Thursday, October 17, 2024

बिहू उत्सव और महर्षि वाल्मीकि जयंती

 18/अक्टूबर/2024

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🚩बिहू उत्सव और महर्षि वाल्मीकि जयंती 


🚩17 अक्टूबर को असम में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण फसल उत्सव बिहू और महर्षि वाल्मीकि जयंती दोनों ही भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रमुख पर्व है।आइए इन दोनों त्योहारों पर एक नजर डालते है ।

🚩बिहू: असम का फसल उत्सव 

🚩बिहू असम का सबसे प्रमुख और लोकप्रिय त्योहार है, जिसे राज्य के लोग बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाते है। 17 अक्टूबर को मनाया जाने वाला यह बिहू विशेष रूप से फसलों के कटाई के समय का उत्सव है। असम में बिहू तीन बार मनाया जाता है—रंगाली बिहू, कांगाली बिहू और भोगाली बिहू।अक्टूबर को मनाया जाने वाला बिहू आमतौर पर कांगाली बिहू कहलाता है, जिसे कटाई का बिहू भी कहा जाता है।

🚩कांगाली बिहू एक ऐसा समय होता है जब खेतों में धान पककर तैयार हो जाता है और किसान अपनी मेहनत का फल देखने के लिए उत्सुक होते है। हालांकि इस बिहू में भोग-व्यंजन की अधिकता नहीं होती लेकिन पूजा-अर्चना और किसानों के प्रति सम्मान का भाव प्रबल रहता है। लोग अपने परिवार और समुदाय के साथ मिलकर इस पर्व को मनाते है और देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते है।

🚩महर्षि वाल्मीकि जयंती :

🚩17 अक्टूबर को महर्षि वाल्मीकि जयंती भी मनाई जाएगी, जो महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की जन्म तिथि के रूप में मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि का भारतीय साहित्य और संस्कृति में विशेष स्थान है। उन्हें आदि कवि (प्रथम कवि) कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने संस्कृत में रामायण की रचना की, जो विश्व के सबसे प्राचीन और महानतम महाकाव्यों में से एक है।

🚩वाल्मीकि जयंती पर लोग महर्षि वाल्मीकि की शिक्षाओं और उनके जीवन से प्रेरणा लेते है। इस दिन रामायण का पाठ किया जाता है और महर्षि के आदर्शों को आत्मसात करने के लिए भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजनों होते है। यह पर्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जो जीवन में अपने आचरण और कर्मों से समाज के कल्याण की दिशा में कार्य करना चाहते हैं।

🚩निष्कर्ष

17 अक्टूबर का दिन भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। जहां एक ओर असम में बिहू के माध्यम से किसानों की मेहनत और प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है, वहीं दूसरी ओर महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर उनके महान योगदान को स्मरण कर समाज को उनकी शिक्षाओं से मार्गदर्शन मिलता है।


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Wednesday, October 16, 2024

अमृत बरसाती शरद पूर्णिमा

 17 अक्टूबर 2024

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 🚩अमृत बरसाती शरद पूर्णिमा 


🚩 अश्विनी कुमारों की कृपा : शरद पूर्णिमा का यह दिन अश्विनी कुमारों, जो देवताओं के वैद्य है,की कृपा का प्रतीक है। इस दिन चंद्रमा की चाँदनी में खीर रखकर भगवान को भोग लगाना और प्रार्थना करना चाहिए कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ाएं।’ खीर खाने से इन्द्रियों को शक्ति मिलती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह विशेष दिन हमें न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्पष्टता और ऊर्जा प्राप्त करने में भी मदद करता है।


🚩 दमा के लिए वरदान :

यह दिन दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान साबित होता है।सभी संत श्री आशारामजी बापु आश्रमों में निःशुल्क औषधियाँ मिलती है। चंद्रमा की चाँदनी में रखी खीर में औषधि मिलाकर खाने से और रात को सोना नहीं चाहिए, जिससे दमे की समस्या समाप्त होती है। इसके अलावा, यह दिन श्वसन संबंधी अन्य समस्याओं के लिए भी राहत प्रदान करता है।


🚩 चंद्रमा का प्रभाव : अमावस्या और पूर्णिमा के समय चंद्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चंद्रमा समुद्र को प्रभावित करता है, तो हमारे शरीर में भी उसकी किरणों का असर होता है। इस दिन उपवास और सत्संग करने से तन तंदुरुस्त और मन प्रसन्न रहता है। यह ताजगी और उत्साह का अनुभव करने का एक बेहतरीन अवसर है।


🚩 नेत्रज्योति और त्राटक साधना : दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात में 15-20 मिनट तक चंद्रमा पर त्राटक करने से नेत्रज्योति बढ़ती है। इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से भी आँखों की शक्ति बढ़ती है, जो हमारे लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यह साधना न केवल दृष्टि को तेज करती है, बल्कि मन को भी एकाग्रता की ओर ले जाती है।


