Friday, July 31, 2020

आधुनिक शिक्षा पद्धति में गुरुकुल शिक्षा पद्धति का समन्वय-एक नई पहल...

31 जुलाई 2020


🚩आधुनिक समय में प्राचीन गुरुकुलों की पुनःस्थापना कठिन तो है लेकिन साथ ही साथ प्राचीन गुरुकुलों के प्रयोजन आज के विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक भी महसूस होते हैं ताकि हमारे विद्यार्थी अपने जीवन को उन्नत आदर्शों से पूर्ण करें और स्वावलंबी बनें यानि आर्थिक, सामाजिक, नैतिक रूप से गुलाम न बनें, आत्मनिर्भर तो बनें ही, इसके साथ-साथ बाँटकर खाने के उदारता जैसे सद्गुणों से युक्त हों यानि अपने निजी जीवन के लिए किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के आधीन न हों।

🚩केंद्र सरकार ने बीते दिन लगभग 34 साल बाद भारत की शिक्षा नीति में बदलाव किया है। सुनने में आ रहा है कि उसमें काफी सुधार किया गया है ये एक अच्छी पहल है क्योंकि शिक्षा ही जीवन का निर्माण करती है इसलिए पूर्व में गुरुकुल में जैसी शिक्षा दी जाती थी उसमे से काफी कुछ लेकर शिक्षा व्यवस्था बनाई जाए तो भारत को विश्व गुरु बनने में देरी नही लगेगी।

🚩अपने आप में पूर्ण मानव का निर्माण हो और अन्त में जीवन के परम लक्ष्य के भी अधिकारी बनें, ऐसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए गुरुकुल शिक्षा पद्धति के सिद्धांतों का आधुनिक शिक्षा पद्धति के साथ समन्वय किया जाए तो कैसा ? आईये इस पर विचार करते हैं ।

🚩मूलभूत योजना:

🚩1) जो माता-पिता अपने होनेवाले बच्चे को गुरुकुल में प्रवेश करवाना चाहते हों, वे गर्भाधान से पहले ही अपना नाम व पता गुरुकुल गर्भ एवं शिशु संस्कार केन्द्र में पंजीकृत करवायें जहाँ भावी शिशु के माता-पिता को संबंधित आवश्यक जानकारियाँ दी जाएं यानि शिशु का इस जगत में कैसे स्वागत करें, आदि-आदि विषयों के बारें में समझाया जाए ताकि उनके घर में दिव्य एवं उत्तम आत्मा ही जन्म लें ।

🚩2) जब शिशु का जन्म हो तब गुरुकुल भावी विद्यार्थी निर्माण केन्द्र में अपना नाम पंजीकृत करवाएं जहाँ शिशु के माता-पिता को शिशु के लालन-पालन के विषय में प्रशिक्षण दिया जाए कि कैसे शिशु के स्वास्थ्य व संस्कार को मजबूत किया जाए आदि-आदि । तो जन्म से लेकर 7 वर्ष की आयु तक माता-पिता बच्चे को स्वस्थ व मजबूत बनायें ।

🚩3) 7 से 9 साल के बच्चों को पूर्व गुरुकुल प्रवेश प्रशिक्षण केन्द्रों में भेजा जाए जहाँ बच्चों को संस्कृत श्लोक उच्चारण, एक आसन पर स्थिर बैठने की एवं चित्त को एकाग्र करने के त्राटक, ध्यान आदि यौगिक प्रयोग करवाए जाएँ । यह कक्षा प्रातः 8 से 10 बजे तक की हो ।

🚩4) 9 वर्ष की उम्र में ‘उपनयन संस्कार’ करवाकर विद्यार्थी को ‘ब्रह्मचर्य आश्रम’ में प्रविष्ट करवाया जाए जिसमें विद्यार्थी को गायत्री मंत्र दिया जाता है, अगर संभव हो तो किसी समर्थ महापुरुष से ‘सारस्वत्य मंत्र’ की दीक्षा दिलवाई जाए ताकि विद्यार्थी की सुषुप्त शक्तियाँ जाग्रत हों ।

