Saturday, June 29, 2024
लिबरल गिरोह द्वारा चोर औरंगजेब की पिटाई पर हल्ला, दलित नकुल को चाकू घोंपने पर चुप
लिबरल गिरोह द्वारा चोर औरंगजेब की पिटाई पर हल्ला, दलित नकुल को चाकू घोंपने पर चुप
30 June 2024
https://azaadbharat.org
🚩उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में मंगलवार (18 जून 2024) को चोरी के शक में मोहम्मद फरीद उर्फ़ औरंगज़ेब की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। हत्या के आरोप में कुल 10 नामजदों सहित कई अन्य अज्ञात लोगों पर FIR दर्ज हुई है जिसमें से आधे दर्जन आरोपितों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। समाजवादी पार्टी सहित कई अन्य दलों ने औरंगज़ेब के परिजनों को 50 लाख रुपए मुआवजा और एक सरकारी नौकरी तक देने की माँग उठाई है। इसी दिन अलीगढ़ शहर में ही एक दलित युवक को भी मुस्लिम समुदाय के एक व्यक्ति ने चाकू घोंपा था जिसका गंभीर हालत में इलाज चल रहा है। अब दलित युवक के परिजन सामने आए हैं और कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं द्वारा सिर्फ औरंगज़ेब के लिए सक्रियता और अपने लिए ख़ामोशी पर सवाल खड़े किए हैं।
🚩पीड़ित दलित युवक का नाम नकुल जाटव है। नकुल के पिता दिनेश ने 18 जून को ही थाना सासनी गेट में तहरीर दी थी। इसी थानाक्षेत्र में मृतक औरंगजेब का भी घर है। दिनेश भारती ने अपनी तहरीर में बताया है कि मंगलवार की शाम लगभग 7 बजे उनका बेटा किसी काम से शहर के ही पठान मोहल्ले में गया था। रास्ते में नौशाद का बेटा शहजाद नकुल को रोक कर गंदी-गंदी गालियाँ देने लगा। नकुल ने विरोध किया तो शहजाद भड़क कर बोला, “तेरी इतनी हिम्मत। तू हमसे जुबान लड़ाएगा?”
🚩आरोप है कि इसके बाद शहजाद ने अपने पास छिपा एक चाकू निकाला। उसने ताबड़तोड़ नकुल पर कई वार कर दिए। काफी खून बहने की वजह से नकुल जमीन में गिर कर बेहोश हो गया। मामले की जानकारी मिलते ही नकुल के पिता दिनेश जाटव पुलिस के साथ घटनास्थल पर पहुँचे। उन्होंने पुलिस की मदद से नकुल को अस्पताल में भर्ती करवाया। होश आने पर नकुल ने सारी आपबीती पुलिस को बताई। हालात गंभीर देखते हुए नकुल को जे एन मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया है।
🚩दिनेश जाटव ने पुलिस से आरोपित के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की है। इस तहरीर पर पुलिस ने शहजाद को नामजद करते हुए FIR कर ली है। शहजाद के खिलाफ IPC की धारा 504, 506 और 307 के अलावा SC/ST एक्ट के सेक्शन 3(2)(va) के तहत कार्रवाई की गई है। ऑपइंडिया के पास शिकायत कॉपी मौजूद है। पुलिस ने शहजाद को गिरफ्तार कर लिया है। मामले में जाँच व अन्य जरूरी कार्रवाई की जा रही है। घायल नकुल का इलाज अस्पताल में चल रहा है। उसकी सर्जरी कराई गई है।
🚩अस्पताल में कराहते हुए सामने आया वीडियो
ऑपइंडिया को नकुल का एक वीडियो मिला है। वीडियो में पीड़ित अस्पताल के बेड पर लेट कर जोर-जोर से रो रहा है। उनके एक हाथ में पट्टियाँ बंधी हैं जबकि दूसरे में ग्लूकोज आदि चढ़ाया जाना है। नकुल की माँ अपने बेटे को चुप करवाने की कोशिश कर रही हैं। दर्द से नकुल अपने पैरों को बिस्तर पर पटक रहा है।
🚩‘चोर के लिए बोल रही मीडिया मेरे लिए चुप क्यों’
नकुल के भाई पंकज ने ऑपइंडिया को बताया कि जिस दिन चोर की पिटाई हुई थी उसी दिन उनके भाई को भी चाकू लगी थी। उन्होंने बताया कि घाव की वजह से नकुल के हाथों की कई नसें कट गई हैं और काफी खून बह चुका है। नकुल के भाई ने मीडिया से सवाल किया कि वो औरंगज़ेब की आवाज तो इतने जोर-शोर से उठा रहे हैं लेकिन उनके भाई के लिए चुप क्यों हैं जबकि घटना एक ही दिन और एक ही शहर की है ?
🚩‘मैं हिन्दू होना ही मेरा दोष है?’
🚩पंकज जाटव ने ऑपइंडिया को भेजे अपने वीडियो में आगे कहा, “क्या मैं हिन्दू हूँ यही मेरा दोष है?” पंकज ने नेताओं को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि उनके घर कोई झाँकने तक नहीं आया। खुद को पंकज जाटव ने न्याय की लड़ाई में अकेला बताया। उन्होंने कहा, “वर्ग विशेष समुदाय के साथ सब नेता वहाँ चले गए। मेरे साथ कोई नहीं आया। उसके लिए तो सब नेता कर रहे हैं। उन्होंने पथराव भी किया लेकिन हमने नहीं। सारा दुःख उन्हीं को है क्या? हमें कोई दुःख और परेशानी नहीं है क्या?”
🚩‘उनके लिए मुआवजा, हम इलाज करा कर कर्जदार’
कथित चोर औरंगज़ेब के लिए उठ रही मुआवजे की माँग को भी घायल नकुल के भाई ने एकतरफा बताया है। उन्होंने दावा किया कि वो अपने भाई के इलाज में लगभग 40-50 हजार रुपए लगा चुके हैं। पंकज 3 भाई है जिसमें से 2 ही कमा कर घर का खर्च चला रहे हैं। नकुल के पिता दिनेश जाटव पैरों से दिव्यांग हैं। इन पर माँ और एक बहन के भी भरण-पोषण की जिम्मेदारी है। एक बेहद से छोटे से घर में यह पूरा परिवार जैसे-तैसे रहता है। बकौल पंकज शहजाद के परिवार घायल नकुल का इलाज करवाते हुए कर्जदार हो गया है। पीड़ित परिवार को इस कर्ज को चुकाने का रास्ता भी नहीं सूझ रहा है।
🔺 Follow on
🔺 Facebook
https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/
🔺Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg
🔺 Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg
🔺 Telegram:
https://t.me/ojasvihindustan
Friday, June 28, 2024
बच्चों के नजर उतारने 10 पारंपरिक उपाय..