🚩 लक्ष्मी प्राप्ति का उपाय:

स्कंद पुराण के अनुसार, शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में लक्ष्मी देवी विचरण करती है। जो लोग इस रात जागरण करते है, उन्हें लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस रात, दीप जलाना और देवी लक्ष्मी के मंत्र का जाप करना भी लाभकारी माना जाता है। इसके अलावा, इस रात विशेष लक्ष्मी पूजन और धन की देवी के प्रति भक्ति व्यक्त करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं।


🚩 आरोग्यता हेतु प्रयोग:

इस रात खीर को चंद्रमा की चाँदनी में रखकर भगवान को भोग लगाना चाहिए। यह प्रयोग न केवल स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक है, बल्कि आत्मा को भी ऊर्जा प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, चंद्रमा की किरणों में विशेष औषधीय गुण होते है जो शरीर को ताजगी और शक्ति प्रदान करते है।


🚩 सदाचार का महत्व:

इस दिन प्रसन्न रहना, नृत्य-गान करना अच्छा है, लेकिन यह सदाचार के साथ होना चाहिए। सदाचार के बिना सौंदर्य का कोई मूल्य नहीं होता। सदाचार का पालन करने से हमारे मन में शांति और संतोष बना रहता है। शरद पूर्णिमा पर दूसरों के साथ मिलकर प्रसन्नता साझा करना और सामूहिक आनंद मनाना भी महत्वपूर्ण होता है।


🚩 प्रभु से प्रार्थना:

इस दिन प्रभु से प्रार्थना करें कि ‘हे प्रभु! मेरा मन तेरे ध्यान से पुष्ट हो और मेरे हृदय में तेरा ज्ञान-प्रकाश हो।’ यह प्रार्थना हमें सही मार्ग पर चलने और आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद करती है।


🚩 शरद पूर्णिमा का महत्व और आचार-व्यवहार:

शरद पूर्णिमा का समय : शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के निकट होता है। इस दिन चंद्रमा की विशेष आभा होती है, जिसे भगवान श्री कृष्ण ने गीता में “नक्षत्राणामहं शशी” कहकर बताया है। इस दिन चंद्रमा की किरणें औषधियों को पुष्ट करने और मानवता के कल्याण के लिए विशेष होती है। यह भी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी विशेष प्रकार की ऊर्जा प्रदान करती है जो मानव जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होती है।


🚩चंद्रमा की शक्तियों का अनुभव : इस रात चंद्रमा की किरणें हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। रात 10 से 12 के बीच चंद्रमा की किरणें अत्यधिक हितकारी होती है। इस समय खीर या दूध को चंद्रमा की चाँदनी में रखकर भोग लगाने से स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त, चंद्रमा की रोशनी में स्नान करने से ऊर्जा मिलती है और मन में ताजगी का अनुभव होता है।


🚩सामाजिक और आध्यात्मिक  समर्पण : शरद पूर्णिमा पर रात को जागरण, भगवान का सुमिरन, और दूसरों के साथ मिलकर पूजा करना आवश्यक है। यह न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए, बल्कि समाज के कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस रात, सामूहिक भजन-कीर्तन का आयोजन करना विशेष लाभकारी होता है।


🚩प्राकृतिक सौंदर्य और ध्यान:

इस रात चाँद की रोशनी में टहलने से मन को शांति मिलती है। अशांत व्यक्ति यदि चाँद की रोशनी में थोड़ी देर बिताता है, तो उसकी अशांति कम होती है। चंद्रमा की रोशनी में ध्यान लगाने से मानसिक स्पष्टता और आत्मिक उन्नति होती है। यह समय ध्यान और आत्मनिरीक्षण के लिए सर्वोत्तम है।


🚩आरोग्य और समृद्धि का संदेश : इस दिन का संदेश है कि प्रकृति के साथ जुड़कर रहना और आध्यात्मिक साधना से हमें न केवल शारीरिक स्वास्थ्य मिलता है, बल्कि मानसिक और आत्मिक समृद्धि भी प्राप्त होती है। इस दिन एक सरल और पौष्टिक आहार ग्रहण करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।


🚩🕉️विशेष रिवाज और अनुष्ठान:

1. क्वांटिटी और क्वालिटी: इस दिन खीर बनाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग करना चाहिए। चांदी की थाली में रखी खीर अधिक शुभ मानी जाती है।

2. चंद्रमा की आरती: रात के समय चंद्रमा की आरती करना एक विशेष प्रथा है। यह आरती हमारे जीवन में सकारात्मकता और सुख-समृद्धि लाने में सहायक होती है।

3. मिठाई का वितरण: शरद पूर्णिमा पर खीर या अन्य मिठाइयाँ बनाने के बाद, उन्हें परिवार और दोस्तों के साथ बांटने की परंपरा है। इससे सामाजिक संबंध मजबूत होते है।