🚩5) उपनयन संस्कार के बाद विद्यार्थी को गुरुकुल में प्रवेश करवाया जाए जहाँ वह 12 वर्षों तक यानि 9 साल की उम्र से लेकर 21 साल की उम्र तक संपूर्ण ब्रह्मचर्य आश्रम के नियमों का पालने करते हुए विद्याध्ययन करे । इसका वर्णन गृहसूत्र में भी आता है कि जन्म से आठवें वर्ष में उपनयन होने के पश्चात् वेदों का अध्ययन आरम्भ करे ।

🚩6) विद्यार्थी को तिलक करना अत्यन्त आवश्यक है ताकि उसका तीसरा नेत्र विकसित हो । विशेषरूप से चंदन का तिलक उत्तम है जिसमें हल्दी एवं चुने का परिमित मात्र में मिश्रण हो जो उसके तीसरे नेत्र को विकसित करने में मदद करता है ।

🚩7) पद्मपुराण में आता है कि प्रतिदिन आयु और आरोग्य की सिद्धि के लिये तन्द्रा और आलस्य आदि का परित्याग करके अपने से बड़े पुरुषों को विधिपूर्वक प्रणाम करे और इस प्रकार गुरुजनों को नमस्कार करने का स्वभाव बना ले । नमस्कार करनेवाले ब्रह्मचारी को बदले में – ‘आयुष्मान भव सौम्य’ करके आशीर्वाद देना चाहिए, ऐसा विधान है । अपने दोनों हाथों को विपरीत दिशा में करके गुरु के चरणों का स्पर्श करना उचित है । शिष्य जिनसे लौकिक, वैदिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करता है, उन गुरुदेव को वह पहले प्रणाम करे ।

🚩8) गुरुकुलों की स्थापना शहरी वातावरण से दूर प्राकृतिक वातावरण में हो । गुरुकुल में विद्याध्ययन के लिए कक्षाओं के साथ-साथ प्रार्थना भवन, क्रीड़ा मैदान, पुस्तकालय/वाचनालय, भोजनशाला, गौशाला, औषधालय, विद्यार्थी निवास हेतु विशाल भवन एवं स्नानागार हों।

🚩9) कक्षा में विद्यार्थी जमीन पर आसन बिछाकर बैठे और बैठनेवाली डेस्क रहें क्योंकि जमीन पर अर्थिंग मिल जाएगी तो विद्यार्थी का आंतरिक विकास कुंठित हो जाएगा, इसलिए ।

🚩11) विद्यार्थी प्रातःसंध्या उपरांत सूर्य को अर्घ्य अवश्य दे ताकि विद्यार्थी कुशाग्र-बुद्धि, बलवान-आरोग्यवान बने ।

🚩12) विद्यार्थी शिखा रखे एवं शिखा बंधन का तरीका सीखे, जो वैश्विक सूक्ष्म ज्ञान तरंगों को झेल सकता है । शिखा में निम्न मंत्र कहते हुए तीन गांठ लगाने से मन संयत रहता है और मन में बुरे विचार नहीं आते ।
मन्त्र- ॐ विश्वानीदेव सवितुदुरीतानी परासुव यत् भद्रं तन्न आसुव ।

🚩13) विद्यार्थी हर तीन महीनों में मुंडन करवाएँ जिससे विद्यार्थी में सात्विकता बढ़ती है और धूप में जाते समय सिर खुला न रखे, टोपी आदि पहने अथवा वस्त्र से सिर ढ़के और पैरो में चप्पल पहने, नंगे पैर न धूमे ।

🚩14) विद्यार्थी कौपीन अथवा लंगोटधारी हो ।

🚩15) विद्यार्थी सख्त आसन पर शयन करे ताकि उसका शरीर फुर्तीला व स्वस्थ बना रहे और आलस्य उसे ना घेरे ।

🚩16) गुरुकुल की प्रत्येक छोटे-बड़े सेवाकार्य विद्यार्थियों द्वारा ही करवाए जाएँ जैसे कि,
(अ) गुरुकुल की सफाई ।
(आ) बाग-बगीचों आदि का निर्माण ।
(इ) भोजनशाला में सब्जी काटना, रोटी बनाना, भोजन परोसना आदि आवश्यक कार्य ।
(ई) गौ-शाला में सफाई, गौओं का चारा खिलाना आदि कार्य ।

🚩यानि जो भी जरुरी छोटे-बड़े सेवाकार्य हों वो विद्यार्थियों द्वारा ही संपन्न करवाए जाएँ ताकि विद्यार्थी मेहनती बनें एवं उनमें परस्पर भावयन्तु, स्वनिर्भरता, स्वावलंबन और सेवा-भाव जैसे दैवी गुणों का विकासत हो ।

