Tuesday, July 18, 2017

RTI रिपोर्ट : मोदी सरकार ने कत्लखानों को 67 करोड़ दी सब्सीडी


जुलाई 18, 2017
🚩मौजूदा केंद्र सरकार यानि मोदी सरकार के राजनीतिक एजेंडे में बीफ को बन्द करने का निर्णय है। बीफ को लेकर सख्त है। यूपी में योगी सरकार ने ‘अवैध बूचड़खानों’ पर कार्रवाई की तो प्रदेश में मीट की ही किल्लत हो गई। लेकिन गौ हत्या और #बूचड़खाने के खिलाफ रहने वाली #केंद्र सरकार ने ही पिछले 3  सालों में एक दो करोड़ नहीं, बल्कि #67 करोड़ रुपये से बूचड़खानों की मदद की है।
65 crore for slaughter houses
🚩#RTI के जरिए इस बात की जानकारी मिली है कि मोदी सरकार ने #बूचड़खानों को चलाने के लिए #67 करोड़ रुपये का #अनुदान दिया है। ये जानकारी मिनिस्ट्री ऑफ फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज (खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय) की तरफ से दी गई है।
🚩RTI में पूछा गया था कि साल #2014 से #17 तक बूचड़खानों को कितनी सब्सिडी दी गई। हर साल की रकम बताई जाए। पशुओं को काटने के लिए मशीनें खरीदने को किस साल और कितनी रकम दी गई। किस-किस राज्य को दी गई?
🚩इन सवालों का जवाब देते हुए मंत्रालय ने बताया कि साल 2014-15 में 10 करोड़,  2015-16 में 27 करोड़ और 2016-17 में 30 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई।
🚩राज्यों को दी गई सब्सिडी में पहले दो साल सबसे ज्यादा रकम आंध्र प्रदेश को दी गई है।
🚩ऐसे में ये सवाल उठे तो कोई हैरानी नहीं कि जब मोदी सरकार बीफ को लेकर इतनी गंभीर है तो क्यों बूचड़खानों को मदद दी जा रही है? एक तरफ बूचड़खानों को मदद, तो दूसरी तरफ बीफ बैन का शोर।
🚩आपको बता दें कि पशु कल्याण के लिए सरकार ने 1962 में 28 सदस्यीय एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया (#एडब्ल्यूबीआई) का गठन किया था जिसके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के जरिये फंड भेजा जाता है। 2011-12 में #एडब्ल्यूबीआई के लिए 21.7  करोड़ रुपये का आबंटन हुआ था, 2015-16 में यह राशि घटकर 7.8 करोड़ हो गई है। देश भर में चार हजार से अधिक #गौशालाओं में साढ़े तीन करोड़ गौवंश हैं। एडब्ल्यूबीआई के #चेयरमैन, डॉ. आर.एम. खर्ब के मुताबिक, 'एक गाय पर रोज का खर्चा कम से कम सौ रुपये है, मगर #केंद्र_सरकार से जो अनुदान राशि मिल रही है, उससे गौशालाओं में संरक्षित एक गाय के हिस्से साल में सिर्फ दो रुपये आते हैं।' यह है गाय पर #राजनीति करने वाली सरकार का असली चेहरा ।
🚩 #मोदी_सरकार आने के बाद पहला बजट पास किया गया जिसमें कत्लखाने खोलने के लिए 15 करोड़ सब्सिडी प्रदान की गई ।
2014 में  4.8 अरब डॉलर का बीफ एक्सपोर्ट हुआ था । 2015 में भी #भारत, 2.4 मिलियन टन बीफ #एक्सपोर्ट कर #दुनिया में नंबर वन बन गया।
🚩देश का दुर्भाग्य है कि #कसाईघरों के आधुनिकीकरण पर हम हजारों करोड़ खा रहे हैं, मगर पशुओं के #संरक्षण के वास्ते #सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं।
🚩#गाय के नाम पर वोट पाने वाली #सरकार गाय के लिए क्या कर रही है ये उपर्युक्त #आँकड़े से स्पष्ट है । हजारों कसाई लाखों गायों को हर साल काट रहे हैं उन्हें गुंडा नहीं बोला गया । सरकार को एक सर्वे करवाकर यह पता लगाना चाहिए कि कौन सी ‘दुकानें' ऐसी हैं जो गौरक्षा के नाम पर गाय का मांस बेच रही हैं।
🚩जब सत्ता में बैठे लोग कानून और संविधान की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं और ढिलाई बरतते हैं तो गौरक्षक को तो आगे आना ही पड़ेगा ।
🚩 स्वामी अखिलेश्वरानंद ने कहा कि गौरक्षक का नाराज होना जायज है जब गाय की हत्या की जाए,उसे गाड़ियों में मारकर ले जाया जाए। अगर गाय को लेकर सख्त कानून बन जाये तो प्रदेश में इसकी स्मगलिंग को रोका जा सकता है। 
🚩#गौमाता हमारे लिए कितना उपयोगी है। लिंक पर पढ़े
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🚩संत विनोवा भावे ने कहा था कि 'अगर हम #हिंदुस्तान में गौरक्षा नहीं कर सके, तो आजादी के कोई मायने ही नहीं होते। जिस तरह मैंने वेदों का चिन्तन किया है, उसी तरह कुरान और बाइबिल का भी किया है। उन दोनों #धर्मों में ऐसी कोई बात नहीं है कि गाय का बलिदान हो। इसलिए मैं कहता हूँ कि हमारे देश मे गौरक्षा अवश्य होनी चाहिए।'
🚩अतः सरकार जल्द से जल्द गौ माता की रक्षा के लिए #कानून बनायें । जिससे सारे झगडें खत्म हो जाये ।
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Monday, July 17, 2017