4. विशेष मंत्र और स्तोत्र: इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान कृष्ण के विशेष मंत्रों का जाप करना चाहिए, जैसे “ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।”


🚩समापन :

शरद पूर्णिमा का यह पर्व हमें सिखाता है कि हम अपने जीवन में सकारात्मकता और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। इस दिन किए गए कार्य, पूजा और साधना हमें सदा स्वस्थ, प्रसन्न, और संतुष्ट रहने में सहायता करेंगे। इसे एक पर्व की तरह मनाएं और इसके लाभों को अपने जीवन में शामिल करें।


🚩इस प्रकार, शरद पूर्णिमा न केवल एक त्योहार है, बल्कि यह स्वास्थ्य, समृद्धि, और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक है। इस दिन की पूजा और अनुष्ठान से हम अपने जीवन को सकारात्मकता और स्वास्थ्य की ओर अग्रसर कर सकते है।

इस शरद पूर्णिमा, चलिए हम सब मिलकर अपने जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिकता का संचार करें!


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Tuesday, October 15, 2024

विश्व खाद्य दिवस: भूख और कुपोषण से मुक्त दुनियां की ओर एक कदम

 16/October/2024

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💠विश्व खाद्य दिवस: भूख और कुपोषण से मुक्त दुनियां की ओर एक कदम


💠विश्व खाद्य दिवस (World Food Day) हर साल 16 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह दिन खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर भूख, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं के प्रति जागरूकता फैलाना और एक बेहतर, सुरक्षित और स्वस्थ्य दुनियां की दिशा में काम करना है।


💠विश्व खाद्य दिवस की पृष्ठभूमि :

खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की स्थापना 16 अक्टूबर 1945 को हुई थी, जिसका उद्देश्य दुनियां में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना और कुपोषण को कम करना था। FAO द्वारा 1981 से हर साल यह दिवस मनाया जाता है और हर साल इसकी एक नई थीम होती है, जो वैश्विक खाद्य चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करती है।


💠क्यों महत्वपूर्ण है विश्व खाद्य दिवस?

विश्व भर में करोड़ों लोग आज भी भूख और कुपोषण का सामना कर रहे है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 690 मिलियन लोग रोजाना भूखे पेट सोते है और कोविड-19 महामारी के बाद यह संख्या और भी बढ़ गई है। विश्व खाद्य दिवस हमें इस गंभीर समस्या की याद दिलाता है और इसे हल करने के लिए सभी को एकजुट होने का आह्वान करता है।


💠इस साल की थीम और इसके मायने :

हर साल विश्व खाद्य दिवस की एक विशेष थीम होती है। इस वर्ष की थीम “Better production, better nutrition, a better environment, and a better life” है। इस थीम के तहत बेहतर उत्पादन तकनीक, पोषण, पर्यावरण और जीवन को केंद्र में रखा गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन मिल सके, जिससे उनका जीवन स्वस्थ और समृद्ध हो सके।


💠कैसे मना सकते है विश्व खाद्य दिवस?

1. शिक्षा और जागरूकता: स्कूल, कॉलेज और अन्य संस्थानों में इस दिन पर कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित किए जा सकते है, जहां बच्चों और युवाओं को खाद्य सुरक्षा और भूख की समस्याओं के बारे में बताया जा सकता है।

2. दान और सहयोग: हम सभी इस दिन जरूरतमंद लोगों को भोजन दान कर सकते है  या खाद्य सुरक्षा संगठनों को समर्थन दे सकते है।

3. पौष्टिक भोजन का प्रचार: बेहतर पोषण के लिए संतुलित आहार का महत्व बताया जा सकता है। घरों में भी पौष्टिक और स्वच्छ भोजन को अपनाने पर जोर दिया जा सकता है।

4. स्थानीय खाद्य उत्पादन: स्थानीय किसानों और उत्पादकों को समर्थन देकर खाद्य प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है। इससे न केवल किसानों की मदद होगी बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।


💠भूख और कुपोषण का समाधान :

दुनियां में भूख और कुपोषण का समाधान सरल नहीं है, लेकिन हम छोटे-छोटे कदमों से बड़ा परिवर्तन ला सकते है। सरकारों, संगठनों और आम नागरिकों को मिलकर ऐसे प्रयास करने होंगे, जो खाद्य प्रणाली को सुधारें और सभी को पौष्टिक भोजन मुहैया कराएं। कृषि के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का उपयोग, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला और खाद्य अपव्यय को रोकना इसके प्रमुख उपाय हो सकते है।


💠निष्कर्ष

विश्व खाद्य दिवस न केवल हमें भूख और कुपोषण की चुनौतियों की याद दिलाता है बल्कि हमें इस दिशा में सक्रिय होकर काम करने की प्रेरणा भी देता है। हम सभी को इस महत्वपूर्ण दिन पर यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने प्रयासों से एक ऐसी दुनियां का निर्माण करेंगे जहां कोई भी भूखा न सोए और हर किसी को पौष्टिक भोजन मिले।


💠विश्व खाद्य दिवस पर हम सब मिलकर एक स्वस्थ, समृद्ध और सुरक्षित दुनियां का सपना साकार करें!


