Saturday, May 4, 2019

वामपंथी सीताराम ने हिंदू को बताया हिंसक पर जानिए वामपंथी कितने हिंसक हैं ?

04 मई 2019
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🚩वामपंथी नेता सीताराम येचुरी ने भोपाल में 3 मई को बताया कि हिंदू हिंसक है क्योंकि रामायण और महाभारत भी हिंसा और लड़ाई के उदाहरणों से भरे हैं । जबकि वास्तविकता यह है कि हिन्दू ने सामने से कभी भी हिंसा नहीं की है जब दुष्ट लोग बढ़ जाते हैं और समाज को प्रताड़ित करते हैं तब समाज मे शांति लाने के लिए युद्ध करके दृष्ट लोगों का संहार करते हैं, वे केवल समाज कल्याण के लिए करते हैं पर वामपंथी हमेशा हिदुओं पर ही प्रश्न खड़ा करते हैं पर आज उनकी वास्तविकता बताते हैं ।
🚩वामपंथी की स्थापना करने वाले कार्ल मार्क्स की सच्चाई जान लेंगे तो आप समझ जाएंगे कि वामपंथी कैसे जनता का ब्रेनवॉश करते हैं और हिंसा भी करते हैं ।

🚩"जीसस के प्रेम के जरिये हम अपने ह्रदय को अपने अंतर्मन से जुड़े भाइयों की तरफ ले जाते हैं जिनके लिये जीसस ने अपना जीवन बलिदान किया ।" युवा मार्क्स ने अपने प्रथम लेख ' यूनियन औफ द फेथफुल विद क्राइस्ट ' में एक सच्चे ईसाई की तरह लिखा।
🚩लगभग इसी समय उसने 'कंसिडेरेशन औफ अ यंग मैन औन चूज़िंग हिस करियर' में लिखा, "... अगर हम तय कर लें कि सब कुछ जीसस के लिये ही करेंगे तो हम कभी किसी भार से कुचले नहीं जा सकते...।"
*🚩फिर तुरंत मार्क्स ने परीक्षा में छ: बार लगातार लिखा , "डिस्ट्राय" (नष्ट करना) जैसा किसी भी अन्य छात्र ने नहीं लिखा था । फलस्वरूप उसका उपनाम पड़ गया 'डिस्ट्राय'। और यहीं से शैतान उसके अंदर प्रवेश कर गया । पूरी मानवता को नष्ट करने की योजना उसके अद्भुत मस्तिष्क में पनपने लगी जो उसकी मृत्यु तक साम्यवाद यानी वामपंथ में बदल गयी। उसने संपूर्ण मानवता को "कबाड़" और "दुष्टों का समूह" कहा।
परीक्षा पास करने के तुरंत बाद शैतान ने उससे एक कविता ' इनवोकेशन औफ वन इन डेस्पेयर' में लिखवाया ।*
"मैं बदला लेना चाहता हूं उससे जो ऊपर बैठा हम सब पर राज करता है।"
🚩ऐसा कहते उसने यह भी मान लिया कि ऊपर भगवान बैठा है । भगवान को मानना और उसे गालियां देते हुये धर्म को अफीम कहने का सिलसिला भी एक साथ चलने लगा। यानी उसपर हावी शैतान और भगवान के बीच संघर्ष शुरू हो गया और यह शैतान अंत तक भगवान पर हावी रहा। आज भी हावी है और रहेगा भी अगर हम जेएनयू जैसे मुद्दों पर अपनी ऊर्जा जाया करते रहे, बजाय यह समझने के कि मार्क्सवाद असल में है क्या । कुछ-कुछ अच्छा भी है इसमें शेष शैतानियत है । ऐसा मिश्रण होना पूरा अच्छा या पूरा शैतानियत से भरा होने से ज्यादा खतरनाक है । पूरा अच्छा है तो विरोध समाप्त हो जाता है और अगर पूरा शैतानियत से भरा है तो इससे हम लड़ सकते हैं । नयी पीढ़ी को बता सकते हैं कि यह गलत है, लेकिन मिश्रण होने के कारण नयी पीढ़ी साम्यवाद के नाम से प्रदूषित ही होती रहेगी । कन्हैया जैसे लोग पैदा होते रहेंगे ।
🚩यहां यह भी ध्यान देने की बात है कि शुरूआती दिनों में मार्क्स की वही मनस्थिति थी जो इस्लाम के आखिरी रसूल की थी । दोनों पर शैतान हावी था , दोनों अपनी अपनी जमात को छोड़कर बाकी समस्त इंसानियत के दुश्मन थे , उन्हें बरबाद और कत्ल कर देना चाहते थे और यही एकमात्र कारण है कि वामपंथ इस्लाम के पक्ष में हरदम खड़ा रहता है।
🚩इस लेख का उद्देश्य ना तो मार्क्स के आर्थिक और राजनीतिक सिध्दांतो को लेकर उबाऊ बहस में उलझना है और नाही हिंदुस्तान के वामपंथियों ने कैसे कैसे आजादी के आंदोलन में गद्दारी की इसपर चर्चा करनी है।उद्देश्य बस इतना है कि मार्क्स को महान से कैसे शैतान पूजक उसके, उसके परिवार और साथियों के शब्दों से साबित किया जा सके। उसका पाखंड उजागर किया जा सके।
