Thursday, February 8, 2024

क्या सभी धर्मों में एक ही बात नहीं...?

09 February 2024

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🚩एक प्रवासी हिन्दू भारतीय की बिटिया ने किसी मुस्लिम से विवाह का निश्चय किया तो वह बड़े दुःखी हुए। उन्होंने समझाने का प्रयास किया कि यह उस के लिए, परिवार के लिए और अपने समाज के लिए भी अच्छा न होगा। तब बिटिया ने कहा, ‘मगर पापा, आप ही ने तो सिखाया था कि सभी धर्म समान हैं और एक ही ईश्वर की ओर पहुँचने के अलग-अलग मार्ग हैं। तब यह आपत्ति क्यों?’ कहने की आवश्यकता नहीं कि पिता को कोई उत्तर न सूझ पड़ा।


🚩वस्तुतः असंख्य हिन्दू, विशेषकर उनका सुशिक्षित वर्ग, अपनी सदभावना को अनुचित रूप से बहुत दूर खींच ले जाते हैं। सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं, यह ठीक है। सभी मनुष्यों को समान समझना और सद्बाव रखना चाहिए यह भी उचित है। किंतु इस का अर्थ यह नहीं कि विचारधाराओं, विश्वास, रीति-नीति, राजनीतिक-सामाजिक-कानूनी प्रणालियों आदि के भेद भी नगण्य हैं। धर्म और मजहब का भेद तो और भी बुनियादी है। भारत के ‘धर्म’ का पश्चिम के ‘रिलीजन’ का पर्याय समझना सब से घातक भूल है। इसी से दूसरी भूलों का स्त्रोत जुड़ता है।


🚩धर्म आचरण से जुड़ा है, जबकि रिलीजन विश्वास से। धर्म कहता है आपका विश्वास कुछ भी क्यों न हो, आपका आचरण नीति, मर्यादा, विवेक के अनुरूप होना चाहिए। यही धर्म है। इसी लिए भारतीय समाज में ऐसी अवधारणाएं और शब्द हैं जिनके लिए पश्चिमी भाषाओं में कोई शब्द नहीं है। जैसे, राज-धर्म, पुत्र-धर्म, क्षात्र-धर्म, आदि। दूसरी ओर, आप का आचरण कुछ भी क्यों न हो, यदि आप कुछ निश्चित बातों पर विश्वास करते हैं तो आप ईसाई या मुस्लिम रिलीजन को मानने वाले हुए। इसीलिए उन के बीच रिलीजन को ‘फेथ’ भी कहा जता है। बल्कि फेथ ही रिलीजन है।


🚩निजामुद्दीन औलिया का एक प्रसंग है जिस में वह कहते हैं कि उलेमा का हुक्म बिना ना-नुच के मानना चाहिए। इस से उसे लाभ यह होगा कि “उस के पाप उस के कर्मों की किताब में नहीं लिखे जाएंगे”। जबकि हिंदू परंपरा में किसी के द्वारा कोई पाप करना या अनुचित कर्म करना ही अधर्म है। प्रत्येक हिन्दू यह जानता है। मिथिलांचल के गंगातटीय क्षेत्र में लोकोक्ति है, “बाभन बढ़े नेम से, मुसलमान बढ़े कुनेम से”। इसे जिस अर्थ में भी समझें, पर अंततः यह धर्म और मजहब (रिलीजन) की पूरी विचार-दृष्टि के विपरीत होने का संकेत है। इस में कोई दुराग्रह नहीं है, वरन सामान्य हिन्दू का सदियों का अवलोकन है। ध्यान से देखें तो औलिया की बात और यह लोकोक्ति एक दूसरे की पुष्टि ही करती हैं। विडंबना यह है कि शिक्षित हिन्दू इस तथ्य से उतने अवगत नहीं हैं। वह नहीं जानते कि रिलीजन और धर्म का बुनियादी भेद मात्र आध्यात्मिक ही नहीं – अपनी सामाजिक, वैचारिक, नैतिक, राजनीतिक निष्पत्तियों में भी बहुत दूर तक जाता है।


🚩यद्यपि धुँधले रूप में अपने अंतःकरण में कई हिन्दू इस तत्व को न्यूनाधिक महसूस करते हैं। अपने को सेक्यूलर, आधुनिक, वामपंथी कहने वाले हिन्दू भी। किंतु इस सच्चाई को खुलकर कहने, विचार-विमर्श में लाने में संकोच करते हैं। मुख्यतः राजनीतिक-विचारधारात्मक कारणों से। इसीलिए वह प्रायः ऐसी स्थिति में फँस जाते हैं जिस से साम्राज्यवादी विचारधाराएं उन्हें अपने ही शब्दों से बाँध कर शिकार बना लेती हैं। तब उदारवादी हिन्दू छटपटाता है, किंतु देर हो चुकी होती है।

यह मात्र निजी स्थितियों में ही नहीं, सामाजिक राजनीतिक मामलों में भी होता है। हिन्दू उदारता का प्रयोग उसी के विरुद्ध किया जाता है। उस की दुर्गति इसलिए होती है कि हिन्दू शिक्षित वर्ग, विशेषकर इस का उच्चवर्ग अपनी परिकल्पनाओं को दूसरों पर भी लागू मान लेता है। वह रटता है कि सभी धर्म एक समान हैं; किंतु कभी जाँचने-परखने का यत्न नहीं करता कि क्या दूसरे धर्मावलंबी, उन की मजहबी किताबें, उन के मजहबी नेता, निर्णयकर्ता भी यह मानते हैं? यदि नहीं, तो ऐसा कहकर वह अपने आपको निहत्था क्यों कर रहा है?


