Saturday, October 7, 2023

मुसलमानों की घर वापसी : क्यों और कैसे !? जानिए...

 मुसलमानों की घर वापसी : क्यों और कैसे !? जानिए...


7 October , 2023


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🚩अस्त्र-शस्त्र का उत्तर अस्त्र-शस्त्र से देना उचित है। लेकिन विचारों का उत्तर तो विचार ही हो सकते हैं। किसी विचार, किसी लेख , कविता या पुस्तक की प्रतिक्रिया स्वरूप तलवार निकालना मजबूती नहीं, कमजोरी की निशानी है। किन्तु अरब से लेकर यूरोप, एशिया, अफ्रीका तक, हर कहीं इस्लामी नेता और संगठन सरल, संयत, वैचारिक संघर्ष से बचते हैं। इसे सदैव हिंसा से दबाने की कोशिश करते हैं। सदियों से, बल्कि आरंभ से ही, इस में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वयं प्रोफेट मुहम्मद ने अपने विचारों पर किसी के प्रतिवाद, संदेह का यही उत्तर दिया था।


🚩तब क्या इस्लाम कागजी शेर नहीं है? एक दुर्बल, भयभीत मतवाद, जो केवल धमकी, हिंसा, छल-कपट, अनुचित रूप से उठाई जा रही विशेष सुविधाओं, अनुचित-असमान नियमों के बल से चल रहा है। ऐसा मत-विश्वास कितने दिन चलता रह सकता है?


यह एक बुनियादी प्रश्न है, जिस से भारत और वर्तमान विश्व की कई समस्याएं जुड़ी हुई हैं।

दुर्भाग्यवश, इस प्रश्न को भारतीय मुसलमानों के बीच रखने के बदले उन्हें राजनीतिक मतवादों में उलझाए रखा जाता है। उदाहरण के लिए, भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण, या नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उन्हें उठाया जाता है। लेकिन कश्मीर का विषय ऐसे रखा जाता है, मानो यह मात्र 67 वर्ष पहले से चल रहा मामला हो। कश्मीर तो हजारों वर्ष पुराना सांस्कृतिक क्षेत्र है। क्या उस हजारों वर्ष के इतिहास से यहाँ मुसलमानों का कोई संबंध नहीं? सारी चर्चा राजनीतिक इस्लाम और उस का वर्चस्व बनाए रखने की दृष्टि से की जाती है। मानो वह उद्देश्य तो स्वयंसिद्ध हो, जिस पर प्रश्न उठाना ही अनुचित हो। इसी कारण यहाँ हिन्दू ही नहीं, मुसलमान भी भ्रमित और झूठी बंदिशों में फँसे रहते हैं। इस से किसी का भला नहीं हुआ है।


🚩सौभाग्यवश, आज दुनिया में एक दूसरी प्रक्रिया भी चल रही है। मुस्लिम जगत में विवेकशील पुनर्विचार भी चल रहा है। कूनराड एल्स्ट के शब्दों में, बाहरी भौतिक रूप में अभी मुस्लिम आबादी, संगठन, संस्थान, आदि बढ़ रहे हैं। किन्तु मुसलमानों के आंतरिक मनोजगत में दुविधा और संदेह भी बढ़ रहे हैं। इन दो प्रक्रियाओं के बीच प्रतियोगिता-सी चल रही है। जिम्मी (इस्लाम के सहयोगी गैर-मुसलमान), जिन्हें भारत में सेक्यूलर या वामपंथी या गाँधीवादी आदि कहा जाता है, वे लोग पहली प्रक्रिया को मदद दे रहे हैं। जबकि विवेकशील लोग दूसरी प्रक्रिया को। इस प्रतियोगिता के अंतिम परिणाम पर सस्पेंस जरूर है, किन्तु कोई संदेह नहीं।


🚩आखिर यह बात देखने से मुसलमान कैसे बच सकते हैं कि हिन्दू लोग भी अप्रवासी के रूप में सारी दुनिया में विभिन्न समुदायों के साथ रहते हैं। लेकिन उन के साथ किसी समुदाय के झगड़े का कहीं से कोई समाचार नहीं आता? जबकि मुसलमानों का हर कहीं, हर समुदाय के साथ झगड़ा है। बल्कि, जहाँ दूसरे समुदाय नहीं हैं, वहाँ उन की दूसरे मुसलमानों से वैसी ही हिंसक लड़ाई है।

ऐसा क्यों? इस पर स्वयं असंख्य मुसलमानों का ध्यान गया है। प्रसिद्ध लेखक सलमान रुशदी ने कई वर्ष पहले यह प्रश्न भी उठाया था कि क्या उन के मजहबी मतवाद में ही कोई चीज है जो इस हालत का कारण है ??


🚩सर्वविदित रूप से इस्लामी सिद्धांत के दो भाग हैं – ईश्वर संबंधी और राजनीति संबंधी।

ईश्वर संबंधी विचार इस्लाम का छोटा हिस्सा हैं, लगभग 14 प्रतिशत। जिस में अल्लाह, आख़िरत और जन्नत-जहन्नुम की धारणाएं हैं।

किन्तु इस्लामी मत का बड़ा भाग राजनीतिक है, जिस से काफ़िरों की ख़िलाफ़त , ज़ेहाद, ज़ज़िया, शरीयत, जिम्मी, आदि धारणाएं संबंधित हैं। 


🚩इस राजनीतिक इस्लाम का मूल आधार दूसरों, यानी गैर-मुस्लिमों (‘काफिरों’) को बर्दाश्त नहीं करना है। उदाहरण के लिए, कुरान (2:216) मूर्तिपूजक धर्म को हत्या से भी गर्हित पाप बताता है। इस प्रकार मुसलमानों को हिन्दू, बौद्ध, जैन, आदि तमाम लोगों को सर्वाधिक घृणित मानना सिखाता है। कुल मिलाकर कुरान में 111 आयतें जिहाद को समर्पित हैं। फिर, सीरा (प्रोफेट मुहम्मद की जीवनी) में 67% शब्द जिहाद से संबंधित हैं। हदीस (प्रोफेट मुहम्मद के वचन और कार्य) में 21% सामग्री जिहाद के बारे में हैं।


🚩 जबकि कुछ लोग जिहाद को मुख्यतः ‘आत्म-सुधार’ मानते हैं, जो कि सिरे से बिल्कुल गलत धारणा है । क्योंकि संपूर्ण इस्लामी शास्त्र (सीरा+ कुरान + हदीस) में यह नगण्य-सा हिस्सा है। हदीसों में 98% विवरण सशस्त्र-हिंसा से संबंधित हैं। सुन्ना (सीरा और हदीस) और कुरान में बार-बार दुहराई गई बात है कि दूसरों से इस्लाम कबूल करवाओ, यहूदियों-क्रिश्चियनों को जिम्मी बना कर हीन और अपमानित हालत में रखो, उन से ज़ज़िया टैक्स लो, उन्हें भगाओ या मार डालो।


🚩इस प्रकार, राजनीतिक इस्लाम मुख्यतः काफिरों (गैर-मुसलमानों) के प्रति दुर्व्यवहार है। इस्लाम का सैद्धांतिक-व्यवहार काफिरों के विरुद्ध नितांत असहिष्णुता और हिंसा से भरा है। यही सारी दुनिया में उस का वास्तविक इतिहास भी रहा है, जो पिछले चौदह वर्षों के मुस्लिम साहित्य में ही खुल कर एक समान मिलता है।


🚩चूँकि इस मूल सैद्धांतिक-व्यवहार को इस्लामी ईमाम, आलिम-उलेमा आज भी पूर्णतः सही और यथावत् अनुकरणीय मानते हैं, इसलिए उस के नतीजों का हिसाब करना चाहिए। विशेषकर काफिरों को ( सभी ग़ैरमुस्लिमों को ! यह उनका अधिकार ही नहीं, कर्तव्य भी है !!


