28 अप्रैल 2020

 आपदा प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित कारणों का परिणाम है जो जान और माल की गंभीर क्षति करके अचानक सामान्य जीवन को उस सीमा तक अस्त व्यस्त करता है, जिसका सामना करने के लिए उपलब्ध सामाजिक तथा आर्थिक संरक्षण कार्यविधियां अपर्याप्त होती हैं अर्थात आशंकित विपत्ति का वास्तव में घटित होना आपदा है। इसमे एक साथ हजारों लोगों की जीव हानि होती है तथा अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की भी बडी मात्रा मे हानि होती है।
आपदा प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित कारणों का परिणाम है जो जान और माल की गंभीर क्षति करके अचानक सामान्य जीवन को उस सीमा तक अस्त व्यस्त करता है, जिसका सामना करने के लिए उपलब्ध सामाजिक तथा आर्थिक संरक्षण कार्यविधियां अपर्याप्त होती हैं अर्थात आशंकित विपत्ति का वास्तव में घटित होना आपदा है। इसमे एक साथ हजारों लोगों की जीव हानि होती है तथा अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की भी बडी मात्रा मे हानि होती है। 
 आपदा ‘संतुलन’ का बिगडना है। आपदा आंतरिक और बाहरी कारकों के प्रभाव से उत्पन्न होती है, जो संयुक्त होकर घटना को भारी विनाशकारी घटना के रूप में परिवर्तित करती है ।
आपदा ‘संतुलन’ का बिगडना है। आपदा आंतरिक और बाहरी कारकों के प्रभाव से उत्पन्न होती है, जो संयुक्त होकर घटना को भारी विनाशकारी घटना के रूप में परिवर्तित करती है । 
 आपदा का अंग्रेज़ी शब्द 'Disaster’ फ्रांसीसी शब्द है जो Desastre’ से आया है। यह दो शब्दों ‘Des’ एवं ‘Astre’ से बना है जिसका अर्थ है ‘खराब तारा’।
आपदा का अंग्रेज़ी शब्द 'Disaster’ फ्रांसीसी शब्द है जो Desastre’ से आया है। यह दो शब्दों ‘Des’ एवं ‘Astre’ से बना है जिसका अर्थ है ‘खराब तारा’। 
▪️१. आपातकाल का अर्थ ? आपदा क्या है ?
▪️अ. आपत् + काल = आपत्काल ।
 संस्कृतमें ‘आपत्’ का अर्थ है, ‘संकट’। अतः, ‘आपातकाल’ का अर्थ हुआ, ‘संकटकाल’ । इसे आपदा भी कहा जाता है ।
संस्कृतमें ‘आपत्’ का अर्थ है, ‘संकट’। अतः, ‘आपातकाल’ का अर्थ हुआ, ‘संकटकाल’ । इसे आपदा भी कहा जाता है । 
आपदाओं का वर्गीकरण
 उत्पत्ति के अनुसार आपदाएं प्राकृतिक और मानव निर्मित होती हैं ।
उत्पत्ति के अनुसार आपदाएं प्राकृतिक और मानव निर्मित होती हैं । 
प्राकृतिक आपदा
 प्राकृतिक आपदाओं को निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों के रूप में देखा जा सकता है –
प्राकृतिक आपदाओं को निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों के रूप में देखा जा सकता है – 
▪️१. वायुजनित आपदा : तूफान, चक्रवाती पवन, चक्रवात, समुद्री तूफानी लहरें
▪️२. जलजनित आपदा : बाढ, बादल का फटना, सूखा, सुनामी
▪️३. धरती जनित आपदा  : भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, हिमस्खलन
▪️४. संक्रामक रोग : प्लेग, डेंगु, चिकनगुनिया, स्वाईन फ्लू, मलेरिया आदि.
