21 फरवरी 2021
कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने केरल में एक रैली निकाली। इस रैली में कुछ लोगों ने RSS की यूनिफॉर्म पहनी थी। परेड में आरएसएस की यूनिफार्म में शामिल लोगों को जंजीर से भी बाँधा गया था। इस रैली के कई वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि इस दौरान अल्लाह-हू-अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह जैसे कई अन्य इस्लामी नारे लगाए गए।
रैली केरल के मलप्पुरम जिले के तेनियापलम शहर में आयोजित की गई थी और वीडियो में शहर के मुख्य वाणिज्यिक केंद्र चेलारी से गुजरने वाले जुलूस को दिखाया गया है।
जुलूस के दौरान कुछ नारे काफी भड़काऊ और उत्तेजक थे। इसमें आरएसएस के यूनिफार्म वाले सदस्यों को जंजीर में बँधा हुआ दिखाना भी शामिल है। रैली में आरएसएस की यूनिफार्म में लोगों के साथ कुछ लोग ब्रिटिश अधिकारियों की भी भेष-भूषा में थे। इन लोगों के हाथ में भी रस्सी बँधी और इसका दूसरा छोर लूँगी और जालीदार टोपी (skullcaps) पहने लोगों के हाथ में थी। आरएसएस और ब्रिटिश अधिकारियों का कपड़ा पहने लोग जालीदार टोपी और लूँगी पहने लोगों का अनुसरण कर रहे थे। उनके हाथ में लाठियाँ भी थी।
कुछ सूत्रों का कहना है कि पीएफआई की रैली आज ‘1921 मालाबार हिंदू नरसंहार’ या मोपला नरसंहार की शताब्दी को ‘मनाने’ के लिए की गई थी, जिसे इतिहास में 1921 के मालाबार विद्रोह के रूप में जाना जाता है। मोपला नरसंहार में तकरीबन 10,000 हिंदुओं को मौत के घाट उतारा गया। यह माना जाता है कि दंगों के मद्देनजर 1,00,000 हिंदुओं को केरल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इस दौरान हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। जबरन धर्मांतरण हुए और कई प्रकार के ऐसे अत्याचार हिंदुओं पर किए गए, जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है।
जंजीरों मे कौन हैं?
गजवा ए हिन्द की इस्लामिक भविष्यवाणी के अनुसार पूरी दुनिया में इस्लाम का शासन तभी सफल होगा जब हिन्द का शासक बेड़ियों मे जकड़ कर मुस्लिम खलीफा के सामने होगा। इसलिए भारत के शासक के प्रतीक RSS के गणवेश धारी व यूरोप (ब्रिटेन/फ्रांस) के शासक के प्रतीक लाल टोपी व लाल सफेद कपड़ों वालों बेड़ियों मे जकड़े दिखाया गया है। तुर्की का टेलीविज़न नाटक अरतुगरुल गाजी से प्रभावित होकर यह खलीफ़ा को दोबारा खड़ा करना चाहते हैं।
मोपला द्वारा हिन्दू नरसंहार की स्मृतियाँ
1981 में डॉ मैरी विठ्ठिल Dr. Mary Vithithil केरल की मलयालम पत्रिका शब्दधाम नामक पत्रिका की सम्पादिका मालाबार गई और 1921 के हिंदू नरसंहार में भाग लेने वाले कई लोगों का साक्षात्कार लिया। उन्होंने श्रृंखला का शीर्षक दिया, "मोपला लाहला का एक उदासीन स्मरण। "... (“A nostalgic remembrance of the Mopallah Lahala”).
उन्ही दंगाइयों में से एक साक्षात्कार उन्होंने 81 साल के अब्दुल्ला कुट्टी के साथ किया था। ये उसके शब्द हैं ...।
“जब दंगे शुरू हुए तो हमारे बीच बहुत उत्साह था। रोज हम सड़कों पर खड़े होकर दंगाइयों के आने और उनके साथ आने का इंतजार करते। हम उनके साथ गए लेकिन हमने किसी को नहीं मारा दंगाइयों ने करिपथ इलम (ब्राह्मण घर) Karipath Illam( Brahmin House) पर हमला किया और सभी निवासियों को मार डाला। उन्होंने सारी दौलत ले ली और फिर उस इल्म को एक ऐसी जगह में बदल दिया, जहां असहाय हिंदुओं को लाया जाता था और जबरदस्ती धर्मांतरण या हत्या कर दी जाती थी।
हमने मांस पकाया और उन्हें बलपूर्वक खिलाया .. इस की गंध के कारण उनको कई दिन तक उल्टी हुई । इस तरह के लोगों को हमने लात मारकर गिरा दिया गया। कईयों ने कई दिन तक कुछ भी खाने से मना कर दिया।
जब हमने 25 हिंदुओं को इकट्ठा किया ... उन्हें कुएं के किनारे ले जाया गया। तब दीनवालों ने उनसे पूछा ... ईस्लाम कबूल करेंगे या आप इंग्लैंड जाना चाहते हैं (मतलब मौत)।
अधिकांश ने मौत चुनी और इसलिए उनकी गर्दन काटकर उन्हे कुएं में फेंक दिया । कई लोग तुरंत नहीं मरे, लेकिन घंटों और कभी-कभी दिनों तक तड़पते रहे।
हर रोज हम पालतू पशुओं को लाते और चावल के साथ पकाते ... हम अच्छी तरह से खाते थे और इसने हमें और अधिक और दंगों में सक्रिय कर दिया।
पकड़े गए इन हिंदुओं में से हमें एक आदिवासी लड़का मिला जिसने तीर और धनुष बनाया। वह परिवर्तित हो गया और जल्द ही दंगों में शामिल हो गया। उनके दीन का नाम अली रख दिया। ...
एक और शख्स जो हमसे जुड़ गया वो था बिरन कुट्टी। वह ब्रिटिश सेना से सेवानिवृत्त हुए थे और इसलिए उनके पास एक बंदूक थी। उन्होंने दंगों में इस बंदूक का इस्तेमाल किया।
जैसे-जैसे दंगे अधिक से अधिक हिंसक होते गए ... क्षेत्र के कुएं शवों से भर गए ... "
अब्दुल्ला कुट्टी ने इन सभी गंभीर घटनाओं को बहुत याद किया और उन्होंने कहा कि यह गोरखा रेजिमेंट के अंदर आने के बाद ही रुका है।
अधिकतम संख्या में हिंदुओं को टुकड़े टुकड़े करके या उनकी गर्दन काट कर कुएं मे फेंक दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि इस तरह मारे गए हिंदुओं के कंकाल गर्मियों में आने पर कुएं में देखे जा सकते हैं और कुएं सूख जाते हैं।
यह याद रखना अच्छा होगा कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट सरकारों ने बाद में इन दंगाइयों को 1980 के दशक में इन नरसंहार करने वाले मोपला मुस्लिमों को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन दी। दूसरी तरफ जो हिंदू सब कुछ खो चुके थे जीवन, सम्मान, परिवार, स्थिति, घर, संपत्ति और धन ऐसी किसी भी पेंशन से इनकार कर दिया गया था।
यह लेख मूलतः मलयालम पत्रिका के विवरण के आधार पर इंग्लिश मे था। अनुवाद किया है इंग्लिश से हिन्दी में अनुवादित।
अभी भी हिन्दू आपस में एकजुट नहीं हुए तो क्या हाल होगा देख लीजिए।
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