Tuesday, April 9, 2024

सिंधी समाज मरख बादशाह के आतंक से झुके नहीं, ऐसे किया उसका अंत

10 April 2024

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🚩सनातनी हिन्दू आक्रमणकारियों से हमेंशा प्रताड़ित किया गया है पर समय समय पर उनको करारा जवाब भी दिया है, आज भी हिंदुओं के खिलाफ अनेक षडयंत्र रचे जा रहे हैं पर हिंदुओं को जैसे उत्तर देना चाहिए वे सिंधी भाइयों ने युक्ति बताई है, आपदा समय में ये भी युक्ति अपनानी चाहिए।


🚩सिंध समाज पर एक ऐसी विकट आपदा आ पड़ी


🚩आपको बता दें कि सिंध स्थित हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाने हेतु वहाँ के नवाब मरखशाह ने फरमान जारी किया । उसका जवाब देने के लिए हिन्दुओं ने आठ दिन की मोहलत माँगी । अपने धर्म की रक्षा हेतु हिन्दुओं ने सृष्टिकर्त्ता भगवान की शरण ग्रहण की तथा ‘कार्यं साधयामि वा देहं पातयामि…’ अर्थात् ‘या तो अपना कार्य सिद्ध करेंगे अथवा मर जायेंगे’ के निश्चय के साथ हिन्दुओं का अपार जनसमूह सागर तट पर उमड़ पड़ा । सब तीन दिन तक भूख-प्यास सहते हुए प्रार्थना करते रहे।


🚩आये हुए सभी लोग किनारे पर एकटक देखते-देखते पुकारते- ‘हे सर्वेश्वर ! तुम अब रक्षा करो। मरख बादशाह तो धर्मांध है और उसका मूर्ख वजीर ‘आहा’, दोनों तुले हैं कि हिन्दू धर्म को नष्ट करना है। लेकिन प्रभु ! हिन्दू धर्म नष्ट हो जायेगा तो अवतार बंद हो जायेंगे। मानवता की महानता उजागर करने वाले रीति रिवाज सब चले जायेंगे। आप ही धर्म की रक्षा के लिए युग-युग में अवतरित होते हो। किसी भी रूप में अवतरित होकर प्रभु हमारी रक्षा करो। रक्षमाम् ! रक्षमाम् !! तब अथाह सागर में से प्रकाशपुंज प्रगट हुआ । उस प्रकाशपुंज में निराकार परमात्मा अपना साकार रूप प्रगट करते हुए बोले : ‘‘हिन्दू भक्तजनों ! तुम सभी अब अपने घर लौट जाओ । तुम्हारा संकट दूर हो इसके लिए मैं शीघ्र ही नसरपुर में अवतरित हो रहा हूँ । फिर मैं सभी को धर्म की सच्ची राह दिखाऊँगा ।’’


🚩सप्ताह भर के अंदर ही संवत् 1117 के चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया को नसरपुर में ठक्कर रत्नराय के यहाँ माता देवकी के गर्भ से भगवान झूलेलाल ने अवतार लिया और हिन्दू जनता को दुष्ट मरख के आतंक से मुक्त किया । उन्हीं भगवान झूलेलाल का अवतरण दिवस ‘चेटीचंड’ के रूप में मनाया जाता है ।


🚩प्रार्थना से सबकुछ संभव है। सिंधी भाइयों की सामुहिक पुकार पर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए झूलेलाल जी का अवतरण, मद्रास के भीषण अकाल में श्री राजगोपालाचार्य द्वारा करायी गयी सामूहिक प्रार्थना के फलस्वरूप मूसलधार वर्षा होने लगी।


🚩किसी ने सही कहा है…. ” जब और सहारे छिन जाते, न किनारा मिलता है । तूफान में टूटी किश्ती का, भगवान सहारा होता है ।”


🚩झूलेलाल जी का वरुण अवतार यह खबर देता है कि कोई तुम्हारे को धनबल, सत्ताबल अथवा डंडे के बल से अपने धर्म से गिराना चाहता हो तो आप ‘धड़ दीजिये धर्म न छोड़िये।’ सिर देना लेकिन धर्म नहीं छोड़ना।


🚩चेटीचंड महोत्सव मानव – जाति को संदेश देता है कि क्रूर व्यक्तियों से दबो नहीं , डरो नहीं , अपने अंतरात्मा परमात्मा की सत्ता को जागृत करो ।


🚩सिंधी भाई जुल्मी आतताईयों के आगे झुके नहीं वरन धर्म का आश्रय लेकर उन्होंने अपनी अंतर चेतना का भगवान झूलेलालजी के रूप में अवतरण करा दिया । इसलिए यह उत्सव हमें पुरुषार्थी और साहसी बनकर अपने धर्म में अडीग रहने रहने की प्रेरणा देता हैं।


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Monday, April 8, 2024

कल आपका है नववर्ष, ऐसे करें स्वागत और करें तैयारी

09  April 2024

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🚩चैत्र नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती हैं । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं । भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है । इस साल 9 अप्रैल 2024 को नूतनवर्ष प्रारंभ होगा ।


🚩इस साल 9 अप्रैल को नूतन वर्ष मनाना है, भारतीय संस्कृति की दिव्यता को घर-घर पहुँचाना है ।

हम भारतीय नूतन वर्ष व्यक्तिगतरूप और सामूहिक रूप से भी मना सकते हैं ।


🚩कैसे मनाएं नववर्ष ?


