Friday, July 12, 2019

पाकिस्तान में हिंदुओं पर कहर, 31 लड़कियों को कर लिया अगवा

12 जुलाई 2019
🚩ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2016 की रिपोर्ट कहती है कि 20 लाख से ज्यादा पाकिस्तानी हिन्दू गुलामों की जिंदगी बसर कर रहे हैं, इनमें अल्पसंख्यकों की बड़ी तादाद है । जिनसे खेती-बाड़ी से लेकर घर तक के काम कराए जाते हैं । एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में हर साल करीब 1000 हिंदू और ईसाई लड़कियों (ज्यादातर नाबालिग) को मुसलमान बनाकर शादी करा दी जाती है ।

🚩पाकिस्तान में हिन्दू मंदिर तोड़े जाते हैं । हिन्दू महिलाओं के साथ दुष्कर्म किये जाते हैं । यहाँ तक कि उठाकर मुस्लिम बना दिया जाता है, श्मशान घाट तक नहीं है, हिन्दुओं की हत्याएं की जाती हैं । हिन्दुओं पर इतना अत्याचार किया जाता है फिर भी उनके लिए कोई आवाज उठाने के लिए तैयार नहीं है ।
🚩भारत में किसी एक मुस्लिम को थप्पड़ भी मार दिया जाए तो बुद्धिजीवी, मीडिया हल्ला करने लगती है एवं सरकार और न्यायालय तुरंत कार्यवाही करते हैं, पर बड़ी विडंबना है कि पाकिस्तान में लाखों हिन्दू भयंकर अत्याचार से गुजर रहे हैं, पर किसी के पेट का पानी तक नहीं हिल रहा है ।
🚩3 माह में 31 लड़कियां अगवा-
🚩पाकिस्तान में बहुसंख्यकों की ज्यादती अब असहनीय होने लगी है और लोग सड़कों पर उतर आए हैं । हफ्तेभर में तीन प्रदर्शन हो चुके है जिसमें हिन्दू, सिख और ईसाई एक साथ पाकिस्तान प्रेस क्लब के कार्यालय तक गए है और खुलकर आरोप लगाया कि हिन्दुओं का अब यहां रहना मुश्किल हो गया है। इसके बावजूद घटनाएं थम नहीं रही है। धर्म परिवर्तन का दबाव बढ़ाने के लिए यह बदसलूकियां होने लगी है। तीन महीने में सिंध इलाके में 31 लड़कियों का अपहरण हुआ है। पुलिस तो मामला दर्ज नहीं करती और यह कहकर निरस्त कर देती है कि लड़की ने अपनी मर्जी से मजहब कबूल कर निकाह कर लिया। परेशान हिन्दू परिवार भारत आने लगे है, जैसे ही यह भनक लगती है उनकी संपत्ति को औने-पौने दामों में खरीदने का दबाव बनने लगा है। खबर यह भी है कि संपन्न हिन्दू परिवार भारत में पलायन करने लगे है।
🚩हैदराबाद (पाकिस्तान) में तीन दिन पहले एक डिप्टी (पुलिस ) की पत्नी गुरुद्वारे में घुसी। यहां सिक्खों को पूजा करने से रोका और उनको यह कहा कि उसकी नींद में खलल पड़ रही है। इस दौरान अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए महिला पुरुषों को यहां से बाहर निकलने को कहा। पुजारी को प्रताड़ित करने का यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
🚩पिछले हफ्ते सिंध में हिन्दू, सिक्ख और ईसाई संप्रदाय के सैकड़ों लोग एकत्रित हुए। उन्होंने रैली निकाली और सड़कों पर प्रदर्शन किया कि बहुसंख्यक उनके साथ में ज्यादती कर रहे हैं । अपहरण और बलात्कार की घटनाएं बढ़ने का आरोप लगाते हुए कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए है।
🚩थारपाकर इलाके में 37 भील परिवारों का एक साथ धर्म परिवर्तन करवाया गया। यहां एक मौलवी ने इन गरीब परिवारों के लिए शर्त रख दी कि उनको यहां रहना है तो धर्म बदलना होगा। इसको बाद में सावर्जनिक प्रदर्शन भी किया गया। स्त्राेत : पत्रिका
🚩कनाडा में फिर से सिंधियों का प्रदर्शन-
कनाडा में बसे सिंधी समुदाय की आेर से बड़े पैमाने पर पाकिस्‍तान का विरोध किया जा रहा है। कनाडा में बसे सिंधी, पाक में रहने वाली हिन्दु नाबालिग लड़कियों के जबरन धर्मांतरण के खिलाफ प्रदर्शन करके पाक को लेकर अपना गुस्‍सा जता रहे हैं। तीन माह के अंदर इस मामले में कनाडा में यह दूसरा विरोध प्रदर्शन है और सिंधी समुदाय की ओर से लगातार जबरन धर्मांतरण के मसले पर कार्रवाई की मांग की जा रही है।
🚩लंदन में विरोध प्रदर्शन
पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने के विरोध में सिंधी महिलाओं ने लंदन स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के सामने प्रदर्शन किया था । यह प्रदर्शन अंतर्राष्ट्रीय सिंधी महिला संगठन (ISWO) के तत्वाधान में आयोजित किया गया था ।
🚩मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि बीते 50 सालों में पाकिस्तान में बसे 90 प्रतिशत हिंदू देश छोड़ चुके हैं । धीरे-धीरे उनके पूजा स्थल और मंदिर भी नष्ट किए जा रहे हैं । 95 प्रतिशत हिंदू मंदिर नष्ट कर दिए गए हैं । हिंदुओं की संपत्ति पर जबरन कब्जे के कई मामले सामने आ रहे हैं । हिंदुओं की नाबालिग लड़कियों को जबरदस्ती उठाकर शादी कर लेते हैं और उनका धर्म परिवर्तन करवा देते हैं ।
🚩पाकिस्तान में केवल हिंदू मंदिरों को भी नष्ट कर उनके स्थान पर कारोबारी और अन्य तरह की गतिविधियां बढ़ाई जा रहीं और हिंदुओं पर हमले भी हो रहे हैं !
🚩भारत में मुस्लिमों को इतनी सुविधा मिलने के बाद भी लोग कहते हैं कि मुस्लिमों का शोषण होता है, मीडिया भी इसपर जोरों-शोरों से खबरें दिखाती है । पाकिस्तान के हिंदुओं की हालत नरक से भी बद्तर हो गई है अतः हमें उनके लिए आवाज उठानी चाहिए क्योंकि मीडिया, सेकुलर, वामपंथी इस खबर पर चुप रहेंगे ।
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Thursday, July 11, 2019

