रियताको पहचानकर ग्रामोफोन ध्वनिमुद्रिकाएं (रेकॉर्ड्स्) बनाना आरंभ किया । आरक्षकोंने (पुलिसने) धावा बोलकर इन प्रतिष्ठानोंकी अधिकांश सामग्री नष्ट की । दुर्भाग्यसे रविंद्रनाथजीकी ध्वनिमुद्रिकाओंको छोडकर इस आरंभिक कालमें किया गया अन्य सर्व ध्वनिमुद्रण नष्ट हुआ है ।

🚩स्वतंत्रता संग्राममें प्रेरणादायी बने ‘वंदे मातरम्’पर लादी  गई बंदी देशवासियोंद्वारा नकारी जाना

🚩‘केवल दो ही शब्दोंवाले इन मंत्रवत् अक्षरोंकी जादू और मोहिनी इतनी थी कि सर्व प्रकारकी बंदी एवं बंधनोंको नकारकर यह गीत बंगालसे बाहर निकलकर देशभरमें सर्वत्र जन-जनके होठोंपर आया । सार्वजनिक सभाएं, सम्मेलन, आंदोलन और संग्राम, चलचित्रके गीत एवं नाट्यपद, एकल और वृंद गान, शास्त्रीय संगीतके कार्यक्रम (महफिलें), वाद्यवृंदका गायन जैसे अनेकानेक माध्यमोंद्वारा निरंतर लोगोंके बीच यह गीत गाता-बजता रहा । स्वतंत्रतापूर्व कालमें अनेकोंने यह गीत मुद्रित कर रखा । स्वतंत्रता संग्राममें ‘वंदे मातरम्’ यह प्रेरक घोषणा बनी, तो क्रांतिकारियोंके मुखमें वह सांकेतिक शब्द बन गया । मादाम कामाद्वारा बनाए गए कांग्रेसके प्रथम ध्वजपर ‘वंदे मातरम्’ अक्षर लिखे गए ।
संदर्भ : हिंदी मासिक सनातन प्रभात
🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk


🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt

🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, June 25, 2018

हो गया खुलासा, भारतीय मीडिया विदेशी फंड से चलती है

25 June 2018

🚩भारत में इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में जो भी खबरें चलती हैं उसके पीछे कोई न कोई ऐजंडा होता है ये आप सभी ने देखा होगा।

🚩आपने अधिकतर ये भी देखा होगा कि किसी हिन्दू पर अत्याचार होता है तो मीडिया मौन रहती है, जबकि ईसाई या मुस्लिम पर अत्याचार होता है तो मीडिया उनके पक्ष में दिन रात खबरें चलाती है । इससे उल्ट देखिये कि जब हिन्दू साधु-संत पर आरोप लगता है तो मीडिया दिन-रात खबरें चलाती है लेकिन ईसाई पादरी या मौलवी पर आरोप लगता तो भी कोई खबर नही आती है ।

🚩आपके सामने हाल ही में सामने आया एक ताजा मामला रखते हैं...
Explained, Indian media moves from foreign funds


🚩अभी 18-19 जून को झारखंड खूंटी में 5 लड़कियों का अपहरण हुआ और बाद में उनके साथ बलात्कार किया गया । उसमें न कोई डिबेट चली और न कोई ब्रेकिंग न्यूज बनी । 

🚩 आखिर क्यों हिन्दू संतों पर लगे आरोप को मुख्य सुर्खियों में लाने वाली मीडिया ईसाई पादरियों पर सिद्ध हुए आरोपों पर चुप्पी साधे है ??

🚩क्योंकि इस घटना को अंजाम ईसाई पादरियों ने दिया था और यहाँ तक कि उन पांच लड़कियों को ईसाई फादर ने कहा था, घटना की जानकारी किसी को मत देना, नहीं तो आपके मां-बाप का मर्डर हो जायेगा ।

🚩आपको बता दें कि झारखण्ड खूंटी के कोचांग से अपहरण के बाद पांच युवतियों से गैंग रेप को लेकर पुलिस ने जिस पीड़ित महिला और नुक्कड़ नाटक के संचालक संजय कुमार शर्मा का बयान रिकॉर्ड किया है, बयान में कई चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं । पुलिस द्वारा रिकॉर्ड बयान के अनुसार पीड़ित लड़की ने अपने बयान में दावा किया है कि कि चर्च के फादर अल्फाेंस ने षड्यंत्र  के तहत स्थानीय अपराधियों से मिल कर लड़कियों का अपहरण कर गाली-गलौज और रेप की घटना को अंजाम दिलवाया है। 

