Wednesday, June 17, 2020

चीन 62 के बाद 3 बार और युद्ध लड़ चुका है, तीनों में घुटने टेके है उसको ये याद रखना होगा।

17 जून 2020

🚩अपने इतिहास में हिंदुस्तान ने कई लड़ाइयां लड़ी और लगभग हर बार देश को जीत का गौरव मिला। लेकिन एक युद्ध ऐसा था जो दरअसल युद्ध नहीं छल की दास्तां थी। जब दोस्ती की पीठ पर दगाबाजी का खंजर चलाया जाता है तो उसे 1962 का भारत चीन युद्ध कहते है। तब दोस्ती का भरोसा हिंदुस्तान का था, विश्वासघात का खंजर चीन का।

🚩1962 की लड़ाई चीन द्वारा विश्वासघात के रूप में भारत को प्राप्त हुई, लेकिन 1962 के 5 वर्ष बाद इतिहास इसका भी गवाह है कि 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीन को जो सबक सिखाया था, उसे वह कभी भुला नहीं पाएगा। यह सब भी उन महत्वपूर्ण कारणों में से एक है जो चीन को भारत के खिलाफ किसी दुस्साहस से रोकता है। 1967 को ऐसे साल के तौर पर याद किया जाता रहेगा जब हमारे सैनिकों ने चीनी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देते हुए सैकड़ों चीनी सैनिकों को न सिर्फ मार गिराया था, बल्कि भारी संख्या में उनके बंकरों को ध्वस्त कर दिया था। रणनीतिक स्थिति वाले नाथू ला दर्रे में हुई उस भीडंत की कहानी हमारे सैनिकों की जांबाजी की मिसाल है।

🚩1967 की पहली लड़ाई

🚩1967 के टकराव के दौरान भारत की 2 ग्रेनेडियर्स बटालियन के जिम्मे नाथू ला की सुरक्षा जिम्मेदारी थी। नाथु ला दर्रे पर सैन्य गश्त के दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच अक्सर धक्का मुक्की होते रहती थी। 11 सितंबर 1967 को धक्का मुक्की की एक घटना का संज्ञान लेते हुए नाथू ला से सेबु ला के बीच में तार बिछाने का फैसला लिया। जब बाड़बंदी का कार्य शुरु हुआ तो चीनी सैनिकों ने विरोध किया। इसके बाद चीनी सैनिक तुरंत अपने बंकर में लौट आए। कुछ देर बाद चीनियों ने मेडियम मशीन गनों से गोलियां बरसानी शुरु कर दी। प्रारंभ में भारतीय सैनिकों को नुकसान उठाना पड़ा पहले 10 मिनट में 70 सैनिक मारे गए।

🚩लेकिन इसके बाद भारत की ओर से जो जवाबी हमला हुआ, उसमें चीन का इरादा चकनाचूर हो गया। सेबू ला एवं कैमल्स बैक से अपनी मजबूत रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए भारत ने जमकर आर्टिलरी पावर का प्रदर्शन किया । कई चीनी बंकर ध्वस्त हो गए और खुद चीनी आकलन के अनुसार भारतीय सेना के हाथों उनके 400 से ज्यादा जवान मारे गए। भारत की ओर से लगातार तीन दिनों तक दिन रात फायरिंग जारी रही। भारत चीन को कठोर सबक दे चुका था। चीन की मशीनगन यूनिट को पूरी तरह तबाह कर दिया गया था। 15 सितंबर को वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारियों के मौजूदगी में शवों की अदला बदली हुई।

🚩1967 की दूसरी लड़ाई-

🚩1 अक्टूबर 1967 को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने चाओ ला इलाके में फिर से भारत के सब्र की परीक्षा लेने का दुस्साहस किया, पर वहां मुस्तैद 7/11 गोरखा राइफल्स एवं 10 जैक राइफल्स नामक भारतीय बटालियनों ने इस दुस्साहस को नाकाम कर चीन को फिर से सबक सिखाया। इस बार चीन ने सितंबर के संघर्ष विराम को तोड़ते हुए हमला किया था। दरअसल, सर्दी शुरु होते ही भारतीय फौज करीब 13 हजार फुट ऊंचे चो ला पास पर बनी अपनी चौकियों को खाली कर देती थी । गर्मियों में जाकर सेना दोबारा तैनात हो जाती थी । चीन ने 1 अक्टूबर का हमला यह सोचकर किया था कि चौकियां खाली होंगी, लेकिन चीन की मंशा को देखते हुए हमारी सेना ने सर्दी में भी उन चौकियों को खाली नहीं किया था । इसके बाद आमने सामने की सीधी लड़ाई शुरु हो गई ।