🚩शैतान ने मार्क्स से उसकी एक और कविता में कहलवाया...
" ईश्वर ने मेरा सब कुछ छीन लिया है और अब उससे बदला लेना ही बाकी है।मैं अपना सिंहासन ऊपर आसमान में बनाऊंगा।"
🚩प्रश्न यह है कि शैतान ने मार्क्स के लिये ऊपर सिंहासन क्यों चाहा ? क्या अल्लाह से दुश्मनी रखने वाला अरबिक शैतान मार्क्स को नया अल्लाह बनाना चाहता था ? गौर करने की बात है कि मार्क्स का बचपन अभावों मे नहीं बीता था । सब कुछ था उसके पास। इसलिये मानने का सवाल नहीं कि उसने खुद ही कहा होगा कि ईश्वर ने उसका सबकुछ छीन लिया । यह बात शैतान ने ही उससे कहलवाई।
🚩मार्क्स ने सिंहासन क्यों चाहा इसका जवाब उसी के लिखे नाटक ' Oulanem ' में छुपा है जिसे कम ही लोग जानते हैं।इसे समझने के लिये कुछ और बात जानना जरूरी है। शैतानिक चर्च का आधी रात को किया जाना कर्मकांड चर्चित है जहां शैतानिक पादरी सब कुछ उलटा करता है।काली मोमबत्तियां उलटी लगाई जाती हैं , पादरी अपने लबादे का अंदर वाला भाग बाहर पलटकर पहनता है , धार्मिक ग्रंथ का पाठ अंत से शुरूआत की तरफ करता है , क्रौस उलटा लटकाया जाता है । ईश्वर , जीसस और मैरी को उलटा पढ़ा जाता है। एक नग्न स्त्री का शरीर पूजा की बेदी बनाया जाता है , पवित्र किये किसी वस्त्र को चर्च से चुराकर इसपर शैतान का नाम लिखकर बाईबिल जलाई जाती है। इस ब्लैक मास में शामिल सभी शैतान पूजक सात घातक पाप करने की कसम खाते हैं ।अंत में खुलेआम काम वासना और नशे का खेल चलता है।
🚩रहस्यमयी बात है कि Oulanem उलटा नाम है Emmanuel का जो जीसस का एक बाइबिल नाम ही है। इसका हिब्रू में अर्थ है 'ईश्वर हमारे साथ है'। नामों को उलटा कर पढ़ना काले जादू में असरदार माना जाता है।
Oulanem नाटक को और समझने के लिये हमें मार्क्स की लिखी एक और कविता ' द प्लेयर ' में उसका यह कुबूलनामा समझना पड़ेगा ।
" उठती हुयी दोजखी धुंध मेरे दिमाग को भर देती है।जबतक मैं पागल होकर मेरा दिमाग पूरा नहीं बदल जाता।यह तलवार देखी ? इसे अंधकार की रानी ने मुझे बेचा है। और मैं मृत्यु का नृत्य करता हूं।"
🚩इसी तरह नये शिष्य को शैतानिक कल्ट में विधिवत शामिल कर लिया जाता है।मार्क्स भी अपने युवाकाल में इसमें शामिल हो गया था।
🚩अब यह समझना आसान है कि एक युवा ईसाई को ऐसा क्या हो गया कि उसे ईश्वर से दुश्मनी हो गई । कट्टर ईसाई होने के बावजूद भी मार्क्स की जिंदगी व्यवस्थित नहीं रही।पिता के साथ उसका पत्र व्यवहार बताता है कि वो ऐय्याशी पर अत्यधिक धन खर्च करता था और बात-बात पर अपने पिता से लड़ता झगड़ता था। फिर वह अति गोपनीय शैतानिक चर्च में दीक्षित होकर इसमें रम गया और शैतान का भोंपू बन गया।
🚩यही कारण है कि मार्क्स दुनिया का अकेला लेखक है जिसने अपनी ही रचनाओं को "मल" और "सूवराना किताबें" कह डाला। आश्चर्य नहीं कि मार्क्स की इसी बात से प्रेरित होकर रोमानिया और मोजांबीक के उसके वामपंथी अनुयायियों ने लाखों विरोधियों को जबरदस्ती उन्हीं का मलमूत्र खिलाया।
🚩मार्क्स 18 साल तक कट्टर ईसाई रहा और इसी समय उसका अपने पिता से पत्रव्यवहार संकेतों में उसके शैतान पूजक होने का सबूत देता है। बेटे ने लिखा-
" पर्दा गिर गया था और पवित्रतम् चकनाचूर हो गया।नये ईश्वर को प्रतिस्थापित होना है।"
🚩ये शब्द नवंबर 10 , 1837 में लिखे गये थे जबतक वह ईसाई था और जब उसने घोषणा भी की थी कि ईसा उसके दिल में है। परंतु अब ऐसा नहीं था। किस नये ईश्वर ने उसके दिल में जगह बनाई ?
