Friday, August 4, 2023

ज्ञानवापी मंदिर अकेला नहीं, अन्य 1800 धार्मिक स्थल ऐसे हैं, जहाँ मंदिरों को तोड़कर बनाई गईं मस्जिदें - राज्यवार सूची ( भाग 2 )

4 August 2023 


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🚩3 August ( कल ) की पोस्ट में हमने जो चर्चा शुरू की थी...उसके *दूसरे भाग* पर आज आगे पढ़ेंगे...


🚩देशभर में ऐसे तो हज़ारों छोटे-बड़े अवैध निर्माण हैं , जिनको कि यहाँ गिना ही नहीं गया है, बावजूद इसके कि यह 1800+ हिन्दू धार्मिकस्थल नामी-गिरामी है , उन्हीं का यह हाल,  तो जरा सोचिए कि अन्य मंदिरों को क्या छोड़ा होगा विधर्मियों ने ।


🚩वर्ष 1990 में इतिहासकार सीता राम गोयल ने अन्य लेखकों अरुण शौरी, हर्ष नारायण, जय दुबाशी और राम स्वरूप के साथ मिलकर ‘हिंदू टेम्पल्स : व्हाट हैपन्ड टू देम’ (Hindu Temples: What Happened To Them) नामक दो खंडों की किताब प्रकाशित की थी। उसमें गोयल ने मुस्लिमों द्वारा बनाई गई 1800 से अधिक इमारतों, मस्जिदों और विवादित ढाँचों का पता लगाया था, जो मौजूदा मंदिरों/या नष्ट किए गए मंदिरों की सामग्री का इस्तेमाल करके बनाए गए थे। कुतुब मीनार से लेकर बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी विवादित ढाँचे, पिंजौर गार्डन और अन्य कई का उल्लेख इस किताब में मिलता है।


🚩गुजरात

गोयल जी की किताब में गुजरात की 170 ऐसी जगहों के बारे में बताया गया है, जहाँ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं। असवल, पाटन और चंद्रावती के मंदिरों को नष्ट कर इनकी सामग्री का उपयोग अहमदाबाद को एक मुस्लिम शहर बनाने के लिए किया गया था। अहमदाबाद में मंदिर सामग्री का उपयोग करने वाले जो स्मारक बनाए गए हैं, वह हैं- अहमद शाह की जामी मस्जिद, हैबिट खान की मस्जिद।


🚩ढोलका जिले में बहलोल खान की मस्जिद और बरकत शहीद की मजार भी मंदिरों को ध्वस्त करके बनाई गई थी। इसी तरह, सरखेज में, Shaikh Ahmad Khattu Ganj Baksh की दरगाह 1445 में मंदिर की सामग्री का उपयोग करके बनाई गई थी। 1321 में, भरूच में हिंदू और जैन मंदिरों के विध्वंस के बाद जो सामग्री इकट्ठा हुई थी। उसका उपयोग करके जामी मस्जिद का निर्माण किया गया था।


🚩भावनगर में बोटाद में पीर हमीर खान की मजार एक मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। 1473 में द्वारका में एक मंदिर के स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया था। भुज में, जामी मस्जिद और बाबा गुरु के गुंबद मंदिर के स्थान पर बनाए गए थे। जैन समुदाय के लोगों को रांदेर से निकाल दिया गया और मंदिरों की जगह मस्जिद बना दी गई थीं। जैसे जामी मस्जिद, नित नौरी मस्जिद, मियां की मस्जिद, खारवा मस्जिद को भी मंदिर के स्थान पर बनाया गया था। इसके अलावा सोमनाथ पाटन में बाजार मस्जिद, चाँदनी मस्जिद और काजी की मस्जिद भी मंदिर के स्थानों पर बनाई गई थी।


🚩दीव

दीव में जो जामी मस्जिद है, उसका निर्माण सन् 1404 में किया गया था। पुस्तक में इसका भी उल्लेख किया गया है। इसे भी एक मंदिर को तोड़कर बनाया गया था।


🚩हरियाणा

इतिहासकारों द्वारा हरियाणा में कुल 77 स्थलों का उल्लेख किया गया है। पिंजौर, अंबाला में मंदिर की सामग्री का उपयोग फिदई खान के बगीचे के निर्माण में किया गया था। फ़िदाई खान गार्डन, जिसे बाद में एक सिख सम्राट ने बदलकर यादवेंद्र गार्डन कर दिया था। इसे पिंजौर गार्डन के नाम से भी जाना जाता है। ये भी मंदिर की सामग्री का उपयोग करके बनाया गया था। फरीदाबाद में, जामी मस्जिद सन्1605 में एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई है। नूंह में, मंदिर की सामग्री का उपयोग करके सन्1392 में एक मस्जिद का निर्माण किया गया था।


🚩बावल में मस्जिदें और गुरुग्राम जिले के फर्रुखनगर में जामी मस्जिद मंदिर के स्थान पर बनाई गई हैं। कैथल में बल्ख के शेख सलाह-दीन अबुल मुहम्मद (Salahud-Din Abul Muhammad) की दरगाह सन् 1246 में मंदिर की सामग्री का उपयोग करके बनाई गई थी। कुरुक्षेत्र में टीले पर मदरसा और झज्जर में काली मस्जिद मंदिर स्थलों पर बनाई गई थी। हिसार का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने अग्रोहा से लाई गई मंदिर सामग्री का उपयोग करके किया था। अग्रोहा शहर का निर्माण भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज महाराजा अग्रसेन ने करवाया था। महाराजा अग्रसेन का जन्म भगवान राम के बाद 35वीं पीढ़ी में हुआ था। सन् 1192 में मुहम्मद गौरी ने इस शहर को नष्ट कर दिया था।


🚩हिमाचल प्रदेश

किताब में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में एक जगह के बारे में बताया गया है, यहाँ मंदिर सामग्री का उपयोग करके जहाँगीरी गेट बनाया गया था।


🚩कर्नाटक

कर्नाटक में कुल 192 स्थान हैं। बेंगलुरु के डोड्डा बल्लापुर में अजोधन की मुहिउद-दीन चिश्ती की दरगाह मंदिर की सामग्री का उपयोग करके बनाई गई थी। कुदाची में मखदूम शाह की दरगाह और शेख मुहम्मद सिराजुद-दीन पिरदादी की मजार भी मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। हम्पी के विजयनगर में मस्जिद और ईदगाह भी मंदिर की सामग्री का उपयोग करके बनाए गए थे। काफी पुराने हिंदू शहर बीदर (विदर्भ)को बदलकर एक मुस्लिम राजधानी कानिर्माण किया गया था। सोला खंबा मस्जिद, जामी मस्जिद, मुख्तार खान की मस्जिद मंदिर के स्थान पर बनाई गई थीं और कुछ में मंदिर की सामग्री का इस्तेमाल भी किया गया था।शहर के मंदिरों को या तो ध्वस्त कर दिया गया या फिर उन्हें मस्जिदों में बदल दिया गया। जामी मस्जिद, महला शाहपुर में मंदिर के स्थान पर आज भी मस्जिद मौजूद हैं। बीजापुर एक प्राचीन हिंदू शहर हुआ करता था, लेकिन इसे एक मुस्लिम राजधानी में तब्दील कर दिया गया था। जामी मस्जिद, करीमुद-दीन की मस्जिद, छोटा मस्जिद, आदि मंदिर स्थलों पर बनाए गए थे या मंदिर सामग्री का इस्तेमाल किया गया था। टोन्नूर, मैसूर में सैय्यद सालार मसूद की मजार मंदिर की सामग्री का उपयोग करके बनाई गई थी।


🚩केरल

केरल की दो जगहों का उल्लेख किया गया है। पहला कोल्लम में जामी मस्जिद और दूसरा पालघाट में टीपू सुल्तान द्वारा बनाए गए किले का, जिसमें मंदिर की सामग्री का उपयोग किया गया था।


🚩लक्षद्वीप

लक्षद्वीप में दो जगहों के बारे में बताया गया है। कल्पेनी में मुहिउद-दीन-पल्ली मस्जिद (Muhiud-Din-Palli Masjid) और कवरती में प्रोट-पल्ली मस्जिद भी मंदिर के स्थान पर बनाई गई है। यह सर्वविदित है कि लक्षद्वीप में अब 100% के आसपास मुस्लिम हैं।


🚩मध्य प्रदेश

किताब में मध्य प्रदेश के 151 स्थलों का उल्लेख है। भोपाल में कुदसिया बेगम (Qudsia Begum) द्वारा जामी मस्जिद का निर्माण किया गया था, जहाँ कभी सभामंडल मंदिर हुआ करता था। दमोह में गाजी मियां की दरगाह भी पहले एक मंदिर ही था। धार राजा भोज परमार की राजधानी हुआ करती थी। इसे भी मुस्लिम राजधानी में बदल दिया गया। कमल मौला मस्जिद, लाट की मस्जिद, अदबुल्लाह शाह चंगल की मजार आदि का निर्माण मंदिर की जगह पर या फिर उनकी सामग्री का इस्तेमाल करके बनाया गया है।


