Sunday, February 7, 2021

14 फरवरी को ऐसा क्या बदलाव होने वाला है जिसको लेकर टॉप ट्रेंड चला

07 फरवरी 2020


पश्चिमी देशों में 14 फरवरी को युवक युवतियाँ एक दूसरे को ग्रीटिंग कार्डस, फूल आदि देकर वेलेन्टाइन डे मनाते हैं। यौन जीवन संबंधी परम्परागत नैतिक मूल्यों का त्याग करने वाले देशों की चारित्रिक सम्पदा नष्ट होने का मुख्य कारण ये वेलेन्टाइन डे ही है जो लोगों को अनैतिक जीवन जीने को प्रेरित करते हैं। इससे उन देशों का अधःपतन हुआ है। इससे जो समस्याएँ पैदा हुईं, उनको मिटाने के लिए वहाँ की सरकारों ने चिकित्सा के लिए एवं स्कूलों में केवल संयम अभियानों पर करोड़ों डालर खर्च करने पड़े फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिलती। अब यह कुप्रथा हमारे भारत में भी पैर जमा रही है।




14 फरवरी वेलेंटाइन डे के दुष्परिणामो को जानकर अब भारतवासियों ने एक कैम्पियन चलाई है जिसमें भाग लेने वाले अधिकतर युवक-युवतियां ही हैं उन्होंने इस बार ठान लिया है कि 14 फरवरी को हम मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाएंगे और वेलेंटाइन डे का बहिष्कार करेंगे क्योंकि सबसे पहला प्यार माता-पिता ने हमें किया है।

रविवार 7 फरवरी को #14फरवरी_मातृपितृ_पूजन_दिवस 
हैशटेग लेकर टॉप ट्रेंड चल रहा जिसमे लाखों ट्वीट हुई, आइये जानते हैं क्या कह रही थी जनता?

1. ट्वीटर पर अर्चना आमने ने लिखा कि
मातृ पितृ पूजन दिवस माने सच्चा प्रेम दिवस लोग कहते हैं पहला प्यार भुलाया नहीं जाता फिर क्यों भूल जाते हैं अपने माता पिता को जिसने हमको इस दुनिया में लाया है? आओ मिलकर मनाए  #14फरवरी_मातृपितृ_पूजन_दिवस https://t.co/mFt4PhT3EG

2. डोलत ने लिखा कि हम सब Sant Shri Asharamji Bapu द्वारा चालया जा रहे इस सुंदर और शुद्ध प्रेम दिवस को माता पिता पूजन दिवस के रूप में 14 फरवरी को मानना यह बहुत सुंदर और अच्छा योग लगता है।
#14फरवरी_मातृपितृ_पूजन_दिवस

3. सरोज गिरी ने लिखा कि उद्यम,साहस,धैर्य,बुद्धि,शक्ति,पराक्रम जैसे दैवीय सद्गुण माता पिता ही बच्चों में भरते है। वीर शिवाजी,महात्मा गांधी, संत विनोबाजी आदि ऐसे कई वीर सपूत हुए जिनके प्रेरणा स्रोत उनके माता पिता ही थे, तो #14फरवरी_मातृपितृ_पूजन_दिवस मनाकर उनका करे सत्कार।

4. स्वतंत्र भारत हैन्डल से लिखा गया कि जैसे माता पिता की सेवा व पूजा से श्रवण कुमार अमर बने, वैसे हम भी अपने माता पिता का आदर, सत्कार व पूजा करके हमारा मानव जन्म सफल व धन्य बनाए।
#14फरवरी_मातृपितृ_पूजन_दिवस अवश्य मनाएं।

5. हरीश राजगुरु ने लिखा कि जिस देश में स्वयं प्रभु राम ने माता पिता व गुरुजनों का आदर किया, उस देश कि युवा पीढ़ी अपने माता-पिता का अपमान करके वेलेंटाइन कि ओर क्यों जाए? माता-पिता का आदर सत्कार करे। 

हिंदू संत आशारामजी बापू प्रेरित  #14फरवरी_मातृपितृ_पूजन_दिवस
खुद भी मनाए और दूसरो को भी जरूर प्रेरित करे।

यहाँ आपको कुछ ही ट्वीट बताई गई लेकिन रविवार को #14फरवरी_मातृपितृ_पूजन_दिवस हैशटेग को लेकर लाख से ऊपर ट्वीट हुई थी उसमे सबको एक ही अपील की जा रही थी कि वेलेंटाइन डे हमारी संस्कृति और हमारे देश की रीढ़ की हड्डी युवाओं का पतन कर रहा है और ग्रीटिंग कार्ड, फूल, चॉकलेट व गर्भनिरोधक सामग्री बेचकर अरबों-खरबों रुपये विदेशी कंपनियां भारत से लेकर चली जाती है। अतः इसका त्याग करें और उसदिन हमारे माता-पिता की पूजा जरूर करें।

हमें अपने परम्परागत नैतिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए ऐसे वेलेन्टाइन डे का बहिष्कार करना चाहिए। इस संदर्भ में हिंदू संत आशारामजी बापू ने एक नयी पहल की है– 'मातृ-पितृ पूजन दिवस'। इसका हमे लाभ उठाना चाहिए जिसके कारण हम पतन के रास्ते से बच सकते हैं और अपने माँ-बाप की सेवा करके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है।

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Saturday, February 6, 2021

जोर शोर से उठ रही है 14 फरवरी की आवाज, कवि ने लिखी कविता

06 फरवरी 2021


14 फरवरी को ʹवेलेंटाइन डेʹ मनाकर युवक-युवतियाँ प्रेमी-प्रेमिका के संबंध में फँसने के कारण विदेशी कंपनियों के ग्रीटिंग कार्ड, फूल आदि मैं पैसे की बर्बादी होती है और ओज-तेज दिन दहाड़े नष्ट होता है। उस दिन ʹमातृ-पितृ पूजनʹ करने से काम-विकार की बुराई व दुश्चरित्रता के दलदल से ऊपर उठकर उज्जवल भविष्य, सच्चरिता, सदाचारी जीवन की ओर ले जायेगा और पैसे की बर्बादी नहीं होगी और मां-बाप प्रसन्न होंगे।




इस पर एक कवि ने कविता भी लिखी है...

