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Wednesday, December 30, 2020

पादरी ने 22 हजार हिंदुओं की हत्या की थी, 1 जनवरी को हैप्पी न्यू ईयर बोलने वाले जान ले इतिहास

30 दिसंबर 2020


ईसाईयत और इस्लाम ये दो पंथ ऐसे हैं जिनका जन्म भारत के बाहर हुआ है । ईसाई लोग भारत में आए लगभग दूसरी शताब्दी में । तब यहां का राजा हिन्दू था, प्रजा हिन्दू थी और व्यवस्था भी हिन्दू थी । फिर भी इन ईसाईयों को केरल के राजा ने, प्रजा ने आश्रय दिया, चर्च बनाने के लिए जमीन उपलब्ध कराई, धर्म पालन और धर्म प्रचार की अनुमति प्रदान की । इस कारण आज केरल में ईसाईयों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है । उसी प्रकार जब भारत में अंग्रेजी राज कायम हुआ तब से यहां के हिन्दुओं को ईसाई बनाने का काम चल रहा है ।




हिन्दू समाज के इस मतान्तरण के खिलाफ राजा राममोहन रॉय, स्वामी दयानंद, स्वामी श्रद्धानंद से लेकर महात्मा गांधी, डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार आदि महानुभावों ने चिंता जताई है । भारत सरकार ने मध्य प्रदेश, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने धर्मान्तरण विरोधी कानून बनाए हैं, फिर भी ईसाई मिशनरियों द्वारा नए-नए तरीके खोज कर गरीब, पिछड़े, झुग्गियों में रहनेवाले हिन्दू लोगों के धर्म परिवर्तन का काम धड़ल्ले से चलता है ।

ईसाईयत का यह इतिहास क्रूरता, हिंसा, धर्मविरोधी आचरण एवं असहिष्णुता से भरा पड़ा है। गोवा के अन्दर ईसाई मिशनरी फ्रांसिस जेवियर, जिसके शव का निर्लज्ज प्रदर्शन अभी भी गोवा के चर्च के भीतर हो रहा है, ने गोवा के हिन्दू लोगों पर क्रूरतापूर्ण तरीके अपनाकर अत्याचार किए और गैर-ईसाईयों को ईसाई बनाया । ए.के. प्रियोलकर द्वारा लिखित ‘Goa Inquisition’ नामक पुस्तक में इसका विस्तार से वर्णन किया है । भोले-भाले वनवासी, गिरिवासी और गरीब लोगों को झांसा देकर ईसाई बनाना इन मिशनरियों का मुख्य धंधा है।

पोप जॉन पोल जब 1999 में भारत आए थे तब उन्होंने भारत के ईसाइयों को आह्वान किया था कि जिस प्रकार शुरुआत के ईसाई पादरियों, संत फ्रांसिस जेवियर, रॉबर्ट दी नोबिलि, आदि जैसे उनके पूर्वजों ने प्रथम सहस्राब्दी में समूचा यूरोप, दूसरे में अफ्रीका और अमेरिका को ईसाई बनाया, उसी प्रकार तीसरी सहस्राब्दी में एशिया में ईसा मसीह के क्रॉस को मजबूत उनका उद्देश्य है, ताकि दुनिया में ईसाईयत का साम्राज्य कायम हो सके । पोप के आदेश का पालन करने के लिए तत्पर ईसाई मिशनरी तुरंत इस काम को अंजाम देने में लगे हैं और भले-बुरे सभी उपायों का अवलम्बन कर हिन्दू समाज को तोड़ने के षड्यंत्र में लगे हैं।

सम्पूर्ण विश्व को ईसाईयत के झंडे के नीचे लाने की योजना के तहत फ्रांसिस जेवियर ने भारत में जो काले कारनामे किये थे, उस इतिहास के एक क्रूर अध्याय को जानने के लिए आपके लिए प्रस्तुत है ।

500 साल पहले गोवा में कुमुद राजा का शासन चलता था । राजा कुमुद को जबरदस्ती से हटा कर पोर्तुगीज ने गोवा को अपने कब्जे में कर दिया ।

पुर्तगाल सेना के साथ केथलिक पादरी ने भी धर्मान्तरण करने के लिए बड़ी संख्या में हमला किया। हर गाँव में लोगो को धमकी और जबरन ईसाई बनाते पादरी ने गोवा के पूरे शहर पर कब्जा किया । जो लोग चलने के लिए तैयार नहीं होते उनको क्रूरता से मार दिया जाता ।

जैनधर्मी राजा कुमुद और गोवा के सारे 22 हजार जैनों को भी धर्म परिवर्तन करने के लिए ईसाईयों ने धमकी दे दी कि 6 महीनों में जैन धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म स्वीकार कर दो अथवा मरने के लिए तैयार हो जाओ राजा कुमुद एवं और भी जैन मरने के लिए तैयार थे परंतु धर्म परिवर्तन के लिए हरगिज राजी नहीं थे ।

