Wednesday, August 14, 2024

स्वतंत्रता दिवस: इतिहास और महत्व

 15 August 2024


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🚩स्वतंत्रता दिवस: इतिहास और महत्व:


15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में अंकित है। यह वह दिन था जब भारत के लोगों ने पहली बार एक आजाद देश में सांस लेना शुरू किया। अंग्रेजों की 200 सालों की गुलामी के बाद, 15 अगस्त का दिन एक ‘स्वर्णिम दिन’ के रूप में देश के लिए प्रसिद्ध हो गया। आज, हमारे देश की आजादी को 77 वर्ष पूरे हो गए हैं।


🚩आजादी का सफर


अंग्रेजों के अत्याचार और दो सौ वर्ष की गुलामी के पश्चात, भारतवासियों के मन में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी। नेताजी सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अनेक वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलाई। इन वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देशवासियों को अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त कराया। वहीं, सरदार पटेल और गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए बिना हथियारों की लड़ाई लड़ी। कई सत्याग्रह आंदोलनों और लाठियां खाने और जेल जाने के बाद अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। भारतीय जनता की एकजुटता और संघर्ष ने आखिरकार उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।


🚩स्वतंत्रता दिवस समारोह


स्वतंत्रता दिवस के इस ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए, हम सन् 1947 से आज तक इस दिन को बड़े उत्साह और प्रसन्नता के साथ मनाते आ रहे हैं। इस दिन, हमारे प्रधानमंत्री राजधानी दिल्ली के लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। इसके साथ ही शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और राष्ट्र के नाम संदेश दिया जाता है। विद्यालयों, महाविद्यालयों, सरकारी कार्यालयों, खेल परिसरों, स्‍काउट शिविरों पर भी भारतीय ध्‍वज फहराया जाता है। राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान गाए जाते हैं और स्वतंत्रता संग्राम के सभी महानायकों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस अवसर पर मिठाइयां बांटी जाती हैं और देश के प्रति गर्व का माहौल होता है।


🚩राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान


स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रगीत "वंदे मातरम्" और राष्ट्रगान "जन गण मन" का गान किया जाता है। "वंदे मातरम्" का लेखन बंकिमचंद्र चटर्जी ने किया था, जो मातृभूमि के प्रति प्रेम और भक्ति को दर्शाता है। वहीं, "जन गण मन" को रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा, जो भारत की विविधता और एकता को सलाम करता है। इन दोनों गीतों का स्वतंत्रता दिवस समारोह में विशेष महत्व है, और इनका गान हमें देश की अखंडता और संप्रभुता की याद दिलाता है।


🚩भारतीय झंडे का इतिहास


भारतीय तिरंगे का विकास एक रोचक यात्रा रही है। प्रथम चित्रित ध्वज 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया। पिंगली वेंकैया ने 1916 से 1921 तक दुनियाभर के देशों के झंडों का अध्ययन कर भारतीय ध्वज के लिए 30 डिज़ाइन पेश किए। 1921 में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बेजवाड़ा सत्र में पिंगली वेंकय्या ने दो रंगों, लाल और हरे, से बना एक झंडा प्रस्तुत किया। महात्मा गांधी की सलाह पर इसमें सफेद पट्टी और चरखा जोड़ा गया।


22 जुलाई 1947 को तिरंगे को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। 15 अगस्त 1947 को, पंडित बीपी दुआ ने लाल किले पर तिरंगा फहराया, जो भारत की आज़ादी का प्रतीक था।


🚩स्वतंत्रता दिवस: एक राष्ट्रीय गौरव


स्वतंत्रता दिवस का महत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1947 में था। यह दिन हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और संघर्ष की याद दिलाता है और हमें एकजुट होकर देश के विकास और उन्नति की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। इस दिन हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हुए देश के भविष्य के लिए अपने संकल्पों को दोहराते हैं।


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Tuesday, August 13, 2024

अकबर ने संत तुलसीदास जी से माफी क्यों मांगी?

 14 August 2024

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🚩यह घटना 1600 ईस्वी की है, जब मुगल सम्राट अकबर और संत तुलसीदास जी का समय था। तुलसीदास जी उस समय रामचरितमानस की रचना कर चुके थे, जो पूरे देश में श्रीराम के भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध हो चुकी थी। एक बार तुलसीदास जी मथुरा की यात्रा पर निकले और रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला। जब आगरा के लोगों को उनके आगमन की सूचना मिली, तो संत तुलसीदास जी के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ जुटने लगी। यह सुनकर बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा कि तुलसीदास कौन हैं।


