17 जनवरी 2020
*मीडिया से ज्ञात हुआ कि कुछ सिख शाहीन बाग में CAA और NRC के विरोध में चल रहे प्रदर्शन में प्रदर्शनकारियों को लंगर खिलाने के लिए पंजाब से आये हैं। मेरे विचार से ये सिख सेवादार कठपुतली है जो इनके आकाओं ने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए भेजे हैं। इन्हें न सिख इतिहास ज्ञात है कि कैसे सिख गुरुओं और बंदा बैरागी की हत्याएं मुस्लिम शासकों द्वारा की गई थी। इन्हें न यह ज्ञात है कि कैसे सिखों का सर काटकर लाने वाले को दो रुपये ईनाम की घोषणा पंजाब में हुई थी जिसके चलते हज़ारों सिखों को अपने प्राण गवाने पड़े थे। खेदजनक बात यह है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सिखों के साथ कैसा बर्ताव हो रहा है। वह भी इन्हें नहीं दिखता। अभी हाल ही में ननकाना साहिब गुरुद्वारा के ग्रन्थि की लड़की को वापिस करने, सिखों को ननकाना साहिब से बाहर निकालने और ननकाना साहिब को मस्जिद में बदलने की गूंज भी इन्हें नहीं सुनती।*
*आपको बता दें कि अफगानिस्तान में कभी दो लाख 20 हजार हिंदू और सिख परिवार थे । अब सिर्फ 220 रह गए हैं।*
*पाकिस्तान में 2017 में हुई जनगणना में सिखों की आबादी 8 हजार है ! 2002 में पाक में सिखों की आबादी 40 हज़ार थी।*
*इन देशों में मुसलमानों द्वारा सिखों की लड़कियों को उठा ले जाते हैं, गुरद्वारा पर पत्थर फेकते हैं, दुकान जला देते हैं, भयंकर प्रताड़ना दे रहे हैं फिर भी राजनीति के हथकंडा बने कुछ सेक्युलर सिख मुसलमान का समर्थन में लग गए है।*
*खैर ऐसे भरों को इस लेख के माध्यम से 1947 में कैसा अत्याचार पाकिस्तान में हुआ। यह सुनाना आवश्यक है। इस लेख को पढ़े और हर सिख को अवश्य पढ़ाएं।*
*"उन्नीस बीस अगस्त को बलूच फौज आई और हम हिंदुओं को मारना शुरू कर दिया। किसी तरह जान बचाकर हम भारत आ गये।"*
*विभाजन की पीड़ा याद करते हुये कृष्ण खन्ना ने यह बात पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर जी टी वी पर कही। खन्ना जी के दशकों के प्रयास के बाद उन्हें पाकिस्तान का वीसा मिला था ताकि वो अपने पुश्तैनी घर को देखने की इच्छा पूरी कर सकें। ध्यान दीजिये बलूच फौज जिसे विभाजन के समय हिंदुओं की सुरक्षा करनी थी उसी ने हिंदुओं को मारना शुरू कर दिया था । यही रवैया बलूच रेजिमेंट का हर जगह हिंदू-सिखों के लिये रहा।*
* देश में पिछले स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी जी के भाषण के पश्चात् देश भर में हिंदी-बलूची भाई-भाई चल रहा है। बलूची भी सोशल मीडिया और अन्य मंचों से हमारा सहयोग पाकिस्तान से आजाद होने के लिये मांग रहे हैं। दोनों पक्षों द्वारा भाईचारे की बात करना प्रशंसनीय है। हो सकता है कि भारत के हित में बलूचिस्तान की आजादी हो या फिर हमारी मदद पाकिस्तान को वहां और उलझा दे ताकि काश्मीर पर दबाव कम हो। वैसे भी जहां अत्याचार हो रहा हो उसके खिलाफ खड़े होना ठीक ही है। भावनाओं से अलग होकर बस राष्ट्र हित में बलूचियों का जितना उपयोग किया जा सके वही उत्तम कूटनीति है। इस प्रयास में साझा हित भी है।*