🚩हमारी सेना ने भी इस बार चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए गोले दागने शुरू कर दिए । इस लड़ाई का नेतृत्व करने वाले थे 17 वीं माउंटेन डिवीजन के मेजर जनरल सागत सिंह। लड़ाई के दौरान ही नाथू ला और चो ला दर्रे की सीमा पर बाड़ लगाने का काम किया गया ताकि चीन फिर इस इलाके में घुसपैठ की हिमाकत नहीं कर सके।

🚩इस तरह 1967 की इस लड़ाई में भारतीय सेना ने चीनी हमलों को नाकाम कर दिया । लड़ाई के बाद घायल कर्नल राय सिंह को महावीर चक्र, शहादत के बाद कैप्टन डागर को वीर चक्र और मेजर हरभजन सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया । बताया जाता है कि लड़ाई के दौरान जब भारतीय सेना के जवानों की गोलियां खत्म हो गई तो बहादुर अफसरों एवं जवानों ने अपनी खुखरी से कई चीनी अफसरों एवं जवानों को मौत के घाट उतार दिया था ।

🚩1967 के ये दोनों सबक चीन को आज तक सीमा पर गोली बरसाने से रोकते हैं । तब से आज तक सीमा पर एक भी गोली नहीं चली है, भले ही दोनों देशों की फौज एक दूसरे की आंखों में आंख डालकर सीमा का गश्त लगाने में लगी रहती है । क्या ऐसे सबक के बाद भी चीन भारत के साथ दुस्साहस करेगा?

🚩चीन को याद रखना चाहिए जब 1962 के भारत एवं 1967 के भारत में इतना अंतर केवल 5 वर्षों में हो गया । ऐसे में 2020 के परमाणु शक्ति संपन्न भारत से चीन की लड़ाई मुश्किल ही है । इस तरह चीन को अतीत की घटनाओं में 1967 को कभी भूलना नहीं चाहिए ।

🚩1987 की तीसरी लड़ाई

🚩1967 के 20 वर्ष बाद भारत से चीन को फिर से गहरा झटका लगा, जिसकी बुनियाद 1986 में चीन की ओर से रखी जाने लगी । इस बार फिर टकराव पर चीन ने भारत को कहा कि भारत को इतिहास का सबक नहीं भूलना चाहिए, पर लगता है कि चीन भी कुछ भूल गया है । 1986-87 में भारतीय सेना ने शक्ति प्रदर्शन में पीएलए को बुरी तरह से हिला दिया था । इस संघर्ष की शुरुआत तवांग के उत्तर में समदोरांग चू रीजन में 1986 में हुई थी । जिसके बाद उस समय के सेना प्रमुख जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी के नेतृत्व में ऑपरेशन फाल्कन हुआ था ।

🚩1987 की झड़प की शुरुआत नामका चू से हुई थी । भारतीय फौज नामका चू के दक्षिण में ठहरी थी, लेकिन एक आईबी टीम समदोरांग चू में पहुंच गई, ये जगह नयामजंग चू के दूसरे किनारे पर है । समदोरंग चू और नामका चू दोनों नाले इस उत्तर से दक्षिण को बहने वाली नयामजंग चू नदी में गिरते हैं। 1985 में भारतीय फौज पूरी गर्मी में यहां डटी रही, लेकिन 1986 की गर्मियों में पहुंची तो यहां चीनी फौजें मौजूद थी । समदोरांग चू के भारतीय इलाके में चीन अपने तंबू गाड़ चुका था, भारत ने पूरी कोशिश की कि चीन को अपने सीमा में लौट जाने के लिए समझाया जा सके, लेकिन अड़ियल चीन मानने को तैयार नहीं था ।