 इसमे कई बार एक आपदा के कारण भी दूसरी आपदा का प्रारंभ होता है, उदा. सागरतल मे भूकंप होने से सुनामी आने की संभावना रहती है, तथा सुनामी या बाढ के उपरांत महामारी आना संभव अधिक होता है ।
इसमे कई बार एक आपदा के कारण भी दूसरी आपदा का प्रारंभ होता है, उदा. सागरतल मे भूकंप होने से सुनामी आने की संभावना रहती है, तथा सुनामी या बाढ के उपरांत महामारी आना संभव अधिक होता है । 
 प्राकृतिक आपदा मे मानवनिर्मित कारणों से संहारकता का प्रमाण अधिक होता है, उदा. उत्तराखंड में गंगानदी के जलमार्ग मे मानवनिर्मित घर तथा होटलों के कारण हानि अधिकमात्रा में हुई।
प्राकृतिक आपदा मे मानवनिर्मित कारणों से संहारकता का प्रमाण अधिक होता है, उदा. उत्तराखंड में गंगानदी के जलमार्ग मे मानवनिर्मित घर तथा होटलों के कारण हानि अधिकमात्रा में हुई। 
मानवनिर्मित आपदा
मानव निर्मित आपदाओं के अंतर्गत निम्नलिखित प्रकारों को देखा जा सकता है –
▪️१. औद्योगिक दुर्घटना
▪️२. पर्यावरणीय ह्रास,
▪️३. विभिन्न युद्ध, जिहाद के नाम पर आतंकी गतिविधियां
▪️४. जैविक युद्ध के लिए अनुकूल वातावरण में विभिन्न जीवाणु और विषाणुओं के साथ साथ घातक कीटों का संवर्धन कर उन्हें डिब्बो में बंद कर शत्रु कैम्पों पर विमान से छोड दिया जाता है जो अंततः पर्याप्त क्षेत्र में फैलकर महामारी का रूप ले लेता है ।
▪️५. रसायन युद्ध के तहत विषैली गैसों, बम और क्लस्टर बम को शत्रु कैम्पों पर छोडा जाता है ।
▪️६. कंपनियों के संयंत्रों में लापरवाही या दोषपूर्ण रख-रखाव के कारण होनेवाली आपदाएं । इन्हें पर्यावरणीय आपदा भी कहा जाता है, जैसे – भोपाल गैस आपदा, चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना, फुकुशिमा परमाणु आपदा आदि प्रमुख हैं ।
▪️७. जंगली आग तथा शहरी आग
▪️८. हवाई, सडक और रेल दुर्घटनाएं
▪️९. बडे भवनों का ढह जाना
आपात्काल से होनेवाली बडी हानि
 आपात्काल से होनेवाली हानि की कल्पना के लिए कुछ उदाहरण अभी हम देख सकते हैं ।
आपात्काल से होनेवाली हानि की कल्पना के लिए कुछ उदाहरण अभी हम देख सकते हैं । 
 २००४ मे हिंद महासागर में ९.३ परिमाण का तीव्र भूकंप आया था । यह आजतक के इतिहास का दूसरा सबसे बडा भूकंप है । इस भूकंप से आयी सुनामी के कारण २,२९,००० लोगों की मृत्यु हुई थी ।
२००४ मे हिंद महासागर में ९.३ परिमाण का तीव्र भूकंप आया था । यह आजतक के इतिहास का दूसरा सबसे बडा भूकंप है । इस भूकंप से आयी सुनामी के कारण २,२९,००० लोगों की मृत्यु हुई थी । 
 १९३१ में ‘हुआंग हे’ (पीली नदी) मे आई बाढ के कारण ४,२२,००० से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी ।
१९३१ में ‘हुआंग हे’ (पीली नदी) मे आई बाढ के कारण ४,२२,००० से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी । 
 १९०० में आए सूखे के कारण भारत मे २,५०,००० से ३,२५,००० लोगों की मृत्यु हुई थी ।
१९०० में आए सूखे के कारण भारत मे २,५०,००० से ३,२५,००० लोगों की मृत्यु हुई थी । 
 १९१८ के स्पैनिश फ्लू के विश्वमारी के कारण दुनिया मे ५ करोड लोग मरने का अनुमान है ।
१९१८ के स्पैनिश फ्लू के विश्वमारी के कारण दुनिया मे ५ करोड लोग मरने का अनुमान है । 
 १९५७ के एशियन फ्लू के विश्वमारी के कारण दुनिया मे १० लाख लोग मरने का अनुमान है ।
१९५७ के एशियन फ्लू के विश्वमारी के कारण दुनिया मे १० लाख लोग मरने का अनुमान है । 
वर्तमानकाल की आपदाएं
 ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ के कारण विश्व मे सागर के जलस्तर का बढना
‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ के कारण विश्व मे सागर के जलस्तर का बढना 
 आसान शब्दों में समझें तो ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वालें परिवर्तन’ । पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि (जिसे १०० सालों के औसत तापमान पर १० फारेनहाईट आँका गया है।) के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखंडों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जंतु जगत पर प्रभावों के रूप के सामने आ सकते हैं।