🚩1 – भारतीय नूतनवर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें । संभव हो तो चर्मरोगों से बचने के लिए तिल का तेल लगाकर स्नान करें ।


🚩2 – नववर्षारंभ पर पुरुष धोती-कुर्ता / पजामा, तथा स्त्रियां नौ गज/छह गज की साड़ी पहनें ।


🚩3 – मस्तक पर तिलक करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


🚩4 – सूर्योदय के समय भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


🚩5 – सुबह सूर्योदय के समय शंखध्वनि करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


🚩6 – हिन्दू नववर्षारंभ दिन की शुभकामनाएं हस्तांदोलन (हैंडशेक) कर नहीं, नमस्कार कर स्वभाषा में दें ।


🚩7 –  भारतीय नूतनवर्ष के प्रथम दिन ऋतु संबंधित रोगों से बचने के लिए नीम, कालीमिर्च, मिश्री या नमक से युक्त चटनी बनाकर खुद खाएं और दूसरों को खिलाएं ।


🚩8 – मठ-मंदिरों, आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कॉलेज, सोसायटी, अपने दुकान, कार्यालयों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर भगवा ध्वजा फहराकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें  और बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भारतीय नववर्ष का स्वागत करें । हमारे ऋषि-मुनियों का कहना है कि बंदनवार के नीचे से जो व्यक्ति गुजरता है उसकी  ऋतु-परिवर्तन से होनेवाले संबंधित रोगों से रक्षा होती है ।  पहले राजा लोग अपनी प्रजाओं के साथ सामूहिक रूप से गुजरते थे ।


🚩9 – भारतीय नूतन वर्ष के दिन सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें ।


🚩10 – भारतीय संस्कृति तथा गुरु-ज्ञान से, महापुरुषों के ज्ञान से सभी का जीवन उन्नत हो ।’ – इस प्रकार एक-दूसरे को बधाई संदेश देकर नववर्ष का स्वागत करें । एस.एम.एस. भी भेजें ।


🚩11 – अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए आप बधाई-पत्र भेज सकते हैं । दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहराएं ।


🚩12 – ई-मेल, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया के माध्यम से भी बधाई देकर लोगों को प्रोत्साहित करें ।


🚩13 – नूतन वर्ष से जुड़े एतिहासिक प्रसंगों की झाकियाँ, फ्लैक्स लगाकर भी प्रचार कर सकते हैं ।


🚩14  – सभी तरह के राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संगठनों से संपर्क करके सामूहिक रुप से सभा आदि के द्वारा भी नववर्ष का स्वागत कर सकते हैं ।


🚩15 – नववर्ष संबंधित पेम्पलेट बाँटकर, न्यूज पेपरों में डालकर भी समाज तक संदेश पहुँचा सकते हैं ।

सभी भारतवासियों को प्रार्थना हैं कि रैली के द्वारा कलेक्टर, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति को भी भारतीय नववर्ष को सरकार के द्वारा सामूहिक रूप में मनाने हेतु ज्ञापन दें और व्यक्तिगत रूप में भी पत्र लिखें ।


🚩सैकड़ों वर्षों के विदेशी आक्रमणों के बावजूद अपनी सनातन संस्कृति आज भी विश्व के लिए आदर्श बनी है । परंतु पश्चिमी कल्चर के प्रभाव से भारतीय पर्वों का विकृतिकरण होते देखा जा रहा है । भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं संवर्धन के लिए भारतीय पर्वो को बड़ी विशालता से जरूर मनाए ।


🚩चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि । -ब्रम्हपुराण

अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सतयुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है ।


🚩मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, वरुणावतार संत झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु अंगददेवजी का जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी।


🚩‘नववर्षारंभ’ त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाये और अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे ऐसा प्रण करें।


🚩आप सभी भारतवासी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.!!


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Sunday, April 7, 2024

मनुस्मृति में नारियों के लिए कितना सम्मान हैं ?

09 April 2024

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🚩मनुस्मृति के अन्तःसाक्ष्य कहते हैं कि मनु की जो स्त्री-विरोधी छवि प्रस्तुत की जा रही है,वह निराधार एवं तथ्यों के विपरित है।मनु ने मनुस्मृति में स्त्रियों से सम्बन्धित जो व्यवस्थाएं दी हैं वे उनके सम्मान,सुरक्षा,समानता,सद्भाव और न्याय की भावना से प्रेरित हैं।कुछ प्रमाण प्रस्तुत हैं:-


🚩(1) नारियों को सर्वोच्च महत्व:-

महर्षि मनु संसार के वह प्रथम महापुरुष हैं,जिन्होंने नारी के विषय में सर्वप्रथम ऐसा सर्वोच्च आदर्श उद्घोष किया है,जो नारी की गरिमा,महिमा और सम्मान को असाधारण ऊंचाई प्रदान करता है-