युवती रेप की झूठी शिकायत लेकर पहुँची पुलिस थाने, हो गई खुद गिरफ्तार


जुलाई 17, 2017
🚩पुणे : पुलिस थाने में रेप की शिकायत लेकर पहुंची एक महिला,अपने ही बुने झूठ के जाल में ऐसी फंसी कि जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गई।
Fake Rape Case
🚩खुद को टीवी शो क्राइम पट्रोल की एक्ट्रेस बताने वाली 25 साल की #पूजा जाधव को पुलिस ने #ब्लैकमेलिंग और डकैती के #आरोप में गिरफ्तार कर लिया। उसके तीन साथियों को भी पुलिस ने अरेस्ट किया है।
🚩पिंपरी की रहने वाली पूजा अपने तीन साथियों के साथ 8 जुलाई 2017 को भोसारी पुलिस थाने पहुंची थी। वह #नियामत कादरी नाम के शख्स के खिलाफ रेप की शिकायत दर्ज कराना चाहती थी। पूछताछ के दौरान पुलिस को पूजा का व्यवहार कुछ संदिग्ध नजर आया और यहीं से पुलिस की जांच की दिशा बदल गई। पूजा पहले रेप की #FIR दर्ज नहीं कराना चाहती थी, वह सिर्फ इतना चाहती थी कि पुलिस शिकायत दर्ज कर ले और कादरी को चेतावनी दे दे। लेकिन पुलिस थाने के सीनियर इन्सपेक्टर #दिलीप कुलकर्णी ने उसे बताया कि FIR तो दर्ज करानी ही होगी।
🚩FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के दौरान पुलिसवालों ने पूजा से पूछताछ शुरू की। पुलिस ने उससे जानना चाहा कि जब रेप हो रहा था, तब वह चिल्लाई क्यों नहीं। पूजा के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। दूसरी तरफ कादरी से भी पुलिस पूछताछ कर रही थी। पूछताछ में कादरी ने जो बताया, उसके बाद पुलिस को पूरा माजरा समझते देर नहीं लगी।
🚩दरअसल, पूजा और उसके साथी कादरी से यह सोचकर मिले थे कि वह एक अमीर बिल्डर है। उन्होंने उसे किसी बहाने से एक लॉज में बुलाया। लॉज के कमरे में सिर्फ पूजा और कादरी थे। पूजा जबरन उससे चिपकने लगी और फिर कुछ देर बाद रेप होने का नाटक करते हुए कमरे से बाहर निकल आई। बाहर उसके साथी पहले से इंतजार कर रहे थे। उन्होंने कादरी को पकड़ लिया और उसे कार में बैठाकर एक सुनसान जगह पर ले गए। वहां उन्होंने कादरी से पांच लाख रुपयों की मांग की और पैसे न देने पर पुलिस केस दर्ज कराने की धमकी दी। लेकिन इसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि कादरी कोई बिल्डर नहीं, बल्कि एक कॉन्ट्रैक्टर है। काफी कहासुनी के बाद उन्होंने कादरी से 25,000 रुपये देने को कहा। कादरी के इनकार करने पर उन्होंने उसके पास मौजूद 6,000 रुपये छीन लिए और फिर उसे पुलिस स्टेशन ले गए। लेकिन यहां उनके झूठ की पोल खुल गई।
🚩पुलिस ने बताया, 'जांच के दौरान हमें पता चला कि पूजा और उसके साथी साल 2012 से इस तरह की घटनाएं कर रहे हैं। जब पूजा शिकायत लेकर आई थी तो उसने खुद को टीवी शो #क्राइम पट्रोल की #एक्ट्रैस बताया था, जबकि उसके साथियों ने कहा था कि वे सोशल वर्कर है। हम फिलहाल उनके कॉल रिकॉर्ड्स खंगाल रहे हैं, ताकि यह पता लगा सकें कि उनके साथ और कितने लोग शामिल हैं और इन्होंने कितने लोगों को अपना शिकार बनाया है।' इस गैंग की दो सदस्य अनीता जाधव और माया अहोल फिलहाल फरार हैं। पुलिस ने आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया।
🚩आपने देखा कि कैसे अमीरों और #सुप्रसिद्ध हस्तियों को अपने जाल में #फँसाकर करोड़ों रूपये एठने का धंधा चल पड़ा है और नहीं देने पर उन पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें #जेल भेजने की कोशिश की जाती है।
🚩इसी प्रकार का मामला सामने आया है बापू #आसारामजी और उनके बेटे #नारायण साईं का उनपर #अक्टूबर 2013 में प्राथमिकी दर्ज की गई कि उनकेे आश्रम में रहने वाली सूरत गुजरात की 2 महिलायें, जो #सगी #बहनें हैं, उनमें से बड़ी बहन ने बापू आसारामजी के ऊपर 2001 में और छोटी बहन ने नारायण साईं जी पर 2003 में #बलात्कार हुआ , ऐसा आरोप लगाया है ।
🚩किसके दबाव में आकर 11/12 साल पुराना केस दर्ज किया गया । बड़ी बहन FIR में लिखती है कि 2001 में मेरे साथ बापू आसारामजी ने दुष्कर्म किया लेकिन जरा सोचिए कि अगर किसी लड़की के साथ #दुष्कर्म होता है तो क्या वो अपनी सगी बहन को बाद में #आश्रम में #समर्पित करा सकती है..???