* देश के विभाजन के समय बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय नहीं हुआ था। जब पाकिस्तान ने ऐसा बलपूर्वक किया तो बलूचियों ने बगावत की। बगावत कुचल दी गई तो उन्हें भारत याद आने लगा। तो आइये आज देश के स्वतंत्रता दिवस पर हम भी इतिहास की भूली बिसरी स्मृतियों पर प्रामाणिक दस्तावेजों के माध्यम से दृष्टिपात करें। जब देश ने 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतंत्र होकर विभाजन का दंश झेला था। इतिहास से सबक सीखकर ही सभी पक्ष आज के इस पावन पर्व पर हिंसा से दूर रहने का संकल्प ले सकते हैं।*
*विभाजन पश्चात भारत सरकार ने एक तथ्यान्वेषी संगठन बनाया जिसका कार्य था पाकिस्तान छोड़ भारत आये लोगों से उनकी जुबानी अत्याचारों का लेखा जोखा बनाना। इसी लेखा जोखा के आधार पर गांधी हत्याकांड की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय के जज जी डी खोसला लिखित, 1949 में प्रकाशित , पुस्तक ' स्टर्न रियलिटी' विभाजन के समय दंगों , कत्लेआम, हताहतों की संख्या और राजनैतिक घटनाओं को दस्तावेजी स्वरूप प्रदान करती है। हिंदी में इसका अनुवाद और समीक्षा 'देश विभाजन का खूनी इतिहास (1946-47 की क्रूरतम घठनाओं का संकलन)' नाम से सच्चिदानंद चतुर्वेदी ने किया है। नीचे दी हुयी चंद घटनायें इसी पुस्तक से ली गई हैं जो ऊंट के मुंह में जीरा समान हैं।*
*11 अगस्त 1947 को सिंध से लाहौर स्टेशन पह़ुंचने वाली हिंदुओं से भरी गाड़ियां खून का कुंड बन चुकी थीं। अगले दिन गैर मुसलमानों का रेलवे स्टेशन पहुंचना भी असंभव हो गया। उन्हें रास्ते में ही पकड़कर कत्ल किया जाने लगा। इस नरहत्या में बलूच रेजिमेंट ने प्रमुख भूमिका निभाई।14 और 15 अगस्त को रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध नरमेध का दृश्य था। एक गवाह के अनुसार स्टेशन पर गोलियों की लगातार वर्षा हो रही थी। मिलिट्री ने गैर मुसलमानों को स्वतंत्रता पूर्वक गोली मारी और लूटा।*
*19 अगस्त तक लाहौर शहर के तीन लाख गैर मुसलमान घटकर मात्र दस हजार रह गये थे। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति वैसी ही बुरी थी। पट्टोकी में 20 अगस्त को धावा बोला गया जिसमें ढाई सौ गैर मुसलमानों की हत्या कर दी गई। गैर मुसलमानों की दुकानों को लूटकर उसमें आग लगा दी गई। इस आक्रमण में बलूच मिलिट्री ने भाग लिया था।*
*25 अगस्त की रात के दो बजे शेखपुरा शहर जल रहा था। मुख्य बाजार के हिंदू और सिख दुकानों को आग लगा दी गई थी।सेना और पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। आग बुझाने के लिये अपने घर से बाहर निकलने वालों को गोली मारी जाने लगी। उपायुक्त घटनास्थल पर बाद में पहुंचा। उसने तुरंत कर्फ्यू हटाने का निर्णय लिया और उसने और पुलिस ने यह निर्णय घोषित भी किया। लोग आग बुझाने के लिये दौड़े। पंजाब सीमा बल के बलूच सैनिक, जिन्हें सुरक्षा के लिए लगाया गया था, लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगे। एक घटनास्थल पर ही मर गया , दूसरे हकीम लक्ष्मण सिंह को रात में ढाई बजे मुख्य गली में जहाँ आग जल रही थी, गोली लगी। अगले दिन सुबह सात बजे तक उन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दिया गया। कुछ घंटों में उनकी मौत हो गई।*
