Monday, September 17, 2018

चांदी के वर्क वाली मिठाई का सच जानकर आप भी खाना छोड़ देंगे

17 September 2018

🚩 हिन्दू त्यौहार में मिठाईयां खूब खाई जाती है, उसमें भी मेहमानों को आकर्षित करने के लिए चांदी के वर्क वाली मिठाईयां ख़रीद के खाई जाती हैं और खिलाई जाती हैं ।

🚩 देशभर में गणेश महोत्सव की धूम मची है, उसमे भी वर्क वाली मिठाईयों का खूब उपयोग किया जा रहा है, लेकिन ये मिठाई खाने जैसी है कि नहीं, क्या भगवान को वर्क वाली मिठाई का भोग लगाना उचित है या नहीं, ये जानना बेहद जरूरी है ।
Knowing the truth about silver-working sweets will leave you

🚩कुछ लोग #खूबसूरती के लिए ये मिठाईयां #घर लाते हैं तो कुछ लोग सेहत के लिए फायदेमंद समझकर #खरीदते हैं ।

🚩  मिठाईयों पर लगे #चाँदी के #वर्क का सच जानने के बाद आप मिठाई खाने से पहले सौ बार सोचेंगे । हो सकता है खाना ही छोड़ दें । क्या आपको पता है कि आपको वर्क के नाम पर मांसाहारी #मिठाई परोसी जा रही है ?

🚩 #चांदी के #वर्क वाली #मिठाई दिखने में जितनी सुंदर है । उसी #चांदी के #वर्क के बनने की #कहानी बेहद ही घिनौनी है । सालों से #लोग वर्क लगी मिठाई को शाकाहारी समझ कर खा रहे हैं, लेकिन #सजावट के लिए लगाया जाने वाला #चांदी का वर्क असलियत में जानवर की खाल से बनता है ।

🚩बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि यह वर्क #गाय-बैल की आंतों से #तैयार किया जाता है ।

🚩जिस #चांदी के वर्क लगी #मिठाई को #शाकाहारी समझ कर आप बरसों से खा रहे हैं, वो दरअसल शाकाहारी नहीं है #जानवर के अंश का इस्तेमाल करके चांदी का वर्क बनाया जाता है ।

🚩बता दें कि #देश में चांदी के वर्क की सालाना #मांग करीब 275 टन की है । चांदी के वर्क का #कारोबार फिलहाल #भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में है जो कि पूरी तरह असंगठित क्षेत्र के हाथ में है । यही वजह है कि इसके कारोबार का सही-सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है ।

🚩 चांदी का बाजार !!

#परंपरागत रूप से देश में #चांदी का वर्क बूचड़खानों से ली गई जानवरों की खालों और उनकी आंतों को हथौड़ों से पीटकर तैयार किया जाता है ।

🚩इसके अलावा विदेशी मशीनों से भी चांदी का #वर्क तैयार होता है, इसमें एक #स्पेशल पेपर और पॉलिएस्टर कोटेड शीट के बीच चांदी को रखकर उसके वर्क का पत्ता तैयार होता है । इसमें #जानवर के अंश का इस्तेमाल नहीं किया जाता । चूंकि ये #मशीनें महंगी हैं और देश में गिनी चुनी कंपनियों के पास ही हैं, ऐसे में इनका चांदी का वर्क #महंगा भी पड़ता है और कम भी । एक अनुमान के मुताबिक #भारत में 90 फीसदी चांदी का वर्क पुराने तरीके से, जानवरों के अंश का इस्तेमाल करके बनता है, जबकि 10 फीसदी मशीनों से तैयार होता है ।

🚩 #सरकारी आदेश का असर !!