🚩लेकिन बड़ी बहन ने छोटी बहन को 2002 में संत आसारामजी बापू आश्रम में सपर्पित करवाया था। उसके बाद छोटी बहन 2005 और बड़ी बहन 2007 तक आश्रम में रही । दोंनो #बहनें 2007 में आश्रम छोड़कर चली जाती हैं 2010 में उनकी शादी हो जाती है और जनवरी  2013 तक वो बापू आसारामजी और नारायण साईं के #कार्य्रकम में आती रहती हैं, सत्संग सुनती हैं, #कीर्तन करती हैं।
🚩लेकिन अचानक क्या होता है कि अक्टूबर 2013 में #बलात्कार का आरोप लगाती हैं !!
🚩पुलिस ने भी दोनों लड़कियों का 5 से 6 बार बयान लिया उसमे हरबार बयान विरोधाभासी आये और हर बार बयान बदल देती थी । इससे पता चलता है कि ये केस किसी द्वारा उपजाऊ है ।
🚩इससे बड़ी विडंबना देखिये कि दिसम्बर 2014 में लड़की केस वापिस लेना चाहती है लेकिन सरकार द्वारा विरोध किया जाता है और #न्यायालय उसको केस वापिस लेने को मना कर देता है ।
🚩यहाँ तक कि केस 12 साल पुराना होते हुए भी, कोई सबूत न होते हुये भी, बापू आसारामजी की #वृद्धावस्था को देखते हुए भी, 80 वर्ष की उम्र में चलना-फिरना मुश्किल होते हुए भी, जमानत तक नही दी जा रही है ।
🚩लगातार #मीडिया द्वारा बापू आसारामजी की छवि को #धूमिल करने का प्रयास करना, सरकार द्वारा जमानत तक का विरोध करना और #न्यायालय का जमानत देने से इंकार करना...
🚩क्या एक हिन्दू संत को जबरदस्ती षड़यंत्र के तहत फंसाने की बू नहीं आ रही है..???
🚩और वो भी ऐसे संत जिन्होंने हिन्दू संस्कृति का परचम विश्व में लहराया..!!!
🚩जिन्होंने देश और संस्कृति के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया...!!!
🚩जिन्होंने पाश्चात्य कल्चर से युवाओं को बचाकर,वेलेंटाइन डे की गन्दगी से मातृ पितृ पूजन दिवस शुरू करवा युवाओं को संयमी जीवन की ओर अग्रसर किया..!!
🚩कुछ समय पहले दिल्ली में 6 साल पुराना #बलात्कार का केस दर्ज हुआ था तब उसपर न्यायालय ने ये बोलकर खारिज किया कि केस 6 साल पुराना है, लेकिन वही #न्यायालय #सूरत की 2 लड़कियों के 12 साल पुराना केस दर्ज करवाने पर खारिज करना तो दूर #जमानत तक नही देता।
🚩 ये सब देखकर क्या आपको नहीं लगता कि #सुनियोजित #षड़यंत्र करके केस दर्ज हुआ है..???
🚩आज सुप्रसिद्ध हस्तियाँ और संतों को फंसाने में #महिला कानून का #अंधाधुन दुरूपयोग किया जा रहा है जैसे कि गुजरात द्वारका के #केशवानंदजी पर कुछ समय पूर्व एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया और कोर्ट ने सजा भी सुना दी लेकिन जब दूसरे जज की बदली हुई तब देखा कि ये मामला झूठा है तब उनको 7 साल के बाद निर्दोष बरी किया ।
🚩ऐसे ही दक्षिण भारत के स्वामी #नित्यानन्द जी के ऊपर भी सेक्स सीडी मिलने का आरोप लगाया गया और उनको जेल भेज दिया गया बाद में उनको कोर्ट ने क्लीनचिट देकर बरी कर दिया ।
🚩ऐसे ही हाल ही में #शिवमोगा और बैंगलोर मठ के शंकराचार्य राघवेश्वर भारती स्वामीजी पर एक #गायिका को 3 करोड़ नही देने पर 167 बार बलात्कार करने का आरोप लगाया था ।
उनको भी कोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया ।
🚩आपको बता दें कि दिल्ली में बीते छह महीनों में 45 फीसदी ऐसे मामले अदालत में आएं जिनमें #महिलाएँ हकीकत में पीड़िता नहीं थी,बल्कि अपनी माँगें पूरी न होने पर बलात्कार का केस दर्ज करा रही थी ।
🚩छह जिला #अदालतों के रिकॉर्ड से ये बात सामने आई है कि बलात्कार के 70 फीसदी मामले अदालतों में साबित ही नहीं हो पाते हैं ।
🚩बलात्कार कानून की आड़ में महिलाएं आम नागरिक से लेकर सुप्रसिद्ध हस्तियों, संत-महापुरुषों को भी #ब्लैकमेल कर झूठे बलात्कार आरोप लगाकर जेल में डलवा रही हैं ।
🚩बलात्कार निरोधक #कानूनों की खामियों को दूर करना होगा। तभी समाज के साथ न्याय हो पायेगा अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष सजा भुगतने के लिए मजबूर होते रहेंगे ।
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Sunday, July 16, 2017