पिता ने पत्र का जवाब दिया ,
🚩" मैं तुमसे इस संबंध में कोई भी स्पष्टीकरण मांगने से खुद को अलग करता हूं जो एक रहस्यमय बात है।लेकिन यह अत्यधिक शक के घेरे में है।"
वो 'रहस्यमय बात' क्या थी आजतक कोई भी मार्क्सवादी नहीं बता पाया है।
🚩मार्च 2 , 1837 के दिन उसके पिताने फिर पत्र में लिखा-
" यदि तुम्हारा ह्रदय शुध्द होकर मानवता के लिये ही धड़कता रहे और कोई भी शैतान तुम्हारे ह्रदय को सद्भावनाओं से दूर न कर सके तो ही मुझे खुशी होगी।"
🚩मार्क्स , हिटलर और मोहम्मद शुरूआती कवि थे। कविताओं में असफल होकर अपने अपने कारणों से मानवता की भलाई के नाम पर शैतान पूजक बन गये। मार्क्स के पिता के उसपर शंका करने के दो साल बाद उसने 1839 में उसने पहली बार ' The difference Between Democritus' aid Epicures' Philosophy of Nature' की प्रस्तावना में लिखा-
" मुझे पृथ्वी और स्वर्ग के सभी ईश्वरों से घृणा है और मैं मानव चेतना की सर्वोच्च सत्ता से इनकार करता हूं।"
🚩मार्क्स की सबसे छोटी बेटी जेनी के मुताबिक उसके पिता उसको और उसकी बहनों को चुड़ैल हंस रौकल की कभी न खत्म होने वाली डरावनी कहानियां सुनाया करते थे।इतना ही नहीं मार्क्स के शुरूआती सभी घनिष्ठ मित्र जैसे Moses Hess , George Jung , Bakunin, Proudhan आदि शैतान पूजक ही थे जिन्होंने उसे सभी ईश्वरों को स्वर्ग से खदेड़ कर सर्वहारा के नाम पर इस संप्रदाय में दीक्षित होने की प्रेरणा दी।हर शैतान पूजक चाहता है ईश्वरों को खदेड़ दिया जाये। दीक्षित होने के बाद मार्क्स ने ईश्वर को हटाकर उसकी जगह शैतान को प्रतिष्ठापित कर दिया।इसप्रकार मार्क्सवाद की नींव पड़ी जिसका ईश्वर शैतान है। मार्क्स और उसके समस्त शैतान पूजक गिरोह की सोच समान थी। Lunatcharski , एक प्रमुख दार्शनिक जो सोवियत यूनियन का शिक्षा मंत्री भी था , ने ' समाजवाद और धर्म ' पर लिखते हुये विचार व्यक्त किये ।
" मार्क्स ने ईश्वर से सारे संबंध तोड़कर सर्वहारा दस्ते के आगे शैतान को खड़ा कर दिया ।"
🚩इसीलिए जेऐनयू जैसे अड्डों पर सेक्स , नशा , अनैतिकता की शैतानी पूजा वामपंथ के नामपर चलती है।
🚩मार्क्स ने तीव्र मानसिक अंतर्द्वन्द के बाद शैतानवाद स्वीकार किया।इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि मार्क्स के उसके लिखे 100 खंडों की पांडुलिपियों में से मात्र 13 ही आजतक प्रकाशित हुई हैं।शेष पांडुलिपियां आज भी रुस के मौस्को स्थित 'मार्क्स इंस्टीट्यूट' में सुरक्षित रखी हैं।फ्रेंच लेखक ऐलबर्ट कैमस ने इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर ऐम.मेचेद्लोव को 1980 में इस सदर्भ में पत्र लिखा तो हास्यास्पद जवाब आया कि द्वितीय महायुध्द के चलते प्रकाशन कार्य बंद रखना पड़ा था। यानी युध्द समाप्त होने के 35 वर्ष बाद भी प्रकाशन कार्य शुरु नहीं किया जा सका।जबकि धन की कोई कमी नहीं थी। मार्क्स इन अनछपी रचनाओं में ऐसा क्या है जिसका डर वामपथियों को है ? ये रचनायें विस्तार से शैतान पूजा पर ही हैं ऐसा ठोस अनुमान मार्क्स को जानने वालों का है।इनके प्रकाशित होने पर वामपंथ तारतार होकर शैतानपंथ में ना बदल जाये इसीलिये इनका प्रकाशन नहीं किया गया है।येचुरी कहीं आज के हिंदुस्तान में कामरेड से सर्वोच्च शैतान पूजक न बन जाये ऐसा भय भी है।