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैताः तु न पूज्यन्ते सर्वाः तत्राफलाः क्रियाः ।।-(३/५९)

इसका सही अर्थ है-'जिस परिवार में नारियों का आदर-सम्मान होता है,वहाँ देवता=दिव्य गुण,कर्म,स्वभाव,दिव्य लाभ आदि प्राप्त होते हैं और जहां इनका आदर-सम्मान नहीं 

होता,वहां उनकी सब क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं।'

स्त्रियों के प्रति प्रयुक्त सम्मानजनक एवं सुन्दर विशेषणों से बढ़कर,नारियों के प्रति मनु की भावना का बोध कराने वाले प्रमाण और कोई नहीं हो सकते।वे कहते हैं कि नारियों का घर भाग्योदय करने वाली,आदर के योग्य,घर की ज्योति,गृहशोभा,गृहलक्ष्मी,गृहसंचालिका एवं गृहस्वामिनी,घर का स्वर्ग,संसारयात्रा का आधार हैं (९.११,२६,२८;५.१५०)।

कल्याण चाहने वाले परिवारजनों को स्त्रियों का आदर-सत्कार करना चाहिए,अनादर से शोकग्रस्त रहने वाली स्त्रियों के कारण घर और कुल नष्ट हो जाते हैं।स्त्री की प्रसन्नता में ही कुल की वास्तविक प्रसन्नता है (३.५५-६२)।

इसलिए वे गृहस्थों को उपदेश देते हैं कि परस्पर संतुष्ट रहें एक दूसरे के विपरीत आचरण न करें और ऐसा कार्य न करें जिससे एक-दूसरे से वियुक्त होने की स्थिति आ जाये(९.१०१-१०२)।

मनु कीभावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक श्लोक ही पर्याप्त है–

प्रजनार्थं महाभागाः पूजार्हाः गृहदीप्तयः ।

स्त्रियः श्रीयश्च गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन।।-(मनु० १/२६)

अर्थात्-सन्तान उत्पत्ति के लिए घर का भाग्योदय करने वाली,आदर-सम्मान के योग्य,गृहज्योति होती हैं स्त्रियां।शोभा-लक्ष्मी और स्त्री में कोई अन्तर नहीं है,वे घर की प्रत्यक्ष शोभा हैं।


🚩(2) पुत्र-पुत्री एक समान:-

मनुमत से अनभिज्ञ पाठकों को यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि मनु ही सबसे पहले वह संविधान निर्माता हैं जिन्होंने पुत्र-पुत्री की समानता को घोषित करके उसे वैधानिक रुप दिया है-

"पुत्रेण दुहिता समा"(मनु० ९/१३०)

अर्थात्-'पुत्री पुत्र के समान होती है।वह आत्मारुप है,अतः वह पैतृकसम्पत्ति की अधिकारिणी है।'


🚩(3) पुत्र-पुत्री को पैतृक सम्पत्ति में समान अधिकार:-

मनु ने पेतृक सम्पत्ति में पुत्र-पुत्री को समान अधिकारी माना है।उनका यह मत मनुस्मृति के ९.१३०,१९२ में वर्णित है।इसे निरुक्त में इस प्रकार उद्घृत किया है-

अविशेषेण पुत्राणां दायो भवति धर्मतः ।

मिथुनानां विसर्गादौ मनुः स्वायम्भुवोऽब्रवीत् ।।-(३.१.४)

अर्थात्-सृष्टि के प्रारम्भ में स्वायम्भुव मनु ने यह विधान किया है कि दायभाग=पैतृक सम्पत्ति में पुत्र-पुत्री का समान अधिकार होता है।मातृधन में केवल कन्याओं का अधिकार विहित करके मनु ने परिवार में कन्याओं के महत्त्व में अभिवृद्धि की है(९.१३१)।


🚩(4) स्त्रियों के धन की सुरक्षा के विशेष निर्देश:-

स्त्रियों को अबला समझकर कोई भी,चाहे वह बन्धु-बान्धव ही क्यों न हो,यदि स्त्रियों के धन पर कब्जा कर लें,तो उन्हें चोर सदृश दण्ड से दण्डित करने का आदेश मनु ने दिया है(९.२१२;३.५२;८.२;८-२९)।


 🚩(5) नारियों के प्रति किये अपराधों में कठोर दण्ड:-

स्त्रियों की सुरक्षा के दृष्टिगत नारियों की हत्या और उनका अपहरण करने वालों के लिए मृत्युदण्ड का विधान करके तथा बलात्कारियों के लिए यातनापूर्ण दण्ड देने के बाद देश निकाला का आदेश देकर मनु ने नारियों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने का यत्न किया है (८/३२३;९/२३२;८/३५२)।

नारियों के जीवन में आने वाली प्रत्येक छोटी-बड़ी कठिनाई का ध्यान रखते हुए मनु ने उनके निराकरण हेतु स्पष्ट निर्देश दिये हैं।


🚩पुरुषों को निर्देश हैं कि वे माता,पत्नि और पुत्री के साथ झगड़ा न करें (४/१८०),इन पर मिथ्या दोषारोपण करने वालों,इनको निर्दोष होते हुए त्यागने वालों,पत्नि के प्रति वैवाहिक दायित्व न निभाने वालों के लिए दण्ड का विधान है (८/२७५,३८९;९/४)।