पश्चिम बंगाल की हिंसा की जड में क्या है? आप भी जानिये पूरी सच्चाई...


जुलाई 16, 2017

पश्चिम बंगाल में तकी रोड पर जब आप कोलकाता से बांग्लादेश सीमा पर घोजाडांगा पोस्ट की आेर बढते हैं, तो इस व्यस्त हाइवे पर लगभग 50 किलोमीटर चलकर बेराचंपा से एक दोराहा आता है। बाएं की ओर 14 किलोमीटर आगे चलते हुए आप बदुरिया कस्बे पहुंच जाते हैं।

बदुरिया की जनसंख्या लगभग ढाई लाख है। हाल ही में यहां हुए सांप्रदायिक दंगों की वजह से इसकी चर्चा हो रही है। बदुरिया की हिंसा का असर न केवल पूरे देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाड सकता है, बल्कि ये मामला देश की सुरक्षा से भी जुडा है !
BENGAL RIOTS

16 साल पहले बांग्लादेशी बडी तादाद में अवैध घुसपैठ के चलते बदुरिया में आकर बस रहे थे। उस समय पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार थी। वामपंथी सरकार ने इस घुसपैठ की आेर से आंखें बंद की हुई थीं। वो बांग्लादेश से आए इन घुसपैठियों को वोटबैंक के तौर पर उपयोग कर रहे थे।