#सरकार ने चांदी के वर्क को बनाने में जानवर के अंश का इस्तेमाल नहीं करने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है । #फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व सदस्य और फूड एक्सपर्ट बिजॉन मिश्रा का भी कहना है कि चांदी के वर्क बेचते समय बताना चाहिए कि ये मांसाहारी है या शाकाहारी । इसके पैकेट पर हरा और लाल निशान होना चाहिए ।

🚩आपको बता दें कि पैकेट पर हरा निशान मतलब की शाकाहारी है और लाल निशान मतलब की वो वस्तु मांसाहारी है ।

🚩 पिछले साल #मेनका गांधी ने #मीडिया को बताया कि मिठाई व #पान ही नहीं #सेब जैसे #फल को #आकर्षक बनाने के लिए उनके ऊपर जो चांदी का वर्क लगाया जाता है वह #मांसाहार की श्रेणी में आता है।

🚩उनका कहना है कि यह वर्क #जिंदा #बैलों का #कत्ल कर उनकी #आंत के सहारे तैयार किया जाता है । वर्क लगी #मिठाइयों के बढ़ते आकर्षण के कारण प्रति वर्ष हजारों #गौवंशीय #पशुओं की #हत्या की जाती है।

🚩उन्होंने बताया कि गौवंशीय पशु की आंत से बनी वर्क में #चांदी, #एल्यूमिनियम अथवा उस जैसी धातु का बड़ा टुकड़ा डाला जाता है । फिर उसे लकड़ी के हथौड़े से पीट कर पतला करके आकार दिया जाता है ।

🚩बैल की आंत #पीटते रहने से #फटती नहीं है । चांदी के वर्क के चक्कर में कुछ लोग एल्यूमिनियम भी बेच देते हैं।

🚩मेनका गाँधी का कहना है कि इस कारोबार से जुड़े लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से #पशु #हत्या, #गाय की हत्या में भी संलिप्त कहे जा सकते हैं । 'तीन साल पहले #इंडियन #एयरलाइंस ने यह महसूस किया कि चांदी वर्क #मांसाहार है, और अपने #कैटरर को #विमान में परोसी जाने वाली मिठाइयों पर वर्क न लगाने के निर्देश दिए थे । साथ ही पत्र भेज कर बैल की आंतों के सहारे तैयार कराए जाने वाले वर्क पर रोक लगाने को कहा था ।

🚩#स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कराई गई जांच में भी वर्क के मांसाहार होने की पुष्टि हुई ।
🚩#केंद्र अब #कानून के जरिये इस पर प्रतिबंध की तैयारी में है ।

🚩इस आशय का 19 अप्रैल 2016 को #राजपत्र भी आम राय के लिए #वेबसाइट पर डाला था ।

🚩आप भी घरेलू बनी मिठाई ही खायें  और
बैल के वर्क से बनी मिठाइयों, सुपारी, लडडू, इलायची आदि से सावधान रहें ।


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Friday, September 14, 2018

कश्मीरी हिन्दू बलिदान दिवस, कश्मीर की पुनर्रचना होनी आवश्यक : महाजन

14 September 2018

🚩आतंकवादियों ने इसी दिन कश्मीरी हिन्दूओं को धमकी देकर सर्वप्रथम 14 सितम्बर 1989 को श्रीनगर में हिन्दू नेता टिकालाल की हत्या की थी ।

🚩कश्मीरी हिन्दू विश्वभर के जिहादी आतंकवाद की पहली बलि सिद्ध हुए । वर्ष 1990 के विस्थापन के पश्चात विगत 28 वर्ष से विविध राजनीतिक दलों के शासन सत्ता में रहे; परंतु मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कश्मीर की स्थिति में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ । अत: कश्मीरी हिन्दू अपने घर नहीं लौट सके ।

🚩जानिए क्यों आवश्यक है जम्मू-कश्मीर राज्य की पुनर्रचना - 
Kashmiri Hindu sacrifice must be
rediscovered, Kashmir needs: Mahajan

जम्मू-कश्मीर राज्य की पुनर्रचना समय की मांग है ! इससे वहां चल रहे संघर्ष को कश्मीर घाटी तक ही (राज्य के कुल भूभाग में से 4 प्रतिशत भूभाग) सीमित रखने में सफलता मिलनेवाली है । इससे वहां के राष्ट्रवादी प्रदेश जम्मू एवं लडाख को सशक्त करने में सहायता मिलेगी। इससे केंद्रशासन को कश्मीर घाटी से विस्थापित हिन्दुओं के साथ ही सभी प्रकार के नेताओं से सीधा संपर्क कर, कश्मीर की समस्या का समाधान ढूंढने में बहुत सहायता होगी ।

