26 अक्टूबर 2020
समाचार पत्रों से मालूम चला जहाँ देश में सभी स्थानों पर दशहरा को रावण का दहन किया जायेगा वहीं कुछ अपने आपको मूल निवासी कहने वाले लोग यह कहते दिखाई दिए कि रावण का पुतला दहन नहीं होना चाहिए क्यूंकि रावण उनके पूर्वज थे। ये बयान निश्चित रूप से सुर्खियां बटोरने के लिए दिए जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों से कभी अम्बेडकरवादी, साम्यवादी, आदिवासी आदि संगठन भी रावण को अपना पूर्वज बताकर ऐसा भ्रम फैला रहे हैं। सत्य यह है कि इन्होंने कभी वाल्मीकि रामायण को ही नहीं पढ़ा। उसमें रावण का कैसा चरित्र वर्णित है यह भी नहीं जाना। अन्यथा ऐसा अज्ञानता भरी बात ये लोग कभी नहीं करते।
रावण एक विलासी था। अनेक देश - विदेश की सुन्दरियां उसके महल में थीं। हनुमान अर्धरात्रि के समय माता सीता को खोजने के लिए महल के उन कमरों में घूमें जहाँ रावण की अनेक स्त्रियां सोई हुई थीं। नशा कर सोई हुई स्त्रियों के उथले वस्त्र देखकर हनुमान जी कहते हैं~
कामं दृष्टा मया सर्वा विवस्त्रा रावणस्त्रियः ।
न तु मे मनसा किञ्चद् वैकृत्यमुपपद्यते ।।
अर्थात - मैंने रावण की प्रसुप्तावस्था में शिथिलावस्त्रा स्त्रियों को देखा है, किन्तु इससे मेरे मन में किञ्चन्मात्र भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ। जब सब कमरों में घूमकर विशेष-विशेष लक्षणों से उन्होंने यह निश्चिय किया कि इनमें से सीता माता कोई नहीं हो सकतीं।
ऐसा निश्चय हनुमान जी ने इसलिए किया क्यूंकि वे जानते थे कि माता सीता चरित्रवान स्त्री हैं। न की रावण और उसकी स्त्रियों के समान भोगवादी हैं । अंत में सीता उन्हें अशोक वाटिका में निरीह अवस्था में मिली।
सीता माता से रावण कहता है -
"बह्वीनामुत्तमस्त्रीणामाहृताना मितस्तत: ।
सर्वासामेव भद्रं ते ममाग्रमहिषी भव ।।(वाल्मीकि रामायण ३/४७/२८)
"मैं इधर-उधर से बहुत सी सुन्दरी स्त्रियों को हर लाया हूँ । उन सब में तुम मेरी पटरानी बनोगी । तुम्हारा भला हो ।"
इसका स्पष्ट अर्थ है रावण जिस सुन्दर स्त्री को देखता था , मुग़लों की तरह हरण करके अपनी हरम (रनिवास) में डाल देता था , पर माँ सीता को पटरानी बनाना चाहता था । अनेक ऋषि-मुनि-देवताओं और राजाओं की पत्नी-पुत्री और बहनों का हरण करके अपने रनिवास में रावण ने डाल दिया था , जिससे कुपित होकर साध्वी स्त्रियों ने रावण को श्राप दिया था ।
यह तो रहा रावण का चरित्र और स्त्रियों के प्रति उसका दृष्टिकोण , जो कि संकेतमात्र ही किया है, क्या रावण ने श्रीराम से बहन का प्रतिशोध लेने के लिये हरण किया था ? उत्तर है नहीं , शूपर्णखा ने न तो श्रीराम की निन्दा की न रावण ने शूपर्णखा का प्रतिशोध ही लिया । शूपर्णखा ने तो रावण से कहा - 'श्रीराम अकेले और पैदल थे , तो भी उन्होंने डेढ़ मुहूर्त के भीतर ही खर-दूषण सहित चौदह हजार भयंकर शक्तिशाली राक्षसों का तीखे बाणों से संहार कर डाला , ऋषियों को अभय दे दिया और समस्त दण्डकवन को राक्षसों की विघ्न से रहित कर दिया ।' (रा०अ०३४/९-११)