💫धन्यवाद आशाराम बापूजी का जो, जीना हमें सिखाया है।✨

💫मातृ पितृ पूजन दिवस का सबको, सुंदर मार्ग दिखाया है।।✨

💫वैलेंटाइन डे से युवाओं का, नैतिक पत्तन हो रहा था।✨

💫नशे की ओर आकर्षित हो, अपने संस्कार खो रहा था।।✨

💫पथप्रदर्शक बन बापूजी ने, सुसंस्कारों का सृजन कराया है।।✨

💫मातृ पितृ पूजन दिवस का सबको, सुंदर मार्ग दिखाया है।।✨

💫बूढ़े लाचार मां-बाप से युवा, अपना नाता तोड़ रहे थे।✨

💫घर से निकालकर उनको, वृद्धाश्रम में छोड़ रहे थे।।✨

💫बताकर माता-पिता का महत्व, ईश्वर के स्थान पर बिठाया है।✨

💫मातृ पितृ पूजन दिवस का सबको, सुंदर मार्ग दिखाया है।।✨

💫बापूजी ने बताया माता-पिता ही, सच्चा प्यार करते हैं।✨

💫बापू ने समझाया माता-पिता ही, अच्छे संस्कार भरते हैं।।✨

💫मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: का, सर्वत्र उदघोष कराया है।✨

💫मातृ पितृ पूजन दिवस का सबको, सुंदर मार्ग दिखाया है।।✨

💫धन्यवाद आशाराम बापूजी का जो जीना हमें सिखाया है।✨

💫मातृ पितृ पूजन दिवस का सबको सुंदर मार्ग दिखाया है।।✨ -कवि सुरेन्द्र भाई

माता-पिता के पूजने से अच्छी पढाई का क्या संबंध-ऐसा सोचने वालों को अमेरिका की ʹयूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनियाʹ के सर्जन व क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सू किम और ʹचिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल ऑफ फिलाडेल्फिया, पेंसिल्वेनियाʹ के एटर्नी एवं इमिग्रेशन स्पेशलिस्ट जेन किम के शोधपत्र के निष्कर्ष पर ध्यान देना चाहिए। अमेरिका में एशियन मूल के विद्यार्थी क्यों पढ़ाई में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करते हैं ? इस विषय पर शोध करते हुए उऩ्होंने यह पाया कि वे अपने बड़ों का आदर करते हैं और माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं तथा उज्जवल भविष्य-निर्माण के लिए गम्भीरता से श्रेष्ठ परिणाम पाने के लिए अध्ययन करते हैं। भारतीय संस्कृति के शास्त्रों और संतों में श्रद्धा न रखने वालों को भी अब उनकी इस बात को स्वीकार करके पाश्चात्य विद्यार्थियों को सिखाना पड़ता है कि माता-पिता का आदर करने वाले विद्यार्थी पढ़ाई में श्रेष्ठ परिणाम पा सकते हैं।

जो विद्यार्थी माता-पिता का आदर करेंगे वे ʹवेलेन्टाइन डेʹ मनाकर अपना चरित्र भ्रष्ट नहीं कर सकते। संयम से उनके ब्रह्मचर्य की रक्षा होने से उनकी बुद्धिशक्ति विकसित होगी, जिससे उनकी पढ़ाई के परिणाम अच्छे आयेंगे।

माता-पिता ने हमसे अधिक वर्ष दुनिया में गुजारे हैं, उनका अनुभव हमसे अधिक है और सदगुरु ने जो महान अनुभव किया है उसकी तो हमारे छोटे अनुभव से तुलना ही नहीं हो सकती। इन तीनों के आदर से उनका अनुभव हमें सहज में ही मिलता है। अतः जो भी व्यक्ति अपनी उन्नति चाहता है, उस सज्जन को माता-पिता और सदगुरु का आदर पूजन आज्ञापालन तो करना चाहिए।

गौरतलब है कि संत आशारामजी बापू ने 2006 से 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू किया था उनका कहना था कि सभी लोग अपने माता पिता का सत्कार करें। भारत में और विश्व में ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ का कार्यक्रम मैं व्यापक करना चाहता हूँ। इस दिन बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता का आदर-पूजन करें और प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतानों को प्रेम करें। इससे वास्तविक प्रेम का विकास होगा।

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Friday, February 5, 2021

हिंदुओं को ही सेकुलरिज्म का नशा कैसे चढ़ा है देख लीजिए

05 फरवरी 2021


कभी शैव विचारधारा की पवित्र भूमि कही जाने वाले कश्मीर में आज अज़ान और आतंवादियों की गोलियां सुनाई देती हैं। कश्मीर के इस्लामीकरण में सबसे पहला नाम बुलबुल शाह का आता है। बुलबुल शाह के बाद दूसरा बड़ा नाम मीर सैय्यद अली हमदानी का आता है। हमदानी कहने को सूफी संत था मगर कश्मीर में कट्टर इस्लाम का उसे पहला प्रचारक कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। श्रीनगर में हमदानी की ख़ानख़ा-ए -मौला के नाम से स्मारक बना हुआ है। पुराने कश्मीरी इतिहासकारों के अनुसार यह काली देवी का मंदिर था। इस पर कब्ज़ा कर इसे इस्लामिक ख़ानख़ा में जबरन परिवर्तित किया गया था। सबसे खेदजनक बात यह है कि वर्तमान में कश्मीरी हिन्दुओं की एक पूरी पीढ़ी हमदानी के इतिहास से पूरी प्रकार से अनभिज्ञ है। कुछ को सेक्युलर नशा चढ़ा है। उनके लिए मंदिर और ख़ानख़ा में कोई अंतर नहीं है। कुछ को सूफियाना नशा चढ़ा है। वे सूफियों को हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक समझते है। सारा दोष हिन्दुओं का है जो अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा न के बराबर देते है। इसलिए श्रीनगर में रहने वाला अल्पसंख्यक हिन्दू इतिहास की जानकारी न होने के कारण हमदानी की ख़ानख़ा में माथा टेकने जाता है।