🚩महान क्रांतिकारी मार्क्स के चरित्र में इससे भी गंदा दाग था।जर्मन अखबार Reichsruf ने (जनवरी 9 , 1960) लिखा कि जब आस्ट्रिया के चांसलर ने तत्कालीन सोवियत यूनियन के निदेशक निकिता ख्रुश्चेफ को मार्क्स का एक मूल पत्र सौंपा तो ख्रुश्चेफ को पत्र का विषय नागवार गुजरा। ऐसा इसलिये कि पत्र ने साबित कर दिया कि मार्क्स आस्ट्रिया पोलीस का वेतनभोगी मुखबिर था जो क्रांतिकारियों की जासूसी करता था।यह पत्र संयोगवश राष्ट्रीय अभिलेखागार में मिला था।इस पत्र से खुलासा हुआ कि लंदन में निर्वासित जीवन बिताते समय मार्क्स अपने कामरेड साथियों की हर एक सूचना पोलीस तक पहुंचाने का 25 डालर लेता था।अपने निकटतम साथी रूज़ की भी उसने मुखबरी की।
🚩पैसे का लालच यहीं नहीं खत्म हुआ।आंखे पैतृक संपत्ति पर भी गड़ी थीं।जब उसका चाचा बीमार था तो मार्क्स ने अपने मित्र एंगेल को लिखा-
" यदि यह कुत्ता मर जाता है तो मैं विपत्ति से बाहर निकल जाऊंगा।"
🚩जिसका जवाब एंगेल ने यह लिखकर दिया-
" वसीयत की बाधा की मौत के लिये मैं तुम्हें बधाई देता हूं।आशा करता हूं यह दिन शीघ्र आये।"
🚩चाचा की मौत पर मार्क्स ने मार्च 8 , 1855 में लिखा-
" कुत्ता मर गया है।खुशी का दिन ! "
🚩अपनी सगी मां के लिये भी मार्क्स के दिल में कोई संवेदना नहीं थी।मां से उसका बोलचाल का भी रिश्ता नहीं था।दिसंबर 1863 में उसने फिर एंगेल को लिखा-
" दो घंटे पहले मां की मृत्यु का तार मिला।जरुरी था भाग्य घर के एक सदस्य की जान ले।मेरे पैर भी कब्र में हैं।उस बुढ़िया से मुझे पैसों की ज्यादा जरूरत है। जा रहा हूं वसीयत संभालने।"
🚩मार्क्स के अपनी पत्नी से सबंध भी खराब थे।पत्नी ने उसे दो बार छोड़ा भी।जब पत्नी की मौत हुई तो मार्क्स उसके अंतिम संस्कार में भी नही गया।
🚩एक अमरीकी कमांडर सरजिस रीस मार्क्स का भक्त था। मार्क्स की लंदन में मौत के बाद कमांडर दुखी मन से उसके घर गया।परिवार जा चुका था और उसे घर की पुरानी नौकरानी हेलन मिली।हेलेन ने बहुत आश्चर्य जनक बात कही।
" वह ( मार्क्स) अत्यधिक धर्मभीरु व्यक्ति था।बीमार होने पर जलती हुयी मोमबत्तियों के सामने सर पर पट्टी बांधे प्रार्थना किया करता था।"
यह शैतान पूजा थी।
🚩मार्क्स के पुत्र ने मार्च 31 , 1854 को लिखे पत्र में अपने पिता को " मेरे प्रिय शैतान " कह संबोधित किया।
🚩मार्क्स की पत्नी ने उसे 1844 में लिखे पत्र में कहा-
" तुम्हारे आध्यात्मिक पत्र , हे उच्च पादरी और आत्माओं के पादरी , ने पुन: तुम्हारी बेचारी भेड़ों को विश्राम और शांति दी है।"
🚩शैतान का पुजारी बुरी स्थिति में मौत को प्राप्त हुआ। मई 25 , 1883 को उसने अपने मित्र एंगेल को लिखा-
" जिंदगी कितनी सारहीन और खाली है।फिर भी चाहत भरी !"
🚩क्या साम्यवाद कत्ल करता है ? हां करता है। क्यों ? क्योंकि शैतान ने मार्क्स से ऐसा कहलवाया।आंकड़े इसबात की पुष्टि करते हैं।अमरीकी सिनेट की आंतरिक सुरक्षा उपसमिति की एक जांच रिपोर्ट के अनुसार साढ़े तीन करोड़ से लेकर साढ़े चार करोड़ लोग सोवियत रुस में और साढ़े तीन करोड़ से साढ़े छ: करोड़ लोग चीन में शैतानी साम्यवाद ने कत्ल किये।
🚩सोवियत यूनियन मामलों के विशेषज्ञ सोलज़ेनेत्सिन और ऐंटोनोफ ने इन आंकड़ों को बहुत कम माना है।ऐंटोनोफ के पिता , जिनके नेतृत्व में बोलशिविक क्रांति के दौरान 1917 में विंटर प्लेस पर धावा किया था , ने अपनी पुस्तक ' द टाइम औफ स्टालिन- पोर्ट्रेट औफ टिरनी' में गणना कर बताया है कि शैतानी साम्यवाद ने देश में दस करोड़ लोगों का बेरहमी से कत्ल किया।अत: इस सीधे सवाल कि क्यों साम्यवाद कत्ल करता है का सीधा जवाब है कि मार्क्स ने 1848 में लिखे कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो में साफ साफ लिखा कि साम्यवाद के मूलभूत उद्देश्यों को हासिल करने के लिये आबादी एक बड़े हिस्से को कत्ल कर दिया जाये।