🚩1. जम्मू-कश्मीर का भारत में विलीनीकरण करने के संदर्भ में ‘अमृतसर अनुबंध’ का स्थानीय लोगोंद्वारा विरोध :- वर्ष 1947 में लगभग 12 राज्यों को छोडकर अनेक राज्यों ने स्वयं के राज्य को भारत के साथ जोडने हेतु अनुबंध किए । राजा के द्वारा अपना राजनीतिक भविष्य सुनिश्‍चित किए गए राज्यों में से जम्मू-कश्मीर भी एक राज्य था । उस समय सब से प्रगतिशील राज्यों में माने जानेवाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर को अन्य राज्यों की भांति जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत से जोड़ने के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए । महाराज हरिसिंह उसके भी बहुत समय पहले जम्मू-कश्मीर का भारत में विलीनीकरण करने हेतु सहमत थे; परंतु महाराज हरिसिंह एवं उनके प्रधानमंत्री मेहर चंदद्वारा भेजे गए पत्र का नेहरू द्वारा कोई उत्तर ही न दिए जाने से यह विलीनीकरण करने में विलंब हुआ !

🚩राजा हरिसिंह ने स्वतंत्र भारत के साथ अनुबंध करने के पूर्व अर्थात 16 मार्च 1946 को महाराजा गुलाबसिंह एवं तत्कालीन भारतीय ब्रिटिश शासन में अमृतसर अनुबंध हुआ । यह अनुबंध तो एक प्रकार से विक्रय का ही अनुबंध था । यह अनुबंध कश्मीरी लोगों का अनादर था । उसके कारण यह अनुबंध ‘कश्मीर छोड़ो’ आंदोलन का मुख्य विषय बन गया था। (इसका संदर्भ जम्मू-कश्मीर स्वायत्त समिति के अप्रैल 1999 के ब्यौरे में आता है।)

प्रा. हरि ओम महाजन

🚩2. अमृतसर अनुबंध का अर्थ जम्मू में स्थित सत्ताकेंद्र को मुसलमान बहुसंख्यक कश्मीर में स्थानांतरित करने का षडयंत्र : जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत के साथ जोड़नेवाले इस अनुबंध का अर्थ था जम्मू में स्थित सत्ताकेंद्र का कश्मीर में स्थानांतरण करना, तब से मुख्यमंत्री कार्यालय, साथ ही गृह, वित्त, राजस्व एवं शिक्षा आदि अन्य बड़े मंत्रीपद, महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक तथा अर्धप्रशासनिक पदों पर कश्मीर में स्थित सुन्नी मुसलमानों का वर्चस्व स्थापित हुआ । उसके पश्‍चात के समय में केंद्रशासन ने जम्मू प्रदेश में स्थित राजनीतिक शक्तियों का कश्मीर में हस्तांतर करने में बहुत सहायता की।

🚩3. जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत से तोड़नेवाली धारा 370 एवं 35 A : केवल इतना ही नहीं, अपितु अक्टूबर 1949 में धारा 370 एवं 35 A के अंतर्गत कश्मीर को विशेष राज्य की श्रेणी दी गई । धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर भारत के संवैधानिक प्रारूप से अलग हो गया और इस राज्य को अपना अलग संविधान एवं अपना अलग ध्वज रखने का अधिकार प्राप्त हुआ । धारा ‘35 A’ के कारण देश के अन्य नागरिक जम्मू-कश्मीर की नागरिकता लेने के अधिकार से वंचित हो गए, साथ ही इसके कारण जम्मू-कश्मीर में स्थित युवतियों को अन्य राज्य में स्थित युवकों के साथ विवाह करने हेतु बाधा उत्पन्न हुई ।