आईये पहले हमदानी के इतिहास को जान ले।




हमदानी का जन्म हमदान में हुआ था। वह तीन बार कश्मीर यात्रा पर आया। यह सूफियों के कुबराविया सम्प्रदाय से था। यह मीर सैय्यद अली हमदानी ही था जिसने कश्मीर के सुलतान को हिन्दुओं के सम्बन्ध में राजाज्ञा लागु करने का परामर्श दिया गया था। इस परामर्श में हिन्दुओं के साथ कैसा बर्ताव करे। यह बताया गया था। हमदानी के परामर्श को पढ़िए।

-हिन्दुओं को नए मंदिर बनाने की कोई इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को पुराने मंदिर की मरम्मत की कोई इजाजत न हो।

-मुसलमान यात्रियों को हिन्दू मंदिरों में रुकने की इजाज़त हो।

- मुसलमान यात्रियों को हिन्दू अपने घर में कम से कम तीन दिन रुकवा कर उनकी सेवा करे।

-हिन्दुओं को जासूसी करने और जासूसों को अपने घर में रुकवाने का कोई अधिकार न हो।

-कोई हिन्दू इस्लाम ग्रहण करना चाहे तो उसे कोई रोकटोक न हो।

-हिन्दू मुसलमानों को सम्मान दे एवं अपने विवाह में आने का उन्हें निमंत्रण दे।

-हिन्दुओं को मुसलमानों जैसे वस्त्र पहनने और नाम रखने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को काठी वाले घोड़े और अस्त्र-शस्त्र रखने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को रत्न जड़ित अंगूठी पहनने का अधिकार न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम बस्ती में मकान बनाने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम कब्रिस्तान के नजदीक से शव यात्रा लेकर जाने और मुसलमानों के कब्रिस्तान में शव गाड़ने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को ऊँची आवाज़ में मृत्यु पर विलाप करने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम गुलाम खरीदने की इजाजत न हो।

मेरे विचार से इससे आगे कुछ कहने की आवश्यता ही नहीं है।
(सन्दर्भ- Zakhiratul-muluk, pp. 117-118)

मेरे विचार से अगर कोई हिन्दू हमदानी के विचार को जान लेगा तो वह कभी हमदानी की ख़ानख़ा जाने का विचार नहीं करेगा। यह सेकुलरिज्म का नशा है। इसे उतारना ही होगा।
-डॉ. विवेक आर्य

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Thursday, February 4, 2021

वेलेंटाइन डे का इतिहास जान लेंगे तो छोड़ देंगे वेलेंटाइन मनाना

04 फरवरी 2021


 भारत में अधिकतर लोग नहीं जानते हैं कि वेलेंटाइन डे की शुरुआत कैसे हुई और यह क्यों मनाया जा रहा है । इससे हमें फायदा होगा या नुकसान, ये हमारी संस्कृति के अनुसार है कि नहीं इस पर तनिक भी विचार न कर टीवी-सिनेमा मीडिया में दिखाई जाने वाली चीजों से प्रभावित होकर उनकी नकल करने लग जाते हैं।

 आइये आज आपको वैलेंटाइन डे का सच्चा इतिहास बताते हैं....




रोम के राजा क्लाउडियस ब्रह्मचर्य की महिमा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने अपने सैनिकों को शादी करने के लिए मना किया था, ताकि वे शारीरिक बल और मानसिक दक्षता से युद्ध में विजय प्राप्त कर सकें । रोम के चर्च के ईसाई धर्मगुरु वेलेंटाइन जो स्वयं ईसाई पादरी होने के कारण बाहर से नहीं दिखा सकते कि वे ब्रह्मचर्य के विरोधी हैं। इसलिए पादरी वेलेंटाइन ने गुप्त ढंग से सैनिकों की शादियाँ कराईं । राजा को जब यह बात पता चली तो उन्हें दोषी घोषित किया और इस पादरी वेलेंटाइन को 14 फरवरी के दिन फाँसी दे दी गयी । सन् 496 से ईसाई पोप गैलेसियस ने उनकी याद में 14 फरवरी के दिन वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया । तब से लेकर अब तक यह प्रथा चली आ रही है ।

 एक बड़ी बात यह भी है कि वेलेंटाइन डे मनाने वाले लोग पादरी वेलेंटाइन का ही अपमान करते हैं क्योंकि वे शादी के पहले ही अपने प्रेमास्पद को वेलेंटाइन कार्ड भेजकर उनसे प्रणय-संबंध स्थापित करने का प्रयास करते हैं । यदि पादरी वेलेंटाइन इससे सहमत होते तो वे शादियाँ कराते ही नहीं । तो ये था वेलेंटाइन - डे का इतिहास और इसके पीछे का आधार ।

भारत में जब अंग्रेज आये तब वो लोग इस दिन को मनाते थे तो भारत के कुछ लोग जो अंग्रेजों के चाटुकार थे, मूर्ख और लालची थे वे लोग भी इसे मनाने लगे ।

भारत में अंग्रेज वेलेंटाइन डे इसलिए मना रहे थे ताकि भारत के लोगों का नैतिक पतन हो जिससे वो अंग्रेजो के सामने लड़ ही न पाएं और लंबे समय तक भारत को गुलाम बनाकर रख सके ।

फिर अंग्रेज तो गये लेकिन विदेशी कम्पनियों ने सोचा कि हम अगर भारत में वैलेंटाइन डे को बढ़ावा देते हैं तो हमें अरबों-खबरों रुपये का फायदा होगा तो उन्होंने टीवी, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, अखबार, नावेल, सोशल मीडिया, आदि में खूब-प्रचार प्रसार किया जिससे उन्होंने महंगे ग्रीटिंग कार्ड, गिफ्ट, फूल चॉकलेट आदि से अरबों रुपए कमाएं । इसके अलावा नशीले पदार्थ, ब्ल्यू फिल्म, गर्भ निरोधक साधन, पोर्नोग्राफी, उत्तेजक पोप म्यूजिक जैसी सेक्स उत्तेजक दवाईयाँ बनाने वाली विदेशी कम्पनियां अपने आर्थिक लाभ हेतु समाज को चरित्रभ्रष्ट करने के लिए करोड़ों अरबों रूपये खर्च कर रही है ।