🚩17) गुरुकुल में विद्यार्थी एक तपस्वी जीवन बिताए । अपना निजी कार्य खुद ही करे, व्यक्तिगत कार्यों जैसे कपड़े धोना आदि में दूसरों का सहारा न ले ।

🚩18) गुरुकुल में प्रथम पाँच वर्ष यानि 9 साल की उम्र से 13 साल की उम्र तक उसे भाषाज्ञान, व्याकरण, संख्याज्ञान एवं गणना आदि मूलभूत विद्या सिखाई जाए जिसमें संस्कृत भाषा सीखना अनिवार्य हो । यानि प्रथम वर्ष से ही संस्कृत सिखाना प्रारंभ करें व दूसरे साल संस्कृत के साथ हिन्दी, तीसरे साल संस्कृत, हिन्दी के साथ स्थानिक भाषा और चौथे साल संस्कृत, हिन्दी, स्थानिक भाषा के साथ अंग्रेजी सिखाना आरंभ करें । तब तक उन विद्यार्थियों का आचार्य एक ही हो और उन विद्यार्थीयों की संपूर्ण जिम्मेदारी उन आचार्य की ही रहेगी ।

🚩तदनन्तर यानि 14 साल की उम्र से 21 साल की उम्र तक एक विशिष्ट विद्या अथवा कला विद्यार्थी की रूचि व योग्यता के अनुसार सिखावें जैसे कि अर्थशास्त्र, भुगोल, आयुर्वेद, संगीत, गणनासंबंधी शास्त्र, कृषि विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र विद्या आदि और कोई प्रतिभाशाली विद्यार्थी हो तो एक से ज्यादा विषय में भी अपना गति कर सके । यहाँ पर जिस विषय का विद्यार्थी हो, उस विद्यार्थी की देखभाल की जिम्मेदारी उस विषय को सिखानेवाले आचार्य की होगी ।

🚩19) विद्यार्थियों की परीक्षा प्रायोगिक हो, न कि लिखित यानि विद्यार्थी अपने सीखी हुई विद्या का प्रायोगिक प्रदर्शन करें । ताकि विद्यार्थी गुरुकुल से बाहर आने के बाद सिखी हुई विद्या का सदुपयोग मानव समाज में कर सकें । यानि विद्यार्थी गुरुकुल से निकले तो किस ना किसी विषय का विशेषज्ञ होकर ही बाहर निकलें जिसका दर्जा आजकल के इंजीनीयरों एवं डॉक्टरों से भी कई गुना ऊँचा हो, जो अपनी खुद की एक समाज उपयोगी संस्था खड़ी कर, समाज व राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में भागीदार हो ।

🚩20) 21 वर्ष की आयु के बाद विद्यार्थी यदि गुरुकुल में आचार्य के तौर पर नियुक्ति पाना चाहे तो पा सकता है ।

🚩21) आचार्य वर्ग का निवास स्थान गुरुकुल में ही हो, यानि आचार्य अपने पूरे परिवार के साथ गुरुकुल में ही निवास करें, विद्यार्थियों को अपने पुत्रवत् पालन करें व अपने बच्चों को शिक्षार्थ योग्य आयु होने के पश्चात् अन्यत्र गुरुकुल में भेजे अथवा वह खुद शिक्षा न देकर दूसरे आचार्यों से ही शिक्षा दिलवाएँ ।

🚩22) और आचार्य की पत्नियों का गुरुकुल के विद्यार्थी माता के समान आदर करें और वे भी विद्यार्थियों के पालन पोषण पर अपने पुत्रों के समान सस्नेह करें एवं ध्यान दें अथवा तो गुरुपत्नियाँ अलग से कन्याओं के लिए नगर के पास में गुरुकुल चलाएँ जहाँ कन्याएँ आचार्याओं के देख-रेख में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए संयम व सदाचारपुर्वक विद्याध्यन करें ।

🚩23) गुरुकुल में आचार्यों को नियुक्त करने से पहले गुरुकुल आचार्य प्रशिक्षण केन्द्र में इच्छुक व्यक्ति अपना नाम दर्ज करवाएँ, जहाँ उन्हें गुरुकुल के नीति नियमों के बारे में अच्छी तरह से परिचित करवाया जाए । यह प्रशिक्षण कम से कम 6 माह तक का हो । परंतु यह विधान गुरुकुल में ही पढ़े हुए विद्यार्थियों के लिए लागू नहीं होता । यह तो केवल नवीन व्यक्तियों को ही लागू होता है ।

