5 October 2023
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🚩खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए कथित भारतीय एजेंट को जिम्मेदार बताने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने गत दिवस जिस तरह यह कहा कि भारत तेजी से बढ़ती आर्थिक शक्ति है और वो भारत से करीबी संबंध बनाए रखने को लेकर गंभीर हैं, उससे यही लगता है कि उन्हें अपनी गलती समझ आ गई है।
🚩हालांकि उन्होंने निज्जर हत्याकांड में सच का पता लगाने के लिए मिलकर काम करने की अपील भी की, लेकिन उसमें कोई दम इसलिए नहीं, क्योंकि भारत के कहने के बाद भी कनाडा कोई प्रमाण उपलब्ध कराने में आनाकानी कर रहा है। यह आनाकानी यही बताती है कि कनाडा के पास ऐसे कोई प्रमाण हैं ही नहीं, जो यह सिद्ध कर सकें कि निज्जर की हत्या से भारत का कोई लेना-देना है। इस मामले में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कनाडा को जिस तरह खरी-खरी सुनाई, उससे यह स्पष्ट है कि भारत जस्टिन ट्रुडो की बेजा बात सुनने को तैयार नहीं।
🚩इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कनाडा पुलिस निज्जर की हत्या के तीन माह बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। वह निज्जर के हत्यारों की पहचान तक नहीं कर पाई है। भले ही सवालों से घिरे जस्टिन ट्रूडो के सुर बदल गए हों, लेकिन भारत को अपने रवैये में नरमी लाने की आवश्यकता इसलिए नहीं, क्योंकि ट्रूडो ने बिना किसी प्रमाण भारत को कठघरे में खड़ाकर बेहद गैर जिम्मेदाराना हरकत की है। उन्होंने निज्जर की हत्या के लिए भारत को जिम्मेदार बताने के साथ एक भारतीय राजनयिक का नाम सार्वजनिक करते हुए उन्हें निष्कासित करके उसकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर दिया है। मैत्रीपूर्ण संबंधों वाले देश ऐसी हरकत कभी नहीं करते।
🚩यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि ट्रूडो सरकार ने यह शरारत उस खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह धालीवाल के दबाव में की, जिसकी पार्टी के समर्थन से उनकी अल्पमत सरकार चल रही है। यह भी साफ दिख रहा है कि ट्रूडो वोट बैंक की राजनीति के तहत खालिस्तानियों के प्रति नरम हैं। कनाडा में सात लाख से अधिक सिक्ख हैं, लेकिन शायद धालीवाल जैसे तत्वों के कारण ट्रूडो यह मान बैठे हैं कि उनके यहां रहने वाले सभी सिक्ख खालिस्तानी हैं। यह उनका मुगालता ही है, क्योंकि चंद सिक्ख ही खालिस्तान समर्थक हैं। चूंकि वे उग्र और हिंसक हैं, इसलिए कनाडा में रह रहे आम सिक्ख उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाते।
🚩शायद ट्रूडो इससे भी अनजान बने रहना चाहते हैं कि कनाडा में खालिस्तानी चरमपंथियों के कई गुट हैं और वे जब-तब एक-दूसरे को निशाना बनाते रहते हैं। कई खालिस्तानी अपने विरोधी गुटों की ओर से मारे जा चुके हैं। हैरानी नहीं कि निज्जर की हत्या भी उसके विरोधी गुट ने की हो। आतंकी निज्जर की हत्या को लेकर जस्टिन ट्रूडो की ओर से भारत पर निराधार आरोप लगाने के बाद एन.आइ.ए. ने पंजाब, हरियाणा समेत छह राज्यों में खालिस्तानियों, गैंगस्टरों और ड्रग तस्करों के गठजोड़ के खिलाफ जो छापेमारी की, वह पहले ही की जानी चाहिए थी, क्योंकि कई खालिस्तानी आतंकी, गैंगस्टर और ड्रग तस्कर कनाडा में एक अर्से से शरण लिए हुए हैं। अभी तो ऐसा लगता है कि यदि निज्जर का मामला न उछलता तो एन.आइ.ए. सक्रियता नहीं दिखाती।