इसीकारण दुनियाभर के साम्यवादी , चाहें किसी भी मुखौटे के पीछे छिपे हों , कत्ल को अपना दायित्व मानते हैं।चूंकि मार्क्स दुनिया की हर वस्तु को मात्र गतिमान पदार्थ ही मानता है इसलिये नैतिकता , भावनाओं , शील , संस्कार का इसके लिये कोई महत्व नही है।मार्क्स का मानना था कि विचार और भावनायें पदार्थ की यानी मस्तिष्क की उपज हैं इसलिये इन्हें नियंत्रित करने के लिये जरूरी है कि मस्तिष्क को वश में कर लिया जाये।मार्क्स का यही पदार्थवाद है जो मनुष्य के विचार और प्रवित्ति को वश में कर उसके स्वभाव को गुलाम बना लेना चाहता है।देश और दुनियाभर में युवाओं को इसीलिये गुमराह किया जाता रहा है। यही शैतान पूजा के भी नियम और कार्यविधि है।
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साम्यवाद तक पहुंचने के छ: चरण हैं-
🚩1- क्रांति :
इस प्रथम चरण में हिंसक क्रांति के जरिये पूंजीवाद को नष्ट करना आवश्यक है।
🚩2-सर्वहारा की तानाशाही :
क्रांति का उद्देश्य है कि वर्तमान बोर्जुआ व्यवस्था को उखाड़ कर असीमित तानाशाही के जरिये सर्वहारा की तानाशाही कायम की जाये।ऐसा होने पर सर्वहारा तो बस नाम भर का रह जाता है वास्तविक तानाशाह साम्यवादी नेतृत्व बन जाता है।
🚩3- पूंजीवदी राज्य सत्ता का विध्वंश :
सफल क्रांति के बावजूद अनेक पूंजीवादी संस्थायें बची रह जाती हैं जैसे सेना ,पोलीस, न्यायालय , नौकरशाही और शिक्षा तंत्र।अगर इनको रहने दिया जाये तो ये प्रतिक्रांति द्वारा सर्वहारा की तानाशाही के लिये खतरा बन सकती हैं।इसलिये इस चरण में इन सबका ( मध्यम वर्ग का) संपूर्ण विध्वंश जरूरी है। सेना को समाप्त कर लाल सेना कायम करना ही उचित है। इसी वजह से वामपंथी सेना के खिलाफ जहर उगलते हुये इसे बलात्कारी और न्यायालय को कातिल कहते हैं।
🚩4- संपूर्ण मध्यम वर्ग का खात्मा :
मार्क्स का मानना था कि सफल क्रांति के बाद भी यह वर्ग बड़ी संख्या में बचा रह जाता है और इसका खात्मा साम्यवाद की प्राप्ति के लिये अनिवार्य है।इसीलिये वामपंथी कत्ल करते हैं। इस चरण में पहुंचते ही कंबोडिया के वामपंथियों ने 24 घंटों के अंदर शहर.के.शहर खाली करवा दिये और करोडों लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
🚩5- समाजवाद का सृजन :
साम्यवाद के अंतिम आदर्श लक्ष को प्राप्त करने से पहले इस चरण से गुजरना जरुरी है।
🚩6- साम्यवाद :
यह एक काल्पनिक चरण है और इसमें शैतान पूजक ने मुंगेरीलाल के हसीन सपनो का वादा किया है।व्यक्ति अपनी सारी कमजोरियों लालच , द्वेष आदि से मुक्त हो जाता है।इस चरण में कोई भी देश आजतक नहीं पहुंच पाया है। साम्यवाद एक झुनझुना ही साबित हुआ है।
अभी हिंदुस्तान में प्रथम चरण में ही वामपंथी उलझकर हजारों लोगों की हत्या में नित्य जुटे हैं।इनकी कल्पना है कि चौथे चरण तक पहुंचते हुये देश की आधी आबादी को कत्ल कर दिया जाये एक शैतान पूजक के नाम पर। - अरुण लवानिया
🚩ऐसे वामपंथी खुद जो हिंसा करने में सबसे आगे रहते है वही आज सहिष्णु हिंदूओं को हिंसक बोल रहे हैं कितना बड़ा आश्चर्य है।
🚩संदर्भ :
1-Marx and Satan
-Richard Wurmbrand
2- Communist Manifesto
- Marx and Engels
3- The Schwarz Report- Essays
4- Why Communism Kills: The Legacy of Karl Marx
- Dr Fred C Schwarz
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देर से सत्य की हुई जीत : 9 साल जेल में रहने वाले डीजी वंजारा निर्दोष बरी

