Saturday, August 10, 2024

मूल निवासी दिवस के नाम पर कौन कर रहा है छलावा?

 11 August 2024

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🚩 मूल निवासी दिवस के पीछे का षड्यंत्र  

अगस्त की 9 तारीख को मूल निवासी दिवस के नाम पर एक नया भ्रमजाल बुना जा रहा है। वामपंथी और जेहादी ताकतों द्वारा फैलाए जा रहे इस भ्रमजाल का मुख्य उद्देश्य हिन्दुत्व को कमजोर करना और समाज में विभाजन पैदा करना है।


🚩 वैदिक इतिहास की अनदेखी  

सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए प्रश्न के जवाब में, राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने स्पष्ट किया कि स्कूली किताबों में वैदिक इतिहास का अध्याय जोड़ने की कोई योजना नहीं है। एनसीईआरटी ने बताया कि 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तैयार किया गया था, और 2007 में इतिहास की नई किताबें शामिल की गईं, जिसमें वैदिक इतिहास को हटा दिया गया। अब वैदिक इतिहास पर कोई प्रस्ताव नहीं है।


🚩 वैदिक ज्ञान की उपेक्षा  

विशेषज्ञ मानते हैं कि एनसीईआरटी ने वामपंथी दबाव में आकर वैदिक विज्ञान को पाठ्यक्रम से हटा दिया। छात्रों को वेदों और वैदिक गणित का महत्व जानने का हक है, लेकिन एनसीईआरटी की किताबों में आर्य सभ्यता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती। सरकार ने ऋगवेद को यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल कराया, लेकिन एनसीईआरटी की किताबों में इसका कोई जिक्र नहीं है।


🚩 आर्य और द्रविड़ का मिथक  

वामपंथी इतिहासकारों ने दावा किया कि भारतीय आर्य बाहरी थे, लेकिन यह दावा किस आधार पर किया गया? आर्यों की उत्पत्ति पर कोई सटीक जानकारी नहीं दी गई है। 


🚩 द्रविड़ सभ्यता का सवाल  

इतिहासकारों ने अंग्रेजों द्वारा लिखे गए इतिहास के आधार पर आर्यों और द्रविड़ों के बीच विभाजन किया। यह सोचने की बात है कि सिंधु घाटी से दक्षिण भारत जाकर द्रविड़ अपनी सभ्यता और ज्ञान भूल गए। 


🚩 नेहरू और भारतीय शिक्षा का राजनीतिकरण  

पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 'भारत की खोज' पुस्तक में भारत को एक खोए हुए बच्चे के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आजाद को शिक्षा मंत्री बनाया, जिन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। यह विचारधारा आज भी भारतीय शिक्षा व्यवस्था में समाई हुई है।


🚩 मूल निवासी दिवस का असली उद्देश्य  

वामपंथी इतिहासकारों ने भ्रम फैलाया कि भारतीय लोग मूल निवासी नहीं हैं। इसके माध्यम से भारतीय समाज को विभाजित किया जा रहा है और वैदिक इतिहास को स्कूली पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है।


🚩 अंतिम विचार  

मूल निवासी दिवस के नाम पर फैलाए जा रहे इस छलावे का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज को विभाजित करना और हिन्दुत्व को कमजोर करना है। इस अभियान का मुकाबला करना आवश्यक है ताकि भारत के प्राचीन गौरव और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की जा सके।


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Friday, August 9, 2024

नाग पंचमी: एक सांस्कृतिक, धार्मिक, और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से विश्लेषण

 10 August 2024

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🚩भारत के समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में नाग पंचमी का एक विशेष स्थान है। यह पर्व नाग देवता की पूजा के लिए समर्पित है, जिन्हें सनातन धर्म में जीवन रक्षक और आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इस वर्ष नाग पंचमी 9 अगस्त को पूरे भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जा रही है।                                                   

🚩पौराणिक कथाओं से जुड़ी नाग पंचमी की शुरुआत                                                                                                                                                                        🚩1- नाग पंचमी की पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों में अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने नागों से बदला लेने और उनके वंश के विनाश के लिए एक यज्ञ किया। वह नागों से अपने पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सांप के काटने की वजह होने का बदला लेना चाहते थे।उनके इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था और नागों की रक्षा की थी। यह तिथि सावन की पंचमी मानी जाती है। सांपों को शीतलता देने के लिए उन्होंने उनके शरीर पर दूध की धार डाली थी। तब नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी उनकी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा। तभी से श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है।  