*गुरुनानक पुरा में 26अगस्त को हिंदू और सिखों की सर्वाधिक व्यवस्थित वध की कार्यवाही हुई।मिलिट्री द्वारा अस्पताल में लाये जाने वाले सभी घायलों ने बताया कि उन्हें बलूच सैनिकों द्वारा गोली मारी गयी या 25 या 26 अगस्त को उनकी उपस्थिति में मुस्लिम झुंड द्वारा छूरा या भाला मारा गया। घायलों ने यह भी बताया कि बलूच सैनिकों ने सुरक्षा के बहाने हिंदू और सिखों को चावल मिलों में इकट्ठा किया। इन लोगों को इन स्थानों में जमा करने के बाद बलूच सैनिकों ने पहले उन्हें अपने कीमती सामान देने को कहा और फिर निर्दयता से उनकी हत्या कर दी। घायलों की संख्या चार सौ भर्ती वाले और लगभग दो सौ चलंत रोगियों की हो गई। इसके अलावा औरतें और सयानी लड़कियाँ भी थीं जो सभी प्रकार से नंगी थीं। सर्वाधिक प्रतिष्ठित घरों की महिलाएं भी इस भयंकर दु:खद अनुभव से गुजरी थीं। एक अधिवक्ता की पत्नी जब अस्पताल में आई तब वस्तुतः उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था।पुरुष और महिला हताहतों की संख्या बराबर थी। हताहतों में एक सौ घायल बच्चे थे।*
*शेखपुरा में 26 अगस्त की सुबह सरदार आत्मा सिंह की मिल में करीब सात आठ हजार गैर मुस्लिम शरणार्थी शहर के विभिन्न भागों से भागकर जमा हुये थे। करीब आठ बजे मुस्लिम बलूच मिलिट्री ने मिल को घेर लिया। उनके फायर में मिल के अंदर की एक औरत की मौत हो गयी। उसके बाद कांग्रेस समिति के अध्यक्ष आनंद सिंह मिलिट्री वालों के पास हरा झंडा लेकर गये और पूछा आप क्या चाहते हैं। मिलिट्री वालों ने दो हजार छ: सौ रुपये की मांग की जो उन्हें दे दिया गया। इसके बाद एक और फायर हुआ ओर एक आदमी की मौत हो गई। पुन: आनंद सिंह द्वारा अनुरोध करने पर बारह सौ रुपये की मांग हुयी जो उन्हें दे दिया गया। फिर तलाशी लेने के बहाने सबको बाहर निकाला गया। सभी सात-आठ हजार शरणार्थी बाहर निकल आये। सबसे अपने कीमती सामान एक जगह रखने को कहा गया। थोड़ी ही देर में सात-आठ मन सोने का ढेर और करीब तीस-चालीस लाख जमा हो गये। मिलिट्री द्वारा ये सारी रकम उठा ली गई। फिर वो सुंदर लड़कियों की छंटाई करने लगे।विरोध करने पर आनंद सिंह को गोली मार दी गयी। तभी एक बलूच सैनिक द्वारा सभी के सामने एक लड़की को छेड़ने पर एक शरणार्थी ने सैनिक पर वार किया। इसके बाद सभी बलूच सैनिक शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाने लगे। अगली पांत के शरणार्थी उठकर अपनी ही लड़कियों की इज्जत बचाने के लिये उनकी हत्या करने लगे।*