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Monday, October 14, 2024

नालंदा का रहस्य: क्या ज्ञान की इस खोई हुई लाइब्रेरी में छिपे थे गहरे राज?

 15 अक्टूबर 2024

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🚩नालंदा का रहस्य: क्या ज्ञान की इस खोई हुई लाइब्रेरी में छिपे थे गहरे राज?



🚩प्राचीन ज्ञान का केंद्र : इतिहास के पन्नों में कुछ स्थान ऐसे है जो रहस्य और जिज्ञासा का संचार करते है , जैसे कि नालंदा विश्वविद्यालय। यह एक समय में प्राचीन भारत का ज्ञान का केंद्र था। बिहार के शांतिपूर्ण वातावरण में बसा नालंदा केवल एक विश्वविद्यालय नहीं था; यह संस्कृति, दर्शन और आध्यात्मिकता का एक समृद्ध केंद्र था। लेकिन जो चीज़ सबसे अधिक ध्यान खींचती है, वह है इसकी विशाल लाइब्रेरी , जो ज्ञान के खजाने से भरी हुई थी और tragically उसके विनाश की आग में खो गई। उस प्राचीन ग्रंथों में कौन से रहस्य थे और क्यों उन्हें नष्ट करने का लक्ष्य बनाया गया?


🚩नालंदा की भव्य लाइब्रेरी : ज्ञान का आश्रय


अपने चरम पर, नालंदा की लाइब्रेरी में 90 लाख से अधिक पांडुलिपियाँ होने का दावा किया जाता था। यह केवल पुस्तकों का संग्रह नहीं था; यह ज्ञान का एक समृद्ध ताना-बाना था जिसमें विविध विषयों का समावेश था:- 🔸धार्मिक ग्रंथ, जिसमें हिंदू धर्म,बौद्ध धर्म और जैन धर्म के सिद्धांत शामिल थे।

🔸वैज्ञानिक Treatise , जो खगोल विज्ञान, गणित और चिकित्सा पर आधारित थे और प्राचीन विद्वानों की प्रतिभा को दर्शाते थे।

🔸दर्शनशास्त्र की कृतियाँ , जो मानव विचार और अस्तित्व की गहराई को खोजती थीं।


🚩लाइब्रेरी का आर्किटेक्चर अपने आप में एक चमत्कार था, ऊंची दीवारें जो जटिल नक्काशी से सज्जित थीं, जो भीतर मौजूद ज्ञान की गूंज को प्रतिध्वनित करती थीं । दुनियां भर से छात्र और विद्वान नालंदा आते थे, ज्ञान और सत्य की खोज में।


🚩विनाशकारी आग: इतिहास में एक काला मोड़

लेकिन 1193 ईस्वी में, यह ज्ञान का दीपक एक विनाशकारी घटना का शिकार बन गया जब बख्तियार खिलजी नामक एक निर्दयी विजेता ने इसे नष्ट कर दिया। उसने एक ही वार में उस ज्ञान के प्रकाश को बुझाने का प्रयास किया जो उन दीवारों के भीतर चमकता था। लाइब्रेरी को आग के हवाले कर दिया गया, और कहा जाता है कि यह आग छह महीने तक जलती रही, अनगिनत ग्रंथों को भस्म कर दिया जो मानव समझ की आत्मा थे।


🚩क्या आप कल्पना कर सकते हैं उस भयानक नुकसान की? विद्वानों की आवाजें चुप हो गईं, उनके विचार राख में बदल गए। नालंदा की लाइब्रेरी का जलना केवल भौतिक नष्ट नहीं था; यह एक बौद्धिक हत्या थी, जो सदियों से संचित ज्ञान को मिटा देता था। आसमान में उठता धुआं एक अंधेरे युग का संकेत था, जहां अज्ञानता ने ज्ञान को ढक लिया।


🚩क्या कुछ खो गया था उस अग्नि में 

यह दुखद घटना यह सवाल उठाती है कि उस आग में क्या खो गया था। क्या लाइब्रेरी में प्राचीन वैज्ञानिक खोजों की कुंजी थी? क्या वहाँ ऐसे ग्रंथ थे जो हमारे दर्शन और संसार की समझ को पुनर्निर्मित कर सकते थे। माना जाता है कि लाइब्रेरी में महान विचारकों, जैसे आर्यभट्ट, वात्स्यायन और नागार्जुन की कृतियाँ थीं। ॐ उनके विचार, अंतर्दृष्टि और नवाचार गायब हो गए केवल उन चीजों की फुसफुसाहट छोड़ते हुए जो हो सकती थीं।