वाणिज्य एवं उद्योग मंडल के एक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2016 में वेलेंटाइन डे से जुड़े सप्ताह के दौरान फूल, चॉकलेट, आदि विभिन्न उपहारों की बिक्री का कारोबार करीब 22,000 करोड़ रूपये था । पिछले साल बार 50,000 करोड़ रूपये से अधिक का कारोबार होने का अनुमान है । वस्तुत: वैलेंटाइन डे के विदेशी बाजारीकरण वासनापूर्ति को बढ़ावा देने वाला दिन है ।

अब ये वैलेंटाइन डे हमारे कुछ स्कूलों तथा कॉलजों में भी मनाया जा रहा है और हमारे यहाँ के लड़के-लड़कियाँ बिना सोचे-समझे एक दूसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड, गिफ्ट फूल दे रहे हैं ।

इन सब विदेशी गन्दगी को देखते हुए हिन्दू संत आशारामजी बापू ने 2006 में 14 फरवरी को मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाना शुरू किया जिसका अभी व्यापक रूप से प्रचार हो रहा है । भारत में उनके करोड़ों अनुयायी, आम जनता, हिन्दू संगठन और कई राज्यों की सरकार, गांव-गांव, नगर-नगर में इस दिन को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मना रहे हैं । विदेशों में भी उनके अनुयायी इस दिन को मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मना रहे हैं ।

हिन्दू संत बापू आशारामजी का कहना है कि 14 फरवरी को पश्चिमी देशों की नकल कर भारत के युवक युवतियाँ एक दूसरे को ग्रीटिंग कार्ड्स, फूल आदि देकर वैलेंटाइन डे मनाते हैं । इस विनाशकारी डे के नाम पर कामविकार का विकास हो रहा है, जो आगे चलकर चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, खोखलापन,जल्दी बुढ़ापा और जल्दी मौत लाने वाला साबित होगा ।

हजारों-हजारों युवक-युवतियां तबाही के रास्ते जा रहे हैं । वैलेंटाइन डे के बहाने आई लव यू करते-करते लड़का-लड़की एक दूसरे को छुएंगे तो रज-वीर्य का नाश होगा । आने वाली संतति पर भी इसका बुरा असर पड़ता है और वर्तमान में वे बच्चे-बच्चियां भी तबाही के रास्ते हैं । लाखों-लाखों माता-पिताओं के हृदय की पीड़ा को देखते हुए तथा बच्चे-बच्चियों को इस विदेशी गंदगी से बचाकर भारतीय संस्कृति की सुगंध से सुसज्जित करना है । प्रेम दिवस जरूर मनायें लेकिन प्रेमदिवस में संयम और सच्चा विकास लाना चाहिए । युवक-युवती मिलेंगे तो विनाश-दिवस बनेगा ।

इस दिन बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता का पूजन करें और उनके सिर पर पुष्प रखें, प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतानों को प्रेम करें । संतान अपने माता-पिता के गले लगें । इससे वास्तविक प्रेम का विकास होगा ।

तुम भारत के लाल और भारत की लालियाँ (बेटियाँ) हो । प्रेमदिवस मनाओ, अपने माता-पिता का सम्मान करो और माता-पिता बच्चों को स्नेह करें।  पाश्चात्य संस्कृति के लोग विनाश की ओर जा रहे हैं । वे लोग ऐसे दिवस मनाकर यौन सम्बन्धी रोगों का घर बन रहे हैं, अशांति की आग में तप रहे हैं । उनकी नकल भारत के बच्चे-बच्चियाँ न करें ।

आपको बता दें कि बापू आशारामजी ने इस तरीके से करोड़ों लोगों को वैलेंटाइन डे आदि विदेशी प्रथाओं से, व्यसन आदि से बचाया है, जिसके कारण विदेशी कंपनियों का अरबों-खरबों रुपये का घाटा हुआ है । तथा इस नुकसान से बचने के लिए ही उन्होंने बापू आशारामजी को साज़िशों के जाल में फंसा जेल भेज दिया ।

हमारे शास्त्रों में माता-पिता को देवतुल्य माना गया है और इस संसार में अगर कोई हमें निःस्वार्थ और सच्चा प्रेम कर सकता है तो वो हमारे माता-पिता ही हो सकते हैं ।

तो क्यों न हम मानवमात्र के परम हितकारी हिन्दू संत आशारामजी बापू प्रेरित #14फरवरी_मातृ_पितृ_पूजन मनाकर अपने माता-पिता के सच्चे प्रेम का सम्मान करें और यौवन-धन, स्वास्थ्य और बुद्धि की सुरक्षा करें ।

आओ एक नयी दिशा की ओर कदम बढ़ाएं ।
14 फरवरी को वेलेंटाइन डे नहीं माता-पिता की पूजा करके उनका शुभ आशीष पाएं ।

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Wednesday, February 3, 2021

मीडिया ने इस खबर को छुपा दिया क्योंकि हिंदु धर्म से नहीं जुड़ा था...

03 फरवरी 2021


जब भी किसी पवित्र हिंदू साधु-संत पर कोई झूठा आरोप लगता है तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया इस तरह खबर चलाती है कि जैसे न्यायालय में अपराध सिद्ध हो गया हो, सेक्युलर भी जोरों से चिल्लाने लगते हैं और हिंदू धर्म पर टिप्पणियां करने लगते हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इल्जाम लगते ही न्यूज चालू हो जाती है अनेक झूठी कहानियां बन जाती है। इससे तो यह सिद्ध होता है कि मीडिया को इस बात का पहले ही पता होता है कि कौन से हिन्दू साधु-संत पर कौन सा इल्जाम लगने वाला है? और उनके खिलाफ किस तरीके से झूठी कहानियां बनाकर खबरें चलाना है? क्या लगता है यह सब पहले से ही तय कर लिया जाता होगा।