🚩पीड़िता ने बताया कि ईसाई फादर ने लड़कियों को समझाते हुए कहा था कि इसकी सूचना कहीं नहीं देना, नहीं तो तुम्हारे मां- बाप का मर्डर हो जायेगा 
। तुम्हारा परिवार खतरे में पड़ जायेगा ।

🚩आप पीड़िता के बयान से समझ गये होंगे कि ईसाई पादरियो ने मिलकर षडयंत्र रचा और लड़कियों का बलात्कार हुआ, उनको पीटा गया, प्राईवेट पार्ट पर भयंकर नुकसान पहुँचाया गया और 4 पादरी और 8 अन्य को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया है फिर भी मीडिया चुप है क्योंकि मामला ईसाई पादरी का है ।

🚩षडयंत्र के तहत कोई महिला खड़ी हो जाती है और हिन्दू साधु-संत पर आरोप लगा देती है तो मीडिया दिन रात ब्रेकिंग न्यूज़ ओर डिबेट चलाती है लेकिन ईसाई धर्म का मामला आया तो मीडिया ने मौन धारण कर लिया ।

🚩इससे साफ पता चलता है कि भारत से हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए हिन्दू धर्मगुरुओं बदनाम करने और धर्मान्तरण कराने वाले ईसाई पादरियों को बचाने के लिए विदेश से भारी फंडिग होती है ।

🚩ईसाई पादरियों के यह एक मामला दुष्कर्म का नही है ऐसे तो हजारों पादरियों पर मामले दर्ज हुए हैं, छोटे बच्चो और ननो के साथ भी दुष्कर्म करते पकड़े गए है और पादरियों को सजा भी हुई है लेकिन एक भी खबर मीडिया में नही आ रही है । 

🚩आपको बता दें कि सुदर्शन न्यूज चैनल के मालिक श्री सुरेश चव्हाणके ने बताया है कि भारत की मीडिया को अधिकतर फंडिग वेटिकन सिटी जो ईसाई धर्म का बड़ा स्थान है वहाँ से आता है इसलिए मीडिया हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए केवल हिन्दू धर्म के साधु-संतों को बदनाम करती है और ईसाई पादरियों के दुष्कर्म को छुपाती है ।

🚩भारतवासी इन विदेशी फंडिग से चलने वाली मीडिया से सावधान रहें ।


🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk


🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt

🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Sunday, June 24, 2018

रानी दुर्गावती ने तीन बार अकेले मुगल सेना को रौंद दिया था, जानिए इतिहास

24 June 2018

🚩भारत में शूर, बुद्धिमान और साहसी कई वीरांगना पैदा हुई, जिनके नाम से ही मुगल सल्तनत काँपने लगती थी पर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के इतिहास में उनको कहीं स्थान नहीं दिया गया इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों का इतिहास पढ़ाया जाता है । आज अगर सही इतिहास पढ़ाया जाए तो हमारी भावी पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की तरफ मुड़कर भी नही देखेगी इतना महान इतिहास है अपना । 
Rani Durgavati tripled the Mughal army three times, know history

🚩भारत की नारियों में अथाह सामर्थ्य है, अथाह शक्ति है। अपनी छुपी हुई शक्ति को जाग्रत करके अवश्य महान बन सकती है । आइये ऐसी एक महान नारी की याददाश्त को ताजा करते हैं ।

🚩रानी दुर्गावतीका जन्म 10 जून, 1525 को तथा हिंदु कालगणनानुसार आषाढ शुक्ल द्वितीयाको चंदेल राजा कीर्ति सिंह तथा रानी कमलावतीके गर्भसे हुआ । वे बाल्यावस्थासे ही शूर, बुद्धिमान और साहसी थीं । उन्होंने युद्धकलाका प्रशिक्षण भी उसी समय लिया । प्रचाप (बंदूक) भाला, तलवार और धनुष-बाण चलानेमें वह प्रवीण थी । गोंड राज्यके शिल्पकार राजा संग्रामसिंह बहुत शूर तथा पराक्रमी थे । उनके सुपुत्र वीरदलपति सिंहका विवाह रानी दुर्गावतीके साथ वर्ष 1542 में हुआ । वर्ष 1541 में राजा संग्राम सिंहका निधन होनेसे राज्यका कार्यकाज वीरदलपति सिंह ही देखते थे । उन दोनोंका वैवाहिक जीवन 7-8 वर्ष अच्छेसे चल रहा था । इसी कालावधिमें उन्हें वीरनारायण सिंह नामक एक सुपुत्र भी हुआ ।