जम्मू-कश्मीर देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिस राज्य को असीमित संवैधानिक, कार्यकारी एवं आर्थिक अधिकार प्राप्त हैं । केंद्र से मिलनेवाली धनराशि के संदर्भ में जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार प्राप्त हैं ।

🚩 4.जम्मू कश्मीर राज्य को देश के अन्य अल्प आयवाले समूह में निहित राज्यों की तुलना में केंद्रशासन से बडा अनुदान :- वर्ष 2001 से 2016 की अवधि में देश के अन्य राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों को मिलनेवाले अनुदानों में से 10 प्रतिशत अनुदान केवल जम्मू-कश्मीर राज्य को मिला है । ये आंकड़े किसी को संभवतः अविश्‍वसनीय लग सकते हैं; परंतु यह वास्तविकता है । जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या देश की जनसंख्या की मात्रा में केवल 1 प्रतिशत होनेपर भी इस राज्य को इतना बड़ा अनुदान मिला है ।

🚩इसके विपरीत इस अवधि में देश की जनसंख्या की तुलना में 13 प्रतिशत जनसंख्यावाले उत्तर प्रदेश राज्य को केंद्रीय अनुदान में से केवल 8.2 प्रतिशत अनुदान मिला है । 1 करोड़ 25 लाख  जनसंख्यावाले जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए प्रतिव्यक्ति अनुदान 91 सहस्र (हजार) 300 रुपए था, तो उत्तर प्रदेश राज्य के लिए यही अनुदान 4 सहस्र 300 रुपए है । विशेष श्रेणी प्राप्त 11 राज्यों को मिलनेवाले अनुदान के रूप में इस अवधि में जम्मू-कश्मीर राज्य को 1 लाख 14 करोड़ रुपए का अनुदान मिला है । यह अनुदान इन 11 विशेष श्रेणी प्राप्त राज्यों को मिलनेवाले कुल अनुदान से भी 25 प्रतिशत अधिक है । इस विषय में दैनिक ‘द हिंदू’ के 24 जुलाई 2016 के अंक में विस्तृत ब्यौरा प्रकाशित हुआ है ।

🚩वर्ष 2006 में जम्मू-कश्मीर को प्रतिव्यक्ति अनुदान 9 हजार 754 रुपए मिल गया । इसके विपरीत बिहार राज्य को प्रतिव्यक्ति 876 रुपए ही मिले । इसका अर्थ बिहार को जम्मू-कश्मीर की तुलना में १० प्रतिशत अल्प अनुदान मिला है ।

🚩दैनिक हिंदुस्थान टाईम्स में 16 अगस्त 2008 को प्रकाशित वीर सिंघवी द्वारा लिखे गए लेख में दी गई जानकारी के अनुसार ‘‘बिहार एवं अन्य राज्यों को प्राप्त अनुदान विशेष रूप से ऋण के रूप में था, इसके विपरीत जम्मू-कश्मीर को प्राप्त 90 प्रतिशत अनुदान सीधा अनुदान था । जम्मू-कश्मीर राज्य का सभी पंचवर्षीय व्यय भारतीय करदाताओं के करों में से होतो है, साथ ही दिल्ली का केंद्रशासन बीच-बीच में धनराशि की आपूर्ति करता है । वर्ष 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह शासनद्वारा विकास के नामपर 5 अरब रुपए दिए गए थे ।"

🚩5. अयोग्य पुरानी नीतियों के कारण होनेवाली हानि को टालने हेतु जम्मू-कश्मीर राज्य की पुनर्रचना की जानी आवश्यक :- देश के दक्षिण एवं उत्तर भाग की नीतियों का निर्धारण करनेवाले तथा समस्याओं का समाधान ढूंढनेवाले विचारकों को देश के 70 वर्ष पुराने कश्मीर की नीतिपर पुनर्विचार करना आवश्यक है, क्योंकि इन पुरानी नीतियों के कारण एक ओर से कश्मीर की समस्या यथास्थिति बनी हुई है तथा दूसरी ओर जम्मू एवं लडाख प्रदेश के लोग कश्मीर एवं केंद्रशासन इन दोनों से बहुत दूर हो गए हैं ।

🚩इसलिए केवल धार्मिकता के आधार पर नहीं, अपितु प्रादेशिकता के आधार पर जम्मू-कश्मीर की पुनर्रचना कर जम्मू को अलग राज्य की श्रेणी एवं लडाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश की श्रेणी दी जानी चाहिए । इससे जम्मू-कश्मीर की समस्या का समाधान ढूंढने में बहुत सहायता मिलेगी !

