04 फरवरी 2021
भारत में अधिकतर लोग नहीं जानते हैं कि वेलेंटाइन डे की शुरुआत कैसे हुई और यह क्यों मनाया जा रहा है । इससे हमें फायदा होगा या नुकसान, ये हमारी संस्कृति के अनुसार है कि नहीं इस पर तनिक भी विचार न कर टीवी-सिनेमा मीडिया में दिखाई जाने वाली चीजों से प्रभावित होकर उनकी नकल करने लग जाते हैं।
आइये आज आपको वैलेंटाइन डे का सच्चा इतिहास बताते हैं....
रोम के राजा क्लाउडियस ब्रह्मचर्य की महिमा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने अपने सैनिकों को शादी करने के लिए मना किया था, ताकि वे शारीरिक बल और मानसिक दक्षता से युद्ध में विजय प्राप्त कर सकें । रोम के चर्च के ईसाई धर्मगुरु वेलेंटाइन जो स्वयं ईसाई पादरी होने के कारण बाहर से नहीं दिखा सकते कि वे ब्रह्मचर्य के विरोधी हैं। इसलिए पादरी वेलेंटाइन ने गुप्त ढंग से सैनिकों की शादियाँ कराईं । राजा को जब यह बात पता चली तो उन्हें दोषी घोषित किया और इस पादरी वेलेंटाइन को 14 फरवरी के दिन फाँसी दे दी गयी । सन् 496 से ईसाई पोप गैलेसियस ने उनकी याद में 14 फरवरी के दिन वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया । तब से लेकर अब तक यह प्रथा चली आ रही है ।
एक बड़ी बात यह भी है कि वेलेंटाइन डे मनाने वाले लोग पादरी वेलेंटाइन का ही अपमान करते हैं क्योंकि वे शादी के पहले ही अपने प्रेमास्पद को वेलेंटाइन कार्ड भेजकर उनसे प्रणय-संबंध स्थापित करने का प्रयास करते हैं । यदि पादरी वेलेंटाइन इससे सहमत होते तो वे शादियाँ कराते ही नहीं । तो ये था वेलेंटाइन - डे का इतिहास और इसके पीछे का आधार ।
भारत में जब अंग्रेज आये तब वो लोग इस दिन को मनाते थे तो भारत के कुछ लोग जो अंग्रेजों के चाटुकार थे, मूर्ख और लालची थे वे लोग भी इसे मनाने लगे ।
भारत में अंग्रेज वेलेंटाइन डे इसलिए मना रहे थे ताकि भारत के लोगों का नैतिक पतन हो जिससे वो अंग्रेजो के सामने लड़ ही न पाएं और लंबे समय तक भारत को गुलाम बनाकर रख सके ।
फिर अंग्रेज तो गये लेकिन विदेशी कम्पनियों ने सोचा कि हम अगर भारत में वैलेंटाइन डे को बढ़ावा देते हैं तो हमें अरबों-खबरों रुपये का फायदा होगा तो उन्होंने टीवी, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, अखबार, नावेल, सोशल मीडिया, आदि में खूब-प्रचार प्रसार किया जिससे उन्होंने महंगे ग्रीटिंग कार्ड, गिफ्ट, फूल चॉकलेट आदि से अरबों रुपए कमाएं । इसके अलावा नशीले पदार्थ, ब्ल्यू फिल्म, गर्भ निरोधक साधन, पोर्नोग्राफी, उत्तेजक पोप म्यूजिक जैसी सेक्स उत्तेजक दवाईयाँ बनाने वाली विदेशी कम्पनियां अपने आर्थिक लाभ हेतु समाज को चरित्रभ्रष्ट करने के लिए करोड़ों अरबों रूपये खर्च कर रही है ।
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल के एक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2016 में वेलेंटाइन डे से जुड़े सप्ताह के दौरान फूल, चॉकलेट, आदि विभिन्न उपहारों की बिक्री का कारोबार करीब 22,000 करोड़ रूपये था । पिछले साल बार 50,000 करोड़ रूपये से अधिक का कारोबार होने का अनुमान है । वस्तुत: वैलेंटाइन डे के विदेशी बाजारीकरण वासनापूर्ति को बढ़ावा देने वाला दिन है ।
अब ये वैलेंटाइन डे हमारे कुछ स्कूलों तथा कॉलजों में भी मनाया जा रहा है और हमारे यहाँ के लड़के-लड़कियाँ बिना सोचे-समझे एक दूसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड, गिफ्ट फूल दे रहे हैं ।