                  

🚩2- प्राचीन कथा के अनुसार, एक सेठजी के सात पुत्र थे और सबसे छोटे पुत्र की पत्नी एक दयालु और सुशील महिला थी, परंतु उसके पास कोई भाई नहीं था। एक दिन, जब बड़ी बहू ने मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को भेजा, छोटी बहू ने एक सांप की जान बचाई। सांप ने इसे देखकर उसे अपनी बहन मान लिया और मनुष्य का रूप धारण कर उसकी मदद की। छोटी बहू को समृद्धि और आभूषण प्राप्त हुए, जिससे बड़ी बहू ईर्ष्या करने लगी। बड़ी बहू ने और धन की मांग की, और सांप ने उसकी सभी इच्छाएँ पूरी कीं। जब रानी ने छोटी बहू के हार को प्राप्त करने की इच्छा जताई, सांप ने उसे सजा दी। रानी हार पहनते ही सांप में बदल गई। इसके बाद, राजा ने छोटी बहू को सम्मानित किया और सांप देवता की कृपा के लिए आभार व्यक्त किया।


🚩3- एक अन्य महत्वपूर्ण पौराणिक कथा के अनुसार, अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक नाग यज्ञ किया। वह नागों से बदला लेना चाहते थे क्योंकि उनके पिता की मृत्यु तक्षक नामक सांप के काटने से हुई थी। जब यज्ञ के कारण नागों का विनाश होने लगा, तो ऋषि आस्तिक ने यज्ञ को रोक दिया और नागों की रक्षा की। इस घटना के बाद नाग पंचमी का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।          

                                                                                                                                                                    🚩4-समुद्र मंथन कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, नाग देवताओं का उद्भव समुद्र मंथन के समय हुआ था। इस घटना में वासुकि नाग को मंदराचल पर्वत के चारों ओर लपेटा गया था, जो मंथन के लिए उपयोग किया गया था। वासुकि नाग के महत्व को देखते हुए उनकी पूजा नाग पंचमी के दिन की जाती है।


🚩5- कालिया नाग की कथा:

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में थे, तो उन्होंने यमुना नदी में कालिया नाग को हराया था। कालिया नाग ने यमुना के जल को विषैला बना दिया था, जिससे वहां का जल पीना मुश्किल हो गया था। श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर उसके सिर पर नृत्य किया और उसे नदी से बाहर निकाल दिया। इस कथा के आधार पर, नाग पंचमी के दिन श्रीकृष्ण और नागों की पूजा का विशेष महत्व है।


🚩शेषनाग का महत्त्व:

शेषनाग, जो कि अनंत नाग के नाम से भी जाने जाते हैं, विष्णु भगवान के शयन स्थान के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे समस्त नागों के राजा माने जाते हैं और उन्हें सनातन धर्म में अत्यधिक पूजनीय माना जाता है। नाग पंचमी के दिन शेषनाग की भी विशेष पूजा होती है।           

                                                                                                                                                                      🚩नाग पंचमी की पूजा विधि और परंपराएँ:

🚩पूजा विधि:

नाग पंचमी के दिन घरों में नाग देवता की मिट्टी, लकड़ी या चांदी की मूर्ति बनाई जाती है। लोग नाग देवता की मूर्ति को स्नान कराकर उन्हें दूध, दूब घास, हल्दी, चावल, और फूल अर्पित करके आरती करते हैं।

🚩दूध का महत्व:

इस दिन नागों को दूध पिलाने की प्रथा है। इस पूजा से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

🚩चित्रांकन:

कुछ क्षेत्रों में लोग अपने घरों की दीवारों पर या दरवाजे के ऊपर नाग देवता की आकृतियाँ बनाते हैं और उन्हें हल्दी, कुमकुम और दूध चढ़ाते हैं।

🚩व्रत और उपवास:

नाग पंचमी के दिन कुछ लोग उपवास रखते हैं।

🚩सर्पदंश से रक्षा:

नाग पंचमी की पूजा करने से सर्पदंश का भय दूर होता है और नाग देवता की कृपा से व्यक्ति सुरक्षित रहता है। जो जीवन में शांति और सुरक्षा प्रदान करता है।

