Wednesday, April 17, 2019

डॉ. अम्बेडकर के नाम से हमें बाँटा जा रहा है, जानिए अम्बेडकर का क्या कहना था ?

14 अप्रैल 2019 

🚩डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में हुआ था । वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई मुरबादकर की 14वीं व अंतिम संतान थे । उनका परिवार मराठी था और वो अंबावडे नगर जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले में है के निवासी थे ।
🚩उनके पिता ने भीमराव की पढ़ाई-लिखाई पर बहुत ध्यान दिया । उन्होंने स्कूली शिक्षा समाप्त की । फिर कॉलेज की पढ़ाई शुरू हुई । इस बीच पिता का हाथ तंग हुआ । खर्चे की कमी हुई । बड़ौदा के शासक गायकवाड़ ने उनके लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था कर दी और आम्बेडकर ने अपने कॉलेज की शिक्षा पूरी की । 1907 में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद बड़ौदा महाराज की आर्थिक सहायता से वे एलिफिन्सटन कॉलेज से 1912 में ग्रेजुएट हुए ।

🚩भारतीय राजनीति अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जैसे अपने क्रांतिकारियों को जाति के आधार पर विभाजित कर लेती है वैसे ही महान व्यक्तित्वों को भी जाति भेद के आधार पर विभाजित कर लेती है । डॉ अम्बेडकर यह नाम सुनते ही पाठकों के मन में एक दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नेता उजागर की छवि होगी । मगर डॉ अम्बेडकर के जीवन के एक ऐसा पक्ष भी है जिसमें राष्ट्रवादी चिंतन के महान नेता के रूप में उनके दर्शन होते हैं । डॉअम्बेडकर के नाम पर दलित राजनीति करने वाले लोग जिन्हें हम छद्म अम्बेडकरवादी कह सकते हैं, विदेशी ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर डॉ अम्बेडकर के सिद्धांतों की हत्या करने में लगे हुए हैं । 

🚩अम्बेडकरवाद के नाम पर याकूब मेनन की फांसी की हत्या का विरोध, यूनिवर्सिटी में बीफ फेस्टिवल मनाना, कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी बताना, वन्दे मातरम और भारत माता की जय का नारा लगाने का विरोध, दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कवायद, अलगाववादी कश्मीरी नेताओं की प्रशंसा जैसे कार्यों में लिप्त होना डॉअम्बेडकर की मान्यताओं का स्पष्ट विरोध हैं ।  

🚩जानिए डॉअम्बेडकर के सिद्धांत क्या थे ?

🚩1. मैं यह स्वीकार करता हूँ कि कुछ बातों को लेकर सवर्ण हिन्दुओं के साथ मेरा विवाद है, परन्तु मैं आपके समक्ष यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। - (राष्ट्र पुरुष बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर, कृष्ण गोपाल एवं श्री प्रकाश, फरवरी 1940, पृष्ठ 50)

🚩2. शुद्र राजाओं और ब्राह्मणों में बराबर झगड़ा रहा जिसके कारण ब्राह्मणों पर बहुत अत्याचार हुआ । शूद्रों के अत्याचारों के कारण ब्राह्मण उनसे घृणा करने लगे और उनका उपनयन करना बंद कर दिया । उपनयन न होने के कारण उनका पतन हुआ। (डॉ अम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 13, पृष्ठ 3)

🚩3. आर्यों के मूलस्थान (भारत के बाहर) का सिद्धांत वैदिक सहित्य से मेल नहीं खाता । वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती के प्रति आत्मीय भाव है । कोई विदेशी इस तरह नदियों के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नहीं कर सकता। (डॉ अम्बेडकरराइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 7, पृष्ठ 70 )