🚩ऐसे प्रश्नों पर समुचित विचार करने में एक बहुत बड़ी बाधा सेक्यूलरवाद है। इस का प्रभाव इतना है कि इस झूठे देवता को पूजने में कई हिंदूवादी भी लगे हुए हैं। यह किसी विषय को यथातथ्य देखने नहीं देता, चाहे वह इतिहास, दर्शन, राजनीति हो या अन्य समस्याएं। सेक्यूलर समझी जाने वाली अनेक धारणाएं वास्तव में पूर्णतः निराधार हैं। जैसे, यही कि ‘सभी धर्मों में एक जैसी बातें हैं’ या ‘कोई धर्म हिंसा की सीख नहीं देता’। इसे बड़ी सुंदर प्रस्थापना मानकर अंधविश्वास की तरह दशकों से प्रचारित किया गया। मगर क्या किसी ने कभी आकलन किया कि इस से लाभ हुआ है या हानि? सच्चाई से विचार करें तो विश्वविजय की नीति रखने वाले, संगठित धर्मांतरणकारी सामी (Semitic) मजहबों को सनातन हिंदू धर्म के बराबर कह कर भारत को पिछले सौ साल से निरंतर विखंडन के लिए खुला छोड़ दिया गया है।


🚩कानून के समक्ष और सामाजिक व्यवहार में विभिन्न धर्मावलंबियों की समानता एक बात है। किंतु विचार-दर्शन के क्षेत्र में ईसाइयत, इस्लाम, हिंदुत्व आदि को समान बताना खतरे से खाली नहीं। इस से अनजाने ही भारतीय ईसाइयों को अपने देश की संस्कृति, नियम, कानून आदि की उपेक्षा कर, यहाँ तक कि घात करके भी, दूर देश के पोप के आदेशों पर चलने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसी तरह, भारतीय मुसलमानों को भी दुनिया पर इस्लामी राज का सपना देखने वाले इस्लामियों के हवाले कर दिया जाता है। केवल समय और परिस्थिति की बात रहती है कि कब कोई प्रभावशाली मौलाना दुनिया के मुसलमानों का आह्वान करता है, जिस में भारतीय मुस्लिम भी स्वतः संबोधित होंगे।


🚩यदि सभी धर्मों में एक ही बातें हैं, तो जब कोई आलिम (अयातुल्ला, इमाम, मुफ्ती आदि) ऐसी अपील करे, जो मुसलमानों को हिंसक या देश-द्रोही काम के लिए प्रेरित करता हो – तब आप क्या कहकर अपने दीनी मुसलमान को उस का आदेश मानने से रोकेंगे? क्या यह कहकर कि अलाँ मौलाना या फलाँ अयातुल्ला सच्चा मुसलमान नहीं है? यह कौन मानेगा, और क्यों मानेगा? जब इस मौलाना या उस अयातुल्ला को इस्लाम का अधिकारी टीकाकार, निर्देशक, प्रवक्ता माना जाता रहा तो उसी के किसी आह्वान विशेष को यकायक गैर-इस्लामी कहना कितना प्रभावी होगा, इस पर ठंढे दिमाग से सोचना चाहिए।

अतः सच यह है कि सभी धर्मों में ‘समान’ नीति-दर्शन बिलकुल नहीं है। इस पर बल देना जरूरी है। पूरी मानवता को आदर का अधिकारी कहते हुए यथोचित उल्लेख करना ही होगा कि कौन मजहब किस विंदु पर, विवेक और मानवीयता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। तभी संभव होगा कि किसी कार्डिनल, मौलाना या रब्बी को (ईसाइयत, इस्लाम, यहूदी आदि) विशेष धर्म-दर्शन का विद्वान मान कर भी उस के अनुयायी उस के सभी आह्वान मानना आवश्यक न समझें। बल्कि अनुचित बातों का खुला विरोध करें। तभी विवेकशील मुसलमान विश्व-इस्लाम के नाम पर देशद्रोह, काफिरों की हत्या, उन्हें धर्मांतरित करने, जैसे आदेशों को खारिज करेंगे। किंतु यह तब होगा जब वे इस भ्रम से मुक्त हों कि इस्लाम ही एक मात्र सच्चा मजहब है। उन्हें यह समझाना ही होगा कि चाहे वह मुसलमान हैं, किंतु पूरी दुनिया को इस्लामी बनाने की बात में अन्य धर्मावलंबियों के प्रति हिकारत व हिंसा है, जो विवेक-विरुद्ध और मानवता की दृष्टि से अनुचित है। यदि यह कहने से हिंदू भाई कतराते हैं, तो निश्चय ही वह अपने और अपनी संततियों को भी मुसीबत में फँसा रहे हैं।


🚩जब इस्लाम के आदेशों में मानवीय विवेक की दृष्टि से – किसी जड़सूत्र से नहीं – उचित और अनुचित तत्वों के प्रति मुसलमानों को चेतनशील बनाया जाएगा, तभी वे किसी मौलाना की बात को अपनी विवेक-बुद्धि पर कसकर मानने या छोड़ने की सार्वजनिक नीति बनाएंगे। इस आवश्यक वैचारिक संघर्ष से कतराने से केवल यह होगा कि मुस्लिम आबादी स्थाई रूप से देशी-विदेशी उलेमा की बंधक रहेगी। जब चाहे कोई कट्टरपंथी मौलाना मुसलमानों को यहाँ-वहाँ हिंसक कार्रवाई के लिए भड़काएगा। तब मुसलमानों के पास उस की बात को सक्रिय/निष्क्रिय रूप से मानने, अन्यथा खुद को दोषी समझने के बीच कोई विकल्प नहीं रहता। इस से अंतर नहीं पड़ता कि कितने मुसलमान वैसा आह्वान मानते हैं। किसी समाज, यहाँ तक कि पूरी दुनिया पर कहर बरपाने के लिए मुट्ठी भर अंधविश्वासी काफी हैं। न्यूयॉर्क या गोधरा का उदाहरण सामने है। वैसे आह्वान में भाग न लेने वाले मुसलमान भी दुविधा में रहेंगे। अंततः परिणाम वही होगा, जो 1947 में हुआ था। मुट्ठी भर इस्लामपंथी पूरे समुदाय को जैसे न तैसे अपने पीछे खींच ले जाएंगे। यह दुनिया भर का अनुभव है। सदाशयी मुसलमान कट्टर इस्लामी नेताओं की काट करने में सदैव अक्षम रहते हैं।

