अभी विरोध नहीं किया गया तो आगे क्या होगा ?
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🚩जब सितंबर 2012 में ‘OMG! Oh My God’ फिल्म आई थी, तब इसे दर्शकों का अच्छा-खासा प्यार मिला था। बढ़िया समीक्षा से लेकर अच्छी कमाई तक, फिल्म ने सब बटोरे।
लेकिन, बाद में सामूहिक चेतना के विकास के साथ हिन्दुओं को इस बात का एहसास हुआ कि उनके साथ छल हुआ है। मूर्तिपूजा के प्रति घृणा फैलाने से लेकर मंदिरों को बदनाम करने तक, इस फिल्म ने हिन्दू विरोध के हर कार्य बखूबी किए थे। अब निर्माता उसकी सीक्वल ‘OMG 2’ लेकर आ गए हैं।
🚩अगर ‘OMG 2’ की समीक्षा की बात करें तो,इसके डायलॉग्स बड़ी चालाकी से लिखे गए हैं। एक साधारण प्लॉट को एक लंबी स्क्रिप्ट में ढाल कर कहानी पिरोई गई है।
🚩‘OMG 2’: मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा तारीफ़, ‘सेक्स एजुकेशन’ पर जोर...
🚩भारत में एक आदत रही है, पश्चिम का अनुसरण करना। वहाँ लोग समलैंगिक आंदोलन करने लगें तो यहाँ समलैंगिकों के पक्ष में बातें करके आधुनिक बनने की होड़ लग जाती है। वहाँ बच्चों को सेक्स के बारे में बताया जाने लगा तो यहाँ सवाल उठने लगे, कि भारत में खुलेआम सेक्स पर बात क्यों नहीं हो सकती ।
🚩मीडिया से एक छोटा सा सवाल – मीडिया द्वारा ‘सेक्स’ को बार-बार भारतीय समाज में ‘Taboo’ बताया जाता है, अर्थात इस पर बात नहीं की जाती !
क्या इसे गलत साबित करने के लिए लोग माता-पिता के सामने अमर्यादित होना शुरू कर दें?
🚩क्या कोई व्यक्ति या कोई महिला अपने माता-पिता या दादा-दादी के सामने सेक्स करने लगेगी तब ये कहा जाएगा कि अब भारत में सेक्स ‘Taboo’ नहीं रहा?
सड़क पर खुलेआम सेक्स होने लगे, तब माना जाएगा कि भारतीय समाज आधुनिक हो गया है?
🚩क्या हम इसीलिए पिछड़े हैं, क्योंकि हमारे यहाँ महिला-पुरुष सार्वजनिक स्थलों पर सेक्स नहीं करते और बंद कमरे में करते हैं तो उसका लाइव प्रसारण नहीं करते?
आखिर क्यूँ ‘इस पर बात होनी चाहिए’ ?
इसका मतलब और जरूरत क्या है आखिर?
🚩खुद को आधुनिक दिखाने के लिए पत्रकारों और फिल्म समीक्षकों की जिस टोली ने फिल्म की स्क्रीनिंग में तालियाँ पीटीं और इसे भर-भर के स्टार दिए, शायद वो भी इसका समर्थन करते हैं , कि सड़क पर हर व्यक्ति ये चिल्लाते हुए गुजरे कि वो मास्टरबेशन करता/करती है।
या बेटा अपने बाप से पूछे कि माँ के साथ आज का सेक्स कैसा रहा।
या फिर दादा अपनी पोती से पूछे कि रात भर क्या-क्या हुआ पति के साथ – क्या यही सब चीजें होंगी तब जाकर हमारा समाज आधुनिक साबित होगा !?
🚩इस फिल्म के नजरिए से देश में सबसे बड़ा विषय...यौन-शिक्षा
🚩अब आते हैं फिल्म की असली समीक्षा पर। आज पूरी दुनिया का हर विकासशील व गरीब देश निर्धनता, प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से लड़ रहे हैं।
ऐसे में इन सभी मुद्दों को दरकिनार कर क्या हस्तमैथुन के बारे में बच्चों को पढ़ाना आवश्यक है ? और वो भी 5,10 साल के बच्चों को...!?
🚩क्या हस्तमैथुन इतना बड़ा टॉपिक हो गया है, कि देश में घर-घर में इस पर बहस होनी चाहिए और स्कूलों के सिलेबस में शामिल कर के इसे छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए?
