08 November 2023
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🚩स्वभाव से शांत, नम्र एवं निष्कामता की मूर्ति माँ महँगीबाजी ने अपना पूरा जीवन एक धर्मपरायणा समाजसेविका के रूप में बिताया। अपने लिए कम-से-कम खर्च करके गरीब, असहाय लोगों की सेवा करना, अपने संकल्प के प्रति दृढ़ निश्चय रखना और विश्व के प्रत्येक प्राणी में परमात्मा का दर्शन करना, यह उनका सहज स्वभाव था। श्री श्री माँ महँगीबाजी ने अहमदाबाद में महिला उत्थान केन्द्र की स्थापना करवाकर महिलाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
🚩लोगों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं नैतिक उत्थान का भी वे बहुत ध्यान रखती थीं। जिन्हें उनका सान्निध्य-लाभ लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और जो उनके इस प्रेरक जीवन-चरित्र को पढ़ने-सुनने का सौभाग्य पा रहे हैं, उनके लिये माँ महँगीबाजी का जीवन एक मार्गदर्शक बन चुका है।
🚩समग्र विश्व को ज्ञानामृत का पान कराने वाले संत श्री आशारामजी बापू की मातुश्री श्री माँ महँगीबाजी के महानिर्वाण के समाचार को पाकर हजारों-हजारों नर-नारियों के अलावा केन्द्रीय गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी, मानव संसाधन मंत्री श्री मुरली मनोहर जोशी, शिक्षा राज्यमंत्री श्री जयसिंह राव गायकवाड़ पाटिल, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री जयसिंह राव गायकवाड़ पाटिल, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री कुशाभाई ठाकरे, विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल सहित अनेक गणमान्य नागरिकों ने अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
🚩उसकी प्रसिद्धि का प्रसार किसी समय करते हुए देखने को नहीं मिला। दाहिना हाथ सेवा करे और बायें हाथ को पता भी नहीं चलता। इसी कारण सेवाक्षेत्र में माता महँगीबाजी एक अप्रकट सितारा थीं। अखबार-टेलिविजन के माध्यम से उनकी प्रसिद्धि हो, उनमें ऐसी रूचि ही नहीं थी। इसलिए विश्व को इस महान आत्मा की निरंतर चल रही मूक सेवा-प्रवृत्ति का परिचय नहीं मिल पाया।"
🚩संत श्री लाल जी महाराज ने बताया कि हम पहले भी जिनके आशीर्वाद के पात्र बन चुके हैं वे थीं माता देवहूति। उन माता ने समाज को भगवान कपिल के रूप में एक अमूल्य रत्न दिया था। ऐसे ही माँ महँगीबा जी ने भी भारत को संतशिरोमणि श्री आशारामजी महाराज के रूप में एक अनुपम भेंट देकर हम सबका कल्याण किया है। उन्होंने अपने पूरे कुटुम्बसहित सबके कल्याण के लिए सेवाकार्य कर दीर्घायु की प्राप्ति की।
🚩जैसे दीपक स्वयं प्रकाशित होकर औरों को भी प्रकाश पहुँचाता है, वैसे ही माता महँगीबाजी के लाल संत श्री आशारामजी बापू ने स्वयं ज्ञान प्राप्त करके अगणित आत्माओं का भगवान से संबंध जोड़ने के लिए असीम पुरुषार्थ किया है। भारत की जनता को ईश्वरोन्मुख बनाने का इतना बड़ा पुरुषार्थ ! हम संक्षेप में इतना ही कह सकते हैं कि कलियुग में ऋषि मुनियों की परंपरा में भगवान स्वयं पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के रूप में अवतरित हुए हैं।