वहीं दूसरी ओर किसी मौलवी या ईसाई पादरी पर आरोप सिद्ध हो जाये, तभी भी न मीडिया खबर दिखाती है और ना ही सेक्युलर कुछ बोलते हैं। इससे साफ होता है कि ये गैंग केवल हिंदुत्व के खिलाफ है।

मौलवी ने बच्ची का किया यौन शोषण

मौलवी शमसुद्दीन बरभुइयाँ को असम की सिलचर सदर थाने की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। यह मौलवी 6 दिसंबर 2020 से ही फरार था। मौलवी शमसुद्दीन पर 6 साल की बच्ची का यौन शोषण का आरोप है।

मौलवी शमसुद्दीन बरभुइयाँ घटना वाले दिन आम दिनों की तरह ही बच्चों को पढ़ाने घरपर आया था। लेकिन उस दिन पीड़ित बच्ची भी पढ़ने आई थी। जब परिवार के बड़े लोग बच्चों को मौलवी के पास पढ़ता छोड़ चाय बनाने चले गए तब यौन शोषण को अंजाम दिया गया।

6 दिसंबर को असम के सिलचर सदर थाने में शिकायत दर्ज कराने आई पीड़ित बच्ची की माँ ने बताया कि पढ़ाई वाले कमरे से अचानक बच्ची रोते हुए निकली थी। बाहर आकर भी वो रो ही रही थी, डरी हुई थी। बहुत पूछने पर उसने बताया कि मौलवी उसके गुप्तांगों को छूना चाह रहा था। बच्ची के मना करने पर मौलवी ने जबरदस्ती किया।

पूरा वाकया सुनने के बाद परिवार के लोग जब मौलवी के पढ़ाने वाले कमरे में गए तो वहाँ अन्य बच्चों के अलावा कोई नहीं था। मौलवी शमसुद्दीन बरभुइयाँ वहाँ से भाग चुका था। परिवार वालों ने पहले लोक-लाज के डर से पुलिस के पास जाने से मना किया था। लेकिन कई अन्य बच्चियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए पीड़िता की माँ ने FIR दर्ज कराई।

अफवाह पहले से थी कि कन्याकुमारी तिरुनेलवेली जिले के पनकुडी के पास रोसमियापुरम में के ईसाई पादरी जोसेफ इसिदोर (Joseph Isidore)  एक महिला के साथ अफेयर है, जो वहीं कार्यरत है। लेकिन 25 जनवरी को जब दोनों एक-दूसरे के साथ थे, तभी महिला राजाम्मल की नजर उनके कमरे में पड़ी और उन्होंने दोनों को देख लिया। पादरी और एक महिला इसके बाद हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने राजाम्मल से बहस शुरू कर दी और उस पर बुरी तरह हमला कर दिया।

राजाम्मल पर हुए इस अचानक हमले के कारण उसे गंभीर चोट आए। उन्हें राधापुर के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। कथित तौर पर राधापुर के सब इंस्पेक्टर शिव पेरुमल को महिला और पादरी के रिश्ते के बारे में पहले से पता था।

जब सब इंस्पेक्टर राजाम्मल के पास पूछताछ के लिए पहुँचे तो पीड़िता ने उन्हें बताया कि उन पर हमला किन हालातों में हुआ। उनका कहना था कि उन्होंने गरीबी और किसी का साथ न होने के कारण पूरी घटना का खुलासा नहीं किया। मगर अब उनकी शिकायत पर दोनों आरोपितों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाया जा रहा है। गौरतलब है कि तमिलनाडु की यह घटना बिलकुल सिस्टर अभया के केस जैसी है। इसमें अभया ने दो पादरियों और एक नन- थॉमस कुट्टूर, जोस पूथरुकायिल, और सिस्टर सेफी को ‘आपत्तिजनक स्थिति’ में पाया था। सिस्टर अभया को देख कर तीनों ने उन पर हमला कर दिया, जिससे सिस्टर अभया बेहोश हो गईं। इसके बाद तीनों ने मिलकर उन्हें कुऍं में डाल दिया। इस केस में भी तीनों को डर था कि कहीं सिस्टर अभया किसी को बता न दें।

ऐसे तो मौलवी व पादरियों पर यौन शोषण के हजारों मामले है लेकिन मीडिया का कैमरा व तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग इसपर मौन हो जाता है जबकि किसी साधु-संत पर साजिक के तहत जूठे आरोप लगे तो भी मीडिया चिल्लाने लगती है। ऐसे बिकाउ मीडिया की बातों में आकर हिंदू धर्मगुरुओं के खिलाफ गलत टिप्पणी नही करनी चाहिए।

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Tuesday, February 2, 2021

संसार भर के विकासवादियों से प्रश्न, क्या मनुष्य पहले बंदर था?

02  फरवरी 2021


कुछ वर्ष पूर्व पूर्व केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री माननीय डाॅ. सत्यपालसिंहजी के इस कथन कि मनुष्य की उत्पत्ति बन्दर से नहीं हुई, सम्पूर्ण भारत के बुद्धिजीवियों में हलचल मच रही थी । कुछ वैज्ञानिक सोच के महानुभाव इसे साम्प्रदायिक संकीर्णताजन्य रूढ़िवादी सोच की संज्ञा दे रहे थे। मैं उन महानुभावों से निवेदन करता हूँ कि मंत्रीजी का यह विचार रूढ़िवादी नहीं बल्कि सुदृढ़ तर्कों पर आधारित वैदिक विज्ञान का ही पक्ष है। ऐसा नहीं है कि विकासवाद का विरोध कुछ भारतीय विद्वान् ही करते हैं अपितु अनेक यूरोपियन वैज्ञानिक भी इसे नकारते आये हैं। मैं इसका विरोध करने वाले संसारभर के विकासवादियों से प्रश्न करना चाहता हूँ। ये प्रश्न प्रारम्भिक हैं, इनका उत्तर मिलने पर और प्रश्न किये जायेंगे :-