03 मई 2019 

🚩 हमारे भारत देश का एक दुर्भाग्य रहा है कि जो भी व्यक्ति या महापुरुष राष्ट्र एवं संस्कृति व धर्म की रक्षा के लिए आगे आते हैं उनको  षड्यंत्र पूर्वक ऐसे फँसाया जाता है कि आगे कोई भी देश या धर्म के लिए कार्य करने को तैयार ही नहीं हुए, पर हमारी संस्कृति इतनी महान है कि सदियों से कुठाराघात होता आया, लेकिन हरबार कोई न कोई वीर देशभक्त या महापुरुष होते हैं, जो देश और धर्म को बचाने का पुरजोर कार्य करते हैं फिर वे अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करते हैं ।

🚩 देशहित में जो भी व्यक्ति काम करते हैं उन्हें कैसे षड्यंत्र में फंसाया जाता है उसका उदाहरण देखना है तो गुजरात के पूर्व डीआईजी डीजी वंजारा जी के केस को देखिये ।
🚩 वंजारा जी के सरकारी कार्यकाल के समय गुजरात में काफी गुंडे (डॉन ) बढ़ गए थे जो लोगों में दहशत फैला रहे थे, अपराधिक प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही थी, आतंकवाद का भय मंडरा रहा था, कुछ मुस्लिम दंगे करके जनता को भयभीत कर रहे थे उस समय जांबाज पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा जी ने अनेक आतंकवादियों का एनकाउंटर किया, गुजरात के गुंडे (डॉन) को ठिकाने लगाया, अपराधियों को जेल में ठूँस दिया, जिससे अपराधिक प्रवृत्तियां रुक गईं और गुजरात में सुख-शांति छा गई ।

🚩जांबाज अधिकारी डीजी वंजारा जी को इस कार्य के बदले में अवार्ड मिलना चाहिए था, लेकिन भारत के अंदर ही राष्ट्रविरोधी ताकतों का हथकंडे बने हुए कुछ लोग थे उनको ये सब रास नहीं आया । उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार से मिलकर षड्यंत्र रचा और झूठे मामलों में जेल भिजवा दिया गया इससे ज्यादा देश के लिए दुर्भाग्य क्या हो सकता है ?

🚩उनको 8 साल से अधिक समय तक बिना सबूत जेल में रहना पड़ा, उनका जो समय देश हित में लगना चाहिए था वो समय बर्बाद हुआ, पैसे की बर्बादी हुई, परिवार दुविधा में पड़ गया, लेकिन बोलते हैं न कि सत्य परेशान होता है पर पराजित नहीं होता है, वही हुआ लेकिन देरी बहुत हो गई थी ।

🚩 गुजरात के इशरत जहां एनकाउंटर मामले में सीबीआई विशेष न्यायालय ने डीजी वंजारा और एनके अमीन को आरोपमुक्त कर दिया । गुजरात उच्च न्यायालय ने पहले ही दोनों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया था । इसके बाद 26 मार्च को वंजारा और अमीन ने अपने ऊपर लगे आरोप हटाने की मांग की थी ।

🚩 जज जेके पंड्या ने कहा कि चूंकि गुजरात सरकार ने दोनों पर मुकदमे की स्वीकृति नहीं दी, इसलिए न्यायालय मामले को खत्म कर रहा है । 

