08 अप्रैल 2020
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अग्निहोत्र प्राचीन वेद-पुराणों में वर्णित एक साधारण धार्मिक संस्कार है, जो प्रदूषण को अल्प करने तथा वायुमंडल को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने हेतु किया जाता है ।*
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अग्निहोत्र के कारण निर्माण होनेवाले औषधियुक्त वातावरण के कारण रोगकारक किटाणुओं के बढने पर प्रतिबंध लगता है, तथा उनका अस्तित्व नष्ट होने में सहायता होती है । इसलिए ही वर्तमान में जगभर में उत्पात मचानेवाले ‘कोरोना वायरस’ के संकट पर ‘अग्निहोत्र’ एक रामबाण उपाय हो सकता है। इस पार्श्वभूमि पर सभी हिन्दू बंधू सभी प्रकार की वैद्यकीय जांच, उपचार, प्रतिबंधात्मक उपाय इत्यादि करते हुए देश में ‘करोना’ का प्रादुर्भाव रोकने के लिए तथा समाज को अच्छा आरोग्य और सुरक्षित जीवन जीने के लिए सूर्यादय और सूर्यास्त के समय ‘अग्निहोत्र’ करें, ऐसा आह्वान हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने किया है ।*
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अग्निहोत्र करने के लिए किसी भी पुरोहित को बुलाने की, दानधर्म करने की आवश्यकता नहीं होती । इसके लिए कोई भी बंधन नहीं है । सामान्य व्यक्ति यह विधि घर, खेत, कार्यालय में मात्र 10 मिनट में कहीं भी कर सकता है । इसका खर्च भी अत्यल्प है । अग्निहोत्र नित्य करने से धर्माचरण तो होगा ही, परंतु पर्यावरण के साथ ही समाज की भी रक्षा होगी ।*
*‘अग्निहोत्र’ के संदर्भ में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं । उसकी विपुल जानकारी इंटरनेट के माध्यम से हम प्राप्त कर सकते हैं ।*
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फ्रान्स के ट्रेले नाम के वैज्ञानिक ने हवन पर किए अनुसंधान में हवन करने से वातावरण में 96 प्रतिशत घातक विषाणु और किटाणू कम होना दिखाई दिया है; उस विषय में ‘एथ्नोफार्माकोलॉजी 2007’ के जर्नल में शोधनिबंध प्रकाशित हुआ था । ‘नेशनल केमिकल लेबोरेटरी’ इस संस्था के निवृत्त ज्येष्ठ शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे द्वारा किए गए अनुसंधान के अनुसार अग्निहोत्र के कारण वातावरण में सूक्ष्म किटणुओं की वृद्धि 90 प्रतिशत से कम हुई है; प्रदूषित हवा के घातक सल्फरडाय ऑक्साईड के प्रमाण दस गुना कम होता है; पौधों की वृद्धि नियमित की अपेक्षा अधिक होती है; अग्निहोत्र की विभूति कीटाणुनाशक होने से घाव, त्वचारोग इत्यादि के लिए अत्यंत उपयुक्त है; पानी के कीटाणु और क्षार का प्रमाण 80 से 90 प्रतिशत कम करती है । इसलिए अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रान्स जैसे 70 देशों ने अग्निहोत्र का स्वीकार किया है ।उन्होंने विविध विज्ञान मासिकों में उसका निष्कर्ष प्रकाशित किया है ।* *स्त्रोत : हिंदु जन जागृति*
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हमारी संस्कृति को हम भूल गए हैं इसलिए आज हमें घरों में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है नहीं तो आज अगर घर घर हवन होता, तुलसी, पीपल आदि होते, देशी गाय होती, महापुरुषों के अनुसार अपना रहन-सहन बनाया होता तो कोरोना जैसे भयंकर वायरस हमें छू भी नहीं सकते थे !! हमारी संस्कृति इतनी महान है बस अब शीघ्र उसपर लौटने की आवश्यकता है नहीं तो इससे भी अधिक भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं ।*
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