उस समय बदुरिया के लोग ममता बनर्जी को बडी उम्मीद की नजर से देखते थे। उन्हें लगता था कि ममता की सरकार बनी तो वो बांग्लादेशी घुसपैठियों पर लगाम लगाएंगी। उन्हें लगता था कि ममता के सत्ता में आने पर प्रशासन बेहतर होगा। हिंदू-मुसलमान के नाम पर भेदभाव नहीं होगा।

आज 16 वर्ष बाद बदुरिया के लोगों की उम्मीदें टूट चुकी हैं। आज ये क्षेत्र जंग का मैदान बन चुका है। 17 वर्ष के एक लडके की जिस फेसबुक पोस्ट की वजह से यहां पिछले सप्ताह जबरदस्त हिंसा हुई, वो तो बस बहाना थी। इस बार हमारे मेजबान बताते हैं कि जब हिंसा भडकी तो उन्हें बहुत डर लगा। इसीलिए वो बाकी देशवासियों को यहां के हालात के बारे में बताने को बेताब थे। उन्हें डर लग रहा था कि अगर कुछ किया न गया तो यहां बडा ‘हत्याकांड’ हो सकता है !

हालात बेहद खराब

स्थानीय लोग कहते हैं कि आज की तारीख में बदुरिया में हालात बेहद बिगड चुके हैं। यहां के 65 प्रतिशत वोटर मुसलमान हैं। यहां पर सबसे ज्यादा जो इमारतें बन रही हैं वो मदरसे और मस्जिद हैं !

बदुरिया आज बांग्लादेश का ही हिस्सा लग रहा है। स्थानीय लोग अपने ही क्षेत्र में अजनबी हो गए हैं। पुलिस अब लडकियों से छेडखानी की शिकायत तक नहीं सुनती ! 3 जुलाई को जो हिंसा भडकी वो तो बस एक बहाना थी। असल में घुसपैठिये यहां बचे हुए पुराने लोगों को ये इलाका छोडकर भाग जाने की धमकी दे रहे हैं !

आज ये हालात ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के कारण से उत्पन्न हुए हैं। यहां के ज्यादातर लोग भारतीय नागरिक तक नहीं हैं ! दंगाइयों और हिंसा भडकानेवालों (जो फेसबुक पोस्ट लिखने के आरोपी लडके को फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे थे) के प्रति नरमी दिखाकर ममता ने साफ कर दिया है कि वो सांप्रदायिक ताकतों के आगे झुक गई हैं। तभी तो उन्होंने यहां तीन दिन तक दंगाइयों को खुली छूट दे रखी थी और सुरक्षाबलों को उनसे निपटने से रोक रही थीं !

जब ममता बनर्जी को दंगाइयों से सख्ती से निपटना चाहिए था। जब उनकी जिम्मेदारी थी कि वो सांप्रदयिक ताकतों के विरोध में कडे कदम उठातीं, तो वो केंद्र सरकार से झगडा करने लगीं। मदद के लिए भेजी गई सुरक्षा बलों की टुकडियों को लौटा दिया। इसके बाद वो राज्यपाल पर आरोप लगाने लगीं !

ममता ने उन्हें भाजपा का सडकछाप नेता कह दिया और उन पर अपमानित करने का आरोप भी लगाने लगीं। इससे ममता बनर्जी की नीयत साफ हो गई। जाहिर है कि उनकी ये सियासी नौटंकी कानून-व्यवस्था को लेकर अपनी नाकामी छुपाने के लिए ही थी। कानून का राज कायम करने के मोर्चे पर ममता बनर्जी बुरी तरह फेल हुई हैं !

इस हिंसा को राज्यपाल की ओर से ‘हस्तक्षेप’ की उपज बताने के उनके दांव को भले ही उनके समर्थक मान लें, परंतु इससे तो सांप्रदायिक ताकतों के हौसले बुलंद ही होंगे ! राज्य के दूसरे हिस्सों में भी दंगाइयों को ममता के रवैये से हौसला मिलेगा। बदुरिया में शरीयत के तहत सजा की मांग, केवल बंगाल ही नहीं, पूरे देश के लिए खतरे की घंटी है !