🚩बच्चों के नजर उतारने 10 पारंपरिक उपाय..
29 June 2024
www.azaadbharat.org
🚩अक्सर कुछ बातें अंधविश्वास मान लिए जाने पर भी उनका असर दिखाई पड़ता है। जैसे नजर लगना मानसिक भ्रम और अंधविश्वास कहा जाता है लेकिन जब बहुत छोटे बच्चे अचानक से इससे पीडित होते हैं तो विश्वास करना पड़ता है कि छोटे बच्चों को दृष्टि बैठती है। बच्चों को नजर इसलिए ज्यादा लगती है क्योंकि वे आकर्षक, सरल-सहज और कोमल होते हैं।
🚩आइए जानें बच्चों की नजर उतारने के 10 पारंपरिक उपाय....
🚩1. बच्चे नाजुक होते हैं इसलिए उनकी नजर भी भगवान पर चढ़े नाजुक फूल,शक्कर या दूध से उतारी जाती है। एक तांबे के लोटे में पानी और ताजा फूल लेकर बच्चे पर से 11 बार उतारें। इसे किसी भी गमले में डाल दें। नजर का प्रभाव कम होगा। ऐसे ही दोनों हाथों में शक्कर से नजर उतारी जाती है। मुट्ठी में शक्कर लेकर सिर से पैर तक दोनों हाथों से गोल घुमाते हुए नजर उतारें और उसे तुरंत वॉश बेसिन में पानी की तेज धार में गला दें। इससे बच्चों को लगी मीठी नजर गलती है। दूध में मिश्री डालकर 7 बार उतारें और शिव जी के मंदिर में रख आएं।
🚩2. नमक, राई, लहसुन, प्याज के सूखे छिलके व सूखी मिर्च अंगारे पर डालकर उस आग को बच्चे के ऊपर सात बार घुमाने से बुरी नजर का दोष मिटता है। लेकिन यह उपाय सावधानी मांगता है
🚩3. शनिवार के दिन हनुमान मंदिर में जाकर उनके कंधे पर से सिंदूर लाकर नजर पीडित बच्चे के माथे पर लगाने से बुरी नजर का प्रभाव कम होता है।
🚩4. स्तनपान करते हुए बच्चे को नजर लग जाती है। ऐसे समय इमली की तीन छोटी डालियों को लेकर आग में जलाकर नजर लगे बच्चे के माथे पर से सात बार घुमाकर पानी में बुझा देते हैं।
🚩5. भोजन पर लगी नजर किसी विशेष सामग्री के प्रति बच्चों में अरूचि पैदा कर देती है। तैयार भोजन में से थोड़ा-थोड़ा एक पत्ते पर लेकर उस पर गुलाब छिड़ककर रास्ते में रख दे। फिर बच्चे को खाना खिलाएं। नजर उतर जाएगी।
🚩6. लाल मिर्च, अजवाइन और पीली सरसों को मिट्टी के एक छोटे बर्तन में आग लेकर जलाएं। फिर उसकी धूप नजर लगे बच्चे को दें। किसी प्रकार की नजर हो ठीक हो जाएगी।
🚩7. बुरी नजर से बचने के लिए प्रति शनिवार बच्चे के ऊपर से झाड़ू या उसी के बाएं पैर की चप्पल या जूता लेकर 7 बार उल्टे क्रम से उतारें और दरवाजे की दहलीज पर तीन बार झाड़ कर अंदर आ जाए। यह भी नजर उतारने का बहुत पुराना पारंपरिक तरीका है।
🚩8. बच्चे को नजर लग गई है और हर वक्त परेशान व बीमार रहता है तो लाल साबुत मिर्च को बच्चे के ऊपर से तीन बार वार कर जलती आग में डालने से नजर उतर जाएगी।
🚩9. बच्चा दूध पीने में आनाकानी करें तो शनिवार के दिन कच्चा दूध उसके ऊपर से सात बार वारकर कुत्ते को पिला देने से बुरी नजर का प्रभाव दूर हो जाता है।
🚩10. यदि कोई बच्चा नजर दोष से बीमार रहता है और उसका समस्त विकास रुक गया है तो फिटकरी एवं सरसों को बच्चे पर से सात बार वारकर चूल्हे पर झोंक देने से नजर उतर जाती है। यदि यह सुबह, दोपहर एवं शाम तीनों समय करें तो एक ही दिन में नजर दोष दूर हो जाता है।
🔺 Follow on
🔺 Facebook
https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/
🔺Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg
🔺 Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg
🔺 Telegram:
https://t.me/ojasvihindustan
🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg
🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ
Thursday, June 27, 2024
भगवान राम की मृत्यु (विष्णुधाम गमन) :-
🚩भगवान राम की मृत्यु (विष्णुधाम गमन) :-
28 June 2024
www.azaadbharat.org
🚩पौराणिक कथाओं के अनुसार राम जी की मृत्यु के विषय मे बात करें या उन्हें धरती लोक त्याग कर विष्णु लोक क्यों जाना पड़ा इस संबंध में मत यह है कि एक ऋषि मुनि भगवान श्रीराम से मिलने की उत्सुकता के साथ अयोध्या आये और उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें प्रभु से एकांत में ही वार्ता करनी है। इस पर प्रभु श्री राम उन्हें अपने कक्ष ले गए और श्री राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को यह आदेश दिया कि जब तक हमारी वार्ता समाप्त न हो जाये या इस वार्ता को किसी ने भंग करने की चेष्टा की तो वह मृत्यु दंड का पात्र होगा।
🚩लक्ष्मण जी प्रभु श्री राम के आदेश को पूरी कर्मठता और ईमानदारी से निभाने लगे। आपको बताते चले कि जो ऋषि मुनि राम जी से वार्ता करने आये थे वो और कोई नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए कालदेव थे, जो प्रभु श्री राम को अवगत कराने आये थे कि उनका धरती लोक में समय समाप्त हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक प्रस्थान करना होगा।
🚩जब लक्ष्मण जी श्री राम के कक्ष के पास पहरा दे रहे थे, उसी समय उस स्थान पर ऋषि दुर्वासा आ गए और उन्होने राम जी से मिलने की जिद्द पकड़ ली। आपको बताते चले ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे, उन्हें क्रोध बहुत जल्दी आ जाता था। बहुत समय तक लक्ष्मण जी के द्वारा मना करने के बाद भी वे नहीं मान रहे थे और उन्हें क्रोध आने लगा।