*1अक्टूबर की सुबह सरगोधा से पैदल आने वाला गैर मुसलमानों का एक बड़ा काफिला लायलपुर पार कर रहा था। जब इसका कुछ भाग रेलवे फाटक पार कर रहा था अचानक फाटक बंद कर दिया गया। हथियारबंद मुसलमानों का एक झुंड पीछे रह गये काफिले पर टूट पड़ा और बेरहमी से उनका कत्ल करने लगा। रक्षक दल के बलूच सैनिकों ने भी उनपर फायरिंग शुरु कर दी। बैलगाड़ियों पर रखा उनका सारा धन लूट लिया गया। चूंकि आक्रमण दिन में हुआ था , जमीन लाशों से पट गई। उसी रात खालसा कालेज के शरणार्थी शिविर पर हमला किया गया। शिविर की रक्षा में लगी सेना ने खुलकर लूट और हत्या में भाग लिया। गैर मुसलमान भारी संख्या में मारे गये और अनेक युवा लड़कियों को उठा लिया गया।*
*अगली रात इसी प्रकार आर्य स्कूल शरणार्थी शिविर पर हमला हुआ। इस शिविर के प्रभार वाले बलूच सैनिक अनेक दिनों से शरणार्थियों को अपमानित और उत्पीड़ित कर रहे थे। नगदी और अन्य कीमती सामानों के लिये वो बार बार तलाशी लेते थे। रात में महिलाओं को उठा ले जाते और बलात्कार करते थे। 2अक्टूबर की रात को विध्वंश अपने असली रूप में प्रकट हुआ। शिविर पर चारों ओर से बार-बार हमले हुये।सेना ने शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाईं। शिविर की सारी संपत्ति लूट ली गई।मारे गये लोगों की सही संख्या का आकलन संभव नहीं था क्योंकि ट्रकों में बड़ी संख्या में लादकर शवों को रात में चेनाब में फेक दिया गया था।*
*करोर में गैर मुसलमानों का भयानक नरसंहार हुआ। 70सितंबर को जिला के डेढ़ेलाल गांव पर मुसलमानों के एक बड़े झुंड ने आक्रमण किया।गैर मुसलमानों ने गांव के लंबरदार के घर शरण ले ली। प्रशासन ने मदद के लिये दस बलूच सैनिक भेजे। सैनिकों ने सबको बाहर निकलने के लिये कहा। वो ओरतों को पुरूषों से अलग रखना चाहते थे। परंतु दो सौ रूपये घूस लेने के बाद औरतों को पुरूषों के साथ रहने की अनुमति दे दी। रात मे सैनिकों ने औरतों से बलात्कार किया। 9 सितंबर को सबसे इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया। लोगों ने एक घर में शरण ले ली। बलूच सैनिकों की मदद से मुसलमानों ने घर की छत में छेद कर अंदर किरोसिन डाल आग लगा दी। पैंसठ लोग जिंदा जल गये।*
*यह कुछ घटनाएं हैं। याद रखें जो कौमें इतिहास से सीख नहीं लेतीं उनका भविष्य सदा के लिए अंधकारमय हो जाता है। लेखक - अरुण लवानिया*
*याद रहे सिख भी हिन्दू ही है बस मुगलों से लड़ने के लिए सिख समुदाय बनाया गया है, वो याद रहे, आपस मे सँगठित रहेंगे तभी बच पायेंगे नही तो ये लोग हमारा अस्तिव खत्म करने में लगे हैं, जैसे हमारे गुरुओं को प्रताड़ित किया गया था इस षड्यंत्र को समझें ।*
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16 जनवरी 2020
*जेएनयू में 5 जनवरी को हुए हिंसा के बाद देश के 208 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। जिसमें वामपंथियों के कैंपस में हिंसक गतिविधियों पर चिंता जाहिर की है। चिट्ठी में 208 विश्वविद्यालयों के कुलपति के हस्ताक्षर भी हैं। इस चिट्ठी में लिखा गया है कि, वामपंथी कार्यकर्ताओं की गतिविधियों की वजह से कैंपस में पढ़ाई-लिखाई काम बाधित होता है और इससे विश्वविद्यालयों का वातावरण खराब हो रहा है। इन कुलपतियों ने आरोप लगाया है कि इन वाम गुटों द्वारा कम उम्र के छात्रों को वैचारिक रूप से प्रभावित किया जा रहा है जिससे नए छात्र पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं।*