इन सब विदेशी गन्दगी को देखते हुए हिन्दू संत आशारामजी बापू ने 2006 में 14 फरवरी को मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाना शुरू किया जिसका अभी व्यापक रूप से प्रचार हो रहा है । भारत में उनके करोड़ों अनुयायी, आम जनता, हिन्दू संगठन और कई राज्यों की सरकार, गांव-गांव, नगर-नगर में इस दिन को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मना रहे हैं । विदेशों में भी उनके अनुयायी इस दिन को मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मना रहे हैं ।
हिन्दू संत बापू आशारामजी का कहना है कि 14 फरवरी को पश्चिमी देशों की नकल कर भारत के युवक युवतियाँ एक दूसरे को ग्रीटिंग कार्ड्स, फूल आदि देकर वैलेंटाइन डे मनाते हैं । इस विनाशकारी डे के नाम पर कामविकार का विकास हो रहा है, जो आगे चलकर चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, खोखलापन,जल्दी बुढ़ापा और जल्दी मौत लाने वाला साबित होगा ।
हजारों-हजारों युवक-युवतियां तबाही के रास्ते जा रहे हैं । वैलेंटाइन डे के बहाने आई लव यू करते-करते लड़का-लड़की एक दूसरे को छुएंगे तो रज-वीर्य का नाश होगा । आने वाली संतति पर भी इसका बुरा असर पड़ता है और वर्तमान में वे बच्चे-बच्चियां भी तबाही के रास्ते हैं । लाखों-लाखों माता-पिताओं के हृदय की पीड़ा को देखते हुए तथा बच्चे-बच्चियों को इस विदेशी गंदगी से बचाकर भारतीय संस्कृति की सुगंध से सुसज्जित करना है । प्रेम दिवस जरूर मनायें लेकिन प्रेमदिवस में संयम और सच्चा विकास लाना चाहिए । युवक-युवती मिलेंगे तो विनाश-दिवस बनेगा ।
इस दिन बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता का पूजन करें और उनके सिर पर पुष्प रखें, प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतानों को प्रेम करें । संतान अपने माता-पिता के गले लगें । इससे वास्तविक प्रेम का विकास होगा ।
तुम भारत के लाल और भारत की लालियाँ (बेटियाँ) हो । प्रेमदिवस मनाओ, अपने माता-पिता का सम्मान करो और माता-पिता बच्चों को स्नेह करें। पाश्चात्य संस्कृति के लोग विनाश की ओर जा रहे हैं । वे लोग ऐसे दिवस मनाकर यौन सम्बन्धी रोगों का घर बन रहे हैं, अशांति की आग में तप रहे हैं । उनकी नकल भारत के बच्चे-बच्चियाँ न करें ।
आपको बता दें कि बापू आशारामजी ने इस तरीके से करोड़ों लोगों को वैलेंटाइन डे आदि विदेशी प्रथाओं से, व्यसन आदि से बचाया है, जिसके कारण विदेशी कंपनियों का अरबों-खरबों रुपये का घाटा हुआ है । तथा इस नुकसान से बचने के लिए ही उन्होंने बापू आशारामजी को साज़िशों के जाल में फंसा जेल भेज दिया ।
हमारे शास्त्रों में माता-पिता को देवतुल्य माना गया है और इस संसार में अगर कोई हमें निःस्वार्थ और सच्चा प्रेम कर सकता है तो वो हमारे माता-पिता ही हो सकते हैं ।
तो क्यों न हम मानवमात्र के परम हितकारी हिन्दू संत आशारामजी बापू प्रेरित #14फरवरी_मातृ_पितृ_पूजन मनाकर अपने माता-पिता के सच्चे प्रेम का सम्मान करें और यौवन-धन, स्वास्थ्य और बुद्धि की सुरक्षा करें ।
आओ एक नयी दिशा की ओर कदम बढ़ाएं ।
14 फरवरी को वेलेंटाइन डे नहीं माता-पिता की पूजा करके उनका शुभ आशीष पाएं ।
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