🚩नाग पंचमी का सामाजिक और पर्यावरणीय महत्त्व:

🚩पर्यावरणीय संतुलन:

नाग पंचमी का त्योहार प्रकृति और पर्यावरण के साथ हमारे संबंध को भी दर्शाता है। नागों की पूजा से यह संदेश मिलता है कि हमें पर्यावरण और वन्यजीवों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वे हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

🚩कृषि का संबध                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   नाग पंचमी का त्योहार कृषि से भी जुड़ा है। किसान इस दिन नाग देवता की पूजा करके अच्छी फसल और बारिश की प्रार्थना करते हैं। यह माना जाता है कि नागों की पूजा से खेतों में कीड़े-मकोड़ों का आतंक समाप्त हो जाता है और फसल अच्छी होती है।

🚩निष्कर्ष: नाग पंचमी हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है, जो नाग देवताओं की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार श्रावण मास की पंचमी तिथि को, जुलाई या अगस्त में, विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व प्रकृति और वन्यजीवों के प्रति श्रद्धा और जिम्मेदारी की याद दिलाता है, और सुख-समृद्धि की प्रार्थना का अवसर भी है।

                                                                                                                                                                      🔺 Follow on


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Thursday, August 8, 2024

वर्षा ऋतु (बरसात) में भारतीय संस्कृति के अनुसार पकोड़े खाने के पीछे क्या है रहस्य?


9 August 2024

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🚩बरसात का मौसम और पकोड़े खाने की परंपरा: एक आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण


🚩भारतीय संस्कृति में बरसात का मौसम आते ही पकोड़े खाने की परंपरा को लेकर विशेष उत्साह देखने को मिलता है। यह परंपरा केवल स्वाद और आनंद के लिए नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक आधार है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है।


🚩आयुर्वेद और वर्षा ऋतु में शरीर का संतुलन:

आयुर्वेद, जो कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान है, ऋतु के अनुसार आहार और जीवनशैली में बदलाव की सलाह देता है। वर्षा ऋतु में वात दोष का प्रकोप बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में गैस, अपच, और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। वात दोष को संतुलित करने के लिए, शुद्ध तेल में तली हुई चीज़ों का सेवन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। तेल की विशेषता यह है कि यह वात दोष को नियंत्रित कर शरीर में आवश्यक ऊष्मा और संतुलन बनाए रखता है, जो इस मौसम में विशेष रूप से आवश्यक होता है।


🚩पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का मेल:

पकोड़े, जो शुद्ध तेल में तले जाते हैं, वात को शांत करने के साथ-साथ शरीर को ऊर्जा और संतोष भी प्रदान करते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात को मानता है कि ठंड और नमी के मौसम में शरीर को अधिक ऊर्जा और ऊष्मा की आवश्यकता होती है, जो तले हुए खाद्य पदार्थों से मिल सकती है। इसके अलावा, तले हुए व्यंजनों में पाए जाने वाले मसाले, जैसे कि हल्दी, मिर्च, और अजवाइन, न केवल स्वाद को बढ़ाते हैं, बल्कि इनकी एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी शरीर को बीमारियों से बचाने में सहायक होते हैं।


🚩सावन और आहार के नियम:

सावन, जो कि वर्षा ऋतु का मुख्य समय होता है, में कुछ विशेष आहार नियमों का पालन किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस समय दही, छाछ, दूध, और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन वर्जित है, क्योंकि ये सभी वात को बढ़ाने वाले होते हैं। इसके स्थान पर, ये पदार्थ भगवान शिव को अर्पित किए जाते हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से हर प्रकार के विष को ग्रहण करने वाले माने जाते हैं। यह धार्मिक अनुष्ठान न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है, जो शरीर के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है।


🚩शुद्ध तेल का चयन: क्यों यह महत्वपूर्ण है?