*क्या लिखा है पत्र में...*
*प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में कुलपतियों ने कहा, “हम शिक्षाविदों का समूह शिक्षण संस्थानों में बन रहे माहौल पर अपनी चिंताएं बताना चाहते हैं। हमने यह अनुभव किया है कि, शिक्षण संस्थानों में शिक्षा सत्र के रोकने और बाधा डालने की कोशिश राजनीति के नाम पर वामपंथी छात्र एक एजेंडे के तहत कर रहा है। हाल ही में जेएनयू से लेकर जामिया और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लेकर जादवपुर विश्वविद्यालय के माहौल में जिस तरह की गिरावट आई है वह वामपंथियों और लेफ्ट विंग एक्टिविस्ट के एक छोटे समूह की वजह से हुआ है।”*
*बच्चों को गलत तरीके से किया जा रहा प्रभावित*
*कुलपतियों ने कहा, ”इन संस्थानों में वामपंथियों की वजह से पढ़ाई-लिखाई के कामों में बाधा पहुंची है। छोटी उम्र में ही छात्रों को भ्रमित करने की कोशिश ना केवल उनके सोचने की क्षमता बल्कि उनकी कौशल को भी प्रभावित कर रही है। इसकी वजह से छात्र ज्ञान और जानकारी की नई सीमाओं को लांघने और खोजने की बजाय छोटी राजनीति में उलझ रहे हैं।विचारधारा के नाम पर अनैतिक राजनीति करके समाज और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ असहिष्णुता बढ़ाई जा रही है। इस तरह के प्रयासों से बहस को सीमित करके विश्वविद्यालयों और संस्थानों को दुनिया की नजरों से दूर करने की कोशिश की जा रही है।”*
*बढ़ रही असहिष्णुता*
*विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने कहा, ”विद्यार्थियों के विभिन्न समूह और वर्गों के बीच असहिष्णुता जन्म ले रही है बल्कि अध्यापकों और बुद्धिजीवियों के बीच भी खराब माहौल बन रहा है। सार्वजनिक स्थानों पर अपनी बात स्वतंत्र रूप से रखने में बेहद मुश्किल हो रही है और ऐसे कार्यक्रम करना भी कठिन होता जा रहा है क्योंकि लेफ्ट विंग राजनीति सेंसरशिप थोप रही है। धरना प्रदर्शन हड़ताल और बंद वामपंथियों के प्रभाव वाले इलाके में आम हो गए हैं। वामपंथी विचारधारा से सहमत नहीं होने पर व्यक्तिगत रूप से निशाना साधना और सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करना, तंग करना ऐसी घटनाओं में वृद्धि हुई है।”*
*गरीब छात्रों का हो रहा नुकसान*
*सभी 208 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने लिखा है कि ”लेफ्ट विंग की राजनीति की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान गरीब छात्रों और मित्र समुदाय से आने वाले छात्रों को हुआ है। लेफ्ट विंग की वजह से वे पढ़ने-सीखने और बेहतर भविष्य बनाने के अवसरों से चूक रहे हैं। वैकल्पिक राजनीति करने और अपने स्वतंत्र विचारों को रखने के मौके भी उनसे छीने जा रहे हैं। वह अपने आप को वामपंथियों की राजनीति से घिरा हुआ पाते हैं। हम सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की ओर से अपील करते हैं कि वह एक साथ आएं और शिक्षा की स्वतंत्रता, भाषण की आजादी और बहू विचार के साथ खड़े हों।” स्त्रोत : एशियन नेट*