🚩लेकिन राजनीतिक इस्लाम के सिद्धांत-व्यवहार से आज तक हुए और अभी भी हो रहे परिणामों पर मुसलमानों को भी सोचना ही होगा। इसने काफिरों को ही नहीं, मुसलमानों को भी प्रभावित किया है। अन्यथा उनके अपने मुस्लिम समाज के मध्य भी अशान्ति के मुख्य वजह पर पर्दा पड़ा रहेगा। इस बात पर कि राजनीतिक इस्लाम और संपूर्ण मानव-समाज, जीव-जगत, एवं ब्रह्मांड की सच्चाई के बीच ताल-मेल न था , न है और ना ही कभी हो सकता है। इस के सिवा मुस्लिम अशान्ति के बाकी सारे कारण कम महत्वपूर्ण हैं।


🚩इस समस्या का समाधान सैनिक तरीके से नहीं, बल्कि शिक्षा में है। ध्यान दें, कुरान में असंख्य बार कई प्रसंगों में ‘प्रमाण’, ‘स्पष्ट प्रमाण’, की बातें की गई है। अतः मुसलमान किसी विचार-बिन्दु, विषय में प्रमाण, सबूत, एविडेंस के महत्व से परिचित हैं। केवल उन्हें प्रमाण वाली कसौटी को उन विचारों, कानूनों, विवरणों, दलीलों पर भी लागू करके देखने की जरूरत है जिन्हें वे स्वतः-प्रमाणिक मानते रहे हैं। जैसे, मूर्तिपूजकों को घृणित समझना; इस्लाम से पहले या बाहर के मानव-समाजों को मूर्ख मानना; जीने के बदले मरने को अधिक अच्छा मानकर ‘जन्नत’ पाने के लिए हर तरह के चित्र-विचित्र काम करना; जिहाद को सब से बड़ा कर्तव्य समझना; मनुष्य को गुलाम बनाकर बेचना-खरीदना; स्त्रियों को मात्र भोग की वस्तु या संपत्ति के रूप में देखना; आदि मान्यताओं को विवेक से देखने की जरूरत है। ये मान्यताएं कोई ईश्वरीय देन या ‘सर्वकालिक सत्य’ नहीं हैं – इसलिए इसकी परीक्षा की जानी चाहिए और बचपन से ही सही शिक्षा और उत्तम संस्कार दिए जाने चाहिए।

(पुस्तक अंश- अक्षय प्रकाशन, नई दिल्ली, 2020, पृ. 128)

- डॉ. शंकर शरण (२२ सितम्बर २०२०)


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Friday, October 6, 2023

हॉलीवुड अभिनेता सिलवेस्टर स्टेलोन ने भारत आकर किया श्राद्धकर्म।

 विदेश की नामी हस्तियाँ भी अपने पितरों की मुक्ति और शांति के लिए श्राद्ध करने भारत आती हैं.....

6 October 2023


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🚩‘श्राद्ध’ पितृऋण चुकाने के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। श्राद्धविधि में किए जानेवाले मंत्रोच्चारण में पितरों को गति देने की सूक्ष्म शक्ति समाई हुई होती है। श्राद्ध में पितरों को तर्पण करने से वे संतुष्ट होते हैं। श्राद्धविधि करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन भी सुव्यवस्थित,सुखमय और संपन्न हो जाता है।


🚩हिन्दू धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है। हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है।


🚩अपने पूर्वजों की सद्गति के लिए हिन्दूधर्म में की जाने वाली श्राद्ध-विधि विदेशी लोगों को भी आकर्षित करती है और शायद यही कारण है कि, कई विदेशी लोग अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने की यह विधि करने के लिए भारत आते है एवं पूरी श्रद्धा से यह विधि करते हैं ।


🚩हॉलीवुड अभिनेता सिलवेस्टर स्टेलोन ने करवाया श्राद्ध 


🚩अपने 36 वर्षीय बेटे पुत्र सेज स्टेलोन की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए रॉकी बेलबोआ सीरिज के लिए मशहूर हॉलीवुड अभिनेता सिलवेस्टर स्टेलोन ने भी हिंदू कर्मकांड को अपनाया। कुछ साल पहले पितृ पक्ष के दौरान स्टेलोन के बेटे का पिंडदान कनखल के सतीघाट पर किया गया।


🚩स्टेलोन को उनके बेटे की आत्मा हर जगह नजर आ रही थी। इससे वो मानसिक रूप से परेशान हो गए थे। ऐेसे में हिंदू दर्शन और कर्मकांड से प्रभावित होकर स्टेलोन ने अपने भाई माइकल और उनकी पत्नी को बेटे के पिंडदान के लिए हरिद्वार भेजा था।


🚩यूरोपियन लोगो ने किया पितरों का श्राद्ध


 🚩यूरोप के देश चेक रिपब्लिक से 10 विदेशियों का दल (Group of Europeans) दो साल पहले कानपुर पहुंचा था। सनातन धर्म अनुसार विधि विधान का पालन करते हुए सभी ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए श्राद्धकर्म किया था और भारत में 15 दिन रुक कर हवन पूजन और धार्मिक अनुष्ठान आदि किया था।


🚩इन सभी ने स्वीकार किया है कि मृत्यु के बाद किसी न किसी रूप में पित्र या पूर्वज विद्यमान रहते हैं और ये सभी अपने ही वंश के सदस्यों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित या फिर दुष्प्रभावित करते रहते हैं। चेक गणराज्य के प्लाम्पलोव शहर के डिप्टी मेयर रहे जीरी कोचन्द्रल अपनी पत्नी वेरा कोचन्द्रल के साथ आए थे, जो खासे प्रभावित भी हुए थे।


🚩जीरी का कहना है कि, यह सब देखना और इसकी अनुभूति करना इनके दल के लिए अकल्पनीय जैसा है। ये सभी हवन के बाद आनंद से भर जाते हैं। चेक रिपब्लिक के नागरिक पीटर की माने तो वो सभी यहां ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही आए हैं। वैदिक संस्कृति में होने वाले संस्कारों को देखकर वे खुद को खुशकिस्मत भी मानते हैं। इनको साथ लाए राजीव सिन्हा की माने तो यहां सभी राज्यों से लोग आते जाते हैं, विदेशियों का भी एक जत्था यहां आया है , जो प्रसन्नता और शांति की अनुभूति कर रहा है।


🚩अभी तक यही कहा जाता है कि, विदेशियों की परंपरा में अपने पूर्वजों की मुक्ति का अनुष्ठान नहीं किया जाता क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति में पुनर्जन्म की मान्यता को लेकर काफी मतभेद हैं। लेकिन वैदिक संस्कृति में रम चुके ये लोग पितरों के श्राद्ध और पूजा अर्चना के बाद सुख की अनुभूति कर रहे हैं ।


🚩कुछ साल पहले यह विधि करने के लिए रूस के नताशा स्प्रबनोभा, सरगे और एकत्रिना ने धर्मनगरी गया आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।


🚩गया में पिंडदान किया रुसी नागरिकों ने:


🚩इन लोगों ने ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर, फल्गु के देवघाट, प्रेतशिला और रामशिला वेदी पर पिंडदान किया और पूर्वजों के लिए स्वर्गलोक की कामना की। इन लोगों ने विष्णुपद मंदिर में पूजा अर्चना की। मीडिया से बात करते हुए इन लोगों ने कहा कि, सनातन धर्म के बारे में पढ़ा था जिसमें पिंडदान को काफी महत्वपूर्ण माना गया है और इस परंपरा को भारतीय वेशभूषा में संपन्न करने के बाद उनकी आकांक्षा आज पूरी हो गयी है !