तेल का शुद्ध होना इस परंपरा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रिफाइंड तेल के विपरीत, शुद्ध तेल में उसके प्राकृतिक गुण और तत्व सुरक्षित रहते हैं, जो वात दोष को संतुलित करने में सहायक होते हैं। रिफाइंड तेल का उपयोग न केवल तेल के प्राकृतिक गुणों को समाप्त कर देता है, बल्कि यह शरीर में अवांछनीय तत्वों का भी प्रवेश कराता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसीलिए, शुद्ध तेल में बने व्यंजनों का सेवन वर्षा ऋतु में विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।


🚩अतिरिक्त आयुर्वेदिक सुझाव:

वर्षा ऋतु में ताजे फल और हरी सब्जियों का सेवन भी सीमित करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इस समय मिट्टी और पानी की अधिक नमी के कारण इनमें कीटाणुओं का खतरा बढ़ जाता है। इसके बजाय, सूखे मेवे और पुराने अनाज जैसे बाजरा, रागी, और जौ का सेवन करना अधिक सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। साथ ही, अदरक और तुलसी जैसी गर्म तासीर वाली चीजों का सेवन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है।


🚩निष्कर्ष:

भारतीय संस्कृति में बरसात के मौसम में पकोड़े खाने की परंपरा केवल एक सांस्कृतिक रस्म नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक ठोस आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक आधार है। यह परंपरा न केवल स्वाद और आनंद देती है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य को भी संतुलित और सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए, इस वर्षा ऋतु में पकोड़े और अन्य तले हुए व्यंजनों का सेवन करें, शुद्ध तेल का उपयोग करें, और आयुर्वेदिक परंपराओं के साथ अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें।                                                                                              


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Wednesday, August 7, 2024

क्या भारत में बांग्लादेश जैसी स्थिति आ सकती है?

8 अगस्त 2024

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🚩प्रस्तावना:


भारत और बांग्लादेश की राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक परिस्थितियों की तुलना से स्पष्ट होता है कि भारत में बांग्लादेश जैसी स्थिति आना अत्यधिक असंभव है। यह लेख उन प्रमुख कारणों को उजागर करता है जो भारत को बांग्लादेश जैसी परिस्थितियों से अलग और स्थिर बनाते हैं।


🚩राजनीतिक स्थिरता और चुनाव:


भारत में राजनीतिक असंतोष का समाधान चुनावों के माध्यम से होता है। भले ही लोकसभा चुनावों के लिए 5 साल का इंतजार करना पड़े, लेकिन राज्यों के चुनाव जनता को सत्ताधारी पार्टी को जवाब देने के कई मौके प्रदान करते हैं। अगर सत्ताधारी पार्टी राज्यों के चुनाव में हारती है, तो उसे जनता की भावनाओं के अनुरूप काम करना पड़ता है, अन्यथा सत्ता किसी अन्य पार्टी को मिल जाती है। उदाहरण के लिए, भाजपा ने केंद्र में 10 वर्षों तक सत्ता में रहते हुए भी बिहार और हिमाचल प्रदेश जैसे कई चुनाव हारे हैं, जो दर्शाता है कि भारतीय जनता अपनी राजनीतिक इच्छाओं को चुनावों के माध्यम से प्रभावी ढंग से व्यक्त करती है।


🚩विकास और आर्थिक विविधता:


भारत में विकास कार्य तीव्र गति से चल रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान, भारत ने 100 से अधिक देशों को वैक्सीन भेजी। देश में सड़क निर्माण के रिकॉर्ड स्थापित हुए हैं, रेल नेटवर्क को दुरुस्त किया जा रहा है, उज्ज्वला योजना के तहत महिलाओं को गैस सिलिंडर मिल रहे हैं, और शत-प्रतिशत गाँवों में बिजली पहुँची है। हर घर को नल से स्वच्छ जल मिल रहा है और करोड़ों घर बनाए जा रहे हैं। गरीबों को व्यवसाय के लिए ऋण दिए जा रहे हैं और देश के कई उच्च स्तर के शैक्षणिक संस्थान युवाओं को बड़े पदों पर भेज रहे हैं।


🚩इसके विपरीत, बांग्लादेश में इन विकासात्मक पहलों की कमी रही है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः टेक्सटाइल और गारमेंट उद्योग पर निर्भर है, जो कोरोना महामारी के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुआ। भारत की विविध अर्थव्यवस्था में कृषि, आईटी, निर्माण, और सेवा क्षेत्रों का योगदान है। उदाहरण के लिए, NCR, पुणे, हैदराबाद, और चेन्नई जैसे शहर सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए प्रमुख केंद्र बनते जा रहे हैं।