क्योंकि अब अक्षय कुमार और पंकज त्रिपाठी की इस पूरी फिल्म का तो यही सन्देश है न !!
🚩कहानी की बात करें तो...महाकाल की नगरी उज्जैन में शिवभक्त के बेटे का हस्तमैथुन करते हुए वीडियो वायरल हो जाता है और इसके बाद स्कूल पर मानहानि का केस ठोका जाता है। फिल्म में दिखाया गया है कि, यह इतना बड़ा विषय है कि भगवान शिव को स्वयं इसमें हस्तक्षेप करना पड़ता है और वो इस केस को लड़ने में अपने भक्त की मदद करते हैं। सेंसर बोर्ड के आदेश के कारण शिव वाले किरदार को शिव का गण बना दिया गया है। हालाँकि, अस्पताल में एक दृश्य में अक्षय कुमार भगवान शिव के रूप में दिखता है।
🚩यहाँ सवाल ये उठता है कि CBFC के आदेश के बावजूद भगवान शिव के किरदार में अक्षय कुमार को क्यों दिखाया गया?
🚩‘स्कूल के बाथरूम में एक बच्चे ने हस्तमैथुन किया’ – इस एक चीज को सही साबित करने के लिए पूरी फिल्म खपा दी गई है, वो भी हिन्दू ग्रंथों का हवाला देकर।
फिल्म के अनुसार ऐसा वीडियो वायरल होना बड़ी बात नहीं है और खुले में कहना कि हम ऐसा करते हैं , इसमें भी कोई हर्ज नहीं – फिल्म पूरी तरह से यही सन्देश दे रही है।
🚩अरुण गोविल का नेगेटिव किरदार, अपमानित किया?
एक अभिनेता का कार्य होता है कि अलग-अलग किरदार निभा कर ऐसा रच-बस जाए कि लोग उसे उन किरदारों से ही पहचानें। एक व्यक्ति का किसी फिल्म में हीरो तो किसी में विलेन बनना बड़ी बात नहीं है। हालाँकि, बात जब अरुण गोविल की आती है तो किस्सा थोड़ा अलग हो जाता है। फिल्म में स्कूल चेन का मालिक, जिसकी अखबार कंपनी भी है, उस उद्योगपति के किरदार में अरुण गोविल को डाला गया है। वही अरुण गोविल, जिन्होंने 80 के दशक में रामानंद सागर की ‘रामायण’ में भगवान श्रीराम का किरदार निभाया था।
🚩इस पर तो कई बार बातें हो चुकी हैं कि कैसे एयरपोर्ट वगैरह पर देखते ही लोग उनके पाँव छू लेते थे। ऐसा एक वीडियो हाल ही में वायरल हुआ जब एक महिला ने उनसे गमछा लेकर अपने बीमार पति को अस्पताल में ले जाकर दिया और कहा कि ये भगवान ने दिया है। ये वही अरुण गोविल हैं, जिन्हें सिगरेट पीते देख कर एक फैन निराश हो गया तो उन्होंने ये व्यसन छोड़ दिया। वहीं अरुण गोविल, जिन्होंने बीबीसी के स्टूडियो में राम बन कर परेड करने से इनकार कर दिया था।
🚩ऐसे व्यक्ति को ‘सेक्स एजुकेशन’ के विरोधी उद्योगपति का किरदार दिया गया है जो अपने खिलाफ केस करने वाले को पैसों का लालच देता है और धमकी देकर चेक पर साइन कराता है। सवाल उठता है कि क्या ये जानबूझकर किया गया ताकि फिल्म की आलोचना न हो? अरुण गोविल की प्रतिष्ठा का गलत इस्तेमाल किया गया? या फिर उनकी छवि को बॉलीवुड का गिरोह विशेष बदलना चाहता है? ये चर्चा का विषय रहेगा कि अरुण गोविल को नकारात्मक रोल देने के पीछे क्या मंशा थी।
🚩फिल्म में कामसूत्र से लेकर अन्य हिन्दू धर्म ग्रंथों का भी जिक्र किया गया है, जिनमें यौन संबंधों पर बातें की गई हैं। खजुराहो और अजंता-एलोरा की गुफाओं में बने चित्रों को दिखा कर हस्तमैथुन की पैरवी की गई है। कहा गया है कि गुरुकुलों में कामशास्त्र पढ़ाया जाता था। ‘पंचतंत्र’ में इस कामशास्त्र का जिक्र होने का दावा किया गया है। स्त्री की योनि में वीर्य डालने को लेकर क्या लिखा गया है, ये बताया गया है। स्त्री की सुंदरता के वर्णन के समय नितंबों की भी तारीफ़ की गई है, ये पढ़ कर सुनाया गया है।
...इतनी वाहियात स्क्रिप्ट को तो तुरंत सिरे से नकारा जाना चाहिए था,पर जो कुछ हो रहा है आज देश में ... शायद इसी को घोर कलयुग कहते हैं।
🚩आश्चर्य !!!