🚩बता दें कि वर्ष 2017 में मोक्ष स्थली गया में पितरों की मुक्ति के महापर्व पितृपक्ष मेला के दौरान देवघाट पर अमेरिका, रूस, जर्मनी और स्पेन के कई विदेशी नागरिकों ने अपने पितरों की मुक्ति की कामना को लेकर पिंडदान व तर्पण किया था। उन्हीं में से जर्मनी की एक नागरिक इवगेनिया ने कहा था कि, भारत धर्म और अध्यात्म की धरती है। गया आकर मुझे आंतरिक शांति की अनुभूति हो रही है। मैं यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आई हूँ।


🚩इन विदेशियों को हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करते देख एक संतोष होता है, कि हमारी संस्कृति इतनी महान है, जिसमें हर जाति,वर्ग और देश के और यहां तक की समस्त चराचर जगत के मंगल की व्यवस्था है। 


🚩माता-पिता, निकट संबंधियों या अन्य किसी के भी मरणोपरांत यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति मिले, इस हेतु किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’। श्राद्ध-विधि करने से पितरों की कष्ट से मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन भी सुगम व सुखमय हो जाता है। परंतु दुर्भाग्यवश आज हिन्दुओं को ऐसी विधियाँ करना पिछड़ापन लगता है। उनकी मॉडर्न जीवनशैली को श्राद्धकर्म अंधश्रद्धा लगती है।


🚩धर्मशिक्षा का महत्त्व...

अपने रीति-रिवाजों को अंधश्रद्धा मानना , हिन्दू समाज की बड़ी ही दु:खद स्थिति है। आज हिंदुओं को धर्मशिक्षा न मिलने के कारण ही उनका इस प्रकार अध:पतन हो रहा है।

आज ऐसी स्थिति है कि, विदेशों से आकर श्रद्धालु हिन्दूधर्म तथा अध्यात्म के बारे में जानकारी प्राप्त कर हिन्दूधर्म के अनुसार आचरण करने लगे हैं, वहीं हिन्दूधर्म की पुण्यभूमि भारतवर्ष के कई हिन्दुओं को ही आज धर्माचरण करना पिछड़ेपन जैसे लगता है।


🚩मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग या नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) पर आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।


🚩पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसीलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है। शास्त्रों में आता है कि अमावस के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए।


🚩भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे।

जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से संतुष्ट व प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष। इस दिनों में पितृऋण से मुक्त होने के लिए हमें श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।


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Thursday, October 5, 2023

कनाडा में जब तक खालिस्तानी चरमपंथियों को संरक्षण जारी है, तब तक चैन से न बैठे भारत...

 5 October 2023 


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🚩खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए कथित भारतीय एजेंट को जिम्मेदार बताने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने गत दिवस जिस तरह यह कहा कि भारत तेजी से बढ़ती आर्थिक शक्ति है और वो भारत से करीबी संबंध बनाए रखने को लेकर गंभीर हैं, उससे यही लगता है कि उन्हें अपनी गलती समझ आ गई है।


🚩हालांकि उन्होंने निज्जर हत्याकांड में सच का पता लगाने के लिए मिलकर काम करने की अपील भी की, लेकिन उसमें कोई दम इसलिए नहीं, क्योंकि भारत के कहने के बाद भी कनाडा कोई प्रमाण उपलब्ध कराने में आनाकानी कर रहा है। यह आनाकानी यही बताती है कि कनाडा के पास ऐसे कोई प्रमाण हैं ही नहीं, जो यह सिद्ध कर सकें कि निज्जर की हत्या से भारत का कोई लेना-देना है। इस मामले में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कनाडा को जिस तरह खरी-खरी सुनाई, उससे यह स्पष्ट है कि भारत जस्टिन ट्रुडो की बेजा बात सुनने को तैयार नहीं।


🚩इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कनाडा पुलिस निज्जर की हत्या के तीन माह बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। वह निज्जर के हत्यारों की पहचान तक नहीं कर पाई है। भले ही सवालों से घिरे जस्टिन ट्रूडो के सुर बदल गए हों, लेकिन भारत को अपने रवैये में नरमी लाने की आवश्यकता इसलिए नहीं, क्योंकि ट्रूडो ने बिना किसी प्रमाण भारत को कठघरे में खड़ाकर बेहद गैर जिम्मेदाराना हरकत की है। उन्होंने निज्जर की हत्या के लिए भारत को जिम्मेदार बताने के साथ एक भारतीय राजनयिक का नाम सार्वजनिक करते हुए उन्हें निष्कासित करके उसकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर दिया है। मैत्रीपूर्ण संबंधों वाले देश ऐसी हरकत कभी नहीं करते।


🚩यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि ट्रूडो सरकार ने यह शरारत उस खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह धालीवाल के दबाव में की, जिसकी पार्टी के समर्थन से उनकी अल्पमत सरकार चल रही है। यह भी साफ दिख रहा है कि ट्रूडो वोट बैंक की राजनीति के तहत खालिस्तानियों के प्रति नरम हैं। कनाडा में सात लाख से अधिक सिक्ख हैं, लेकिन शायद धालीवाल जैसे तत्वों के कारण ट्रूडो यह मान बैठे हैं कि उनके यहां रहने वाले सभी सिक्ख खालिस्तानी हैं। यह उनका मुगालता ही है, क्योंकि चंद सिक्ख ही खालिस्तान समर्थक हैं। चूंकि वे उग्र और हिंसक हैं, इसलिए कनाडा में रह रहे आम सिक्ख उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाते।


🚩शायद ट्रूडो इससे भी अनजान बने रहना चाहते हैं कि कनाडा में खालिस्तानी चरमपंथियों के कई गुट हैं और वे जब-तब एक-दूसरे को निशाना बनाते रहते हैं। कई खालिस्तानी अपने विरोधी गुटों की ओर से मारे जा चुके हैं। हैरानी नहीं कि निज्जर की हत्या भी उसके विरोधी गुट ने की हो। आतंकी निज्जर की हत्या को लेकर जस्टिन ट्रूडो की ओर से भारत पर निराधार आरोप लगाने के बाद एन.आइ.ए. ने पंजाब, हरियाणा समेत छह राज्यों में खालिस्तानियों, गैंगस्टरों और ड्रग तस्करों के गठजोड़ के खिलाफ जो छापेमारी की, वह पहले ही की जानी चाहिए थी, क्योंकि कई खालिस्तानी आतंकी, गैंगस्टर और ड्रग तस्कर कनाडा में एक अर्से से शरण लिए हुए हैं। अभी तो ऐसा लगता है कि यदि निज्जर का मामला न उछलता तो एन.आइ.ए. सक्रियता नहीं दिखाती।