इसलिए भी जब तक ‘सभी धर्मों में एक ही चीज है’ का झूठा प्रचार रहेगा और मुस्लिम आबादी उलेमा के खाते में मानी जाएगी, सभी मुसलमान नैतिक रूप से उलेमा की बात मानना ठीक समझेंगे। न मानने पर धर्मसंकट महसूस करेंगे। उन के लिए यह संकट सुसुप्त अवस्था में सदैव रहेगा। केवल समय की बात होगी कि कब वह इसमें फंसते हैं।


🚩यदि आप किसी मौलाना को नीति-विचार-दर्शन का उतना ही अधिकारी प्रवक्ता मानते हों, जितना हिंदू शास्त्रों का कोई पंडित, तब उस मौलाना के आह्वानों से अपने मुस्लिमों को आप जब चाहे नहीं बचा सकते। इस के लिए निरंतर, अनम्य वैचारिक संघर्ष जरूरी है, जिस में इस्लाम की कमियाँ दिखाने में संकोच नहीं करना होगा। इस पर बल देना होगा कि मुसलमान जनता और इस्लाम एक चीज नहीं। कहना होगा कि विचार-विमर्श में इस्लाम समेत किसी भी विचारधारा या सिद्धांत की समुचित आलोचना करने का अधिकार प्रत्येक मनुष्य को है। इस पर नहीं डटने के कारण ही (सेक्यूलरिज्म के नाम पर) भारत को इस्लामी और चर्च-मिशनरी आक्रामकों के लिए खुला छोड़ दिया गया है।

इसीलिए विदेशी इस्लामी उलेमा/ आक्रांता भी भारतीय मुसलमानों को अपनी थाती समझते हैं। जब भी ऐसे लोग कोई हिंसक आह्वान करते हैं, जो वे करते ही रहते हैं, हम अपने ही फूहड़ सेक्यूलर तर्क के अधीन बेबस होकर रह जाते हैं। क्योंकि हमने सेक्यूलरिज्म के प्रभाव में इस्लामी विचारधारा की कुछ भी आलोचना को गलत मान लिया है। मानो इस्लामी विचार और राजनीति के बारे में विचारने या भूल दिखाने का दूसरे को अधिकार नहीं। यह अनुचित और आत्मघाती दृष्टि है।


🚩एक ओर उलेमा पूरी दुनिया की एक-एक चीज का ‘इस्लामी’ मूल्यांकन ही नहीं रखते, उसे उसी तरह चलाने के लिए दबाव डालते रहते हैं। यूरोपीय देशों में भी जहाँ मुट्ठी भर मुसलमान हैं, वह भी अरब, अफ्रीका, एसिया से गए प्रवासी – वहाँ भी इस्लाम के मुताबिक यह करने, वह न करने की माँग अधिकारपूर्वक की जाती है। जबकि इस्लामी देशों में अन्य धर्मावलंबी की कौन कहे, उलेमा के सिवा आम मुसलमान को भी रीति-नीति में किसी परिवर्तन की बात करने का अधिकार नहीं। क्या यह साम्राज्यवादी, तानाशाही नजरिया सभी धर्मों में है?

(लेखक डॉ.शंकर शरण की पुस्तक "धर्म बनाम मजहब" से एक अंश)


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जहर के व्यापारी कौन है ?

08 February 2024

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🚩इस लेख को पढ़ कर आश्चर्य मत कीजिएगा... क्योंकि जो कुछ देश में हो रहा है आज , यह सब अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर किया जाना तो बिल्कुल आम सी बात हो गई है।


🚩गत 2 फरवरी को पुणे की यूनिवर्सिटी में एक नाटक का मंचन किया गया। जिसमें माता सीता को सिगरेट पीते हुए और गाली देते हुए दिखाया गया।


🚩सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी ( Savitribai Phule Pune University) के ललित कला केंद्र के प्रमुख डॉ प्रवीण दत्तात्रेय भोले, नाटक के राइटर भावेश पाटिल, डायरेक्टर जय पेढ़नेकर और प्रथमेश सावंत, ऋषिकेश दलवी, यश चिखाले आयोजन में शामिल थे। इस नाटक में भगवान राम और माता सीता का मजाक उड़ाया गया है। नाटक के एक दृश्य में माता सीता को सिगरेट पीते और श्री राम को उनकी मदद करते हुए दिखाया गया। 


🚩कुछ साल पहले हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के केंन्द्रीय विश्वविद्यालय के अंग्रेजी और विदेशी भाषा विभाग ने महाश्वेता देवी की लघु कथा 'द्रौपदी' पर आधारित नाटक का मंचन किया। इस कथा में द्रौपदी नामकी आदिवासी महिला की सुरक्षाबलों के हाथों मुठभेड़ में मारे जाने का एकतरफा वर्णन है।नाटक में वर्दीधारी सुरक्षा बलों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों और बलात्कार को दिखाया जा रहा था। 

तब स्थानीय नागरिकों द्वारा गठित 'सैनिक सम्मान संघर्ष समिति' नेे इस नाट्य मंचन का विरोध किया और पुलिस को सूचित कर इसे बंद करवाया।


🚩वामपंथियों द्वारा हमेशा ही माता सीता, भगवान श्री रामजी अन्य सभी देवी देवता, हिंदू साधु संतो, हिंदू संस्कृति, हिंदू मंदिरों आदि को नीचा दिखाया जाता है । ये लोग जनता के मन में जहर भरने का कार्य खूब कुशलता और तेजी से करते हैं और देश को तोड़ने में लगे रहते हैं। हिंदुस्तानी इनसे सावधान रहें।


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Tuesday, February 6, 2024

मातृ-पितृ पूजन दिवस की आवश्यकता क्यों पड़ी और उसका उद्देश्य क्या हैं ?