आसान शब्दों में समझें तो ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वालें परिवर्तन’ । पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि (जिसे १०० सालों के औसत तापमान पर १० फारेनहाईट आँका गया है।) के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखंडों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जंतु जगत पर प्रभावों के रूप के सामने आ सकते हैं। 
 ग्रीन हाउस गैस वो गैस होती है जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर यहां का तापमान बढाने में कारक बनती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो २१वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान ३ डिग्री से ८ डिग्री सेल्सियस तक बढ सकता है । अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे । दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल सकती हैं, इससे समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर बढ जाएगा । इससे दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो सकते हैं, भारी तबाही मच सकती है । यह तबाही किसी विश्वयुद्ध या किसी ‘ऐस्टेरॉइड’ के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी । हमारे ग्रह पृथ्वी के लिये भी यह स्थिति बहुत हानिकारक होगी ।
ग्रीन हाउस गैस वो गैस होती है जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर यहां का तापमान बढाने में कारक बनती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो २१वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान ३ डिग्री से ८ डिग्री सेल्सियस तक बढ सकता है । अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे । दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल सकती हैं, इससे समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर बढ जाएगा । इससे दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो सकते हैं, भारी तबाही मच सकती है । यह तबाही किसी विश्वयुद्ध या किसी ‘ऐस्टेरॉइड’ के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी । हमारे ग्रह पृथ्वी के लिये भी यह स्थिति बहुत हानिकारक होगी । 
 इस चेतावनी को गंभीरता से लेकर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदोने २०१९ में ट्वीट कर कहा था ‘वर्तमान राजधानी जाकार्ता शहर पानी के नीचे जाने की संभावना होने से हमारे देश की राजधानी बोर्नियो द्वीपपर स्थानांतरित हो जाएगी ।’ किसी देश को अपनी राजधानी में बदलाव करना पडे, इससे हम परिस्थिति की गंभीरता समझ सकते हैं ।
इस चेतावनी को गंभीरता से लेकर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदोने २०१९ में ट्वीट कर कहा था ‘वर्तमान राजधानी जाकार्ता शहर पानी के नीचे जाने की संभावना होने से हमारे देश की राजधानी बोर्नियो द्वीपपर स्थानांतरित हो जाएगी ।’ किसी देश को अपनी राजधानी में बदलाव करना पडे, इससे हम परिस्थिति की गंभीरता समझ सकते हैं । 
‘कोरोना’ गुट के ‘कोविड-१९’ वायरस की विश्वमारी
 वर्तमानकाल में हम इसी महामारी के आपात्काल से गुजर रहे हैं । चीन से प्रारंभ हुए इस महामारी को आज २ महिने में ही विश्वमारी घोषित किया गया है । आज तक इसके प्रकोप से हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और लाखों लोग इसके चपेट में आ चुके हैं । अब यह आंकडा कहां तक जाता है, यह हम भविष्य मे देखेंगे, पर आज तक तो इस महामारी के पर कोई दवाई उपलब्ध नहीं है ।
वर्तमानकाल में हम इसी महामारी के आपात्काल से गुजर रहे हैं । चीन से प्रारंभ हुए इस महामारी को आज २ महिने में ही विश्वमारी घोषित किया गया है । आज तक इसके प्रकोप से हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और लाखों लोग इसके चपेट में आ चुके हैं । अब यह आंकडा कहां तक जाता है, यह हम भविष्य मे देखेंगे, पर आज तक तो इस महामारी के पर कोई दवाई उपलब्ध नहीं है । 
आपात्काल क्यों आता है ?