🚩सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता:


भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहाँ हर धर्म, पंथ, और मजहब के लोग खुलकर जीते हैं और अपनी परंपराओं का पालन करते हैं। भारत की यह विविधता उसे एकता में बांध कर रखती है और समय के साथ खुद को अनुकूलित करने की क्षमता प्रदान करती है। उदाहरण के तौर पर, भारत ने विविधता को आत्मसात किया है और विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच सामंजस्य बनाए रखा है।


🚩लोकतांत्रिक संस्थाएँ और स्वतंत्रता:


भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएँ, जैसे न्यायपालिका, चुनाव आयोग, और मीडिया, स्वतंत्र और स्वायत्त हैं। न्यायपालिका ने कई बार सरकार के खिलाफ फैसले सुनाए हैं, जो लोकतंत्र की एक प्रमुख पहचान है। उदाहरण के लिए, यहाँ की बहुमत वाली आबादी ने अपने आराध्य देवता के जन्मस्थान पर मंदिर के लिए 500 वर्षों का संघर्ष किया। चुनाव आयोग सुनिश्चित करता है कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से होते हैं। भारत में चुनाव एक उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं, चाहे वह पंचायत का हो या प्रधानमंत्री का, और इसमें हर कोई भाग लेता है।


🚩चुनौतियाँ और समाधान:


भारत की राजनीतिक और सुरक्षा एजेंसियाँ हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं। उदाहरण के लिए, किसान आंदोलन और जातीय संघर्षों के बावजूद, भारत की राजनीतिक स्थिरता बनी हुई है। 1980 के दशक में पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद हो या जम्मू कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद, भारतीय सुरक्षा बल इन समस्याओं से निपटने में सक्षम रहे हैं।


🚩वैश्विक संदर्भ:


भारत की स्थिति बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, और म्यांमार से अलग है। भारत कर्ज में डूबा हुआ नहीं है, महँगाई से परेशान नहीं है, और सेना द्वारा चुनी हुई सरकार को अपदस्थ नहीं किया जाता। बांग्लादेश के हालात और पाकिस्तान की समस्याएँ भारत के संदर्भ में बिलकुल अलग हैं। भारत की संस्कृति और इतिहास में अनुशासन की गहरी जड़ें हैं, जो उसे स्थिरता प्रदान करती हैं।


🚩जब 2011 में 'अरब स्प्रिंग' का प्रभाव विभिन्न देशों पर पड़ा, जैसे सीरिया, यमन, और लीबिया, भारत ने ऐसी अराजकता के बजाय स्थिरता को बनाए रखा। उदाहरण के लिए, सीरिया ISIS का गढ़ बन गया, यमन में हूती और सरकार के बीच संघर्ष जारी है, और मिस्र में राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को सेना द्वारा हटाया गया। भारत की राजनीति और सुरक्षा एजेंसियाँ ऐसे संकटों से निपटने में सक्षम हैं और वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले गिरोहों के खिलाफ भी सतर्क हैं।


🚩निष्कर्ष:


भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, मजबूत अर्थव्यवस्था, सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता, और स्वतंत्र संस्थाएँ इसे बांग्लादेश जैसी स्थिति से बचाती हैं। भारत की महान संस्कृति और विविधता उसे अद्वितीय बनाती है और सुनिश्चित करती है कि यह बांग्लादेश, पाकिस्तान, या अन्य देशों की तरह संकट में न पड़े।


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Tuesday, August 6, 2024

वक्फ बोर्ड: हिन्दू मंदिरों और गाँवों से लेकर फाइव स्टार होटलों तक जमीन हड़पने का षड्यंत्र

7 August 2024

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🚩वक्फ बोर्ड के माध्यम से भूमि अधिग्रहण की घटनाएं केवल कल्पना नहीं हैं। ऐसी खबरें अक्सर सुनने को मिलती हैं जहाँ वक्फ बोर्ड ने सार्वजनिक या निजी भूमि को वक्फ के रूप में पंजीकृत करने का दावा किया है। इसमें तमिलनाडु में एक संपूर्ण हिन्दू गाँव, सूरत में सरकारी इमारतें, बेंगलुरु में तथाकथित ईदगाह मैदान, हरियाणा में जठलाना गाँव, और हैदराबाद का एक पाँच सितारा होटल शामिल हैं।