🚩चूंकि कनाडा के खालिस्तानी ड्रग तस्करी और मानव तस्करी में भी लिप्त हैं, इसलिए खालिस्तान समर्थक वहां आसानी से शरण पा जाते हैं। निज्जर भी अवैध दस्तावेजों के सहारे ही कनाडा पहुंचा था, लेकिन किसी तरह वहां की नागरिकता पा गया। भारत ने उसे न केवल आतंकी घोषित किया था, बल्कि उस पर ईनाम भी रखा था। इसी कारण एस. जयशंकर ने दो टूक कहा कि कनाडा में भारत विरोधी तत्वों को संरक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने वीजा सेवा बंद किए जाने का कारण बताते हुए साफ किया कि ऐसा इसलिए करना पड़ा, क्योंकि उनके राजनयिकों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया है। कनाडा में खुलेआम खालिस्तानी आतंकियों का महिमामंडन किया जाता है। इनमें वे भी हैं, जो 1985 में एयर इंडिया के विमान को बम विस्फोट से उड़ाने की साजिश में शामिल थे।


🚩जब तक कनाडा खालिस्तानी चरमपंथियों और आतंकियों के साथ भारत से भागकर वहां पहुंचे गैंगस्टरों को संरक्षण देता रहता है, तब तक भारत सरकार को चैन से नहीं बैठना चाहिए। उसे कनाडा को इसके लिए बाध्य करना चाहिए कि वह भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा बने तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करे। जस्टिन ट्रूडो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में खालिस्तानी चरमपंथियों पर जिस तरह मेहरबान हैं, वह इसलिए अस्वीकार्य है, क्योंकि खालिस्तानी आतंकी कनाडा में रह रहे हिंदुओं को धमकाने के साथ भारतीय राजनयिकों की हत्या के फरमान जारी कर रहे हैं।


🚩भारत को कनाडा के साथ उसके सहयोगी देशों और विशेष रूप से अमेरिका से भी यह प्रश्न करना चाहिए कि क्या भारतीय राजनयिकों के पोस्टर लगाकर उनकी हत्या करने की धमकी देना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है? यह प्रश्न करना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि प्रतिबंधित संगठन सिक्ख फार जस्टिस के सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू के पास कनाडा के साथ अमेरिका की भी नागरिकता है। वह कभी अमेरिका तो कभी कनाडा से भारत को धमकियां देता रहता है। यह चिंताजनक है कि कनाडा, अमेरिका की तरह ब्रिटेन और कुछ अन्य देशों में भी खालिस्तानी बेलगाम हैं।


🚩खालिस्तानियों को आश्रय देने का काम अमेरिका भी कर रहा है। जिस तरह कनाडा ने भारतीय राजनयिकों पर हमला करने और हिंदू मंदिरों को निशाना बनाने वाले खालिस्तानियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की, उसी तरह अमेरिका ने भी सैन फ्रांस्सिकों में भारतीय दूतावास पर हमला करने वाले खालिस्तानियों के खिलाफ कुछ नहीं किया। माना जाता है कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंट की कथित लिप्तता की “खुफिया जानकारी” अमेरिका ने ही कनाडा को उपलब्ध कराई। इसका मतलब है कि अमेरिका भारतीय राजनयिकों की जासूसी कर रहा था। सच जो भी हो, खुफिया सूचनाएं सदैव साक्ष्य नहीं होतीं।


🚩यह अच्छा हुआ कि भारतीय विदेश मंत्री ने अमेरिकी धरती पर कनाडाई प्रधानमंत्री के गैर जिम्मेदाराना आचरण को बयान करने के साथ यह भी कह दिया कि अमेरिका कनाडा को अलग तरह से देखता है, जबकि वह हमारे लिए ऐसा देश है, जो भारत विरोधी गतिविधियों को केंद्र है। साफ है कि इस मामले में भारत किसी से और यहां तक कि अमेरिका से भी दबने वाला नहीं। यदि अमेरिका भारत से अपने संबंध मजबूत करना चाहता है तो उसे भारत के बजाय कनाडा को नसीहत देनी चाहिए।

              - संजय गुप्त


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Wednesday, October 4, 2023

विश्व राजनीति में भारतीय मूल के नेताओं का दबदबा बरकरार

4 October 2023


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🚩भारत के संतो का संकल्प है की भारत विश्व गुरु बनकर रहेगा और आज इस संकल्प को साकार होते हुए दिख रहा हैं।


🚩भारतीय मूल के कई नेता दुनिया के अलग अलग देशों में अपना दबदबा बनाए हुए हैं। ऐसे में, एक और देश इस सूची में जुड़ गया है। दरअसल, भारतीय मूल के थरमन शनमुगरत्नम शुक्रवार को सिंगापुर के नए राष्ट्रपति बने हैं। इसी के वो ऐसे भारतीय मूल के नेताओं में शामिल हो गए, जो विश्व के कई देशों की राजनीति में अपना दबदबा बनाए हुए हैं। 


🚩बता दें, शनमुगरत्नम ने 70 फीसदी वोट पाकर शानदार जीत हासिल की। वह सिंगापुर के नौंवे राष्ट्रपति चुने गए हैं और उनका कार्यकाल छह साल के लिए रहेगा। 


🚩दुनिया भर में बढ़ रहा भारतीयों का प्रभाव

प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने शनिवार को थर्मन को बधाई दी। उन्होंने कहा कि सिंगापुर के लोगों ने थरमन शनमुगरत्नम को अगला राष्ट्रपति चुना है। उन्होंने आगे कहा कि थरमन भारतीय विरासत के कई नेताओं में से हैं, जो वैश्विक स्तर पर इतने ऊंचे पद पर चुने गए हैं। लूंग ने कहा कि शनमुगरत्नम की जीत दुनिया भर में भारतीयों के बढ़ते प्रभाव का प्रतीक है।


🚩भारतीय नेताओं का दुनिया की राजनीति पर प्रभाव


🚩1. अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी समुदाय के बढ़ते प्रभाव को कमला हैरिस की सफलता में देखा जा सकता है। भारतवंशी हैरिस अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति बनी हैं। इससे पहले वह साल 2017 से 2021 तक कैलिफोर्निया की सीनेटर रहीं। 


🚩डेमोक्रेट हैरिस ने 2011 से 2017 तक कैलिफोर्निया की अटॉर्नी जनरल के रूप में भी काम किया। उनका जन्म कैलिफोर्निया में भारतीय और जमैका माता-पिता के यहां हुआ था।


🚩2. नंबर में मध्यावधि चुनावों में, सत्तारूढ़ डेमोक्रेट पार्टी के पांच भारतीय-अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति, रो खन्ना, प्रमिला जयपाल, अमी बेरा और श्री थानेदार अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए।


🚩3. इतना ही नहीं, कैलिफोर्निया के एक प्रमुख राजनेता हरमीत ढिल्लों ने हाल ही में रिपब्लिकन नेशनल कमेटी (आरएनसी) के अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ा था। 


🚩4. निक्की हेली और विवेक रामास्वामी जैसे भारतीय मूल के नेताओं ने अगले साल होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए अपनी दावेदारी पेश की है।