🚩मांडू एक प्राचीन हिंदू शहर था। इसे भी मुस्लिम राजधानी में भी बदल दिया गया था। जामी मस्जिद, दिलावर खान की मस्जिद, छोटी जामी मस्जिद आदि का निर्माण मंदिर के स्थानों पर किया गया है। चंदेरी को भी मंदिर की सामग्री का उपयोग करके बनाया गया था। मोती मस्जिद, जामी मस्जिद और अन्य संरचनाओं में भी मंदिर की सामग्री का इस्तेमाल किया गया था। ग्वालियर में, मुहम्मद गौस की दरगाह, जामी मस्जिद और गणेश द्वार के पास मस्जिद मंदिर स्थलों पर बनाई गई थी।


🚩महाराष्ट्र

किताब में महाराष्ट्र के 143 स्थलों के बारे में बात की गई है। अहमदनगर में अम्बा जोगी किले में मंदिर की सामग्री का इस्तेमाल किया गया था। गॉग (Gogh) में ईदगाह, जिसे 1395 में बनाया गया था, यह भी एक मंदिर के स्थान पर बना है। अकोट (Akot) की जामी मस्जिद सन्1667 में एक मंदिर के स्थल पर बनाई गई थी। करंज में अस्तान मस्जिद सन्1659 में एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। रीतपुर में औरंगजेब की जामी मस्जिद मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। हजरत बुरहानुद्दीन-दीन गरीब चिश्ती की दरगाह खुल्दाबाद में एक मंदिर स्थल पर सन्1339 में बनाई गई थी।


🚩मैना हज्जम की मजार मुंबई में महालक्ष्मी मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। मुंबई में जामी मस्जिद एक मंदिर स्थल पर बनाई गई थी। परंदा में तलाब के पास नमाजगाह का निर्माण मनकेवरा मंदिर को ध्वस्त करके किया गया था। लातूर में, मीनापुरी माता मंदिर को मबसू साहिब की दरगाह में बदल दिया गया था, सोमवारा मंदिर को सैय्यद कादिरी की दरगाह में बदल दिया गया था। वहीं, रामचंद्र मंदिर को पौनार की कादिमी मस्जिद (Qadimi Masjid) में बदल दिया गया था।


🚩ओडिशा

ओडिशा में 12 ऐसी जगह हैं, जहाँ मंदिरों को तोड़कर उसके स्थान पर मस्जिद, दरगाह और मजार बनाई गई है। बालेश्वर में महल्ला सुन्नत में जामी मस्जिद श्री चंडी मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। शाही मस्जिद और कटक में उड़िया बाजार की मस्जिदों के साथ-साथ केंद्रपाड़ा में एक मस्जिद को मंदिर को तोड़कर बनाया गया था।


🚩पंजाब

किताब में पंजाब के 14 जगहों का जिक्र है। इसमें बाबा हाजी रतन की मजार बठिंडा में एक मंदिर को तोड़कर बनाई गई है। जालंधर के सुल्तानपुर की बादशाही सराय बौद्ध विहार के स्थान पर बनी हुई है। लुधियाना में अली सरमस्त की मस्जिद भी एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई है। बहादुरगढ़ में किले अंदर एक मस्जिद बनाई गई है। उसका निर्माण भी मंदिर की जगह पर किया गया है।


🚩राजस्थान

पुस्तक में राजस्थान के 170 स्थलों का उल्लेख है। पहले अजमेर एक हिंदू राजधानी हुआ करती थी, जिसे मुस्लिम शहर में बदल दिया गया था। अढ़ाई-दिन-का-झोंपरा सन्1199 में बनाया गया था, मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह 1236 में बनाई गई थी, और अन्य मस्जिदों का निर्माण मंदिर के स्थान पर किया गया था। तिजारा में भरतारी मजार (Bhartari mazar) एक मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई थी। बयाना में नोहारा मस्जिद का निर्माण उषा मंदिर के स्थान पर किया गया था। भितरी-बहारी (Bhitari-Bahari Mahalla) की मस्जिद में विष्णु भगवान की मंदिर की सामग्री काउपयोग किया गया था।


🚩काम्यकेश्वर मंदिर को कामां में चौरासी खंबा मस्जिद में बदल दिया गया था। पार्वंथा मंदिर (Parvantha) की सामग्री का उपयोग जालोर में तोपखाना मस्जिद में किया गया था, जिसे सन्1323 में बनाया गया था। शेर शाह सूरी के किले शेरगढ़ में हिंदू, बौद्ध और जैन मंदिरों की सामग्री का उपयोग किया गया था। लोहारपुरा में पीर जहीरुद्दीन की दरगाह मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। सन्1625 में, सलावतन में मस्जिद एक मंदिर स्थल पर बनाई गई थी। पीर जहीरुद्दीन की मजार और नागौर में बाबा बद्र की दरगाह भी मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी।


🚩तमिलनाडु

किताब में तमिलनाडु के 175 स्थलों का उल्लेख किया गया है। Chingleput के आचरवा में शाह अहमद की मजार भी एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। कोवलम में मलिक बिन दिनार की दरगाह एक मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। पंचा पद्यमलाई की पहाड़ी का नाम बदलकर मौला पहाड़ कर दिया गया था। एक प्राचीन गुफा मंदिर के सेट्रल हॉल को मस्जिद में बदल दिया गया था। कोयंबटूर में, टीपू सुल्तान ने अन्नामलाई किले की मरम्मत के लिए मंदिर की सामग्री का इस्तेमाल किया। टीपू सुल्तान की मस्जिद भी एक मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। तिरुचिरापल्ली (Tiruchirapalli) में नाथर शाह वाली की दरगाह एक शिव मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। मंदिर के लिंगम का उपयोग लैंप के रूप में किया गया था।


🚩उत्तर प्रदेश ...


🚩अब आते हैं उत्तर प्रदेश पर... (जो कि भारत का सबसे बड़ा और औद्योगिक व राजनैतिक दृष्टिकोण से बहुत ही खास राज्य है ) ।

किताब में यूपी के 299 स्थलों का उल्लेख है, जो मंदिर सामग्री और मंदिर के स्थानों पर बनाए गए थे। आगरा की कलां मस्जिद का निर्माण मंदिर की सामग्री से किया गया था। अकबर के किले में नदी के किनारे का हिस्सा जैन मंदिर के स्थान पर बनाया गया था। अकबर का मकबरा भी एक मंदिर के ऊपर खड़ा है। इलाहाबाद में अकबर का किला मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। मियां मकबुल और हुसैन खान शाहिद की मजार भी मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। पत्थर महल में मस्जिद का निर्माण लक्ष्मी नारायण मंदिर को ध्वस्त करके किया गया था।


🚩अयोध्या में राम जन्मभूमि के स्थल पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। हालाँकि उस विवादित ढाँचे को ध्वस्त कर दिया गया है और उस स्थान अब भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा स्वर्गद्वार मंदिर और त्रेता का ठाकुर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था और उन जगहों पर औरंगजेब द्वारा मस्जिदों का निर्माण किया गया था।


🚩शाह जुरान गौरी (Shah Juran Ghuri) की मजार एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। सर पैगंबर और अयूब पैगंबर की मजार एक बौद्ध मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी, जहाँ बुद्ध के पदचिन्ह थे। गोरखपुर में इमामबाड़ा एक मंदिर के स्थान पर बनाया गया था। इसी तरह, पावा में कर्बला एक बौद्ध स्तूप के स्थान पर बनाया गया था।


🚩टिलेवाली मस्जिद लखनऊ में एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई है। मेरठ में जामा मस्जिद एक बौद्ध विहार के खंडहर पर स्थित है। एक दरगाह नौचंड़ी देवी के मंदिर को तोड़कर बनाई गई है। वाराणसी में, ज्ञानवापी विवादित ढाँचे को विश्वेश्वर मंदिर सामग्री का उपयोग करके बनाया गया है। हाल ही में अदालत ने विवादित ढाँचे के सर्वेक्षण का आदेश दिया था। सर्वेक्षण करने वाली टीम को वहां एक शिवलिंग भी मिला है। इसके बाद अदालत ने उस जगह को सील कर दिया है।


🚩जौनपुर में " अटलादेवी मंदिर" को ध्वस्त कर अटाला मस्जिद बनाई गई और "बड़ी देवी मंदिर " को तोड़कर बड़ी मस्जिद बनाई गई... जौनपुर में ही और भी अनगिनत ऐसे अवैध निर्माण हुए थे मुगल शासन काल में।


🚩‘यह केवल एक संक्षिप्त सारांश है’