🚩बीरबल ने बादशाह अकबर को बताया कि तुलसीदास जी रामचरितमानस के रचयिता और एक महान रामभक्त हैं। बीरबल ने यह भी कहा कि वह खुद भी तुलसीदास जी के दर्शन करके आए हैं। यह सुनकर अकबर ने भी तुलसीदास जी से मिलने की इच्छा जताई और उन्हें लालकिले में आने का निमंत्रण दिया। जब यह संदेश तुलसीदास जी तक पहुँचा, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि वह केवल भगवान श्रीराम के भक्त हैं और उन्हें बादशाह या लालकिले से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने लालकिले में जाने से साफ इनकार कर दिया। यह सुनकर अकबर क्रोधित हो गए और उन्होंने आदेश दिया कि तुलसीदास जी को जंजीरों में जकड़कर लालकिले लाया जाए।


🚩जब तुलसीदास जी को जंजीरों में जकड़कर लालकिले लाया गया, तो अकबर ने उनसे कोई चमत्कार दिखाने को कहा। तुलसीदास जी ने विनम्रता से कहा कि वह सिर्फ भगवान श्रीराम के भक्त हैं, न कि कोई चमत्कारी व्यक्ति। यह सुनकर अकबर आगबबूला हो गए और उन्होंने तुलसीदास जी को काल कोठरी में डालने का आदेश दिया। अगले दिन, आगरा के लालकिले पर लाखों बंदरों ने हमला कर दिया और पूरा किला तहस-नहस कर दिया। किले में त्राहि-त्राहि मच गई। तब अकबर ने बीरबल से पूछा कि यह क्या हो रहा है। बीरबल ने कहा कि हुजूर, यह वही चमत्कार है जो आप देखना चाहते थे। अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी को काल कोठरी से निकलवाया और उनकी जंजीरें खोल दीं।


🚩तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा कि उन्हें बिना किसी अपराध के सजा मिली है। काल कोठरी में रहते हुए उन्होंने भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया। उस दौरान, वह रोते-रोते अपने हाथों से कुछ लिख रहे थे। यह 40 चौपाई हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। कारागार से छूटने के बाद तुलसीदास जी ने कहा कि जैसे हनुमान जी ने उन्हें कारागार के कष्टों से छुड़ाया, वैसे ही जो भी व्यक्ति कष्ट या संकट में होगा और इस चौपाई का पाठ करेगा, उसके सारे संकट दूर हो जाएंगे। इस रचना को हनुमान चालीसा के नाम से जाना जाता है।


🚩अकबर इस घटना से बहुत लज्जित हुआ और उन्होंने तुलसीदास जी से माफी मांगी। पूरी इज्जत और सुरक्षा के साथ उन्हें मथुरा भेजा गया। आज भी हनुमान चालीसा का पाठ हर जगह होता है और हनुमान जी की कृपा से लोगों के संकट दूर होते हैं। इसलिए हनुमान जी को “संकट मोचन” भी कहा जाता है।


🚩हनुमान जी का पराक्रम अवर्णनीय है। वह भगवान शंकर के अवतार माने जाते हैं। भगवान शिव ने राक्षसों का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए हनुमान जी का अवतार धारण किया था। पृथ्वी पर सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, जिनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी आज भी पृथ्वी पर विचरण करते हैं।


🚩पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना सभी सनातनी लोग करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं। परंतु यह कब लिखा गया और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई, यह जानकारी बहुत कम लोगों को होगी। यह कथा दर्शाती है कि हनुमान जी, जो भगवान शंकर के अवतार हैं, आज भी अपने भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं।


🚩आज के आधुनिक युग में कुछ लोग हनुमान जी को केवल एक बंदर के रूप में देखते हैं, जबकि हनुमान जी भगवान शिव के अवतार हैं और उनके प्रति श्रद्धा के कारण ही उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। उनके पराक्रम का वर्णन करना कठिन है, और वह आज भी पृथ्वी पर अपने भक्तों की रक्षा के लिए विचरण करते हैं।


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Monday, August 12, 2024

अच्छा स्वास्थ्य क्या है?

 13 August 2024


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🚩अच्छे स्वास्थ्य के लिए कारक

स्वास्थ्य का संरक्षण


 🚩 स्वास्थ्य का अर्थ है शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तंदुरुस्ती की पूर्ण स्थिति। यह केवल रोगों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि एक संपूर्ण जीवन जीने की शक्ति है। स्वास्थ्य सेवा का मुख्य उद्देश्य लोगों को जीवन के इन महत्वपूर्ण पहलुओं में स्वस्थ बनाए रखना है।


🚩रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC) के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वास्थ्य देखभाल की लागत 2017 में 3.5 ट्रिलियन डॉलर थी। इसके बावजूद, अमेरिका में जीवन प्रत्याशा अन्य विकसित देशों की तुलना में कम है। इसका मुख्य कारण स्वास्थ्य सेवा की पहुंच में कमी और जीवनशैली से जुड़े निर्णय हैं।


🚩तनाव से निपटने और लंबी, अधिक सक्रिय ज़िंदगी जीने के लिए अच्छा स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है। इस लेख में, हम यह जानेंगे कि अच्छा स्वास्थ्य क्या है, इसके लिए किन बातों पर ध्यान देना चाहिए, और इसे कैसे बनाए रखा जा सकता है।


 🚩स्वास्थ्य क्या है?