छः महीने के दौरान ईसाई जेवियर्स ने जैनों का धर्म परिवर्तन करने के लिए साम-दाम, दंड-भेद जैसे सभी प्रयत्न कर देखे । तब भी एक भी जैन ईसाई बनने के लिए तैयार नहीं हुआ। तब क्रूर जेवियर्स पोर्तुगीझ लश्कर को सभी का कत्ल करने के लिए सूचित किया। एक बड़े मैदान में राजा कुमुद और जसिं धर्मी श्रोताओं, बालक-बालिकाओं को बांध कर खड़ा कर दिया गया। एक के बाद एक को निर्दयता से कत्ल करना शुरू किया । ईसाई जेवियर्स हँसते मुख से संहारलीला देख रहा था । ईसाई बनने के लिए तैयार न होनेवालों के ये हाल होंगे। यह संदेश जगत को देने की इच्छा थी। बदले की प्रवृति को वेग देने के लिए ऐसी क्रूर हिंसा की होली जलाई थी।

केथलिक ईसाई धर्म के मुख्य पॉप पोल ने ईसाई पादरी जेवियर्स के बदले के कार्य की प्रशंसा की और उसके लिए उसने बहाई हुई खून की नदियों के समाचार मिलते पॉप की खुशी की सीमा नहीं रही । जेवियर्स को विविध इलाक़ा देकर सम्मान किया। जेवियर्स को सेंट जेवियर्स के नाम से घोषित किया और भारत में शुरू हुई अंग्रेजी स्कूल और कॉलेजों की श्रेणी में सेंट जेवियर्स का नाम जोड़ने में आया। आज भारत में सबसे बड़ा स्कूल नेटवर्क में सेंट जेवियर्स है।

हजारों जैनों और हिंदुओं के खून से पूर्ण एक क्रूर ईसाई पादरी के नाम से चल रही स्कूल में लोग तत्परता से डोनेशन की बड़ी रकम दे कर अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज रहें है। कैसे करुणता है और जेवियर्स कि बदले की वृत्ति को पूर्ण समर्थन दे रहे पुर्तगालियों को पॉप ने पूरे एशिया खंड के बदले की वृत्ति के सारे हक दे दिए। धर्म परिवर्तन प्राण की बलि देकर भी नहीं करने वाले गोवा के राजा कुमुद और बाईस हजार धर्मनिष्ठ जैनों का ये इतिहास जानने के बाद हमें इससे बोध पाठ लेना चाहिए। आज की रहन-सहन में पश्चिमीकरण ईसाईकरण का प्रभाव बढ़ रहा है। भारत की तिथि-मास भूलते जा रहें है। अंग्रेजी तारीख पर ही व्यवहार बढ़ रहा है। भारतीय पहेरवेश घटता जा रहा है ।पश्चिमीकरण की दीमक हमें अंदर से कमज़ोर कर रही है। धर्म और संस्कृति रक्षा के लिए फनाहगिरी संभाले ।
स्त्रोत : ह्रदय परिवर्तन पत्रिका, दिसम्बर 2017

हिंदुस्तानी ईसाइयत का 1 जनवरी नुतन वर्ष मनाने लग गए, बधाई देने लग गए पहले उनको यह इतिहास पढ़ना चाहिए कि पादरियों ने कैसा अत्याचार किया है हिंदुओं पर सही इतिहास पढेंगे तो पता चलेगा कि भारतीय खुद का नुतन वर्ष सृष्टि रचना की तिथि चैत्री शुक्लपक्ष प्रतिपदा भूल गए। हमें इस दिन न बधाई देना है और न ही लेना है कोई देता है तो उसको समझाना है कि अपना नुतन वर्ष चैत्री शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को हैं।

जनता की मांग है कि सरकार भी ईसाई मिशनरियां और धर्मान्तरण पर रोक लगाएं और हिंदुस्तानियों को कॉन्वेंट स्कूल में बच्चों को नहीं पढ़ना चाहिए और न ही धर्मपरिवर्तन करना चाहिए तभी देश, समाज सुरक्षित रहेगा।

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Saturday, December 26, 2020

1 जनवरी का इतिहास जान लेंगे आप तो छोड़ देंगे नववर्ष मनाना

26 दिसंबर 2020


विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में राज करने के लिए सबसे पहले भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया जिससे हम अपनी महान दिव्य संस्कृति भूल जाएं और उनकी पाश्चात्य संस्कृति अपना लें जिसके कारण वे भारत में राज कर सकें।




अपनी संस्कृति का ज्ञान न होने के कारण आज हिन्दू भी 31 दिसंबर की रात्रि में एक-दूसरे को हैपी न्यू इयर कहते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं ।

नववर्ष उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि (हिन्दुओं का नववर्ष ) भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी ये तिथि नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी लेकिन रोम के तानाशाह जूलियस सीजर को भारतीय नववर्ष मनाना पसन्द नहीं आ रहा था इसलिए उसने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष यानि, ईसापूर्व 46 ईस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था । उसके बाद भारतीय नववर्ष के अनुसार छोड़कर ईसाई समुदाय उनके देशों में 1 जनवरी से नववर्ष मनाने लगे ।