07 February 2024

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🚩फरवरी 14 को 'मातृ-पितृ पूजन दिवस' विश्वव्यापी हो चुका है और सभी धर्मों के लोगों द्वारा मनाये जानेवाला पर्व बन गया है। इस पर्व को 2006 में हिंदू संत आशाराम बापू ने शुरू किया था, अब इस पर्व को सर्जित करने की आवश्यकता क्यों पड़ी तथा इसको मनाने से क्या लाभ होते हैं यह खुद बापू आशारामजी ने बताया है आप भी जान लिजिए....


🚩उन्होने कहा कि...

प्रेमी-प्रेमिका 'आई लव यू, आई लव यू...' करके काम-विकार में गिरते हैं, थोड़ी देर के बाद ठुस्स हो जाते हैं । मैंने इससे लाखों- लाखों बच्चों की जिंदगी तबाह होते हुए सुनी है ।

28 विकसित देशों में 'आई लव यू व वेलेंटाइन डे' के चक्कर में हर वर्ष 13 से 19 साल की 12 लाख 50 हजार कन्याएँ स्कूल जाते-जाते गर्भवती हो जाती हैं । जिनमें से 5 लाख कन्याएँ तो चुपचाप गर्भपात करा लेती हैं और जो नहीं करा पाती हैं ऐसी 7 लाख 50 हजार कन्याएँ कुँवारी माँ बनकर नर्सिंग होम, सरकार व माँ बाप के लिए बोझा बन जाती हैं अथवा वेश्यावृत्ति धारण कर लेती हैं ।


🚩अमेरिका और अन्य विकसित देशों के करोड़ों रुपये वेलेंटाइन डे में तबाह हुए ऐसे लड़के लड़कियों की जिंदगी बचाने में खर्च होते हैं । ऐसा काहे को करना !


🚩लेकिन विदेशियों ने फैशन चला दिया: 'आई लव यू, आई लव यू...' बड़ी बेशर्माई है । बच्चे माँ-बाप को पूछें ही नहीं, लोफर-लोफरियाँ बन जायें । वे खुद बरबाद हो जायें तो माँ-बाप की क्या सेवा करेंगे ?


🚩इसमें सबका भला है


🚩कुछ मनुष्य तो अक्लवाले होते हैं और कुछ अक्ल खो के प्रेमिकाओं के पीछे, प्रेमियों के दिवस : 14 फरवरी पीछे तबाह होते हैं, उनकी बुद्धि नष्ट हो जाती है ।


🚩सुंदरी सुंदरे जितने कामी होते हैं उतनी ही उनकी बुद्धि नष्ट हो जाती है । ऐसे कामी सँभल जायें तो अच्छा है, नहीं तो फिर ऐसे लोग मरने के बाद पतंगे होते हैं । पतंगे दीये में जलते हैं। एक जल रहा है यह दूसरों को दिख रहा है फिर भी दे धड़ाधड़... और जल मरते हैं ।


🚩वेलेंटाइन डे' वाले तो अपनी ईसाइयत का प्रचार करते हैं परंतु लोगों की जिंदगी तबाह होती है । फिर मैं भगवान का ध्यान करके भगवान में डूब गया, एकाकार हो गया और उपाय खोजा । उपाय मिल गया - गणपति और कार्तिकेय स्वामी की चर्चा का प्रसंग । उसे मैंने अच्छी तरह समझ लिया । मैंने सत्संग में बोला कि 'माँ की प्रदक्षिणा करने से सारे तीर्थों का फल होता है और पिता का आदर व प्रदक्षिणा करने से सब देवों की पूजा का फल मिलता है ।

सर्वतीर्थमयी माता, सर्वदेवमयः पिता ।


🚩इसका प्रचार करेंगे तो बच्चे-बच्चियों का, माँ-बाप का सबका भला हो जायेगा ।' मैं भी आशाओं का राम हूँ, आशाओं का गुलाम नहीं हूँ । मैं जब चाहूँ मेरा प्यारा मेरे लिए ज्ञान के दरवाजे खोल देता है ।


🚩मैंने इस विषय पर सत्संग चालू किये फिर घोषणा कर दी: 'वेलेंटाइन डे के बदले मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाओ ।'


🚩फिर मैंने यह भी बता दिया कि 'हम ईसाई, मुसलमान, हिन्दू, सिख तथा और भी जो जाति-धर्म-पंथ हैं सभी का भला चाहते हैं । हम किसी का बुरा नहीं चाहते हैं । बच्चे-बच्चियाँ तबाह न हों, इसलिए 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे के बदले मातृ-पितृ पूजन दिवस चालू किया है।' अब तो यह विश्वव्यापी हो गया है ।


🚩आप सभी को  वेलेंटाइन डे नही बल्कि माता पिता की पूजा करके मातृ पितृ पूजन दिवस मनाना चाहिए।


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Sunday, February 4, 2024

धर्मान्तरण की किन किन समाज सुधारकों ने निंदा किया?

5 February 2024

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🚩हमारे देश के संभवत शायद ही कोई चिंतक ऐसे हुए हो जिन्होंने प्रलोभन द्वारा धर्मान्तरण करने की निंदा न की हो। महान चिंतक एवं समाज सुधारक स्वामी दयानंद का एक ईसाई पादरी से शास्त्रार्थ हो रहा था। स्वामी जी ने पादरी से कहा की हिन्दुओं का धर्मांतरण करने के तीन तरीके है। पहला जैसा मुसलमानों के राज में गर्दन पर तलवार रखकर जोर जबरदस्ती से बनाया जाता था। दूसरा बाढ़, भूकम्प, प्लेग आदि प्राकृतिक आपदा जिसमें हज़ारों लोग निराश्रित होकर ईसाईयों द्वारा संचालित अनाथाश्रम एवं विधवाश्रम आदि में लोभ-प्रलोभन के चलते भर्ती हो जाते थे और इस कारण से आप लोग प्राकृतिक आपदाओं के देश पर बार बार आने की अपने ईश्वर से प्रार्थना करते है और तीसरा बाइबिल की शिक्षाओं के जोर शोर से प्रचार-प्रसार करके। मेरे विचार से इन तीनों में सबसे उचित अंतिम तरीका मानता हूँ। स्वामी दयानंद की स्पष्टवादिता सुनकर पादरी के मुख से कोई शब्द न निकला। स्वामी जी ने कुछ ही पंक्तियों में धर्मान्तरण के पीछे की विकृत मानसिकता को उजागर कर दिया। 