🚩कि हम हिन्दुओ को ये सब बातें न सिर्फ पच जाती हैं , बल्कि अपने धर्म का इतना बडा मखौल उडते देख हम तालियां भी पीटते हैं और बेशर्मी की हद ये कि अपनी-अपनी स्वार्थ सिद्धी या मूढ़ता के चलते मानने को भी तैयार हो जाते हैं , कि हमारा समाज प्राचीन काल में इतना खुला और विभत्स था !!
लेकिन... क्या इससे ये साबित होता है कि छोटे-छोटे बच्चों को ये सब पढ़ाया जाना चाहिए?
🚩ये सही है कि महर्षि वात्स्यायन ने लिखा है कि यौवन अवस्था आने तक कामशास्त्र का ज्ञान होना चाहिए, लेकिन ये उस समय की बात है जब शादियाँ सामान्यतः आज के मुकाबले कम उम्र में ही होती थीं और यौन संबंध बनाने के लिए अध्ययन आवश्यक माना जाता था।
🚩आधुनिक काल की बात करें तो विवाह के लिए भारत में लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 वर्ष की उम्र कानूनी रूप से निश्चित की गई है। फिर क्या 5-10 साल की उम्र में ही यौन संबंधी शिक्षाएँ आवश्यक हैं?
फिल्म में वकालत की गई है कि खुले रूप से सेक्स की शिक्षा दी जानी चाहिए और इसके लिए हिन्दू ग्रंथों का सहारा लिया गया है, लेकिन क्या आपने किसी भी प्राचीन कथा-कहानियों या प्रसंग में परिवार के लोगों को सेक्स पर आपस में चर्चा करते पढ़ा है? या फिर गली-नुक्कड़ में सेक्स पर चर्चा होते पढ़ा है?
🚩क्या हम सिर्फ इसीलिए बच्चों को सेक्स के बारे में बताने लगें, क्योंकि पश्चिमी देश ऐसा कर रहे हैं? पॉर्न प्लेटफॉर्म्स पर तो जानवरों तक के साथ सेक्स के वीडियो उपलब्ध हैं, तो क्या बच्चों को ये सब भी पढ़ाया जाना चाहिए? आज तक आपने किसी बच्चे का हस्तमैथुन करते हुए वीडियो वायरल होते हुए देखा है?
🚩विडम्बना देखिए...जो कभी हुआ ही नहीं, उसे फिल्म में आम समस्या बता कर पेश किया गया है।
जबकि सनातनधर्म में ‘काम’ का अर्थ पुरुषार्थ से भी लिया जाता है, सिर्फ संभोग से नहीं।
🚩दावा किया गया है कि ‘सेक्स एजुकेशन’ से बच्चों को सही-गलत का पता लगेगा। उन्हें बताया जाना चाहिए कि कोई महिला गर्भवती कैसे होती है, सेक्स कैसे किया जाता है।
तो हमारा इस पर एक ही प्रश्न है.... कि सेक्स के बारे में वयस्कों को तो सारा ज्ञान होता है न और साथ ही कानून का भी ज्ञान होता है, फिर भी रेप जैसी घृणित घटनाएँ क्यों होती हैं ???
🚩 साफतौर पर समझना और स्वीकारना होगा कि , इन समस्याओं से निपटने के लिए बच्चों में यौनशिक्षा की बिल्कुल नहीं बल्कि संस्कार सिंचन की ज़रूरत है। मान लीजिए, किसी बच्चे को लड़कियों की योनि के बारे में पढ़ाया जाने लगा, जैसे कि फिल्म में दावा किया गया है कि ऐसा होना चाहिए, फिर...!?