धर्म के नाम पर कत्ल करने पर उतारू भीड को सजा न मिलने से एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश होने के हमारे दावे पर दाग लगना तय है। किसी भी भीड का हिंसक तरीकों से अपनी मांग मंगवाना जायज नहीं। लोगों को कानून से खिलवाड की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए !

मीडिया पर भी सवाल

पश्चिम बंगाल की ताजा सांप्रदायिक हिंसा को लेकर वहां के मीडिया के रोल पर भी सवाल उठे हैं। सरकार के दबाव में या फिर चापलूसी की नीति के चलते किसी भी बडे मीडिया हाउस ने बदुरिया की हिंसा की घटना को प्रसिद्धि नहीं दी !

यूं लग रहा था कि मीडिया की इस शुतुरमुर्गी नीति से हालात खुद-ब-खुद ठीक हो जाएंगे। मगर ये उसी मीडिया की खामोशी थी, जो हाल के दिनों में देश के दूसरे हिस्सों में पीट-पीटकर हुई हत्याओं की घटनाओं पर खूब शोर मचा रहा था। गौरक्षकों की हिंसा को लेकर यही मीडिया छाती पीट रहा था। पश्चिम बंगाल के मीडिया को समझना होगा कि अपराधियों से निपटने के दो पैमाने नहीं हो सकते। अगर वो गौरक्षकों की हिंसा को लेकर शोर मचा रहे थे, तो उन्हें बदुरिया की सांप्रदायिक हिंसा पर भी आवाज उठानी चाहिए थी !

पाकिस्तान की तरह भारत अच्छे और बुरे आतंकवादी यानी अच्छे और बुरे दंगाइयों का फर्क नहीं कर सकता !

सवाल ये है कि, पश्चिम बंगाल में कालियाचक, धूलागढ़ और अब बदुरिया की सांप्रदायिक हिंसा क्या संकेत देती है ? पश्चिम बंगाल के बिगडते सांप्रदायिक माहौल के लिए यूं तो केवल ममता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। मगर मौजूदा सरकार होने की वजह से सबसे ज्यादा जवाबदेही उन्हीं की बनती है। इससे वो अपनी नौटंकीवाली सियासत करके पल्ला नहीं झाड सकतीं !

पूरे देश को मालूम है कि, वोट बैंक की राजनीति के चलते पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकारों ने बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की आेर से आंखें मूंदे रखीं। उस दौर में भारत-बांग्लादेश की सीमा पर जानवरों के बदले इंसानों की अदला-बदली का कारोबार आम था। सीमा की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसियां ये अवैध कारोबार रोकने में नाकाम रहीं !

इससे ही साफ है कि, हम देश की सुरक्षा को लेकर कितने गंभीर हैं ! हमारी नाकामी की सबसे बडी मिवर्ष यही है कि हमें यही नहीं पता कि बांग्लादेश से कितने लोगों ने अवैध तरीके से हिंदुस्तान में घुसपैठ की। आज हालात ये हैं कि खुद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चेताया है कि बांग्लादेश से आतंकी पश्चिम बंगाल में घुसकर पनाह ले रहे हैं। परंतु ममता ने शेख हसीना की चेतावनी को भी अनसुना कर दिया !

कोई भी सरकार जिसकी हालत पर नजर हो, जो देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर हो, वो घुसपैठ को लेकर बेहद सतर्क होगी। परंतु पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं हुआ। घुसपैठियों की तादाद बढ़ती रही। मुसलमानों की जनसंख्या पश्चिम बंगाल में जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी तेजी से देश के किसी भी हिस्से में नहीं बढ़ी। फिर भी वहां की सरकारें सोई रहीं !

क्या है इस हिंसा की जड में ?

आज पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या, आजादी से पहले के स्तर पर पहुंच रही है। 1941 में पश्चिम बंगाल में 29 प्रतिशत मुसलमान जनसंख्या थी। आज ये आंकडा 27 प्रतिशत पहुंच गया है। जबकि देश के बंटवारे के बाद 1951 में पश्चिम बंगाल में केवल 19.5 प्रतिशत मुसलमान थे। बंटवारे के बाद बडी तादाद में मुसलमान, पाकिस्तान चले गए थे।

हम मुसलमानों की जनसंख्या में बढोतरी के आंकडों पर गौर करें तो चौंकानेवाली बातें सामने आती हैं ! 2001 से 20111 के बीच पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 1.77 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी। जबकि देश के बाकी हिस्सों में मुस्लिम जनसंख्या 0.88 प्रतिशत की दर से बढ़ी !