🚩ऋषि दुर्वासा ने कहा यदि उन्हें तुरंत श्री राम जी से न मिलने दिया गया तो वे श्री राम को श्राप दे देंगे। यह सुन लक्ष्मण जी बहुत बड़ी दुविधा में फस गए। यदि उन्होंने ऋषि दुर्वासा जी की बात न मानी तो वे राम को श्राप दे देंगे और मान ली तो श्री राम जी के आदेश का अवलंघन होगा। पर लक्ष्मण जी ने अपने प्राणों की तनिक भी चिंता न करते हुए, उन्हें जाने की अनुमति दे दी, जिसके पश्चात कक्ष में चल रही वार्ता में विघ्न पड़ गया।
🚩दरअसल लक्ष्मण जी कभी भी यह नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके अग्रज भ्राता श्रीराम पर कोई आंच भी आये, जिसके चलते उन्होंने यह कठोर फैसला लिया। श्रीराम यह दृश्य देख बहुत व्यथित हो उठे और धर्म संकट में पड़ गए। पर उनके वचन का मान रखने के कारण लक्ष्मण जी को मृत्यु दंड न देकर उन्हें देश निकाला घोषित कर दिया गया और उस समय देश निकाला मृत्यु दंड के समान ही माना जाता था।
🚩पर लक्ष्मण जी की अभी तक कि यात्रा में लक्ष्मण जी ने श्रीराम और माता सीता का साथ कभी भी नहीं छोड़ा, जिस कारण उन्होंने इस धरती को त्याग करने का निर्णय ले लिया और उन्होंने सरयू नदी जाकर उन्होंने यह पुकार लगाई कि उन्हें इस संसार से मुक्ति चाहिए। इतना कहते वे नदी के अंदर चले गए, जिस तरह उनके इस जीवन का समापन हो गया और वे विश्व लोक का त्याग कर विष्णु लोक में चले गए और वहां जाकर वे अनंत शेष के रूप में परिवर्तित हो गए।
🚩श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के बलिदान के बाद पूरी तरह से टूट गए। मानो एक पल में उनसे उनका सब कुछ छीन गया हो। प्रभु राम का इस मानव संसार से मन सा उठ गया, उन्होने अपना राज पाठ अपनी गद्दी अपने पुत्रों को सौप दी और उसी लोक में जाने का मन बना लिया।
🚩उन्होंने अपने प्राणों को सरयू नदी के हवाले कर दिया और उसी नदी में श्री राम हमेशा के लिए विलीन हो गए थे। उसके बाद वहां से विष्णु जी के अवतार में प्रकट हुए थे और वहां पर उपस्थित उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। श्री राम ने अपने मनुष्य का रुप त्याग कर अपने वास्तविक रूप का धारण किया और बैकुंठ धाम की ओर गमन कर गए।
🚩जय जय श्री राम ❤🙏
🔺 Follow on
🔺 Facebook
https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/
🔺Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg
🔺 Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg
🔺 Telegram:
https://t.me/ojasvihindustan
🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg
🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ
Wednesday, June 26, 2024
प्राचीन भारत में वास्तविक वैज्ञानिक ऋषि मुनि ही थे..
🚩प्राचीन भारत में वास्तविक वैज्ञानिक ऋषि मुनि ही थे......
26 June 2024
www.azaadbharat.org
🚩क्या आपने कभी नोटिस किया है❓ हजार वर्ष पूर्व और हजार वर्ष बाद कौन सी तारीख को कितने बजे से कितने बजे तक (घड़ी, पल, विपल) कैसा सूर्यग्रहण या चन्द्र ग्रहण लगेगा या लगा होगा, यह हमारा ज्योतिष विज्ञान बिना किसी अरबों खरबों का संयत्र उपयोग में लाये हुए बता देता है।
🚩इसका अर्थ यह है कि हमारे ऋषि मुनियों, वेदज्ञ, सनातन धर्म में पहले से यह पता था कि चन्द्रमा, पृथ्वी, सूर्य इत्यादि का व्यास (Diameter) क्या है ? उनकी घूर्णन गति क्या है ?? ( Velocity ऑफ़ Rotation ) क्या है ? उनकी revolution velocity और time क्या है ?
पृथ्वी से सूर्य की दूरी, सूर्य से चन्द्र की दूरी , चन्द्र की पृथ्वी से दूरी कितनी है ?
🚩इन सबका specific gravity, velocity, magnitude, circumference, diameter, radius, specific velocity, gravitational energy, pull कितना है❓
🚩इतनी सटीक गणना होती है कि एक बार NASA के scientist ग़लती कर सकते हैं seconds की लेकिन ज्योतिष विज्ञान नही।
🚩वो तो बस हम लोगों को हमारे ऋषि मुनियों ने juice निकाल कर दे दिया है कि पियो, छिलके से मतलब मत रखो।
बस एक formula तैयार करके दे दिया है जिसमें ज्योतिषी बस values डालते हैं और उत्तर सामने होता है।
🚩अब स्वयं सोचिये, science के विद्यार्थी भी सोचें कि दो planets के बीच कि दूरी नापने के लिए जो parallax या pythagorus theorem का use होता है, इसका मतलब वह पहले से ही ज्ञात था और हम लोग KEPLERS ( A western scientist ) को इन सबका दाता मानते हैं।
🚩तो ऐसे ही गुरुत्वाकर्षण के सारे नियम भी हमें पहले से ही पता होंगे तभी तो हम पृथ्वी , सूर्य, चन्द्रमा इत्यादि के अवयवों को जान पाए।
🚩अरे चन्द्रमा ही क्या कोई भी ग्रह नक्षत्र ले लीजिये, सबमें आपको proved science मिलेगी।
🚩शनि ग्रह के बारे में बात करते हैं। शनि की साढ़े साती सबको पता होगी और अढैय्या भी, यह क्या है ? कभी अन्दर तक खोज करने की कोशिश की ?