🚩भूमि अधिग्रहण के सामान्य तरीके

🚩वक्फ बोर्ड के भूमि अधिग्रहण के तीन सामान्य तरीके हैं:


🚩कब्रिस्तान के रूप में दावा करना: किसी भूमि पर कब्रिस्तान का दावा करके उसे वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत करना।

मजार/दरगाह का निर्माण करना: सार्वजनिक या निजी भूमि पर मजार या दरगाह का निर्माण करना और फिर उसे वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित करना।

सार्वजनिक भूमि पर नमाज अदा करना: सार्वजनिक जमीनों पर नमाज अदा करना ताकि उसे वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत करने की संभावना बनाई जा सके।

🚩सामाजिक संघर्ष और सांप्रदायिक वैमनस्य

🚩इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि बिना उचित नियमन के कानून और इससे उत्पन्न भ्रष्ट तंत्र सामाजिक संघर्ष और सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देते हुए हिन्दुओं की सम्पत्तियों के खिलाफ एक सुनियोजित षड्यंत्र के रूप में कार्य कर रहे हैं। वक्फ बोर्ड का कानूनी अस्तित्व अत्यधिक विवादास्पद है। वक्फ की कानूनी संस्था और बोर्ड की नौकरशाही का अस्तित्व केवल इस्लामिक राजनीति के लिए एक गढ़ के रूप में समझा जा सकता है।


🚩धर्मनिरपेक्षता और कानूनी प्रणाली

🚩यह ध्यान देने योग्य है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में केवल एक तर्कसंगत कानूनी प्रणाली को लोकहित में काम करना चाहिए, न कि किसी विशेष समुदाय की पहचान को चिह्नित करने के लिए। वक्फ कानून वर्तमान में जिस स्थिति में है, वह सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरनाक है। यह निजी संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है और चरमपंथी राजनीति को प्रोत्साहित करता है।


🚩संविधान का उल्लंघन

वक्फ अधिनियम 1995 और वक्फ न्यायशास्त्र वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए समानता के अधिकार का स्पष्ट रूप से उल्लंघन करते हैं। यह अधिनियम एक समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक प्रतिष्ठानों को एक विशेष सुरक्षा प्रणाली प्रदान करता है, जो अन्य समुदायों के लिए अनुपलब्ध है।


🚩निष्कर्ष

वक्फ बोर्ड द्वारा भूमि अधिग्रहण का मुद्दा न केवल एक कानूनी समस्या है, बल्कि यह एक गंभीर सामाजिक और सांप्रदायिक चिंता भी है। इस संदर्भ में, यह आवश्यक है कि वक्फ कानून की समीक्षा की जाए और इसे सभी समुदायों के लिए समान और निष्पक्ष बनाया जाए। समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है।


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Monday, August 5, 2024

शिवलिंग के ऊपर बांधे जाने वाले जल के कलश को क्या कहते है, इसे कब और क्यों बांधते है?


6 August 2024

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🚩 कई बार शिवलिंग के ऊपर एक जल का कलश बंधा हुआ दिखाई देता है, जिसमें से बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है।


🚩ये दृश्य अक्सर गर्मी के दिनों में देखने को मिलता है। इस परंपरा से जुड़ी कई बातें है।


🚩 वैशाख मास में शिवलिंग के ऊपर एक जल से भरा कलश बांधने की परंपरा है। इस कलश से बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है। इसको गलंतिका कहा जाता है। गलंतिका का शाब्दिक अर्थ है जल पिलाने का करवा या बर्तन। 


🚩इस जल के कलश में नीचे की ओर एक छोटा सा छेद होता है जिसमें से एक-एक बूंद पानी शिवलिंग पर निरंतर गिरता रहता है। ये जल का कलश मिट्टी या किसी अन्य धातु का भी हो सकता है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि इस कलश का पानी खत्म न हो।


क्या है इस परंपरा से जुड़ी कथा?