🚩आशा के पाश में सभी लोग बँधे हुए हैं। इस आशा के पाश से मुक्त करने के लिए सदुगुरू श्रीलीलाशाहजी महाराज ने ʹआशाʹ के साथ ʹरामʹ जोड़कर हमें संत श्री आशारामजी के रूप में साक्षात राम ही दिये हैं। जैसे प्रभात के समय सूर्योदय होने पर अंधकार को हटाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता, सूर्य की उपस्थितिमात्र से अंधकार स्वयं दूर हो जाता है, उसी प्रकार संत श्री की उपस्थितिमात्र से अज्ञानरूपी अंधकार स्वयं दूर होने लगता है। पूज्य बापू जी का सत्संग ऐसा है कि भारत में ज्ञान का दिव्य प्रकाश फैल गया है।
🚩संवत् 2021 के श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की सोमवती अमावस्या को मातुश्री महँगीबाजी मणिनगर से मोटी कोरल स्थित पंचकुबेरेश्वर महादेव के मंदिर में पधारी थीं और उन्होंने ये शब्द कहे थेः "मेरा लाड़ला लाल, छोटा पुत्र आसुमल कहे बिना ही घर से चला गया है। वह कहाँ होगा, कोई पता नहीं है। लाल जी महाराज ! आप उससे मुलाकात करवा दो, तभी मैं अन्न-जल लूँगी।"
🚩उसी माँ के आशीर्वाद का यह फल है कि करोड़ों-करोड़ों लोगों को इस घोर कलियुग में भी भगवदशांति की झलकें मिल रही हैं। जनता उसका अनुभव करे और उसे पचाये, यह बहुत जरूरी है।
🚩राम की प्राप्ति तो राम के द्वारा ही होती है। इसीलिए आज आशारामजी बापू ने जनता के समक्ष परम कल्याण का मार्ग प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में रखा है। यह कृपावर्षा दिन-प्रतिदिन उसी भाव से बढ़ती रहे, हम ऐसी प्रार्थना करें।
🚩संतशिरोमणि, करोड़ों-करोड़ों के सदगुरु, ब्रह्मनिष्ठ पूज्य संत श्री आशारामजी बापू को इस धरा पर अवतरित कर उनको सदगुरुरूप में मान के स्वयं को ब्रह्मज्ञान में प्रतिष्ठित कर मातुश्री माँ महँगीबा जी ने अपना और करोड़ों-करोड़ों का जीवन सार्थक कर दिया। कितना दुर्लभ सौभाग्य ! माता देवहूति ने अपने ही पुत्र कपिल मुनि में भगवदबुद्धि, गुरुबुद्धि करके ईश्वरप्राप्ति की और अपना जीवन सार्थक किया था, उसी इतिहास का पुनरावर्तन करने का गौरव प्राप्त करने वाली पुण्यशीला माँ महँगीबा जी के श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।
🚩उनके विराट व्यक्तित्व के लिए तो जगज्जननी की उपमा भी नन्हीं पड़ जाती है। माँ की तुलना किससे की जा सकती है। वात्सल्य की साक्षात मूर्ति... प्रेम का अथाह सागर.... करूणा की अविरत सरिता बहाते नेत्र.... प्रेममय वरदहस्त... कंठ अवरूद्ध हो जाता है उनके स्नेहमय संस्मरणों से ! उनके विराट व्यक्तित्व को पहचानने में बुद्धि स्वयं को कुंठित अनुभव करती है ! हम तो उनके होकर उनके लिए प्रेमपूर्ण सम्बोधन से केवल इतना ही कह सकते हैं कि ʹअम्माजी तो बस हम सबकी अम्माजी ही थीं !ʹ पूज्यनीया माँ महँगीबा की जीवनलीलाओं की ओर दृष्टि करते हैं तो मस्तक उनके श्रीचरणों में झुक जाता है। उनके सान्निध्य में आयी बहनों का उन्होंने जीवन-निर्माण किया। शिष्टाचार, गुरु के प्रति भक्ति और प्रेम, गुरु आज्ञा-पालन की सम्पूर्ण सहर्ष तैयारी, निष्कामता, निरभिमानिता, धैर्य, सहनशीलता आदि अनेक दैवी सदगुण उनके जीवन में देखने को मिले। आज जीवन-मूल्यों के ह्रास की ओर जा रहा समाज ऐसे उच्चकोटि के संतों की आज्ञा तथा प्रेरणा के अनुसार अपने जीवन का निर्माण करे तो वह निश्चित ही उन्नत हो सकता है।
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