🚩(6) वैवाहिक स्वतन्त्रता एवं अधिकार:-

विवाह के विषय में मनु के आदर्श विचार हैं।मनु ने कन्याओं को योग्य पति का स्वयं वरण करने का निर्देश देकर स्वयम्वर विवाह का अधिकार एवं उसकी स्वतन्त्रता दी है (९/९०-९१)।

विधवा को पुनर्विवाह का भी अधिकार दिया है(९/१७६,९/५६-६३)।

उन्होंने विवाह को कन्याओं के आदर-स्नेह का प्रतीक बताया है,अतः विवाह में किसी भी प्रकार के लेन-देन को अनुचित बताते हुए बल देकर उसका निषेध किया है (३/५१-५४)।

स्त्रियों के सुखी-जीवन की कामना से उनका सुझाव है कि जीवनपर्यन्त अविवाहित रहना श्रेयस्कर है,किन्तु गुणहीन,दुष्ट पुरुष से विवाह नहीं करना चाहिए (९/८९)


🚩सभी उद्धरण डाक्टर सुरेन्द्र कुमार द्वारा सम्पादित विशुद्ध मनुस्मृति से लिए गए हैं।


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Saturday, April 6, 2024

नवरात्रि में व्रत क्यों करते है ? इससे कितना फायदा होगा ?

08 April 2024

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🚩नवरात्रि के नौ दिनों में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में 1000 गुणा अधिक सक्रिय रहता है । इस कालावधि में देवीतत्त्व की अतिसूक्ष्म तरंगें धीरे-धीरे क्रियाशील होती हैं और पूरे ब्रह्मांड में संचारित होती हैं । उस समय ब्रह्मांड में शक्ति के स्तर पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियां नष्ट होती हैं और ब्रह्मांड की शुद्धि होने लगती है । देवीतत्त्व की शक्ति का स्तर प्रथम तीन दिनों में सगुण-निर्गुण होता है । उसके उपरांत उसमें निर्गुण तत्त्वकी मात्रा बढ़ती है और नवरात्रि के अंतिम दिन इस निर्गुण तत्त्वकी मात्रा सर्वाधिक होती है । निर्गुण स्तर की शक्ति के साथ सूक्ष्म स्तर पर युद्ध करने के लिए छठे एवं सातवें पाताल की बलवान आसुरी शक्तियों को अर्थात मांत्रिकों को इस युद्ध में प्रत्यक्ष सहभागी होना पड़ता है । उस समय ये शक्तियां उनके पूरे सामर्थ्य के साथ युद्ध करती हैं ।


🚩इस वर्ष चैत्री नवरात्रि 9 अप्रैल से 17 अप्रैल तक हैं।


🚩नवरात्रि की कालावधि में महाबलशाली दैत्यों का वध कर देवी दुर्गा महाशक्ति बनी । देवताओं ने उनकी स्तुति की । उस समय देवीमां ने सर्व देवताओं एवं मानवों को अभय का आशीर्वाद देते हुए वचन दिया कि

इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।

तदा तदाऽवतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।।

– मार्कंडेयपुराण 91.51


🚩इसका अर्थ है, जब-जब दानवोंद्वारा जगत्को बाधा पहुचेगी, तब-तब मैं अवतार धारण कर शत्रुओं का नाश करूंगी ।


🚩नवरात्र का उत्सव श्रद्धा और सबुरी के रंग में सराबाेर होता है। नवरात्र के दिनों में भक्त देवी माँ के प्रति विशेष उपासना प्रकट करते हैं। नवरात्र के दिनों में लोग कई तरह से माँ की उपासना करते हैं। माता के इस पावन पर्व हर कोई उनकी अनुकंपा पाना चाहता है। नवरात्र का यह पावन त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है। इसका भी एक खास महत्व है। वैसे तो माँ दुर्गा की उपासना के लिए सभी समय एक जैसे हैं और दोनों नवरात्रि का प्रताप भी एक जैसा है। साथ ही दोनों नवरात्र में माँ की पूजा करने वाले भक्तों को उनकी विशेष अनुकंपा भी प्राप्त होती है।


 🚩1 वर्ष में कितनी बार पड़ती हैं नवरात्रि


🚩कम लोगों को ज्ञात होगा कि 1 साल में नवरात्र के चार बार पड़ते हैं। साल के प्रथम मास चैत्र में पहली नवरात्र होती है, फिर चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्र पड़ती है। इसके बाद अश्विन माह में में प्रमुख शारदीय नवरात्र होती है। साल के अंत में माघ माह में गुप्त नवरात्र होते हैं। इन सभी नवरात्रों का जिक्र देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है। हिंदी कैलेंडर के हिसाब से चैत्र माह से हिंदू नववर्ष की भी शुरुआत होती है, और इसी दिन से नवरात्र भी शुरू होते हैं, लेकिन सर्वविदित है कि चारों में चैत्र और शारदीय नवरात्र प्रमुख माने जाते हैं। एक साल में यह दो नवरात्र मनाए जाने के पीछे की वजह भी अलग-अलग तरह की है। आइए हम आपको नवरात्र का उत्सव साल में दो बार मनाने के पीछे आध्यात्मिक, प्राकृतिक और पौराणिक कारणों के बारे में बताते हैं।