🚩5. ऋषि सुनक पिछले साल ब्रिटेन के पहले भारतीय मूल के प्रधानमंत्री बने थे। साथ ही, गोवा मूल की सुएला ब्रेवरमैन उनकी गृह सचिव के रूप में कार्यरत हैं। बता दें, सनक कैबिनेट में ब्रेवरमैन के बाद क्लेयर कॉटिन्हो गोवा मूल के दूसरे मंत्री हैं। उन्हें हाल ही में उनके नए ऊर्जा सुरक्षा और नेट जीरो सचिव के रूप में एक बड़ी पदोन्नति मिली।


🚩6. सुनक से पहले, बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल में प्रीति पटेल गृह सचिव थीं। आलोक शर्मा जॉनसन कैबिनेट में अंतरराष्ट्रीय विकास सचिव थे।


🚩7. गौरतलब है, आयरलैंड के प्रधानमंत्री (ताओसीच) लियो एरिक वराडकर भी भारतीय मूल के हैं। वराडकर अशोक और मिरियम वराडकर की तीसरी संतान और इकलौते बेटे हैं। उनके पिता का जन्म मुंबई में हुआ था और 1960 के दशक में यूनाइटेड किंगडम चले गए थे।


🚩8. एंटोनियो कोस्टा 2015 से पुर्तगाल के प्रधानमंत्री हैं। वह आधे भारतीय और आधे पुर्तगाली हैं। 


🚩9. उनके अलावा, अनीता आनंद कनाडा में संघीय मंत्री बनने वाली पहली हिंदू हैं। आनंद ने इस साल जुलाई में ट्रेजरी बोर्ड के अध्यक्ष की भूमिका संभाली। उनके माता-पिता भारतीय हैं। उनके पिता तमिलनाडु से थे और उनकी मां पंजाब से थीं।


🚩10. आनंद के अलावा, कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के मंत्रिमंडल में दो और भारतीय मूल के सदस्य हैं - हरजीत सज्जन और कमल खेरा। 


🚩11. वहीं, प्रियंका राधाकृष्णन न्यूजीलैंड में मंत्री बनने वाली भारतीय मूल की पहली व्यक्ति हैं। चेन्नई में मलयाली माता-पिता के घर जन्मी, वह वर्तमान में सामुदायिक और स्वैच्छिक क्षेत्र मंत्री हैं।


🚩12. त्रिनिदाद और टोबैगो की निर्वाचित राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू का जन्म एक इंडो-ट्रिनिडाडियन परिवार में हुआ था।


🚩13. भारतीय मूल के वकील और लेखक प्रीतम सिंह 2020 से सिंगापुर में विपक्ष के नेता के रूप में कार्यरत हैं।


🚩14. देवानंद शर्मा 2019 में ऑस्ट्रेलियाई संसद के सदस्य बनने वाले भारतीय मूल के पहले व्यक्ति बने।


🚩15. गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली का जन्म लियोनोरा में एक मुस्लिम इंडो-गुयाना परिवार में हुआ था।


🚩16. प्रविंद जुगनाथ जनवरी 2017 से मॉरीशस के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। उनका जन्म 1961 में एक हिंदू यदुवंशी परिवार में हुआ था। उनके परदादा 1870 के दशक में भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश से मॉरीशस चले गए थे।


🚩17. साल 2019 से मॉरीशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन का जन्म एक भारतीय आर्य समाज हिंदू परिवार में हुआ था।


🚩18. चंद्रिकाप्रसाद संतोखी 2020 से सूरीनाम के राष्ट्रपति हैं। संतोखी का जन्म 1959 में लेलीडॉर्प में एक इंडो-सूरीनाम हिंदू परिवार में हुआ था।


🚩19. वेवेल रामकलावन अक्टूबर 2020 से सेशेल्स के राष्ट्रपति के रूप में कार्यरत हैं। उनके दादा बिहार से थे।


🚩बता दें, साल 2021 में इंडियास्पोरा गवर्नमेंट लीडर्स लिस्ट जारी की गई थी। इसमें बताया गया था कि दुनियाभर के 15 देशों में सार्वजनिक सेवा के शीर्ष पदों पर भारतीय विरासत के 200 से अधिक नेता आसीन हैं। इनमें से 60 से अधिक कैबिनेट पदों पर हैं।


🚩आपको बता दे की करीब 20/60 साल पहले ही जिस समय कांग्रेस की सरकार थी और भारत की संस्कृती पर कुठारागत किया जा रहा था उस समय हिंदु संत आशाराम बापू ने भविष्यवाणी किया था की भारत विश्व गुरु बनेगा और विश्व का मार्ग दर्शन करेगा जो आज सच होता दिखाई दे रहा है।

https://youtu.be/M55sPB7S8rg?si=OMDRvFrXys4rr9nE


🚩भारत ही एक ऐसा देश है जो पूरी दुनिया पर राज करने के बाद भी कभी भी किसी का शोषण नही करेगा किसी भी देश में होगा वे अपनी मेहनत और भारतीय संस्कृति के संस्कार से ऊंचे पदों पर आसीन होने के बाद लोक हित का ही कार्य करता है क्योंकि भारतीय वैदिक संस्कृति में लिखा है:-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत्।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।।


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Tuesday, October 3, 2023

कांग्रेस व अन्य नेता गांधी जी को लेकर राजनीति करते हैं, पर आश्चर्य...वे उनकी बातों और सिद्धांतों को अमल में क्यों नहीं लाते !?

3 October 2023


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🚩प्रारंभ से ही इसाई धर्मान्तरण के विरुद्ध सबसे अधिक मुखर स्वर हमारे ही देश के गणमान्य व्यक्तियों ने उठाए हैं। 


🚩धर्मांतरण के प्रति गाँधी जी का भाव क्या था ?

यह उन्होंने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया है ।


 🚩 यह तब की बात है, जब वह विद्यालय में पढ़ते थे। उन्होंने लिखा कि “ उन्हीं दिनों मैने सुना कि एक मशहूर हिन्दू सज्जन अपना धर्म बदल कर ईसाई बन गये हैं। शहर में चर्चा थी कि बपतिस्मा लेते समय उन्हें गोमांस खाना पड़ा और शराब पीनी पड़ी । अपनी वेशभूषा भी बदलनी पड़ी तथा तब से हैट लगाने और यूरोपीय वेशभूषा धारण करने लगे। मैने सोचा जो धर्म किसी को गोमांस खाने शराब पीने और पहनावा बदलने के लिए विवश करे वह तो धर्म कहे जाने योग्य नहीं है। मैने यह भी सुना कि यह नया कन्वर्टेड व्यक्ति अपने पूर्वजों के धर्म को उनके रहन-सहन को तथा उनके देश को गालियां देने लगा है। इन सबसे मुझमें ईसाईयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई। ” ( एन आटोवाय़ोग्राफी आर द स्टोरी आफ माइ एक्सपेरिमेण्ट विद ट्रूथ, पृष्ठ -3-4 नवजीवन, अहमदाबाद)


🚩गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि ईसाई मिशनरियों का मूल लक्ष्य उद्देश्य भारत की संस्कृति को समाप्त कर भारत का यूरोपीयकरण करना है। उनका कहना था कि भारत में आमतौर पर ईसाइयत का अर्थ है भारतीयों को राष्ट्रीयता से रहित बनाना और उसका यूरोपीयकरण करना।


