09 April 2024
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🚩(1) नारियों को सर्वोच्च महत्व:-
महर्षि मनु संसार के वह प्रथम महापुरुष हैं,जिन्होंने नारी के विषय में सर्वप्रथम ऐसा सर्वोच्च आदर्श उद्घोष किया है,जो नारी की गरिमा,महिमा और सम्मान को असाधारण ऊंचाई प्रदान करता है-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैताः तु न पूज्यन्ते सर्वाः तत्राफलाः क्रियाः ।।-(३/५९)
इसका सही अर्थ है-'जिस परिवार में नारियों का आदर-सम्मान होता है,वहाँ देवता=दिव्य गुण,कर्म,स्वभाव,दिव्य लाभ आदि प्राप्त होते हैं और जहां इनका आदर-सम्मान नहीं
होता,वहां उनकी सब क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं।'
स्त्रियों के प्रति प्रयुक्त सम्मानजनक एवं सुन्दर विशेषणों से बढ़कर,नारियों के प्रति मनु की भावना का बोध कराने वाले प्रमाण और कोई नहीं हो सकते।वे कहते हैं कि नारियों का घर भाग्योदय करने वाली,आदर के योग्य,घर की ज्योति,गृहशोभा,गृहलक्ष्मी,गृहसंचालिका एवं गृहस्वामिनी,घर का स्वर्ग,संसारयात्रा का आधार हैं (९.११,२६,२८;५.१५०)।
कल्याण चाहने वाले परिवारजनों को स्त्रियों का आदर-सत्कार करना चाहिए,अनादर से शोकग्रस्त रहने वाली स्त्रियों के कारण घर और कुल नष्ट हो जाते हैं।स्त्री की प्रसन्नता में ही कुल की वास्तविक प्रसन्नता है (३.५५-६२)।
इसलिए वे गृहस्थों को उपदेश देते हैं कि परस्पर संतुष्ट रहें एक दूसरे के विपरीत आचरण न करें और ऐसा कार्य न करें जिससे एक-दूसरे से वियुक्त होने की स्थिति आ जाये(९.१०१-१०२)।
मनु कीभावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक श्लोक ही पर्याप्त है–
प्रजनार्थं महाभागाः पूजार्हाः गृहदीप्तयः ।
स्त्रियः श्रीयश्च गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन।।-(मनु० १/२६)
अर्थात्-सन्तान उत्पत्ति के लिए घर का भाग्योदय करने वाली,आदर-सम्मान के योग्य,गृहज्योति होती हैं स्त्रियां।शोभा-लक्ष्मी और स्त्री में कोई अन्तर नहीं है,वे घर की प्रत्यक्ष शोभा हैं।
🚩(2) पुत्र-पुत्री एक समान:-
मनुमत से अनभिज्ञ पाठकों को यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि मनु ही सबसे पहले वह संविधान निर्माता हैं जिन्होंने पुत्र-पुत्री की समानता को घोषित करके उसे वैधानिक रुप दिया है-
"पुत्रेण दुहिता समा"(मनु० ९/१३०)
अर्थात्-'पुत्री पुत्र के समान होती है।वह आत्मारुप है,अतः वह पैतृकसम्पत्ति की अधिकारिणी है।'
🚩(3) पुत्र-पुत्री को पैतृक सम्पत्ति में समान अधिकार:-
मनु ने पेतृक सम्पत्ति में पुत्र-पुत्री को समान अधिकारी माना है।उनका यह मत मनुस्मृति के ९.१३०,१९२ में वर्णित है।इसे निरुक्त में इस प्रकार उद्घृत किया है-
अविशेषेण पुत्राणां दायो भवति धर्मतः ।
मिथुनानां विसर्गादौ मनुः स्वायम्भुवोऽब्रवीत् ।।-(३.१.४)
अर्थात्-सृष्टि के प्रारम्भ में स्वायम्भुव मनु ने यह विधान किया है कि दायभाग=पैतृक सम्पत्ति में पुत्र-पुत्री का समान अधिकार होता है।मातृधन में केवल कन्याओं का अधिकार विहित करके मनु ने परिवार में कन्याओं के महत्त्व में अभिवृद्धि की है(९.१३१)।
🚩(4) स्त्रियों के धन की सुरक्षा के विशेष निर्देश:-
स्त्रियों को अबला समझकर कोई भी,चाहे वह बन्धु-बान्धव ही क्यों न हो,यदि स्त्रियों के धन पर कब्जा कर लें,तो उन्हें चोर सदृश दण्ड से दण्डित करने का आदेश मनु ने दिया है(९.२१२;३.५२;८.२;८-२९)।
🚩(5) नारियों के प्रति किये अपराधों में कठोर दण्ड:-
स्त्रियों की सुरक्षा के दृष्टिगत नारियों की हत्या और उनका अपहरण करने वालों के लिए मृत्युदण्ड का विधान करके तथा बलात्कारियों के लिए यातनापूर्ण दण्ड देने के बाद देश निकाला का आदेश देकर मनु ने नारियों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने का यत्न किया है (८/३२३;९/२३२;८/३५२)।
नारियों के जीवन में आने वाली प्रत्येक छोटी-बड़ी कठिनाई का ध्यान रखते हुए मनु ने उनके निराकरण हेतु स्पष्ट निर्देश दिये हैं।
🚩पुरुषों को निर्देश हैं कि वे माता,पत्नि और पुत्री के साथ झगड़ा न करें (४/१८०),इन पर मिथ्या दोषारोपण करने वालों,इनको निर्दोष होते हुए त्यागने वालों,पत्नि के प्रति वैवाहिक दायित्व न निभाने वालों के लिए दण्ड का विधान है (८/२७५,३८९;९/४)।
🚩(6) वैवाहिक स्वतन्त्रता एवं अधिकार:-
विवाह के विषय में मनु के आदर्श विचार हैं।मनु ने कन्याओं को योग्य पति का स्वयं वरण करने का निर्देश देकर स्वयम्वर विवाह का अधिकार एवं उसकी स्वतन्त्रता दी है (९/९०-९१)।
विधवा को पुनर्विवाह का भी अधिकार दिया है(९/१७६,९/५६-६३)।
उन्होंने विवाह को कन्याओं के आदर-स्नेह का प्रतीक बताया है,अतः विवाह में किसी भी प्रकार के लेन-देन को अनुचित बताते हुए बल देकर उसका निषेध किया है (३/५१-५४)।
स्त्रियों के सुखी-जीवन की कामना से उनका सुझाव है कि जीवनपर्यन्त अविवाहित रहना श्रेयस्कर है,किन्तु गुणहीन,दुष्ट पुरुष से विवाह नहीं करना चाहिए (९/८९)
🚩सभी उद्धरण डाक्टर सुरेन्द्र कुमार द्वारा सम्पादित विशुद्ध मनुस्मृति से लिए गए हैं।
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