06 अक्टूबर 2020
हाथरस कांड (Hathras Case) की आड़ में उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में जातीय हिंसा (Caste Based Violence) की कोशिश चल रही थी। 'जस्टिस फॉर हाथरस' नाम से वेबसाइट बनाई गई थी जिसमे मास्क लगाकर ही हमला करने और प्रशासनिक अधिकारियों को प्रदर्शन के दौरान निशाना बनाने की बात कही गई थी।
इस साजिश में PFI, SDPI और यूपी के माफिया के हाथ होने का अनुमान है। मुख्यमंत्री योगी के नाम से नकली समाचार के स्क्रीनशॉट बनाए गए थे। भीम मीम की आड़ मे दूसरा शाहीन बाग, दूसरा भीमा कोरेगांव या दूसरा बैंगलोर बनाने की साजिश थी। साजिश रचने में 100 करोड़ की फडिंग भी हुई है ऐसा खुफिया एजेंसियों से पता चला है।
दंगे का सबसे बड़ा नुकसान गरीबों को ही होता है। कोरोना के कारण जो दैनिक मजदूरी वाले बेरोजगार हैं वह दंगे के कारण ओर बर्बाद हो जाएंगे। यही तो दंगाई चाहते हैं। इन दंगे वालों का प्रेम बंग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए है। दलित भी इनके लिए काफिर हैं।
जब भी 3 तलाक की बात आए तो यह हमारा निजी मामला है। कोर्ट को या संसद को इन पर बोलने का हक़ नहीं है। संविधान ने हमें मुस्लिम पर्सनल लॉ दिया है। आज का मुस्लिम युवा कहता है कि इस्लाम की मान्यताओं पर कोई बहस नहीं हो सकती। औरतों के क्या हक हैं इस पर बात नहीं करनी चाहिए। हर बात पर कहा जाता है कि इस पर मत बोलो।
जब मेवात मे दलित अत्याचार पर प्रश्न उठता है तो वहाँ का विधायक मुख्यमंत्री को पत्र लिखता है कि मेवात में भाईचारा है। इसलिए सभी को चुप रहना चाहिए। जौनपुर में दलित बस्ती जलाने का मामला हो या आजमगढ़ में दलित युवतियों के साथ छेड़खानी का मामला सब पर चुप रहने की सलाह दी जाती है।
तब्लीगी जमात के व्यवहार पर प्रश्न उठाया जाता है तो टेलीविज़न पर धमकी दी जाती है। हर स्वतंत्र विचार को इस्लाम पर हमला माना जाता है।
अयोध्या विवाद हो या 3 तलाक या तलाक़शुदा को गुजरभत्ता। कभी भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को स्वीकार नहीं किया जाता।
मुस्लिम और गैर मुस्लिम के व्यवहार हो तो हमेशा यही कहा जाता है कि गैर मुस्लिम खुद को बदलें। फिलिस्तीनी और रोहींग्या मुस्लिम पर बोलेंगे पर चीन के ऊईगर मुस्लिमो पर चुप। लोकतांत्रिक देशों में विशेष अधिकार चाहिए परन्तु इस्लामिक देशों में गैर मुस्लिमों को कोई अधिकार नहीं है। क्या यह भारत में पहला केस है जहां दलित बेटी पर अत्याचार हुआ है? नहीं। ना तो यह पहला केस है और ना ही अन्तिम। परन्तु शोर का कारण राजनीति है ना कि न्याय। मेवात में दलितों को धीरे धीरे समाप्त कर दिया गया। कश्मीर में 1957 से 2019 तक लाखों वाल्मीकि परिवारों को वोट देने का अधिकार ही नहीं था।
भारत जैसी आजादी और कहाँ?
क्या अमेरिका में कोई ओसामा बिन लादेन का महिमामंडन कर सकता है? क्या इजरायल में कोई भी हिटलर की जय बोल सकता है? क्या पाकिस्तान में कोई सार्वजनिक तौर पर जय हिन्द बोल सकता है? भारत में कुछ भी करें आप आजाद हैं. जय भीम, जय मीम का नारा देकर हम बंगाल में दलित अत्याचार पर चुप रह सकते हैं। आज 1947 और 1971 में पाकिस्तान से जान बचा कर आए हिन्दूओं के 95% युवा वंशजों को नहीं पता कि पाकिस्तान से उन्हें क्यों निकाला गया था? उन्हें नहीं पता कि इस्लाम सहस्तित्व को स्वीकार नहीं करता.आज भी हम जाति को देश धर्म से अधिक महत्त्व देते हैं।
दलित तो दूर इन्हे तो गैर मुस्लिम मूर्तियाँ भी स्वीकार नहीं हैं। पाकिस्तान में खुदाई में महात्मा बुद्ध की मूर्ति को तोड़ दिया गया। बैंगलोर में दलित कांग्रेस विधायक के भतीजे/ भांजे के विरुद्ध फतवा दिया गया।
बामियान इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहां भगवान बुद्ध की दो विशाल प्रतिमाएं हुआ करती थी। इन में से बड़ी प्रतिमां की ऊँचाई लगभग 58 मीटर और छोटी की ऊँचाई 37 मीटर थी।। 1999 में अफ़गानिस्तान में तालिबान की सरकार थी अफ़गानिस्तान में मुस्लिम धर्मगुरूओं ने इन मूर्तियों को इस्लाम के ख़िलाफ करार दे दिया। तालिबान सरकार ने इन मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश जारी कर दिया।
मुल्ला मुहम्मद ओमार ने एक इंटरव्यु में कहा – “मुसलमानों को इन प्रतिमाओं के नष्ट होने पर गर्व करना चाहिए, इन्हें नष्ट करके हमनें अल्लाह की इबादत की है।” 1221 ईसवी में चंगेज़ ख़ान ने इन मूर्तियों को नष्ट करने की कोशिश की पर असफल रहा, औरंगज़ेब ने भारी तोपखाने से इन मूर्तियों पर हमले करावाए पर पूरी तरह नष्ट नही कर सका। इसके बाद 18वीं सदी में नादिर शाह और अहमद शाह अबदाली ने भी इन मूर्तियों को काफी नुकसान पहुँचाया।
भारत में बहुत सारे NGO's धर्म परिवर्तन के काम में लगे हुए हैं। विदेशी पैसों से चलने वालें NGO's धर्मपरिवर्तन ही करा रहे हैं ऐसा ही नहीं है बल्कि छोटी-छोटी घटनाओं को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश करके भारत देश का माहोल भी खराब कर रहें हैं। इनसे सावधान रहना।
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