🚩1948 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहा कि "स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति है, न कि केवल बीमारी या दुर्बलता की अनुपस्थिति।" 


🚩1986 में, WHO ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि "स्वास्थ्य रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए एक संसाधन है, जीने का उद्देश्य नहीं। यह एक सकारात्मक अवधारणा है जो सामाजिक और व्यक्तिगत संसाधनों के साथ-साथ शारीरिक क्षमताओं पर भी ज़ोर देती है।" 


🚩इसका तात्पर्य है कि स्वास्थ्य एक ऐसा साधन है जो समाज में व्यक्ति के कामकाज को समर्थ बनाता है। एक स्वस्थ जीवनशैली हमें अर्थपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने का आधार देती है।


🚩2009 में, शोधकर्ताओं ने 'द लैंसेट' में स्वास्थ्य को इस प्रकार परिभाषित किया कि यह शरीर की नई खतरों और दुर्बलताओं के अनुकूल ढलने की क्षमता है। इस परिभाषा का आधार यह है कि पिछले कुछ दशकों में आधुनिक विज्ञान ने रोगों के बारे में हमारी समझ को बढ़ाया है, उनके रोकथाम के नए तरीके खोजे हैं, और यह भी स्वीकार किया है कि रोगविज्ञान का पूरी तरह से अभाव संभव नहीं है।


 🚩स्वास्थ्य के प्रकार


 🚩स्वास्थ्य के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सबसे अधिक चर्चित हैं। 


🚩इसके अलावा, आध्यात्मिक, भावनात्मक, और वित्तीय स्वास्थ्य भी समग्र स्वास्थ्य में योगदान करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन सभी प्रकार के स्वास्थ्यों का आपस में गहरा संबंध है और ये मिलकर व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। 


🚩उदाहरण के लिए, अच्छा वित्तीय स्वास्थ्य होने पर व्यक्ति वित्तीय समस्याओं की चिंता से मुक्त रह सकता है और अपने स्वास्थ्य के लिए आवश्यक भोजन और देखभाल का प्रबंध कर सकता है। अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य वाले लोग जीवन में शांति और उद्देश्य की भावना महसूस करते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।


 🚩स्वास्थ्य समानता संसाधन


 🚩स्वास्थ्य में सामाजिक असमानताओं को समझने और उन्हें दूर करने के लिए हम सब मिलकर प्रयास कर सकते हैं। इस दिशा में जागरूकता और समर्पण महत्वपूर्ण हैं।


🚩शारीरिक स्वास्थ्य


🚩जिस व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा होता है, उसकी शारीरिक कार्यप्रणाली और प्रक्रियाएँ अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करती हैं। नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, और उचित नींद शारीरिक स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण कारक हैं।


🚩आवास और स्वास्थ्य


🚩आवास का स्वास्थ्य और खुशहाली पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। खराब आवास परिस्थितियां लंबे समय तक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं। इसलिए, स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित आवास आवश्यक है।


🚩व्यायाम और स्वास्थ्य


🚩व्यायाम, जिसमें शारीरिक गतिविधि, शरीर को हिलाना-डुलाना, और हृदय गति को बढ़ाना शामिल है, स्वास्थ्य की देखभाल और सुधार के लिए आवश्यक है। यह न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है, बल्कि मानसिक ताजगी और संतुलन भी प्रदान करता है।


🚩वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य


🚩वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। इसके कारण श्वसन, हृदय, और अन्य शारीरिक प्रणालियों में समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। स्वच्छ वातावरण में रहना और वायु प्रदूषण से बचाव करना, अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।


🚩स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहकर, हम एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।


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Sunday, August 11, 2024

बांग्लादेश में चुन-चुनकर हो रही हिन्दूओं की हत्या, वामपंथी मीडिया छुपाने की कर रही है कोशिश


12 अगस्त 2024  

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🚩 बांग्लादेश में हो रही सरकार विरोधी हिंसा को हिन्दू विरोधी हिंसा में बदल दिया गया है। इस हिन्दू विरोधी हिंसा में मंदिर तोड़े जा रहे हैं, हिन्दुओं को सरेआम मारा जा रहा है। हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है और इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ उनके घरों को लूट रही है। इन सबके बीच, इस्लामी हिंसा पर पर्दा डालने और उसे सही ठहराने के लिए देसी-विदेशी मीडिया आगे आ गया है।