🚩गांधीजी ने धर्मांतरण के लिए मिशनरी प्रयासों के सिद्धांतों का ही विरोध किया। गांधी जी मिशनरियों को आध्यात्मिक शक्तिसंपन्न व्यक्ति नहीं मानते थे बल्कि उन्हें प्रोपोगेण्डिस्ट मानते थे। गांधी जी ने एक जगह लिखा कि “ दूसरों के हृदय को केवल आध्यात्मिक शक्तिसंपन्न व्यक्ति ही प्रभावित कर सकता है । जबकि अधिकांश मिशनरी वाकपटु तो होते हैं, पर आध्यात्मिक शक्ति संपन्न व्यक्ति नहीं। “ ( संपूर्ण गांधी बाङ्मय, खंड-36, पृष्ठ -147)


🚩गांधी जी ने क्रिश्चियन मिशन्स पुस्तक में कहा है कि “भारत में ईसाईयत अराष्ट्रीयता एवं यूरोपीयकरण का पर्याय बन चुकी है।”(क्रिश्चियम मिशन्स, देयर प्लेस इंडिया, नवजीवन, पृष्ठ-32)। उन्होंने यह भी कहा कि ईसाई पादरी अभी जिस तरह से काम कर रहे हैं , उस तरह से तो उनके लिए स्वतंत्र भारत में कोई भी स्थान नहीं होगा। वे तो अपना भी नुकसान कर रहे हैं। वे जिनके बीच काम करते हैं, उन्हें हानि पहुंचाते हैं और जिनके बीच काम नहीं करते उन्हें भी हानि पहुंचाते हैं। सारे देश को वे नुकसान पहुंचाते हैं। गाधीजी धर्मांतरण (कनवर्जन) को मानवता के लिए भयंकर विष मानते थे। गांधी जी ने बार -बार कहा कि धर्मांतरण महापाप है और यह बंद होना चाहिए।”


🚩उन्होंने कहा कि “मिशनरियों द्वारा बांटा जा रहा पैसा तो धन पिशाच का फैलाव है।“ उन्होंने कहा कि “ आप साफ साफ सुन लें मेरा यह निश्चित मत है, जो कि अनुभवों पर आधारित हैं, कि आध्यात्मिक विषयों पर धन का तनिक भी महत्व नहीं है। अतः आध्य़ात्मिक चेतना के प्रचार के नाम पर आप पैसे बांटना और सुविधाएं बांटना बंद करें ।”


🚩1935 में एक मिशनरी नर्स ने गांधी जी से पूछा “क्या आप धर्मांतरण के लिए मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगा देना चाहते है? गांधी जी ने उत्तर दिया “मैं रोक लगाने वाला कौन होता हूँ, अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं, तो मैं धर्मांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूँ । मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में, जहाँ मिशनरी बैठे हैं, वेशभूषा, रीति-रिवाज और खान-पान तक में परिवर्तन हो गया है । आज भी हिन्दू धर्म की निंदा जारी है । ईसाई मिशनिरयों की दुकानों में मरडोक की पुस्तकें बिकती हैं। इन पुस्तकों में सिवाय हिन्दू धर्म की निंदा के और कुछ है ही नहीं। अभी कुछ ही दिन हुए, एक ईसाई मिशनरी एक दुर्भिक्ष-पीड़ित अंचल में खूब धन लेकर पहुँचा वहाँ अकाल-पीड़ितों को पैसा बाँटा व उन्हें ईसाई बनाया फिर उनका मंदिर हथिया लिया और उसे तुड़वा डाला। यह अत्याचार नहीं तो क्या है, जब उन पीड़ित लोगों ने ईसाई धर्म अपनाया , तो तभी उनका मंदिर पर से अधिकार समाप्त। वह हक उनका बचा ही नहीं और फिर ईसाई मिशनरी का भी मंदिर पर कोई हक नहीं था । फिर वो मिशनरीज़ मंदिर को किस अधिकार से हथिया कर नष्ट किए । और विडंबना ये कि वो मिशनरीज वहाँ पहुँचकर उन्हीं लोगों से उस मंदिर को तोड़वाते हैं , जहाँ कुछ समय पहले तक वे ही लोग मानते थे कि वहाँ ईश्वर का वास है। ‘‘ ( संपूर्ण गांधी बांङ्मय खंड-61 पृष्ठ-48-49)


🚩गांधीजी कहते थे,

“हमें गोमांस भक्षण और शराब पीने की छूट देने वाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए। धर्म परिवर्तन वह ज़हर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है। मिशनरियों के प्रभाव से हिन्दू परिवार का विदेशी भाषा, वेशभूषा, रीति रिवाज़ के द्वारा विघटन हुआ है। यदि मुझे क़ानून बनाने का अधिकार होता तो मैं धर्म परिवर्तन बंद करवा देता। इसे तो मिशनरियों ने व्यापार बना लिया है , पर धर्म आत्मा की उन्नति का विषय है। इसे रोटी, कपड़ा या दवाई के बदले में बेचा या बदला नहीं जा सकता।”


🚩भारत में वर्तमान में प्रत्येक राज्य में बड़े पैमाने पर ईसाई धर्मप्रचारक मौजूद है जो मूलत: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय हैं। अरुणालच प्रदेश में वर्ष 1971 में ईसाई समुदाय की संख्या 1 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय राज्यों में ईसाई प्रचारक किस तरह से सक्रिय हैं। इसी तरह नगालैंड में ईसाई जनसंख्‍या 93 प्रतिशत, मिजोरम में 90 प्रतिशत, मणिपुर में 41 प्रतिशत और मेघालय में 70 प्रतिशत हो गई है। चंगाई सभा और धन के बल पर भारत में ईसाई धर्म तेजी से फैल रहा है।


🚩वर्ष 2011 में भारत की कुल आबादी 121.09 करोड़ है। जारी जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है। जो देश की कुल आबादी का 2.3% है। ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 15.5% रही, जबकि सिखों की 8.4%, बौद्धों की 6.1% और जैनियों की 5.4% है।

ध्यान देने योग्य बात यह कि , ईसाईयों की जनसंख्या वृद्धिदर का कारण केवल ईसाई समाज में बच्चे अधिक पैदा होना नहीं है। अपितु हिन्दुओं का ईसाई मत को स्वीकार करना ही बड़ा कारण है ।


🚩इसलिए राष्ट्रहित को देखते हुए देश में धर्मान्तरण पर लगाम अवश्य लगनी चाहिए । - डॉ विवेक आर्य


🚩कानून के लिए गांधीजी ने क्या कहा था?


🚩वर्तमान न्याय प्रणाली हमें अंग्रेजों से विरासत में मिली है।

गांधीजी ने कहा था, ‘यह प्रणाली अंग्रेजों ने नेटिव इंडियंस ( मूलनिवासी भारतीयों ) को न्याय देने के लिए प्रस्थापित नहीं की थी, बल्कि अपना साम्राज्य मजबूत करने के लिए इस न्याय प्रणाली का गठन किया था। इस न्याय प्रणाली में ‘स्वदेशी’ कुछ भी नहीं है। इसकी भाषा, पोशाक तथा चिंतन सब कुछ विदेशी है। अतीत में भारत में जो न्याय दिलाने वाली संस्थाएँ विद्यमान थीं, उन्हें पूर्णत: समाप्त कर एक केंद्रीभूत तथा सर्वव्यापी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों ने स्थापित की। गांधीजी ने यह भी कहा था, ‘जिसकी थैली बड़ी होगी, उसी को यह न्याय प्रणाली सुहाती है।’


🚩कांग्रेस बोलती है हम गांधी जी के सिद्धांतों पर चलते हैं ।

आश्चर्य... कि फिर उन्होंने गांधीजी के सिद्धांत पर चलकर इतने साल सत्ता में रहे फिर भी धर्मान्तरण पर रोक क्यों नही लगाई ? अंग्रेजों के बनाए कानूनों में बदलाव क्यों नही किया गया ? और आज भी जो भी नेता गांधीजी को लेकर राजनीति करते हैं वे उनके विचारों पर भी अमल करें और तुरंत धर्मान्तरण पर रोक लगाएं । अंग्रेजों के बनाए कानून की जगह भारतीय न्याय पद्धति लेकर आएं । तब तो भले माना जा सकता है कि वो गाँधी जी को मानते हैं ।


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मुस्लिम समुदाय के आर्थिक बहिष्कार की मांग बार बार क्यों उठ रही है ? जानिए.......