🚩 धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन करने पर सबसे पहले कालकूट नामक भयंकर विष निकला, जिससे समग्र संसार में त्राहि-त्राहि मच गई।

 

🚩तब समस्त विश्व के कल्याण के लिए शिवजी ने उस कालकुट विष को अपने गले में धारण कर लिया। मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास में जब अत्याधिक गर्मी पड़ने लगती है तब कालकूट विष के कारण शिवजी के शरीर का तापमान में बढ़ने लगता है। उस तापमान को नियंत्रित रखने के लिए ही शिवलिंग पर गलंतिका बांधी जाती है। 

जिसमें से बूंद-बूंद टपकता जल, भगवान शिव को ठंडक प्रदान करता है।


🚩इसीसे शुरू हुई शिवजी को जल चढ़ाने की परंपरा?

शिवलिंग पर प्रतिदिन लोगों द्वारा जल चढ़ाया जाता है। इसके पीछे ही यही कारण है कि शिवजी के शरीर का तापमान सामान्य रहे।

गर्मी के दिनों तापमान अधिक रहता है इसलिए इस समय गलंतिका बांधी जाती है ताकि निरंतर रूप से शिवलिंग पर जल की धारा गिरती रहे।


🚩वैशाख मास में लगभग हर मंदिर में शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधी जाती है। 

इस परंपरा में ये बात ध्यान रखने वाली है तो गलंतिका में डाला जाने वाला जल पूरी तरह से शुद्ध हो। चूंकि ये जल शिवलिंग पर गिरता है, इसलिए इसका शुद्ध होना जरूरी है।


अत : सफाई और शुद्धता का ध्यान रखना जरूरी है।




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Sunday, August 4, 2024

सनातन धर्म के पर्व एवं त्योहर - आषाढ अमावस्या - दीप अमावस्या

 5 August 2024

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महाराष्ट्र में आषाढ़ अमावस्या को दीप अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन दीप पूजा की जाती है। दीप पूजा के दिन, लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते है और उसे सजाते है। फिर घर के सभी दीयों को साफ करते है और उन्हें सजाते है। मेज के चारों ओर रंगोली बनाकर दीयों को मेज पर रखते है और उन दियों की पूजा की जाती है। 



कई लोग उनको जलाते है और कई लोग सिर्फ पूजा करके उनको साल भर में एक दिन आराम देते है। फिर घर में मिष्ठान बनाकर उनको भोग लगाया जाता है।



तमसो मा ज्योतिर्गमय की तर्ज पर दियों का पूजन किया जाता है ताकि दीऐं हमे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएं।



हिन्दू धर्म में दिया जलाने का बहुत महत्व है चाहे वह कोई मांगलिक कार्य हो, पितरों का तर्पण हो या फिर किसीका देहांत, दियों का स्थान तो अग्रगणी है।
हर कार्य में दिए लगाने का उद्देश अलग अलग है।



इतना ही नहीं, सनातन संस्कृति में दीयों का बुझना,या उन्हें बुझाना अशुभ माना जाता है।



इसीलिए, जन्म दिवस पर पाश्चात्य अंधानुकरण करके दिए बुझाने की बजाए , हिन्दू संस्कृति के अनुसार उन्हें जलाना चाहिए ऐसा संत श्री आशारामजी बापू कहते है।



आज, पाश्चात्य अंधनुकरण और सांस्कृतिक पतन के कारण लोग दीप अमावस्या को गटारी अमावस्या कहते है और उस दिन जमकर अभक्ष्य भक्षण और मदिरा पान करते है जो की सर्वथा अनुचित है।



आप को बता दे की हिन्दू धर्म में ऐसा कोई भी त्योहार नहीं जिस दिन,अभक्ष्य भक्षण और मदिरा पान की अनुमति दी गई हो बल्कि यह असभ्य मनुष्यों द्वारा जानबूझकर विकृति पैदा की गई है ताकि हम हमारी दिव्य संस्कृति से दूर चले जाएं।



इसीलिए, प्रत्येक हिन्दू को सजग होने की आवश्यकता है ताकि हम हमारी प्राचीन परंपराएं और त्योहार अबाधित रख सके।



सभी के जीवन में ज्ञान का प्रकाश हो,स्वास्थ्य,आनंद और यश हो, यहीं प्रार्थना करते हुए सभी दियों को मेरा शत-शत नमन 🙏



दीपज्योति परब्रह्म दीपज्योति जनार्दन ।
दीपो हरतु में पापम,संध्या दीपो नमोस्तुते  ।।



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