"एका कथंचिन्मुक्ताहं परिभूय महात्मना ।
स्त्रीवधं शङ्कमानेन रामेण विदितात्मना ।।(वा०रा०३/३४/१२)
आत्मज्ञानी महात्मा श्रीराम ने स्त्री का वध हो जाने के भय से एकमात्र मुझे किसी तरह केवल अपमानित करके ही छोड़ दिया ।"
शूर्पणखा के वचन से दो बात सिद्ध हैं , पहली वह रावण से स्पष्ट कह रही है उसका अपराध वध के योग्य था । दूसरी वह आत्मज्ञानी महात्मा कहकर श्रीराम की प्रशंसा भी कर रही है और यह राम ने उसे कोई दण्ड नहीं दिया , उदारता दिखाते हुए केवल अपमानित करके ही छोड़ दिया । इसलिये बहन का बदला लिया रावण ने ,तो किस बात का बदला लिया ? जब श्रीराम ने शूर्पणखा का कोई अपराध नहीं किया ।
विभीषण जी ने सीता हरण का कारण रावण से पूछा था , तो उसमें बहन का बदला नहीं , खर-दूषण की मृत्यु का बदला कहा था ( क्योंकि रावण के साम्राज्य को दण्डकारण्य सहित सम्पूर्ण भारत से समाप्त कर दिया था- ज्यादा जानकारी के अरण्यकाण्ड का ३३ वां सर्ग पढ़ें , जिसमें शूपर्णखा ने रावण को उसके सिकुड़ते साम्राज्य पर फटकार लगाई थी , न कि अपना रोना रोया था )
विभीषणजी रावण से कहते हैं -
"किं च राक्षसराजस्य रामेणापकृतं पुरा ।
आजहार जनस्थानाद् यस्य भार्यां यशस्विनः।।
खरो यद्यतिवृत्तस्तु स रामेण हतो रणे ।
अवश्यं प्राणिनां प्राणा रक्षितव्या यथाबलम् ।।(वा०रा०६/९/१३-१४)
श्रीरामचन्द्रजी ने पहले राक्षसराज रावण का कौन -सा अपराध किया था ,जिससे उन यशस्वी महात्मा श्रीराम की पत्नी को जनस्थान से हर लाये ?
यदि कहें कि उन्होंने खर को मारा था तो यह ठीक नहीं है ; क्योंकि खर अत्याचारी था । उसने स्वयं ही उन्हें मार डालने के लिये उन पर आक्रमण किया था । इसलिए श्रीराम ने रणभूमि में उसका वध किया ; क्योंकि प्रत्येक प्राणी यथाशक्ति अपने प्राणों की रक्षा अवश्य करनी चाहिये । "
अगर आपका पूर्वज शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी हो तो आप उसके गुण-गान करेंगे अथवा उस निंदा करेंगे ?
स्पष्ट है उसकी निंदा करेंगे। बस हम यही तो कर रहे हैं। यही सदियों से दशहरे पर होता आया है। रावण का पुतला जलाने का भी यही सन्देश है कि पापी का सर्वदा नाश होना चाहिए।
एक ओर वात्सलय के सागर, सदाचारी, आज्ञाकारी, पत्निव्रता, शूरवीर, मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम हैं।
दूसरी ओर शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी रावण है।
किसकी जय होनी चाहिए। किसकी निंदा होनी चाहिए। इतना तो साधारण बुद्धि वाले भी समझ जाते हैं।
आप क्यों नहीं समझना चाहते ? इसलिए यह घमासान बंद कीजिये और पक्षपात छोड़कर सत्य को स्वीकार कीजिये। -डॉ.विवेक आर्य
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