 पिछले एक दशक से हम पूरे विश्व में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में वृद्धि होते देख रहे हैं । प्रकृति के इस भयावह सामर्थ्य को अनुभव कर रहे हैं । कुछ समय पूर्व दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं जापान में आई त्सुनामी, पाकिस्तान, हैती तथा चीन में हुए भूकंप, साथ ही कटरिना एवं उत्तर और मध्य अमरीका में आई अन्य चक्रवात आदि द्वारा हुए प्राकृतिक संकट देखे हैं । इन की तीव्रता के कारण हुआ घोर विध्वंस तथा जन-हानि हमारे मन पर अंकित हो गई है । हमें समझना होगा कि प्रकृति के इस कोप का कारण क्या है ?
पिछले एक दशक से हम पूरे विश्व में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में वृद्धि होते देख रहे हैं । प्रकृति के इस भयावह सामर्थ्य को अनुभव कर रहे हैं । कुछ समय पूर्व दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं जापान में आई त्सुनामी, पाकिस्तान, हैती तथा चीन में हुए भूकंप, साथ ही कटरिना एवं उत्तर और मध्य अमरीका में आई अन्य चक्रवात आदि द्वारा हुए प्राकृतिक संकट देखे हैं । इन की तीव्रता के कारण हुआ घोर विध्वंस तथा जन-हानि हमारे मन पर अंकित हो गई है । हमें समझना होगा कि प्रकृति के इस कोप का कारण क्या है ? 
सेमेटिक विचारधारा के पंथ
 अन्य पंथों में पुण्य की कोई संकल्पना ही नहीं है । उनके पंथ निर्माता के मार्गपर चलना पुण्यकारक माना गया है, तथा उसके विरुद्ध कृति करना पाप माना गया है । इन पंथों की धारणा है कि मानव सर्वश्रेष्ठ है और सारी सृष्टि केवल भोग के लिए है । इस कारण प्रकृति को अलग मानकर उसका दोहन करने की प्रवृत्ती बढी है । दुर्भाग्य से भारत मे भी पश्चिमी देशों के लोगों द्वारा बनाई गई शिक्षा प्रणाली चल रही है । इसलिए भारत मे भी आज की पीढी की भी वही प्रवृत्ति हो गई है । इसी कारण पर्यावरण का प्रदूषण करना, जंगल का विनाश करना आदि प्रवृत्तियां बढ रही हैं । जंगल का नाश होगा, तो वन में रहनेवाले प्राणी नागरी बस्तियों मे प्रवेश करेंगे, वर्षा अनियंत्रित होगी तथा ग्लोबल वॉर्मिंग में बढोतरी होगी । इस प्रकार मानव आपदाओंको आमंत्रित कर रहा है ।
अन्य पंथों में पुण्य की कोई संकल्पना ही नहीं है । उनके पंथ निर्माता के मार्गपर चलना पुण्यकारक माना गया है, तथा उसके विरुद्ध कृति करना पाप माना गया है । इन पंथों की धारणा है कि मानव सर्वश्रेष्ठ है और सारी सृष्टि केवल भोग के लिए है । इस कारण प्रकृति को अलग मानकर उसका दोहन करने की प्रवृत्ती बढी है । दुर्भाग्य से भारत मे भी पश्चिमी देशों के लोगों द्वारा बनाई गई शिक्षा प्रणाली चल रही है । इसलिए भारत मे भी आज की पीढी की भी वही प्रवृत्ति हो गई है । इसी कारण पर्यावरण का प्रदूषण करना, जंगल का विनाश करना आदि प्रवृत्तियां बढ रही हैं । जंगल का नाश होगा, तो वन में रहनेवाले प्राणी नागरी बस्तियों मे प्रवेश करेंगे, वर्षा अनियंत्रित होगी तथा ग्लोबल वॉर्मिंग में बढोतरी होगी । इस प्रकार मानव आपदाओंको आमंत्रित कर रहा है । 