मीडिया बिकाऊ व देशद्रोही है, सस्ते में बिक जाती है - कंगना रनौत

11 जुलाई 2019
🚩इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया की समाज में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका है । मीडिया को लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ भी कहा गया है क्योंकि इसकी जिम्मेदारी देश और लोगों की समस्याओं को सामने लाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर नजर रखना भी है, लेकिन आज पैसे और टीआरपी की अंधी दौड़ में एक तरफा झूठी खबरों को दिखाकर अपनी विश्वसनीयता खो रही है। इसके कारण आज समाज का हर वर्ग मीडिया की आलोचना जरूर करता है।

🚩अभी वर्तमान में अभिनेत्री कंगना रनौत ने मीडिया की खूब आलोचना की है और वह सही भी है और जरूरी है क्योंकि मीडिया की असलियत सामने आनी चाहिए । जो मीडिया की बांतों पर आँखें मूंदकर विश्वास करते हैं उनके लिए यह जानना खास जरूरी है कि मीडिया कितनी बेईमान है ।

🚩भारतीय मीडिया को लेकर अभिनेत्री कंगना ने कहा, "मीडिया का एक सेक्शन ऐसा है जो दीमक की तरह हमारे देश में लगा है और धीरे-धीरे देश की गरिमा, अस्मिता एवं एकता पर आए दिन अटैक करता रहता है..झूठी अफवाहें फैलाता रहता है । गंदे-भद्दे देशद्रोहिता के विचार खुले तौर पर सबके सामने रखता है । इनके खिलाफ हमारे संविधान में किसी भी तरह की न तो कोई पेनाल्टी है और न ही कोई सजा है । इस चीज से मुझे बहुत ज्यादा ठेस लगी और मैंने खुद से निर्धारित कर लिया कि ये जो दोगली मीडिया एवं बिकाऊ मीडिया है जो खुद को लिबरल कहती है सेकुलर कहती है और कुछ भी नहीं है जो दसवीं फेल है... ये लोग सूडो लिबरल हैं और ये लोग बिल्कुल भी सेकुलर नहीं हैं। अगर ये लोग सेकुलर होते तो हमेशा धार्मिक चीजों को लेकर देश की एकता पर प्रहार नहीं करते।"
🚩कंगना ने कहा, "ऐसे ही एक चिंदी से जर्नलिस्ट को मैं एक-दो दिन पहले एक प्रेस कांफ्रेंस में मिली। उसी की तरह बहुत सारे लोग हैं जो हमारे सीरियस इश्यूज को, विश्व पर्यावरण दिवस के दिन मैंने प्लास्टिक बैन को लेकर कैम्पेन किया था जिसमें मैंने प्लास्टिक के खिलाफ काफी कुछ एक्टिविटीज की थी, इस जर्नलिस्ट को मैंने उसकी खिल्ली उड़ाते हुए देखा। फिर मैंने काऊ स्लाटर के अगेंस्ट, एनीमल क्रूलिटी के अगेंस्ट कैम्पेन किया उसका भी ये मजाक उड़ा रहा था। एक शहीद पे मैंने फिल्म बनाई उसके नाम की खिल्ली उड़ा रहा था। और प्लीज आप...ये गौर तलब, इनके पास किसी भी तरह का कोई तर्क वितर्क समीक्षा या विचार नहीं है जो एक पत्रकार का हक़ है। उस तरीके से नहीं गाली गलौज से कुछ करके गंदी बातें लिखके, प्रोफेशनल ट्रोल्स जो हैं...मुफ्त का खाना खाने पहुंच जाते हैं ये हर जगह प्रेस कांफ्रेंस में।"
🚩कंगना ने आगे बताया कि "मेरे पास किसी भी तरह के देश द्रोही के लिए जीरो परसेंट टॉलरेंस है। तो तीन चार लोगों ने मिलकर मेरे खिलाफ एक कोई गिल्ड बनाई जो अभी शायद कल ही बनी है। उसकी कोई मान्यता ही नहीं है। तो उस गिल्ड के चलते लोगों ने मुझे धमकी देना शुरू किया है कि मुझे बैन कर देंगे या मुझे कवर नहीं करेंगे, या मेरा करियर बर्बाद कर देंगे। अरे नालायकों, देशद्रोहियों, बिकाऊ लोगों तुम लोगों को खरीदने के लिए लाखों भी नहीं चाहिए। तुम लोग तो इतने सस्ते हो कि पचास साठ रुपये में बिछ जाते हो ।
जो अपनी देश के साथ गद्दारी करते हैं, जिसमें खाते हैं उसी में छेद करते हैं।
🚩कंगना की बात सहीं है क्योंकि मीडिया पैसे और टीआरपी के लिए जो अंधी दौड़ लगा रही है उससे देश को काफी नुकसान हो रहा हैं, इसके चलते झूठी एवं पक्षपाती खबरे दिखा रही है जिसके कारण आज जनता का मीडिया पर से विश्वास उठता जा रहा है।
🚩मीडिया के कवरेज में काफी बदलाव आया है । कई बार ऐसा लगता है कि मीडिया व्यक्ति-केंद्रित हो चुका है । कुछ  नाटकीयता और अतिरंजना के साथ कार्यक्रम परोस कर दर्शकों को लुभाने की कोशिश की जा रही है ।
🚩ऐसा लगता है कि मीडिया अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से भाग रहा है । सामाजिक खबरें कम दिखाई देती हैं । आजकल टीवी चैनलों पर नेता ही दिखाई देते हैं ।
🚩टीवी पर नेताओं के भाषणों और बयानों से ही समाचार के वक्त भरे रहते हैं, वहीं अखबारों में विज्ञापन ज्यादा और खबरें कम दिखाई देती हैं ।
🚩देश में बहुत सारी समस्याएं हैं, लेकिन मीडिया को शायद उनसे कोई सरोकार नहीं है । चाहे हम किसानों की आत्महत्या की बात करें या फिर गरीबों पर होने वाले अत्याचारों, मीडिया में ऐसे मामलों को गह देने में या तो कंजूसी दिखाई जाती है या फिर जरूरी संवेदनशीलता नहीं बरती जाती ।
🚩मीडिया सिर्फ शहरों की घटनाओं और समस्याओं को लेकर गंभीर दिखता है ।
शहरों में भी, मध्यवर्ग की समस्याएं ही उसे अधिक परेशान करती हैं । मसलन, बारिश से घंटे-दो घंटे भी यातायात जाम हो जाए तो टीवी चैनलों पर चीख-पुकार शुरू हो जाती है, मगर जिन इलाकों के लोग बरसों से पानी के लिए तरसते रहते हैं उनकी सुध नहीं ली जाती ।
🚩भारत में मीडिया का हमेशा हिंदू विरोधी रवैया रहा है । हमेशा एक तरफा खबर दिखाई है जैसे क़ि ओवैसी या जाकिर हुसैन हिन्दू देवी देवता के लिए बोले या भारत विरोधी बोले अथवा कोई मौलवी या ईसाई पादरी कितने भी बलात्कार करे, कन्हैया देश को तोड़ने की बात करे, लेकिन उस ओर कभी समाज का ध्यान केंद्रित नही करते और अगर करते हुए दिखते भी हैं तो उनके बचाव में । वहीं अगर कोई हिन्दू हिंदुत्व की बात करे तो उसको तोड़-मरोड़ कर विवादित बयान बना कर पेश किया जाता है कि जनता उनके विरुद्ध हो जाये ।
🚩भारतवासी ऐसे बिकाऊ और देशद्रोही मीडिया का बहिष्कार करना ही एकमात्र विकल्प है।
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Wednesday, July 10, 2019

मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश वाली याचिका खारिज, सबरीमाला में प्रवेश क्यों?

10 जुलाई 2019
🚩भारत में गिने-चुने 2-4 मंदिर ऐसे होंगे जिसमें महिलाओं का प्रवेश निषेध होगा क्योंकि मंदिर की ऐसी प्रथा प्राचीनकाल से चली आ रही है, उस पर तथाकथित बुद्धजीवियों को आपत्ति होती है, सेकुलर हिंदू व नेता हो हल्ला मचाने लगते हैं और मीडिया का तो बोलना ही क्या वो तो 24 घण्टे गले फाड़-फाड़कर चिल्लाने लगती है कि महिलाओं को भी मंदिर में प्रवेश मिलना चाहिए, समान अधिकार होना चाहिए, लेकिन जैसे ही पूरे देश में मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की बात आती है तब सब चुप हो जाते हैं । यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट या सरकार भी उसमे हस्तक्षेप नहीं करती है और ना ही मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी तथा सेक्युलरों को तो मानो साँप सूंघ जाता है । क्या मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की चिंता इस दोगली मीडिया को नहीं है ?
🚩आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने मस्जिदों में नमाज के लिये महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के लिये अखिल भारत हिन्दू महासभा की केरल इकाई की याचिका सोमवार को खारिज कर दी ।
🚩प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केरल उच्च न्यायालय के इस आदेश को सहीं ठहराया कि यह जनहित याचिका प्रायोजित है और 'सस्ते प्रचार के लिये इसका इस्तेमाल हो रहा है।
🚩केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील खारिज करते हुये पीठ ने सवाल किया, ''आप कौन हैं? आप कैसे प्रभावित हैं? हमारे सामने प्रभावित लोगों को आने दीजिये।
🚩अखिल भारत हिन्दू महासभा की केरल इकाई के अध्यक्ष स्वामी देतात्रेय साई स्वरूप नाथ ने जब न्यायाधीशों के सवालों का जवाब मलयाली भाषा में देने का प्रयास किया तो पीठ ने न्यायालय कक्ष में उपस्थित एक अधिवक्ता से इसका अनुवाद करने का अनुरोध किया।
🚩अधिवक्ता ने पीठ के लिये अनुवाद करते हुये कहा कि स्वामी याचिकाकर्ता हैं और उन्होंने केरल उच्च न्यायालय के 11 अक्टूबर 2018 के आदेश को चुनौती दी है।
🚩इस पर पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि इस याचिका पर सुनवाई होने से पहले ही इसके बारे में मीडिया में खबरें थीं और यह प्रायोजित याचिका लगती है जिसका मकसद सस्ता प्रचार पाना है।
🚩पीठ ने कहा, ''हमें उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नजर नहीं आती है। याचिका खारिज की जाती है।
🚩पर यही सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला पर ये बातें याचिकाकर्ता से नहीं पूछती है सीधा प्रवेश का आदेश दे देती है, जबकि हजारों महिलाओं ने इसका विरोध किया फिर भी उनकी एक भी नहीं सुनी । जलीकट्टू पर भी रोक लगाने की और दही-हांडी पर रोक लगाने पर आदेश दे दिया तब याचिकाकर्ता को नहीं पूछा कि आप कौन हो? प्रभावित लोगों को आने दो ।
🚩भारतीय संविधान के अनुसार भारत धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान हर नागरिक को समान मौलिक अधिकार भी देता है । पर वास्तव में ये सब कागज़ों तक ही सीमित है । बाकी हिंदुओं का कोई अधिकार दिखता ही नहीं है, दुनिया के किसी भी कोने में हिंदू चले जाएँ वहाँ प्रताड़ित ही होंगे ।
🚩महिलाओं का मस्जिद में प्रवेश धार्मिक मामले के अंतर्गत आता है, लेकिन हिन्दू धर्म की प्रथा, नियम, मान्यताओं पर न्यायालय द्वारा चोट किया जाता है । क्या हिंदुओं का अपना कोई धार्मिक अधिकार, स्वतंत्रता नहीं है ? आज ऐसे ही फैसलों के कारण जनता का विश्वास न्यायतंत्र से उठता जा रहा है ।
🚩हिंदुओं के साथ सदा भेदभाव होता आया है । एक तरफ तो भारत देश का संविधान बोलता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है तो क्यों केवल हिंदुओं की भावना और छवि से ही खिलवाड़ क्यों किया जाता है ? विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जाने वाले देश भारत में केवल हिंदुओं के साथ ही अन्याय क्यों होता है ? क्या यही लोकतंत्र है कि एक धर्म विशेष का निम्नीकरण होता रहे और बाकी धर्मों को विशेष लाभ एवं विशेष दर्जा मिलता रहे ? और निम्नीकरण भी कानूनी रूप से करना तो बहुत बड़ा अत्याचार है ।
🚩इसमें सबसे ज्यादा गलती हिंदुओं की है जो आपस मे एकता नहीं है, एक दूसरे को सहयोग नहीं करते है, अपने ही धर्मगुरुओं और हिंदू परम्पराओं की खिल्ली उड़ाते है, धर्म की रक्षा के लिए समय नहीं देते हैं, जात-पात में बंटे हैं, अगर हिंदू इसपर ध्यान दें तो हिंदुओं के पक्ष में सरकार, कानून और मीडिया आ जायेंगे, तथाकथित बुद्धजीवी हिंदुओं के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करेंगे।
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Tuesday, July 9, 2019