2October 2023


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🚩अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश-विसर्जन किया जाता है।देशभर में हिंदू समाज अपना त्योहार हर्षोल्लास से मना रहा था, लेकिन देश में कई जगहों पर मुस्लिम समुदाय को ये रास नहीं आ रहा था,जिसके कारण उन्होनें हिन्दुओं की यात्रा पर पत्थर बाज़ियां की ।

जैसा कि पहले भी तिरंगा-यात्रा, नववर्ष ( गुड़ी पड़वा) , श्री रामनवमी, हमनुमान जयंती आदि हिदू त्योहारों पर निकाली जा रही, यात्राओं पर पत्थर बाजी करते रहे हैं । वैसे ही कैराना, मेवात , बंगाल, केरला आदि में हिन्दू समाज पर मुस्लिम हमला करते आए हैं। परिणामस्वरूप समय-समय पर हिन्दुओं ने एकता बनाकर मुसलमानो का आर्थिक बहिष्कार किया है।


🚩आपको बता दें, कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल में आयोजित हिन्दू पंचायत में "स्वामी आनंद स्वरूप जी" ने कहा,कि मुस्लिमों का आर्थिक व सामाजिक बहिष्कार करें। उनकी दुकानों से कोई सामान नहीं खरीदें। उनको अपने घर के आयोजनों में आमंत्रित नहीं करें। किसी होटल या ढाबे आदि में यदि कोई मुस्लिम वेटर हो तो उसके हाथों खाना लेने से स्पष्ट इनकार करें। अगर मुस्लिम भरोसा करने के लिए कसम खाए तो भी उस पर विश्वास मत करो, इतिहास इनकी धोखेबाजी से भरा पड़ा है, इनसे दोस्ती करने पर ये दगा करते हैं। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य परिषद का उद्देश्य इस्लाम मुक्त भारत बनाना है।


🚩हिन्दुओं का एक वोट भी मुसलमान उम्मीदवारों को नहीं मिले...

हिंदुओं का एक भी वोट मुसलमान उम्मीदवारों को नहीं मिलना चाहिए। जितने राजनीतिक दल या उनके नेता हैं, वे अंकों के लिए काम करते हैं। वोट बैंक की राजनीति करते हैं। सारे राजनेता राजनीतिक मदारी हैं। वे डमरू लेकर निकल पड़े हैं। हमें उसी को वोट देना चाहिए जो लिखित तौर पर दे कि वह हिन्दू-राष्ट्र बनाने का समर्थन देगा।


🚩भारत को बनाना होगा हिन्दू-राष्ट्र... 

"स्वामी आनंद स्वरूप जी" ने कहा, सन 1947 में भारत से इस्लाम के नाम पर एक देश (पाकिस्तान) अलग हो गया। अब भारत को हिन्दू-राष्ट्र बनाना होगा। शंकराचार्य परिषद भारत को हिन्दू-राष्ट्र बनाने के लिए देश में अभियान चलाएगी। परिषद गांव-गांव जाकर "जाति तोड़ो , हिंदू जोड़ो अभियान" चलाकर हिन्दुओं को एकजुट करेगी। देश में अनुकूल समय आने पर उसी तरह हिन्दू-राष्ट्र की स्थापना होगी, 2025 तक भारत हिन्दू-राष्ट्र घोषित हो जायेगा।


🚩आखिर 80 फीसदी पर 20 फीसदी भारी क्यों?

आज देश जातिवाद में जकड़ा है। इसी को तोड़ना है। उन्होंने कहा कि जन्म से सभी शूद्र होते हैं। शूद्र से ब्राह्मण बनने की प्रक्रिया ही जीवन है। इस प्रक्रिया में मतभेद का ही नतीजा है कि आज 20 फीसदी वाले 80 फीसदी पर भारी पड़ रहे हैं। जालीदार टोपी पहनकर मोटरसाइकिल चलानेवालों को पुलिस भी नहीं पकड़ती जबकि हिंदू अपनी पत्नी को लेकर भी कहीं जा रहा हो तो पुलिस वाले जुर्माना वसूल लेते हैं। 


🚩देश में आज 28 में से 9 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गये हैं। 19 में वे समान-समान हैं । ऐसे में खतरे की घंटी स्पष्ट दिखाई व सुनाई दे रही है। स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि मुसलमानों के एजेंडे में लव जिहाद शामिल है। हमें उनसे सावधान रहना चाहिए।


🚩एक बात गौर करने वाली है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही हिन्दुओं की यात्रा पर हमला किया है , लेकिन मीडिया "मुस्लिम समुदाय" शब्द का उल्लेख नहीं करती है , उसके लिए मीडिया " समुदाय विशेष " शब्द उपयोग करती है । इससे साफ होता है कि मीडिया भी उनसे भयभीत है जबकि हिन्दू किसी को ऊंची आवाज में कभी कुछ बोल भर भी दे तो पूरे हिन्दूधर्म को बदनाम करने से मीडिया मौका चूकती नही है।


🚩आपको बता दें , कि हलाल प्रमाणपत्र आज के काल का जजिया टैक्स ही है । आज विश्व में हलाल अर्थव्यवस्था फैली रही है । मुसलमान हलाल मान्यता वाले उत्पादनों का आग्रह कर रहे हैं । इसलिए हिन्दू व्यापारी और उद्योगपतियों पर हलाल की सख्ती की जा रही है । सरकार का प्रमाणपत्र होते हुए भी इस प्रकार हलाल की सख्ती करना हिन्दुओं के संवैधानिक अधिकार नकारने के समान है । ‘हलाल’ केवल मुसलमान कर सकते हैं । इसलिए उसके द्वारा एक प्रकार से बहुसंख्यक हिन्दुओं का ही बहिष्कार किया जा रहा है ।


🚩हिन्दू-जन-जागृति संगठन का कहना है कि अब हिन्दुओं को ही संगठित होकर इस ‘हलाल’ अर्थव्यवस्था को ‘झटका’ देना चाहिए । किसी को भी हलालप्रमाण पत्र नहीं लेना चाहिए और ना ही उसकी कोई प्रोडक्ट बेचना चाहिए।


🚩मुस्लिम आर्थिक बहिष्कार का सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल हो रहा है , इसमें लिखा है की

लड़ नही सकता तो ये तो कर सकता है हिन्दू समाज....


-जो करे वंदे मातरम् का बहिष्कार

-जो करे आतंकवादियों से प्यार

- जो करे सूर्य नमस्कार का बहिष्कार 

- जो करे निर्दोष देशवासियों पर वार

-जो ना माने संविधान, ना माने सरकार

-मुसलमान केवल इस्लाम का वफादार


-इन पर अगर करना है वार

-ना चलाओ गोली, ना चलाओ तलवार

"सिर्फ करो मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार....."