🚩गांधीजी ईसाई धर्मान्तरण के सबसे बड़े आलोचको में से एक थे। अपनी आत्मकथा में गांधीजी लिखते है "उन दिनों ईसाई मिशनरी हाई स्कूल के पास नुक्कड़ पर खड़े हो हिन्दुओं तथा देवी देवताओं पर गलियां उड़ेलते हुए अपने मत का प्रचार करते थे। यह भी सुना है की एक नया कन्वर्ट (मतांतरित) अपने पूर्वजों के धर्म को, उनके रहन-सहन को तथा उनके गलियां देने लगता है। इन सबसे मुझमें ईसाइयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई।" इतना ही नहीं गांधी जी से मई, 1935 में एक ईसाई मिशनरी नर्स ने पूछा कि क्या आप मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगाना चाहते है तो जवाब में गांधी जी ने कहा था,' अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं तो मैं मतांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूँ। मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में जहाँ मिशनरी पैठे है, वेशभूषा, रीतिरिवाज एवं खानपान तक में अंतर आ गया है।


🚩समाज सुधारक एवं देशभक्त लाला लाजपत राय द्वारा प्राकृतिक आपदाओं में अनाथ बच्चों एवं विधवा स्त्रियों को मिशनरी द्वारा धर्मान्तरित करने का पुरजोर विरोध किया गया जिसके कारण यह मामला अदालत तक पहुंच गया। ईसाई मिशनरी द्वारा किये गए कोर्ट केस में लाला जी की विजय हुई एवं एक आयोग के माध्यम से लाला जी ने यह प्रस्ताव पास करवाया की जब तक कोई भी स्थानीय संस्था निराश्रितों को आश्रय देने से मना न कर दे तब तक ईसाई मिशनरी उन्हें अपना नहीं सकती।


 🚩डॉ अम्बेडकर को ईसाई समाज द्वारा अनेक प्रलोभन ईसाई मत अपनाने के लिए दिए गए मगर यह जमीनी हकीकत से परिचित थे की ईसाई मत ग्रहण कर लेने से भी दलित समाज अपने मुलभुत अधिकारों से वंचित ही रहेगा। डॉ आंबेडकर का चिंतन कितना व्यवहारिक था यह आज देखने को मिलता है।''जनवरी 1988 में अपनी वार्षिक बैठक में तमिलनाडु के बिशपों ने इस बात पर ध्यान दिया कि धर्मांतरण के बाद भी अनुसूचित जाति के ईसाई परंपरागत अछूत प्रथा से उत्पन्न सामाजिक व शैक्षिक और आर्थिक अति पिछड़ेपन का शिकार बने हुए हैं। फरवरी 1988 में जारी एक भावपूर्ण पत्र में तमिलनाडु के कैथलिक बिशपों ने स्वीकार किया 'जातिगत विभेद और उनके परिणामस्वरूप होने वाला अन्याय और हिंसा ईसाई सामाजिक जीवन और व्यवहार में अब भी जारी है। हम इस स्थिति को जानते हैं और गहरी पीड़ा के साथ इसे स्वीकार करते हैं।' भारतीय चर्च अब यह स्वीकार करता है कि एक करोड़ 90 लाख भारतीय ईसाइयों का लगभग 60 प्रतिशत भाग भेदभावपूर्ण व्यवहार का शिकार है। उसके साथ दूसरे दर्जे के ईसाई जैसा अथवा उससे भी बुरा व्यवहार किया जाता है। दक्षिण में अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों को अपनी बस्तियों तथा गिरिजाघर दोनों जगह अलग रखा जाता है। उनकी 'चेरी' या बस्ती मुख्य बस्ती से कुछ दूरी पर होती है और दूसरों को उपलब्ध नागरिक सुविधओं से वंचित रखी जाती है। चर्च में उन्हें दाहिनी ओर अलग कर दिया जाता है। उपासना (सर्विस) के समय उन्हें पवित्र पाठ पढऩे की अथवा पादरी की सहायता करने की अनुमति नहीं होती। बपतिस्मा, दृढि़करण अथवा विवाह संस्कार के समय उनकी बारी सबसे बाद में आती है। नीची जातियों से ईसाई बनने वालों के विवाह और अंतिम संस्कार के जुलूस मुख्य बस्ती के मार्गों से नहीं गुजर सकते। अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों के कब्रिस्तान अलग हैं। उनके मृतकों के लिए गिरजाघर की घंटियां नहीं बजतीं, न ही अंतिम प्रार्थना के लिए पादरी मृतक के घर जाता है। अंतिम संस्कार के लिए शव को गिरजाघर के भीतर नहीं ले जाया जा सकता। स्पष्ट है कि 'उच्च जाति' और 'निम्न जाति' के ईसाइयों के बीच अंतर्विवाह नहीं होते और अंतर्भोज भी नगण्य हैं। उनके बीच झड़पें आम हैं। नीची जाति के ईसाई अपनी स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष छेड़ रहे हैं, गिरजाघर अनुकूल प्रतिक्रिया भी कर रहा है लेकिन अब तक कोई सार्थक बदलाव नहीं आया है। ऊंची जाति के ईसाइयों में भी जातिगत मूल याद किए जाते हैं और प्रछन्न रूप से ही सही लेकिन सामाजिक संबंधोंं में उनका रंग दिखाई देता है।


🚩महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।

इस प्रकार से प्राय: सभी देशभक्त नेता ईसाई धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है। - डॉ. विवेक आर्य


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Saturday, February 3, 2024

मुस्लिम फकीर ने लूटा 230 ग्राम सोना और 7 लाख रुपये, हिंदुस्तान टाइम्स ने किया भ्रमित...