नहीं ! क्योंकि हम इन सबको बकवास मानते हैं। चलिए मैं ले चलता हूँ अन्दर तक...
🚩According to NASA , Modern science, शनि ग्रह ( Saturn ) सूर्य का चक्कर लगाने में लगभग १०,७५९ दिन, ५ घंटे, १६ मिनट, ३२.२ सैकण्ड लगाता है।
🚩यही हमारे शास्त्रों में ( सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमणि ) में यह है १०,७६५ दिन, १८ घंटे, ३३ मिनट, १३.६ सैकण्ड और १०,७६५ दिन, १९ घंटे, ३३ मिनट, ५६.५ सैकण्ड ।
मतलब 29.5 Years का समय लेता है यह सूर्य के चक्कर लगाने में, अगर पृथ्वी के अपेक्षाकृत देखा जाय तो यह साढ़े सात वर्ष लेता है पृथ्वी के पास से गुजरने में, और ऐसे कई बार होता है जब पृथ्वी के revolution orbit से शनि ग्रह का orbit आसपास होता है क्योंकि यह ग्रह बहुत धीरे अपना revolution पूरा करता है और वहीं पृथ्वी उसकी अपेक्षाकृत बहुत तेजी से सूर्य का चक्कर काटती है।
🚩शनि के सात वलय ( Rings ) होते हैं जो एक एक कर अपना प्रभाव दिखाते हैं ! 15 चन्द्रमा हैं इस ग्रह के, जिसका प्रभाव 2.5 + 2.5 + 2.5 = 7.5 के अन्तराल पर अपना प्रभाव पृथ्वी के रहने वाले जीवों पर दिखाते हैं।
🚩अब दिमाग लगाईये कि बिना किसी astronomical apparatus या संयंत्र के उन्होंने यह सब कैसे खोजा होगा ?
🚩हम नहीं जानते तो इसीलिए इस प्राचीन विद्या को बेकार, फ़ालतू बकवास बता देते हैं और कहते हैं कि वेद इत्यादि सब जंगली लोगों के ग्रन्थ हैं।
🚩मेहरावली स्थान का नाम सबने सुना होगा। गुड़गाँव के पास ही है जिसको आप लोग क़ुतुबमीनार के नाम से जानते हैं। यह वाराहमिहिर की Observatory थी। जिसे हम जानते हैं कि यह क़ुतुब मीनार है, वह वाराहमिहिर की Observatory थी जिस पर चढ़कर ग्रह नक्षत्रों इत्यादि का अध्ययन किया जाता था लेकिन हमारी गुलाम मानसिकता ने उसे क़ुतुब मीनार बना दिया। इतना भी दिमाग में नहीं आया कि उस जगह लौह स्तम्भ क्या कर रहा है ? देवी देवताओं की मूर्तियाँ क्या कर रही हैं ? जंतर मंतर जैसा structure वहाँ क्या कर रहा है ? बस जिसने जो बता दिया उसी में हम खुश हैं।
🚩पता नहीं हम लोगों को अपने ऊपर गर्व या अपनी सांस्कृतिक विरासत पर कब गर्व होगा ?
🚩खैर मुद्दे पर आते हैं.... तो जितने भी ग्रह नक्षत्र हमारे वेदों शास्त्रों में वर्णित हैं, पंचांग में वर्णित हैं, हमें सटीक उनके विषय में सब पता था।
🚩बस हमें नष्ट भ्रष्ट करने के लिए हमारी अरबों खरबों की पुस्तकें जला दी गयीं, मंदिर नष्ट कर दिए गये, इतिहास की ऐसी तैसी कर दी गयी और बचा कुचा कसर सेक्युलर वाद ने पूरी कर दी ।
🚩इसीलिए अब भी समय है अपने शास्त्रों का अध्ययन कीजिए, उनपर गर्व करना सीखिए, उन पर विश्वास करना सीखिए।
🚩हम न्यूटन को जानते हैं, स्वामी ज्येष्ठदेव को नहीं..
🚩अभी तक आपको यही पढ़ाया गया है कि न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिक ही कैलकुलस, खगोल विज्ञान अथवा गुरुत्वाकर्षण के नियमों के जनक हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सभी वैज्ञानिकों से कई वर्षों पूर्व पंद्रहवीं सदी में दक्षिण भारत के स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर गणित के ये तमाम सूत्र लिख रखे हैं, इनमें से कुछ सूत्र ऐसे भी हैं, जो उन्होंने अपने गुरुओं से सीखे थे, यानी गणित का यह ज्ञान उनसे भी पहले का है, परन्तु लिखित स्वरूप में नहीं था।
“मैथेमेटिक्स इन इण्डिया” पुस्तक के लेखक किम प्लोफ्कर लिखते हैं कि, “तथ्य यही हैं सन 1660 तक यूरोप में गणित या कैलकुलस कोई नहीं जानता था, जेम्स ग्रेगरी सबसे पहले गणितीय सूत्र लेकर आए थे. जबकि सुदूर दक्षिण भारत के छोटे से गाँव में स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर कैलकुलस, त्रिकोणमिति के ऐसे-ऐसे सूत्र और कठिनतम गणितीय व्याख्याएँ तथा संभावित हल लिखकर रखे थे, कि पढ़कर हैरानी होती है. इसी प्रकार चार्ल्स व्हिश नामक गणितज्ञ लिखते हैं कि “मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि शून्य और अनंत की गणितीय श्रृंखला का उदगम स्थल केरल का मालाबार क्षेत्र है”