🚩4. हिन्दू समाज ने अपने धर्म से बाहर जाने के मार्ग तो खुला रखा है, किन्तु बाहर से अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है । यह स्थिति पानी की उस टंकी के समान है जिसमें पानी के अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है । किन्तु निकास की टोटीं सैदेव खुली है । अत: हिन्दू समाज को आने वाले अनर्थ से बचाने के लिए इस व्यवस्था में परिवर्तन होना आवश्यक है । (बाबा साहेब बांची भाषणे- खण्ड 5, पृष्ठ 16)

🚩5. हिन्दू अपनी मानवतावादी भावनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं और प्राणी जीवन के प्रति तो उनकी आस्था अद्भुत है । कुछ लोग तो विषैले सांपों को भी नहीं मारते । हिन्दू दर्शन सर्वव्यापी आत्मा का सिद्धांत सिखाता है और गीता उपदेश देता है कि ब्राह्मण और चांडाल में भेद न करो । प्रश्न उठता है कि जिन हिन्दुओं में उदारता और मानवतावाद की इतनी अच्छी परम्परा है और जिनका अच्छा दर्शन है वे मनुष्यों के प्रति इतना अनुचित तथा निर्दयता पूर्ण व्यवहार क्यों करते हैं ? (Source: Material editor B.G.Kunte Vol 1 page 14-15)

🚩6. डॉअम्बेडकर का मत था कि प्रत्येक हिन्दू वैदिक रीति से यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार रखता है और इसके लिए अम्बेडकर जी ने बम्बई में "समाज समता संघ" की स्थापना की, जिसका मुख्य कार्य अछूतों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना तथा उनको अपने अधिकारों के प्रति सचेत करना था । यह संघ बड़ा सक्रिय था । इसी समाज के तत्वाधान में 500 महारों को जनेऊ धारण करवाया गया ताकि सामाजिक समता स्थापित की जा सके । यह सभा बम्बई में मार्च 1928 में संपन्न हुई जिसमें डॉ अम्बेडकर भी मौजूद थे । (डॉ बी आर अम्बेडकर- व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृष्ठ 116-117)

🚩7. तरुणों की धर्म विरोधी प्रवृति देखकर मुझे दुःख होता है । कुछ लोग कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। परन्तु यह सहीं नहीं है । मेरे अंदर जो भी अच्छे गुण हैं अथवा मेरी शिक्षा के कारण समाज हित के काम जो मैंने किए हैं वे मुझ में विद्यमान धार्मिक भावना के कारण ही हैं । मुझे धर्म चाहिए, लेकिन धर्म के नाम पर चलने वाला पाखण्ड नहीं चाहिए । (हमारे डॉ अम्बेडकर जी, पृष्ठ 9 श्री आश्चर्य लाल नरूला)

🚩8. मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए-"इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है । इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है । यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वास है । दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।” (बाबा साहेब डॉअम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्‌मय, खंड 15-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, 2000)

🚩9. Conversion to Islam or Christianity will denationalize the Depressed classes.If they go over to Islam, the number of Muslims would be doubled; and the danger of Muslim domination also become real.If they go over to Christianity, the numerical strength of the Christians becomes five to six crores. It will help to strengthen the political hold of Britain on the country. (Dr Ambedkar Life and Mission. 2nd Edition pp.278-279)

[ईसाई  या मुस्लिम धर्म में परिवर्तित होने से आदिवासी, पिछड़े वर्ग के लोगों का विराष्ट्रीकरण हो जाएगा । अगर वे मुस्लिम धर्म अपनाते हैं तो मुस्लिमों की संख्या दुगुनी हो जाएगी और इससे मुस्लिमों की प्रधानता और दवाब वास्तविक रूप ले लेगा । अगर हिन्दू ईसाई धर्म में परिवर्तित होते हैं तो ईसाईयों की जनगणना सीधे 5 से 6 करोड़ हो जाएगी ।  इससे देश पर ब्रिटेन की राजनितिक पकड़ मजबूत होगी।]

🚩10. You wish India should protect your border, she should build roads on your area, she should supply you food grains, and Kashmir should get equal status as India.But Government of India should have only limited powers and Indian people should have no rights in Kashmir.To give consent to this proposal, would be a treacherous thing against the interests of India and I, as law minister of India will never do it. (Dr B R Ambedkar to Sheikh Abdullah on Article 370)