गोयल ने अपनी किताब में लिखा है कि उनके द्वारा बताई गई सूची अभी अधूरी है, यह सिर्फ एक संक्षिप्त विवरण था। अभी सूची में और कई मस्जिदें व दरगाह हैं, जिनके मंदिर की जगह पर और मंदिर की सामग्री के इस्तेमाल से मस्जिद बनाने के सबूत मौजूद हैं। उन्होंने लिखा, “हमने उल्लेख किए गए स्मारकों के स्थानों, नामों और तारीखों के सटीक होने की पूरी पुष्टी की है।

हालाँकि, ऐसा कम ही देखने को मिलता है , कि विभिन्न स्रोत एक ही स्मारक के लिए अलग-अलग तिथियाँ और नाम का प्रयोग करते हों। कुछ मुस्लिम फकीरों को कई नामों से जाना जाता है, जो उनकी मजारों या दरगाह की पहचान करने में भ्रम पैदा करते हैं। या फिर कुछ जिलों का नाम बदलकर अगर नया नाम रख दिया गया तो ऐसा हो सकता है।



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Thursday, August 3, 2023

ज्ञानवापी मंदिर अकेला नहीं, अन्य 1800 धार्मिक स्थल ऐसे हैं, जहाँ मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदें - राज्यवार सूची ( भाग 1 )

3 August 2023


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🚩उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ कर दिया है , कि वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मंदिर को मस्जिद कहना गलत है। उन्होंने कहा कि इसमें त्रिशूल सहित हिंदू धर्म के अन्य निशान हैं। साथ ही कहा है कि इस ‘ऐतिहासिक भूल’ के समाधान के लिए मुस्लिम समाज की ओर से प्रस्ताव आना चाहिए।


🚩हालाँकि, देशभर में ऐसे कई अवैध निर्माण हैं। वर्ष 1990 में इतिहासकार सीता राम गोयल ने अन्य लेखकों अरुण शौरी, हर्ष नारायण, जय दुबाशी और राम स्वरूप के साथ मिलकर ‘हिंदू टेम्पल्स : व्हाट हैपन्ड टू देम’ (Hindu Temples: What Happened To Them) नामक दो खंडों की किताब प्रकाशित की थी। उसमें गोयल ने मुस्लिमों द्वारा बनाई गई 1800 से अधिक इमारतों, मस्जिदों और विवादित ढाँचों का पता लगाया था, जो मौजूदा मंदिरों/या नष्ट किए गए मंदिरों की सामग्री का इस्तेमाल करके बनाए गए थे। कुतुब मीनार से लेकर बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी विवादित ढाँचे, पिंजौर गार्डन और अन्य कई का उल्लेख इस किताब में मिलता है।


🚩लेखकों द्वारा उपयोग की जाने वाली पद्धति

पुस्तक के कुछ अध्याय में लेखकों के समाचार पत्रों में पहले प्रकाशित लेखों का भी एक संग्रह है। अध्याय छह में, ‘Historians Versus History’ अर्थात ‘इतिहासकार बनाम इतिहास’ में राम स्वरूप ने उल्लेख किया है , कि हिंदू मंदिरों को कैसे ध्वस्त किया गया और इससे जुड़ी अन्य जानकारियों के बारे में ब्रिटिश और मुस्लिम दोनों इतिहासकारों ने अपने-अपने तरीके से कैसे लिखा है। बात करें ब्रिटिश इतिहासकारों की तो उन्होंने स्वयं द्वारा भारत को गुलाम बनाने और यहाँ राज करने को सही ठहराते हुए मुगलों द्वारा की गई क्रूरता और बर्बरता को गलत करार दिया है। इसके विपरीत, मुस्लिम इतिहासकारों ने इस्लाम और उनके तत्कालीन संरक्षकों का महिमामंडन करते हुए विस्तार से बताया कि कैसे उन शासकों (मुस्लिम आक्रांताओं ) ने मंदिरों को तोड़ा और उसके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण किया,करवाया ।


🚩देशभर में मौजूद मस्जिदों और कई ऐतिहासिक इमारतों में उपलब्ध शिलालेखों में अल्लाह, पैगंबर और कुरान को कोट करके लिखा हुआ है। इन अभिलेखों से पता चलता है कि इन इमारतों का निर्माण किसके द्वारा, कैसे और कब किया गया था। पुस्तक में कहा गया है, “शिलालेखों को विद्वान मुस्लिम एपिग्राफिस्टों द्वारा उनके ऐतिहासिक संदर्भ से जोड़ा गया है। वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अपने एपिग्राफिया इंडिका अरबी और फारसी में प्रकाशित किए गए हैं। पहली बार 1907-08 में एपिग्राफिया इंडो-मोस्लेमिका के रूप में प्रकाशित हुआ था।”



🚩5 फरवरी, 1989 को अरुण शौरी (Arun Shourie) का एक लेख प्रकाशित हुआ था। उसमें उन्होंने एक प्रसिद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति मौलाना हकीम सैयद अब्दुल हाई (Maulana Hakim Sayid Abdul Hai) का जिक्र किया था। शौरी ने बताया था कि उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से एक किताब ‘हिंदुस्तान की मस्जिदें’ है, जिसमें 17 पन्नों का अध्याय था। उस अध्याय के बारे में बात करते हुए शौरी ने कहा था, उसमें मस्जिदों का संक्षिप्त विवरण लिखा गया था, जिसमें मौलाना हाई ने बताया था कि कैसे मस्जिदों के निर्माण के लिए हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था।


🚩उदाहरण के लिए बाबरी मस्जिद, जिसके बारे में हमने पढ़ा है, “अयोध्या, जो भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है। वहाँ पर प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। इस जगह को लेकर एक प्रसिद्ध कहानी है। कहा जाता है कि यहाँ श्रीराम चंद्र भगवान की पत्नी सीता का एक मंदिर था, जिसमें सीता माता का रसोईघर था ,जहां वो स्वयं अपने परिवार के लिए भोजन बनाती थीं । ” उसी स्थान पर बाबर ने एच. 963 में इस मस्जिद का निर्माण किया था।” यहाँ एच 963 का अर्थ हिजरी कैलेंडर वर्ष 963 से है, जो अंग्रेजी कैलेंडर के वर्ष 1555-1556 के बीच होता है।


🚩इस्लामिक जगहों की राज्यवार सूची

इसके अलावा किताब में विभिन्न राज्यों के 1800 से अधिक स्थानों का उल्लेख है। हिंदू मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए समर्पित संगठन, ‘रिक्लेम टेंपल’ ने सीता राम गोयल द्वारा पुस्तक में दी गई सूचियों पर बखूबी काम किया है। 


🚩आंध्र प्रदेश

सीता राम गोयल और अन्य लेखकों ने अपनी किताब में उल्लेख किया है कि मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद उसकी सामग्री का इस्तेमाल मस्जिदों, दरगाहों, प्रवेश द्वार और किलों के निर्माण में किया गया था। अकेले आंध्र प्रदेश को लेकर इन लेखकों ने 142 जगहों की पुष्टि की है, जिनमें कदिरी में जामी मस्जिद, पेनुकोंडा में अनंतपुर शेर खान मस्जिद, बाबया दरगाह पेनुकोंडा, जो इवारा मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। तदपत्री में ईदगाह, गुंडलाकुंटा में दतगिरी दरगाह,दतगिरी दरगाह को जनलापल्ले में जंगम मंदिर के ऊपर बनाया गया है।


🚩वहीं, हैदराबाद के अलियाबाद में मुमिन चुप की दरगाह है, जिसे 1322 में एक मंदिर की जगह पर बनाया गया था। इसी तरह, राजामुंदरी में जामी मस्जिद का निर्माण 1324 में वेणुगोपालस्वामी मंदिर को नष्ट करके किया गया था। आंध्र प्रदेश में मंदिरों का विनाश सदियों से जारी है। 1729 में बनाई गई गचिनाला मस्जिद (Gachinala Masjid,) को राज्य की सबसे नई मस्जिद के रूप में जाना जाता था। यह भी एक मंदिर की जगह पर बनाई गई है।


🚩असम

किताब में असम के दो मंदिरों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें तोड़कर मस्जिद और मजार में परिवर्तित कर दिया गया था। इनके नाम हैं, पोआ मस्जिद (Poa Mosque) और सुल्तान गयासुद्दीन बलबन (Ghiyasuddin Balban) की मजार। ये दोनों कामरूप जिले के हाजो के मंदिरों की जगह पर आज भी मौजदू हैं।


🚩पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में 102 जगहों पर मस्जिदें, किले और दरगाह हैं, जिन्हें मुस्लिम शासकों ने मंदिरों को नष्ट करके बनाया था। उन्होंने मंदिरों को नष्ट करने के बाद इकट्ठा हुए मलबे का इस्तेमाल करके इसे बनाया था। इन संरचनाओं में लोकपुरा की गाजी इस्माइल मजार भी शामिल है, जो वेणुगोपाल मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। बीरभूम सियान (1221) Birbhum Siyan (1221) में मखदूम शाह दरगाह को बनाने के लिए मंदिर की सामग्री का उपयोग किया गया था। सुता में सैय्यद शाह शाहिद महमूद बहमनी दरगाह को बौद्ध मंदिर की सामग्री से बनाया गया था। बनिया पुकुर में 1342 में बनाई गई अलाउद-दीन अलौल हक़ मस्जिद (Alaud-Din Alaul Haqq Masjid) को भी मंदिर की सामग्री का इस्तेमाल करके बनाया गया था।