शारीरिक विकास

१. विकासवादी अमीबा से लेकर विकसित होकर बन्दर पुनः शनैः-२ मनुष्य की उत्पत्ति मानते हैं। वे बताएं कि अमीबा की उत्पत्ति कैसे हुई?
२. यदि किसी अन्य ग्रह से जीवन आया, तो वहाँ उत्पत्ति कैसे हुई? जब वहाँ उत्पत्ति हो सकती है, तब इस पृथ्वी पर क्यों नहीं हो सकती?
३. यदि अमीबा की उत्पत्ति रासायनिक क्रियाओं से किसी ग्रह पर हुई, तब मनुष्य के शुक्राणु व अण्डाणु की उत्पत्ति इसी प्रकार क्यों नहीं हो सकती?
४. उड़ने की आवश्यकता होने पर प्राणियों के पंख आने की बात कही जाती है परन्तु मनुष्य जब से उत्पन्न हुआ, उड़ने हेतु हवाई जहाज बनाने का प्रयत्न करता रहा है, परन्तु उसके पंख क्यों नहीं उगे? यदि ऐसा होता, तो हवाई जहाज के अविष्कार की आवश्यकता नहीं होती।
५. शीत प्रदेशों में शरीर पर लम्बे बाल विकसित होने की बात कही जाती है, तब शीत प्रधान देशों में होने वाले मनुष्यों के रीछ जैसे बाल क्यों नहीं उगे? उसे कम्बल आदि की आवश्यकता क्यों पड़ी?
६. जिराफ की गर्दन इसलिए लम्बी हुई कि वह धरती पर घास सूख जाने पर ऊपर पेड़ों की पत्तियां गर्दन ऊँची करके खाता था। जरा बताएं कि कितने वर्ष तक नीचे सूखा और पेड़ों की पत्तियां हरी रहीं? फिर बकरी आज भी पेड़ों पर दो पैर रखकर पत्तियां खाती है, उसकी गर्दन लम्बी क्यों नहीं हुई?
७. बंदर के पूंछ गायब होकर मनुष्य बन गया। जरा कोई बताये कि बंदर की पूंछ कैसे गायब हुई? क्या उसने पूंछ का उपयोग करना बंद कर दिया? कोई बताये कि बन्दर पूंछ का क्या उपयोग करता है और वह उपयोग उसने क्यों बंद किया? यदि ऐसा ही है तो मनुष्य के भी नाक, कान गायब होकर छिद्र ही रह सकते थे। मनुष्य लाखों वर्षोंसे से बाल और नाखून काटता आ रहा है, तब भी बराबर वापिस उगते आ रहे हैं, ऐसा क्यों?
८. सभी बंदरों का विकास होकर मानव क्यों नहीं बने? कुछ तो अमीबा के रूप में ही अब तक चले आ रहे हैं, और हम मनुष्य बन गये, यह क्या है?
९. कहते हैं कि सांपों के पहले पैर होते थे, धीरे-२ वे घिस कर गायब हो गये। जरा विचारों कि पैर कैसे गायब हुए, जबकि अन्य सभी पैर वाले प्राणियों के पैर बिल्कुल नहीं घिसे।
१०. बिना अस्थि वाले जानवरों से अस्थि वाले जानवर कैसे बने? उन्हें अस्थियों की क्या आवश्यकता पड़ी?
११. बंदर व मनुष्य के बीच बनने वाले प्राणियों की श्रंखला कहाँ गई?
१२. विकास मनुष्य पर जाकर क्यों रुक गया? किसने इसे विराम दिया? क्या उसे विकास की कोई
आवश्यकता नहीं है?

बौद्धिक व भाषा सम्बन्धी विकास

1. कहते हैं कि मानव ने धीरे-2 बुद्धि का विकास कर लिया, तब प्रश्न है कि बन्दर व अन्य प्राणियों में बौद्धिक विकास क्यों नहीं हुआ?
2. मानव के जन्म के समय इस धरती पर केवल पशु पक्षी ही थे, तब उसने उनका ही व्यवहार क्यों नहीं सीखा? मानवीय व्यवहार का विकास कैसे हुआ? करोड़ों वनवासियों में अब तक विशेष बौद्धिक विकास क्यों नहीं हुआ?
3. गाय, भैंस, घोड़ा, भेड़, बकरी, ऊंट, हाथी करोड़ों वर्षों से मनुष्य के पालतू पशु रहे हैं पुनरपि उन्होंने न मानवीय भाषा सीखी और न मानवीय व्यवहार, तब मनुष्य में ही यह विकास कहाँ से हुआ?
4. दीपक से जलता पतंगा करोड़ों वर्षों में इतना भी बौद्धिक विकास नहीं कर सका कि स्वयं को जलने से रोक ले, और मानव बन्दर से इतना बुद्धिमान् बन गया कि मंगल की यात्रा करने को तैयार है? क्या इतना जानने की बुद्धि भी विकासवादियों में विकसित नहीं हुई ? पहले सपेरा सांप को बीन बजाकर पकड़ लेता था और आज भी वैसा ही करता है परन्तु सांप में इतने ज्ञान का विकास भी नहीं हुआ कि वह सपेरे की पकड़ में नहीं आये।
5. पहले मनुष्य बल, स्मरण शक्ति एवं शारीरिक प्रतिरोधी क्षमता की दृष्टी से वर्तमान की अपेक्षा बहुत अधिक समृद्ध था, आज यह ह्रास क्यों हुआ, जबकि विकास होना चाहिए था?
6. संस्कृत भाषा, जो सर्वाधिक प्राचीन भाषा है, उस का व्याकरण वर्तमान विश्व की सभी भाषाओं की अपेक्षा अतीव समृद्ध व व्यवस्थित है, तब भाषा की दृष्टी से विकास के स्थान पर ह्रास क्यों हुआ?
7. प्राचीन ऋषियों के ग्रन्थों में भरे विज्ञान के सम्मुख वर्तमान विज्ञान अनेक दृष्टी से पीछे है, यह मैं अभी सिद्ध करने वाला हूँ, तब यह विज्ञान का ह्रास कैसे हुआ? पहले केवल अन्तःप्रज्ञा से सृष्टि का ज्ञान ऋषि कर लेते थे, तब आज वह ज्ञान अनेकों संसाधनों के द्वारा भी नहीं होता। यह यह उलटा क्रम कैसे हुआ?