जोमैटो पर 55 हजार का जुर्माना, पनीर की जगह दिया चिकन

09 जुलाई 2019
🚩समय के अभाव और स्वाद लोलुपता के कारण आज लोग घर में भोजन कम बनाते हैं और बाजारू चीजें ज्यादा खा रहे हैं, उसमें भी जोमैटो एवं मैकडोनाल्ड जैसी नामी कम्पनियों के नाम से तो कोई भी चीज बिना देखे ले लेते हैं, लेकिन ये आपका ही नुकसान कर सकती है, क्योंकि ये कंपनियां कई बार तो बासी या मांसाहार परोस देते हैं इसलिए अपने घर का शुद्ध खाना ही खाएं । ऐसी कम्पनियों का खाने से आपका स्वास्थ्य भी बिगड़ेगा एवं पैसे की भी बर्बादी होगी।

🚩आपको बता दें कि एक उपभोक्ता अदालत ने फूड डिलिवरी प्लेटफॉर्म जोमैटो और एक होटल पर शाकाहारी व्यंजन की जगह मांसाहारी व्यंजन वितरित करने पर 55 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है । मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उपभोक्ता अदालत ने जोमैटो को 45 दिनों के भीतर शहर के वकील षणमुख देशमुख को जुर्माने की राशि देने का निर्देश दिया, जिन्हें न केवल एक बार, बल्कि दो बार मांसाहारी व्यंजन दिया गया था।
🚩उन्होंने पनीर बटर मसाला मंगवाया था, लेकिन उन्हें बटर चिकन भेजा गया।
चूंकि दोनों ग्रेवी वाले व्यंजन होते हैं, उन्हें पता नहीं चला और उन्होंने उसे पनीर समझ कर खा लिया।
🚩होटल ने हालांकि अपनी गलती मान ली।
जोमैटो और होटल को सेवा में चूक के लिए 50 हजार रुपये और मानसिक उत्पीड़न के लिए शेष राशि का भुगतान करने के निर्देश दिया गया है। http://dhunt.in/6uiE9?s=a&ss=wsp
🚩जोमैटो ही नहीं अमेरिकी फास्ट फूड कंपनी मैकडोनाल्ड (McD ) के पिज्जा, #क्रंचीबिट्स और मैकफ्लरी के क्रीमी ओरियो टॉपिंग या फिर चॉकलेटी मैक स्वर्ल का नाम सुनते ही आपके मुंह में भी पानी आ जाता है । अगर आप इसके किचन को देख लें तो शायद आप कभी इन्हें नहीं खाएंगे । आपके ये फेवरेट जंक फूड जिस मशीन में बनते हैं वो इतनी गंदी होती हैं कि इन्हें देखने के बाद आप यहां के खाने की तरफ देखेंगे भी नहीं । इन्हें बनाने वाली मशीनों को देखकर आप इन्हें खाने का ख्याल छोड़ देंगे । पिछले दिनों में एक वर्कर ने ट्वीट करके ये बात बताई भी थी।
🚩बता दें कि मार्च 2017 में कलकत्ता ब्रांच McD के खाने में मरी हुई छिपकली मिली थी तो आप ऐसे होटल में भोजन या ऐसे जंक फूड खाते है तो सावधान रहिए, अपने घर मे बने शुद्ध भोजन ही करिये और स्वस्थ रहिए।
दूसरी और महत्वपूर्ण खबर मोबाइल फ़ोन पर गेम खेलने की लत से जुड़ा हुआ है...
🚩PUBG ना खेल पाने के गम में 17 वर्षीय लड़के ने की आत्महत्या-
पबजी मोबाइल गेम की वजह से एक और लड़के ने आत्महत्या करके अपनी जान दे दी। इस बार यह दुःखद घटना हरियाणा के जींद इलाके की है। हरियाणा के जींद में स्थित शिवपुरी कॉलोनी में शनिवार को ये घटना हुई है। हरियाणा पुलिस में एएसआई सत्यवान का 17 वर्षीय बेटा तरसेम ने पबजी ना खेल पाने के गम में आत्महत्या कर ली।
🚩क्षेत्रीय थाना प्रभारी के मुताबिक मौत की वजह लड़का का आत्महत्या करना ही है। उन्होंने कहा कि लड़के को मोबाइल में पबजी खेलने का नशा इतना ज्यादा हो गया था कि घर वालों के मना करने पर उसने अपनी जान देना ठीक समझा। आपको बता दें कि यह कोई पहली घटना नहीं है जब पबजी ना खेल पाने की वजह से किसी ने आत्महत्या कर ली हो। इससे पहले भी ऐसे कई मामले देशभर से सामने आ रहे हैं।
🚩ड्रग्स जैसा पबजी का लत-
पबजी गेम बच्चों और युवाओं में एक ड्रग्स की लत जैसा रूप लेता जा रहा है। जिस तरह ड्रग्स लेने वालों को ड्रग्स ना मिलने पर वो अपनी जान तक गवां देते हैं ठीक उसी तरह पबजी गेम का नशा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाने पर युवा, टीनऐजर्स और बच्चे अपने-आप को मार देना ठीक समझते हैं। यह वाकई में सोचने और विचार करने वाली बात है। अगर आपके घर में भी कोई बच्चा, युवक इस तरह के किसी भी लत का आदी बनता जा रहा है तो उसे ठीक तरीके से समझाएं और उस आदत से बाहर निकालने की कोशिश करें। http://dhunt.in/6uWZa?s=a&ss=wsp
🚩आपको बता दें कि दुनिया के सबसे अमीर शख्सियतों में शुमार बिल गेट्स ने अपने बच्चों को 14 साल की उम्र तक मोबाइल नहीं दिया था ।
🚩इसी तरह एप्पल कंपनी के मालिक स्टीव जॉब्स ने बताया था कि उन्होंने अपने बच्चों को कभी भी आईपैड इस्तेमाल नहीं करने दिया था । ये दो उदाहरण सिर्फ इसलिए हैं ताकि आप यह जान सकें कि मोबाइल दुनिया की सबसे जरूरी वस्तु नहीं है । आप अपने बच्चों का विकास चाहते हैं तो उनको मोबाइल, टीवी और इंटरनेट से दूर रखें।
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Monday, July 8, 2019

इसबार बजट में मोदी सरकार ने कितना पैसा दिया मुसलमानों को?