🚩स्वामी ज्येष्ठदेव द्वारा लिखे गए इस ग्रन्थ का नाम है “युक्तिभाष्य”, जो जिसके पंद्रह अध्याय और सैकड़ों पृष्ठ हैं. यह पूरा ग्रन्थ वास्तव में चौदहवीं शताब्दी में भारत के गणितीय ज्ञान का एक संकलन है, जिसे संगमग्राम के तत्कालीन प्रसिद्ध गणितज्ञ स्वामी माधवन की टीम ने तैयार किया है। स्वामी माधवन का यह कार्य समय की धूल में दब ही जाता, यदि स्वामी ज्येष्ठदेव जैसे शिष्यों ने उसे ताड़पत्रों पर उस समय की द्रविड़ भाषा (जो अब मलयालम है) में न लिख लिया होता. इसके बाद लगभग 200 वर्षों तक गणित के ये सूत्र “श्रुति-स्मृति” के आधार पर शिष्यों की पीढी से एक-दुसरे को हस्तांतरित होते चले गए।भारत में श्रुति-स्मृति (गुरु के मुंह से सुनकर उसे स्मरण रखना) परंपरा बहुत प्राचीन है, इसलिए सम्पूर्ण लेखन करने (रिकॉर्ड रखने अथवा दस्तावेजीकरण) में प्राचीन लोग विश्वास नहीं रखते थे, जिसका नतीजा हमें आज भुगतना पड़ रहा है, कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में संस्कृत भाषा के छिपे हुए कई रहस्य आज हमें पश्चिम का आविष्कार कह कर परोसे जा रहे हैं।
🚩जॉर्जटाउन विवि के प्रोफ़ेसर होमर व्हाईट लिखते हैं कि संभवतः पंद्रहवीं सदी का गणित का यह ज्ञान धीरे-धीरे इसलिए खो गया, क्योंकि कठिन गणितीय गणनाओं का अधिकाँश उपयोग खगोल विज्ञान एवं नक्षत्रों की गति इत्यादि के लिए होता था, सामान्य जनता के लिए यह अधिक उपयोगी नहीं था। इसके अलावा जब भारत के उन ऋषियों ने दशमलव के बाद ग्यारह अंकों तक की गणना एकदम सटीक निकाल ली थी, तो गणितज्ञों के करने के लिए कुछ बचा नहीं था। ज्येष्ठदेव लिखित इस ज्ञान के “लगभग” लुप्तप्राय होने के सौ वर्षों के बाद पश्चिमी विद्वानों ने इसका अभ्यास 1700 से 1830 के बीच किया।चार्ल्स व्हिश ने “युक्तिभाष्य” से सम्बंधित अपना एक पेपर “रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड” की पत्रिका में छपवाया।चार्ल्स व्हिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के मालाबार क्षेत्र में काम करते थे, जो आगे चलकर जज भी बने। लेकिन साथ ही समय मिलने पर चार्ल्स व्हिश ने भारतीय ग्रंथों का वाचन और मनन जारी रखा. व्हिश ने ही सबसे पहले यूरोप को सबूतों सहित “युक्तिभाष्य” के बारे में बताया था।वरना इससे पहले यूरोप के विद्वान भारत की किसी भी उपलब्धि अथवा ज्ञान को नकारते रहते थे और भारत को साँपों, उल्लुओं और घने जंगलों वाला खतरनाक देश मानते थे।ईस्ट इण्डिया कंपनी के एक और वरिष्ठ कर्मचारी जॉन वारेन ने एक जगह लिखा है कि “हिन्दुओं का ज्यामितीय और खगोलीय ज्ञान अदभुत था, यहाँ तक कि ठेठ ग्रामीण इलाकों के अनपढ़ व्यक्ति को मैंने कई कठिन गणनाएँ मुँहज़बानी करते देखा है”।
🚩स्वाभाविक है कि यह पढ़कर आपको झटका तो लगा होगा, परन्तु आपका दिल सरलता से इस सत्य को स्वीकार करेगा नहीं, क्योंकि हमारी आदत हो गई है कि जो पुस्तकों में लिखा है, जो इतिहास में लिखा है अथवा जो पिछले सौ-दो सौ वर्ष में पढ़ाया-सुनाया गया है, केवल उसी पर विश्वास किया जाए. हमने कभी भी यह सवाल नहीं पूछा कि पिछले दो सौ या तीन सौ वर्षों में भारत पर किसका शासन था? किताबें किसने लिखीं? झूठा इतिहास किसने सुनाया? किसने हमसे हमारी संस्कृति छीन ली? किसने हमारे प्राचीन ज्ञान को हमसे छिपाकर रखा? लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि पश्चिमी देशों द्वारा अंगरेजी में लिखा हुआ भारत का इतिहास, संस्कृति हमेशा सच ही हो, यह जरूरी नहीं। आज भी ब्रिटिशों के पाले हुए पिठ्ठू, भारत के कई विश्वविद्यालयों में अपनी “गुलामी की सेवाएँ” अनवरत दे रहे हैं।
🚩सनातन धर्म की जय हो ।🚩
🔺 Follow on
🔺 Facebook
https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/
🔺Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg
🔺 Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg
🔺 Telegram:
https://t.me/ojasvihindustan
🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg
🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ
Tuesday, June 25, 2024
🚩आहार के नियम भारतीय 12 महीनों के अनुसार ..
🚩आहार के नियम भारतीय 12 महीनों के अनुसार ..