🚩 रानी दुर्गावतीने गोंड राजवंशवकी बागडोर (लगाम) थाम ली

🚩दलपतशाहकी मृत्यु लगभग 1550 ईसवी सदीमें हुई । उस समय वीर नारायणकी आयु बहुत अल्प होनेके कारण, रानी दुर्गावतीने गोंड राज्यकी बागडोर (लगाम) अपने हाथोंमें थाम ली । अधर कायस्थ एवं मन ठाकुर, इन दो मंत्रियोंने सफलतापूर्वक तथा प्रभावी रूपसे राज्यका प्रशासन चलानेमें रानीकी मदद की । रानीने सिंगौरगढसे अपनी राजधानी चौरागढ स्थानांतरित की । सातपुडा पर्वतसे घिरे इस दुर्गका (किलेका) रणनीतिकी दृष्टिसे बडा महत्त्व था ।

🚩कहा जाता है कि इस कालावधिमें व्यापार बडा फूला-फला । प्रजा संपन्न एवं समृद्ध थी । अपने पतिके पूर्वजोंकी तरह रानीने भी राज्यकी सीमा बढाई तथा बडी कुशलता, उदारता एवं साहसके साथ गोंडवनका राजनैतिक एकीकरण ( गर्‍हा-काटंगा) प्रस्थापित किया । राज्यके 23000 गांवोंमेंसे 12000 गांवोंका व्यवस्थापन उसकी सरकार करती थी । अच्छी तरहसे सुसज्जित सेनामें 20,000 घुडसवार तथा 1000 हाथीदलके साध बडी संख्यामें पैदलसेना भी अंतर्भूत थी । रानी दुर्गावतीमें सौंदर्य एवं उदारताका धैर्य एवं

🚩बुद्धिमत्ताका सुंदर संगम था । अपनी प्रजाके सुखके लिए उन्होंने राज्यमें कई काम करवाए तथा अपनी प्रजाका ह्रदय (दिल) जीत लिया । जबलपुरके निकट ‘रानीताल’ नामका भव्य जलाशय बनवाया । उनकी पहलसे प्रेरित होकर उनके अनुयायियोंने चेरीतल का निर्माण किया तथा अधर कायस्थने जबलपुरसे तीन मीलकी दूरीपर अधरतलका निर्माण किया । उन्होंने अपने राज्यमें अध्ययनको भी बढावा दिया ।

🚩आक्रमणकारी बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजाको युद्ध में हराना

🚩राजा दलपतिसिंहके निधनके उपरांत कुछ शत्रुओंकी कुदृष्टि इस समृद्धशाली राज्यपर पडी । मालवाका मांडलिक राजा बाजबहादुरने विचार किया, हम एक दिनमें गोंडवाना अपने अधिकारमें लेंगे । उसने बडी आशासे गोंडवानापर आक्रमण किया; परंतु रानीने उसे पराजित किया । उसका कारण था रानीका संगठन चातुर्य । रानी दुर्गावतीद्वारा बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजाको युद्धमें हरानेसे उसकी कीर्ति सर्वदूर फैल गई । सम्राट अकबरके कानोंतक जब पहुंची तो वह चकित हो गया । रानीका साहस और पराक्रम देखकर उसके प्रति आदर व्यक्त करनेके लिए अपनी राजसभाके (दरबार) विद्वान `गोमहापात्र’ तथा `नरहरिमहापात्र’को रानीकी राजसभामें भेज दिया । रानीने भी उन्हें आदर तथा पुरस्कार देकर सम्मानित किया । इससे अकबरने सन् 1540 में वीरनारायणसिंहको  राज्यका शासक मानकर स्वीकार किया । इस प्रकारसे शक्तिशाली राज्यसे मित्रता बढने लगी । रानी तलवारकी अपेक्षा बंदूकका प्रयोग अधिक करती थी । बंदूकसे लक्ष साधनेमें वह अधिक दक्ष थी । ‘एक गोली एक बली’, ऐसी उनकी आखेटकी पद्धति थी । रानी दुर्गावती राज्यकार्य संभालनेमें बहुत चतुर, पराक्रमी और दूरदर्शी थी ।