मानव का स्वार्थ
 मानव की अपने हित को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति भी बढ गई है । अपने स्वार्थ के लिए सागर तथा नदी के क्षेत्र पर अतिक्रमण करना, पशुओं की हत्या करना, रासायनिक तथा जैविक शस्त्र बनाना, वायु तथा जल का प्रदूषण करनेवाले केमिकल्स बनाना, ऊर्जा का अतिरिक्त उपयोग करना आदि इसके उदाहरण हैं । इनके कारण भी अनेक आपदाओं का सामना करना पड रहा है । वर्तमानकाल की कोरोना वायरस की महामारी भी इसी का एक उदाहरण है ।
मानव की अपने हित को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति भी बढ गई है । अपने स्वार्थ के लिए सागर तथा नदी के क्षेत्र पर अतिक्रमण करना, पशुओं की हत्या करना, रासायनिक तथा जैविक शस्त्र बनाना, वायु तथा जल का प्रदूषण करनेवाले केमिकल्स बनाना, ऊर्जा का अतिरिक्त उपयोग करना आदि इसके उदाहरण हैं । इनके कारण भी अनेक आपदाओं का सामना करना पड रहा है । वर्तमानकाल की कोरोना वायरस की महामारी भी इसी का एक उदाहरण है । 
 इसी स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण आज सागरतट पर खारे पानी में उगनेवाली तथा तट की प्राकृतिक सुरक्षा करनेवाली मँग्रोव के जंगल काटकर उस जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है । इससे त्सुनामी के प्रकोप से मानव की सुरक्षा के लिए प्रकृति द्वारा दिया सुरक्षाकवच ही हम नष्ट कर रहे हैं । इसका भयंकर परिणाम हमने सुनामी के समय देखा भी है। https://www.sanatan.org/hindi/how-to-deal-with-coronavirus-spiritually
इसी स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण आज सागरतट पर खारे पानी में उगनेवाली तथा तट की प्राकृतिक सुरक्षा करनेवाली मँग्रोव के जंगल काटकर उस जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है । इससे त्सुनामी के प्रकोप से मानव की सुरक्षा के लिए प्रकृति द्वारा दिया सुरक्षाकवच ही हम नष्ट कर रहे हैं । इसका भयंकर परिणाम हमने सुनामी के समय देखा भी है। https://www.sanatan.org/hindi/how-to-deal-with-coronavirus-spiritually 
 अभी भी हमारे पास समय है कि हम इस आपदा से बचना है और आगे ऐसी आपदा न आये उसके लिए हमे ईश्वर द्वारा बनाई गई प्रकृति माता की रक्षा करनी होगी, अपना स्वार्थ छोड़ना होगा और  सनातन धर्म के अनुसार बताने वाले साधु-संतों के अनुसार हमरा जीवन का आचरण करना होगा तभी हम इससे बच सकते है दूसरा कोई उपाय काम नही आ सकता।
अभी भी हमारे पास समय है कि हम इस आपदा से बचना है और आगे ऐसी आपदा न आये उसके लिए हमे ईश्वर द्वारा बनाई गई प्रकृति माता की रक्षा करनी होगी, अपना स्वार्थ छोड़ना होगा और  सनातन धर्म के अनुसार बताने वाले साधु-संतों के अनुसार हमरा जीवन का आचरण करना होगा तभी हम इससे बच सकते है दूसरा कोई उपाय काम नही आ सकता। 
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