[आप चाहते हैं कि भारत आपकी सीमा की रक्षा करे, आपके क्षेत्र में सड़कों का निर्माण करे, आपको खाद्य पदार्थो की पूर्ति करे , और कश्मीर को भारत के बराबर का दर्जा मिले, लेकिन भारत सरकार के पास सीमित अधिकार होने चाहिए और भारतीयों के पास कश्मीर के अंदर कोई भी अधिकार नहीं होना चाहिए । यदि इस प्रस्ताव पर सहमति दी जाती है तो यह भारत देश के खिलाफ धोखा देना होगा, एक  विश्वासघाती निर्णय होगा और देश हित के विपरीत होगा । और जब तक में भारत देश का कानून मंत्री हूँ, मैं कभी ऐसा नहीं करूँगा।]

🚩इस प्रकार से डॉ अम्बेडकर के वांग्मय में अनेक ऐसे उदहारण मिलते हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि डॉ अम्बेडकर सच्चे राष्ट्रभक्त थे । अपने राजनीतिक हितों साधने के लिए अम्बेडकरवादियों ने डॉ अम्बेडकर के साथ विश्वासघात किया। - डॉ विवेक आर्य

🚩जातिवाद ने भारत का बहुत नुकसान किया है । यद्यपि इस से कई नेताओं को गद्दी जरूर मिल गयी, लेकिन भारत के मूल आधार हिन्दुओं को आपस में ही उलझाए रखा गया, हैरानी की बात ये रही कि इस जातिवाद का जहर फैलाने वाले नेताओं ने खुद को सामाजिक एकता का प्रतीक घोषित किये रखा । हद तो यहाँ तक हो गयी कि जिन भीमराव अम्बेडकर जी के नाम में हिन्दुओं के आराध्य का नाम जुड़ा था वो तक लेना इसलिए बंद कर दिया जिससे दलित भाइयो को अपने गौरवशाली अतीत का एहसास न होने पाए .. लेकिन अब योगी सरकार ने उन तमाम जातिवादी नेताओं की राजनीति पल भर में खत्म कर दी है ।*

🚩उत्तर प्रदेश के सरकारी रिकॉर्ड में बाबा साहेब के नाम के साथ रामजी भी जोड़ना होगा । योगी सरकार ने डॉ अंबेडकर के मिडिल नेम का इस्तेमाल अब सरकारी कार्यों के लिए अनिवार्य कर दिया है। अब सरकारी दस्तावेजों और रिकॉर्ड में भीमराव रामजी अंबेडकर लिखा जाएगा । यहाँ ध्यान रखने योग्य है कि डा बीआर अंबेडकर जी का पूरा नाम भीमराव रामजी अंबेडकर है, जिन्हें बाबा साहब के नाम से भी जाना जाता है ।*

🚩हर भारतवासी का कर्तव्य है कि जो भी जातियों में बांटकर राष्ट्र विरोधी कार्य कर रहे है उनका पुरजोर विरोध करें और एकता बनाये रखें ।

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Saturday, April 13, 2019

जालियाँवाला बाग हत्याकांड को 100 वर्ष हो गए, पर नहीं गई गुलामी

https://youtu.be/hCyMvk427Iw

13 अप्रैल 2019 

🚩जालियाँवाला बाग हत्याकांड (Jalianwala Bagh Massacre) की कहानी सुनते ही आज भी हर भारतीय की रूह कांप जाती है । यह ऐसा बर्बर हत्याकांड अंग्रेजों ने हम भारतीयों पर किया था । जिसकी निंदा आज तक की जाती है । अंग्रेजो के द्वारा किये गए इस बर्बर हत्याकांड के लिए आज भी ब्रिटेन के उच्च अधिकारी शोक जताते हैं । आज इस हत्याकांड के 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं । 

🚩यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य #हत्याकाण्ड ही था । माना जाता है कि यह घटना ही भारत में #ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी ।
ऐतिहासिक घटनाक्रम...

