25 मई 2020
शक्ति और शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी कि शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरु अर्जुन देव जी अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत कि सेवा में लगे रहते थे। श्री गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे।
भारतीय दशगुरु परम्परा के पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी गुरु रामदास के सुपुत्र थे। उनकी माता का नाम बीवी भानी जी था। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई. को हुआ था। प्रथम सितंबर 1581 को वे गुरु गद्दी पर विराजित हुए। 8 जून 1606 को उन्होंने धर्म व सत्य कि रक्षा के लिए 43 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
संपादन कला के गुणी गुरु अर्जुन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन भाई गुरदास की सहायता से किया। उन्होंने रागों के आधार पर श्री ग्रंथ साहिब जी में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझ-बूझ का ही प्रमाण है कि श्री ग्रंथ साहिब जी में 36 महान वाणीकारों की वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के कुल 5894 शब्द हैं, जिनमें 2216 शब्द श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज के हैं। पवित्र बीड़ रचने का कार्य सम्वत 1660 में शुरू हुआ तथा 1661 में यह कार्य संपूर्ण हो गया।
ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत कि, की ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है लेकिन बाद में जब अकबर को वाणी की महानता का पता चला, तो उन्होंने भाई गुरदास एवं बाबा बुढ्ढाके माध्यम से 51 मोहरें भेंट कर खेद ज्ञापित किया।
अकबर कि मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर गद्दी पर बैठा जो बहुत ही कट्टर विचारों वाला था। अपनी आत्मकथा ‘तुजुके-जहांगीरी’ में उसने स्पष्ट लिखा है कि वह गुरु अर्जुन देव जी के बढ़ रहे प्रभाव से बहुत दुखी था। इसी दौरान जहांगीर का पुत्र खुसरो बगावत करके आगरा से पंजाब की ओर आ गया।
जहांगीर को यह सूचना मिली थी कि गुरु अर्जुन देव जी ने खुसरो की मदद की है इसलिए उसने 15 मई 1606 ई. को गुरु जी को परिवार सहित पकड़ने का हुक्म जारी किया। उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर घरबार लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया।
गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 17 जून 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा’ के तहत लोहे कि गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया गया। यासा के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है।
गुरु जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो इन्हें ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया जहां गुरु जी का पावन शरीर रावी में आलोप हो गया। जिस स्थान पर आप ज्योति ज्योत समाए उसी स्थान पर लाहौर में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो अब पाकिस्तान में है) का निर्माण किया गया है। गुरुजी ने लोगों को विनम्र रहने का संदेश दिया। आप विनम्रता के पुंज थे। कभी भी आपने किसी को दुर्वचन नहीं बोले।
गुरवाणी में आप फरमाते हैं :
‘तेरा कीता जातो नाही मैनो जोग कीतोई॥
मै निरगुणिआरे को गुण नाही आपे तरस पयोई॥
तरस पइया मिहरामत होई सतगुर साजण मिलया॥
नानक नाम मिलै ता जीवां तनु मनु थीवै हरिया॥’
श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शहादत के समय दिल्ली में मध्य एशिया के मुगल वंश के जहांगीर का राज था और उन्हें राजकीय कोप का ही शिकार होना पड़ा। जहांगीर ने श्री गुरु अर्जुनदेव जी को मरवाने से पहले उन्हें अमानवीय यातानाएं दी।
मसलन चार दिन तक भूखा रखा गया। ज्येष्ठ मास की तपती दोपहर में उन्हें तपते रेत पर बिठाया गया। उसके बाद खौलते पानी में रखा गया। परन्तु श्री गुरु अर्जुनदेव जी ने एक बार भी उफ तक नहीं की और इसे परमात्मा का विधान मानकर स्वीकार किया।
बाबर ने तो श्री गुरु नानक जी को भी कारागार में रखा था। लेकिन श्री गुरु नानकदेव जी ने तो पूरे देश में घूम-घूम कर हताश हुई जाति में नई प्राण चेतना फूंक दी। जहांगीर के अनुसार उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया।
तपता तवा उनके शीतल स्वभाव के सामने सुखदाई बन गया। तपती रेत ने भी उनकी निष्ठा भंग नहीं की। गुरु जी ने प्रत्येक कष्ट हंसते-हंसते झेलकर यही अरदास की-
तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नाटीयनक मांगे॥
जहांगीर द्वारा श्री गुरु अर्जुनदेव जी को दिए गए अमानवीय अत्याचार और अन्त में उनकी मृत्यु जहांगीर की योजना का हिस्सा थी। श्री गुरु अर्जुनदेव जी जहांगीर की असली योजना के अनुसार ‘इस्लाम के अन्दर’ तो क्या आते, इसलिए उन्होंने विरोचित शहादत के मार्ग का चयन किया। इधर जहांगीर कि आगे की तीसरी पीढ़ी या फिर मुगल वंश के बाबर की छठी पीढ़ी औरंगजेब तक पहुंची। उधर श्री गुरुनानकदेव जी की दसवीं पीढ़ी श्री गुरु गोविन्द सिंह तक पहुंची।
यहां तक पहुंचते-पहुंचते ही श्री नानकदेव की दसवीं पीढ़ी ने मुगलवंश की नींव में डायनामाईट रख दिया और उसके नाश का इतिहास लिख दिया।
संसार जानता है कि मुट्ठी भर मरजीवड़े सिंघ रूपी खालसा ने 700 साल पुराने विदेशी वंशजों को मुगल राज सहित सदा के लिए ठंडा कर दिया।
100 वर्ष बाद महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में भारत ने पुनः स्वतंत्रता कि सांस ली। शेष तो कल का इतिहास है लेकिन इस पूरे संघर्षकाल में पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी कि शहादत सदा सर्वदा सूर्य के ताप की तरह प्रखर रहेगी।
गुरु जी शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी थे। वे अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे । मानव-कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन शुभ कार्य किए।
गुरु जी के शहीदी पर्व पर उन्हें याद करने का अर्थ है धर्म कि रक्षा आत्म-बलिदान देने को भी तैयार रहना। उन्होंने संदेश दिया कि महान जीवन मूल्यों के लिए आत्म-बलिदान देने को सदैव तैयार रहना चाहिए, तभी कौम और राष्ट्र अपने गौरव के साथ जीवंत रह सकते हैं।
आज भी हिन्दू संतो को सताया जा रहा है, कहि हत्या की जा रही है तो कहि झूठे केस बनाकर जेल भिजवाया जा रहा है ऐसा लग रहा है कि अभी भी मुगल काल चल रहा है जो साधु-संत ईसाई धर्मान्तरण रोकते है, विदेशी प्रोडक्ट बन्द करवाकर स्वदेशी अपनाने के लिए करोड़ो लोगो को प्रेरित करते है, विदेशों में जाकर हिन्दू धर्म की महिमा बताते है, करोड़ो लोगों का व्यसन छुड़वाते है, करोड़ो लोगो को सनातन हिन्दू संस्कृति के प्रति प्रेरित करते हैं, जन-जागृति लाते है, गरीबों में जाकर जीवनुपयोगी वस्तुओं का वितरण करते है, गौशालायें खोलते है उन महान संतो को विदेशी ताकतों के इशारे पर मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे केस में जेल भिजवाया जा रहा है इससे साफ पता चलता है कि मुगल तो गये लेकिन आज भी उनकी नस्ले देश में है जो ये षड्यंत्र करवा रही है।
वर्तमान में भी हिन्दू समाज को जगे रहना जरूरी है नही तो विदेशी ताकते देश को गुलाम बनाने कि ताक में बैठी है।
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