4 February 2024

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🚩हिन्दुओं को नीचा दिखाने की लगन और मुस्लिम परस्ती के नशे में मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस क़दर मदमस्त है कि उसे गलती से कहीं कोई अपराधी मुस्लिम समुदाय का या कई बार ईसाई भी दिख गया, तो ये पूरा गिरोह कुछ भी करके उस ख़बर को अपने दर्शकों/पाठकों के सामने ऐसा स्पिन देने की कोशिश में लग जाता है कि समुदाय विशेष का अपराध तो ढक ही जाए और साथ ही समूचा हिन्दू धर्म या कोई हिन्दू व्यक्ति निरपराध हो कर भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सवालों के घेरे में भी आ जाए।


🚩आपको बता दें कि मुंबई के सेवरी में पुलिस ने 'अबूबक़र मोहम्मद अली शेख' नामक एक तथाकथित फकीर के खिलाफ केस दर्ज किया है। आरोप है कि अबूबकर मोहम्मद अली शेख लोगों की बीमारियाँ ठीक करने के नाम पर उन्हें झाँसा देता था, उनके नाम पर बकरे की कुर्बानी देता था, लाखों रुपए हड़पता था और फिर वो पैसे दरगाह में लुटाता था।


🚩हिंदुस्तान टाइम्स की खबर में दिए नाम से साफ है कि ये धोखाधड़ी का काम एक ‘मुस्लिम व्यक्ति’ करता था। लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी खबर में इसे ऐसे पेश किया है जैसे कि वो कोई ‘तांत्रिक’ हो और उसी ने पीड़ितों को झूठ बोलकर उनसे धोखे से ‘बलि’ दिलवाई हो। हालाँकि, पुलिस रिपोर्ट पढ़ने के बाद यह साफ हुआ कि हिंदुस्तान टाइम्स किस तरह से इस खबर में शब्दों की हेर-फेर से हिन्दू समाज और संतो॔ के विरुद्ध भ्रामक संदेश देने का प्रयास कर रहा है।


🚩रिपोर्ट में दिए गए पुलिस वर्जन के अनुसार, आरोपित का पूरा नाम अबूबक़र मोहम्मद अली शेख (32 वर्षीय) है। उसके खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की धारा406, धारा420 और महाराष्ट्र अपराध रोकथाम और उन्मूलन अधिनियम की धारा3 के तहत मामला दर्ज किया है। इसके अलावा उस पर मानव कुर्बानी और अमानवीय कृत्य, दुष्ट और अघोरी प्रथाएँ और काला जादू अधिनियम, 2013 के तहत भी केस दर्ज हुआ है।


https://twitter.com/OpIndia_in/status/1753116004694012193?t=kgruS-Aia6hZmtARIDw8mg&s=19


🚩रिपोर्ट में पुलिस के पास दर्ज शिकायत के हवाले से लिखा गया कि एक महिला के शरीर में हमेशा दर्द रहता था। कई डॉक्टरों से दिखवाने के बाद भी जब उसे आराम नहीं पड़ा तो उसने फकीर वेशधारी अबूबक़र से बात की। अबूबक़र ने उससे कहा कि वो पारंपरिक तरीकों से उसकी बीमारी का इलाज कर सकता है लेकिन इसके लिए वो 4 लाख रुपए लेगा और सोने के जेवर लेगा। इस क्रम में उसने एक बकरे की कुर्बानी भी दी। साथ ही पैसे लेकर दरगाह के बाहर बाँटे। इसके बाद उसने महिला को एक ताबीज़ दिया और कहा उसने ताबीज़ में झाड़-फूँक की है,जो उसके लिए अच्छी किस्मत लेकर आएगा।


🚩उस ठग से मिलने के बाद महिला ने उससे घरेलू क्लेशों पर भी संपर्क करना शुरू कर दिया। महिला ने अपने एक रिश्तेदार को भी अबूबक़र के पास भेजा क्योंकि वो व्यक्ति अपने बेटे को संयुक्त राष्ट्र भेजना चाहता था। इसके लिए अबूबक़र ने उस महिला के रिश्तेदार से 1.70 लाख रुपए लिए। इतना ही नहीं, धोखेबाज अबूबक़र ने तो महिला के एक मित्र से ये भी कहा , कि वो कैंसर ठीक कर सकता है। फकीर ने उसे ये कहकर फँसाया , कि वो 12 दिन में मर जाएगा अगर उसके कहे अनुसार काम नहीं किया।

इसके अलावा उसने शिकायतकर्ता की एक दोस्त से भी पैसे ऐंठे । महिला की दोस्त के बच्चे का रोना नहीं रुक रहा था और वो बच्चे के कष्ट से व्यथित होकर उसे स्वस्थ और चुप करवाने के लिए अबूबक़र के पास ले गई थी।


🚩लाखों रुपए की धोखाधड़ी करने के बाद जब लोगों को अपनी परेशानियों का समाधान नहीं मिला तो उन्होंने उस फकीर से सवाल किए, लेकिन फकीर ने उन्हें जवाब देने या पैसे लौटाने के बजाय नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। इसके बाद पुलिस तक फकीर की हरकतों की जानकारी पहुँची। उन्होंने मार्च 2023 से जनवरी 2024 के बीच हुई धोखाधड़ी के मामलों को दर्ज किया और सबूत इकट्ठे करने शुरू किए। पुलिस को इस दौरान पता चला कि पीड़ितों ने अब तक इस फकीर को 230 ग्राम सोना दिया है और 7 लाख रुपए दिए हैं।


🚩अब इसी ख़बर की सारी जानकारी रिपोर्ट करते हुए हिंदुस्तान टाइम्स ने शब्दों का कुत्सित खेल खेला... और कुछ इस तरह से खबर को पेश किया कि वह ठग मुस्लिम था इस पर फोकस ही न जाए, बल्कि हिन्दुओं को बदनाम करने का मसाला फ्री में तैयार हो जाए...