🚩बारहवीं शताब्दी ईस्वी के अंत में मुस्लिमों ने एक हिंदू राजधानी लक्ष्मण नवती को नष्ट कर उसकी सामग्री उपयोग करके गौर में एक मुस्लिम शहर बनाया था। छोटी सोना मस्जिद, तांतीपारा मस्जिद, लटन मस्जिद, मखदुम अखी सिराज चिश्ती दरगाह, चमकट्टी मस्जिद, चाँदीपुर दरवाजा और अन्य संरचनाओं सहित कई मुस्लिम संरचनाएँ शहर में मंदिर की सामग्री का उपयोग करके दो शताब्दियों के अंदर बनाई गई थीं।



🚩बिहार

बिहार में कुल 77 जगहों पर मंदिर को नष्ट करके और फिर उसकी सामग्री का उपयोग करके मस्जिदों, मुस्लिम संरचनाओं, किलों आदि को बनाया गया था। भागलपुर में, हजरत शाहबाज की दरगाह 1502 में एक मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। इसी तरह चंपानगर में जैन मंदिरों को नष्ट कर कई मजारों का निर्माण कराया गया था। मुंगेर जिले के अमोलझोरी में मुस्लिम कब्रिस्तान एक विष्णु मंदिर की जगह पर बनाया गया था। गया के नादरगंज में शाही मस्जिद 1617 में एक मंदिर की जगह पर बनाई गई थी।


🚩नालंदा जिले में और बिहारशरीफ में भी मंदिरों को नष्ट किया गया था। 1380 में मखदुमुल मुल्क शरीफुद्दीन की दरगाह, बड़ा दरगाह, छोटा दरगाह और अन्य शामिल हैं। पटना में शाह जुम्मन मदारिया की दरगाह एक मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। शाह मुर मंसूर की दरगाह, शाह अरज़ानी की दरगाह, पीर दमरिया की दरगाह भी बौद्ध स्थलों पर बनाई गई थीं।


🚩दिल्ली

किताब में दिल्ली का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि यहाँ कुल 72 जगहों की पहचान की गई है, जहाँ पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सात शहरों का निर्माण करने के लिए इंद्रप्रस्थ और ढिलिका को नष्ट कर दिया था। मंदिर की सामग्री का उपयोग कई स्मारकों, मस्जिदों, मजारों और अन्य संरचनाओं में उनका उपयोग किया गया था। जिनमें कुतुब मीनार, कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद (1198), शम्सूद-दीन इल्तुतमिश का मकबरा, जहाज़ महल, अलल दरवाजा, अलल मीनार, मदरसा और अलाउद-दीन खिलजी का मकबरा और माधी मस्जिद शामिल हैं।


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Wednesday, August 2, 2023

सावधान !! मुस्लिम पट्टी’ बनाने की भी शुरुआत हो चुकी है.....

दशकों पूर्व ही भारत का 35% हिस्सा इस्लाम की भेंट चढ़ चुका है ।33% सफलता इन जेहादियों को मिल ही चुकी है और अब... अब 'मुस्लिम पट्टी’ बनाने की भी शुरुआत हो चुकी है.....


2 August 2023


http://azaadbharat.org


🚩डेमोग्राफी में बदलाव के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं, ये हिन्दुओं को अब समझ में आ रहा है। ऐसा नहीं है कि इतिहास में इसका खामियाजा हमें नहीं भुगतना पड़ा, बल्कि उस इतिहास को हम भूल चुके हैं। पाकिस्तान के रूप में हमारा 8 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र और बांग्लादेश के रूप में डेढ़ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हमसे छिन गया। अफगानिस्तान, जो पहले भारतवर्ष का हिस्सा हुआ करता था, आज उस साढ़े 6 लाख वर्ग किलोमीटर में शरिया चलता है।


🚩यानी, कुल मिला कर ये 16 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र हमारे हाथों से इस्लाम की झोली में फिसल गया...और हम मजे से सोते रहे । ये कोई छोटा क्षेत्र नहीं है, बल्कि भारत के वर्तमान क्षेत्रफल का लगभग आधा है। अर्थात, आधा भारत हमने खो दिया।

इससे भी दुखद और बदतर बात ये कि वहाँ आज हिन्दू बेहाल हैं। पाकिस्तान में उन हिन्दुओ की बहू-बेटियों का अपहरण कर जबरन धर्मांतरण और निकाह करा दिया जाता है, अफगानिस्तान में गुरु ग्रन्थ साहिब सिर पर लाद कर भारत लाना पड़ता है और बांग्लादेश में एक झूठी अफवाह के कारण देश भर में दुर्गा पूजा पंडालों पर हमले होते हैं।


🚩ये होता है जनसांख्यिकी में बदलाव का असर। 1930 के दशक के कराची की तस्वीर देखिए। महाशिवरात्रि के मेले में भीड़ दिखेगी। आम हिन्दू वहाँ आते थे, समृद्ध हिन्दुओं की गाड़ियाँ पार्क हुई दिखेंगी। आज कराची में इस तरह के नज़ारे के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। क्यों? क्योंकि ये मुस्लिम बहुल इलाका है। नेपाल, भूटान, तिब्बत या म्यांमार भी प्राचीन भारत से अलग हुए, लेकिन वहाँ हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं होते। कारण कि वहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक नहीं हैं।

अफगानिस्तान में शरिया लागू है। यहाँ तक कि सिनेमा और गीत-संगीत पर भी प्रतिबंध है। भगवान बुद्ध की प्रतिमा को बम से उड़ा दिया गया। गुरुद्वारों पर हमले होते हैं। बांग्लादेश में क़ुरान के अपमान की झूठी अफवाह से कैसे देश भर के मंदिरों पर हमले और आगजनी हुई, हमने देखा। तीनों देशों में अल्पसंख्यकों, खासकर हिन्दुओं की जनसंख्या पिछले कुछ दशकों में कई गुना कम हो गई। जो बचे-खुचे हैं, डर कर रहते हैं... या यह कहना ज्यादा  सही होगा कि डर कर रहना पड़ता है।


🚩लेकिन, ये तो इस्लामी कट्टरवाद की बस 33% सफलता है। बाकी की सफलता उन्हें तब प्राप्त होगी, जब उनका ‘गजवा-ए-हिंदुस्तान’ का सपना पूरा होगा। पूरे भारत पर इस्लाम का राज। इसकी एक साजिश हमें तभी देखने को मिली थी, जब देश के बँटवारे के समय बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) से लेकर पाकिस्तान तक एक ‘मुस्लिम पट्टी’ की माँग की गई थी। अर्थात, भारत के बीचोंबीच मुस्लिम जनसंख्या बढ़ा कर देश को और खंडित करना।


🚩ये साजिश अभी भी चल रही है। बांग्लादेश से पाकिस्तान तक एक ‘मुस्लिम पट्टी’ बनाए जाने के आरोप लगते रहे हैं, यानी रास्ते में आने वाले सभी जिलों को मुस्लिम बहुसंख्यक बना दो। इससे न सिर्फ भारत के टुकड़े होंगे, बल्कि हिन्दू भी डर कर रहेंगे। पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। पूर्व विधान पार्षद हरेंद्र प्रताप के इस मुस्लिम गलियारे के बारे में बताते हुए जानकारी दी थी, कि कैसे इससे पाकिस्तान और बांग्लादेश को जोड़ने की साजिश चल रही है।


🚩उन्होंने आँकड़े गिनाए थे कि मुस्लिम बहुल इलाकों मुजफ्फरनगर (50.14%), मुरादाबाद (46.77%), बरेली (50.13%), सीतापुर (129.66%), हरदोई (40.14%), बहराइच (49.17%) और गोंडा (42.20%) से ‘मुस्लिम पट्टी’ बनाने की साजिश है। कैराना से हिन्दुओं के पलायन और पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या मुस्लिमों के बढ़ते प्रभाव को उन्होंने इससे जोड़ कर देखा था।

अगर आपको याद हो तो...चिकेन्स नेक काटने की साजिश की तो शाहीन बाग़ में शरजील इमाम जैसों ने ही पोल खोल दी थी ।


🚩झारखंड की एक हालिया घटना को ही देख लीजिए। गढ़वा के एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक पर इसीलिए इस्लामी नियम-कानून लागू करने का दबाव है, क्योंकि वहाँ मुस्लिम 75% हो गए हैं। ये अलग बात है कि देश के 8 राज्यों में अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिन्दुओं को इसका फायदा नहीं मिलता और सुप्रीम कोर्ट भी इससे जुड़ी याचिका रद्द कर चुका है। मुस्लिम कहीं 100% हो जाएँ, फिर भी उन्हें सरकारी स्तर पर अल्पसंख्यकों वाली सारी सुविधाएँ मिलती रहेंगी।