🚩2020 की तरह 1987 में भी चीन और भारत की सेना आंखों में आंख डाले सामने खड़ी थी, लेकिन इस बार भी चीन को जवाब मिलने वाला था । चीन ने पूर्व में लड़ाई की तैयारी पूरी कर ली थी । इधर भारतीय पक्ष ने भी फैसला ले लिया तथा इलाके फौज को एकत्रित किया जाने लगा । इसी के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन फाल्कन तैयार किया, जिसका उद्देश्य सेना को तेजी से सरहद पर पहुंचाना था । तवांग से आगे कोई सड़क नहीं थी, इसलिए जनरल सुंदर जी ने जेमीथांग नाम की जगह पर एक ब्रिगेड को एयरलैंड करने के लिए इंडियन एयरफोर्स को रूस से मिले हैवी लिफ्ट MI-26 हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करने का फैसला किया ।

🚩भारतीय सेना ने हाथुंग ला पहाड़ी पर पोजीशन संभाली, जहां से समदोई चू के साथ ही तीन और पहाड़ी इलाकों पर नजर रखी जा सकती थी । 1962 में चीन ने ऊंची जगह पर पोजीशन लिया था, परंतु इस बार भारत की बारी थी । जनरल सुंदर जी की रणनीति यही पर खत्म नहीं हुई थी । ऑपरेशन फाल्कन के द्वारा लद्दाख के डेमचॉक और उत्तरी सिक्किम में T -72 टैंक भी उतारे गए । अचंभित चीनियों को विश्वास नहीं हो रहा था। इस ऑपरेशन में भारत ने एक जानकारी के अनुसार 7 लाख सैनिकों की तैनाती की थी । फलत: लद्दाख से लेकर सिक्किम तक चीनियों ने घुटने टेक दिए । इस ऑपरेशन फाल्कन ने चीन को उसकी औकात दिखा दी । भारत ने शीघ्र ही इस मौके का लाभ उठाकर अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया ।

🚩सदैव अतीत के गायन में व्यस्त रहने वाले ग्लोबल टाइम्स को 1967 एवं 1986 के उपरोक्त घुटने टेकने वाले घटनाओं के अतिरिक्त यह भी याद रखना चाहिए कि वियतनाम युद्ध के बाद चीनी सेनाओं ने कोई भी लड़ाई नहीं लड़ी है, जबकि भारतीय सेना सदैव पाकिस्तानी सीमा पर अघोषित युद्ध से संघर्षरत ही रहती है । विशेष कर हिमालयी सरहदों में चीन की इतनी काबिलियत नहीं है कि वह भारत का मुकाबला कर सके । तुलनात्मक तौर पर भारत चीन के समक्ष भले ही कमजोर लग सकता है, परंतु वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है। 1967 के दोनों युद्धों से स्पष्ट है कि अपनी विशिष्ट एवं अचूक रणनीति के द्वारा भारत न्यूनतम संसाधनों के बीच भी चीन को हराने में सक्षम है।

🚩डोकलाम क्षेत्र में भारत की भौगोलिक स्थिति हो या हथियार दोनों ही चीन से बेहतर हैं । भारतीय सुखोई हो या ब्रह्मोस, इसका चीन के पास कोई काट नहीं है। चीनी सुखोई 30 एमकेएम एक साथ केवल 2 निशाने साध सकता है, जबकि भारतीय सुखोई एक साथ 30 निशाने साध सकता है। अभी अमेरिकी विशेषज्ञों के अनुसार भारत ऐसे मिसाइल सिस्टम के विकास में लगा हुआ है, जिससे दक्षिण भारत से भी चीन पर परमाणु हमला किया जा सकता है । भारत अभी उत्तरी भारत से मिसाइल से न केवल चीन अपितु यूरोप के कई हिस्सों पर भी हमला करने में सक्षम है । इस तरह चीन भारतीय मिसाइलों के परमाणु हमलों के पूरी तरह रेंज में है, जो भारत को चीन के प्रति निवारक शक्ति उपलब्ध कराता है।

