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Thursday, June 8, 2017

देश के एकमात्र वकील, जो पिछले 40 वर्षों से ‘संस्कृत’ में कर रहे हैं वकालत


देश के एकमात्र वकील, जो पिछले 40 वर्षों से ‘संस्कृत’ में कर रहे हैं वकालत

देववाणी #संस्कृत के प्रति भले ही लोगों का रुझान कम हो परंतु वाराणसी के अधिवक्ता आचार्य पंडित #श्यामजी उपाध्याय का संस्कृत के लिए समर्पण शोभनीय है। 1976 से वकालत करनेवाले आचार्य पण्डित श्यामजी उपाध्याय 1978 में अधिवक्ता बने। इसके बाद इन्होंने देववाणी #संस्कृत को ही पसंद दी।
Advocate Shyam ji Upadhya

आचार्य पंडित #श्यामजी उपाध्याय ने बताया कि जब मैं छोटा था, तब मेरे पिताजी ने कहा था कि कचहरी में काम हिंदी, अंग़्रेजी और उर्दू में होता है परंतु #संस्कृत भाषा में नहीं। ये बात मेरे मन में घर कर गई और मैंने संस्कृत भाषा में वकालत करने की ठानी और ये सिलसिला आज भी चार दशकों से जारी है !’ 

ये कहना है वाराणसी की कचहरी में संस्कृत को जीवंत करनेवाले अधिवक्ता आचार्य पंडित श्यामजी उपाध्याय का, जो पिछले #40 वर्षों से #संस्कृत में वकालत कर रहे हैं।

सभी न्यायालयीन काम जैसे- #शपथपत्र, #प्रार्थनापत्र, #दावा, वकालतनामा और यहां तक की बहस भी #संस्कृत में करते चले आ रहे हैं। पिछले 4 दशकों में संस्कृत में वकालत के दौरान श्यामजी के पक्ष में जो भी निर्णय और आदेश हुआ, उसे न्यायाधीश साहब ने संस्कृत में या तो हिंदी में सुनाया।


#‘संस्कृतमित्रम्’ आचार्य पंडित श्यामजी उपाध्याय
#संस्कृत भाषा में कोर्टरूम में बहस सहित सभी लेखनी प्रस्तुत करने पर सामनेवाले पक्ष को असहजता होने के सवाल पर श्यामजी ने बताया कि वो संस्कृत के सरल शब्दों को तोड़-तोड़कर प्रयोग करते हैं, जिससे न्यायाधीश से लेकर विपक्षियों तक को कोई दिक्कत नहीं होती है और अगर कभी सामनेवाला राजी नहीं हुआ तो वो हिंदी में अपनी कार्यवाही करते हैं।

केवल कर्म से ही नहीं अपितु #संस्कृत भाषा में आस्था रखनेवाले श्यामजी हर वर्ष कचहरी में संस्कृत दिवस समारोह भी मनाते चले आ रहे हैं। लगभग #5 दर्जन से भी अधिक अप्रकाशित रचनाओं के अलावा श्यामजी की 2 रचनाएं #“भारत-रश्मि” और #“उद्गित” प्रकाशित हो चुकी हैं ।

कचहरी समाप्त होने के बाद श्याम जी अपना शाम का समय अपनी चौकी पर संस्कृत के छात्रों और संस्कृत के प्रति जिज्ञासु अधिवक्ताओं को पढ़ा कर बिताते हैं । #संस्कृत भाषा की यह शिक्षा श्यामजी निःशुल्क देते हैं।

संस्कृत भाषा में रूचि लेनेवाले बुज़ुर्ग अधिवक्ता #शोभनाथ लाल #श्रीवास्तव ने बताया कि, संस्कृत भाषा को लेकर पूरे न्यायालय परिसर में श्यामजी के लोग चरण स्पर्श ही करते रहते हैं।

जब ये कोर्टरूम में रहते हैं तो इनके सहज-सरल #संस्कृत भाषा के चलते श्रोता शांति से पूरी कार्यवाही में रुचि लेते हैं। श्यामजी के संपर्क में आने से उनके #संस्कृत भाषा का ज्ञान भी बढ़ गया।

आचार्य #श्यामजी उपाध्याय संस्कृत अधिवक्ता के नाम से प्रसिध्द हैं। वर्ष #2003 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने संस्कृत भाषा में अभूतपूर्व योगदान के लिए इनको #‘संस्कृतमित्रम्’ नामक #राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था।

प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा भारत की सभ्यता और #संस्कृति का सबसे मुख्य भाग रही है। फिर भी आज हमारे देश में संस्कृत को पाठशाला शिक्षा में अनिवार्य करने की बात कहने पर इसका विरोध शुरू हो जाता है। 



हम भारतवासियों ने अपने देश की #गौरवमयी संस्कृत भाषा को महत्व नही दिया। आज हमारे देश के विद्यालयों में संस्कृत बहुत कम पढ़ाई और सिखाई जाती है। किंतु आज अपनी #मातृभूमि पर उपेक्षा का दंश झेल रही संस्कृत, विश्व में एक सम्माननीय भाषा और सीखने के महत्वपूर्ण पड़ाव का दर्जा हासिल कर रही है। जहाँ भारत के तमाम पब्लिक पाठशालों में फ्रेंच, जर्मन और अन्य विदेशी भाषा सीखने पर जोर दिया जा रहा है वहीं #विश्व की बहुत सी पाठशालाएं संस्कृत को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं।

अमेरिका के नेता राजन झेद ने कहा है कि, संस्कृत को सही स्थान दिलाने की आवश्यकता है। एक ओर तो सम्पूर्ण विश्व में संस्कृत भाषा का महत्व बढ रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत में संस्कृत भाषा के विस्तार हेतु ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं जिसके कारण भारत में ही संस्कृत का #विस्तार नहीं हो पा रहा है और संस्कृत भाषा के महत्व से लोग #अज्ञात हैं । हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध और जैन धर्म के तमाम ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं।


न्यूजीलैंड की एक पाठशाला के प्रिंसिपल #पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि, दुनियाँ की कोई भी भाषा सीखने के लिए #संस्कृत भाषा आधार का काम करती है। 

संस्कृत विश्व की सर्वाधिक 'पूर्ण' (perfect) एवं #तर्कसम्मत भाषा है, संस्कृत ही एक मात्र साधन है जो क्रमश: अंगुलियों एवं जीभ को #लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।

अब केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को सभी स्कूलों, कॉलेजों में संस्कृत भाषा को #अनिवार्य करना चाहिए जिससे बच्चों की #बुद्धिशक्ति का विकास के साथ साथ बच्चे #सुसंस्कारी बने और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें ।

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