🚩गढ़वा में मुस्लिम समुदाय के दबाव के चलते स्कूल की प्रार्थना बदल गई है। पहले यहाँ ‘दया का दान विद्या का…’ प्रार्थना करवाई जाती थी। हालाँकि अब ‘तू ही राम है तू ही रहीम’ प्रार्थना स्कूल में होने लगी है। इसके साथ स्कूल में बच्चों को हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने से भी मना कर दिया गया है। गाँव का मुखिया शरीफ अंसारीहै। मुस्लिमों के हंगामे के कारण प्रिंसिपल को सलाह दी गई कि, उनके कहे अनुसार विद्यालय चलाएँ। क्या आज तक हिन्दुओं ने किसी स्कूल में घुस कर हंगामा किया है कि वहाँ यज्ञ-हवन करवाए जाएँ।


🚩ये इस तरह की अकेली घटना नहीं है। राजस्थान के उदयपुर में टेलर कन्हैया लाल तेली का सिर कलम किए जाने का मामला हो या महाराष्ट्र के अमरावती में केमिस्ट उमेश कोल्हे की गर्दन में खंजर घोंप कर उनकी हत्या की घटना, इस्लामी कट्टरपंथ का प्रयास यही है कि हिन्दू डर कर रहें।


🚩कश्मीर में दशकों से आम नागरिक निशाना बनाए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में एक छोटी सी घटना पर निकली मुस्लिम भीड़ रेलवे की अरबों की संपत्ति का एक झटके में नुकसान कर देती है और कोई कुछ नहीं बोलता...।


🚩खासकर जहाँ भाजपा की सरकार नहीं है, वहाँ ऐसी घटनाएँ और ज्यादा होती हैं। अव्वल तो ये कि इन्हें तुरंत अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिल जाता है। 50 से अधिक इस्लामी मुल्क हैं दुनिया में, ऊपर से कई देशों में वो बहुसंख्यक हैं और कइयों में प्रभावशाली स्थिति में हैं। फिर भी वो पीड़ित बन कर ही रहते हैं।


🚩मीडिया आतंकवाद और कट्टरपंथ के विरोध को ‘इस्लामोफोबिया’ कहता है। किसी हिन्दू का सिर जिहादी काट लें, फिर भी ‘TIME’ जैसे मैगजीन , इस पर जैसे एक तरह से ये पूछते हैं कि ये हिन्दू बिना शोर मचाए क्यों नहीं मर रहे !?


🚩जहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या ज्यादा नहीं है, वहाँ भी कई गली-मोहल्लों में ये एक साथ रहते हैं। ये इलाके फिर ‘संवेदनशील’ कहे जाते हैं। वहाँ मस्जिद होता है। सड़क सरकार की होती है, लेकिन वहाँ से हिन्दू त्योहारों के जुलूस नहीं गुजर सकते। डीजे बजाने पर पत्थरबाजी होती है। लेकिन, ये सड़क पर नमाज पढ़ सकते हैं। सार्वजनिक स्थान पर शांतिपूर्ण हनुमान चालीसा पाठ को ‘गुंडई’ बता दिया जाता है। यानी, इनकी मंशा है कि ये जहाँ भी रहें, मर्जी इनकी ही चले। शरिया का पालन मुस्लिम ही नहीं, सभी गैर-मुस्लिम भी करें।


🚩उत्तराखंड में भी डेमोग्राफी बदलने की बात सामने आई है। पर्यटन और हिन्दू तीर्थाटन आधारित इस राज्य के उद्योग-धंधों में बाहरी मुस्लिमों का वर्चस्व हो गया है। पश्चिम बंगाल में तो लगभग एक तिहाई जनसंख्या मुस्लिमों की होने जा रही है। तभी भाजपा कार्यकर्ताओं के नरसंहार पर मुस्लिमों की बदौलत सत्ता में आई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुप रहती हैं। हैदराबाद की सभी विधानसभा और लोकसभा सीटें असदुद्दीन ओवैसी को जाती हैं। बिहार के सीमांचल में मुस्लिम उम्मीदवार ही जीतते हैं।

ये ....ये होता है डेमोग्राफी में बदलाव का असर !


🚩हम कश्मीर को कैसे भूल सकते हैं। लाखों की संख्या में जहाँ पंडित हुआ करते थे और डल झील के किनारे मंत्र जपते पंडित जिस राज्य की पहचान थे, वहाँ से उन्हें अपनी घर-संपत्ति छोड़ कर भागना पड़ा और अपने ही देश में शरणार्थी बन कर जीना पड़ रहा है। नरसंहार हुआ, बलात्कार हुआ, पलायन हुआ – बदल गई डेमोग्राफी। इसकी कोई गारंटी नहीं कि ये प्रक्रिया भारत के अन्य हिस्सों में नहीं दोहराई जाएगी। गुजरात में एक जैन कॉलोनी का इस्लामीकरण कर दिया गया, जहाँ अहिंसक जैन को कटते हुए पशुओं की चीखें सुननी पड़ती है, बहता खून देखना पड़ता है। यही तो है डेमोग्राफी चेन्ज की प्रक्रिया।


        - अनुपम कुमार सिंह


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Tuesday, August 1, 2023

चंगाई से बीमारी ठीक होने की लालच से करवाया था धर्मांतरण, 2 साल बाद जनजातीय लोगों ने की घर वापसी....


1 August 2023

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🚩झारखंड के गुमला जिले में धर्मांतरण का शिकार हुए जनजातीय समाज के 20 लोगों ने घर वापसी कर ली है। ईसाई मिशनरी के संपर्क में आकर ये लोग करीब 2 साल पहले ईसाई बन गए थे। लेकिन अब विधि विधान से पूजा कर सभी ने शुक्रवार (28 जुलाई, 2023) को अपना मूल धर्म अपना लिया।


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, घर वापसी का यह मामला गुमला जिले के बसिया प्रखंड अंतर्गत कुम्हारी झापाटोली गाँव का है। ईसाई मिशनरियों ने बीमारी ठीक करने की बात कहकर गाँव में रहने वाले जनजातीय समाज के भोले-भाले लोगों को अपने धर्मांतरण जाल में फँसा लिया था। 2 साल पहले गाँव के कई परिवार धर्मांतरित होकर ईसाई बन गए थे।


🚩धर्मांतरण की जानकारी मिलने के बाद वनवासी कल्याण केंद्र द्वारा संचालित जनजाति हित रक्षा आयाम के जिला संयोजक सोनामनी उराँव और सदस्य दिनेश लकड़ा ने धर्मांतरित हुए लोगों को जागरूक करना शुरू किया। इससे सभी लोगों ने पुनः अपना धर्म अपनाने की इच्छा जताई। इसके बाद हिंदू जनजागरण मंच झारखंड के सहयोग से घर वापसी कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान गाँव के बुद्धेश्वर पहान ने पूरी रीति-रिवाज के साथ ग्राम देवता की पूजा कर धर्मांतरित हुए लोगों की घर वापसी कराई।


🚩धर्मांतरण के जाल में फँसे लक्ष्मण उराँव, बिरसा उराँव और मुन्नी उराँव का कहना है कि उनके घर में आए दिन कोई न कोई बीमार रहता था। इसी दौरान ईसाई मिशनरियों द्वारा चंगाई सभा में इन लोगों को बीमारी ठीक करने और इलाज कराने का लालच दिया गया। इस लालच में फँसकर उनके परिवार के लोगों ने ईसाई मजहब अपना लिया था।


🚩ईसाई बन जाने के बाद भी न तो कोई ठीक हुआ और न ही इलाज कराया गया। इसके बाद धर्मांतरित हुए लोगों को समझ आया कि यह सब अंधविश्वास था। उन्हें अपने धर्म और समाज में वापस लौटने पर बेहद खुशी हो रही है। पहले वह रास्ता भटक गए थे। लेकिन अब धर्म के रास्ते पर लौट आए हैं।


🚩जनजाति हित रक्षा आयाम के जिला संयोजक सोनामनी उराँव का कहना है कि ईसाई मिशनरियाँ बड़े पैमाने पर सक्रिय होकर गुमला जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब जनजातीय परिवारों को लालच देकर ईसाई बना रही हैं। जनजाति रक्षा आयाम धर्मांतरण के खिलाफ काम कर रहा है। साथ ही धर्मांतरण का शिकार हुए लोगों को चिन्हित कर उनकी घर वापसी कराई जाएगी। घर वापसी करने के बाद जनजातीय परिवार बेहद खुश और उत्साहित हैं।


🚩आपको बता दे की प्रार्थना से चंगाई में विश्वास रखने वाली मदर टेरेसा खुद विदेश जाकर तीन बार आँखों एवं दिल की शल्य चिकित्सा करवा चुकी थी। यह जानने की सभी को उत्सुकता होगी की हिन्दुओं को प्रार्थना से चंगाई का सन्देश देने वाली मदर टेरेसा को क्या उनको प्रभु ईसा मसीह अथवा अन्य ईसाई संतों की प्रार्थना द्वारा चंगा होने का विश्वास नहीं था जो वे शल्य चिकित्सा करवाने विदेश जाती थी?