*राजस्थान के अलवर जिले में रामगढ़ के बीजेपी विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने कहा था कि वामपंथीयों के द्वारा गलत कार्य करने के कारण JNU में रोजाना 50 हजार हड्डी के टुकड़े, 3 हजार इस्तेमाल किए हुए कंडोम और 500 इस्तेमाल किए हुए अबॉर्शन इंजेक्शन मिलते हैं और 10 हजार सिगरेट के बट तथा शराब की 2000 बोतले मिलती हैं । JNU के वामपंथी छात्र सांस्कृतिक कार्यक्रमों में 'नेकेड डांस' भी करते हैं ।*
*जब देशभर में दुर्गा अष्टमी मनाई जाती है तब JNU के वामपंथी छात्र महिषासुर की जयंती मनाते हैं।*
*आपको बता दें कि मुस्लिम महिला फाउंडेशन की सदर नाजनीन ने कहा था कि JNU के वामपंथी छात्र पाकिस्तान और हाफिज सईद के हाथों बिक कर स्मैक और पैसों के लिए भारत को बदनाम कर रहे हैं। आईएसआई के एजेंट बनकर ऐसे लोग भारत में शिक्षा ले रहे हैं, इनको जल्द देश निकाला जाए।*
*हमारे देश के इतिहास को तोर मरोड़ करके झूठा इतिहास लिखने वाले वामपंथी ही हैं । वामपंथी देश के टुकड़े करना चाहते हैं उनको देश से कोई लेना देना नही है अतः इन वामपंथीयों से सावधान रहें। सरकार को इन वामपंथीयों पर नकेल कसनी चाहिए।*
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11 जनवरी 2020
*लगता है कि भारत के अनेक प्रभावी बुद्धिजीवी और पत्रकार, विदेशी लोग यहाँ की 80 प्रतिशत जनता के हिन्दू होने, उसकी भावना, दुःख और उस पर होते भेद-भाव से निरे अनजान, बेपरवाह हैं। वे भूलकर भी नहीं बताते कि मुस्लिम देशों में रहने वाले हिन्दुओं के साथ क्या बर्ताव होता है; किस तरह पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिन्दू उजड़ गए, करोड़ों की जनसंख्या मानो लुप्त हो गई। जबकि भारत में मुस्लिम आबादी फलती-फूलती, हिन्दुओं से भी अधिक तेजी से बढ़ती गई।*
*दूसरी ओर, तमाम पड़ोसी देशों से लाखों मुस्लिम यहाँ बेहतर रोजगार और संपत्ति की चाह में अवैध रूप से निरंतर आते गए। इसमें पीड़ित और सुखी समुदायों की जो तस्वीर बनती है, उसे छिपाया गया। बल्कि, उलटा प्रचार हुआ कि भारत में हिन्दू उत्पीड़क और मुस्लिम उत्पीड़ित हैं। जबकि यदि यहाँ मुसलमानों को उत्पीड़न मिला होता तो बाहरी मुसलमान यहाँ आने की नहीं सोच सकते थे। जैसे, कोई ईसाई, हिन्दू या बौद्ध किसी भी मुस्लिम देश में जाकर रहने की कभी नहीं सोचता।*
*भारत के प्रभावी, विशेषतः अंग्रेजी विमर्श में "हिन्दू" शब्द कभी सकारात्मक रूप में नहीं मिलता। उन बौद्धिकों के विदेशीपने का सब से बड़ा उदाहरण यही है कि जिस मानवीयता, सार्वभौमिक सदभाव और न्याय को वे बाकी दुनिया के नारों और सिद्धांतों में खोजते रहते हैं, वह यहीं हिन्दू परंपरा में मौजदू होने का उन्हें कोई भान नहीं। वे जिन मापदंडों से भारत और विशेषकर हिन्दू धर्म की निंदा करते रहते हैं, उन मापदंडों को सऊदी अरब, इस्लाम या चीन की चर्चा करते हुए साफ छोड़ देते हैं। देश या विदेश, कहीं