🚩13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन थाव। बैसाखी वैसे तो पूरे भारत का एक प्रमुख त्यौहार है परंतु विशेषकर पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की रबी की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं । इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें और अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आस-पास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्यौहार है और सिख इसे सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं । अमृतसर में उस दिन एक मेला सैकड़ों साल से लगता चला आ रहा था जिसमें उस दिन भी हजारों लोग दूर-दूर से आए थे ।

अंग्रेजों की मंशा..

🚩प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में भारतीय नेताओं और जनता ने खुल कर ब्रिटिशों का साथ दिया था । 13 लाख भारतीय सैनिक और सेवक यूरोप, अफ्रीका और मिडल ईस्ट में ब्रिटिशों की तरफ से तैनात किए गए थे जिनमें से 43,000 भारतीय सैनिक युद्ध में शहीद हुए थे। युद्ध समाप्त होने पर भारतीय नेता और जनता ब्रिटिश सरकार से सहयोग और नरमी के रवैये की आशा कर रहे थे परंतु ब्रिटिश सरकार ने मॉण्टेगू-चेम्सफोर्ड सुधार लागू कर दिए जो इस भावना के विपरीत थे ।

🚩लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पंजाब के क्षेत्र में ब्रिटिशों का विरोध कुछ अधिक बढ़ गया था जिसे भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) लागू कर के कुचल दिया गया था। उसके बाद 1918 में एक ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक सेडीशन समिति नियुक्त की गई थी जिसकी जिम्मेदारी ये अध्ययन करना था कि भारत में, विशेषकर पंजाब और बंगाल में ब्रिटिशों का विरोध किन विदेशी शक्तियों की सहायता से हो रहा था। इस समिति के सुझावों के अनुसार भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) का विस्तार कर के भारत में रॉलट एक्ट लागू किया गया था, जो आजादी के लिए चल रहे आंदोलन पर रोक लगाने के लिए था, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार को और अधिक अधिकार दिए गए थे जिससे वह प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी, नेताओं को बिना मुकदमें के जेल में रख सकती थी, लोगों को बिना वॉरण्ट के गिरफ्तार कर सकती थी, उन पर विशेष ट्रिब्यूनलों और बंद कमरों में बिना जवाबदेही दिए हुए मुकदमा चला सकती थी आदि। इसके विरोध में पूरा भारत उठ खड़ा हुआ और देश भर में लोग गिरफ्तारियां दे रहे थे।

गाँधीजी ने रोलेट एक्ट का किया विरोध..

🚩गांधी तब तक दक्षिण अफ्रीका से भारत आ चुके थे और धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी । उन्होंने रोलेट एक्ट का विरोध करने का आह्वान किया जिसे कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने और अधिक नेताओं और जनता को रोलेट एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया और कड़ी सजाएँ दी । इससे जनता का आक्रोश बढ़ा और लोगों ने रेल और डाक-तार-संचार सेवाओं को बाधित किया । आंदोलन अप्रैल के पहले सप्ताह में अपने चरम पर पहुँच रहा था । लाहौर और अमृतसर की सड़कें लोगों से भरी रहती थी । करीब 5,000 लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे थे । ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों को यह 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी परिस्थिति लग रही थी जिसे न होने देने के लिए और कुचलने के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार थे ।

अंग्रेजों के अत्याचार..