🚩मदर टेरेसा, सिस्टर अल्फोंसो, पोप जॉन पॉल सभी अपने जीवन में गंभीर रूप से बीमार रहे। उन्हें चमत्कारी एवं संत घोषित करना केवल मात्र एक छलावा है, ढोंग है, पाखंड है, निर्धन हिन्दुओं को ईसाई बनाने का एक सुनियोजित षड्यन्त्र हैं। अगर प्रार्थना से सभी चंगे हो जाते तब तो किसी भी ईसाई देश में कोई भी अस्पताल नहीं होने चाहिए, कोई भी बीमारी हो जाओ चर्च में जाकर प्रार्थना कर लीजिये। आप चंगे हो जायेंगे। खेद हैं की गैर ईसाइयों को ऐसा बताने वाले ईसाई स्वयं अपना ईलाज अस्पतालों में करवाते है।


🚩पॉल दिनाकरन के नामक ईसाई प्रचारक का चित्र जो वर्षों से रोग से पीड़ित महिला के रोग को चुटकियों में ठीक करने का दावा करता है। पाठकों को जानकार आश्चर्य होगा इनके पिताजी लंबी बीमारी के बाद मरे थे। इसे दाल में काला नहीं अपितु पूरी दाल ही काली कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।


🚩सभी हिन्दू भाइयों से अनुरोध है कि ईसाई समाज के इस कुत्सित तरीके की पोल खोल कर हिन्दू समाज की रक्षा करे और सबसे आवश्यक अगर किसी गरीब हिन्दू को ईलाज के लिए मदद की जरूरत हो तो उसकी धन आदि से अवश्य सहयोग करे जिससे वह ईसाइयों के कुचक्र से बचा रहे।


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Monday, July 31, 2023

सनातनधर्म विरोधियों ने हिन्दुओं को विभाजित करने के लिए बनाया बिल्कुल नया प्लान, शुरू हुई रावण को लेकर घमासन

31 July 2023 


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🚩पंजाब से खबर मिली है। वहां के कुछ लोग जो अपने आपको वाल्मीकि कहते हैं उन्होंने रावण पूजा करना आरम्भ किया है। ये लोग अपने आपको अब द्रविड़ और अनार्य कहना पसंद करते है। इन्होने अपने नाम के आगे दैत्य, दानव, अछूत और राक्षस जैसे उपनाम भी लगाना आरम्भ किया है। ये लोग अपने आपको हिन्दू नहीं अपितु आदि धर्म समाज के रूप में सम्बोधित करेंगे। ये कोई हिन्दू धर्म से सम्बंधित कर्मकांड नहीं करते । पूरे पंजाब में रावण सेना की गतिविधियां बढ़ाई जाएँ , ऐसा इनका इरादा है।


🚩एक तथ्य इस खबर से स्पष्ट है। यह कृत्य करने वाले तो केवल कठपुतलियां हैं। इसके पीछे कोई NGO , तथाकथित अम्बेडकरवादी, साम्यवादी, नक्सली या ईसाई दिमाग सक्रिय है। जो इन लोगों के भोलेपन का फायदा उठाकर अपनी दुकानदारी चमकाना अथवा विधान सभा चुनाव में किसी बड़े दल का टिकट प्राप्त करना चाहता है। असल में पंजाब के वाल्मीकि समाज में गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास, नशा आदि प्रचलित हैं। इनकी स्थिति का फायदा उठाकर इन्हें इसाई बनाने के लिए अम्बेडकरवाद का लबादा लपेट कर मिशनरीज बड़े पैमाने पर लगी हुई हैं। यह कार्य सीधे न करके अनेक बार पिछले दरवाजे से भी किया जाता रहा है।


🚩इस रणनीति के तहत ... पहले चरण में इन्हें हिन्दू धर्म से सम्बंधित मान्यताओं से दूर किया जाता है। दूसरे चरण में इनका प्रतिरोध समाप्त होने और हिन्दुओं से अलग होने पर आसानी इनका इसाईकरण कर दिया जाता है।

विडंबना यह है हिन्दू/सिख समाज के तथाकथित  बुद्धिजीवियों को इन उभरती हुई समस्याओं के समाधान में कोई रूचि नहीं है। शायद उनके लिए खुद ही सिर्फ आराम से रहना जीवन का उद्देश्य है।


🚩पंजाब में दलित समाज महर्षि वाल्मीकि और संत रविदास जी को अपना गुरु मानते हैं। जबकि स्वयं महर्षि वाल्मीकि रामायण के रचियता थे। उन्ही के द्वारा रचित वाल्मीकि रामायण में हमने पढ़ा है , श्रीराम मर्यादापुरुषोत्तम और सर्वगुण संपन्न हैं और रावण एक दुराचारी, अत्याचारी व एक विवाहिता स्त्री , माता सीता का अपहरणकर्ता है ।

दूसरी ओर संत रविदास जी भी अपने दोहों में श्री राम की स्तुति करते हैं।



🚩फिर...कमाल यह है , कि इन्हीं दो महापुरुषों को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने का ढोंग रचने वाले इन्हीं के उपदेशों की अवहेलना कर अपना उल्लू सीधा करने के लिए सत्य को सिरे से नकार रहे हैं और पंजाब के गाँव के भोले-भाले अनपढ़ गरीब लोगों को ठग रहे है॔ ।


🚩अब रावण का भी इतिहास पढ़िए। रावण कोई द्रविड़ देश का अनार्य राजा नहीं था। लंकापति रावण सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र था। वह महान शिव भक्त , महापंडित और प्रकाण्ड विद्वान भी था... जो कि वेदों की शिक्षा को भूलकर गलत रास्ते पर चल पड़ा था। जिसकी सजा श्री रामचंद्र जी ने उसे दी। फिर किस आधार पर रावण को कुछ नवबौद्ध, अम्बेडकरवादी अपना पूर्वज बताते हैं? कोई आधार नहीं। केवल कोरी कल्पना मात्र है...वह भी साजिशों में सनी हुई।



🚩दक्षिण भारत, द्रविड़ देश नामक कोई भिन्न प्रदेश नहीं था। बल्कि यह श्री राम के पूर्वज राजा इक्ष्वाकु का ही क्षेत्र था। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड का प्रमाण देखिये। श्री राम बाली से कहते हैं👇


इक्ष्वाकूणामीयं भूमि स:शैल वन कानना।

मृग पक्षी मनुष्याणां निग्रहानु ग्रहेष्वपि।।


अर्थात्...

यहां भगवान श्र राम कह रहे हैं, "वन पर्वतों सहित यह भूमि इक्ष्वाकु कुल के राजाओं की अर्थात हमारी है। अत: यहां के वन्य पशु, पक्षियों और मनुष्यों को दंड देने और या उनपर अनुग्रह करने में हम समर्थ है॔।"


रामायण में वर्णित बाली, सुग्रीव और रावण ये सभी पात्र भी आर्य ही थे...इसका प्रमाण पढ़िए-👇


आज्ञापयतदा राजा सुग्रीव: प्लवगेश्वर:।

औध्वर्य देहीकमार्यस्य क्रियतामानुकूलत:।।


अर्थात यहां सुग्रीव बाली के अंतिम संस्कार के लिए आदेश दे रहा है। कहता है इस आर्य का अंतिम संस्कार आर्योचित रीती से किया जाये।

रावण राम के साथ युद्ध में घायल हो गया तो उसका सारथी उसे युद्धक्षेत्र से बाहर ले गया। होश आने पर रावण उसे दुत्कारते हुए कहता है कि👇


त्वयाद्य: हि ममानार्य चिरकाल मुपार्जितम।

यशोवीर्य च तेजश्च प्रत्ययश्च विनाशिता:।।


अर्थात हे अनार्य! तूने चिरकाल से उपार्जित मेरे यश, वीर्य, तेज और स्वाभिमान को नष्ट कर दिया। यहाँ रावण क्रोध से भरकर अनार्य शब्द का प्रयोग कर रहा है। इससे यही सिद्ध हुआ कि वह अपने आपको श्रेष्ठ अर्थात् आर्य मानता था।

🚩रावण आर्य कुल में उत्पन्न होने के पश्चात भी अपने बुरे कर्मों के कारण अनार्य हो चुका था। रावण विलासी राजा बन चुका था। अनेक देश - विदेश की सुन्दरियां उसके महल में थीं। हनुमान अर्धरात्रि के समय माता सीता को खोजने के लिए महल के उन कमरों में घूमें जहाँ रावण की अनेक स्त्रियां सोई हुई थी। नशा कर सोई हुई स्त्रियों के उथले वस्त्र देखकर हनुमान जी कहते है।


कामं दृष्टा मया सर्वा विवस्त्रा रावणस्त्रियः ।

न तु मे मनसा किञ्चद् वैकृत्यमुपपद्यते ।।


अर्थात - मैंने प्रसुप्तावस्था में शिथिलवस्त्रा रावण की स्त्रियों को देखा है, किन्तु इससे मेरे मन में किञ्चन्मात्र भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ।


सब कक्षों में घूमकर विशेष-विशेष लक्षणों से हनुमान जी ने यह निश्चिय किया कि इनमें से सीता माता कोई नहीं हो सकती।

ऐसा निश्चय हनुमान जी ने इसलिए किया , क्यूंकि वो जानते थे , कि माता सीता महान पतिव्रता और चरित्रवान स्त्री है। न की रावण और उसकी स्त्रियों के समान भोगवादी है। अंततः माता सीता उन्हें अशोक वाटिका में निरीह अवस्था में मिलीं।


🚩अगर आपका पूर्वज शराबी, व्यभिचारी, विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी हो तो आप उसके गुण-गान करेंगे या निंदा !?