🚩क्या है प्राकृतिक कारण


🚩 नवरात्रि का पर्व दो बार मनाने के पीछे अगर प्राकृतिक कारणों की बात की जाए तो हम पाएंगे कि दोनों नवरात्र के समय ही ऋतु परिवर्तन होता है। गर्मी और शीत के मौसम के प्रारंभ से पूर्व प्रकृति में एक बड़ा परिवर्तन होता है। माना जाता है कि प्रकृति माता की इसी शक्ति के उत्सव को आधार मानते हुए नवरात्रि का पर्व हर्ष, आस्था और उल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति स्वयं ही इन दोनों समय काल पर ही नवरात्रि के उत्सव के लिए तैयार रहती है तभी तो उस समय न मौसम अधिक गर्म न अधिक ठंडा होता है। खुशनुमा मौसम इस पर्व की महत्ता को और बढ़ाता है।


🚩ये है भौगोलिक तथ्य


🚩अगर भौगोलिक आधार पर गौर किया जाए तो मार्च और अप्रैल के जैसे ही, सितंबर और अक्टूबर के बीच भी दिन और रात की लंबाई के समान होती है। तो इस भौगोलिक समानता की वजह से भी एक साल में इन दोनों नवरात्रि को मनाया जाता है। प्रकृति में आए इन बदलाव के चलते मन तो मन हमारे दिमाग में भी परिवर्तन होते हैं। इस प्रकार नवरात्र के दौरान व्रत रखकर शक्ति की पूजा करने से शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है।


 🚩यह है पौराणिक मान्यता


🚩 नवरात्रि का त्योहार साल में दो बार मनाए जाने के पीछे प्राचीन कथाओं का उल्लेख भी पुराणों में मिलता है। माना जाता है कि पहले नवरात्रि सिर्फ चैत्र नवरात्र होते थे जो कि ग्रीष्मकाल के प्रारंभ से पहले मनाए जाते थे, लेकिन जब श्रीराम ने रावण से युद्ध किया और उनकी विजय हुई। विजयी होने के बाद वो माँ का आशीर्वाद लेने के लिए नवरात्रि की प्रतीक्षा नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने एक विशाल दुर्गा पूजा आयोजित की थी। इसके बाद से नवरात्रि का पर्व दो बार मनाते हैं।


🚩अध्यात्म कहता है


 🚩अगर एक साल में दो नवरात्र मनाने के पीछे के आध्यात्मिक पहलू पर प्रकाश डालें तो जहाँ एक नवरात्रि चैत्र मास में गर्मी की शुरुआत में आती है तो वहीं दूसरी सर्दी के प्रारंभ में आती है। गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में आने वाली सौर-ऊर्जा से हम सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि यह फसल पकने की अवधि होती है। मनुष्य को वर्षा, जल, और ठंड से राहत मिलती है। ऐसे जीवनोपयोगी कार्य पूरे होने के कारण दैवीय शक्तियों की आराधना करने के लिए यह समय सबसे अच्छा माना जाता है।


 🚩रामनवमी से है संबंध


🚩मान्यता है कि रावण से युद्ध से पहले भगवान श्रीराम ने माता शक्ति की पूजा रखवाई थी। धार्मिक मान्यता के अनुसार श्रीराम ने रावण के साथ युद्ध पर जाने से पूर्व अपनी विजय की मनोकामना मानते हुए माँ के आशीर्वाद लेने के लिए विशाल पूजा का आयोजन करवाया था। कहा जाता है कि राम देवी के आर्शीवाद के लिए इतना इतंजार नहीं करना चाहते थे और तब से ही प्रतिवर्ष दो बार नवरात्रि का आयोजन होता है। जहाँ शारदीय नवरात्र में यह सत्य की असत्य पर व धर्म की अधर्म पर जीत का स्वरूप माना जाता है, वहीं चैत्रीय नवरात्र में इसे भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव या रामनवमी के नाम से जानते हैं।


🚩नवरात्रि का व्रत धन-धान्य प्रदान करनेवाला, आयु एवं आरोग्यवर्धक है। शत्रुओं का दमन व बल की वृद्धि करनेवाला है ।


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Friday, April 5, 2024

भारतवासी स्वयं का चैत्री नूतनवर्ष के बारे में जानकर गौरवान्वित महसूस करेंगे

6  April 2024

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🚩चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है । इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है । ‘गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है । इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है ।


🚩 चैत्रमास की शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि की उत्पति हुई थी और इस दिन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं जिसके कारण इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।


🚩आइये आपको इस दिन के इतिहास से जुड़ी कुछ घटनाएं बताते हैं…।


🚩इतिहास में इस प्रकार वर्णित है चैत्री वर्ष प्रतिपदा…


🚩1. भगवान ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि का सर्जन…


🚩2. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक…


🚩3. माँ दुर्गा के नवरात्र व्रत का शुभारम्भ…


🚩4. प्रारम्‍भयुगाब्‍द (युधिष्‍ठिर संवत्) का आरम्‍भ..