🚩अकबरका सेनानी तीन बार रानिसे पराजित

🚩अकबरने वर्ष 1563 में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानीको (सरदार) गोंडवानापर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानीने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतोंद्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकोंको सावधान हो जानेकी सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेनाकी कुछ टुकडियोंको घने जंगलमें छिपा रखा और शेषको अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानीने सैनिकोंको मार्गदर्शन किया । एक पर्वतकी तलहटीपर आसफ खान और रानी दुर्गावतीका सामना हुआ । बडे आवेशसे युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानीके सैनिक मरने लगे; परंतु इतनेमें जंगलमें छिपी सेनाने अचानक धनुष-बाणसे आक्रमण कर, बाणोंकी वर्षा की । इससे मुगल सेनाको भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावतीने आसफ खानको पराजित किया । आसफ खानने एक वर्षकी अवधिमें ३ बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ ।

🚩गोंडवानाकी स्वतंत्रताके लिए आत्मबलिदान देनेवाली रानी

🚩अंतमें वर्ष 1564 में आसफखानने सिंगारगढपर घेरा डाला; परंतु रानी वहांसे भागनेमें सफल हुई । यह समाचार पाते ही आसफखानने रानीका पीछा किया । पुनः युद्ध आरंभ हो गया । दोनो ओरसे सैनिकोंको भारी क्षति पहुंची । रानी प्राणोंपर खेलकर युद्ध कर रही थीं । इतनेमें रानीके पुत्र वीरनारायण सिंहके अत्यंत घायल होनेका समाचार सुनकर सेनामें भगदड मच गई । सैनिक भागने लगे । रानीके पास केवल 300 सैनिक थे । उन्हीं सैनिकोंके साथ रानी स्वयं घायल होनेपर भी आसफखानसे शौर्यसे लड रही थी । उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकोंने उसे सुरक्षित स्थानपर चलनेकी विनती की; परंतु रानीने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्धमें मुझे विजय अथवा मृत्युमें से एक चाहिए ।” अंतमें घायल तथा थकी हुई अवस्थामें उसने एक सैनिकको पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है; परंतु हमारे शरीरका नख भी शत्रुके हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है । इसलिए आप भालेसे हमें मार दीजिए । हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए”; परंतु सैनिक वह साहस न कर सका, तो रानीने स्वयं ही अपनी तलवार गलेपर चला ली ।

🚩वह दिन था 24 जून 1564 का, इस प्रकार युद्ध भूमिपर गोंडवानाके लिए अर्थात् अपने देशकी स्वतंत्रताके लिए अंतिम क्षणतक वह झूझती रही । गोंडवानापर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावतीका अधिराज्य था, जो मुगलोंने नष्ट किया । इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावतीका अंत हुआ । इस महान वीरांगनाको हमारा शतशः प्रणाम !

🚩जिस स्थानपर उन्होंने अपने प्राण त्याग किए, वह स्थान स्वतंत्रता सेनानियोंके लिए निरंतर प्रेरणाका स्रोत रहा है ।

🚩उनकी स्मृतिमें 1883 में मध्यप्रदेश सरकारने जबलपुर विश्वविद्यालयका नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रखा ।

🚩इस बहादुर रानीके नामपर भारत सरकारने 24 जून 1988 को डाकका टिकट प्रचलित कर (जारी कर) उनके बलिदानको श्रद्धांजली अर्पित की ।

🚩गोंडवानाको स्वतंत्र करने हेतु जिसने प्राणांतिक युद्ध किया और जिसके रुधिरकी प्रत्येक बूंदमें गोंडवानाके स्वतंत्रताकी लालसा थी, वह रणरागिनी थी महारानी दुर्गावती । उनका इतिहास हमें नित्य प्रेरणादायी है ।

🚩आज की भारतीय नारियाँ इन आदर्श नारियों से प्रेरणा पाकर आगे बढ़े, पाश्चात्य संस्कृति की तरफ न भागे । भारत की नारियां अपने बच्चों में सदाचार, संयम आदि उत्तम संस्कारों का सिंचन करें तो वह दिन दूर नहीं, जिस दिन पूरे विश्व में भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति की दिव्य पताका पुनः लहरायेगी।

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk


🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt

🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