17 जुलाई 2019
न्यायालय का काम है सभी धर्म, मजहब, जाति-पंत से ऊपर उठ कर निष्पक्ष फैसले सुनाना, लेकिन अभी कुछ सालों से न्यायालय अपने अजीबोगरीब फैसलों के कारण सुर्खियों में रहा है । न्यायालय से दिन-प्रतिदिन हिंदुओं की भावनाएं आहत हो ऐसे फैसले आ रहे हैं । सबरीमाला, जलीकट्टू, दही हांडी, दीवाली पर पटाखे ऐसे कई मामले में जिसमें हमें न्यायालय का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है ।
अब ऐसा ही एक मामला आ रहा है पिठोरिया से, जहाँ 19 वर्षीय ऋचा भारती को धार्मिक भावनाएं आहत करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया था । सोशल मीडिया पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार ऋचा भारती को रांची के व्यवहार न्यायालय से सोमवार को सशर्त जमानत मिल गई। अदालत ने आरोपी ऋचा को पांच कुरान सरकारी स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय में दान करने का निर्देश दिया था हांलाकि अब न्यायालय ने ये फैसला वापिस ले लिया है।
कोर्ट के इस फैसले पर ऋचा ने टिप्पणी की है और कहा कि जब दूसरे समुदाय के लोग ऐसा करते हैं तो उन्हें हनुमान चालीसा बांटने को क्यों नहीं कहा जाता?
ऋचा ने कहा कि मुझे जैसी सजा दी गई है क्या ऐसी ही सजा उन्हें दी जाती है जो हिंदू धर्म के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करते हैं या तस्वीरें पोस्ट करते हैं। बड़ा सवाल है कि क्या उन्हें हनुमान चालीसा पढ़ने या दुर्गा जी की पूजा करने को कहा जाएगा तो वे इसे मानेंगे।
क्या है मामला ?
टिक टोक पर एक मुस्लिम लड़के ने वीडियो बना कहा था कि अगर तबरेज अंसारी के बच्चे आतंकवादी बन जाएं तो न कहना, इसपर सवाल उठाते हुए ऋचा भारती ने कहा कि एक धर्म विशेष के मन में ही आतंकवादी बनने का विचार क्यों आता है ? कश्मीरी पंडितों के साथ इतना अन्याय हुआ लेकिन उनके बच्चे कभी नहीं कहते कि हम आतंकवादी बनने जा रहे हैं, सिर्फ मुस्लिम ही आतंकवादी बनने का क्यों सोचते हैं ?
वैसे प्रश्न तो कोई गलत नहीं था, लेकिन इससे एक मुस्लिम महिला ने आहत हो शिकायत दर्ज की और हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाने वाले टिक टोक के लड़के को न पकड़ पाने वाली पुलिस नेमात्र 3 घण्टे के अंदर ही ऋचा को गिरफ्तार कर लिया ।
भारत देश एक धर्म निरपेक्ष देश है ऐसी कहावत आज तक हम सुनते आए हैं, लेकिन आज के हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है ऊपर से न्यायालय द्वारा दिये जाने वाले कई फैसले हिन्दू विरोधी होते हैं । जज साहब भले खुद हिंदूवादी न कहलाये, हिंदुओं के पक्ष में फैसले न सुनाये, लेकिन संविधान को तो मानना चाहिए, यही संविधान कहता है कि लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता काअधिकार मिले । तो क्या हिंदुओं के लिए उनकी कोई धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है ? हजारों मुस्लिम हिंदुओं के देवी देवताओं, हिंदू धर्मगुरु, हिंदी धर्म पर गलत टिप्पणी करते हैं, क्या अदालत उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता या रामायण बाँटने की सज़ा सुनाने की हिम्मत भी कर सकती है ?
हमे बताया गया है कि हम एक लोकतांत्रिक देश मे रहते हैं जो भारतीय संविधान से चलता है, न कि किसी धार्मिक किताब से, और ऐसी किताब से तो बिल्कुल नही जिसका अनुसरण कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकी संगठन करते हों।
संसद में एक मुस्लिम नेता खुलेआम कहता है कि मैं वंदे मातरम नहीं कहूंगा तब तो उसपर कोई कार्यवाही नहीं हुई, एक मुस्लिम युवक अकबरुद्दीन ओवैसी हिंदुओं को मारने धमकी देता है उसे कोई कुछ नहीं कहता, तब इनका जमीर कहाँ सो जाता है ? लेकिन हिंदुओं के समय पर ये तो जागरूक हो ऐसे फैसले सुनाते हैं ।
अगर किसी अदालत ने गीता या रामयण बांटने के लिए कहा होता तो अब तक कितने पत्रकार, नेता और समाज सुधारक के साथ साथ फिल्मी भांड कपड़े उतार के नंगे नाच रहे होते, लेकिन कुरान बाँटने का आदेश दिया तो ये सब चुप है।
कोर्ट ने कुरान बांटने का जो निर्णय वापिस ले लिया ये भी हिन्दूओं की एकजुटता की ताकत है, लेकिन सिर्फ इसी से संतुष्ट होकर बैठना नहीं चाहिए।
आज जरूरत है, समय की मांग है हिंदुओं को संगठित होने की वरना वो दिन दूर नहीं जब न्यायालय हिंदुओं के पक्ष में फैसला नहीं दे और हिंदू लाचार की नाई अपमान सहन करते हुए गुलाम बन जाये।
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