भारत देश में अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की 1757 में  स्थापना की । उसके बाद भारत को 190 साल तक गुलाम बनाकर रखा गया। इसमें वो लोग लगे हुए थे जो भारत की ऋषि-मुनियों की प्राचीन सनातन संस्कृति को मिटाने में कार्यरत थे। लॉड मैकाले ने सबसे पहले भारत का इतिहास बदलने का प्रयास किया जिसमें गुरुकुलों में हमारी वैदिक शिक्षण पद्धति को बदला गया ।

भारत का प्राचीन इतिहास बदला गया जिसमें भारतीय अपने मूल इतिहास को भूल गये और अंग्रेजों का गुलाम बनाने वाले इतिहास याद रह गया और आज कई भोले-भाले भारतवासी सृष्टि की रचना तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष नहीं मनाकर 1 जनवरी को ही नववर्ष मनाने लगे ।

हद तो तब हो जाती है जब एक दूसरे को नववर्ष की बधाई भी देने लग जाते हैं। क्या किसी भी ईसाई देशों में हिन्दुओं को हिन्दू नववर्ष की बधाई दी जाती है..??? किसी भी ईसाई देश में हिन्दू नववर्ष नहीं मनाया जाता है फिर भोले भारतवासी उनका नववर्ष क्यों मनाते हैं?

इस साल आने वाला नया वर्ष 2021 अंग्रेजों अर्थात ईसाई धर्म का नया साल है।

हिन्दू धर्म का इस समय विक्रम संवत 2077 चल रहा है।

इससे सिद्ध हो गया कि हिन्दू धर्म ही सबसे पुराना धर्म है ।

इस विक्रम संवत से 5000 साल पहले इस धरती पर भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए । उनसे पहले भगवान राम, और अन्य अवतार हुए यानि जब से पृथ्वी का प्रारम्भ हुआ तब से सनातन (हिन्दू) धर्म है।

कहाँ करोड़ों वर्ष पुराना हमारा सनातन धर्म और कहाँ भारतीय अपनी गरिमा से गिर 2020 साल पुराना नववर्ष मना रहे हैं!

जरा सोचिए....!!!

सीधे-सीधे शब्दों में हिन्दू धर्म ही सब धर्मों की जननी है। यहाँ किसी धर्म का विरोध नहीं है परन्तु सभी भारतवासियों को बताना चाहते हैं कि इंग्लिश कैलेंडर के बदलने से हिन्दू वर्ष नहीं बदलता!


जब बच्चा पैदा होता है तो पंडित जी द्वारा उसका नामकरण कैलेंडर से नहीं हिन्दू पंचांग से किया जाता है । ग्रहदोष भी हिन्दू पंचाग से देखे जाते हैं और विवाह, जन्मकुंडली आदि का मिलान भी हिन्दू पंचाग से ही होता है । सभी व्रत, त्यौहार हिन्दू पंचाग से आते हैं। मरने के बाद तेरहवाँ भी हिन्दू पंचाग से ही देखा जाता है। मकान का उद्घाटन, जन्मपत्री, स्वास्थ्य रोग और अन्य सभी समस्याओं का निराकरण भी हिन्दू कैलेंडर {पंचाग} से ही होता है।

आप जानते हैं कि रामनवमी, जन्माष्टमी, होली, दीपावली, राखी, भाई दूज, करवा चौथ, एकादशी, शिवरात्री, नवरात्रि, दुर्गापूजा सभी विक्रमी संवत कैलेंडर से ही निर्धारित होते हैं । इंग्लिश कैलेंडर में इनका कोई स्थान नहीं होता।

सोचिये! आपके इस सनातन धर्म के जीवन में इंग्लिश नववर्ष या कैलेंडर का स्थान है कहाँ ?

1 जनवरी को क्या नया हो रहा है..????

न ऋतु बदली... न मौसम...न कक्षा बदली...न सत्र....न फसल बदली...न खेती.....न पेड़ पौधों की रंगत...न सूर्य चाँद सितारों की दिशा.... ना ही नक्षत्र...

हाँ, नए साल के नाम पर करोड़ो /अरबों जीवों की हत्या व करोड़ों /अरबों गैलन शराब का पान व रात पर फूहडता अवश्य होगी।

भारतीय संस्कृति का नव संवत्  ही नया साल है.... जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की  दिशा, मौसम, फसल, कक्षा, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तियां, किसान की नई फसल, विद्यार्थी की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते हैं जो विज्ञान आधारित है और चैत्र नवरात्रि का पहला दिन होने के कारण घर, मन्दिर, गली, दुकान सभी जगह पूजा-पाठ व भक्ति का पवित्र वातावरण होता है ।

अतः हिन्दुस्तानी अपनी मानसिकता को बदले, विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने और चैत्री शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन ही नूतन वर्ष मनाये।

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