🚩हिंदुस्तान टाइम्स की इस हरकत पर सोशल मीडिया पर भी आपत्ति उठाई गई।

" लेखिका मधु पूर्णिमा किश्वर ने रिपोर्ट लिखने वाले 'रिपोर्टर विनय दालवी' से पूछा है कि आखिर कोई 'अली शेख' तांत्रिक कैसे हो सकता है !? क्योंकि तंत्र तो हिन्दू ज्ञान परंपरा का भाग है! क्या अगली बार कोई ऐसी खबर होगी, जिसमें मौलवी रेप करता पकड़ा जाएगा तो उसे पुजारी लिख दिया जाएया। "


🚩बता दें कि यह कोई पहली ऐसी घटना नहीं है जो ईसाई अथवा मुस्लिम धर्मगुरु को हिंदू धर्मगुरु बताकर बदनाम किया गया हो! वामपंथी बिकाऊ मीडिया हमेंशा से यही करती आई है...


🚩बिकाऊ मीडिया का एक ही लक्ष्य -- सनातनधर्म को नीचा दिखाना !!


🚩ये लोग ईसाई अथवा मुस्लिम धर्मगुरु के कुकृत्यों की खबर को भी ऐसे बना कर पेश करते हैं कि जनता का सारा फोकस हिन्दू साधु-संतों पर चला जाए और वो ही बदनाम हों !!

इनका मकसद होता है , ईसाई और मुस्लिम धर्मगुरुओं के दुष्कर्मो को छुपाना और पवित्र निर्दोष हिंदू साधू-संतों को बदनाम करना !!


🚩ऐसा आखिर क्यों !?

क्योंकि उनको पता है हिंदू सहिष्णुता के नाम पर पलायनवादी और वर्ण व्यवस्था के नाम पर जातियों में बंट गए हैं । इसी का फायदा उठाकर ये विधर्मी , वामपंथी और मीडिया वाले हिंदू धर्म को हमेंशा बदनाम करते हैं।


🚩अभी भी वक़्त है कि हम सर्तक हो जायें... और कुछ नहीं कर सकें तो कम से कम बिकाऊ वामपंथी मीडिया का बहिष्कार तो करें। उसके अखबार नहीं लें, उसके वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लेटफार्म और टीवी देखना बंद कर दें । तभी इनकी अक्ल ठिकाने आएगी...


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Friday, February 2, 2024

सेंसर बोर्ड ने फिल्म ‘छत्रपति सम्भाजी’ को नहीं होने दिया रिलीज़..

3 February 2024

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🚩आरोप है कि ‘छत्रपति सम्भाजी’ फिल्म को सेंसर बोर्ड के अधिकारी सईद रबी हाशमी ने प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया है। यह फिल्म 26 जनवरी, 2024 को रिलीज होनी थी लेकिन इसे सेंसर बोर्ड ने प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया। इसको लेकर अब निर्माता ने सेंसर बोर्ड पर आरोप लगाए हैं कि लिखित सबूत दिए जाने के बाद भी प्रमाण पत्र नहीं दिया गया।


🚩छत्रपति सम्भाजी फिल्म के निर्माता निर्देशक राकेश सुबेसिंह दुलगज ने कहा है कि उन्होंने सेंसर बोर्ड के सामने अपनी फिल्म की स्क्रीनिंग भी करवा दी थी लेकिन इसके बाद भी उन्हें 26 जनवरी तक प्रमाण पत्र नहीं दिया गया। इसके लिए सेंसर बोर्ड के मुंबई क्षेत्राधिकारी सईद रबी हाशमी ने औरंगजेब के खिलाफ सबूत दिखाने की बात कही।


🚩दुलगज ने बताया है कि यह फिल्म पिछले 8 साल से बन रही है। फिल्म मराठा शासक छत्रपति सम्भाजी के जीवन के ऊपर बनी है। यह फिल्म मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं में रिलीज होनी थी। इसको लेकर दुलगज ने सेंसर बोर्ड के समक्ष अपनी फिल्म के प्रमाण पत्र के लिए आवेदन दिया था। उन्होंने बताया कि 12 जनवरी, 2024 को सेंसर बोर्ड से फ़ोन आया कि अगले दिन उनकी फिल्म की स्क्रीनिंग रखी गई है। इसके बाद 13 जनवरी की सुबह उन्होंने पूरी फिल्म अधिकारियों को दिखा दी।


🚩फिल्म देखने के बाद अधिकारियों ने कहा कि उन्हें यू/ए प्रमाण पत्र दिया जा रहा है। उनसे कहा गया कि 25 जनवरी, 2024 तक उन्हें प्रमाण पत्र दे दिया जाएगा। इसको लेकर दुलगज ने अपनी फिल्म की रिलीज डेट 26 जनवरी, 2024 को रख दी। हालाँकि, उन्हें प्रमाण पत्र नहीं दिया गया। दुलगज ने कहा कि उनसे जो बदलाव के लिए कहा गया था वह उन्होंने कर दिए थे लेकिन फिर भी उनकी फिल्म को रोका गया।


🚩दुलगज ने कहा कि मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय में नए आए अधिकारी सईद रबी हाशमी ने इस बात को लेकर सबूत दिखाने की माँग की कि क्या औरंगजेब ने छत्रपति सम्भाजी पर इस्लाम कबूलने का दबाव डाला था। इसको प्रमाणित करने वाली किताबें दुलगज से सेंसर बोर्ड में जमा कराने को कहा गया है।


🚩मुग़ल शासक औरंगजेब ने मराठा छत्रपति सम्भाजी महाराज को बंधक बनाकर कई दिनों तक यातनाएं दी थी और उन पर इस्लाम कबूलने का दबाव डाला था। जब उन्होंने इस्लाम कबूलने से मना कर दिया तो उन्हें मार दिया गया था। 


🚩गौरतलब है कि हिंदू विरोधी फिल्मों से तो सेंसर बोर्ड को कभी भी कोई आपत्ति आजतक नहीं हुई...भले ही उसके लिए कितने ही बड़े आंदोलन न हो जाएं !