🚩आंदोलन के दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दे दी गई । 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर के उप कमिश्नर के घर पर इन दोनों नेताओं को रिहा करने की माँग पेश की गई। परंतु ब्रिटिशों ने शांतिप्रिय और सभ्य तरीके से विरोध प्रकट कर रही जनता पर गोलियाँ चलवा दी। जिससे तनाव बहुत बढ़ गया और उस दिन कई बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल, रेलवे स्टेशन में आगजनी की गई । इस प्रकार हुई हिंसा में 5 यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई । इसके विरोध में ब्रिटिश सिपाही भारतीय जनता पर जहाँ-तहाँ गोलियाँ चलाते रहे जिसमें 8 से 20 भारतीयों की मृत्यु हुई । अगले दो दिनों में अमृतसर तो शाँत रहा पर हिंसा पंजाब के कई क्षेत्रों में फैल गई और 3 अन्य यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई। इसे कुचलने के लिए ब्रिटिशों ने पंजाब के अधिकतर भाग पर मार्शल लॉ लागू कर दिया ।

जलियाँवाला बाग काण्ड का विवरण..

🚩बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे । शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया । उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थी। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा।

गोलीबारी..

🚩सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दी। 15 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गई । जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था । वहाँ तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे । भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया । जलियांवाला बाग कभी जलली नामक आदमी की सम्पति थी ।

शहीदी कुआं..

🚩बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुए से ही मिले । शहर में क‌र्फ्यू लगा था जिससे घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है । ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी ।

करतूत बयानी..

🚩मुख्यालय वापस पहुँच कर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को टेलीग्राम किया कि उस पर भारतीयों की एक फौज ने हमला किया था जिससे बचने के लिए उसको गोलियाँ चलानी पड़ी । ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने इसके उत्तर में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को टेलीग्राम किया कि तुमने सहीं कदम उठाया । मैं तुम्हारे निर्णय को अनुमोदित करता हूँ । फिर ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने अमृतसर और अन्य क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की माँग की जिसे वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने स्वीकृत कर दिया ।

जाँच..

🚩इस हत्याकाण्ड की विश्वव्यापी निंदा हुई जिसके दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉण्टेगू ने 1919 के अंत में इसकी जाँच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया। कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चला कर लोगों को मार देने का निर्णय पहले से ही ले कर वहाँ गया था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था जो कि उस संकरे रास्ते से नहीं जा पाई थी। हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने पर 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को पदावनत कर के कर्नल बना दिया गया और अक्रिय सूचि में रख दिया गया। उसे भारत में पोस्ट न देने का निर्णय लिया गया और उसे स्वास्थ्य कारणों से ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। हाउस ऑफ कॉमन्स ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया परंतु हाउस ऑफ लॉर्ड ने इस हत्याकाण्ड की प्रशंसा करते हुये उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। विश्वव्यापी निंदा के दबाव में ब्रिटिश सरकार ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया और 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को इस्तीफा देना पड़ा । 1927 में बीमारी से ग्रस्त हो गया और तड़प-तड़पकर मर गया ।

🚩रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध-स्वरूप अपनी नाइटहुड को वापस कर दिया। आजादी के लिए लोगों का हौंसला ऐसी भयावह घटना के बाद भी पस्त नहीं हुआ। बल्कि सच तो यह है कि इस घटना के बाद आजादी हासिल करने की चाहत लोगों में और जोर से उफान मारने लगी। हालांकि उन दिनों संचार और आपसी संवाद के वर्तमान साधनों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, फिर भी यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई। आजादी की चाह न केवल पंजाब, बल्कि पूरे देश के बच्चे-बच्चे के सिर चढ़ कर बोलने लगी। उस दौर के हजारों भारतीयों ने जलियांवाला बाग की मिट्टी को माथे से लगाकर देश को आजाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया। पंजाब तब तक मुख्य भारत से कुछ अलग चला करता था परंतु इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गया। इसके फलस्वरूप गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।

🚩1997 में महारानी एलिजाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी।  2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।"

प्रतिघात..