भी हिन्दुओं का उत्पीड़न, उन पर अन्याय उनके लिए कोई खबर नहीं है, जबकि हर कहीं मुसलमानों की कैसी भी चाह, कष्ट उनके लिए प्रथम चिंता होती है, जिसे बढ़ा-चढ़ा कर छापना, दुहराना, उस पर लंबे-लंबे लेख लिखना, प्रचारित करना मानो उनका धर्म है। ऐसा घोर दोहरापन क्यों है? इस्लामी देशों के संसाधनों, ईनामों का भी इस में योगदान है। मुसलमानों के उग्र दबाव की भी इस में भूमिका है, जिस का डर अनेक बौद्धिकों को चुप रखता है।*
*वस्तुतः जिसे आधुनिक सेक्यूलर बनाम सांप्रदायिक हिन्दुत्व की लड़ाई बताया जाता है, वह एक भ्रष्ट, जड़ वामपंथी एलीट और पारंपरिक आध्यात्मिक हिन्दू समाज के बीच का संघर्ष है। पर भारत में ही हिन्दुओं को हीन बना देने में इस की भी भूमिका है कि भारत में सरकारों और नेताओं ने दूसरे देशों में हिन्दुओं पर जुल्म, अन्याय का कभी नोटिस नहीं लिया। सरकार द्वारा ऐसी अनदेखी से अंततः देश के अंदर भी हिन्दुओं की स्थिति हीन होते जाना तय था।*
*सभी मनुष्यों के लिए एक मापदंड़ अपनाए जाने चाहिए। सभी समुदायों, उनके विचारों, धर्मों, संगठनों को समान सिद्धांत से तौलना चाहिए। केवल हिन्दुओं के लिए निष्पक्षता, सदभाव, और सहिष्णुता के ऊँचे मापदंड बनाना अनुचित है। व्यवहारतः यह हिन्दुओं को आक्रामक मतवादों, मिशनरियों और तबलीगियों के हाथों खत्म होने की ओर विवश करना है। नागरिकता कानून का विरोध इसी का उदाहरण है।*
*पिछले दशकों में बार-बार देखा गया कि बाहर या अंदर, हिन्दू शरणार्थियों के लिए कोई उदारवादी बौद्धिक आवाज नहीं उठी, जबकि बाहर से आते मुस्लिम घुसपैठियों, उग्रवादियों, आतंकवादियों के लिए भी मानवाधिकार, मानवीयता, सम्मान, आदि की पैरोकारी होती रही।*
*हिन्दुओं ने दूसरे देशों पर कभी हमला नहीं किया, कभी अपने मिशनरियों को भेजकर दूसरों को छल-बल से हिन्दू विचारों को स्वीकार करने के लिए विवश नहीं किया, कभी दूसरों को गुलाम बनाकर आर्थिक शोषण-दोहन नहीं किया, कभी न कहा कि सत्य, ज्ञान या ईश्वर केवल हिन्दुओं के पास है, और जो ऐसा नहीं मानते वे नीच और गंदे हैं। 1947 ई. में मुसलमानों द्वारा अलग देश बना लेने के बाद भी करोड़ों मुसलमानों को यहीं रहने दिया। इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा कब्जा किए गए अपने महान तीर्थ-स्थानों तक को खाली नहीं कराया, फिर भी हिन्दुओं को ही असहिष्णु, अत्याचारी कहा जा रहा है! यह हद पार करने जैसा है।*
*झूठ और जोर-जबर्दस्ती से समझौता करना कोई भलमनसाहत नहीं है। यह आत्म-विनाश का रास्ता है। निश्चय ही यह भारत का धर्म या चाह भी नहीं है कि वह भी इस्लामी या कम्युनिस्ट मतवादियों जैसी मतवादी संकीर्णता अपना ले। परन्तु अपनी धर्म-परंपरा और संस्कृति का बचाव भी न करना, और हर तरह के बाहरी, साम्राज्यवादी मतवादों के सामने हथियार डाल देना भी उसे स्वीकार्य नहीं हो सकता।*