08 जुलाई 2019
🚩विश्व में करीब 172 देश ईसाईयों के हैं और 58 देश मुसलमान के हैं पर हिंदुओं का एक भी देश नहीं है । जबकि सृष्टि का उद्गम हुआ तो केवल सनातन (हिंदू) धर्म ही था । पर 2018 साल पुराने ईसाई धर्म ने 172 देश बना लिए और 1400 साल पुराने इस्लाम धर्म ने 58 देश बना लिए, लेकिन सनातन धर्म आज सिकुड़कर रह गया है, एक भी देश हिंदू धर्म को मानने वालों का नहीं है क्योंकि हिंदुओं में एकता नहीं है, दूसरा सेक्युलरवाद, तीसरा सभी अपने-अपने निजी कार्यों में लगे रहते हैं पर धर्म के बारे में नहीं सोचते हैं और ना ही धर्म के लिए कार्य करते हैं, अपने ही धर्मगुरुओं व देवी-देवताओं का मजाक उड़ाते हैं । इसके कारण आज दुनिया के देशों में और भारत में हिंदुओं की उपेक्षा की जा रही है फिर भले हिंदूवादी सरकार ही क्यों न हो ।

🚩इसबार बजट में भी ऐसा ही कुछ लग रहा है, जिसमें बहुसंख्यक हिंदुओं की अनदेखी हुई लगती है और अल्पसंख्यकों के लिए सुविधाएं दी जा रही है ।
🚩विदित हो कि मुसलमानों का विश्वास जीतने और उनके विकास के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने तमाम वादे किये थे। चुनावों में जीत के बाद मोदी ने अपनी प्राथमिकताओं में अल्पसंख्यकों का नाम लिया। इस बार पेश हुए बजट में मोदी सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों को लेकर तमाम चिंताओं का ध्यान रखा गया है और मुस्लिमों के लिए भारी भरकम राशि आबंटित की गई है।
🚩प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत की केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए पेश बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के आबंटन में पिछली बार की तरह इस बार भी 4700 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है । पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश किए गए बजट के अनुसार अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए 4700 करोड़ रुपये का आबंटन किया गया है । इससे पहले 2018-19 के आम बजट में मंत्रालय के लिए आबंटन में 505 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर 4700 करोड़ रुपये का आबंटन किया गया था।
🚩वहीं इस बार पेश हुए बजट से ये साबित हुआ है कि नरेंद्र मोदी सरकार ज्यादा मुसलमान IAS और IPS चाहती है । इस बार के बजट में मोदी सरकार में IAS और IPS की परीक्षा देने वाले अल्पसंख्यक छात्रों के लिए बजट में काफी बढ़ोत्तरी की है । मुस्लिम छात्रों को सस्ती कोचिंग उपलब्ध करवाने के लिए पिछली बार मात्र 8 करोड़ रूपये की धनराशि आबंटित की गई थी, लेकिन इस बार यही धनराशि बढ़ा कर 20 करोड़ कर दी गई है । ध्यान देने योग्य है कि IAS और IPS पदों के लिए पिछले 2 वर्षो से 50-50 अल्पसंख्यक छात्र चुने गये हैं जो पहले 30 के आस पास हुआ करते थे। - स्त्रोत: सुदर्शन न्यूज़
🚩आपको बता दें कि भारत में मुसलमानों को अल्पसंख्यक बोला जाता है बल्कि दुनिया में इनके 58 देश हैं । जिसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम समुदाय की संख्या इंडोनेशिया में है एवं दूसरे नंबर पर भारत में है । फिर अल्पसंख्यक कहाँ से हुए ? दूसरी बात भारत के ही 8 राज्यो में हिंदू अल्पसंख्यक बन गए हैं और उनको अल्पसंख्यक की कोई भी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, ये कैसा भारत में दोगलापन है ?
🚩एक तरफ तो जिन मुस्लिम देशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं उनको प्रताड़ित किया जाता है, उनके घर-दुकानें जला दिए जाते हैं, प्रोपर्टी हड़प ली जाती है, बेटियों को उठाकर ले जाते हैं, मंदिर तोड़ दिए जाते हैं। यहाँ तक कि श्मशान में मुर्दा जलाने के लिए भी दिक्कतें आती हैं और यहाँ भारत में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे नंबर पर मुसलमान है जिनको अनेक सुख-सुविधाएं दी जा रही हैं और हिंदुओं की उपेक्षा की जा रही है।
🚩IAS के एग्जाम में अचानक मुसलमानों की बाढ़ क्यों आ गयी है ?
पिछले 4-5 सालों से कश्मीरी मुस्लिम युवक UPSC में बहुत सेलेक्ट हो रहें, इसका कारण जानना चाहा क्योंकि कश्मीरी ही नहीं बल्कि पूरे भारत से मुस्लिम युवक भी बड़ी मात्रा में upsc की बाजी मार रहें पहले इनका चयन % कम था ।।
🚩इससे आप समझने की कोशिश करियेगा
जो मुस्लिम उर्दू साहित्य mains में रखेगा जाहिर है हिन्दू उर्दू नहीं पढ़ते, उन्हें जाँचने वाला भी मुस्लिम ही होगा और वो चाहेगा उसकी कौम का बन्दा अधिकारी बने ताकि बाद में प्रेशर ग्रुप बना सकें पूरी सरकार पे, ये उर्दू के माध्यम से UPSC जैसी परीक्षाओं में मुस्लिम और कश्मीरी युवकों को देश के उच्च पदों पर बैठाने की साज़िश है जिससे जब भी हिन्दू मुस्लिम गृह युद्ध हो ये कट्टर मुल्ले अपनी कौम का साथ दें और ओवैसी जैसे लोग इनको आसानी से अपने कब्जे में कर सके।
🚩सरकार को चाहिए कि UPSC, IAS, IPS जैसी उच्च पद की परीक्षाओं को केवल हिंदी जो कि राष्ट्रभाषा है और english जो कि इंटरनेशनल भाषा और कार्य भी ज्यादातर इसमें ही होता है इसलिए इन्हीं 2 भाषाओं में परीक्षा करवाएं न कि रीजनल भाषा में । जिससे भविष्य के भारत को देश भक्त पदाधिकारी मिले न कि देशद्रोही और सरकार को झुकाने वाले । आखिर इतने ऊँचे पद पर जाने वाले अधिकारियों को कम से कम हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान तो होना ही चाहिए क्यों कि भविष्य में उर्दू में किसी भी आफ़िस में काम नहीं होगा फिर उर्दू की जरूरत क्या है ? ये अधिकारी किसी मदरसे में तो पढ़ाने नहीं जाएंगे । मोदी जी कृपया सोचिये और समय रहते उर्दू भाषा को UPSC exam से बाहर कीजिये और हिंदी भाषा को बढ़ावा दीजिये ।
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Sunday, July 7, 2019

हिन्दू युवा तेजी से नास्तिक व धर्मविमुख क्यों हो रहे हैं?