🚩जब जलियांवाला बाग में यह हत्याकांड हो रहा था, उस समय उधमसिंह वहीं मौजूद थे और उन्हें भी गोली लगी थी। उन्होंने तय किया कि वह इसका बदला लेंगे। 13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर माइकल ओ डायर को गोली चला के मार डाला। क्रंतिकारी ऊधमसिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। 

🚩इस हत्याकांड ने तब 12 वर्ष की उम्र के भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियावाला बाग पहुंच गए थे। बाद में वे भी आज़ादी के लिए फांसी के फंदे पर चढ़ गए।

🚩हमारे देश को पहले मुगल और बाद में अंग्रेजो ने गुलाम बनाकर रखा था, भारत को खूब लूटा, संस्कृति नष्ट करने का प्रयत्न किया लेकिन फिर भी वीर हिंदुस्तानियों ने लोहा लिया अपने प्राणों की बलि देकर क्रूर मुगलों और अंग्रेजो को भगा दिया।

🚩लेकिन हम उनके इन बलिदानों का क्या उपयोग कर रहे हैं ?

🚩क्या केवल उन शहीदों को श्रंद्धांजलि देना ही काफी है या जो आजादी वो देखना चाहते थे उस आजादी की ओर हमें आगे बढ़ना है ?

🚩आजादी के 71 साल बीत गए पर आज भी हम अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता की गरिमा को भूलते हुए मानसिक रूप से तो अंग्रेजों के गुलाम ही हैं । देश में आज भी अंग्रेजों के बनाए कानून चल रहे हैं । राष्ट्र भाषा हिंदी की जगह अंग्रेजी भाषा को महत्व दिया जा रहा है । गुरुकुलों की जगह कॉन्वेंट स्कूल चल रहे हैं । इन सबको रोकना होगा तबी उनको सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी ।

🚩आओ अपने महान शहीदों को सच्ची श्रंद्धांजलि दें अपनी संस्कृति की ओर कदम बढ़ाते हुए...!!

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Friday, April 12, 2019

श्री रामजी के अंदर ऐसा क्या था जिससे लाखों साल बाद भी उन्हें याद किया जाता है ?

12 अप्रैल 2019 

🚩भगवान श्रीरामजी का आदर्श जीवन, उनका आदर्श चरित्र हर मनुष्य के लिए अनुकरणीय है । "श्री रामचरितमानस" में वर्णित यह आदर्श चरित्र विश्वसाहित्य में मिलना दुर्लभ है ।

🚩एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श शिष्य, आदर्श योद्धा और आदर्श राजा के रूप में यदि किसीका नाम लेना हो तो भगवान श्रीरामजी का ही नाम सबकी जुबान पर आता है । इसलिए राम-राज्य की महिमा आज लाखों-लाखों वर्षों के बाद भी गायी जाती है ।
🚩भगवान श्रीरामजी के सद्गुण ऐसे तो विलक्षण थे कि पृथ्वी के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग उन सद्गुणों को अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं ।

🚩श्रीरामजी सारगर्भित बोलते थे । उनसे कोई मिलने आता तो वे यह नहीं सोचते थे कि पहले वह बात शुरू करे या मुझे प्रणाम करे । सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से ही बात शुरू कर देते थे ।

🚩श्रीरामजी प्रसंगोचित बोलते थे । जब उनके राजदरबार में धर्म की किसी बात पर निर्णय लेते समय दो पक्ष हो जाते थे, तब जो पक्ष उचित होता श्रीरामजी उसके समर्थन में इतिहास, पुराण और पूर्वजों के निर्णय उदाहरण रूप में कहते, जिससे अनुचित बात का समर्थन करनेवाले पक्ष को भी लगे कि दूसरे पक्ष की बात सहीं है ।

🚩श्रीरामजी दूसरों की बात बड़े ध्यान व आदर से सुनते थे । बोलनेवाला जब तक स्वयं तथा औरों के अहित की बात नहीं कहता, तब तक वे उसकी बात सुन लेते थे । जब वह किसीकी निंदा आदि की बात करता तब देखते कि इससे इसका अहित होगा या इसके चित्त का क्षोभ बढ़ जाएगा या किसी दूसरे की हानि होगी, तब वे सामनेवाले की बातों को सुनते-सुनते इस ढंग से बात मोड़ देते कि बोलनेवाले का अपमान नहीं होता था । श्रीरामजी तो शत्रुओं के प्रति भी कटु वचन नहीं बोलते थे ।