26 June 2024
www.azaadbharat.org
🚩चैत्र (मार्च-अप्रैल) – इस महीने में गुड़ का सेवन करें क्योंकि गुड़ आपके रक्त संचार और रक्त को शुद्ध करता है एवं कई बीमारियों से भी बचाता है। चैत्र के महीने में नित्य नीम की 4–5 कोमल पत्तियों का उपयोग भी करना चाहिए। इससे आप इस महीने के सभी मौसमी दोषों से बच सकते हैं। नीम की पत्तियों को चबाने से शरीर में स्थित दोष शरीर से हटते हैं।
🚩वैशाख (अप्रैल – मई)- वैशाख महीने में गर्मी की शुरुआत हो जाती है। बेलपत्र का इस्तेमाल इस महीने में अवश्य करना चाहिए, जो आपको स्वस्थ रखेगा। वैशाख के महीने में तेल का उपयोग बिल्कुल न करें क्योंकि इससे आपका शरीर अस्वस्थ हो सकता है।
🚩ज्येष्ठ (मई-जून) – भारत में इस महीने में सबसे अधिक गर्मी होती है। ज्येष्ठ के महीने में दोपहर में सोना स्वास्थ्यवर्द्धक होता है, ठंडी छाछ, लस्सी, ज्यूस और अधिक से अधिक पानी का सेवन करें। बासी खाना, गरिष्ठ भोजन एवं गर्म चीजों का सेवन न करें। इनके प्रयोग से आपका शरीर रोग ग्रस्त हो सकता है।
🚩अषाढ़ (जून-जुलाई) – आषाढ़ के महीने में आम, पुराने गेंहू, सत्तू , जौ, भात, खीर, ठन्डे पदार्थ , ककड़ी, परवल, करैला, बथुआ आदि का उपयोग करें। आषाढ़ के महीने में भी गर्म प्रकृति की चीजों का प्रयोग करना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
🚩श्रावण (जुलाई-अगस्त) – श्रावण के महीने में हरड़ का इस्तेमाल करना चाहिए। श्रावण में हरी सब्जियों का त्याग करें एवं दूध का इस्तेमाल भी कम करें। भोजन की मात्रा भी कम लें – पुराने चावल, पुराने गेंहू, खिचड़ी, दही एवं हल्के सुपाच्य भोजन को अपनाएं।
🚩भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) – इस महीने में हल्के सुपाच्य भोजन का इस्तेमाल करें। वर्षा का मौसम होने के कारण आपकी जठराग्नि भी मंद होती है इसलिए भोजन सुपाच्य ग्रहण करें। इस महीने में चिता औषधि का सेवन करना चाहिए।
🚩आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) – इस महीने में दूध , घी, गुड़ , नारियल, मुनक्का, गोभी आदि का सेवन कर सकते हैं। ये गरिष्ठ भोजन हैं लेकिन फिर भी इस महीने में पच जाते हैं क्योंकि इस महीने में हमारी जठराग्नि तेज होती है।
🚩कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) – कार्तिक महीने में गरम दूध, गुड, घी, शक्कर, मूली आदि का उपयोग करें। ठंडे पेय पदार्थो का प्रयोग छोड़ दें। छाछ, लस्सी, ठंडा दही, ठंडा फ्रूट ज्यूस आदि का सेवन न करें , इनसे आपके स्वास्थ्य को हानि हो सकती है।
🚩अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) – इस महीने में ठंडी और अधिक गरम वस्तुओं का प्रयोग न करें।
🚩पौष (दिसम्बर-जनवरी) – इस ऋतु में दूध, खोया एवं खोये से बने पदार्थ, गौंद के लाडू, गुड़, तिल, घी, आलू, आंवला आदि का प्रयोग करें, ये पदार्थ आपके शरीर को स्वास्थ्य देंगे। ठन्डे पदार्थ, पुराना अन्न, मोठ, कटु और रुक्ष भोजन का उपयोग न करें।
🚩माघ (जनवरी-फ़रवरी) – इस महीने में भी आप गरम और गरिष्ठ भोजन का इस्तेमाल कर सकते हैं। घी, नए अन्न, गौंद के लड्डू आदि का प्रयोग कर सकते हैं।
🚩फाल्गुन (फरवरी-मार्च) – इस महीने में गुड़ का उपयोग करें। सुबह के समय योग एवं स्नान का नियम बना लें। चने का उपयोग न करें।
🔺 Follow on
🔺 Facebook
https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/
🔺Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg
🔺 Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg
🔺 Telegram:
https://t.me/ojasvihindustan
🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg
🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ
Monday, June 24, 2024
पूजा करते समय...आखिर क्यों ढका जाता है सिर...
पूजा करते समय...आखिर क्यों ढका जाता है सिर....❓
25 June 2024
www.azaadbharat.org
🚩हिंदू धर्म विशेष प्रयोजन में विशेष वस्त्र धारण का महत्व है। अगर पूजा पाठ या किसी मांगलिक कार्य में जाते हैं तो सबसे पहले हम अपने सिर ढकते हैं। स्त्रियां अपने साड़ी के पल्लू / दुपट्टे से, पुरुष रुमाल/गमछे या पगड़ी का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि सिर ढकना अपने से बड़ों को सम्मान देने का भी संकेत है। सिर ढकना हमारे ग्रहों से भी जुड़ा हुआ है। सिर ढकने से शरीर को कई तरह के लाभ मिलते हैं और साथ ही साथ सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है।
🚩बृहस्पति ग्रह की शक्ति को बढ़ाता है...
🚩सिर का संबंध हमारे मंगल ग्रह से होता है। मंगल ग्रह हमारे बहुत ही गतिविधियों से जुड़ा है। सामाजिक जीवन में रहने वालों के बीच एक प्रतिस्पर्धा रहती है।
🚩राहु ग्रह से बुरे प्रभाव का असर होता है। ऐसे में एक छोटा सा नियम और उपाय सिर को ढकने का जो बृहस्पति से जोड़कर देखा जाता है इससे बृहस्पति की शक्ति भी बढ़ती है।
🚩बृहस्पति एक सात्विक ग्रह है यही वजह है कि किसी भी मांगलिक कार्य में सिर ढकना शुभ होता है और सीधे बृहस्पति ग्रह को मजबूत करता है। सिर ढकने से बृहस्पति की ऊर्जा सक्रिय होती है जिससे मानव शरीर के सभी ग्रहों की शक्तियां बढ़ जाती हैं। जिससे हमारी आत्म शक्ति भी बढ़ती है, सात्विक भाव का मन में प्रवेश होने से मन में अहंकार, बुरे विचार दूर हो जाते हैं।
🚩सिर ढकने की प्रथा हमारी पुरानी परंपरा से चली आ रही है अपने से बड़ों को सम्मान देने का एक तरीका भी इसे माना जाता है। माना जाता है कि माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैर दबाते समय सदैव अपने सिर को ढक कर रखती हैं इसलिए इसका संबंध मां लक्ष्मी से भी जोड़ा जाता है।
🚩नकारात्मक ऊर्जा होती है दूर...
🚩घर हो या बाहर नकारात्मक ऊर्जा से सभी बचना चाहते हैं। सभी अपने घर या अपने आसपास के वातावरण को सकारात्मक बनाए रखना चाहते हैं। इससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। सिर ढकने से बृहस्पति की उर्जा शरीर को आती हैं जिससे राहु की दशा का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। राहु को मैटेरियल वर्ल्ड से जोड़कर देखा जाता है जिससे भौतिक जीवन हमेशा सुखदाई होता है।
🌹सिर ढकने के लाभ...
