Showing posts with label #पत्र. Show all posts
Showing posts with label #पत्र. Show all posts

Wednesday, January 20, 2021

गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को जो पत्र लिखा था आज भारतीयों के लिए प्रेरणादायी है

 20 जनवरी 2021


गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ महान विद्वान् भी थे। वह ब्रज भाषा, पंजाबी, संस्कृत और फारसी भी जानते थे और इन सभी भाषाओँ में कविता भी लिख सकते थे। जब औरंगजेब के अत्याचार सीमा से बढ़ गए तो गुरूजी ने मार्च 1705 को एक पत्र भाई दयाल सिंह के हाथों औरंगजेब को भेजा। इसमे उसे सुधरने की नसीहत दी गयी थी। यह पत्र फारसी भाषा के छंद शेरों के रूप में लिखा गया है। इसमे कुल 134 शेर हैं। इस पत्र को "ज़फरनामा" कहा जाता है।




यद्यपि यह पत्र औरंगजेब के लिए था। लेकिन इसमे जो उपदेश दिए गए है वह आज हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इसमे औरंगजेब के आलावा मुसलमानों के बारे में जो लिखा गया है, वह हमारी आँखें खोलने के लिए काफी हैं। इसीलिए ज़फरनामा को धार्मिक ग्रन्थ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रन्थ में शामिल किया गया है।

जफरनामा से विषयानुसार कुछ अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं। ताकि लोगों को इस्लाम की हकीकत पता चल सके ---

1 - शस्त्रधारी ईश्वर की वंदना --

बनामे खुदावंद तेगो तबर, खुदावंद तीरों सिनानो सिपर।
खुदावंद मर्दाने जंग आजमा, ख़ुदावंदे अस्पाने पा दर हवा। 2 -3.

अर्थ : उस ईश्वर की वंदना करता हूँ, जो तलवार, छुरा, बाण, बरछा और ढाल का स्वामी है और जो युद्ध में प्रवीण वीर पुरुषों का स्वामी है, जिनके पास पवन वेग से दौड़ने वाले घोड़े हैं।

2 - औरंगजेब के कुकर्म :-

तो खाके पिदर रा बकिरादारे जिश्त, खूने बिरादर बिदादी सिरिश्त
वजा खानए खाम करदी बिना, बराए दरे दौलते खेश रा

अर्थ :- तूने अपने बाप की  मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूँधा, और उस खून से सनी मिटटी से अपने राज्य की नींव रखी। और अपना आलीशान महल तैयार किया।

3 - अल्लाह के नाम पर छल --

न दीगर गिरायम बनामे खुदात, कि दीदम खुदाओ व् कलामे खुदात
ब सौगंदे तो एतबारे न मांद, मिरा जुज ब शमशीर कारे न मांद.

अर्थ : तेरे खु-दा के नाम पर मैं धोखा नहीं खाऊंगा, क्योंकि तेरा खु-दा और उसका कलाम झूठे हैं। मुझे उनपर यकीन नहीं है। इसलिए सिवा तलवार के प्रयोग से कोई उपाय नहीं रहा।

4 - छोटे बच्चों की हत्या --

चि शुद शिगाले ब मकरो रिया, हमीं कुश्त दो बच्चये शेर रा.
चिहा शुद कि चूँ बच्च गां कुश्त चार, कि बाकी बिमादंद पेचीदा मार.

अर्थ : यदि सियार शेर के बच्चों को अकेला पाकर धोखे से मार डाले तो क्या हुआ। अभी बदला लेने वाला उसका पिता कुंडली मारे विषधर की तरह बाकी है। जो तुझ से पूरा बदला चुका लेगा।

5 - मु-सलमानों पर विश्वास नहीं --

मरा एतबारे बरीं हल्फ नेस्त, कि एजद गवाहस्तो यजदां यकेस्त.
न कतरा मरा एतबारे बरूस्त, कि बख्शी ओ दीवां हम कज्ब गोस्त.
कसे कोले कुरआं कुनद ऐतबार, हमा रोजे आखिर शवद खारो जार.
अगर सद ब कुरआं बिखुर्दी कसम, मारा एतबारे न यक जर्रे दम.