🚩युद्ध के मैदान में श्रीरामजी एक बाण से रावण के रथ को जला देते, दूसरा बाण मारकर उसके हथियार उड़ा देते फिर भी उनका चित्त शांत और सम रहता था । वे रावण से कहते : ‘लंकेश ! जाओ, कल फिर तैयार होकर आना ।

🚩ऐसा करते-करते काफी समय बीत गया तो देवताओं को चिंता हुई कि रामजी को क्रोध नहीं आता है, वे तो समता-साम्राज्य में स्थिर हैं, फिर रावण का नाश कैसे होगा ? लक्ष्मणजी, हनुमानजी आदि को भी चिंता हुई, तब दोनों ने मिलकर प्रार्थना की : ‘प्रभु ! थोड़े कोपायमान होइए ।
तब श्रीरामजी ने क्रोध का आवाह्न किया : क्रोधं आवाहयामि । ‘क्रोध ! अब आ जा ।

🚩श्रीरामजी क्रोध का उपयोग तो करते थे किंतु क्रोध के हाथों में नहीं आते थे । श्रीरामजी को जिस समय जिस साधन की आवश्यकता होती थी, वे उसका उपयोग कर लेते थे । श्रीरामजी का अपने मन पर बड़ा विलक्षण नियंत्रण था । चाहे कोई सौ अपराध कर दे फिर भी रामजी अपने चित्त को क्षुब्ध नहीं होने देते थे ।

🚩सामनेवाला व्यक्ति अपने ढंग से सोचता है, अपने ढंग से जीता है, अतः वह आपके साथ अनुचित व्यवहार कर सकता है परंतु उसके ऐसे व्यवहार से अशांत होना-न होना आपके हाथ की बात है । यह जरूरी नहीं है कि सब लोग आपके मन के अनुरूप ही जिएं ।

🚩 श्रीरामजी अर्थव्यवस्था में भी निपुण थे  । "शुक्रनीति" और "मनुस्मृति" में भी आया है कि जो धर्म, संग्रह, परिजन और अपने लिए - इन चार भागों में अर्थ की ठीक से व्यवस्था करता है वह आदमी इस लोक और परलोक में सुख-आराम पाता है ।

🚩श्रीरामजी धन के उपार्जन में भी कुशल थे और उपयोग में भी । जैसे मधुमक्खी पुष्पों को हानि पहुँचाए बिना उनसे परागकण ले लेती है, ऐसे ही श्रीरामजी प्रजा से ऐसे ढंग से कर (टैक्स) लेते कि प्रजा पर बोझ नहीं पड़ता था । वे प्रजा के हित का चिंतन तथा उनके भविष्य का सोच-विचार करके ही कर लेते थे ।

🚩 प्रजा के संतोष तथा विश्वास-सम्पादन के लिए श्रीरामजी राज्यसुख, गृहस्थसुख और राज्यवैभव का त्याग करने में भी संकोच नहीं करते थे । इसलिए श्रीरामजी का राज्य आदर्श राज्य माना जाता है ।

🚩 राम-राज्य का वर्णन करते हुए ‘श्री रामचरितमानस में आता है : 
बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग ।
चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग ।।... ...

🚩‘राम-राज्य में सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर हुए सदा वेद-मार्ग पर चलते हैं और सुख पाते हैं । उन्हें न किसी बात का भय है, न शोक और न कोई रोग ही सताता है ।

🚩राम-राज्य में किसीको आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप नहीं व्यापते । सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं ।

🚩धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है । पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं । स्त्रोत : ऋषि प्रसाद : मार्च : 2010

🚩देश के नेता भी श्री रामजी से कुछ गुण ले लें तो प्रजा के साथ-साथ उन नेताओं का भी कितना कल्याण होगा यह अवर्णनीय है और सदियों तक यश भी फैला रहेगा ।

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