🚩 बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा:


बांग्लादेश से हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा की कहानियाँ लगातार सामने आ रही हैं। बांग्लादेश के पिरोजपुर जिले में हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है। इस्लामी भीड़ ने उनके गहने भी लूट लिए। इसकी कहानी खुद इन महिलाओं ने सुनाई है। एक महिला ने बताया, “रात में वो लोग आए। उन्होंने हमारे घरों में तोड़फोड़ की और सब कुछ लूट लिया। हम इस दौरान छिप गए थे। उन्होंने मेरे साले की पत्नी को पकड़ लिया और उसे दूसरे कमरे में ले गए। उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया। बाद में, हमें वह मिली।”


🚩 हिन्दू महिलाओं के अलावा मंदिर भी निशाने पर हैं। बांग्लादेश के खुलना में एक हिन्दू मंदिर को इस्लामी कट्टरपंथियों ने आग लगा दी। इसके बाद यहाँ रखी भगवान की मूर्तियाँ तोड़ दीं। मंदिर में आग लगने से काफी नुकसान हुआ। खुलना में ही एक काली मंदिर को भी नुकसान पहुँचाया गया। देश के अलग-अलग हिस्सों में छोटे-छोटे मंदिर भी निशाने पर आए। कई जगह मूर्तियों को भी तोड़ा गया, आग लगाई गई या फिर पूरे मंदिर को नष्ट करने का प्रयास हुआ।


🚩 इस्लामी कट्टरपंथी हिन्दुओं को चुन-चुनकर मार रहे हैं। हसीना सरकार में कर्मचारी रहे हिन्दुओं को इस्लामी कट्टरपंथी सार्वजनिक रूप से मार रहे हैं। ऐसे ही, एक हिन्दू पुलिस अधिकारी की नृशंस तरीके से कट्टरपंथियों ने हत्या की। पुलिस अधिकारी संतोष साहा के क्षत-विक्षत शव की तस्वीर सामने आई है। एक हिन्दू पत्रकार और एक पार्षद की भी बांग्लादेश में हत्या की गई है।


🚩 हिन्दू हिंसा की चपेट में, मीडिया प्रोपेगेंडा फैलाने में जुटा:


बांग्लादेश में हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार, मंदिरों के टूटने और सार्वजनिक हत्याओं के बीच मीडिया इन सब पर पर्दा डालने में जुट गया है। हमेशा भारत और हिन्दुओं के विरोध में खड़ा रहने वाला मीडिया हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा को जायज़ ठहरा रहा है। इसके लिए बड़े-बड़े कॉलम लिखे जा रहे हैं। अमेरिकी समाचार पत्र न्यूयॉर्क टाइम्स जहाँ एक ओर हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा को मुस्लिमों का बदला बता रहा है, वहीं भारतीय वामपंथी मीडिया पोर्टल स्क्रॉल बांग्लादेशी हिन्दुओं के ऊपर हो रही हिंसा का दोष भारत के हिन्दुओं पर डालने में जुट गया है।


🚩 न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया बदला, बाद में बदली हेडलाइन:


अमेरिकी वामपंथी मीडिया न्यूयॉर्क टाइम्स ने बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को बदले के कारण हुए हमले बताया। न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि पहले हिन्दुओं ने इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ अन्याय किया था, जिसका अब बदला लिया जा रहा है। उसने अपनी खबर की हेडलाइन में यह बात लिखी। न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, “प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर बदले की कार्रवाई।”


इस खबर में न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि हिन्दुओं पर हमला इसलिए नहीं हो रहा क्योंकि हमला करने वाले कट्टरपंथी इस्लामी हैं, बल्कि उन पर हमला इसलिए हो रहा है क्योंकि वह शेख हसीना के समर्थक के तौर पर देखे जाते हैं।


🚩 यानि न्यूयॉर्क टाइम्स यह कहना चाहता है कि हिन्दुओं पर हमले उनके धर्म के कारण नहीं बल्कि उनके राजनीतिक समर्थन के कारण हो रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के इस हेडलाइन को लेकर सोशल मीडिया पर आक्रोश व्यक्त किया गया।


🚩 सोशल मीडिया साइट एक्स (पहले ट्विटर) पर अभिनव अग्रवाल ने लिखा, “यदि किसी नरसंहार को छुपाना हो, नरसंहार का बचाव करना हो, बच्चों का यौन शोषण करने वालों को बचाना हो, तो कुख्यात न्यूयॉर्क टाइम्स पर आँख बंद करके भरोसा कर लीजिए।”