अर्थ : मुझे इस बात पर यकीन नहीं कि तेरा खुदा एक है। तेरी किताब (कु-रान) और उसका लाने वाला सभी झूठे हैं। जो भी कु-रान पर विश्वास करेगा, वह आखिर में दुखी और अपमानित होगा। अगर कोई कुरान कि सौ बार भी कसम खाए, तो उस पर यकीन नहीं करना चाहिए।

6 - दुष्टों का अंजाम --

कुजा शाह इस्कंदर ओ शेरशाह, कि यक हम न मांदस्त जिन्दा बजाह.
कुजा शाह तैमूर ओ बाबर कुजास्त, हुमायूं कुजस्त शाह अकबर कुजास्त.

अर्थ : सिकंदर कहाँ है, और शेरशाह कहाँ है, सब जिन्दा नहीं रहे। कोई भी अमर नहीं हैं, तैमूर, बाबर, हुमायूँ और अकबर कहाँ गए। सब का एकसा अंजाम हुआ।

7 - गुरूजी की प्रतिज्ञा --

कि हरगिज अजां चार दीवार शूम, निशानी न मानद बरीं पाक बूम.
चूं शेरे जियां जिन्दा मानद हमें, जी तो इन्ताकामे सीतानद हमें.
चूँ कार अज हमां हीलते दर गुजश्त, हलालस्त बुर्दन ब शमशीर दस्त.

अर्थ : हम तेरे शासन की दीवारों की नींव इस पवित्र देश से उखाड़ देंगे। मेरे शेर जब तक जिन्दा रहेंगे, बदला लेते रहेंगे। जब हरेक उपाय निष्फल हो जाएँ तो हाथों में तलवार उठाना ही धर्म है।

8 - ईश्वर सत्य के साथ है --

इके यार बाशद चि दुश्मन कुनद, अगर दुश्मनी रा बसद तन कुनद.
उदू दुश्मनी गर हजार आवरद, न यक मूए ऊरा न जरा आवरद.

अर्थ : यदि ईश्वर मित्र हो, तो दुश्मन क्या क़र सकेगा, चाहे वह सौ शरीर धारण क़र ले। यदि हजारों शत्रु हों, तो भी वह बल बांका नहीं क़र सकते है। सदा ही धर्म की विजय होती है।

गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी इसी प्रकार की ओजस्वी वाणियों से लोगों को इतना निर्भय और महान योद्धा बना दिया कि अब भी शांतिप्रिय -- सिखों से उलझाने से कतराते हैं। वह जानते हैं कि सिख अपना बदला लिए बिना नहीं रह सकते। इसलिए उनसे दूर ही रहो।

इस लेख का एकमात्र उद्देश्य है कि आप लोग गुरु गोविन्द साहिब कि वाणी को आदर पूर्वक पढ़ें, और श्री गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह जी के बच्चों के महान बलिदानों को हमेशा स्मरण रखें। और उनको अपना आदर्श मनाकर देश धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाएँ। वरना यह सेकुलर और जिहा दी एक दिन हिन्दुओं को विलुप्त प्राणी बनाकर मानेंगे।

गुरु गोविन्द सिंह का बलिदान सर्वोपरि और अद्वितीय है।

सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, बढे धर्म हिन्दू सकल भंड भागे...।
Source-Vedic Sikhism.

गुरु गोविन्द सिंह के महान संकल्प से खालसा की स्थापना हुई। हिन्दू समाज अत्याचार का सामना करने हेतु संगठित हुआ। पंच प्यारों में सभी जातियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसका अर्थ यही था कि अत्याचार का सामना करने के लिए हिन्दू समाज को जात-पात मिटाकर संगठित होना होगा। तभी अपने से बलवान शत्रु का सामना किया जा सकेगा...

खेद है की हिन्दुओं ने गुरु गोविन्द सिंह के सन्देश पर अमल नहीं किया। जात-पात के नाम पर बटें हुए हिन्दू समाज में संगठन भावना शुन्य हैं। गुरु गोविन्द सिंह ने स्पष्ट सन्देश दिया कि कायरता भूलकर, स्वबलिदान देना जब तक हम नहीं सीखेंगे तब तक देश, धर्म और जाति की सेवा नहीं कर सकेंगे।

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