13 नवम्बर 2020
दीपावली हिन्दू समाज में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है। दीपावली को मनाने का उद्देश्य भारतीय संस्कृति के उस प्राचीन सत्य का आदर करना है, जिसकी महक से आज भी लाखों लोग अपने जीवन को सुवासित कर रहे हैं। दिवाली का उत्सव पर्वों का पुंज है। भारत में इस उत्सव को मनाने की परंपरा कब से चली, इस विषय में बहुत सारे अनुमान किये जाते हैं।
बताया जाता है कि भगवान श्रीराम जी का राज्याभिषेक इसी अमावस के दिन हुआ था और राज्याभिषेक के उत्सव में दीप जलाये गये थे, घर-बाजार सजाये गये थे, गलियाँ साफ-सुथरी की गयी थीं, मिठाइयाँ बाँटी गयीं थीं, तबसे दिवाली मनायी जा रही है।
यह भी बताया जाता है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके राजा बलि से दान में तीन कदम भूमि माँग ली और विराट रूप लेकर तीनों लोक ले लिए तथा सुतल का राज्य बलि को प्रदान किया। सुतल का राज्य जब बलि को मिला और उत्सव हुआ, तबसे दिवाली चली आ रही है।
कही ये भी बताया जाता है कि सागर मंथन के समय क्षीरसागर से महालक्ष्मी उत्पन्न हुईं तथा भगवान नारायण और लक्ष्मी जी का विवाह-प्रसंग था, तबसे यह दिवाली मनायी जा रही है।
यह भी पुराणों में आता है कि श्रीकृष्ण ने आसुरी वृत्ति के नरकासुर का वध कर जनता को भोगवृत्ति, लालसा, अनाचार एवं दुष्टप्रवृत्ति से मुक्त किया एवं प्रभुविचार (दैवी विचार) देकर सुखी किया तबसे ‘दीपावली’ मनाई जाती है।
सिखों का कहना है कि गुरु गोविन्दसिंह इस दिन से विजययात्रा पर निकले थे। तबसे सिक्खों ने इस उत्सव को अपना मानकर प्रेम से मनाना शुरू किया।
जैनी बताते है कि 'महावीर ने अंदर का अँधेरा मिटाकर उजाला किया था। उसकी स्मृति में दिवाली के दिन बाहर दीये जलाते हैं। महावीर ने अपने जीवन में तीर्थंकरत्व को पाया था, अतः उनके आत्म उजाले की स्मृति कराने वाला यह त्यौहार हमारे लिए विशेष आदरणीय है।
इस प्रकार पौराणिक काल में जो भिन्न-भिन्न प्रथाएँ थीं, वे प्रथाएँ देवताओं के साथ जुड़ गयीं और दिवाली का उत्सव बन गया।
यह उत्सव कब से मनाया जा रहा है, इसका कोई ठोस दावा नहीं कर सकता, लेकिन है यह रंग-बिरंगे उत्सवों का गुच्छ..... यह केवल सामाजिक, आर्थिक और नैतिक उत्सव ही नहीं वरन् आत्मप्रकाश की ओर जाने का संकेत करने वाला, आत्मोन्नति कराने वाला उत्सव है।
किसी अंग्रेज ने आज से 900 वर्ष पहले भारत की दिवाली देखकर अपनी यात्रा-संस्मरणों में इसका बड़ा सुन्दर वर्णन किया है तो दिवाली उसके पहले भी होगी।
संसार की सभी जातियाँ अपने-अपने उत्सव मनाती हैं। प्रत्येक समाज के अपने उत्सव होते हैं जो अन्य समाजों से भिन्न होते हैं, परंतु हिंदू पर्वों और उत्सवों में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं, जो किसी अन्य जाति के उत्सवों में नहीं हैं। हम लोग वर्षभर उत्सव मनाते रहते हैं। एक त्यौहार मनाते ही अगला त्यौहार सामने दिखाई देता है। इस प्रकार पूरा वर्ष आनन्द से बीतता है।
दीपावली टिप्स
1. दिवाली की रात कुबेर भगवान ने लक्ष्मी जी की आराधना की थी जिससे वे धनाढ्यपतियों के भी धनाढ्य कुबेर भंडारी के नाम से प्रसिद्ध हुए , ऐसा इस काल का महत्व है ।
दीपावली की रात का लाख गुना फलदायी होता है । ये सिद्ध रात्रियाँ कहलाती हैं व भाग्य की रेखा बदलने वाली रात्रियाँ हैं । अधिक से अधिक जप करके इन रात्रियों का लाभ उठाना चाहिए ।
दीपावली की रात्रि जप करने योग्य लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र "रात्रि को दीया जलाकर इस सरल मंत्र का यथाशक्ति जप करें : ' ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा"
2. घर के बाहर हल्दी और चावल के मिश्रण या केवल हल्दी से स्वस्तिक अथवा ॐकार बना दें । यह घर को बाधाओं से सुरक्षित रखने में मदद करता है । द्वार पर अशोक और नीम के पत्तों का तोरण ( बंदनवार ) बाँध दें | उससे पसार होनेवाले की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी ।
3. लक्ष्मी प्रात्ति हेतु दीपावली की संध्या को तुलसी जी के निकट दीया जलाएँ , इससे लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने में मदद मिलती है ।
4. लक्ष्मी प्राप्ति की साधना :- दीपावली के दिनघर के मुख्य दरवाजे के दायीं और बायीं ओर गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी लगाकर उस पर दो दीपक जला दें । हो सके तो वे रात भर जलते रहें, इससे आपके घर में सुख - सम्पति की वृद्धि होगी ।
5. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गुरुदेव के श्रीचित्र पर विशेष तिलक :- दीपावली के दिन लौंग और इलायची को जलाकर राख कर दें और उससे भगवान अथवा गुरुदेव (श्रीचित्र) को तिलक करें । ऐसा करने से लक्ष्मी प्राप्ति में मदद मिलती है और काम - धंधे में बरकत आती है ।
6. आनंद व प्रसन्नतावर्धक नारियल - खीर प्रयोग :- दीपावली के रात्रि को थोड़ी खीर को कटोरी में डालकर और नारियल लेकर घूमना और मन में 'लक्ष्मी-नारायण' जप करना ; स्वीर ऐसी जगह रखना जहाँ किसीका पैर ना पड़े और गाय, कौए आदि स्वा जाएँ । नारियल अपने घर के मुख्य दरवाजे पर फोड़ देना और उसकी प्रसादी बांटना । इससे घर में आनंद और सुख-शांति रहेगी ।
7. परिवार की तीनों तापों से रक्षा के लिए-कपूर :- दीपावली के दिन चाँदी की कटोरी में अगर कपूर को जलाएँ, तो परिवार में तीनों तापों से रक्षा होती है ।
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