🚩स्पष्ट है , कि आप मर्यादावश उसकी निंदा न भी करेंगे तो कम से कम उसकी पूजा भी न कर सकेंगे...

और उसे अपना आदर्श न बनाकर , उसके कृत्यों की आलोचना और तिरस्कार जरूर करेंगे।

बस हम यही तो कर रहे हैं। यही सदियों से दशहरे पर होता आया है। रावण का पुतला जलाने का भी यही सन्देश है, कि पाप कर्म का सदैव यही परिणाम होता है। 


🚩एक ओर वात्सलय के सागर, सदाचारी, आज्ञाकारी, पत्नीव्रती, शूरवीर, मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम हैं , तो दूसरी ओर शराबी, व्यभिचारी, भोगी , विलासी, अपहरणकर्ता, चरित्रहीन, अत्याचारी रावण है।

पूज्य कौन और त्याज्य कौन इतना तो साधारण बुद्धि वाले भी समझ सकते हैं!


🚩कुछ लोग क्यों नहीं समझना चाहते , यह समझ के परे है !! साफतौर पर जानबूझकर ही यह सब किया जा रहा है ।

यह घमासान अब बंद होना ही चाहिए ...

 

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Sunday, July 30, 2023

पाकिस्तान के गुरुद्वारे बूचड़खानों और कब्रिस्तानों में तबदील...

आख़िर चुप क्यों हैं खालिस्तानी !??

30 July 2023

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🚩पाकिस्तान में सिखों पर हो रहे अत्याचारों को लेकर खालिस्तानी समर्थक और आतंकवादी चुप्पी साधे हुए हैं। पाकिस्तान के गुरुद्वारों को इस हद तक अपवित्र कर दिया गया है कि उनकी इमारतों को बूचड़खानों और कब्रिस्तानों में बदल दिया गया है।


🚩हैरानी इस बात की है, कि खालिस्तानी समर्थकों और आतंकियों ने इस मामले पर न कभी बात की और न ही कभी कोई आपत्ति जताई। दरअसल, इन चंद खालिस्तानियों के असली आका आतंकी संगठन हैं और ये उसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं करते। 


🚩सिखों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह कर रही है पाक सरकार ।

पाकिस्तान में सिखों के उत्पीड़न पर ऐसी कई रिपोर्टें हैं, जिनमें कहा गया है कि पाकिस्तान सरकार देश में केवल मुट्ठी भर गुरुद्वारों को बनाए रखकर सिखों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह कर रही है। ऐसी सैकड़ों ऐतिहासिक महत्व की इमारतें हैं, जिन्हें तोड़ा और नष्ट किया जा रहा है। पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन सिख समुदाय के पूजा स्थलों को अपवित्र कर और उन पर अवैध कब्जा करके उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा है, लेकिन भारत विरोधी एजेंडा चलाने वाले खालिस्तानी इस मुद्दे पर अपना मुंह और आंखें बंद कर लेते हैं।


🚩कब्रिस्तान व जानवरों के शेड बना दिए गए गुरुद्वारे 


🚩दूसरा गुरुद्वारा किला साहिब है, जो गुरु हरगोबिंद सिंह जी की याद में बनाया गया था। यह जिला हफीजाबाद के गुरु नानकपुरा मोहल्ले में है। इन ऐतिहासिक गुरुद्वारों को या तो कब्रिस्तान या बूचड़खानों में बदल दिया गया है। स्थानीय सिखों ने कई बार स्थानीय पुलिस और निजी व्यक्तियों द्वारा अवैध अतिक्रमण के ऐसे मुद्दे उठाए हैं। इसके अलावा, कई तीर्थस्थलों को जानवरों के शेड के रूप में उपयोग करके अपवित्र किया गया है। पाकिस्तान में पंजाब के कसूर जिले के ललयानी शहर के दफातू गांव में स्थित गुरुद्वारा साहिब की हालत भी खराब है । इसी तरह पंजाब के साहीवाल जिले में गुरुद्वारा श्री टिब्बा नानकसर साहिब पाकपट्टन , धार्मिक स्थलों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार सरकारी संस्था इवेक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) की लापरवाही के कारण खंडहर में तब्दील होने की कगार पर है, फिर भी खालिस्तानी चुप हैं। 


🚩ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब को भी बना दिया बूचड़खाना


🚩रावलपिंडी के राजा बाजार में ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब का इस्तेमाल बूचड़खाने और मांस की दुकान के रूप में किया जा रहा है। पिछले कई वर्षों से गुरुद्वारे के मुख्य द्वार के पास मांस की दुकानें लगती रही हैं। गुरुद्वारा परिसर में मांस की दुकानों के अलावा एक दर्जन से अधिक अन्य दुकानें भी संचालित की जा रही हैं। कहा जाता है, कि इस गुरुद्वारे का निर्माण 1876 में बाबा खेम सिंह बेदी ने करवाया था।


🚩पाकिस्तान में गुरुद्वारों की घोर उपेक्षा का एक और उदाहरण ... गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा है। यह पंजाब प्रांत के गल्ला मंडी, साहीवाल में स्थित है। इमारत बहुत बड़ी है लेकिन स्थानीय प्रशासन ने गुरुद्वारे पर कब्ज़ा कर लिया है और इसे सिटी पुलिस स्टेशन में बदल दिया है। पाकिस्तान के पेशावर में चरमपंथी मुसलमान सिखों पर अत्याचार कर रहे हैं। हाल ही में पेशावर के एक सिख परिवार ने खुलासा किया है कि वहां सिखों का कत्लेआम किया जा रहा है। सिखों पर लगातार हमले हो रहे हैं लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी खालिस्तानी पाकिस्तान में सिखों के पक्ष में आवाज नहीं उठाते। 


🚩पाकिस्तान के इशारे पर काम करने वाले खालिस्तानी आतंकी चुप !!


🚩हाल ही में पाकिस्तान में बारिश के कारण ऐतिहासिक गुरुद्वारा रोरी साहिब का एक बड़ा हिस्सा स्थानीय प्रशासन की अनदेखी के कारण ढह गया। लाहौर से करीब 25 किमी की दूरी पर जाहमान गांव में स्थित यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा के पास है। इस गुरुद्वारे के कुछ हिस्सों की हालत पहले से ही बहुत खराब थी और पिछले दिनों बारिश के कारण ये हिस्से ढह गए। हालांकि, पाकिस्तान के इशारे पर काम करने वाले खालिस्तानी आतंकी इस पर चुप हैं । जबकि भारतीय सिखों ने ऐसी कई घटनाओं पर अपनी चिंता दर्ज कराई है। कई महत्वपूर्ण गुरुघर जर्जर हालत में हैं लेकिन पाकिस्तानी सरकार उनकी मरम्मत की जहमत तक नहीं उठाती। भारतीय सिख इस मुद्दे पर कई बार पाकिस्तान की आलोचना कर चुके हैं, जबकि भारत के रोंगटे खड़े करने वाले खालिस्तानी आतंकवादी पाकिस्तान के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलते हैं।

🚩पाकिस्तान भी खालिस्तान बनने के पक्ष में नहीं !