7 जुलाई 2019
🚩हमारे देश के हिन्दू युवा बड़ी तेजी से नास्तिक क्यों बनते जा रहे हैं ? इसका मुख्य कारण क्या है ? उनकी हिन्दू धर्म की प्रगति में क्यों कोई विशेष रूचि नहीं दिखती ?
🚩यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारत के महानगरों से लेकर छोटे गांवों तक यह समस्या दिख रही है। इस प्रश्न के उत्तर में हिन्दू समाज का हित छिपा है। अगर इसका समाधान किया जाये तो भारत भूमि को संसार का आध्यात्मिक गुरु बनने से दोबारा कोई नहीं रोक सकता।

🚩वैसे तो हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने व धर्मविमुख बनने के अनेक कारण है पर मुख्य पांच कारण है जो आपको बता रहे हैं-
🚩1. हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था का अभाव और उनकी उपेक्षा
हिन्दू समाज के युवा पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण के कारण अपने ही हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था नहीं रख पाते हैं और उनकी उपेक्षा कर देते हैं इसके कारण युवाओं में ईसाई धर्मान्तरण, लव जिहाद, नशा, भोगवाद, चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही हैं । इन समस्याओं के निवारण पर कई हिंदू धर्मगुरु ध्यान भी देते हैं। पर युवा उनकी तरफ ध्यान नही देते हैं । कुछ धर्मगुरुओं की तो हिंदू धर्म के बचाव के लिए कोई योजना बनी हुई नहीं होती जो दिशा निर्देश कर सके लेकिन कोई धर्मगुरु दिशा निर्देश करते है तो उनको षड़यंत्र तहत जेल भेजा जाता है जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, हिंदू संत आसाराम बापू, स्वामी असीमानंद आदि...।
🚩2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है-
मीडिया की भूमिका भी इस समस्या को बढ़ाने में बहुत हद तक जिम्मेदार है। संत आशाराम बापू, शंकराचार्यजी को जेल भेजना, नित्यानंदजी की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे धर्मगुरुओं को मीडिया प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता है । जबकि मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलैंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई आदि अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता। इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में मीडिया में दिखाया जाता है। मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती हैं।
🚩ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता हैं। इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है। हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते। क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है। वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं। हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं। हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी, cool dude कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते है। मगर यह बहुत विकराल समस्या है जो तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या को खाद देने का कार्य निश्चित रूप से मीडिया ने किया है।
🚩3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है-
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है। इस आपसी मतभेद का फायदा अन्य लोग उठाते है। एक मुश्त वोट डाल कर पहले सत्ता को अपना पक्षधर बनाया गया। फिर अपने हित में सरकारी नियम बनाये गए। इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई। परिणाम की हिंदुओं के देश में हिंदुओंके अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है। जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते है। इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक माहौल देश में बनाया जा रहा है। ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है। मांसाहार को सही और गौरक्षा को गलत बताया जा रहा है। बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है। विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है। इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है। इससे हिन्दू युवाओं अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न कोई नीति है।
🚩4. हिंदुओं में संगठन का अभाव-*
हिन्दू समाज में संगठन का अभाव होना एक बड़ी समस्या है। इसका मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है। जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है। स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया। इसका परिणाम अत्यंत वीभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पहुँचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मूर्ख संतान आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं। राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर कब्रों पर सर पटकती है। चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानियाँऔर मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त कब्रो में कुछ नहीं दिखता । मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं। जो विचारशील हिन्दू है वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं। जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है। अगर हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।
🚩5. हिन्दुओं में अपने ही धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के प्रति बेरुखी-
हिन्दू समाज के युवाओं को वेद आदि धर्म शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत दूर की बात है । वाल्मीकि रामायण और महाभारत तक का स्वाध्याय उसे नहीं हैं। धर्म क्या है? धर्म के लक्षण क्या है? वेदों का पढ़ना क्यों आवश्यक है? वैदिक धर्म क्यों सर्वश्रेष्ठ है? हमारा प्राचीन महान इतिहास क्या था? हम विश्वगुरु क्यों थे?  इस्लामिक आक्रांताओं और ईसाई मिशनरियों ने हमारे देश, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत को कैसे बर्बाद किया। हमारे हिन्दू युवा कुछ नहीं जानते। न ही उनकी यह जानने में रूचि हैं। अगर वह पढ़ते भी है तो अंग्रेजी विदेशी लेखकों के मिथक उपन्यास (Fiction Novel) जिनमें केवल मात्र भ्रामक जानकारी के कुछ नहीं होता। स्वाध्याय के प्रति इस बेरुखी को दूर करने के लिए एक मुहीम चलनी चाहिए। ताकि धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने की प्रवृति बढ़े। हर हिन्दू मंदिर, मठ आदि में छुट्टियों में 1 से 2 घंटों का स्वाध्याय शिविर अवश्य लगना चाहिए। ताकि हिन्दू युवाओं को स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया जा सके।
🚩आज का हिन्दू युवा बॉलीवुड, चलचित्रों, इंटरनेट आदि  द्वारा तेजी से धर्मविमुख हो रहा है इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही धर्म की शिक्षा देनी चाहिए और कॉन्वेंट जैसे स्कूलों में नही पढ़ाकर गुरूकुलों में या  किसी ऐसे स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहिए जहां धर्म का ज्ञान मिलता हो, नही तो बच्चों में संस्कार नही होंगे तो न आपकी सेवा कर पाएंगे और नही समाज और देश के लिए कुछ कर पाएंगे। अतः अपने बच्चों एवं आसपास बच्चों को अच्छे संस्कार जरूर दे।
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मुसलमान किराएदार या हिस्सेदार? ओवैसी को खुला पत्र