🚩 X यूजर बाला ने भी इसको लेकर गुस्सा जताया। उन्होंने लिखा, “न्यूयॉर्क टाइम्स ने बांग्लादेशी हिन्दूओं के नरसंहार को ‘बदले का हमला’ बताया है। NYT हिन्दूओं की हत्याओं को शेख हसीना के समर्थकों के खिलाफ़ हमले बताकर उन्हें दबाने की कोशिश कर रहा है।”


न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस विरोध के बाद यह हेडलाइन चुपके से बदल दी और बदले की बात हटा दी। न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसके बाद इस हेडलाइन में लिखा, ”प्रधानमंत्री के जाने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले।” जहाँ हेडलाइन बदल गई है, इसके अंदर के तर्क अब भी हिन्दू विरोधी ही हैं।


🚩 स्क्रॉल ने हिन्दुओं पर हमले को बताया उनकी ही गलती:


जहाँ एक ओर न्यूयॉर्क टाइम्स ने हिन्दुओं पर हमले को राजनीतिक बदला सिद्ध करने की कोशिश की, तो वहीं भारतीय वामपंथी मीडिया पोर्टल स्क्रॉल ने इस्लामी कट्टरपंथियों की हिंसा को सही ठहराने की कोशिश की। स्क्रॉल ने एक लेख में इस हिंसा का जिम्मेदार भारत के हिन्दुओं को बताने की कोशिश की। स्क्रॉल में गुरुवार (8 अगस्त, 2024) को नीलाद्रि चटर्जी, मुहम्मद आसिफुल बसर और एरिल्ड एनजेल्सन ने यह लेख लिखा है।


🚩 इस लेख में इन्होंने लिखा, “सत्ता सफलतापूर्वक उखाड़ फेंकने के बाद भी, तानाशाह अवामी लीग सरकार के खिलाफ़ गुस्सा हिंसक घटनाओं के रूप में बाहर निकल रहा है। यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है, क्योंकि किसी भी विद्रोह के बाद किसी न किसी तरह की हिंसा होती है, बांग्लादेश कोई अपवाद नहीं है।” स्क्रॉल ने यह लिखकर स्पष्ट कर दिया कि हर सत्ता के पलटने के बाद हिंसा होती ही है, और वह हिंसा को असामान्य नहीं मानता।


हिंसा को सही ठहराने के बाद स्क्रॉल ने इसका दोष भारतीय हिन्दुओं पर मढ़ा। स्क्रॉल ने दावा किया कि भारतीय मीडिया में मौजूद दक्षिणपंथी बांग्लादेश में हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा की खबरें दिखाकर स्थिति को बिगाड़ रहे हैं। यानी जो हिंसा इस्लामी कट्टरपंथी और जमात के लोग कर रहे हैं, उसके लिए भी हिन्दू जिम्मेदार हैं।


जब इतने से भी स्क्रॉल का मन नहीं भरा तो उसने यह भी बताया कि कैसे कट्टरपंथी अच्छे लोग हैं और उनकी गलत तस्वीर भारत में पेश की जा रही है। स्क्रॉल ने यहाँ मंदिरों के बाहर कथित तौर पर मानव श्रृंखला बनानेवाले मुस्लिमों का उदाहरण दिया।


कुल मिलाकर स्क्रॉल यह कहना चाहता है कि हिंसा होती ही है और बांग्लादेश में हो रही है। हिंसा कोई अलग चीज नहीं। दूसरा उसने हिन्दुओं पर हमले को धार्मिक आधार पर न बताकर यह सिद्ध करना चाहा कि यह हमले आवामी लीग का समर्थक होने को लेकर हो रहे हैं। इसके बाद उसने यह भी बता डाला कि हिन्दुओं पर हमले इसलिए हो रहे हैं क्योंकि दंगाई लूट करना चाहते हैं।


🚩 बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे हमलों पर लीपापोती करने और उन्हें ही अपराधी सिद्ध करने देने की यह बात कोई नई नहीं है। इससे पहले भी कई बार ऐसा ही हो चुका है। वामपंथी मीडिया ने इससे पहले 2023 में हरियाणा के नूंह में हिन्दू यात्रा पर मुस्लिमों के हमले का दोष भी हिन्दुओं पर मढ़ दिया था। वामपंथी मीडिया ने बताया था कि मुस्लिमों ने हमला इसलिए किया क्योंकि हिन्दू यहाँ मंदिर में जल चढ़ाने आए थे, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था, क्योंकि यह एक ‘मुस्लिम एरिया’ था।


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Saturday, August 10, 2024

मूल निवासी दिवस के नाम पर कौन कर रहा है छलावा?