🚩भारत-चीन व्यापार संतुलन भी चीन की ओर ही झुका हुआ है। ऐसे में संबंधों में और कटुता की वृद्धि होने से चीन को इस व्यापार से भी हाथ धोना पड़ेगा । चीन भारत के साथ व्यापार को कितना महत्व देता है, उसे नाथू ला के नवीनतम घटना से भी समझा जा सकता है। डोकलाम मुद्दे पर भारत पर दबाव डालने के लिए चीन ने नाथू ला दर्रे से मानसरोवर यात्रा रोकी, लेकिन व्यापार बिल्कुल नहीं। इस तरह अतीत की व्याख्या, सामरिक व्याख्या एवं आर्थिक व्याख्याओं से स्पष्ट है कि चीन ही पीछे हटेगा। (लेखक : राहुल लाल )

🚩बहरहाल, जब आज यह कहा जाता है कि 62 का नहीं बल्कि 2020 का हिंदुस्तान है तो इस बात में दम है। पिछले कुछ दिनों से कभी चीन के हेलीकॉप्टर आते हैं तो कभी उसके सैनिक पैंगोंग त्सो झील में कारस्तानी कर जाते हैं। हिंदुस्तान ने चीन की हर हरकत का बखूबी जवाब दिया है। 

🚩आप चीन की दगाबाजी वाली रणनीति समझ चुके है वे हर बार हमें धोखा ही देता आया है आज भी वही कर रहा है तो सबसे पहले हमें चायनीज़ एप्लिकेशन और चीनी समान का बहिष्कार करना होगा अगर हमने इसका बहिष्कार नही किया तो वे हमारे ही पैसे से हमारे देश के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है इसलिए हम उनका सामन और app का बहिष्कार किया तो उसकी कमर ही टूट जाएगी फिर हमारी तरफ आँख उठाकर भी नही देखेगा।

🚩भारत सरकार को भी चीनी समाना का धीरे-धीरे आयात कम कर देना चाहिए और भारत मे ही टेक्स कम करके कंपनियां खोलकर प्रोडक्ट बनाने चाहिए जिससे भारत की जनता को कम कीमत में सामान मिल सके, जिससे भारतवासी भी चीन का माल नही लेकर भारत का ही प्रोडक्ट ले और धीरे-धीरे चीन जो विश्वासघात करता है उसकी दुकाने बंद हो जाये।

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कौशिकजी महाराज बोले यह देश को हिलाने वाली खबर है, यह बहुत बड़ी साज़िश है!

16 जून 2020

🚩आचार्य श्री कौशिकजी महाराज राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के लिए आवाज हमेशा उठाते आये है, उन्होंने अभी हाल ही में वृंदावन से एक लाइव कथा में बताया कि मुझे एक दिव्य संत महात्मा मिले थे उन्होंने बताया कि मुझे एक निजी मीडिया चैनल वाले ने कहा कि हिंदू संत आशारामजी बापू के खिलाफ बोलने के लिए अभी इतने पैसे ले लो और दूसरे पैसे हमारी न्यूज़ चैनल पर बोलने के बाद ले लेना।

🚩महाराज जी ने आगे बताया कि मैं उनका नाम नही लेना चाहता हूँ, लेकिन यह बात मैं डंके की चोट पर छाती ठोककर कह रहा हूँ। आगे कहा कि इस देश का क्या होगा कि संतो को बदनाम करने की साजिश रचाई जा रही है क्या भला होगा यहाँ का। ये बहुत बड़ी साजिश है आप इन अफवाह से निकलकर अपनी बेहतर जिंदगी जियें, ये जो सब चलता है वो सही नही होता है कुछ पर्दे के पीछे भी होता है।

🚩महराज श्री ने आगे बताया कि मैं धर्म के लिए था हूँ और धर्म के लिए जियूँगा और धर्म के लिए आवाज उठाऊंगा, हम संतों का अपमान सहन नही करेंगें।

🚩भारत वो देश है जहाँ गुरुओं ने जीवन जीने की कला सिखाई है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण शिष्य बनकर सांदीपनी गुरु के पास बैठते थे। भगवान श्री राम महात्मा श्री वशिष्ठजी महाराज के चरणों मे बैठकर बात करते थे। यहाँ गुरू परम्परा का बहुत बड़ा स्थान रहा हैं इसलिए इस गुरू परम्परा पर किसी प्रकार का कोई छींटा न छिड़के तो ज्यादा ठीक है। मैं आपको प्रार्थना करना चाहूंगा कि साधु-संतों की आलोचना से बचें, संतो ने हमें और देश-दुनिया को इतना दिया है की हम उनका ऋण कभी नही चुका पायेंगे। अगर ये महापुरुष नही रहेंगे तो विधर्मी लोग हावी हो जायेंगे हमारे देश पर।