06 जुलाई 2019
🚩जनाब असदुद्दीन ओवैसी जी, जय रामजी की!  पहले भारत में अनेक मुसलमान भी जय रामजी की कहते थे । मौलाना हाली ने अपनी मशहूर किताब के बिलकुल शुरु में ‘रामकहानी’ ही लिखा है । यह तो पिछले 150 साल में यहाँ मुसलमानों को अपने ही देश की संस्कृति से तोड़ने की तबलीगी राजनीति चली। अफसोस! कि उसके नतीजों का हिसाब करने के बदले आज भी वही जारी है।
🚩यही हमारे लिखने का कारण है। आप आज मुसलमानों के एक काबिल नेता हैं। आपकी बातें लोग पढ़ते, सुनते हैं। अभी आपने कहा कि मुसलमान इस देश में ‘किराएदार नहीं, हिस्सेदार हैं।’ किंतु आप ने ही यह भी कहा था कि हम भारत माता की जय नहीं कहेंगे। अब देश को अपना समझने के लिए कुछ तो चाहिए। आप ही बताएँ कि यहाँ किस मुस्लिम नेता ने कभी ऐसी बातें की जिस में पूरे देश का हित झलका हो?
🚩हमेशा अलगाव, दावेदारी, धमकी, शिकायत – इसके सिवा मुसलमान नेता किसी राष्ट्रीय चिंता में भाग नहीं लेते, तो यह खुद अपने को किराएदार मानने जैसा है। जिसे घर के रख-रखाव की फिक्र नहीं, जो उसे मकान-मालिक का तरद्दुद समझे। क्या कश्मीर पर भारतीय पक्ष के लिए आपने कोई अभियान चलाया? यदि भारत रूपी घर के एक कोने पर बाहरी डाकू हमला करते या सेंध लगाते हैं, तो घर की तरह सुरक्षा में आवाज लगाने के बजाए बड़े-बड़े मुस्लिम नेता चुप्पी साधे रखते हैं। सोचिए, ऐसा तो किराएदार भी नहीं करता!
🚩जहाँ तक हिस्सेदारी की बात है, तो 1947 ई. में ही भारतीय मुसलमानों का ‘हिस्सा’ बाकायदा अलग कर लिया गया था। मुसलमानों के अलग देश के लिए मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को वोट दिया और पाकिस्तान बनवाया। तब बचे हुए भारत में मुसलमानों के ‘हिस्से’ का सवाल ही नहीं रहा! फिर भी जो मुस्लिम यहीं रह गए, उन में 1965-70 ई. तक यह शर्म दिखती थी- कि उन्होंने देश तोड़ा, हिंदुओं को चोट पहुँचाई, और फिर पाकिस्तान गए भी नहीं। इस उदारता के लिए हिंदुओं का अहसान भी वे मानते थे। पर उस पीढ़ी के गुजरते-न-गुजरते नए मुस्लिम नेताओं ने फिर वही शिकायती राजनीति मुस्लिमों में भरनी शुरू कर दी। यह कब तक चलेगा, ओवैसी जी!
🚩डॉ अंबेडकर ने इसे बखूबी समझा था: ‘‘मुस्लिम राजनीति अनिवार्यतः मुल्लाओं की राजनीति है और वह मात्र एक अंतर को मान्यता देती है – हिंदू और मुसलमानों के बीच अंतर। जीवन के किसी मजहब-निरपेक्ष तत्व का मुस्लिम राजनीति में कोई स्थान नहीं है।’’ यह बात डॉ अंबेडकर ने 80 साल पहले लिखी थी। क्या आज भी इस में कुछ बदला है?
🚩एक ओर मुसलमान खुद को अंतर्राष्ट्रीय उम्मत का हिस्सा मान कर खलीफत, फिलस्तीन, बोस्निया, खुमैनी, सद्दाम, आदि के लिए हाय-तौबा और हंगामा करते रहते हैं। दूसरी ओर हिंदुओं को अपने ही देश में, अपने सब से पवित्र तीर्थों पर भी अधिकार नहीं देते। क्या ऐसा दोहरापन आज की दुनिया में चल सकेगा?
🚩पिछले चार दशक से पूरी दुनिया में इस्लामी आतंकवाद के जलवे, और उसे अनेक मुस्लिम देशों के सत्ताधारियों की शह ने सब को नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया। बार-बार दिखा कि मिली-जुली आबादी वाले देशों में मुस्लिम नेता जैसी मनमानी, विशेषाधिकारी माँगें करते हैं, मुस्लिम सत्ता वाले देशों में दूसरों को वह अधिकार तो क्या, बराबरी का हक भी नहीं देते!
🚩फिर, पूरी दुनिया में असली अल्पसंख्यक हिंदू ही हैं। ये बात पहले यहाँ के मुसलमान नेता भी कह चुके हैं। तब, हिंदुओं को अपने ही देश में अपनी धर्म-संस्कृति के वर्चस्व का अधिकार क्यों न हो?  वह किस कारण, किस सिद्धांत या व्यवहार से दूसरों को हिस्सेदारी दे? कभी आप एक हिन्दू की नजर से देखें-सोचें, कि उसे अपनी ही भूमि के पाकिस्तान बन जाने पर क्या मिला, और उस की बनिस्पत मुसलमानों को भारत में क्या हासिल है?*
🚩आपके ही छोटे ओवैसी हिंदू देवी-देवता, हिंदू जनता और भारत सरकार का मजाक उड़ाते हैं। कुछ मुस्लिम नेता भारतीय सेना पर घृणित टिप्पणी करते हैं। संयुक्त राष्ट्र को चिट्ठी लिख शिकायतें करते हैं। जबकि यहाँ मुसलमानों के लिए अलग कानून, आयोग, विश्वविद्यालय, मंत्रालय, आदि बनते चले गए। गोया देश के अंदर अलग देश हो। ईमाम बुखारी, शहाबुद्दीन, फारुख, महबूबा, आदि कितने ही नेता उग्र बयानबाजियाँ करके भी राज-पाट भोगते रहे। मगर सब की बोली ऐसी रहती है मानो वे भारत से अलग, ऊपर कोई हस्ती हों! यह तब जबकि वे भारत की ही तमाम सुख-सुविधाओं, शक्तियों का उपभोग करते हैं। इस की तुलना में पाकिस्तान में हिंदुओं का क्या हाल रहा!
🚩आप खूब जानते हैं कि मुस्लिम नेताओं की इस दोहरी प्रवृत्ति में ताकत का घमंड है। अनेक नेता ‘पुलिस को एक दिन के लिए हटाकर देखने’ की खुली चुनौती देते रहे हैं। वे अपने को लड़ाकू, शासक परंपरा का मानते हैं जिन के सामने बेचारे गाय-प्रेमी, शान्तिप्रिय हिंदू कुछ नहीं। इस घमंडी सोच में मौलाना अकबर शाह खान से लेकर आजम खान तक पिछले सौ सालों से कुछ न बदला।