🚩बिना भूले इन नियमो को पालेंगे और इनका प्रचार प्रसार करेंगे।

1) फल खरीदेगे हिन्दू से ।

2) सब्जी लेगे हिन्दू से ।

3) कपडे खरीदेगे / सिलवायेंगे हिन्दू से।

4) हमारा डॉक्टर हिन्दू ही होगा। 

5) गाड़ी रिपेअर करवायेंगे हिन्दू से।

6) होटल में जायेगे हिन्दू के ।

7) रिक्शा टैक्सी में बैठेंगे हिन्दू के ।

8) घर, प्लम्बिंग और फर्निचर बनवायेंगे हिन्दू से। 

 9)रेडीमेड वस्तुए खरीदेंगे हिन्दू से।

10) प्रतिदिन कम से कम 10 हिन्दुओं को ये बात समझाएंगे और 100 हिन्दुओं तक ये बात पहुँचाएँगे ।


🚩बिना भूले इन नियमो को पालेंगे और इनका प्रचार प्रसार करेंगे।

🚩दुनिया के कई देशों ने इसे अपनाया है । जो ना ही किसी कानून का उलंघन करना कहा जा सकता है और ना ही हिंसा है ये ।


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Sunday, October 1, 2023

लाल बहादुर शास्त्री ने ऐसा क्या किया था जो आज भी उन्हें क्यों याद जाता है ? जानिए......

1 October 2023


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🚩लाल बहादुर शास्त्री महान निष्ठा और सक्षम व्यक्ति के रूप में जाने जाते है,वे महान आंतरिक शक्ति के साथ विनम्र, सहनशील थे, जो आम आदमी की भाषा को समझते थे और एक दृष्टि के व्यक्ति भी थे, जिन्होंने देश को प्रगति की ओर अग्रसर किया था ,लाल बहादुर शास्त्री स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। उन्होंने पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के आकस्मिक निधन के बाद शपथ ली थी । उन्होंने 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 , अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री का पद संभाला ।


🚩उन्होंने 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के माध्यम से देश का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया था । एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए स्तंभों के रूप में आत्मनिर्भरता और आत्मनिर्भरता की आवश्यकता को पहचानते हुए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ के नारे को लोकप्रिय बनाया।


🚩वे असाधारण इच्छा शक्ति के व्यक्ति थे, जो मृदुभाषी तरीके में विश्वास रखते थे। एक राजनितिक नेता होने के बाद भी वे बड़े बड़े भाषणों के बजाय , वे राष्ट्रपति कार्यो से ज्यादा याद किये जाते हैं।


🚩अज्ञान तथ्य


🚩भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी का जन्मदिन 2 अक्टूबर को हम मनाते आये हैं।


🚩1926 में, लाल बहादुर शास्त्री जी को काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के द्वारा ‘शास्त्री’ की उपाधि दी गई थीं ।


🚩शास्त्री जी स्कूल जाने के लिए दिन में दो बार अपने सिर पर किताबें बांध कर गंगा नदी तैर कर जाते थे,क्योंकि उनके पास नाव लेने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं हुआ करता था।


🚩जब लाल बहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश के मंत्री थे, तब वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने लाठीचार्ज के बजाय भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पानी के जेट विमानों का इस्तेमाल किया था।

उन्होंने “जय जवान जय किसान” का नारा दिया और भारत के भविष्य को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वे जेल भी गए क्योंकि उन्होंने गांधी जी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था लेकिन उन्हें 17 साल के नाबालिग होने के कारण छोड़ दिया गया था।


🚩स्वतंत्रता के बाद परिवहन मंत्री के रूप में, उन्होंने सार्वजनिक परिवहन में महिला ड्राइवरों और कंडक्टरों के प्रावधान की शुरुआत की।

अपनी शादी में दहेज के रूप में उन्होंने खादी का कपड़ा और चरखा स्वीकार किया।

उन्होंने साल्ट मार्च में भाग लिया और दो साल के लिए जेल भी गए।


🚩जब वह गृह मंत्री थे, तो उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक समिति की पहली समिति शुरू की थी।

उन्होंने भारत के खाद्य उत्पादन की मांग को बढ़ावा देने के लिए हरित क्रांति के विचार को भी एकीकृत किया था।


🚩1920 के दशक में वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता के रूप में कार्य किया था।


🚩यही नहीं, उन्होंने देश में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए श्वेत क्रांति को बढ़ावा देने का भी समर्थन किया था,उन्होंने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड बनाया और गुजरात के आनंद में स्थित अमूल दूध सहकारी का समर्थन किया था।

 उन्होंने 1965 के युद्ध को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के साथ 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए।


🚩उन्होंने दहेज प्रथा और जाति प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई।

वे उच्च आत्म-सम्मान और नैतिकता के साथ एक उच्च अनुशासित व्यक्ति थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने कार नहीं रखी।


🚩लाल बहादुर शास्त्री के अनमोल वचन:-


🚩अनुशासन और एकजुट होकर काम करना राष्ट्र के लिए ताकत का असली स्रोत है।

हमें शांति के लिए बहादुरी से लड़ना चाहिए जैसे हम युद्ध में लड़े थे। यह अत्यंत खेद की बात है कि आज परमाणु ऊर्जा का उपयोग परमाणु हथियार बनाने के लिए किया जा रहा है। शासन का मूल विचार, समाज को एक साथ रखना है ताकि यह विकसित हो सके और कुछ लक्ष्यों की ओर अग्रसर हो सके।


🚩सच्चा लोकतंत्र या जनता का स्वराज असत्य और हिंसक साधनों से कभी नहीं आ सकता! मैं उतना सरल नहीं हू, जितना मैं दिखता हूं। हम न केवल अपने लिए बल्कि पूरी दुनिया के लोगों के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते हैं। हमारे लिए हमारी ताकत और स्थिरता के लिए हमारे लोगों की एकता और एकजुटता के निर्माण के कार्य से अधिक महत्वपूर्ण कोई नहीं है। स्वतंत्रता की रक्षा करना केवल सैनिकों का कार्य नहीं है। पूरे देश को मजबूत होना है। आर्थिक मुद्दे हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं और यह सबसे महत्वपूर्ण है कि हमें अपने सबसे बड़े दुश्मनों – गरीबी, बेरोजगारी से लड़ना चाहिए। विज्ञान और वैज्ञानिक कार्यों में सफलता असीमित या बड़े संसाधनों के प्रावधान से नहीं बल्कि समस्याओं और उद्देश्यों के बुद्धिमान और सावधानीपूर्वक चयन से मिलती है।


🚩सबसे बढ़कर, जो आवश्यक है वह है कड़ी मेहनत और समर्पण।

 देश के प्रति वह निष्ठा अन्य सभी निष्ठाओं से आगे आती है। और यह पूर्ण निष्ठा है, क्योंकि कोई इसे प्राप्त करने के संदर्भ में नहीं तौल सकता है।

अब हमें शांति के लिए उसी साहस और दृढ़ संकल्प के साथ लड़ना है, जैसा कि हमने आक्रमण के खिलाफ लड़ा था।


🚩शास्त्री जी कहते थे कि “हम सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते हैं।

तो आप जान गए होंगे की लाल बहादुर शास्त्री एक महान व्यक्ति, नेता और सरल व्यक्ति थे। उनके किए गए कार्यों को पूरा देश याद करता है।


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