🚩बच्चों के कोमल मन मष्तिष्क के साथ क्या ये अन्याय नहीं होगा?क्या कुछ बुरा असर हो सकता है, इसका तो अन्दाजा लगाना भी मुश्किल है।
🚩फिल्म में कोर्टरूम के भीतर एक महिला से अपने पति के साथ उसकी सुहागरात का वर्णन करने को कहा जाता है।
एक बहन बताती है कि कैसे उसके भाई ने हस्तमैथुन का जो कार्य किया वो सही था।
एक शिवभक्त अपनी विरोधी वकील के नितंबों की सुंदरता का वर्णन करता है।
'बच्चा कैसे पैदा होता है’ – इस पर पूरी की पूरी बहस हो जाती है कोर्ट में। भीड़ में युवक-युवतियाँ चिल्लाते हैं कि वो हस्तमैथुन करते हैं। क्या ये सब किसी भी हिसाब से एक सामान्य समाज का हिस्सा है...!?
क्या ये वहशीपने की पराकाष्ठा नहीं है...!?
🚩फिल्म ‘OMG 2’ शुरू होते ही नग्न नागा साधुओं को दिखाया गया है। हंसराज रघुवंशी के गाने पर पंकज त्रिपाठी को परफॉर्म करते देखना थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन उनकी बाकी की एक्टिंग तगड़ी है। एक शिवभक्त, जिस रोल में पंकज त्रिपाठी हैं, वो घर आकर पूजा-पाठ कर रही अपनी पत्नी को चाय-पानी के लिए परेशान करता है। उसे मन्त्र पढ़ना छोड़ कर आना पड़ता है। फिल्म में पीड़ित बच्चे का सबसे अच्छा दोस्त ‘ज़हीर’ ( ध्यानाकर्षक एक गैरहिन्दू )है, जो केस लड़ने के लिए अध्ययन में भी पंकज त्रिपाठी की मदद करता है।
🚩हिंदी भाषा का अपमान...
🚩पंकज त्रिपाठी फिल्म में शुद्ध हिंदी में बोलता है, यहाँ भी हिंदी भाषा का मजाक बनाकर पेश किया गया है। जहाँ शुद्ध हिंदी की बात आती है, बॉलीवुड को कॉमेडी ही सूझती है।
फिल्म से सवाल उठते हैं , कि क्या नग्नता का प्रदर्शन ही आधुनिकता है? सनातन में तो यज्ञोपवीत के वक्त ये तक सिखाया जाता है कि अकेले में भी नग्न होकर स्नान न करें। फिर समाज में खुली नग्नता को हिन्दू धर्म का सहारा लेकर कैसे सही ठहराया गया !? यह बात कैसे सहन की जा सकत है?
🚩‘OMG 2’ की खासियत ये है कि इसमें सभी बातें इतनी चालाकी से कही गई हैं, कि दर्शक कुछ और सोच ही न पाएँ।
हिन्दू धर्मग्रंथों का हवाला देकर यौनशिक्षा को आवश्यक बताना...
अंग्रेजों द्वारा गुरुकुल परंपरा बंद किए जाने की आलोचना करना...
बार-बार महाकाल की गूँज , उज्जैन नगरी और वहाँ के दृश्य...
भगवान शिव और नंदी का किरदार...
– इन सबका सहारा लेकर बडे ही शातिराना तरीके से ...बच्चों में यौनशिक्षा को सही ठहराने का संदेश दिया गया है।
🚩विचार करने वाली बात ये... , कि आधुनिक होने का ये अर्थ होता है क्या , कि पश्चिम में जो हो रहा है, उसी की नकल यहाँ भी की जाए...!??
🚩महाकाल के पुजारी के घर में यौन शोषण...
🚩OMG 2’ में गोविंद नामदेव महाकाल मंदिर के पुजारी के किरदार में हैं। ‘OMG’ का गुस्सैल पुजारी वाला किरदार आपको याद होगा, जो उन्होंने निभाया था और जिसके सहारे संतों को बदनाम किया गया था। इस बार दिखाया गया है कि उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर के पुजारी की छोटी सी बच्ची का यौन शोषण लड़की का मामा ही करता है। इससे पुजारी का मन बदल जाता है और वो ‘सेक्स एजुकेशन’ को लेकर जागृत हो जाता है।
🚩इससे पहले पुजारी को ऐसे किरदार में दिखाया गया है जो एक उद्योगपति के साथ मिलकर शिवभक्त को धमकाता है।
🚩जरा सोचिए.....
कभी किसी मौलवी के घर में बलात्कारी दिखाए जाने वाला कोई दृश्य आपने देखा है बॉलीवुड की किसी फिल्म में !?