🚩5. उज्जैनी सम्राट विक्रमादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत्प्रारम्‍भ..


🚩6. शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचांग) का प्रारंभ…


🚩7. महर्षि दयानन्द जी द्वारा आर्य समाज का स्‍थापना दिवस..


🚩8. भगवान झूलेलाल का अवतरण दिन..


🚩9. मत्स्यावतार दिवस..


🚩10 – डॉ॰ केशवराव बलिरामराव हेडगेवार जन्मदिन ।


🚩नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती हैं…!!! इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं ।


🚩शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है । ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है । महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक…दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की थी ।


🚩वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ी पड़वा की गिनती होती है । इसी दिन भगवान श्री राम ने बालि के अत्याचारी शासन से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी ।


🚩नव वर्ष का प्रारंभ प्रतिपदा से ही क्यों…???


🚩भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है ।


🚩आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है । इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है ।


🚩विक्रमी संवत किसी की संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है । हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं । यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है ।


🚩भारतीय गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है ।


🚩प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है । ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। इसलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं ।


🚩आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं । यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है । प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है । मानव, पशु-पक्षी यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है ।


🚩इसी प्रतिपदा के दिन आज से उज्जैनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की । उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा ।


🚩महाराज विक्रमादित्य ने चैत्री प्रतिपदा के दिन से राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की । साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई । उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी ।


🚩महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की । सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया । इसी दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक के रूप में मनाया गया ।


🚩यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है । इसी दिन महाराज युधिष्ठर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया ।


🚩आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है । यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है । हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति संचय करते हैं ।


🚩कैसे मनाएं नूतन वर्ष…???


🚩1- मस्तक पर तिलक, भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य , शंखध्वनि, धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कालेज आदि सभी मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भगवा ध्वजा फहराकर सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें । आज से अपने स्नेहीजनों, मित्रों को बधाईयां जरुर भेजें।


🚩अभी से सभी भारतीय संकल्प लें की इस साल 9 अप्रैल  को हिंदू नववर्ष धूमधाम से  मनाएंगे ।


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Thursday, April 4, 2024

औरंगजेब ने हिंदुओं पर अत्याचार की हद पार कर दी थी और भारी टैक्स भी लगाया था

05 April 2024

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🚩भारत में इस्लामी शासनकाल में हिन्दुओं पर अत्याचार किसी से छिपी बात नहीं है, भले ही वामपंथी इतिहासकारों ने इस पर कितना ही पर्दा डालने की कोशिश की हो। इसी तरह अंतिम शक्तिशाली मुग़ल बादशाह औरंगजेब के काल में न सिर्फ हिन्दुओं को मारा-काटा गया और मंदिर तोड़े गए, बल्कि उन पर जज़िया टैक्स भी लगाया गया। अमीर से लेकर गरीब हिन्दुओं तक को जज़िया कर देना होता था। इससे हिन्दू और ज्यादा गरीब होते चले गए।


🚩इतिहासकारों की मानें तो मुग़ल काल में हिन्दुओं को जानवरों से लेकर पेड़ तक पर टैक्स देना होता था। मुग़ल बादशाह अकबर के समय शादियों पर भी टैक्स लगते थे। पेड़-पौधों पर भी टैक्स लगाए जाते थे, जो अकबर और जहाँगीर के समय हटा दिया गया, लेकिन उसके बाद फिर जारी रहा। कहा जाता है कि अकबर ने जज़िया कर हटा दिया था। हालाँकि, औरंगजेब के समय इसे फिर से हिन्दुओं पर लगा दिया। मुस्लिमों को जज़िया नहीं देना होता था।


🚩जज़िया कर लेने के लिए हिन्दुओं को 3 हिस्सों में बाँटा गया था। सबसे ऊपर अमीरों को रखा गया था, जिनकी आय साल में 2500 रुपए से ज्यादा थी। उन्हें 48 दिरहम कर के रूप में देने होते थे। रुपए में देखें तो ये कुल 13 रुपया बनता था। इसी तरह, दूसरे वर्ग में माध्यम वर्ग को रखा गया था। इस समूह में उन लोगों को रखा गया था, जिनकी वार्षिक आय 250 रुपए थी। उन्हें 24 दिरहम टैक्स के रूप में देने पड़ते थे। रुपए में ये 6.5 रुपया बैठता है।


🚩अब आते हैं गरीब वर्ग पर, जिस पर जज़िया कर की सबसे ज्यादा मार पड़ी थी। गरीबों में ऐसे लोगों को रखा गया था, जिनकी वार्षिक आय 52 रुपए या इससे कम हो। उन्हें 12 दिरहम, अर्थात 3.25 रुपए टैक्स के रूप में देने पड़ते थे। इस तरह इन आँकड़ों के आधार पर गणना करें तो अमीरों को 0.52%, माध्यम वर्ग के हिन्दुओं को 2.6% और गरीब हिन्दुओं को 6.25% मुग़ल शासन को टैक्स के रूप में देने पड़ते थे। नहीं देने पर उन्हें अंजाम भुगतना पड़ता था।