🚩24) गुरुकुल में पहले 5 वर्ष तक पढ़ानेवाले आचार्य की उम्र 35 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और 14 वर्ष से 21 वर्ष तक के विद्यार्थियों को पढ़ानेवाले 45 से 50 वर्ष से अधिक आयु के होने चाहिए ।

🚩25) गुरुकुल में विद्यार्थी पद्मपुराण के स्वर्गखण्ड में बताये गये ब्रह्मचारी शिष्यों के धर्म का यथासंभव पालन करें ।

🚩केन्द्र सरकार चाहे तो यह सभी नियम विद्यालयों में पढ़ते समय करवाये जा सकते है उपरोक्त नियमों का पालन किया जाए तो विद्यार्थी पूर्ण बनेंगे तब वो उन्नति, वो विकास केवल एक विद्यार्थी का ही नहीं होगा बल्कि पूरे राष्ट्र का होगा । उस भारत देश की तस्वीर कुछ अलग ही निराली होगी। हमारा भारत देश सारे विश्व का मार्गदर्शक सिद्ध होगा ।

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, July 30, 2020

फ्रांसीसी परिवार भगवान शिव के हो गए भक्त, बोले अब भारत से नही जाना है वापिस।

30 जुलाई 2020

🚩सत्य सनातन धर्म की यही वह सुंदरता है की जो इसको जानता है वह इसी का हो जाता है। इसीलिए इस पद्धति को मजहब नहीं बल्कि धर्म कहा गया है। हिंदू धर्म को और इसके देवी देवताओं को जिसने भी जाना वह इसी का हो गया और उसने इस को आत्मसात कर लिया। जरा विचार करिए कि दूर देश यूरोप के एक परिवार को लॉकडाउन में जब फंसना पड़ा तब महादेव शिव के 1 मंदिर के कपाट उनके लिए खुल गए और धीरे-धीरे महादेव का प्रसाद और भजन कीर्तन उस फ्रांसीसी परिवार का एक अंग बन गया। आज वही फ्रांसीसी परिवार सत्य सनातन के रंग में ऐसा रंग गया है कि वह वापस अपने देश जाना ही नहीं चाहता है और भारत सरकार से यह निवेदन कर रहा है कि उसे उस मंदिर में रहने दिया जाए जहां उनके महादेव शिव का वास है।

🚩निश्चित तौर पर कुछ अन्य मत मजहबो के इबादत गाहों की एक सीमा होती है परंतु हिंदुत्व सबके लिए समान है, इसको उस फ्रांसीसी परिवार से बेहतर कोई और नहीं जानता होगा.. एक फ्रांसीसी परिवार भारत घुमने आया था इसी बीच कोरोना के कारण पूरे देश मे लॉक डाउन लगा दिया गया। जिसके बाद यह परिवार यूपी के महराजगंज के एक गांव में फंस गया पर अब यह गांव इस परिवार को इतना भा गया कि उन्होंने वीजा बढाने की अर्जी लगा दी। यह फ्रांसीसी परिवार लॉकडाउन के वक्त से कोल्हुआ उर्फ सिंहोरवां के शिव मंदिर परिसर में रुका था। फ्रांसीसी परिवार सोमवार को दिल्ली स्थित फ्रांस के दूतावास के लिए रवाना हो गया। फ्रांसीसी परिवार के सदस्यों की वीजा अवधि खत्म होने को है और ऑनलाइन अवधि बढ़ाने की प्रक्रिया में पेंडिंग बता रहा है।

🚩जरूरी औपचारिकताएं पूर्ण होने के बाद परिवार के फिर गांव लौटने की संभावना है। फ्रांस के टूलूज शहर निवासी पैट्रीस पैलेरस, उनकी पत्नी वर्गिनी पैलेरस, दो बेटियां ओफिली पैलेरस व लोला पैलेरस और बेटा टाम पैलेरस अपने निजी वाहन से दिल्ली रवाना हो गए। ये लोग 1 मार्च 2020 को पाकिस्तान से बाघा बार्डर होते हुए भारत में आए थे। लॉकडाउन में यहां फंस गए। 22 मार्च से मंदिर परिसर में अपना आशियाना बना लिया। थानाध्यक्ष पुरंदरपुर शाह ने बताया कि फ्रांसीसी परिवार ने वीजा अवधि संबंधी दस्तावेज पूर्ण कराने के लिए दिल्ली स्थित फ्रांस के दूतावास जाने की सूचना दी है। स्त्रोत : सुदर्शन न्यूज