🚩विनाश के सांस्कृतिक परिणाम :

नालंदा की लाइब्रेरी का विनाश केवल पुस्तकों का नाश नहीं था; यह एक संस्कृति का क्षय का प्रतीक था। यह विश्वविद्यालय एक ऐसा स्थान था जहाँ विचार मुक्त रूप से प्रवाहित होते थे, और ज्ञान सीमाओं को पार करता था। इसके विनाश के साथ, भारतीय धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अदृश्यता में चला गया।


🚩यह घटना हमें एक कठोर सबक सिखाती है कि ज्ञान की सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। विश्व ने एक कठिन सबक सीखा: ज्ञान शक्ति है, और इसे उस शक्ति से बचाने के लिए हमें इसे सख्ती से रक्षा करनी चाहिए जो इसे नष्ट करने की कोशिश करेगी।


🚩नालंदा की विरासत: याद करने का आह्वान

आज, नालंदा उन अवशेषों के रूप में खड़ा है जो एक प्राचीन बौद्धिक समुदाय का प्रमाण है। ये खंडहर एक शानदार अतीत की कहानियाँ सुनाते है, हमें शिक्षा के महत्व और ज्ञान की सुरक्षा की प्रेरणा देते है। नालंदा की विरासत यह याद दिलाती है कि ज्ञान केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है ; यह उन सभ्यताओं का आधार है जिन पर दुनियां खड़ी है।


🚩जब हम अपने अतीत के रहस्यों की खोज करते है, तो हमें यह पूछने के लिए मजबूर होना पड़ता है: क्या और खजाने है जो हम खोने के जोखिम में है? नालंदा की लाइब्रेरी का जलना कई आवाजों को बुझा सकता है, लेकिन यह हमें एक आंतरिक ज्वाला भी देता है—ज्ञान की खोज, सीखने की इच्छा, और अपने पूर्वजों के ज्ञान की सुरक्षा।


🚩निष्कर्ष: कार्रवाई का आह्वान

आइए, हम नालंदा विश्वविद्यालय की स्मृति को सम्मानित करें और ज्ञान की खोज और हमारी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करने का संकल्प लें। नालंदा की कहानी हमें प्रेरित करे कि हम शिक्षा को अपनाएँ, संवाद को बढ़ावा दें और अतीत के खजाने की रक्षा करें। इतिहास की छायाओं में, हम हमेशा ज्ञान के प्रकाश की खोज में रहें।


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Sunday, October 13, 2024

जाने कैसे इंडो-यूरोपीय भाषाओं की जड़ें संस्कृत से जुड़ी है?

 14 October 2024

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🚩जाने कैसे इंडो-यूरोपीय भाषाओं की जड़ें संस्कृत से जुड़ी है?


🚩क्या आपने कभी यह सोचा है कि दुनियां भर की तमाम भाषाएं एक ही स्रोत से विकसित हुई होगी? यह विचार जितना अद्भुत है, उतना ही वास्तविक भी है। संस्कृत, जो भारतीय सभ्यता की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषा मानी जाती है, सिर्फ भारतीय भाषाओं की जननी नहीं, बल्कि इंडो-यूरोपीय भाषाओं की भी मूल भाषा है। संस्कृत का प्रभाव इतना व्यापक है कि इसके प्रभाव को विश्व की प्रमुख भाषाओं में देखा जा सकता है। 


🚩इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार और संस्कृत की कड़ी : इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार दुनियां का सबसे बड़ा भाषा परिवार है, जिसमें अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक, लैटिन, फारसी और यहां तक कि हिंदी और बांग्ला जैसी भाषाएं आती है। संस्कृत इस पूरे भाषा परिवार की सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है और इसकी जड़ें इतनी गहरी है कि अन्य भाषाएं संस्कृत से कई शब्दों, ध्वनियों और व्याकरणिक संरचनाओं को अपनाती है।


🚩भाषाविदों ने पाया कि संस्कृत और अन्य इंडो-यूरोपीय भाषाओं में कई समानताएं है। संस्कृत के कई शब्दों का रूप और उच्चारण आधुनिक यूरोपीय भाषाओं के शब्दों से मेल खाते है। जैसे:

- संस्कृत का "मातृ" (माँ) लैटिन में "मेटर" और अंग्रेज़ी में "मदर" बन जाता है।

- संस्कृत का "पितृ" (पिता) लैटिन में "पेटर" और अंग्रेज़ी में "फादर" के रूप में पाया जाता है।

- संस्कृत का "अग्नि" (आग) अंग्रेज़ी में "Ignite" बन जाता है।


यह सिर्फ शब्दों का मिलान नहीं है, बल्कि ध्वनियों, व्याकरणिक रूपों, और भाषा के विकास के पैटर्न में भी यह समानता दिखती है। 