🚩उन्होंने बताया कि मैं हर जगह जाता हूं और 6-7 साल में कई लोगों ने धर्मपरिवर्तन कर लिया। जब बापू आशारामजी बाहर थे तब उन सबको हिंदू धर्म मे वापिस लाते थे और कितने लोगों के शराब, व्यसन छुड़ाये उनकी माताएं खुश हो गई उनके परिवार बस गए ये बात हमें कभी नही भूलनी चाहिए।

🚩पहले भी कौशिकजी महाराज ने बताया था कि

कितने शराबियों की शराब छूटी, कितने जुआरियों का जूआ छूटा, कइयों का मांसाहार छूटा तो कइयों का काम-विकार छूटा ! बिखरे हुए घरों को बसाया है इन महापुरुष (बापू आशारामजी) ने !

🚩जिन्होंने (बापू आशारामजी) समाजोत्थान के बड़े-बड़े काम किये हैं, उन्हें जेल का मुँह देखना पड़ा है। वर्तमान समय में जो संतों के साथ हो रहा है यह देश के लिए शुभ नहीं है, बढ़िया संकेत नहीं है।

🚩बापू आशारामजी ने राष्ट्र-धर्म के लिए क्या-क्या किया?

🚩1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री, मकान, पैसे, दवाइयां आदि दी जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया।

🚩2). कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।

🚩3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

🚩4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया।

🚩5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया।

🚩6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया, पाकिस्तान में तो कराची में गाजी दरगाह में दोपहर की अजान के समय भी वे हरि कथा करते रहे।

🚩7). वैलेंटाइन डे का विरोध करके "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।

🚩8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय, तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।

🚩9). करोड़ों लोगों को अधर्म से सनातन धर्म की ओर मोड़ दिया।

🚩10). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा करोड़ों लोगों को व्यसन-मुक्त कराया।

🚩11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए।

🚩12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी", बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।

🚩13). ‘युवाधन सुरक्षा' अभियान चलाया गया तथा ‘युवा सेवा संघ' एवं ‘महिला उत्थान मंडल' की स्थापना की गयी है। इन संगठनों द्वारा भारत भर में ‘संस्कार सभाएँ' चलायी जा रही हैं, जिनका लाभ लेकर युवक-युवतियाँ अपना सर्वांगीण विकास कर रहे हैं।


🚩14). समाज के पिछडे, शोषित, बेरोजगार व बेसहारा लोगों की सहायता के लिए बापू आशारामजी द्वारा ‘भजन करो, भोजन करो, दक्षिणा पाओ' योजनायें चलायी जा रही है।इसके अंतर्गत उन्हें कहा जाता है कि वे आश्रम में अथवा आश्रम द्वारा संचालित समितियों के केन्द्रों में आकर दिनभर केवल भजन, कीर्तन और ध्यान करें। उन्हें दिन का भोजन और शाम को घर जाते समय 50 रुपये तक की नकद राशि दी जाती है। इसमें भाग लेनेवालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। जिससे ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मान्तरण में रोक लग रही है और जहाँ लोगों को भोजन की विकट समस्या से निजात मिलती है, वहीं उनका आध्यात्मिक उत्थान भी हो रहा है। इससे बेरोजगार लोगों में आपराधिक प्रवृत्ति को रोकने में बहुत मदद मिल रही है।

🚩ऐसे अनेक राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति के उत्थान के सेवाकार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं।

🚩डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने तो यह भी बताया कि हिन्दू संत आशारामजी बापू ने लाखों हिंदुओं की घर वापसी और करोड़ो लोगों को सनातन धर्म की तरफ ले आये इसके कारण वेटिकन सिटी ने सोनिया गाँधी को कहकर झूठे केस में फँसाया। उनके आश्रम में फेक्स भी आया था कि 50 करोड़ दो नहीं तो जेल जाने को तैयार रहो इससे साफ होता है कि उन पर अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र हुआ है।
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