मुम्बई कत्लखाने को आधुनिकीकरण करने के लिए सरकार ने किया 1,066 करोड़ निवेश!!
मुम्बई स्थित "देवनार" देश के सबसे बड़े कत्लखानों में से एक है ।
भूमि डूब, पुअर मीट चिलिंग और अवैज्ञानिक ढंग से ऐनिमल वेस्ट निपटान को देखते हुए पर्यावरणविद् और PETA संस्था ने आपत्ति जताई है।
BMC (बृहन्मुंबई महानगर पालिका ) ने देवनार को नया रूप देने के लिए 1,066 करोड़ निवेश करेगी ।
Azaad Bharat 1,066 Crore Investment in the modernization of Slaughter Houses |
BMC अधिकारी ने कहा है कि "नगर निकाय के नेताओं के संयोग से दोनार को इंटर्नेशनल स्टैण्डर्ड से लैस से किया जायेगा और नगरपालिका ने 1,066 करोड़ की मंजूरी दे दी है। इसके सुधार का उत्तरदायित्व BMC ने अपने हाथों में लिया है।
दोनार को 1971 में स्थापित किया गया था और यह आधे शहर के मीट की मांग की पूर्ति करता है।
इसे सोलर एनर्जी यूटिलाइजेशन, वर्षा जल संचयन, हाई एन्ड मशीनरी के द्वारा जानवरों को रैंप द्वारा लोड और अनलोड करने जैसी सुविधाएं दी जायँगी । नगर-निगम के अधिकारियों को डिस्प्नेसरी और ऑफिसर्स को रहने के लिए जगह अलॉट की जायेगी।
इसके साथ साथ बकर-ईद जैसे त्याहारों पर बाजार लगाये जायेंगे तथा खरीददारों के लिए रेस्ट रूम भी होंगे ।
ऐनिमल वेस्ट का निपटान बेहतर तरीके से किया जायेगा, इस कत्लखाने में 6000 जानवरों को एक यूनिट में निपटाने की क्षमता होंगी।
BMC अधिकारी ने कहा है इसका रूपांतरण कुछ भागों में किया जायेगा जिससे खरीददारों को कोई दिक्कत न आये ।
अब एक सवाल उठता है कि पहले की सरकार तो निर्दोष पशु और गौ-हत्या करने में मानती थी पर वर्तमान सरकार जो गौ-हत्या बन्द करवाने और हिंदुत्ववादी के नाम से चुनकर आई है ।
वो भी आज कत्लखानों में पैसा निवेश करती है लेकिन गौ-शाला के लिए एक रुपया भी निवेश क्यों नही होता है???
भाजपा सरकार द्वारा मुंबई देवनार कत्लखाने को और भी क्रियान्वित करने के लिये टेंडर निकाला है जिसमें हररोज लगभग 20 हजार गोवंश का वध किया जायेगा ।
जिन चमड़ा कम्पनियों को गेंद, पर्स, जूते आदि सामान बनाने के लिये जो चमड़ा चाहिये वो अधिकतर गोमाता के चमड़े का प्रयोग किया जाता है ।
वर्तमान सरकार आने के बाद पहला बजट पास किया गया जिसमें कत्लखाने खोलने के लिए 15 करोड़ सब्सिडी प्रदान की जाती है ।
2014 में 4.8 अरब डॉलर का बीफ एक्सपोर्ट हुआ था । 2015 में भी भारत, 2.4 मिलियन टन बीफ एक्सपोर्ट कर दुनिया में नंबर वन बन गया।
गाय के नाम पर वोट पाने वाली सरकार गाय के लिए क्या कर ही है ये उपर्युक्त आँकड़े से स्पष्ट है ।
भारत में प्रतिदिन लगभग 50 हजार से अधिक गायें बड़ी बेरहमी से काटी जा रही हैं । 1947 में गोवंश की जहाँ 60 नस्लें थी,वहीं आज उनकी संख्या घटकर 33 ही रह गयी है । हमारी अर्थव्यवस्था का आधार गाय है और जब तक यह बात हमारी समझ में नहीं आयेगी तबतक भारत की गरीबी मिटनेवाली नहीं है । गोमांस विक्रय जैसे जघन्य पाप के द्वारा दरिद्रता हटेगी नहीं बल्कि बढ़ती चली जायेगी ।
गौवध को रोकें और गोपालन कर गोमूत्ररूपी विषरहित कीटनाशक तथा गौ दुग्ध का प्रयोग करें । गोवंश का संवर्धन कर देश को मजबूत करें ।
गौमाता हमारे लिए कितनी उपयोगी है। लिंक पर पढ़े
देश का दुर्भाग्य है कि कसाईघरों के आधुनिकीकरण पर हजारों करोड़ खर्च किये जा रहे हैं, मगर गायों के संरक्षण के वास्ते सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं।
कसाईघरों के मालिकों को देखो तो बड़े ठाठ से जीते हैं और बड़े-बड़े महलों में रहते हैं वहीं दूसरी ओर गौ-पालक को देखो तो गरीब और छोटे घरों में रहते है आखिर ऐसा क्यों???
क्योंकि सरकार गौ-शालाओं में पैसा निवेश करने की जगह पर कसाईघरों में कर रही है ।
अभी जनता की एक ही मांग है कि सरकार जल्द से जल्द कत्लखानों का बजट बंद करके गौ-शालाओं में बजट को निवेश करें जिससे हमारी पवित्र गौ-माता की रक्षा हो और फिर से भारत विश्वगुरु पद पर आसीन हो ।
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