🚩सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती हैं। सिर ढंकना सम्मान सूचक भी माना जाता है। इसके वैज्ञानिक कारण भी है। सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है।
🚩ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों बीच स्थित होता है। मौसम का मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों में आते हैं। इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है।
🚩सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं, क्योंकि बालों की चुंबकीय शक्ति उन्हें आकर्षित करती है। रोग फैलाने वाले यह कीटाणु बालों से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। जिससे व्यक्ति रोगी को रोगी बनाते हैं। इसीलिए साफ, पगड़ी और अन्य साधनों से सिर ढंकने पर कान भी ढंक जाते हैं। जिससे ठंडी और गर्म हवा कान के द्वारा शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती। कई रोगों का इससे बचाव हो जाता है।
🚩सिर ढंकने से आज का जो सबसे गंभीर रोग है गंजापन, बाल झडऩा और डेंड्रफ से आसानी से बचा जा सकता है। आज भी हिंदू धर्म में परिवार में किसी की मृत्यु पर उसके संबंधियों का मुंडन किया जाता है। ताकि मृतक शरीर से निकलने वाले रोगाणु जो उनके बालों में चिपके रहते हैं। वह नष्ट हो जाए। स्त्रियां बालों को पल्लू से ढंके रहती है। इसलिए वह रोगाणु से बच पाती है।
🚩नवजात शिशु का भी पहले ही वर्ष में इसलिए मुंडन किया जाता है ताकि गर्भ के अंदर की जो गंदगी उसके बालों में चिपकी है वह निकल जाए। मुंडन की यह प्रक्रिया अलग अलग धर्मों में किसी न किसी रूप में है।
🚩पौराणिक कथाओं में भी नायक, उपनायक तथा खलनायक भी सिर को ढंकने के लिए मुकुट पहनते थे। यही कारण है कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। इसके बाद धीरे धीरे समाज की यह परंपरा बड़े लोगों को या भगवान को सम्मान देने का तरीका बन गई।
🚩इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है।
🚩हिंदु धर्म की ऐसी मान्यता है कि हमारे शरीर में 10 द्वार होते हैं, दो नासिका, दो आंख, दो कान, एक मुंह, दो गुप्तांग और दशवां द्वार होता है सिर के मध्य भाग में जिसे दशम द्वार कहा जाता है।
🚩सभी 10 द्वारों में दशम द्वार सबसे अहम है। ऐसी मान्यता है कि दशम द्वार के माध्यम से ही हम परमात्मा से साक्षात्कार कर पाते हैं। इसी द्वार से शिशु के शरीर में आत्मा प्रवेश करती है। किसी भी नवजात शिशु के सिर पर हाथ रखकर दशम द्वार का अनुभव किया जा सकता है। नवजात शिशु के सिर पर एक भाग अत्यंत कोमल रहता है, वही दशम द्वार है जो बच्चे के बढऩे के साथ साथ थोड़ा कठोर होता जाता है।
🚩परमात्मा के साक्षात्कार के लिए व्यक्ति के बड़े होने पर कठोर हो चुके दशम द्वार को खोलना अतिआवश्यक है और यह द्वार आध्यात्मिक प्रयासों से ही खोला जा सकता है। इसका संबंध सीधे मन से होता है। मन बहुत ही चंचल स्वभाव का होता है जिससे मनुष्य परमात्मा में ध्यान आसानी नहीं लगा पाता। मन को नियंत्रित करने के लिए ही दशम द्वार ढंककर रखा जाता है ताकि हमारा मन अन्यत्र ना भटके और भगवान में ध्यान लग सके।
🔺 Follow on
🔺 Facebook
https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/
🔺Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg
🔺 Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg
🔺 Telegram:
https://t.me/ojasvihindustan
🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg
🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ
Sunday, June 23, 2024
हिन्दू धर्म 👉 कौन थे 12 आदित्य जानिए….....
हिन्दू धर्म 👉 कौन थे 12 आदित्य जानिए….....
24 June 2024
www.azaadbharat.org
🚩देवताओं का कुल:--
🚩 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं। 12 आदित्यों में से 1 विष्णु हैं और 11 रुद्रों में से 1 शिव हैं। उक्त सभी देवताओं को परमेश्वर ने अलग अलग कार्य सौंप रखे हैं। इन सभी देवताओं की कथाओं पर शोध करने की जरूरत है।
🚩जिस तरह देवता 33 हैं उसी तरह दैत्यों, दानवों, गंधर्वों, नागों आदि की गणना भी की गई है। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, जो हिन्दू धर्म के संस्थापक 4 ऋषियों में से एक अंगिरा के पुत्र हैं। बृहस्पति के पुत्र कच थे जिन्होंने शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीखी। शुक्राचार्य दैत्यों (असुरों) के गुरु हैं। भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र शुक्राचार्य की कन्या का नाम देवयानी तथा पुत्र का नाम शंद और अमर्क था। देवयानी ने ययाति से विवाह किया था।
🚩ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति से जन्मे पुत्रों को आदित्य कहा गया है। वेदों में जहां अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है। वैदिक या आर्य लोग दोनों की ही स्तुति करते थे। इसका यह मतलब नहीं कि आदित्य ही सूर्य है या सूर्य ही आदित्य है। हालांकि आदित्यों को सौर देवताओं में शामिल किया गया है और उन्हें सौर मंडल का कार्य सौंपा गया है।
🚩12 आदित्य देव के अलग अलग नाम: ये कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी अदिति से उत्पन्न 12 पुत्र हैं। ये 12 हैं: अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु। इन्हीं पर वर्ष के 12 मास नियुक्त हैं।
🚩पुराणों में इनके नाम इस तरह मिलते हैं: धाता, मित्र, अर्यमा, शुक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा एवं विष्णु। कई जगह इनके नाम हैं: इन्द्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान, विष्णु, अंशुमान और मित्र।
🚩12 आदित्य:- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।
🚩पहले आदित्य का परिचय...
1. इन्द्र: यह भगवान सूर्य का प्रथम रूप है। यह देवों के राजा के रूप में आदित्य स्वरूप हैं। इनकी शक्ति असीम है। इन्द्रियों पर इनका अधिकार है। शत्रुओं का दमन और देवों की रक्षा का भार इन्हीं पर है। इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है।
🚩वह बादलों और विद्युत का देवता है। इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी थी। छल कपट के कारण इन्द्र की प्रतिष्ठा ज्यादा नहीं रही। इसी इन्द्र के नाम पर आगे चलकर जिसने भी स्वर्ग पर शासन किया, उसे इन्द्र ही कहा जाने लगा।
🚩तिब्बत में या तिब्बत के पास इंद्रलोक था। कैलाश पर्वत के कई योजन उपर स्वर्ग लोक है। इन्द्र किसी भी साधु और धरती के राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देते थे। इसलिए वे कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देते हैं तो कभी राजाओं के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े चुरा लेते हैं।
🚩ऋग्वेद के तीसरे मंडल के वर्णानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इन्द्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इन्द्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्ति संपन्न देव है। इन्द्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।
🚩दूसरे आदित्य...