🚩यानी, भारत को तोड़ कर अलग घर ले लेने के बाद, फिर यहाँ मुस्लिम नेता वही देश-घातक राजनीति करने लगे। इसे डॉ अंबेडकर ने बड़ा सटीक नाम दिया था: ग्रवेमन राजनीति। उन के अपने शब्दों में, ‘ग्रवेमन पॉलिटिक का तात्पर्य है कि मुख्य रणनीति यह हो कि शिकायतें कर-कर के सत्ता हथियाई जाए।’ अर्थात्, मुस्लिम राजनीति शिकायतों से दबाव बनाती है। निर्बल के भय का ढोंग रचती है, जबकि दरअसल ताकत का घमंड रखती और उस का प्रयोग भी करती है। किस लेखक को यहाँ रहने देना, किसे बोलने देना, जिस किसी बात पर आग लगाना, तोड़-फोड़ करना, आदि में देश के कानून-संविधान को अँगूठा दिखाती है। यह सब करते हुए, जैसे मोदी-भाजपा को मुसलमानों का दुश्मन, वैसे ही 1947 ई. के बँटवारे से पहले गाँधीजी-कांग्रेस को भी बताते थे। ऐसे झूठे प्रचारों पर लाखों अनजान मुसलमान विश्वास कर लेते हैं, क्योंकि उन के नेता सारा प्रचार मजहब के नाम से करते हैं।
🚩क्या इतने लंबे अनुभव से भी हिंदुओं को कुछ सीखना नहीं चाहिए? यह ठीक है कि एक बार वह घमंडी ‘डायरेक्ट एक्शन’ वाली मुस्लिम राजनीति देश बाँटने, तोड़ने में सफल रही। लेकिन अब हिंदू उतने सोए नहीं रह सकते। सेटेलाइट टीवी और इंटरनेट से वे दुनिया भर की घटनाएँ सीधे देखते हैं। वे आसानी से समझ सकते हैं कि अधिकांश मुस्लिम नेता केवल इस्लाम की ताकत बढ़ाने में लगे रहे हैं। एक बार मौलाना बुखारी ने कहा भी था कि ‘भारत में सेक्यूलरिज्म  इसलिए है, क्योंकि यहाँ हिंदू बहुमत हैं।’ मतलब यह कि मुसलमानों को सेक्यूलरिज्म से कोई मतलब नहीं।
🚩यही बात देशभक्ति या वतनपरस्ती के बारे में भी है। दो-एक मुस्लिम नेता भारतीय संसद में कह चुके हैं कि उन्हें राष्ट्रीय अखंडता की कोई परवाह नहीं। यानी, वे सेक्यूलरिज्म और लोकतांत्रिक अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं। देश की चिंता नहीं करते, और हिंदुओं को दोहरा-तिहरा मूर्ख बनाते हैं! जरा सोचें, किस को किस से शिकायत होनी चाहिए? कौन मालिक-मकान है, कौन किराएदार; कौन घर-घालक, कौन घर-रक्षक; कौन उत्पीड़ित, कौन उत्पीड़क?
🚩फिर, उस तबलीग, उस बरायनाम अलगाववाद से किस का भला हुआ? मुसलमानों का सब कुछ अलग करते हुए अंततः अलग देश बना देने से भी उन्हें क्या मिला? पाकिस्तान आज अमेरिका या चीन की रणनीतिक भीख पर जिंदा है। पाकिस्तान का भौगोलिक महत्व हटा दें, तो उस से संबंध रखने का इच्छुक कोई देश नहीं। ईरान और सऊदी अरब भी नहीं।
🚩आज किसी भी पैमाने से पाकिस्तान की बनिस्पत आज भारत में मुसलमान अधिक सहज, शांतिपूर्ण, खुशहाल और सम्मानित जिंदगी जीते हैं। आखिर कैसे? मिर्जा गालिब ने कहा थाः ‘काफिर हूँ, गर न मिलती हो राहत अजाब में’। यानी राहत के लिए हर चीज में इस्लाम की झक से छुटकारा लेना होगा। अब तो सऊदी अरब के प्रिंस सलमान भी कुछ यही कह रहे हैं।
🚩इसलिए यहाँ भी मुस्लिम नेताओं को तैमूरी-मुगलिया घमंड और अलगाव की भाषा छोड़नी चाहिए। वह वैसे भी खाम-खाह का वहम है। हिन्दुओं की उदारता, शान्तिप्रियता को कमजोरी समझना भूल है। दुनिया में हिन्दुस्तान ही है जहाँ इस्लामी राज बन जाने के बाद फिर उसे खत्म किया गया। यह हिन्दुस्तान ही है जिस के सामने अभी हाल में पाकिस्तान की एक लाख सशस्त्र सेना ने सरेंडर किया था। फिर हिन्दुस्तान ही है जहाँ किसी जमाने में खलीफा से भी अधिक ताकत रखने वाले मुगल बादशाह अकबर ने इस्लामी मजहब को दरकिनार कर ‘दीन-ए-इलाही’ चलाया ।
🚩कहने का मतलब यह कि हिन्दू समाज ने इस्लामी ताकत को सैनिक, सांस्कृतिक, और दार्शनिक हर चीज में हराया है। चाहे कई बार हिंदू शासकों, नेताओं की बेमतलब भलमनसाहत से हिंदुओं को तबाही भी झेलनी पड़ी है। पर वह हमेशा इस्लामी ताकत के कारण नहीं हुआ है। यह सब इतिहास तथा इस्लामी राजनीति की खूबी-खामी के बारे में अब आम हिंदू ही नहीं, पूरी दुनिया के अन्य गैर-मुस्लिम भी काफी-कुछ जानते हैं। इस्लामी राजनीति की बढ़त होने का नतीजा भी बिलकुल साफ है। पिछले पचाल सालों में खुमैनी, तालिबान और इस्लामी स्टेट के कारनामों ने धीरे-धीरे सारी दुनिया की आँखें खोल दी हैं। उससे मुसलमानों का भी भला नहीं होता।
🚩अतः लगता है कि अब दुनिया में इस्लाम आधारित राजनीति का कोई भविष्य नहीं है। अब दूरदर्शी नेताओं को फिरके और मजहब से ऊपर उठकर, मानवीय समानता को आधार बना कर मुसलमानों में भी सभी धर्मों के प्रति आदर रखने की समझ देनी चाहिए। इसी से उन्हें सच्चा भाईचारा महसूस भी होगा। सेक्यूलरिज्म या अधिकार एकतरफा नहीं चल सकता। अतः आपसे निवेदन है कि घर में सचमुच मिल-जुल कर रहने पर विचार करें। आगे, रामजी की इच्छा! - लेखक : शंकर शरण
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