🚩 संस्कृत और प्रोटो-इंडो-यूरोपीय भाषा : इंडो-यूरोपीय भाषाओं का एक आम स्रोत माना जाता है जिसे 'प्रोटो-इंडो-यूरोपीय' कहा जाता है। यह वह आदिम भाषा है, जिससे आगे चलकर दुनियां की कई भाषाएं विकसित हुईं। भाषाविदों ने संस्कृत को इस प्राचीन भाषा के सबसे निकट पाया है। संस्कृत की संरचना और ध्वनियाँ प्रोटो-इंडो-यूरोपीय भाषा से इतनी मेल खाती है कि इसे ‘mother of all Indo-European languages’ कहा जा सकता है।


🚩संस्कृत का समृद्ध व्याकरण और इसकी शब्द रचना प्रणाली भी अन्य इंडो-यूरोपीय भाषाओं के विकास की नींव मानी जाती है। पाणिनि का 'अष्टाध्यायी' जो संस्कृत व्याकरण पर आधारित है, दुनियां का पहला व्यवस्थित व्याकरण माना जाता है, जिसने अन्य भाषाओं की व्याकरणिक संरचना को प्रभावित किया।


🚩 संस्कृत की ध्वनियां और यूरोपीय भाषाएं : संस्कृत की ध्वनियों का प्रभाव कई यूरोपीय भाषाओं में भी देखने को मिलता है। जैसे संस्कृत के 'घ' ध्वनि का आधुनिक जर्मन और फ्रेंच में भी रूपांतरण हुआ है। संस्कृत के उच्चारण, विशेष रूप से स्वर और व्यंजन,अन्य इंडो-यूरोपीय भाषाओं के स्वरूप में परिलक्षित होते है।


🚩इसके अलावा, संस्कृत के शब्दों के रूपांतरण के साथ-साथ उसके व्याकरणिक नियम, जैसे संज्ञा और क्रिया के परिवर्तनशील रूप, अन्य भाषाओं में भी मिलते है। अंग्रेज़ी, लैटिन और ग्रीक जैसी भाषाओं में संस्कृत के नियमों की प्रतिध्वनि मिलती है।


🚩आधुनिक भाषाविदों की दृष्टि में संस्कृत : आधुनिक भाषाविद भी संस्कृत को इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का आदिम स्रोत मानते है। विलियम जोन्स, जिन्होंने संस्कृत का गहन अध्ययन किया, ने इसे ग्रीक और लैटिन से भी पुरानी और उन्नत भाषा माना था। उनका कहना था कि संस्कृत इतनी वैज्ञानिक और तार्किक भाषा है कि यह अन्य भाषाओं के विकास की दिशा को बताती है।


🚩इसी प्रकार, दुनियां भर के अन्य भाषाविदों और शोधकर्ताओं ने भी संस्कृत के महत्व को स्वीकार किया है। संस्कृत की संरचना इतनी सटीक और व्यवस्थित है कि इसे कंप्यूटर विज्ञान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। 


🚩संस्कृत का प्रभाव भारतीय और यूरोपीय भाषाओं पर : संस्कृत का प्रभाव न केवल भारतीय भाषाओं पर है बल्कि यूरोपीय भाषाओं पर भी इसका गहरा असर है। संस्कृत की जड़ें इतनी प्राचीन और विस्तृत है कि इसकी छाया हर जगह देखी जा सकती है। 


🚩भारत की हिंदी, बंगाली, मराठी जैसी भाषाओं के साथ-साथ संस्कृत के तत्व ग्रीक, लैटिन और अंग्रेज़ी जैसे भाषाओं में भी पाए जाते है। भाषाओं की उत्पत्ति और उनके विकास के अध्ययन में संस्कृत का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है।


🚩 निष्कर्ष: संस्कृत सभी भाषाओं की जननी

संस्कृत केवल भारतीय सभ्यता की ही नहीं, बल्कि दुनियां की सबसे महत्वपूर्ण भाषाओं में से एक है। इसका प्रभाव इंडो-यूरोपीय भाषाओं पर इतना व्यापक है कि इसे सभी भाषाओं की जननी माना जाता है। संस्कृत की ध्वनियां, शब्द संरचना, व्याकरण और तार्किकता ने अन्य भाषाओं के विकास को गहराई से प्रभावित किया है।


🚩संस्कृत न केवल प्राचीन ग्रंथों और धार्मिक अनुष्ठानों की भाषा है बल्कि यह दुनियां के भाषाई विकास का आधार भी है। यह भाषा इतनी समृद्ध और वैज्ञानिक है कि इसे दुनियां की सबसे पुरानी और उन्नत भाषा माना जाता है।


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Saturday, October 12, 2024

माण गांव: जहां भगवान गणेश ने महाभारत लिखा – एक पौराणिक और रहस्यमय यात्रा

 13/10/2024   

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🚩माण गांव: जहां भगवान गणेश ने महाभारत लिखा – एक पौराणिक और रहस्यमय यात्रा          

                                 