 भला विचारें कि यदि पशु पक्षियों में बौद्धिक विकास हो जाता, तो एक भी पशु पक्षी मनष्य के वश में नहीं आता। यह कैसी अज्ञानता भरी सोच है, जो यह मानती है कि पशु पक्षियों में बौद्धिक विकास नहीं होता परन्तु शारीरिक विकास होकर उन्हें मनुष्य में बदल देता है और मनुष्यों में शारीरिक विकास नहीं होकर केवल भाषा व बौद्धिक विकास ही होता है। इसका कारण क्या विकासवादी मुझे बताएंगे।

 आज विकासवाद की भाषा बोलने वाले अथवा पौराणिक बन्धु श्री हनुमान् जी को बन्दर बताएं, उन्हें वाल्मीकीय रामायण का गम्भीर ज्ञान नहीं है। वस्तुतः वानर, ऋक्ष, गृध, किन्नर, असुर, देव, नाग आदि मनुष्य जाति के ही नाना वर्ग थे। ऐतिहासिक ग्रन्थों में प्रक्षेपों (मिलावट) को पहचानना परिश्रम साध्य व बुद्धिगम्य कार्य है।

ऊधर जो प्रबुद्धजन किसी वैज्ञानिक पत्रिका में पेपर प्रकाशित होने को ही प्रामाणिकता की कसौटी मानते हैं, उनसे मेरा अति संक्षिप्त विनम्र निवेदन है-

1. बिग बैंग थ्योरी व इसके विरुद्ध अनादि ब्रह्माण्ड थ्योरी, दोनों ही पक्षों के पत्र इन पत्रिकाओं में छपते हैं, तब कौनसी थ्योरी को सत्य मानें?
2. ब्लैक होल व इसके विरुद्ध ब्लैक होल न होने की थ्योरीज् इन पत्रिकाओं में प्रकाषित हैं, तब किसे सत्य मानें?
3. ब्रह्माण्ड का प्रसार व इसके प्रसार न होने की थ्योरीज् दोनों ही प्रकाषित हैं, तब किसे सत्य मानें?

 ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। इस कारण यह आवश्यक नहीं है कि हमें एक वर्गविषेश से सत्यता का प्रमाण लेना अनिवार्य हो? हमारी वैदिक एवं भारतीय दृष्टी में उचित तर्क, पवित्र गम्भीर ऊहा एवं योगसाधना (व्यायाम नहीं) से प्राप्त निष्कर्ष वर्तमान संसाधनों के द्वारा किये गये प्रयोगों, प्रक्षेपणों व गणित से अधिक प्रामाणिक होते हैं। यदि प्रयोग, प्रेक्षण व गणित के साथ सुतर्क, ऊहा का साथ न हो, तो वैज्ञानिकों का सम्पूर्ण श्रम व्यर्थ हो सकता है। यही कारण है कि प्रयोग, परीक्षणों, प्रेक्षणों व गणित को आधार मानने वाले तथा इन संसाधनों पर प्रतिवर्ष खरबों डाॅलर खर्च करने वाले विज्ञान के क्षेत्र में नाना विरोधी थ्योरीज् मनमाने ढंग से फूल-फल रही हैं और सभी अपने को ही सत्य कह रही हैं। यदि विज्ञान सर्वत्र गणित व प्रयोगों को आधार मानता है, तब क्या कोई विकासवाद पर गणित व प्रयोगों का आश्रय लेकर दिखाएगा?

 इस कारण मेरा सम्मान के योग्य वैज्ञानिकों एवं देश व संसार के प्रबुद्ध जनों से अनुरोध है कि प्रत्येक प्राचीन ज्ञान का अन्धविरोध तथा वर्तमान पद्धति का अन्धानुकरण कर बौद्धिक दासत्व का परिचय न दें। तार्किक दृष्टी का सहारा लेकर ही सत्य का ग्रहण व असत्य का परित्याग करने का प्रयास करें। हाँ, अपने साम्प्रदायिक रूढ़िवादी सोच को विज्ञान के समक्ष खड़े करने का प्रयास करना अवश्य आपत्तिजनक है।
- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

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Monday, February 1, 2021

बड़ी-बड़ी हस्तियों ने की घोषणा 14 फरवरी को मनाएं मातृ-पितृ पूजन दिवस

01 फरवरी 2020


भारत मे वेलेंटाइन डे के कारण युवक-युवतियों को अत्यधिक नुकसान हो रहा है जिसके कारण कई सम्मानीय और सुप्रतिष्ठित हस्तियों ने 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का ऐलान किया है ।




आइये जानते हैं, क्या कह रही हैं सुप्रतिष्ठित हस्तियां...


सांस्कृतिक उत्थान के लिए ‘वैलेंटाइन डे को ‘माता-पिता पूजन दिवस' में बदलने जैसे प्रयास निरंतर हों । - अभिनेत्री भाग्यश्री

मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाना बहुत ही अच्छा है । मैं जो बन पाया, वह माता-पिता का आशीर्वाद और गुरु की कृपा रही मुझ पर, उसी की बदौलत है । - गोविंदा, प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता

"मातृ-पितृ पूजन दिवस निश्चित तौर पर बहुत ही अच्छी बात है।" मुख्तार अब्बास नकवी, भा.ज.पा.

"हम लोग ʹमातृ-पितृ-पूजन दिवसʹ मनायें तो यह दिवस एक महाकुम्भ बनकर हमारे घर में हमेशा-हमेशा के लिए विराजमान हो जायेगा।" - श्री देवकीनंदन ठाकुर जी

मैं हर बच्चे को कहना चाहूँगा कि 14 फरवरी के दिन ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस' का अनुसरण कीजिये और धीरे-धीरे वेलेंटाइन डे को विदा कर दीजिये  ।-श्री मुकेश खन्ना, (धारावाहिक महाभारत के भीष्म पितामह तथा शक्तिमान धारावाहिक के शक्तिमान)

माता-पिता के पूजन का सही रास्ता दिखा के संत आसारामजी बापू ने हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर को बचाया है और इस अभियान को पूरे विश्व में बहुत बड़ी सफलता प्राप्त हुई  । -जगद्गुरु श्री पंचानंद गिरिजी, जूना अखाडा