लेकिन जब हिंदुत्व के सही इतिहास पर कोई फिल्म बनाई जाती है तो सेंसर बोर्ड रिलीज नही होने देता ! बॉलीवुड गैंग और सेंसर बोर्ड दोनों सही इतिहास पर फिल्में बनने/रिलीज होने नहीं देते हैं।

अब जनता को जागरूक होना चाहिए हिंदुत्व विरोधी फिल्मों का पूर्ण बहिष्कार करना चाहिए , तभी इनकी अक्ल ठिकाने आयेगी !!


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Thursday, February 1, 2024

आइए वैज्ञानिकों से जानें कि "मातृ-पितृ पूजन दिवस" क्यों मनाना चाहिए ?

2 February 2024

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🚩माता-पिता के पूजने से अच्छी पढाई का क्या संबंध- ऐसा सोचने वालों को अमेरिका की ʹयूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनियाʹ के सर्जन व क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सू किम और ʹचिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल ऑफ फिलाडेल्फिया, पेंसिल्वेनियाʹ के एटर्नी एवं इमिग्रेशन स्पेशलिस्ट जेन किम के शोधपत्र के निष्कर्ष पर ध्यान देना चाहिए।


🚩अमेरिका में एशियन मूल के विद्यार्थी क्यों पढ़ाई में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करते हैं? इस विषय पर शोध करते हुए उन्होंने यह पाया कि वे अपने बड़ों का आदर करते हैं , माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं । वो उज्ज्वल भविष्य-निर्माण और श्रेष्ठ परिणाम पाने हेतु गम्भीरता से सघन अध्ययन करते हैं।


🚩भारतीय संस्कृति के शास्त्रों और संतों में श्रद्धा न रखने वालों को भी अब उनकी इस बात को स्वीकार करके पाश्चात्य विद्यार्थियों को सिखाना पड़ता है कि माता-पिता का आदर करने वाले विद्यार्थी पढ़ाई में श्रेष्ठ परिणाम पा सकते हैं।


🚩जो विद्यार्थी माता-पिता का आदर करेंगे वे ʹवेलेन्टाइन डेʹ मनाकर अपना चरित्र भ्रष्ट नहीं कर सकते। संयम से उनके ब्रह्मचर्य की रक्षा होने से उनकी बुद्धिशक्ति विकसित होगी, जिससे उनकी पढ़ाई के परिणाम अच्छे आयेंगे।


🚩माता-पिता ने हमसे अधिक वर्ष दुनिया में गुजारे हैं, उनका अनुभव हमसे अधिक है और सद्गुरु ने जो महान अनुभव किया है उसकी तो हमारे छोटे अनुभव से तुलना ही नहीं हो सकती। इन तीनों के आदर से उनका अनुभव हमें सहज में ही मिल जाता है। अतः जो भी व्यक्ति अपनी उन्नति चाहता है, उस सज्जन को माता-पिता और सद्गुरु का आदर, पूजन, आज्ञापालन तो करना चाहिए, चाहिए और चाहिए ही...!!


🚩14 फरवरी को ʹवेलेंटाइन डेʹ मनाकर युवक-युवतियाँ प्रेमी-प्रेमिका के संबंध में फँसते हैं। वासना के कारण उनका ओज-तेज दिन दहाड़े नीचे के केन्द्रों में आकर नष्ट होता है। उस दिन ʹमातृ-पितृ पूजनʹ काम-विकार की बुराई व दुश्चरित्रता की दलदल से ऊपर उठाकर उज्ज्वल भविष्य, सच्चरित्रता, सदाचारी जीवन की ओर ले जायेगा।


🚩अनादिकाल से महापुरुषों ने अपने जीवन में माता-पिता और सद्गुरु का आदर-सम्मान किया है।


🚩कोई हिन्दू, ईसाई, मुसलमान, यहूदी नहीं चाहते कि हमारे बच्चे विकारों में खोखले हो जायें, माता-पिता व समाज की अवज्ञा करके विकारी और स्वार्थी जीवन जीकर तुच्छ हो जायें और बुढ़ापे में कराहते रहें। बच्चे माता-पिता व गुरुजन का सम्मान करेंगे तो उनके माता-पिता व गुरुजन के हृदय से विशेष मंगलकारी आशीर्वाद उभरेगा, जो देश के इन भावी कर्णधारों को ʹवेलेन्टाइन डेʹ जैसे विकारों से बचाकर गणेशजी की नाईं इंद्रिय-संयम व आत्मसामर्थ्य विकसित करने में मददरूप होगा।


🚩माता, पिता एवं गुरुजनों का आदर करना हमारी सनातन संस्कृति की शोभा है। माता-पिता इतना आग्रह नहीं रखते कि संतानें उनका सम्मान-पूजन करें परंतु बुद्धिमान, शिष्ट संतानें माता-पिता का आदर पूजन करके उनके शुभ संकल्पमय आशीर्वाद से लाभ उठाती हैं।


🚩14 विकसित और विकासशील देशों के बच्चों व युवाओं पर किये गये सर्वेक्षण में भारतीय बच्चे व युवक सबसे अधिक सुखी और स्नेही पाये गये। लंदन व न्यूयार्क में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि...

" इसका एक बड़ा कारण है- भारतीय लोगों का पारिवारिक स्नेह एवं निष्ठा!"

भारतीय युवाओं ने कहा, "उनकी जीवन में प्रसन्नता लाने तथा समस्याओं को सुलझाने में उनके माता-पिता का सर्वाधिक योगदान है।"


🚩भारत में माता-पिता हर प्रकार से अपने बच्चों का पोषण करते हैं और माता-पिताओं का पोषण संतजनों से होता है।

प्राणिमात्र के हितैषी और सभी को अपने सत्संगामृत( भगवत्प्रसाद ) से पोषित करने वाला हिंदू संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित "मातृ-पितृ पूजन दिवस" इस निष्कर्ष की पुष्टि करता है।


          स्रोत : संत श्री आशारामजी बापू के प्रवचन से


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