Friday, August 23, 2024

भवानी अष्टकम के बारे में जानकारी

 24 August 2024

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🚩 *भवानी अष्टकम के बारे में जानकारी:*



🚩भवानी अष्टकम एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो आद्याशक्ति माँ भवानी को समर्पित है। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, जो महान भारतीय संत और दार्शनिक थे। भवानी अष्टकम में आठ श्लोक होते है, जिनमें शंकराचार्य ने माँ भवानी से अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त किया है। 


🚩 *भवानी अष्टकम की रचना कैसे हुई:*


🚩आदिगुरु शंकराचार्य एक बार शाक्तमत का खंडन करने के लिए कश्मीर गए थे। लेकिन, कश्मीर में उनकी तबीयत खराब हो गई और उनके शरीर में कोई ताकत नहीं रही। वे एक पेड़ के पास लेटे हुए थे, तभी वहां से एक ग्वालिन सिर पर दही का बर्तन लेकर गुजरी। शंकराचार्य का पेट जल रहा था और वे बहुत प्यासे थे। उन्होंने ग्वालिन से दही मांगने के लिए उसे अपने पास आने का इशारा किया।


🚩ग्वालिन ने थोड़ी दूर से कहा कि आप यहां दही लेने आओ। आचार्य ने धीरे से कहा, "मुझमें इतनी दूर आने की शक्ति नहीं है।" इस पर ग्वालिन हंसते हुए बोली, "शक्ति के बिना कोई एक कदम भी नहीं उठाता और आप शक्ति का खंडन करने निकले है ?"

 

🚩ग्वालिन की बात सुनते ही आचार्य की आंखें खुल गईं। वे समझ गए कि यह ग्वालिन कोई साधारण महिला नहीं, बल्कि भगवती स्वयं है ,जो उन्हें शक्ति के महत्त्व का एहसास कराने आई है। शंकराचार्य के मन में शिव और शक्ति के बीच का जो अंतर था, वह मिट गया और उन्होंने शक्ति के सामने समर्पण कर दिया। उनके मुख से निकला, "गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।"


🚩समर्पण का यह स्तवन "भवानी अष्टकम" के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो अद्भुत है। शिव स्थिर शक्ति है और भवानी उनमें गतिशील शक्ति है। दोनों अलग-अलग है , जैसे दूध और उसकी सफेदी। नेत्रों पर अज्ञान का जो आखिरी पर्दा था, वह भी माँ ने ही हटाया था, इसलिए शंकर ने कहा, "माँ, मैं कुछ नहीं जानता।"


🚩 *भवानी अष्टकम के श्लोक:*


1. *न तातो न माता न बन्धुर्न दाता  

  न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।  

  न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


2. *भवाब्धावपारे महादुःखभीरु  

  प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।  

  कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


3. *न जानामि दानं न च ध्यानयोगं  

  न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।  

  न जानामि पूजां न च न्यासयोगं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


4. *न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं  

  न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।  

  न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


5. *कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः  

  कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।  

  कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


6. *प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं  

  दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।  

  न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


7. *विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे  

  जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।  

  अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


8. *अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो  

  महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।  

  विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


🚩 *भवानी अष्टकम की विशेषताएँ:*


🚩1. *भक्ति और समर्पण का भाव:* इस स्तोत्र में शंकराचार्य ने माँ भवानी के प्रति अपनी भक्ति को बहुत ही मार्मिक और विनम्र शब्दों में व्यक्त किया है। उन्होंने इस स्तोत्र के माध्यम से बताया है कि संसार के सारे बंधनों और समस्याओं से मुक्ति केवल माँ भवानी की कृपा से ही संभव है।


🚩2. *माँ भवानी की महिमा का वर्णन:* भवानी अष्टकम के श्लोकों में देवी भवानी की महिमा का सुंदर और प्रभावशाली वर्णन किया गया है। इसमें माँ को समस्त सृष्टि की जननी, पालनकर्ता और संरक्षक के रूप में पूजा जाता है।


🚩3. *आध्यात्मिक मार्गदर्शन:* यह स्तोत्र साधकों को आत्मसमर्पण और शरणागति का मार्ग दिखाता है। शंकराचार्य ने अपने आप को असहाय और अज्ञानी बताते हुए माँ भवानी से प्रार्थना की है कि वे उनकी रक्षा करें और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ाएं।


🚩4. *साधकों के लिए प्रेरणा:* भवानी अष्टकम साधकों के लिए एक प्रेरणादायक स्तोत्र है, जो उन्हें भक्ति और विश्वास के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। 


🚩5. *पाठ का महत्व:* इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक को मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और माँ भवानी की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयों और संकटों से रक्षा करने में भी सहायक माना जाता है।


🚩भवानी अष्टकम के श्लोक सरल और संगीतमय होते है, जिससे भक्तों के मन में माँ भवानी के प्रति श्रद्धा और भक्ति की भावना और गहरी होती है।



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