 माण गांव का महाभारत से एक अद्वितीय और विशेष संबंध यह है कि इसे भगवान गणेश द्वारा महाभारत लिखे जाने के पवित्र स्थल के रूप में माना जाता है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत को ऋषि वेदव्यास ने रचा था, लेकिन इसे लिपिबद्ध करने का कार्य भगवान गणेश ने किया था। इस प्रक्रिया के पीछे एक विशेष कथा है, जो माण गांव की धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देती है।


🔺भगवान गणेश और महाभारत लेखन की कथाओं के अनुसार, ऋषि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी, लेकिन उन्हें इसे लिखने के लिए एक सक्षम और बुद्धिमान लेखक की आवश्यकता थी। उन्होंने भगवान गणेश से यह कार्य करने का अनुरोध किया। भगवान गणेश ने शर्त रखी कि वे तभी लिखेंगे जब वेदव्यास बिना रुके श्लोकों का उच्चारण करेंगे। इसके बाद, वेदव्यास ने भगवान गणेश को महाभारत का लेखन कार्य सौंपा। माना जाता है कि गणेश जी ने इस महान ग्रंथ को बिना रुके और अत्यंत कुशलता के साथ लिखा।


🔺 माण गांव का धार्मिक महत्व

माण गांव से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार, यह वही स्थान है जहाँ भगवान गणेश ने महाभारत को लिपिबद्ध किया था। हिमाचल प्रदेश के इस पवित्र स्थल को ऋषि वेदव्यास और भगवान गणेश की तपस्थली माना जाता है। माण गांव की शांत, प्राकृतिक सुंदरता और हिमालय की गोद में स्थित यह स्थान भगवान गणेश की साधना और लेखन का प्रतीक बन गया है।


🔺 गणेश जी की बुद्धि और महाभारत लेखन:

भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि का देवता माना जाता है और उनका महाभारत जैसा महाकाव्य लिखना उनकी अद्वितीय बुद्धिमत्ता और लेखन क्षमता को दर्शाता है। माण गांव को इसी कारण से एक पवित्र स्थल के रूप में देखा जाता है, जहां भगवान गणेश ने इस महान ग्रंथ को पूर्ण किया था। यह कथा इस गांव को एक धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान बनाती है।


👍4. गणेश जी की उपासना और माण गांव

माण गांव में भगवान गणेश की पूजा और आराधना को विशेष महत्व दिया जाता है। यहां की मान्यता है कि भगवान गणेश की उपस्थिति और आशीर्वाद आज भी इस गांव में विद्यमान है। इसलिए, यहां विशेष गणेश चतुर्थी उत्सव के दौरान लोग भगवान गणेश की पूजा में शामिल होते हैं और इस पवित्र स्थल का महत्व महसूस करते हैं।


🔺 महाभारत के महत्व से जुड़ी धार्मिक यात्रा

महाभारत भारतीय पौराणिक कथाओं का सबसे महत्वपूर्ण और विस्तृत ग्रंथ है, और भगवान गणेश द्वारा इसका लेखन माण गांव को एक धार्मिक तीर्थ स्थल बनाता है। श्रद्धालु इस गांव में आकर न केवल गणेश जी की पूजा करते हैं, बल्कि महाभारत लेखन की इस पवित्र भूमि पर भी श्रद्धा व्यक्त करते है। यहाँ की लोककथाएं और धार्मिक परंपराएं महाभारत के महत्व को और भी गहराई से महसूस कराती है।


🚩निष्कर्ष

माण गांव को भगवान गणेश द्वारा महाभारत लिखे जाने के पवित्र स्थल के रूप में मान्यता दी जाती है। यह कथा इस गांव को एक अनूठा धार्मिक और पौराणिक महत्व प्रदान करती है। भगवान गणेश की बुद्धिमत्ता और महाभारत की रचना इस गांव को भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में शामिल करती है, जहाँ श्रद्धालु आस्था और श्रद्धा के साथ आते हैं।

यदि आप पौराणिक स्थलों और धार्मिक कहानियों में रुचि रखते हैं, तो माण गांव की यात्रा आपके जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव होगी।


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Friday, October 11, 2024

दशहरा क्यों मनाते है?

 12 October 2024

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🚩दशहरा क्यों मनाते है?


दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसे कई धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से मनाया जाता है। दशहरा का पौराणिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व वेद, पुराण, महाकाव्यों और अन्य हिन्दू धर्मग्रंथों में व्यापक रूप से वर्णित है।


🚩पौराणिक महत्व :

🔸रामायण के अनुसार-दशहरा का सबसे प्रमुख कारण भगवान श्रीराम द्वारा राक्षसराज रावण का वध करना है। रावण का अहंकार और अधर्म बढ़ जाने के कारण भगवान राम ने उसकी लंका में जाकर, नौ दिनों तक लगातार युद्ध करके, दसवें दिन उसका वध किया। यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। वाल्मीकि रामायण में इसका वर्णन है कि कैसे भगवान राम ने देवी दुर्गा की उपासना की और उनके आशीर्वाद से रावण पर विजय प्राप्त की। इसलिए दशहरे का सीधा संबंध शक्ति की उपासना और विजय प्राप्ति से है।


🔶महाभारत के अनुसार-महाभारत में अर्जुन ने इसी दिन अपने अज्ञातवास के दौरान शमी वृक्ष के नीचे छिपाए गए हथियारों को निकाला और कौरवों पर विजय प्राप्त की। इसे विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है। अर्जुन की विजय को धर्म की विजय के रूप में देखा गया है। महाभारत में दशहरे का तात्पर्य धर्म और अधर्म के युद्ध में धर्म की विजय से है।


🚩दुर्गा पूजा:

दशहरा को दुर्गा पूजा के समापन के रूप में भी मनाया जाता है, खासकर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में। दुर्गा सप्तशती के अनुसार, देवी दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए,यह दिन देवी की विजय और शक्ति का प्रतीक है।


🚩दशहरा का नाम:

‘दशहरा’ शब्द दश-हर से निकला है, जिसका अर्थ है “दस सिरों का नाश”। यह रावण के दस सिरों का प्रतीकात्मक नाश दर्शाता है जो दस बुराइयों का प्रतिनिधित्व करते है – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर्य, अहंकार, आलस्य, हिंसा और ईर्ष्या।


🚩पुराण और वेद अनुसार दशहरा :


🔸वेदों में विजयदशमी :

दशहरे का सीधा उल्लेख वेदों में नहीं मिलता लेकिन वेदों में वर्णित ऋत और सत्य की स्थापना के सिद्धांत दशहरा के महत्व के साथ जुड़े हुए है। यह त्योहार सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक है, जो वेदों के सार्वभौमिक नियमों और नैतिकता के सिद्धांतों से मेल खाता है।


🔶पुराणों में दशहरा : स्कंद पुराण, कालिका पुराण और मार्कण्डेय पुराण में विजयादशमी के दिन देवी दुर्गा की विजय और शक्ति के बारे में कई कथाएं UJमिलती है। स्कंद पुराण में देवी के महिषासुर मर्दिनी रूप का वर्णन है और बताया गया है कि इस दिन देवी ने बुराई का नाश किया। कालिका पुराण में भी दशहरे के दिन देवी की उपासना का उल्लेख मिलता है, जिसमें नवरात्रि के नौ दिनों के बाद दशवें दिन को विजय का प्रतीक माना गया है।


🚩ऐतिहासिक संदर्भ :

दशहरा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, और इसका प्रथम संदर्भ त्रेता युग से मिलता है, जब भगवान राम ने रावण का वध किया। इसके बाद द्वापर युग में अर्जुन की विजय भी इस पर्व से जुड़ी है। इन कथाओं के अनुसार दशहरा का उत्सव कई हज़ार वर्षों से मनाया जा रहा है।


त्रेता युग: श्रीराम द्वारा रावण पर विजय।

द्वापर युग: अर्जुन द्वारा विजय।

कलियुग: नवरात्रि और दुर्गा पूजा की परंपरा, जिसमें देवी दुर्गा की उपासना की जाती है और दशहरा को उनकी विजय के रूप में मनाया जाता है।


🚩आज के युग में दशहरे का महत्व : आज के संदर्भ में दशहरा का महत्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। समाज में बुराइयों का नाश करना और सत्य, धर्म, और नैतिकता का पालन करना इसका मुख्य संदेश है। आज दशहरे का उत्सव निम्नलिखित रूपों में महत्वपूर्ण है:


🚩नैतिकता और न्याय:

दशहरे का संदेश है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और न्याय की विजय होती है। यह संदेश आज के युग में अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ समाज में नैतिकता और न्याय का पालन आवश्यक है।


🚩शक्ति और आत्मबल : नवरात्रि के बाद दशहरे का पर्व यह भी सिखाता है कि व्यक्ति को आत्मबल, संयम और शक्ति की आवश्यकता है ताकि वह जीवन में आने वाली बुराइयों और चुनौतियों का सामना कर सके। देवी दुर्गा की उपासना शक्ति प्राप्त करने का प्रतीक है।


🚩सांस्कृतिक एकता :

दशहरा भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है,जैसे रावण दहन, दुर्गा पूजा, और शस्त्र पूजा। यह पर्व सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक है, जो आधुनिक समाज में लोगों को एकजुट करने का माध्यम बनता है।


🚩निष्कर्ष:

दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसका पौराणिक महत्व रामायण,महाभारत, पुराण और तंत्र-शास्त्रों से जुड़ा हुआ है। यह पर्व सदियों से धर्म,न्याय और सत्य की स्थापना के लिए मनाया जाता रहा है और आज भी इसका महत्व हमारे समाज में बहुत गहरा है।


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