🚩- प्रा. हरि ओम महाजन, पूर्व विभागप्रमुख, सामाजिकशास्त्र शाखा, जम्मू एवं काश्मीर विश्‍वविद्यालय (संदर्भ : संकेतस्थल  ‘SwarajyaMag.com’)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है

13 September 2018
http://azaadbharat.org
14 सितम्बर : #राष्ट्रभाषा दिवस
🚩 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की #राजभाषा होगी। सरकारी काम काज हिंदी भाषा में ही होगा ।
🚩इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये #राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष #हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
Hindi is the most systematic language in the world's advanced languages
🚩अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।
🚩हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है । लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाएं ।
🚩हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है । वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है । हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा में नही है ।
🚩हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है । हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है।
🚩आज उन मैकाले की वजह से ही हमने अपनी मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उपयोग करना चाहिए ।
🚩मदन मोहन मालवीयजी ने 1898 में सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की प्रमुखता को बताते हुए, कचहरियों में हिन्दी भाषा को प्रवेश दिलाया ।
🚩लोकमान्य तिलकजी ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया ।
वे कहते थे : ‘‘ अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है । जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते । ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है । ऐसी शिक्षा-प्रणाली किसी भी सभ्य देश में नहीं पायी जाती ।’’
🚩जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसीको तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है ।
🚩हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए ।
🚩एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है । हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए ।
🚩 राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतराष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए ।
🚩 जब कमाल पाशा अरब देश में तुर्की भाषा को लागू करने के लिए अधिकारियों की कुछ दिन की मोहलत ठुकराकर रातोंरात परिवर्तन कर सकते हैं तो हमारे लिए क्या यह असम्भव है  ?

🚩आज सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है । इसलिए हिन्दी की संस्कृति को विश्व को अपना अंशदान करना है ।
🚩 राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है । इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है । यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है । आओ, इसे सुदृढ़ बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें ।
🚩स्वभाषा की महत्ता बताते हुए हिन्दू संत आसाराम बापू कहते हैं : ‘‘मैं तो जापानियों को धन्यवाद दूँगा । वे अमेरिका में जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं । ...और हम भारतवासी ! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्द बोलने लगते हैं । आदत जो पड़ गयी है ! आजादी मिले 70 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गयी ।’’
(लोक कल्याण सेतु : नवम्बर 2012)
🚩अंग्रेजी भाषा के दुष्परिणाम
🚩 #लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ #संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे... मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे... माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे... वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!
🚩विदेशी शासन के अनेक दोषों में देश के नौजवानों पर डाला गया #विदेशी भाषा के माध्यम का घातक बोझ इतिहास में एक सबसे बड़ा दोष माना जायेगा। इस माध्यम ने राष्ट्र की शक्ति हर ली है, विद्यार्थियों की आयु घटा दी है, उन्हें आम जनता से दूर कर दिया है और शिक्षण को बिना कारण खर्चीला बना दिया है। अगर यह प्रक्रिया अब भी जारी रही तो वह राष्ट्र की आत्मा को नष्ट कर देगी। इसलिए शिक्षित भारतीय जितनी जल्दी विदेशी माध्यम के भयंकर वशीकरण से बाहर निकल जायें उतना ही उनका और जनता का लाभ होगा।
🚩अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें । अपने बच्चों को अंग्रेजी#(कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को# अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा(गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुमुखी #विकास में सहभागी बनें ।
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