गौरतलब है कि करीब 25 साल पहले एक दर्जन से ज्यादा नामी खालिस्तानी आतंकी और उनके संगठनों के 5 मुखिया भारत से भागकर पाकिस्तान चले गए थे । भारत सरकार के दस्तावेजों के मुताबिक खालिस्तानी संगठनों के ये पांचों नेता पाकिस्तान के लाहौर में बसे हुए थे। पाकिस्तान खालिस्तानी आतंकियों को ट्रेनिंग देता रहा है और भारत में माहौल खराब करने के लिए टेरर फंडिंग और हथियार भी मुहैया कराता है। यही कारण है कि खालिस्तान पाकिस्तान में सिखों के उत्पीड़न में हस्तक्षेप नहीं करता है। इनमें कई आतंकियों पर हत्या, अपहरण, बम ब्लास्ट और देशद्रोह के मामले दर्ज हैं। जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान का मकसद विदेशों में खालिस्तानी एजेंडे को जिंदा रखना है हालांकि, पाकिस्तान भी खालिस्तान बनने के पक्ष में नहीं है। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक वह खालिस्तानी और कश्मीरी आतंकवादियों को भारत में आतंकवादी हमले करने के लिए मजबूर कर रहा है।


🚩विदेश में रहने वाले कुछ सिख भाई जो अपने क्षणिक लाभ और राजनीतिक हितों के लिए अलगाववाद की जहरीली बेल को पोषित करने का प्रयास कर रहे हैं। वे यह न भूले कि विदेशों में भी मुस्लिम जनसंख्या दर आज भी सिखों,हिन्दुओं और ईसाईयों से बहुत अधिक हैं। मुस्लिम समाज न केवल संगठित है अपितु उसे क्या करना हैं, यह उसे भली प्रकार से बचपन से ही समझाया जाता है। इसलिए वे यह न समझे की उनका भविष्य सुरक्षित है। उनका भविष्य भी कोई सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तान में जो आज सिखों और हिन्दुओं के साथ हो रहा है। आज से कुछ दशकों के बाद वही उनके साथ भी होगा। इसलिए अलगाववाद और विघटन का रास्ता छोड़कर हिन्दुओं के साथ मिलकर एकता और परस्पर सामंजस्य का रास्ता अपनाने में सभी का हित है ।

असल में तो सिख भी हिंदू ही हैं, बस पंथ अलग हो गया था, गुरु को ही ईश्वर और अपना सर्वेसर्वा माने , उनको सिख कहते है।

और देश में सदियों से ही मुगल आतंकियों व आताताइयों से लोहा लेने में हमारे सिख शूरवीरों ने बड़े-बड़े बलिदान दिए हैं।


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Saturday, July 29, 2023

आखिर मंदिरों को ड्रेस कोड लागू करने की आवश्कता क्यों हो रही है? जानिए.....

29 July 2023

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🚩भारतीय संस्कृति में वस्त्रों का काफी महत्व है। देखकर तो हम किसी व्यक्ति के पहनावे से ही अंदाजा लगा सकते हैं , कि व्यक्ति किस प्रकार का हो सकता है । आजकल भारत में पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण और बॉलीवुड के प्रभाव से प्रभावित होकर छोटे कपड़े पहनने की होड़ लगी हुई है।ऐसी फैशनपरस्ती में गर्क हुए लोगों को अहसास भी नही होता , कि इससे खुद को कितनी हानि होती है और आस-पास के माहौल पर भी कितना गलत प्रभाव पड़ता है।


🚩देश के कई मंदिरों में भी भगवान के दर्शन करने के लिए ड्रेस कोड अनिवार्य किया गया है । इस पर पश्चिमी ससभ्यतासे प्रभावित कुछ लोग बोलते हैं , कि हम कैसे कपड़े पहने इसके लिए हमारी स्वतंत्रता होनी चाहिए,  हम कुछ भी पहने उस पर रोक-टोक नहीं होनी चाहिए। मंदिरों में हम कैसे भी कपड़े पहनकर जाएं , इस पर ध्यान क्यों दिया जा रहा है...!?

महत्वपूर्ण यह है कि हम मंदिर जाएं , यह कोई महत्व नहीं रखता कि क्या पहनकर जाते हैं !


🚩तो इस पर हमारा उन तथाकथित आजाद ख्याल लोगो से एक सवाल है... कि क्या आप अपने ऑफिस, स्कूल , सेना , पुलिस विभाग और या अस्पताल आदि जैसे स्थानों पर जब अपने कार्यों या अन्य कारणों से जाते हैं , तो वहां ऐसी जिद्द कर सकते है? और क्या वहां यह जिद आपकी उस उस विभाग को मान्य होगी !?

जब आप ऑफिस, स्कूल , पुलिस विभाग आदि में कार्य करने जाते है वहां का नियम पालते हैं और जो ड्रेस कोड होता है वही पहनते हैं।

तो फिर मंदिरों में भगवान के दर्शन के लिए जाते हुए अंग प्रदर्शन करना क्या उचित है!?

सौ की सीधी एक ही बात...कई बार सच बहुत कड़वा होता है।और वह ये , कि ऐसी जिद्द करने वाले वर्ग विशेष वहां भगवान के दर्शन के लिए नहीं अपितु सिर्फ अंग प्रदर्शन कर के खुद को बड़ा फैशनेबल और मॉडर्न दिखाने जाते हैं।

नहीं तो सीधे सादे भारतीय परिधान में मंदिर जाने में और क्या परेशानी नही हो सकती है !?


🚩गौरतलब है कि हाल ही में मथुरा के राधा रानी मंदिर में भी ड्रेस कोड लागू किया गया । उससे पहले उत्तराखंड के 3 मंदिरों में भी ड्रेस कोड लागू हुआ। इसके अलावा राजस्थान , जम्मू कश्मीर , यूपी, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों के मंदिरों में ऐसे नियम लागू किये गये हैं। अब तो मंदिरों में स्पष्ट लिखा गया है ,कि शॉर्ट, मिनिस्कर्ट, कैपरी आदि छोटे कपड़े पहनकर मंदिर में प्रवेश वर्जित है।


🚩बता दें , कि गुजरात के द्वारिका में स्थित भगवान श्री कृष्ण के मंदिर के बाहर पोस्टर पर लिखा हुआ है कि , “श्री द्वारकारधीश जगत मंदिर में आने वाले सभी वैष्णवों से अनुरोध है , कि वे भारतीय संस्कृति के अनुकूल कपड़े और या जगत मंदिर की गरिमा बनाए रखने योग्य कपड़े पहनकर ही मंदिर परिसर में प्रवेश करें।”


🚩मंदिर में आने वाले सभी भक्तों से निवेदन है , कि वे सादे कपड़े पहनकर ही मंदिर में प्रवेश करें। छोटे कपड़े, हाफ पैंट, बरमूडा, मिनी टॉप, मिनी स्कर्ट, नाइट सूट, फ्रॉक और रिप्ड जींस जैसे कपड़े पहने हुए लोगों को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।


🚩मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ड्रेस कोड के बारे में द्वारकाधीश मंदिर के ट्रस्टी पार्थ तलसाणिया ने बताया कि यह फैसला मंदिर आने वाले कई श्रद्धालुओं की शिकायत के ऊपर विचार-विमर्श करके मंदिर प्रशासन ने लिया है। उन्होंने बताया कि कुछ दर्शनार्थी कहते हैं , " लोगों के मंदिर में छोटे कपड़े पहनकर आने से दूसरे भक्तों का ध्यान भटकता है। इसी के चलते देश के कई मंदिरों में अब ड्रेस कोड लागू किया जा रहा है।


🚩एक घटना से समझे पूरे कपड़े पहनना क्यों जरूरी है...


🚩एक लड़की को उसके पिता ने iphone गिफ्ट किया,


🚩दूसरे दिन पिता ने लड़की से पूछा,


🚩बेटी iphone मिलने के बाद सबसे पहले तुमने क्या किया।


🚩लड़की :- सबसे पहले मैंने स्क्रेच गार्ड और कवर लगाया।


🚩पिता :- तुम्हें ऐसा करने के लिये किसी ने जोर ज़बरदस्ती किया क्या ? लड़की :- नहीं किसी ने नहीं। 


🚩पिता:- तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि तुमने iPhone निर्माता की बेइज्जती की है।


🚩बेटी: - नहीं बल्कि निर्माता ने खुद कवच व स्केच गार्ड लगाने के लिये सलाह दी है।


🚩पिता: - अच्छा तब तो iphone खुद ही दिखने में खराब दिखता होगा, तभी तुमने उसके लिये कवर लगाया है।


🚩लड़की:- नहीं, बल्कि वो खराब न हो इसलिये कवर लगवाया है।


🚩पिता :- तो क्या कवर लगाने से उसकी सुन्दरता में कमी आई क्या। लड़की :- नहीं, बल्कि कवर लगाने से तो iPhone और ज्यादा सुन्दर दिखता है।


🚩पिता ने बेटी की ओर प्यार से देखते हुए कहा बेटी,


🚩iPhone से भी ज्यादा कीमती और सुन्दर तुम्हारा ये शरीर और चरित्र है और तुम इस घर की और हमारी इज्जत हो। अपने शरीर के अंगों को कपड़ों से कवर करने पर उसकी सुन्दरता और निखरेगी।


🚩बेटी के पास पिता की इस बात का कोई जवाब नहीं था।

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