*समय आ गया है कि भारत की प्रभावी बौद्धिकता में जमे हिन्दू-विरोध को उखाड़ फेंका जाए। यह घोर भेद-भाव है, जिस से सामाजिक वातावरण निस्संदेह बिगड़ता है। ईर्ष्या-द्वेष, संदेह, और वैमनस्य बढ़ता है। ऐसा होना किसी भी न्यायप्रिय को स्वीकार नहीं हो सकता। हिन्दू धर्म-समाज को भारत से ही विस्थापित करने की योजनाओं, रणनीतियों को रोकना जरूरी है।*
*यह खुलकर और दृढ़ता से कहना जरूरी है कि यदि दुनिया में 58 देश अपने को इस्लामी गणतंत्र कहते हैं, करीब 172 देश ईसाईयों के हैं। तो एक देश हिन्दुओं का होना सर्वथा उपयुक्त है। वह भी, जिसे हजारों वर्ष से हिन्दू देश जाना ही जाता है। तब भारत की हिन्दू पहचान को कुचलकर ‘सेक्यूलरिज्म’ थोपना भयंकर जुल्म है। किसी मुस्लिम देश में सेक्यूलरिज्म का नामो-निशान नहीं है। यूरोप और अमेरिका में भी विविध ईसाई दलों, समूहों को सहज वरीयता और विशेष सम्मान प्राप्त है। वहाँ सरकार कभी भी ईसाइयों की उपेक्षा या गैर-ईसाइयों को विशेष सुविधा और विशेष अधिकार देकर काम नहीं करती। केवल भारत में ही हिन्दुओं को संवैधानिक और सामाजिक रूप में भी दबा दिया गया है। यहाँ जिन हिन्दू संगठनों को सांप्रदायिक, असहिष्णु कहकर बदनाम किया जाता है, उन्होंने एक भी माँग या काम नहीं किए जो तमाम मुस्लिम देशों में जारी इस्लामी विशेषाधिकारों की बराबरी भी कर सके। तब केवल हिन्दू संगठनों की निंदा, और मुस्लिम संगठनों, गतिविधियों पर चुप्पी रखना हिन्दू-विरोधी कुटिलता ही है।*
*जो लोग ‘हिन्दू राष्ट्र’ की संभावना को अनिष्टकारी कह कर निंदित करते हैं, वे नहीं बताते कि हिन्दू भारत के पाँच हजार वर्षों के इतिहास में कब ऐसा मजहबी शासन बना जिस का डर दिखाया जा रहा है? क्या किसी हिन्दू राजा का शासन वैसे संकीर्ण, एकाधिकारी मजहबी राज का मॉडल था, जिस की तुलना चर्च के मध्ययुगीन शासन या इस्लामी सत्ताओं से की जा सके? कौन हिन्दू राजा ऐसा मतांध था जिसने दूसरे विश्वासों, विचारों को खत्म करने की कोशिश की? किसने अपने विचार या किताब को तलवार के बल दुनिया भर में फैलाने की कोशिश की? क्या राम, कृष्ण या शिवाजी का भी राज्य ऐसा ‘हिन्दुत्ववादी’ मॉडल है? यदि नहीं, तो हिन्दू राष्ट्र से डराना झूठा प्रपंच मात्र है।*
*वस्तुतः जिसे हिन्दू सांप्रदायिकता कह कर निंदित किया जाता है, वह इस्लामी उग्रवाद की प्रतिक्रिया भर है। यह विशुद्ध आत्मरक्षात्मक है। अपने धर्म, समाज और देश की रक्षा करने की भावना। भारत दोनों ओर से घोषित ‘इस्लामी गणतंत्र’ देशों से घिरा है। उन की खुली-छिपी मार भी झेल रहा है। उन देशों में हिन्दुओं की दुर्दशा दुनिया के किसी भी समुदाय से बुरी है। फिलीस्तीन, सूडान या तिब्बत के लोगों के लिए बोलने वाले दुनिया भर में मिलते हैं। पर बंगलादेश में अभागे, उत्पीड़ित हिन्दुओं के लिए बोलने वाला, एक तस्लीमा नसरीन को छोड़कर, कोई नहीं सुना गया। भारत के किसी सेक्यूलरवादी, वामपंथी, गाँधीवादी बौद्धिक ने उन के लिए एक शब्द तक नहीं कहा। - डॉ. शंकर शरण*
*हिंदुओं को भी जाति-पाती में नही बंटकर एक होकर भारत देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग करनी चाहिए।*
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