12 फरवरी 2021
सदियों से भारत वर्ष में मातृ देवो भव! पितृ देवो भव! आचार्य देवो भव! का उद्घोष होता आया है। हमारी सनातन संस्कृति की नींव बहुत गहरी है। इसकी सुवास से सारा विश्व आन्दोलित हो सकता है। किन्तु आज देश में पाश्चात्य अंधानुकरण इस कदर फैल चुका है की युवा पीढ़ी को भौतिकवाद के सिवा कुछ सूझता ही नहीं।
फैशनपरस्ती करना, फिल्मों में क्लबों में जाना, पार्टी- डांस करना, नशाखोरी करना, मनमानी में पैसे बर्बाद करना इतने तक ही नई पीढी का जीवन सीमित हो चुका है। हमारा समाज इससे प्रभावित हो रहा है। आज कितने घरों में माता- पिता या बुजुर्गों का आदर होता है? कितने घरों में नवजवान अपने परिवार और समाज के प्रति दायित्व को समझते हैं? इस पर विचार करें तो आप को हमारी सामाजिक स्थिति पर खेद होगा।
आजकल ज्यादातर घरों में माता-पिता को नजर अंदाज किया जाता है। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे घरखर्च के लिए निश्चित राशि देते हैं, व्याधियाँ होते हुए भी नाती-पोतों को संभालते हैं। यहाँ तक कि नौजवान घर के दैनिक कार्यों की जिम्मेदारी भी अपने बुज़ुर्गों पर डाल नौकरी-धंधे पर निकल जाते हैं। क्या यह उनकी उपेक्षा नही है? उनका शोषण नहीं?
इसी कड़ी में 14 फरवरी को वैलेंटाईन-डे का उत्सव मनाना भी मैं अपने ज्येष्ठों की उपेक्षा समझती हूँ। इस तथाकथित उत्सव के प्रभाव में समाज और खंडित होता जा रहा है। ऐसे उच्छृंखल एवं उत्तेजक पर्व को मनाने से क्या हमारी संताने हमसे दूर नही जा रही? युवा पीढ़ी के इस नैतिक पतन के बाद क्या दया, प्रेम, आदर और कर्तव्यनिष्ठता के दैविक भाव उनमें पनप सकेंगे?
समाज को सही मायने में ऊर्ध्वगामी करने के प्रकल्प संतो के ही होते हैं। उनके उपदेश और आदर्श जीवनशैली हमारे प्रेरणास्त्रोत हैं। जो समाज से कुछ न लेकर भी उसकी मंगलकामना करते हैं, दीनों को आश्रय देते हैं और युवाओं को उत्साह वे ही हमारे सामाजिक-संरचना के आधार हैं। फिर उनकी अनसुनी करके, उन्हे ही कष्ट दे कर हमारा समाज कैसे ऊपर उठ सकता है। अपने पूज्यों की बात हमे माननी चाहिए। ऐसे ही एक संतात्मा श्री आशारामजी बापू ने वैलेन्टाईन-डे के प्रभाव से समाज को मुक्त करने के लिए मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का आव्हाह्न किया। उनका यह लोक-मांगल्य का संकल्प आज एक विश्वयापी अभियान बन चुका है। देश-विदेश के अधिनायक, नेता और नागरिक इसका समर्थन करते हैं। आप mppd.ashram.org की वेबसाईट पर जाकर अनेकों प्रमाण देख सकते हैं।
आप सभी पाठकों से मैं भी यह निवेदन करती हूँ कि 14 फरवरी को राष्ट्रहित एवं समाज-हित की दृष्टि से आप भी अपने परिवार में मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाएँ और अपने बड़ो का आशिर्वाद प्राप्त करें। आईये अपनी संस्कृति के बल से विश्वपटल पर भारत को अग्रणी बनाएँ। लेखक – रेणुका हरने
भारत में वैलेंटाइन डे की गंदगी अपने व्यापार का स्तर बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कम्पनियां लेकर आई हैं और वो ही कम्पनियां मीडिया में पैसा देकर वैलेंटाइन डे का खूब प्रचार प्रसार करवाती हैं । जिसके कारण उनका व्यापार लाखों नहीं, करोड़ों नहीं, अरबों नहीं लेकिन खरबों में हो जाता है, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया जनवरी से ही वैलेंटाइन डे यानि पश्चिमी संस्कृति का प्रचार करने लगता है, जिसके कारण विदेशी कम्पनियों के गिफ्ट, गर्भनिरोधक सामग्री, नशीले पदार्थ आदि 10 गुना बिकते हैं और उन्हें खरबों रुपये का फायदा होता है ।
वैलेंटाइन डे से युवाओं का अत्यधिक पतन हो रहा है इसलिए अब तो ऐसा समय आ गया है कि वैलेंटाइन डे की जगह लोगों ने अभी से 14 फरवरी के दिन "मातृ-पितृ पूजन दिवस" निमित्त मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम शुरू कर दिया है ।
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