2. धाता: धाता हैं दूसरे आदित्य। इन्हें श्रीविग्रह के रूप में जाना जाता है। ये प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं। जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है। जो व्यक्ति सामाजिक नियमों का पालन नहीं करता है और जो व्यक्ति धर्म का अपमान करता है उन पर इनकी नजर रहती है। इन्हें सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है।
🚩तीसरे आदित्य...
3. पर्जन्य: पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं। ये मेघों में निवास करते हैं। इनका मेघों पर नियंत्रण हैं। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बरसता है। ये धरती के ताप को शांत करते हैं और फिर से जीवन का संचार करते हैं। इनके बगैर धरती पर जीवन संभव नहीं।
4. त्वष्टा: आदित्यों में चौथा नाम श्रीत्वष्टा का आता है। इनका निवास स्थान वनस्पति में है। पेड़ पौधों में यही व्याप्त हैं। औषधियों में निवास करने वाले हैं। इनके तेज से प्रकृति की वनस्पति में तेज व्याप्त है जिसके द्वारा जीवन को आधार प्राप्त होता है। त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप। विश्वरूप की माता असुर कुल की थीं अतः वे चुपचाप असुरों का भी सहयोग करते रहे।
🚩एक दिन इन्द्र ने क्रोध में आकर वेदाध्ययन करते विश्वरूप का सिर काट दिया। इससे इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा। इधर, त्वष्टा ऋषि ने पुत्रहत्या से क्रुद्ध होकर अपने तप के प्रभाव से महापराक्रमी वृत्तासुर नामक एक भयंकर असुर को प्रकट करके इन्द्र के पीछे लगा दिया।
🚩ब्रह्माजी ने कहा कि यदि नैमिषारण्य में तपस्यारत महर्षि दधीचि अपनी अस्थियां उन्हें दान में दें दें तो वे उनसे वज्र का निर्माण कर वृत्तासुर को मार सकते हैं। ब्रह्माजी से वृत्तासुर को मारने का उपाय जानकर देवराज इन्द्र देवताओं सहित नैमिषारण्य की ओर दौड़ पड़े।
5. पूषा: पांचवें आदित्य पूषा हैं जिनका निवास अन्न में होता है। समस्त प्रकार के धान्यों में ये विराजमान हैं। इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं ऊर्जा आती है। अनाज में जो भी स्वाद और रस मौजूद होता है वह इन्हीं के तेज से आता है।
6. अर्यमन: अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता भी कहा जाता है। आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक है। सूर्य से संबंधित इन देवता का अधिकार प्रात: और रात्रि के चक्र पर है। आदित्य का छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है। ये वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करते हैं। चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं। प्रकृति की आत्मा रूप में निवास करते हैं।
7. भग: सातवें आदित्य हैं भग। प्राणियों की देह में अंग रूप में विद्यमान हैं। ये भग देव शरीर में चेतना, ऊर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति करते हैं।
8. विवस्वान: आठवें आदित्य विवस्वान हैं। ये अग्निदेव हैं। इनमें जो तेज व ऊष्मा व्याप्त है वह सूर्य से है। कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन इसी अग्नि द्वारा होता है। ये आठवें मनु वैवस्वत मनु के पिता हैं।
9. विष्णु: नौवें आदित्य हैं विष्णु। देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले देव विष्णु हैं। वे संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति कराने वाले हैं। माना जाता है कि नौवें आदित्य के रूप में विष्णु ने त्रिविक्रम के रूप में जन्म लिया था। त्रिविक्रम को विष्णु का वामन अवतार माना जाता है। यह दैत्यराज बलि के काल में हुए थे। हालांकि इस पर शोध किए जाने कि आवश्यकता है कि नौवें आदित्य में लक्ष्मीपति विष्णु हैं या विष्णु अवतार वामन। द्वादश आदित्यों में से एक विष्णु को पालनहार इसलिए कहते हैं, क्योंकि उनके समक्ष प्रार्थना करने से ही हमारी समस्याओं का निदान होता है। उन्हें सूर्य का रूप भी माना गया है। वे साक्षात सूर्य ही हैं। विष्णु ही मानव या अन्य रूप में अवतार लेकर धर्म और न्याय की रक्षा करते हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हमें सुख, शांति और समृद्धि देती हैं। विष्णु का अर्थ होता है विश्व का अणु।
10. अंशुमान: दसवें आदित्य हैं अंशुमान। वायु रूप में जो प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान है वही अंशुमान हैं। इन्हीं से जीवन सजग और तेज पूर्ण रहता है।
11. वरुण: ग्यारहवें आदित्य जल तत्व का प्रतीक हैं वरुण देव। ये मनुष्य में विराजमान हैं जल बनकर। जीवन बनकर समस्त प्रकृति के जीवन का आधार हैं। जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।वरुण को असुर समर्थक कहा जाता है। वरुण देवलोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं।
🚩वरुण तो देवताओं और असुरों दोनों की ही सहायता करते हैं। ये समुद्र के देवता हैं और इन्हें विश्व के नियामक और शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन रात के कर्ता धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता के रूप में जाना जाता है। इनके कई अवतार हुए हैं। उनके पास जादुई शक्ति मानी जाती थी जिसका नाम था माया। उनको इतिहासकार मानते हैं कि असुर वरुण ही पारसी धर्म में ‘अहुरा मज़्दा’ कहलाए।
12. मित्र: बारहवें आदित्य हैं मित्र। विश्व के कल्याण हेतु तपस्या करने वाले, साधुओं का कल्याण करने की क्षमता रखने वाले हैं मित्र देवता हैं।
🌹 ये 12 आदित्य सृष्टि के विकास क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
🔺 Follow on
🔺 Facebook
https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/
🔺Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg
🔺 Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg
🔺 Telegram:
https://t.me/ojasvihindustan
🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg
🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ
Subscribe to:
Posts (Atom)