🚩भगवान शंकर के चरित्र बड़े ही उदात्त एवं अनुकम्पापूर्ण हैं। वे ज्ञान, वैराग्य तथा साधुता के परम आदर्श हैं। आप रुद्ररूप हैं तो भोलानाथ भी हैं। दुष्ट दैत्यों के संहार में काल रूप हैं तो दीन दुखियों की सहायता करने में दयालुता के समुद्र हैं। जिसने आपको प्रसन्न कर लिया उसको मनमाना वरदान मिला। रावण को अटूट बल बल दिया। भस्मासुर को सबको भस्म करने की शक्ति दी। यदि भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण करके सामने न आते तो स्वयं भोलानाथ ही संकटग्रस्त हो जाते। आपकी दया का कोई पार नहीं है। मार्कण्डेय जी को अपना कर यमदूतों को भगा दिया। आपका त्याग अनुपम है। अन्य सभी देवता समुद्र मंथन से निकले हुए लक्ष्मी, कामधेनु, कल्पवृक्ष और अमृत ले गये, आप अपने भाग का हलाहल पान करके संसार की रक्षा के लिए नीलकण्ठ बन गये।

🚩सनातन हिंदू संस्कृति इनती महान है कि इसको जिसने भी जाना है वे उसीका हो जाता है क्योंकि विश्व मे भारतीय संस्कृति जैसी महान, उदार संस्कृति कहि नही है, भारतीय संस्कृति में ही विश्व कल्याण की भावना है, सभी को स्वस्थ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला देती है, भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन जीकर मानव से महेश्वर की यात्रा कर सकता है, अतः आज से ही भारतीय संस्कृति के अनुसार अपना जीवन जीना शुरू करें।

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, July 29, 2020

टीपू सुल्तान का 7वीं के चैप्टर से बाहर किया, कोंग्रेस विरोध कर रही है,जानिए टीपू का इतिहास।

29 जुलाई 2020

🚩कर्नाटक सरकार ने कक्षा 7 के छात्र-छात्राओं के इतिहास के सिलेबस में बदलाव करते हुए इसमें से  मैसूर के शासक टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली पर आधारित चेप्टर को हटा दिया है। सरकार ने बच्चों का अकादमिक सिलेबस कम करने के मद्देनजर ये निर्णय लिया है क्योंकि कोरोना वायरस संक्रमण आपदा के बीच क्लासेज नहीं चल रही हैं।

🚩इस फैसले ने कॉन्ग्रेस को नाराज कर दिया है और उसने इसका विरोध किया है। कॉन्ग्रेस का कहना है कि भाजपा सांप्रदायिक राजनीति खेल रही है और इसी क्रम में उसने टीपू सुल्तान पर आधारित चैप्टर को बच्चों के सिलेब्स से हटा दिया है। राज्य की विपक्षी पार्टी ने कहा कि भाजपा अब शिक्षा में सांप्रदायिकता घुसा रही है।

🚩आप टिपू सुल्तान का क्रूर इतिहास जानिए

🚩बदरुज्जमा खान को 19 जनवरी 1790 को लिखे टीपू के पत्र में लिखा है, ‘तुम्हें मालूम नहीं कि हाल ही में मालाबार में मैंने गजब की जीत हासिल की और चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। मैंने तय कर लिया है कि उस मरदूद ‘रामन नायर’ (त्रावनकोर के राजा, जो धर्मराज के नाम से प्रसिद्ध थे) के खिलाफ जल्द हमला बोलूंगा, चूंकि उसे और उस की प्रजा को मुसलमान बनाने के ख्याल से मैं बेहद खुश हूं, इसलिए मैंने अभी श्रीरंगपट्टनम वापस जाने का विचार खुशी-खुशी छोड़ दिया है।’