क्या किसी अन्य मजहब के पूज्य पुरुष हस्तमैथुन की वकालत करते हुए दिखाए जा सकते हैं !?
क्या ईसाई और मुस्लिम पुस्तकों का हवाला देकर ‘सेक्स एजुकेशन’ की पैरवी की जा सकती है !?
अगर ऐसा हुआ तो ‘सर तन से जुदा’ होने में शायद क्षण भर भी ना लगे...
🚩किसी अन्य मजहब को लेकर ये सब किया गया होता तो ये ‘बेअदबी’ या ‘ईशनिंदा’ की कैटेगरी में आता या नहीं !?
लेकिन अफ़सोस, हिन्दू धर्म को सेक्स-हस्तमैथुन से जोड़ने, धर्मग्रंथों से बिना सन्दर्भ बताए योनि-वीर्य की बातें उद्धृत करने और भगवान शिव को हस्तमैथुन की पैरवी करने वाला दिखाने वाली फिल्म पर महामूर्ख हिन्दू तालियाँ पीटते हैं।
वैसे भी हमारी फिल्मों में तो हमेशा से ही ब्राह्मणों को जोकर, वैश्य समाज को सूदखोर और क्षत्रिय को अत्याचारी बताने का चलन रहा है।
🚩अभी तो इस फ़िल्म में दिखाए गए चंद विभत्स और घृणित दृश्यों और संदेशों पर ही चर्चा हुई है...दरअसल इसमें वाहियात दृश्यों और संदेशों की भरमार है
🚩‘OMG 2’ का विरोध क्यों है आवश्यक...?
🚩‘OMG 2’ जैसी फिल्मों का इसीलिए विरोध होना चाहिए, क्योंकि इसमें एक सेक्स वर्कर को झुककर देवी-देवताओं की तरह प्रणाम किया जा रहा है।
क्योंकि इसमें सेक्स वर्कर के पास सेक्स के लिए आने वाले पुरुषों को ‘यजमान’ कहा गया है।
कल को पॉर्न में दिखाए जाने वाले दृश्यों को भी हिन्दूधर्म से जोड़कर फिल्म बना दी जाए इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
या अगर समलैंगिक सेक्स या जानवरों के साथ सेक्स को भी जायज ठहराने के लिए राम-कृष्ण-शिव से जोड़ कर फ़िल्में बन जाएँ , तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
क्योकिं तब हम विरोध कर पाने की क्षमता खुद ही खो चुके होंगे , अगर अभी विरोध नहीं किया तो।
🚩महिलाओं का सम्मान करना सिखाने के लिए ‘सेक्स एजुकेशन’ बिल्कुल ज़रूरी नहीं !
🚩अगर किसी बच्चे को बताना है, कि उसे लड़कियों या महिलाओं का सम्मान करना चाहिए, तो उसे योनि और वीर्य के बारे में बताने की ज़रूरत नहीं है। उसे ये बात सीधी भाषा में भी समझाई जा सकती है। बच्चे को सीधा बोला जा सकता है कि हस्तमैथुन बिल्कुल अच्छी आदत नहीं है , इससे उसकी जिन्दगी को तबाही के सिवा कुछ नहीं मिलेगा ।इसके लिए किसी हाथी-घोड़े वाले विज्ञान की आवश्यकता नहीं है। एक बच्चे को संभोग के बारे में क्यों बताया जाना चाहिए !?
उसे उस उम्र में ये सब बताने की अपेक्षाकृत ऊंचे संस्कारों से पुष्ट करना ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक कदम है।
🚩18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के लिए भारत में सेक्स प्रतिबंधित है। फिर क्या 10 साल की उम्र में संभोग के बारे में पढ़ाना आवश्यक है? जैसा कि फिल्म में तर्क दिया गया है, लड़के-लड़कियों की नंगी तस्वीरें हर एक कक्षा में लटका कर उसके गुप्तांगों के बारे में पढ़ाना चाहिए।
खेलने-कूदने की उम्र में बच्चे यह सब पढ़ने लगेंगे तो उनके बचपन का क्या !?
🚩जहाँ तक ‘गुड टच और बैड टच’ की बात है, बच्चों को सीधी भाषा में भी तो समझाया जा सकता है कि ये गलत है और ये सही ! कि कौन उनका अपना और हितैषी है और कौन नहीं यह वो परख कर अपने को सुरक्षित कर सकें !
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