🚩 आपको बता दें कि अहमदाबाद पुलिस की मुठभेड़ में मारी गई इशरत जहां लश्कर-ए-तैयबा की आत्माघाती हमलावर थी, यह खुलासा किया था मुंबई हमलों के आरोपी आतंकी डेविड हेडली ने । मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हेडली ने यह सूचना राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और विधि विभाग की चार सदस्यीय टीम के साथ उस समय साझा की जब टीम अमेरिका के शिकागो गई थी ।

🚩 मुठभेड़ के समय एक कार में सवार थे सभी

हेडली ने बताया कि इशरत को लश्कर के मुजामिल ने अपने दस्ते में शामिल किया था । इशरत जहां 15 जून 2004 को जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लई और पाकिस्तान के दो युवकों अमजद अली और जीशान जोहर अब्दुल गनी के साथ अहमदाबाद के बाहरी इलाके में मुठभेड़ में मारी गई थी । पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, ये सभी लोग एक कार में सवार थे । इन सभी का एनकाउंटर नहीं करते तो वे लोग तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आत्मघाती हमले कर सकते थे ।

🚩बता दें कि डीजी वंजाराजी ने सहीं समय पर
निर्णय लेकर उनका एनकाउंटर नहीं किया होता तो आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर शायद नहीं आ पाते । नरेंद्र मोदी को बचाने के पीछे डीजी वंजारा जी का अहम योगदान है ।

🚩डीजी वंजारा निर्दोष तो बरी हो गए, लेकिन उनको 9 साल से अधिक समय तक जेल में रखा गया, वो उनका कीमती समय क्या कानून या सरकार लौटा पाएगी ??? उनकी इज्ज्ज़ और पैसों की बर्बादी हुई उसे कौन लौटाएगा ?

🚩मीडिया ने भी उस समय उनकी खूब बदनामी की, लेकिन जैसे ही उन्हें निर्दोष बरी किया गया तब मीडिया ने चुप्पी साध ली । जब भी किसी हिंदुत्वनिष्ठ पर आरोप लगता है तो मीडिया उनकी समाज में इतनी बदनामी करती है कि जैसे वो आरोपी नहीं अपराधी हों, पर जब वही निर्दोष छूट कर आते हैं तो मीडिया को मानो सांप सूंघ जाता है । 

🚩विचार कीजिए, क्या सिर्फ हिन्दुत्वनिष्ठों को बदनाम करने का मीडिया का एजेंडा है..???

🚩कछुआ छाप चलने वाली हमारी न्याय प्रणाली भी मीडिया के प्रभाव में आकर हिन्दुत्वनिष्ठों को जल्दी न्याय नहीं दे पाती है । और न्याय मिल भी जाता है तो इतनी देरी से मिलता है कि न्याय न मिलने के ही बराबर हो जाता है । क्या देर से न्याय मिलना अन्याय नहीं है ???

🚩कांग्रेस सरकार ने तो षड्यंत्र करके अनेक हिन्दू सन्तों एवं हिन्दुत्वनिष्ठों को जेल भेज दिया था, पर अब हिंदुत्ववादी कहलाने वाली BJP सरकार कैसे हिंदुओं के माप-दण्ड पर खरी उतरती है, ये देखना है ।

🚩सरकार को हिंदुनिष्ठ लोगों की जल्द से जल्द सह-सम्मान रिहाई करवानी चाहिए, इसी पर सभी हिंदुस्तानियों की निगाहें टिकी हैं ।

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Wednesday, May 1, 2019

सेशन कोर्ट ने दे दी नारायण साईं को उम्रकैद की सजा लेकिन क्या वो इस सजा के हकदार थे ???

01 मई 2019 

🚩इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया में आपने देखा होगा कि हिन्दू संत आसाराम बापू के बेटे को दो-दो उम्रकैद की सजा सुनाई है और जुर्माना भी लगाया गया है लेकिन उस केस की वास्तविक में जांच करना जरूरी है कि ये सजा सही है या नही? सही है तो कितनी हद तक सही है? ये भी जानना जरूरी है और किस आधार पर उम्रकैद दी गई है?

🚩आपको बता दें कि नारायण साईं पर 11 साल पुराना दुष्कर्म केस दर्ज हुआ है और जिस लड़की ने आरोप लगाया वे उनके सत्संग के कार्यक्रम में जनवरी 2013 तक आती रही और अक्टूबर 2013 में आरोप लगाया ।
🚩वरिष्ठ अधिवक्ता बी.एम गुप्ता का कहना है कि कोई भी मेडिकल प्रूफ नही है, लेकिन केवल लड़की के बयान पर सजा दी गई । लड़की के बयान पूर्ण रूप से संदेह भरे हैं । जिस लड़की ने नारायण साईं पर आरोप लगया है उसने बोला कि जिस समय मेरे साथ दुर्व्यवहार हुआ, उस समय मेरी एक सहेली थी लेकिन जिस सहेली का नाम ले रही थी उसने ही न्यायलय में खंडन किया कि झूठी कहानी बताई जा रही है इस तरह से कोई भी गलत कार्य हुआ ही नहीं है।