🚩दक्षिण भारत के असंख्य लोगों से यह बात छिपी नहीं है कि टीपू का शासन हिन्दू जनता के विनाश और इस्लाम के प्रसार के अलावा कुछ न था यहां तक कि अंग्रेजों से उसके द्वारा किए युद्ध अपना राज और अस्तित्व बचाने के लिए थे । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने फ्रांस को यहां आक्रमण करने का न्यौता दिया तथा भारतीय जनता को रौंद डाला।

🚩टीपू ने केवल फ्रांस ही नहीं, ईरान, अफगानिस्तान को भी हमले के लिए बुलाया था। अत: अंग्रेजों से टीपू की लड़ाई को ‘देशभक्ति’ कहना दुष्टता, धूर्तता या घोर अज्ञान है। 

🚩हिन्दू जनता पर टीपू की अवर्णनीय क्रूरता के विवरण असंख्य स्रोतों से प्रमाणित हैं। पुर्तगाली यात्री बार्थोलोमियो ने सन् 1776 से 1789 के बीच के अपने प्रत्यक्षदर्शी वर्णन लिखे हैं। उसकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘वोएज टू ईस्ट इंडीज’ पहली बार सन् 1800 में ही प्रकाशित हुई थी। अभी भी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी प्रति उपलब्ध है। 

🚩टीपू और फ्रांसीसियों के संयुक्त सैनिक अभियान का वर्णन करते हुए बार्थोलोमियो ने लिखा, ‘टीपू एक हाथी पर था, जिस के पीछे 30,000 सैनिक थे। कालीकट में अधिकांश पुरुषों और स्त्रियों को फांसी पर लटका दिया गया । पहले स्त्रियों को लटकाया गया तथा उनके गले से उनके बच्चे बांध दिए गए थे। उस बर्बर टीपू सुल्तान ने नंगे शरीर हिन्दुओं और ईसाइयों को हाथी के पैरों से बांध दिया और हाथियों को तब तक इधर-उधर चलाता रहा जब तक उनके शरीरों के टुकड़े-टुकड़े नहीं हो गए। मंदिरों और चर्चों को गंदा और तहस-नहस करके आग लगाकर खत्म कर दिया गया।’

🚩भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार सरदार के. एम. पणिक्कर ने ‘भाषा पोषिणी’ (अगस्त, 1923) में टीपू का एक पत्र उद्धृत किया है। सैयद अब्दुल दुलाई को 18 जनवरी 1790 को लिखे पत्र में टीपू के शब्द हैं, ‘नबी मुहम्मद और अल्लाह के फजल से कालीकट के लगभग सभी हिन्दू इस्लाम में ले आए गए। महज कोचीन राज्य की सीमा पर कुछ अभी भी बच गए हैं। उन्हें भी जल्द मुसलमान बना देने का मेरा पक्का इरादा है। उसी इरादे से यह मेरा जिहाद है।’

🚩मेजर अलेक्स डिरोम ने टीपू के खिलाफ मैसूर की लड़ाई में स्वयं हिस्सा लिया था। उन्होंने लंदन में 1793 में ही अपनी पुस्तक ‘थर्ड मैसूर वॉर’ प्रकाशित की। उस में टीपू की शाही मुहर का भी विवरण है, जिस में वह अपने को ‘सच्चे मजहब का संदेशवाहक’ और ‘सच्चाई का हुक्म लाने वाला’ घोषित करता था। 

🚩ऐसे प्रामाणिक विवरणों की संख्या अंतहीन है। टीपू के समय से ही पर्याप्त लिखित सामग्री मौजूद है, जो दिखाती है कि लड़कपन से टीपू का मुख्य लक्ष्य हिन्दू धर्म का नाश तथा हिन्दुओं को इस्लाम में लाना ही रहा था।

🚩सन् 1802 में लिखित मीर हुसैन अली किरमानी की पुस्तक ‘निशाने हैदरी’ में इस का विस्तार से विवरण है. इस के अनुसार, टीपू ने ही श्रीरंगपट्टनम की जामा मस्जिद (मस्जिदे आला) उसी जगह पहले स्थित एक शिव मंदिर को तोड़कर बनवायी थी।