 11 August 2024

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🚩 मूल निवासी दिवस के पीछे का षड्यंत्र  

अगस्त की 9 तारीख को मूल निवासी दिवस के नाम पर एक नया भ्रमजाल बुना जा रहा है। वामपंथी और जेहादी ताकतों द्वारा फैलाए जा रहे इस भ्रमजाल का मुख्य उद्देश्य हिन्दुत्व को कमजोर करना और समाज में विभाजन पैदा करना है।


🚩 वैदिक इतिहास की अनदेखी  

सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए प्रश्न के जवाब में, राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने स्पष्ट किया कि स्कूली किताबों में वैदिक इतिहास का अध्याय जोड़ने की कोई योजना नहीं है। एनसीईआरटी ने बताया कि 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तैयार किया गया था, और 2007 में इतिहास की नई किताबें शामिल की गईं, जिसमें वैदिक इतिहास को हटा दिया गया। अब वैदिक इतिहास पर कोई प्रस्ताव नहीं है।


🚩 वैदिक ज्ञान की उपेक्षा  

विशेषज्ञ मानते हैं कि एनसीईआरटी ने वामपंथी दबाव में आकर वैदिक विज्ञान को पाठ्यक्रम से हटा दिया। छात्रों को वेदों और वैदिक गणित का महत्व जानने का हक है, लेकिन एनसीईआरटी की किताबों में आर्य सभ्यता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती। सरकार ने ऋगवेद को यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल कराया, लेकिन एनसीईआरटी की किताबों में इसका कोई जिक्र नहीं है।


🚩 आर्य और द्रविड़ का मिथक  

वामपंथी इतिहासकारों ने दावा किया कि भारतीय आर्य बाहरी थे, लेकिन यह दावा किस आधार पर किया गया? आर्यों की उत्पत्ति पर कोई सटीक जानकारी नहीं दी गई है। 


🚩 द्रविड़ सभ्यता का सवाल  

इतिहासकारों ने अंग्रेजों द्वारा लिखे गए इतिहास के आधार पर आर्यों और द्रविड़ों के बीच विभाजन किया। यह सोचने की बात है कि सिंधु घाटी से दक्षिण भारत जाकर द्रविड़ अपनी सभ्यता और ज्ञान भूल गए। 


🚩 नेहरू और भारतीय शिक्षा का राजनीतिकरण  

पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 'भारत की खोज' पुस्तक में भारत को एक खोए हुए बच्चे के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आजाद को शिक्षा मंत्री बनाया, जिन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। यह विचारधारा आज भी भारतीय शिक्षा व्यवस्था में समाई हुई है।


🚩 मूल निवासी दिवस का असली उद्देश्य  

वामपंथी इतिहासकारों ने भ्रम फैलाया कि भारतीय लोग मूल निवासी नहीं हैं। इसके माध्यम से भारतीय समाज को विभाजित किया जा रहा है और वैदिक इतिहास को स्कूली पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है।


🚩 अंतिम विचार  

मूल निवासी दिवस के नाम पर फैलाए जा रहे इस छलावे का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज को विभाजित करना और हिन्दुत्व को कमजोर करना है। इस अभियान का मुकाबला करना आवश्यक है ताकि भारत के प्राचीन गौरव और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की जा सके।


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Friday, August 9, 2024

नाग पंचमी: एक सांस्कृतिक, धार्मिक, और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से विश्लेषण

 10 August 2024

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🚩भारत के समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में नाग पंचमी का एक विशेष स्थान है। यह पर्व नाग देवता की पूजा के लिए समर्पित है, जिन्हें सनातन धर्म में जीवन रक्षक और आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इस वर्ष नाग पंचमी 9 अगस्त को पूरे भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जा रही है।                                                   

🚩पौराणिक कथाओं से जुड़ी नाग पंचमी की शुरुआत                                                                                                                                                                        🚩1- नाग पंचमी की पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों में अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने नागों से बदला लेने और उनके वंश के विनाश के लिए एक यज्ञ किया। वह नागों से अपने पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सांप के काटने की वजह होने का बदला लेना चाहते थे।उनके इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था और नागों की रक्षा की थी। यह तिथि सावन की पंचमी मानी जाती है। सांपों को शीतलता देने के लिए उन्होंने उनके शरीर पर दूध की धार डाली थी। तब नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी उनकी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा। तभी से श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है।  

                  

