पश्चिमी संस्कृति के क्रिसमस डे की जगह पूज्य संत श्री आशारामजी बापू की दिव्य सौगात 25 दिसंबर को तुलसी-पूजन दिवस के रूप में मनाना सर्वहितकारी है।
क्रिसमस का उत्सव मनाने के लिए लोग शंकुधर वृक्ष काट कर घर लाते हैं और फिर सजाते हैं - ये वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी पृष्ठ पर कार्बन डायोक्साईड को कम करने वाले सबसे कारगर जंगल बनाते हैं। जो शिक्षित, प्रगतिवादी समाजवर्ग हिंदुओं को दीवाली पर दिया जलाने पर global warming के उलाहने देता है उनका ध्यान इधर क्यों नही आकर्षित होता। कुछ लोग पेड़ काटने के बजाये प्लास्टिक के पेड़ ( क्रिसमस ट्री ) से भी अपना उत्सव मनाते हैं। पर वह भी वातावरण के लिए घातक है, इसके निस्तारण में तो बहुत रासायनिक प्रदूषण होता है।
दुर्बल निर्णय शक्ति के कारण हम पश्चिमी समाज का अनुसरण करने लगे। ये बुद्धिमानी नहीं है - इसमें पर्यावरण व समाज - दोनो की हानि अवश्यंभावी है। पश्चिम देशों की देखा-देखी भारत में भी 25 दिसंबर से 1 जनवरी तक क्रिसमस-उत्सव मनाया जाने लगा है जिसमें सभ्य-समाज भी दारू पीता है, मांस खाता है, डांस-पार्टी आदि के बहाने महिलाओं से छेड़खानी करता है। इन दिनों में आत्महत्या, महिलाओं से दुष्कर्म एवम् सड़क-दुर्घटनाएँ अत्यधिक घटित होती है। ऐसा सिर्फ यूरोप या अमेरिका में ही नही अब भारत में भी घटित होने लगा है।
सच पूछे तो इस त्यौहार का हमारी संस्कृति-समाज से कोई सरोकार नही है। ऊपर से यह हमारी स्वदेशी सभ्यता को भ्रष्ट करने वाला है। इसको मनाना माने आसुरी गुणों को बढ़ावा देना है। सनातन संस्कृति और अपने गौरवशाली इतिहास की सुरक्षा हेतु हमे इसको स्वीकारना नही चाहिए।
जहाँ एक ओर क्रिसमस मनाने के दुष्परिणाम सर्वविदित हैं तो दूसरी ओर तुलसी-निष्ठा से समाज उत्थान भी विदित है। तुलसी माता में निष्ठा धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष चारो दिलाने में सक्षम है। इसीलिए धर्म, समाज के उत्थान की दृष्टि से संत श्री आशारामजी बापू ने सन 2012 से 25 दिसम्बर को तुलसी-पूजन दिवस के रूप में मनाने का आवाह्न किया। इस पवित्र परंपरा से सभी भारतवासी लाभान्वित हो रहे हैं। परिवार सहित मनाने से बुद्धिबल, मनोबल , चारित्र्यबल और आरोग्यबल तो बढ़ता है पर मानसिक अवसाद, दुर्व्यसन, आत्महत्या आदि कुत्सित कर्म करने की रूचि भी चली जाती है।
सिर्फ भारत में ही नहीं विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ मानते हैं और तुलसी की पूजा करते हैं। पूर्वकाल में ग्रीस के ईस्टर्न-चर्च नामक संप्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी। तुलसी मानव जीवन की रक्षक व पोषक है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है - कई प्रकार के औषधीय गुण इसमें विद्यमान है। तुलसी का पूजन, सेवन व रोपण करने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। भगवान विष्णु ने स्वयं तुलसी को सर्व-पूज्या होने का वरदान दिया है। तुलसी प्रदूषित वायु को शुद्ध कर पर्यावरण की सुरक्षा करती है । पूरे भारतवर्ष में तुलसी का पौधा सुलभ और सुप्रसिद्ध है। अधिकांश हिंदू अपने घरों में तुलसी का रोपण करते हैं और बहुत पवित्रता से इसकी पूजा कर भगवान श्री हरि की कृपा प्राप्त करते हैं। जो भी जन समुदाय सत्संग और सेवा कार्यों मे जुड़े हैं उनके घरों में प्रायः संध्या के समय तुलसी की पूजा होती है।
क्रिसमस डे जैसे त्योहार के नाम पर शराब-कबाब के जश्न, मांस-भक्षण, धूम्रपान और नशे आदि करना हमें कतई शोभा नही देता। भारतीय संस्कृति व सभ्यता का दमन करने वाली संस्कृति का अनुसरण हमे नही करना है। ऐसा करना ऋषि-मुनियों की संतानों को ग्लानि से भर देता है। अतः 25 दिसंबर को तुलसी-पूजन दिवस मनाकर देश में जागृति लाएं। अपने परिवार, पड़ोस व समाज को ऊँचा उठायें - विश्व पटल पर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाएँ।
आईये 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस मनाएं।
बसन्त कुमार मानिकपुरी
पाली, जिला -कोरबा
छत्तीसगढ़, भारत