🚩उस ने अपने कब्जे में आयी सभी जगहों के नाम बदल कर भी उन का इस्लामीकरण कर दिया था जैसे, कालीकट को इस्लामाबाद, मंगलापुरी (मैंगलोर) को जलालाबाद, मैसूर को नजाराबाद, धारवाड़ को कुरशैद-सवाद, रत्नागिरि को मुस्तफाबाद, डिंडिगुल को खलीकाबाद, कन्वापुरम को कुसानाबाद, वेपुर को सुल्तानपटनम आदि। टीपू के मरने के बाद इन सब को फिर अपने नामों में पुनर्स्थापित किया गया। 

🚩'केरल मुस्लिम चरित्रम्’ (1951) के ख्याति-प्राप्त इतिहासकार सैयद पी़ ए़ मुहम्मद के अनुसार, केरल में टीपू ने जो किया वह भारतीय इतिहास में चंगेज खान और तैमूर लंग के कारनामों से तुलनीय है।

🚩इतिहासकार राजा राज वर्मा ने अपने ‘केरल साहित्य चरितम्’ (1968) में लिखा है, ‘टीपू के हमलों में नष्ट किए गए मंदिरों की संख्या गिनती से बाहर है। मंदिरों को आग लगाना, देव-प्रतिमाओं को तोड़ना और गायों का सामूहिक संहार करना उस का और उस की सेना का शौक था. तलिप्परमपु और त्रिचम्बरम मंदिरों के विनाश के स्मरण से आज भी हृदय में पीड़ा होती है।’

🚩उक्त पुस्तकों के अलावा विलियम लोगान की ‘मालाबार मैनुअल’ (1887), विलियम किर्कपैट्रिक की ‘सेलेक्टिड लेटर्स ऑफ़ टीपू सुल्तान’ (1811), मैसूर में जन्मे ब्रिटिश इतिहासकार और शिलालेख-विशेषज्ञ बेंजामिन लेविस राइस की ‘मैसूर गजेटियर’ (1897), डॉ़ आई़ एम़ मुथन्ना की ‘टीपू सुल्तान एक्सरेड’(1980) आदि अनगिनत प्रामाणिक पुस्तकें हैं।

🚩संक्षेप में पूरी जानकारी के लिए बॉम्बे मलयाली समाज द्वारा प्रकाशित ‘Tipu Sultan: Villain or Hero?' (वॉयस ऑफ़ इंडिया, दिल्ली, 1993) देखी जा सकती है। सभी के विवरण पढ़कर कोई संदेह नहीं रहता कि यदि एक सौ जनरल डायर मिला दिए जाएं, तब भी निरीह हिन्दुओं को बर्बरतापूर्वक मारने में टीपू का पलड़ा भारी रहेगा। यह तो केवल कत्लेआम की बात हुई।

🚩केरल और कर्नाटक में मुस्लिम आबादी की वर्तमान संख्या का सब से बड़ा मूल कारण टीपू था। हिन्दुओं के समक्ष उस का दिया हुआ कुख्यात विकल्प था, ‘तलवार या टोपी?’ अर्थात, ‘इस्लामी टोपी पहनकर मुसलमान बन जाओ, फिर गौमांस खाओ, वरना तलवार की भेंट चढ़ो!’ टीपू के इस कौल, ‘स्वॉर्ड ऑर कैप’ का उल्लेख कई किताबों में मिलता है। बहरहाल, उसी टीपू को फिल्म अभिनेता संजय खान ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया (18 नवंबर 2015) को दिए साक्षात्कार में ‘देशभक्त’ बताया। साथ ही, उस के द्वारा हिन्दुओं का कत्ल करने, उनका उत्पीड़न, कन्वर्जन कराने आदि को ‘मिथ’ यानी कोरी बातें करार दिया है ।

🚩हमारे देश में इतिहास का मिथ्याकरण और हिन्दू-विरोधी राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । साथ ही यह भी कि देश का वामपंथी मीडिया कट्टर हिन्दू-विद्वेष से ग्रस्त है। इतिहास का यह घोर मिथ्याकरण ही, हमारे देश में सेकुलरवाद, उदारवाद के रूप में बौद्धिक रूप से प्रतिष्ठित है । इससे तनिक भी असहमति रखने को ही ‘असहिष्णुता’ बताकर सीधे-सीधे संपूर्ण हिन्दू जनता को अपमानित किया जाता है ।

🚩लाखों हिंदुओ का कत्ल करने वाला क्रूर टिपू सुल्तान को अच्छा बताकर उसको साहित्य में पढ़ाना ये देशवासियों का अपमान है, इसको तुरंत पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए।

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