🚩2- प्राचीन कथा के अनुसार, एक सेठजी के सात पुत्र थे और सबसे छोटे पुत्र की पत्नी एक दयालु और सुशील महिला थी, परंतु उसके पास कोई भाई नहीं था। एक दिन, जब बड़ी बहू ने मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को भेजा, छोटी बहू ने एक सांप की जान बचाई। सांप ने इसे देखकर उसे अपनी बहन मान लिया और मनुष्य का रूप धारण कर उसकी मदद की। छोटी बहू को समृद्धि और आभूषण प्राप्त हुए, जिससे बड़ी बहू ईर्ष्या करने लगी। बड़ी बहू ने और धन की मांग की, और सांप ने उसकी सभी इच्छाएँ पूरी कीं। जब रानी ने छोटी बहू के हार को प्राप्त करने की इच्छा जताई, सांप ने उसे सजा दी। रानी हार पहनते ही सांप में बदल गई। इसके बाद, राजा ने छोटी बहू को सम्मानित किया और सांप देवता की कृपा के लिए आभार व्यक्त किया।


🚩3- एक अन्य महत्वपूर्ण पौराणिक कथा के अनुसार, अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक नाग यज्ञ किया। वह नागों से बदला लेना चाहते थे क्योंकि उनके पिता की मृत्यु तक्षक नामक सांप के काटने से हुई थी। जब यज्ञ के कारण नागों का विनाश होने लगा, तो ऋषि आस्तिक ने यज्ञ को रोक दिया और नागों की रक्षा की। इस घटना के बाद नाग पंचमी का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।          

                                                                                                                                                                    🚩4-समुद्र मंथन कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, नाग देवताओं का उद्भव समुद्र मंथन के समय हुआ था। इस घटना में वासुकि नाग को मंदराचल पर्वत के चारों ओर लपेटा गया था, जो मंथन के लिए उपयोग किया गया था। वासुकि नाग के महत्व को देखते हुए उनकी पूजा नाग पंचमी के दिन की जाती है।


🚩5- कालिया नाग की कथा:

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में थे, तो उन्होंने यमुना नदी में कालिया नाग को हराया था। कालिया नाग ने यमुना के जल को विषैला बना दिया था, जिससे वहां का जल पीना मुश्किल हो गया था। श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर उसके सिर पर नृत्य किया और उसे नदी से बाहर निकाल दिया। इस कथा के आधार पर, नाग पंचमी के दिन श्रीकृष्ण और नागों की पूजा का विशेष महत्व है।


🚩शेषनाग का महत्त्व:

शेषनाग, जो कि अनंत नाग के नाम से भी जाने जाते हैं, विष्णु भगवान के शयन स्थान के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे समस्त नागों के राजा माने जाते हैं और उन्हें सनातन धर्म में अत्यधिक पूजनीय माना जाता है। नाग पंचमी के दिन शेषनाग की भी विशेष पूजा होती है।           

                                                                                                                                                                      🚩नाग पंचमी की पूजा विधि और परंपराएँ:

🚩पूजा विधि:

नाग पंचमी के दिन घरों में नाग देवता की मिट्टी, लकड़ी या चांदी की मूर्ति बनाई जाती है। लोग नाग देवता की मूर्ति को स्नान कराकर उन्हें दूध, दूब घास, हल्दी, चावल, और फूल अर्पित करके आरती करते हैं।

🚩दूध का महत्व:

इस दिन नागों को दूध पिलाने की प्रथा है। इस पूजा से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

🚩चित्रांकन:

कुछ क्षेत्रों में लोग अपने घरों की दीवारों पर या दरवाजे के ऊपर नाग देवता की आकृतियाँ बनाते हैं और उन्हें हल्दी, कुमकुम और दूध चढ़ाते हैं।

🚩व्रत और उपवास:

नाग पंचमी के दिन कुछ लोग उपवास रखते हैं।

🚩सर्पदंश से रक्षा:

नाग पंचमी की पूजा करने से सर्पदंश का भय दूर होता है और नाग देवता की कृपा से व्यक्ति सुरक्षित रहता है। जो जीवन में शांति और सुरक्षा प्रदान करता है।

🚩नाग पंचमी का सामाजिक और पर्यावरणीय महत्त्व:

🚩पर्यावरणीय संतुलन:

नाग पंचमी का त्योहार प्रकृति और पर्यावरण के साथ हमारे संबंध को भी दर्शाता है। नागों की पूजा से यह संदेश मिलता है कि हमें पर्यावरण और वन्यजीवों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वे हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

🚩कृषि का संबध                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   नाग पंचमी का त्योहार कृषि से भी जुड़ा है। किसान इस दिन नाग देवता की पूजा करके अच्छी फसल और बारिश की प्रार्थना करते हैं। यह माना जाता है कि नागों की पूजा से खेतों में कीड़े-मकोड़ों का आतंक समाप्त हो जाता है और फसल अच्छी होती है।

🚩निष्कर्ष: नाग पंचमी हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है, जो नाग देवताओं की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार श्रावण मास की पंचमी तिथि को, जुलाई या अगस्त में, विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व प्रकृति और वन्यजीवों के प्रति श्रद्धा और जिम्मेदारी की याद दिलाता है, और सुख-समृद्धि की प्रार्थना का अवसर भी है।

                                                                                                                                                                      🔺 Follow on


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Thursday, August 8, 2024

वर्षा ऋतु (बरसात) में भारतीय संस्कृति के अनुसार पकोड़े खाने के पीछे क्या है रहस्य?