🚩सोचिए, गरीब हिन्दुओं से 6.25% टैक्स लेकर औरंगजेब इन पैसों का इस्तेमाल हिन्दू राज्यों के खिलाफ ही युद्ध लड़ने के लिए करता था। इन पैसों को उस फ़ौज पर खर्च किया जाता रहा होगा, जो हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़ती थी। एक तो संसाधनहीन गरीब इतनी मेहनत कर के कमाते थे, ऊपर से मुगलों का अत्याचार सहन करने के अलावा उन्हें टैक्स भी देते थे। यानी, हिन्दुओं को अपने ऊपर अत्याचार को फंड करने के लिए आपसी देने होते थे।


🚩यही कारण था कि कई गरीब हिन्दुओं ने मजबूरी में धर्मांतरण कर लिया, ताकि वो अपने परिवार को सुरक्षित रख सकें। उन्होंने इस्लाम मजहब अपना लिया, ताकि उन्हें जज़िया कर न देना पड़े। हिन्दू और गरीब होते चले गए, जिनके कारण कभी ये देश ‘सोने की चिड़िया’ कहलाता था और जो इस देश को बनाने वाले थे। इतिहासकार बताते हैं कि इन सबके बावजूद औरंगजेब का समय खत्म होते-होते मुगलों के खजाने में नकदी बची ही नहीं थी।


🚩जज़िया कर का उद्देश्य सिर्फ हिन्दुओं को परेशान करना ही नहीं था, बल्कि मुल्ले-मौलवियों को खुश करना भी था। औरंगजेब राजपूत और मराठों से परेशान था, ऐसे में उसने मुस्लिम जनसंख्या को अपने पीछे लामबंद करने के लिए ये तरीका अपनाया। जज़िया का बहाना बना कर मुल्ले-मौलवी गरीब हिन्दुओं को सताते थे। गाँवों से जज़िया वसूली में फ़ौज की मदद तक ली जाती थी। जिन्हें ये कार्य सौंपा गया था, वो हिन्दुओं पर काफी अत्याचार करते थे।


🚩मुल्ला-मौलवी वर्ग को रोजगार का एक अतिरिक्त साधन मिल गया। हालाँकि, औरंगजेब को सन् 1704 (अपनी मौत से 3 साल पहले) में अराजकता को रोकने के लिए परेशान होकर दक्षिण भारत से जज़िया कर हटाना पड़ा। ऐसा कर के उसे लगता था कि मराठे उससे समझौता कर लेंगे। जिसने अपने ही पिता को कैद कर के सत्ता पाई हो और अपने भाई को मार कर उसे प्लेट में रख कर पिता के सामने पेश किया हो, वो व्यक्ति भला एक अच्छा शासक कैसे हो सकता था।


🚩असल में मुगलों द्वारा जज़िया लगाने का उद्देश्य ही या धरना कायम करनी थी कि मुस्लिम ही सबसे श्रेष्ठ हैं और बाकी सब उसके नीचे आते हैं। बाद में वामपंथी इतिहासकारों ने शरीयत का रोल नकारते हुए जज़िया के ‘राजनीतिक कारण’ गिनाने शुरू कर दिए। औरंगजेब ने मराठों के खिलाफ लड़ाई को भी ‘गाजा’ दिखाया था, अर्थात इस्लाम के लिए जिहाद। असल में जज़िया का सीधा अर्थ था हिन्दुओं को नीचा दिखाना, उन्हें अपमानित महसूस कराना।


🚩इसीलिए, एक नया नियम लागू किया गया। इसके बारे में मार्क जैसन गिल्बर्ट ने ‘South Asia in World History‘ में बताया है। इसके तहत, घर के मुखिया को व्यक्तिगत रूप से कलक्टर के सामने पेश होकर जज़िया कर अदा करना पड़ता था। इस दौरान मुस्लिम कलेक्टर बैठा रहता था और सामने हिन्दुओं को खड़े होकर लाइन लगानी पड़ती थी। इस दौरान उन्हें कुरान की वो आयत दोहरानी होती थी, जिसमें गैर-मुस्लिमों को मुस्लिमों से नीचे बताया गया है।


🚩साथ ही औरंगजेब ये भी योजना बना रहा था कि भविष्य में हिन्दुओं को मुग़ल शासन में बड़े पदों पर न बिठाया जाए। ऐसे पदों को मुस्लिमों के लिए आरक्षित करने की तैयारी थी। वो अप्रैल 1779 का ही समय था, जब औरंगजेब ने अकबर द्वारा हटाए गए जज़िया कर को पुनः लागू किया। सन् 1564 में इसे हटा दिया गया था। औरंगजेब को न सिर्फ मराठा और मरवाद, बल्कि बुंदेलखंड में छत्रसाल से भी चुनौती मिल रही थी जिन्होंने अपना अलग साम्राज्य स्थापित किया।


🚩इन सबके अलावा सिख भी थे, जो तमाम अत्याचारों के बावजूद मुगलों के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं थे। जाट विद्रोह से औरंगजेब परेशान था ही। औरंगजेब ने जज़िया की वसूली के लिए राजस्व विभाग में कई मुस्लिमों की नियुक्तियाँ की। सन् 1687 में उसने एक इंस्पेक्टर जनरल की नियुक्ति की, ताकि नियमों को और कड़ा बनाया जा सके। औरंगज़ेब के समय में काजियों का बोलबाला था और इसीलिए संगीत तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।