आनेवाले समय में संत आसाराम बापू का यह मातृ-पितृ पूजन दिवस जो क्रांति का शंखनाद है, यह इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ बनेगा  । - श्री चिन्मय बापू महाराज, अंतर्राष्ट्रीय भागवत कथाकार

संत आसारामजी बापू ने पिछले कई वर्षों से ‘वेलेंटाइन डे को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाना शुरू किया तबसे तमाम महँगे-महँगे गिफ्ट्स, ग्रीटिंग कार्ड्स बेचनेवाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के व्यापार पर अरबों रूपये का घाटा हुआ इसलिए बापूजी पर षड्यंत्र हो रहा है  । - श्री सुरेश चव्हाणके, सुदर्शन चैनल

श्री आसारामजी बापू का जो यह कार्य है, वह स्तुत्य है, सुंदर है और संस्कृति-रक्षा के लिए है । हमें संस्कृति रक्षार्थ मातृ-पितृ पूजन दिवस को घर-घर मनाना है । - श्री रामगिरिजी महाराज, महामंडलेश्वर, जूना अखाड़ा

14 फरवरी, जो हम लोगों के लिए एक कलंक बनता जा रहा है, उसी कलंक को तिलक-टीका बनाकर हम वह दिन ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनायेंगे  । -  बाल योगेश्वर श्री रामबालकदासजी महात्यागी

"मातृ-पितृ पूजन दिवस" समूचे हिन्दुस्तान में नये इतिहास का सृजन करेगा।" – जैन समाज के आचार्य युवा लोकेश मुनिश्रीजी

मुझे पूरा विश्वास है कि बापूजी हमें एक नयी दिशा दिखा रहे हैं  ।- महामंडलेश्वर स्वामी देवेन्द्रानंदजी गिरि, राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय संत समिति

गाँव-गाँव, गली-गली में मातृ-पितृ पूजन होगा  । भारतीय संस्कृति की इस उज्ज्वलता को हम पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत करेंगे  ।- युवा क्रांतिद्रष्टा संत दिनेश भारतीजी

समाजरूपी बगिया को गुलशन बनाना हो तो बापूजी की प्रेरणा अनुसार ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस जरूर मनाया जाये  । - महंत श्री समाधानजी महाराज, वारकरी सम्प्रदाय

वेलेंटाइन-डे जो अब मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है, यह सच्चे प्रेम की राह बापूजी ने दिखायी है । इसीलिए बापूजी को फँसाया जा रहा है । - साध्वी सरस्वतीजी, भागवताचार्या

वैलेंटाइन डे सिर्फ हिन्दुओं के लिए नहीं बल्कि मुसलमानों तथा पूरी दुनिया के इन्सानों के लिए एक मसला है । बापूजी ने एक बड़ी अच्छी शुरुआत की है  । - हजरत मौलाना असगर अली साहब, अजमेर शरीफ के शाही इमाम

माता-पिता पूजन दिवस बहुत ही अच्छा प्रयास है । आजकल के युवक-युवतियों को इसका महत्त्व बताना बहुत जरूरी है  ।- प्रसिद्ध गायिका अनुराधा पौडवाल

पूज्य बापूजी ने 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन का दिन घोषित किया, यह बहुत ही सुंदर प्रयास है, जो आज हमारे देश के लिए बहुत जरूरी है  । - श्री अरुण गोविल जी, (रामायण धारावाहिक में श्रीरामजी की भूमिका निभानेवाले)

14 फरवरी को हम लोग मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें, माता-पिता की आराधना करें, पूजा करें तो बहुत अच्छी सफलता मिलेगी  । - फिरोज खान (महाभारत धारावाहिक के अर्जुन)

आज हम सभी दृढ़ निश्चय करें कि 14 फरवरी को माता-पिता का पूजन अवश्य करेंगे  ।- श्री गजेन्द्र चौहानजी (महाभारत धारावाहिक में युधिष्ठिर की भूमिका निभानेवाले)

परम पूज्य बापूजी के द्वारा मिली शिक्षाओं से हम अपने जीवन को सुंदर बनायेंगे । -प्रसिद्ध गायक श्री अनूप जलोटा ।

वैलेंटाइन डे नहीं, माता-पिता की पूजा होनी चाहिए । यह एक श्रेष्ठ मार्गदर्शन है जो बापूजी दे रहे हैं, इसे ही हम आगे लेकर जायेंगे  । - श्री प्रमोद मुतालिकजी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्रीराम सेना


गौरतलब है कि पिछले 50 वर्षों से सनातन संस्कृति के सेवाकार्यों में रत रहने वाले तथा सनातन संस्कृति की महिमा से विश्व के जन-मानस को परिचित करवाने वाले हिन्दू संत आशारामजी बापू ने जब अपने देश के युवावर्ग को पाश्चात्य अंधानुकरण से चरित्रहीन होते देखा तो उनका हृदय व्यथित हो उठा और उन्होंने पिछले 13 वर्षों से एक नयी दिशा की ओर युवावर्ग को अग्रसर करते हुए एक विश्वव्यापी अभियान चलाया जिसका नाम है 14 फरवरी मातृपितृ_पूजन_दिवस

बापू आसारामजी के देश-विदेश में रहने वाले करोड़ों समर्थक उनके कथनानुसार दुनिया भर में स्कूलों, कॉलेजों, वृद्धाश्रमों में एवं जाहिर स्थलों आदि में जाकर मातृ-पितृ पूजन मना रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी उसके फोटोज खूब वायरल हो रहे हैं ।

कई मुख्यमंत्री और मंत्रियों और हिन्दू संगठन भी इस महान कार्य में जुड़ गए हैं और वैलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन मनाने का आह्वान कर रहे हैं ।

भारत जो विश्व में अपनी संस्कृति और संतो के लिए प्रसिद्ध है । उस देश में पाश्चात्य सभ्यता की गन्दगी न आने पाये इसके लिए हर हिंदुस्तानी का कर्तव्य बनता है कि वो भी वैलेंटाइन डे न मनाकर 14 फरवरी मातृपितृ_पूजन_दिवस अवश्य मनाएं।

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