🚩चूंकि कनाडा के खालिस्तानी ड्रग तस्करी और मानव तस्करी में भी लिप्त हैं, इसलिए खालिस्तान समर्थक वहां आसानी से शरण पा जाते हैं। निज्जर भी अवैध दस्तावेजों के सहारे ही कनाडा पहुंचा था, लेकिन किसी तरह वहां की नागरिकता पा गया। भारत ने उसे न केवल आतंकी घोषित किया था, बल्कि उस पर ईनाम भी रखा था। इसी कारण एस. जयशंकर ने दो टूक कहा कि कनाडा में भारत विरोधी तत्वों को संरक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने वीजा सेवा बंद किए जाने का कारण बताते हुए साफ किया कि ऐसा इसलिए करना पड़ा, क्योंकि उनके राजनयिकों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया है। कनाडा में खुलेआम खालिस्तानी आतंकियों का महिमामंडन किया जाता है। इनमें वे भी हैं, जो 1985 में एयर इंडिया के विमान को बम विस्फोट से उड़ाने की साजिश में शामिल थे।
🚩जब तक कनाडा खालिस्तानी चरमपंथियों और आतंकियों के साथ भारत से भागकर वहां पहुंचे गैंगस्टरों को संरक्षण देता रहता है, तब तक भारत सरकार को चैन से नहीं बैठना चाहिए। उसे कनाडा को इसके लिए बाध्य करना चाहिए कि वह भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा बने तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करे। जस्टिन ट्रूडो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में खालिस्तानी चरमपंथियों पर जिस तरह मेहरबान हैं, वह इसलिए अस्वीकार्य है, क्योंकि खालिस्तानी आतंकी कनाडा में रह रहे हिंदुओं को धमकाने के साथ भारतीय राजनयिकों की हत्या के फरमान जारी कर रहे हैं।
🚩भारत को कनाडा के साथ उसके सहयोगी देशों और विशेष रूप से अमेरिका से भी यह प्रश्न करना चाहिए कि क्या भारतीय राजनयिकों के पोस्टर लगाकर उनकी हत्या करने की धमकी देना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है? यह प्रश्न करना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि प्रतिबंधित संगठन सिक्ख फार जस्टिस के सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू के पास कनाडा के साथ अमेरिका की भी नागरिकता है। वह कभी अमेरिका तो कभी कनाडा से भारत को धमकियां देता रहता है। यह चिंताजनक है कि कनाडा, अमेरिका की तरह ब्रिटेन और कुछ अन्य देशों में भी खालिस्तानी बेलगाम हैं।
🚩खालिस्तानियों को आश्रय देने का काम अमेरिका भी कर रहा है। जिस तरह कनाडा ने भारतीय राजनयिकों पर हमला करने और हिंदू मंदिरों को निशाना बनाने वाले खालिस्तानियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की, उसी तरह अमेरिका ने भी सैन फ्रांस्सिकों में भारतीय दूतावास पर हमला करने वाले खालिस्तानियों के खिलाफ कुछ नहीं किया। माना जाता है कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंट की कथित लिप्तता की “खुफिया जानकारी” अमेरिका ने ही कनाडा को उपलब्ध कराई। इसका मतलब है कि अमेरिका भारतीय राजनयिकों की जासूसी कर रहा था। सच जो भी हो, खुफिया सूचनाएं सदैव साक्ष्य नहीं होतीं।
🚩यह अच्छा हुआ कि भारतीय विदेश मंत्री ने अमेरिकी धरती पर कनाडाई प्रधानमंत्री के गैर जिम्मेदाराना आचरण को बयान करने के साथ यह भी कह दिया कि अमेरिका कनाडा को अलग तरह से देखता है, जबकि वह हमारे लिए ऐसा देश है, जो भारत विरोधी गतिविधियों को केंद्र है। साफ है कि इस मामले में भारत किसी से और यहां तक कि अमेरिका से भी दबने वाला नहीं। यदि अमेरिका भारत से अपने संबंध मजबूत करना चाहता है तो उसे भारत के बजाय कनाडा को नसीहत देनी चाहिए।
- संजय गुप्त
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