🚩औरंगजेब ने ये नियम भी बनाया कि महिलाओं को ‘चुस्त कपड़े’ पहनने का कोई अधिकार नहीं है और उनके शरीर पर कपड़े फैले हुए होने चाहिए। साथ ही उसने दाढ़ी की लंबाई भी तय कर रखी थी और मुस्लिमों को चार उँगली से ज्यादा लंबी दाढ़ी न रखने को कहा था। साथ ही मूँछ छिलने का भी कानून बनाया गया, क्योंकि उसे लगता था कि मूँछें होठों को ढँक कर रखेंगी तो इससे अल्लाह का नाम बोलने पर आवाज़ जन्नत तक नहीं पहुँचेगी। - अनुपम कुमार सिंह


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Wednesday, April 3, 2024

अच्छी लड़की से शादी, नौकरी और 50,000 रुपए का लालच देकर धर्मांतरण

 04 April 2024

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🚩महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।


🚩उत्तर प्रदेश के कानपुर में धर्मांतरण के एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश हुआ है। हिंदू धर्म के लगभग 110 महिला-पुरुषों को 2 बसों में भरकर उन्नाव के एक चर्च में ले जाया जा रहा था। इन लोगों को अच्छी शादी और 50,000 रुपए का झाँसा दिया गया था। धर्मांतरण सिंडिकेट से जुड़े दो लोगों- विलियम्स और दीपक मोरिस को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज करके छानबीन शुरू कर दी है।


🚩दरअसल, जिन बसों में भरकर हिंदू महिला-पुरुषों को धर्मांतरण के लिए ले जाया जा रहा था, उसकी भनक बजरंग दल के कार्यकर्ताओं लगी। उन्होंने कानपुर के थाना नवाबगंज के बोट क्लब के पास दो बसों को रुकवा लिया और लोगों से पूछताछ करने लगे। इस दौरान कुछ लोगों ने बताया कि उन्हें लालच देकर धर्मांतरण के लिए उन्नाव ले जाया जा रहा है।


🚩ACP कर्नलगंज महेश कुमार ने बताया, “बजरंग दल ने शनिवार (30 मार्च 2024) की देर रात करीब 1 बजे सूचना दी कि नवाबगंज से 2 बसों से 110 से ज्यादा लोगों को धर्मांतरण के लिए ले जाया जा रहा है। उन्नाव की एक चर्च में उनका धर्मांतरण होना है। पुलिस ने गंगा बैराज पर बैरिकेडिंग लगाकर चेकिंग शुरू कर दी। इन दोनों बसों को पुलिस ने चेकिंग में रोक लिया।”


🚩बजरंग दल के कार्यकर्ता कृष्णा तिवारी ने आरोप लगाया है कि नवाबगंज थाना प्रभारी दीनानाथ मिश्रा ने आरोपियों को थाने से छोड़ दिया। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, देर रात ईसाई समाज के लोगों ने थाने पर हंगामा किया था। हंगामा और बवाल के बाद नवाबगंज थाने की पुलिस दोनों को थाने से IPC की धारा-41 का नोटिस देकर छोड़ दिया।


🚩दरअसल, अर्मापुर के रहने वाले संजय वाल्मीकि ने तहरीर देकर रिपोर्ट दर्ज कराई है। संजय ने बताया, “मैं बिल्सी बदायूँ का रहने वाला हूँ। नोयल विलियम्स और दीपक मोरिस ने मुझको और परिवार से कहा कि अगर तुम ईसाई बन जाओ। हमारे प्रभु की पूजा करोगे तो तुम्हारी सारी परेशानियाँ दूर हो जाएँगी। इन लोगों ने मेरी पत्नी को बहका दिया है। अब वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती है।”


🚩संजय ने आगे कहा, “ये लोग दबाव बना रहे हैं कि अगर तुम ईसाई अपना लोगे तब तुम्हारी पत्नी और बच्चे तुम्हारे पास आएँगे। तुम्हें हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हटानी होंगी। हमारा धर्म अपनाते ही चर्च तुम्हें 40 से 50 हजार रुपए देगा। इतना ही नहीं नौकरी और इलाज के लिए भी रुपए देगा। चर्च के पादरी की ओर से जो तुम्हें होली वाटर दिया जाएगा। उसे आंखों में लगाओगे तो यीशू की नेमत बरसेगी।”


🚩पाठक गण समझ सकते हैं, कि किस तरह से ईसाई मिशनरी वाले ,भोले भाले लोगों को बेवकूफ बना कर धर्म परिवर्तन कराते हैं,वैसे ये लोग धर्म परिवर्तन का काम एक वर्ग विशेष के साथ ही करते हैं। सभी हिन्दू ऐसे लोगों पर ध्यान दें और उनको मुँहतोड़ जवाब दे।


🚩भारत सरकार से देश के सभी हिन्दूओ की मांग है कि भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा हो रहे धर्मान्तरण के धंधे पर रोक लगाए।


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