🚩दूसरी बात ये कि जिस समय आरोप लगाने वाली लड़की ने बताया कि मेरे साथ गुजरात में इस जगह दुष्कर्म हुआ उस समय तो नारायण साईं गुजरात में थे ही नहीं और लड़की भी उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में घूम रही थी । लड़की ने अपने बयान में बताया कि STD बूथ से उनके सेवादार हनुमान ने फोन करके नारायण साईं को बताया कि लड़की आ गई है पर जब पता किया तो वहाँ कोई STD बूथ ही नहीं था और जिस आश्रम में दुष्कर्म हुआ वहाँ कोई आश्रम नहीं था ना ही किसी जगह रजिस्ट्रेशन ।


🚩गुप्ताजी ने ये भी बताया कि लड़की ने नारायण साईं से पैसे की मांग भी की थी लेकिन पैसे नहीं दिए गए । इसकी CD भी है और न्यायलय में पेश भी की गई है और यह CD फोरेंसिक जांच में सही पाई गई है।


🚩गुप्ताजी का कहना है कि पूरा केस बोगस है और हिंदू संत आसाराम बापू के पूरे परिवार को फंसाने का षड़यंत्र चल रहा है । जैसे आरुषि मर्डर केस में मीडिया ट्रायल के दबाव में आकर सेशन कोर्ट ने तलवार दंपति को उम्रकैद की सजा सुना दी । लेकिन हाईकोर्ट ने 9 साल बाद निर्दोष बरी किया ऐसा ही ये केस भी है।

🚩सरकारी वकील को पूछा गया कि किस आधार पर उम्रकैद सुनाई तो उसने बताया कि धर्मगुरु हैं और ऐसे कार्य करेंगे तो उम्रकैद मिलनी चाहिए लेकिन आपने ऊपर पढ़ा कि लड़की वहाँ थी ही नही, कोई प्रूफ नहीं है फिर भी उम्रकैद होना बड़ा आश्चर्य लगता है । कहीं ऐसा तो नहीं है कि हिंदुओं के धर्मगुरु होने के कारण फँसाया जा रहा हो । नहीं तो ईमाम बुखारी पर 65 गैरजमानती वारंट है अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई । इससे लगता है कि कहीं न कहीं यह षडयंत्र ही हुआ है ।

🚩गुजरात द्वारका के केशवानंदजी को बलात्कार के केस में सेशन कोर्ट ने 12 साल की सजा की और ऊपरी कोर्ट ने 7 साल बाद निर्दोष बरी किया । शंकरचार्य जयेंद्र सरस्वती, स्वामी नित्यानंद जी आदि को भी ऊपरी कोर्ट ने निर्दोष बरी किया था।

🚩भारतीय संस्कृति अति प्राचीन और महान से भी महान है पर उसको तोड़ने के लिए अनेक दुष्ट शक्तियां लगी हुई हैं । सदियों से चारों तरफ से प्रहार किया जा रहा है । अभी हाल ही में ईसाई मिशनरियां, विदेशी कंपनियाँ, इस्लामिक स्टेट, जिहाद, वामपंथी, मीडिया, सेकुलर, राष्ट्र विरोधी ताकतें आदि संस्कृति को नष्ट करने में लगे हुए हैं । उसे रोकने के लिए हिंदू साधु-संत पुरजोर प्रयत्न कर रहे हैं, करते रहते हैं, जनता में जागरूकता पैदा कर रहे हैं, उनके खिलाफ लोहा ले रहे हैं तो उन साधु-संतों के खिलाफ ही ऐसे षड्यंत्र रचे जा रहे हैं । साधु-संतों पर झूठे आरोप लगाये जाते हैं । बाद में मीडिया में बदनाम किया जाता है और फिर जेल में डाल दिया जाता है, कुछ साधु-संतों की तो हत्या भी करवा दी जाती है ।

🚩एक के बाद एक निर्दोष हिन्दू साधु-संतों को बदनाम किया जा रहा है क्योंकि राष्ट्रविरोधी ताकतों द्वारा हिन्दू धर्म खत्म करने के लिए हिन्दू संस्कृति के आधार स्तंभ हिन्दू संतों को टारगेट किया जा रहा है, हिन्दुस्तानी अब इस षड्यंत्र को समझो और उसका विरोध करो तभी हिन्दू संस्कृति बच पाएगी । अन्यथा तो भारत फिर से गुलाम बनने की राह पर है । अगर ऐसे ही निर्दोष साधु-संतों को न्यायालय जेल भेजता रहा तो आने वाले समय में कोई भी साधु-संत, संस्कृति के लिए आगे नहीं आएगा ।

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