यूं तो राजनीति में आंकडों की बहुत बात होती है। परंतु पश्चिम बंगाल की तेजी से बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या की आेर से सब ने आंखें मूंद रखी थीं। सियासी फायदे के लिए देशहित की कुर्बानी दे दी गई। अगर हम आंकडों पर ध्यान देते तो फौरन बात पकड में आ जाती कि जिस बंगाल में कारोबार ठप पड रहा था, उद्योग बंद हो रहे थे, वहां लोग रोजगार की नीयत से तो जा नहीं रहे थे !

आज की तारीख में हम घुसपैठ के सियासी असर की बात करें तो, पश्चिम बंगाल के तीन जिलों में मुसलमान बहुमत में हैं। लगभग 100 विधानसभा सीटों के नतीजे मुसलमानों के वोट तय करते हैं। यानी मुस्लिम वोट, पश्चिम बंगाल की सियासत के लिहाज से आज बेहद अहम हो गए हैं। इसीलिए राज्य में ममता बनर्जी जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। उनसे पहले वामपंथी दल यही कर रहे थे !

तुष्टीकरण की गंदी सियासत का नमूना हमने 2007 के चुनावों में देखा था। उस समय अपनी तरक्कीपसंद राजनीति के बावजूद वामपंथी सरकार ने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को कोलकाता से बाहर जाने पर मजबूर किया। इसकी वजह ये थी कि बंगाल के कट्टरपंथी मुसलमान, तस्लीमा के शहर में रहने का विरोध कर रहे थे। आज का पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक रूप से और भी संवेदनशील हो गया है !

ममता बनर्जी ने सांप्रदायिकता को अपना सबसे बडा सियासी हथियार बना लिया है। उनका आदर्शवाद सत्ता में रहते हुए उडन-छू हो चुका है। राज्य के 27 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या को लुभाने के लिए ममता किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखती हैं। इसीलिए वो नूर-उल-रहमान बरकती जैसे मौलवियों को शह देती हैं !

ये वही बरकती है जिसने पीएम मोदी के विरोध में फतवा दिया था। बरकती ने कई भडकाऊ बयान दिए। वो लालबत्ती पर रोक के बावजूद खुले तौर पर अपनी गाडी में लालबत्ती लगाकर चलता था। परंतु ममता ने उसके विरोध में कोई एक्शन नहीं लिया। बाद में कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के ट्रस्टियों ने बरकती को इमाम पद से जबरदस्ती हटाया।

इसी तरह ममता बनर्जी ने मालदा के हरिश्चंद्रपुर कस्बे के मौलाना नासिर शेख की आेर से आंखें मूंद लीं। इस मौलाना ने टीवी, संगीत, फोटोग्राफी और गैर मुसलमानों से मुसलमानों के बात करने पर पाबंदी लगा दी थी। राज्य के धर्मनिरपेक्ष नियमों के विरोध में जाकर ममता ने इमामों और मौलवियों को उपाधियां और पुरस्कार दिए हैं !

ममता ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें तोड दी हैं ! तभी तो दुर्गा पूजा के बाद 4 बजे के बाद मूर्ति विसर्जन पर, मुहर्रम का जुलूस निकालने के लिए रोक लगा देती हैं। उन्हें आम बंगालियों की धार्मिक भावनाओं का खयाल तक नहीं आता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी सरकार के इस फैसले को अल्पसंख्यकों का अंधा तुष्टीकरण कहा था !

क्या ममता बनर्जी को ये समझ में आएगा कि मुस्लिम तुष्टीकरण से बंगाल में अब काजी नजरुल इस्लाम जैसे लोग नहीं पैदा होगे। बल्कि इससे इमाम बरकती और नसीर शेख जैसे मौलवियों को ही ताकत मिलेगी ! ये वही लोग हैं जो मुसलमानों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं, मगर उन्हीं के हितों को चोट पहुंचाते हैं। ये सांप्रदायिकता फैलाते हैं !

आज बदुरिया में जो हो रहा है वो तुष्टीकरण की नीतियों का ही नतीजा है। कल यही हाल कोलकाता का भी हो सकता है !

ममता बनर्जी सांप्रदायिकता की ऐसी आग से खेल रही हैं, जिस पर काबू पाना उनके बस में भी नहीं होगा !

🚩स्त्रोत : फर्स्ट पोस्ट

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