9 August 2024

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🚩बरसात का मौसम और पकोड़े खाने की परंपरा: एक आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण


🚩भारतीय संस्कृति में बरसात का मौसम आते ही पकोड़े खाने की परंपरा को लेकर विशेष उत्साह देखने को मिलता है। यह परंपरा केवल स्वाद और आनंद के लिए नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक आधार है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है।


🚩आयुर्वेद और वर्षा ऋतु में शरीर का संतुलन:

आयुर्वेद, जो कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान है, ऋतु के अनुसार आहार और जीवनशैली में बदलाव की सलाह देता है। वर्षा ऋतु में वात दोष का प्रकोप बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में गैस, अपच, और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। वात दोष को संतुलित करने के लिए, शुद्ध तेल में तली हुई चीज़ों का सेवन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। तेल की विशेषता यह है कि यह वात दोष को नियंत्रित कर शरीर में आवश्यक ऊष्मा और संतुलन बनाए रखता है, जो इस मौसम में विशेष रूप से आवश्यक होता है।


🚩पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का मेल:

पकोड़े, जो शुद्ध तेल में तले जाते हैं, वात को शांत करने के साथ-साथ शरीर को ऊर्जा और संतोष भी प्रदान करते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात को मानता है कि ठंड और नमी के मौसम में शरीर को अधिक ऊर्जा और ऊष्मा की आवश्यकता होती है, जो तले हुए खाद्य पदार्थों से मिल सकती है। इसके अलावा, तले हुए व्यंजनों में पाए जाने वाले मसाले, जैसे कि हल्दी, मिर्च, और अजवाइन, न केवल स्वाद को बढ़ाते हैं, बल्कि इनकी एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी शरीर को बीमारियों से बचाने में सहायक होते हैं।


🚩सावन और आहार के नियम:

सावन, जो कि वर्षा ऋतु का मुख्य समय होता है, में कुछ विशेष आहार नियमों का पालन किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस समय दही, छाछ, दूध, और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन वर्जित है, क्योंकि ये सभी वात को बढ़ाने वाले होते हैं। इसके स्थान पर, ये पदार्थ भगवान शिव को अर्पित किए जाते हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से हर प्रकार के विष को ग्रहण करने वाले माने जाते हैं। यह धार्मिक अनुष्ठान न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है, जो शरीर के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है।


🚩शुद्ध तेल का चयन: क्यों यह महत्वपूर्ण है?

तेल का शुद्ध होना इस परंपरा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रिफाइंड तेल के विपरीत, शुद्ध तेल में उसके प्राकृतिक गुण और तत्व सुरक्षित रहते हैं, जो वात दोष को संतुलित करने में सहायक होते हैं। रिफाइंड तेल का उपयोग न केवल तेल के प्राकृतिक गुणों को समाप्त कर देता है, बल्कि यह शरीर में अवांछनीय तत्वों का भी प्रवेश कराता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसीलिए, शुद्ध तेल में बने व्यंजनों का सेवन वर्षा ऋतु में विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।


🚩अतिरिक्त आयुर्वेदिक सुझाव:

वर्षा ऋतु में ताजे फल और हरी सब्जियों का सेवन भी सीमित करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इस समय मिट्टी और पानी की अधिक नमी के कारण इनमें कीटाणुओं का खतरा बढ़ जाता है। इसके बजाय, सूखे मेवे और पुराने अनाज जैसे बाजरा, रागी, और जौ का सेवन करना अधिक सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। साथ ही, अदरक और तुलसी जैसी गर्म तासीर वाली चीजों का सेवन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है।


🚩निष्कर्ष:

भारतीय संस्कृति में बरसात के मौसम में पकोड़े खाने की परंपरा केवल एक सांस्कृतिक रस्म नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक ठोस आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक आधार है। यह परंपरा न केवल स्वाद और आनंद देती है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य को भी संतुलित और सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए, इस वर्षा ऋतु में पकोड़े और अन्य तले हुए व्यंजनों का सेवन करें, शुद्ध तेल का उपयोग करें, और आयुर्वेदिक परंपराओं के साथ अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें।                                                                                              


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