11 मई 2020
वर्तमान न्याय प्रणाली हमें अंग्रेजों से विरासत में मिली है। गांधीजी ने कहा था, 'यह प्रणाली अंग्रेजों ने नेटिव इंडियंस (मूलनिवासी भारतीयों) को न्याय देने के लिए प्रस्थापित नहीं की थी, बल्कि अपना साम्राज्य मजबूत करने के लिए इस न्याय प्रणाली का गठन किया गया था। इस न्याय प्रणाली में 'स्वदेशी' कुछ भी नहीं है। इसकी भाषा, पोशाक तथा चिंतन सब कुछ विदेशी है। अतीत में भारत में जो न्याय दिलाने वाली संस्थाएँ विद्यमान थीं, उन्हें पूर्णत: समाप्त कर एक केंद्रीभूत तथा सर्वव्यापी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों ने स्थापित की। गांधीजी ने यह भी कहा था, 'जिसकी थैली बड़ी होगी, उसी को यह न्याय प्रणाली सुहाती है।'
इस न्यायव्यवस्था के कारण हमारी न्यायपालिका में भ्रष्टाचार इतना व्याप्त है कि गरीब और हिन्दूनिष्ठ निर्दोष को जल्दी न्याय ही नही मिल पाता है।
आपको बता दे कि सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपनी नौकरी के अंतिम दिन विदाई भाषण में न्यायप्रणाली पर तीखी टिप्पणी की। बुधवार (06 मई) को सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल द्वारा आयोजित वर्चुअल फेयरवेल पार्टी में जस्टिस गुप्ता ने कहा कि देश का कानून और न्याय तंत्र चंद अमीरों और ताकतवर लोगों की मुट्ठी में कैद में है। उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति जो अमीर और शक्तिशाली है, वह सलाखों के पीछे है, तो वह मुकदमे की पेंडेंसी के दौरान बार-बार उच्चतर न्यायालयों में अपील करेगा, जब तक कि किसी दिन वह यह आदेश हासिल नहीं कर लेता कि उसके मामले का ट्रायल तेजी से किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा, “वर्तमान समय और दौर में न्यायाधीश इससे अनजान होकर ‘आइवरी टॉवर’ में नहीं रह सकते कि उनके आसपास की दुनिया में क्या हो रहा है? उन्हें इसके बारे में जरूर पता होना चाहिए।”
जस्टिस गुप्ता ने कहा, ऐसा, गरीब प्रतिवादियों की कीमत पर होता है, जिनके मुकदमे में और देरी होती जाती है क्योंकि वह धन के अभाव में उच्चतर न्यायालयों का दरवाजा नहीं खटखटा सकते। जस्टिस गुप्ता यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा, “अगर कोई अमीर शख्स जमानत पर है और वह मुकदमे को लटकाना चाहता है तब भी वह उच्चतर न्यायालयों का दरवाजा खटखटाकर, मामले का ट्रायल या पूरी सुनवाई प्रक्रिया तब तक बार-बार लटकाएगा, जब तक कि विपक्षी पार्टी परेशान न हो जाय।”
जस्टिस गुप्ता ने जोर देकर कहा कि ऐसी स्थिति में बेंच और बार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वो समाज के वंचितों और गरीबों को न्याय दिलाने में मदद करें। वो इस बात पर नजर रखें कि कहीं गरीबी की वजह से उनके मुकदमे पेंडिंग बॉक्स में पड़े न रह जाएं। उन्होंने कहा, “यदि वास्तविक न्याय किया जाना है, तो न्याय के तराजू को वंचितों के पक्ष में तौलना होगा।”
जस्टिस गुप्ता ने कहा, “बार को पूरी तरह से स्वतंत्र होना चाहिए…और अदालतों में मामलों पर बहस करते समय बार के सदस्यों को अपनी राजनीतिक या अन्य संबद्धताओं को छोड़ देना चाहिए और मामले की पैरवी कानून के अनुसार सख्ती से करनी चाहिए।”
आपको बता दे कि यह कोई पहले जज नही है जिन्होंने न्यायपालिका पर सवाल उठाया हो इससे पहले भी कई न्यायाधीशों ने इसपर सवाल उठाए है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश काटजू ने कहा था कि भारतीय न्याय प्रणाली में 50% जज भ्रष्ट है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े भी सवाल उठा चुके है कि ‘धनी और प्रभावशाली’ तुरंत जमानत हासिल कर सकते हैं। गरीबों के लिए कोई न्याय की व्यवस्था नही है।
कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस के एल मंजूनाथ ने कहा कि यहाँ सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए कोई स्थान नहीं है और इस देश में न्याय के लिए कोई जगह नहीं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी कहा है कि देश में निर्णय देने में विलंब होना चिंता की बात है। समाज में सबसे गरीब और सबसे वंचित लोग न्याय में देरी के पीड़ितों में शामिल हैं। उन्होंने केस को जल्द निपटाने के लिए एक तंत्र बनाने की जरूरत हैं।
देश में न्याय इसलिए देरी से मिलता है कि देश में जजों की कमी, वकीलों द्वारा पैसे ऐठने के कारण लंबा खीचना, बदला लेने या, पैसा नोचने की नीयत से झूठे केस दर्ज करना, और देश के जजों में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि अपराधियों को सजा और निर्दोषों को न्याय मिलना ही मुश्किल हो गया है। कई जज तो रिश्वत लेते पकड़े भी गये है।
आज कोर्ट में देखो तो सामान्य आदमी ही आता है, धनी और प्रभावशाली व्यक्ति तो कोर्ट में मुद्दत पर आते ही नही है, गरीबों से वकील पैसे नोचते रहते हैं और न्यायालय से न्याय नहीं मिलता है, मिलती है तो सिर्फ तारीख...।
नेता, अभिनेता, पत्रकारों, अमीरों को तो न्याय मिल जाता है लेकिन हिंदुत्वनिष्ठों और गरीबों को जल्दी न्याय नही मिल पाता है।
इसलिये आज न्याय प्रणाली से देश की जनता का भरोसा उठ गया है, इसमे शीध्र सुधार करना चाहिए नही तो एक के बाद एक निर्दोष परेशान होते जायेंगे।
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