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Sunday, July 9, 2023

देश भर में ईसाई मिशनरियां धर्मान्तरण फैला रही हैं, रोकना जरूरी हैं, नही तो होगी भयंकर हानियां...... जानिए...

9 July 2023

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🚩सभी देशभक्त नेता ईसाई धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है।


🚩महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।


🚩ओडिशा में 11 नाबालिग हिंदुओं के धर्मांतरण पर NCPCR सख्त


🚩ओडिशा (Odisha) के जगतसिंहपुर क्षेत्र के काटेसिंहपुर गाँव में कनाडाई नागरिक द्वारा धर्मांतरण की कोशिश की जा रही थी। इस मामले में ऑपइंडिया की रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने संज्ञान लिया है। NCPCR ने आरोपित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जगतसिंहपुर प्रशासन को पत्र लिखा है।


🚩NCPCR ने जगतसिंगपुर के कलेक्टर पारुल पटवारी को लिखे पत्र में कहा है कि 11 नाबालिग हिंदू बच्चों को एक कार्यक्रम में अवैध रूप से धर्मांतरित किया जा रहा था। इस कार्यक्रम को कनाडाई नागरिक एपेन मोहन किडंगलील (Eapen Mohan Kidangalil) ने तिर्तोल की दो अन्य मिशनरियों के साथ मिलकर आयोजित किया था।


🚩राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पत्र में आगे कहा, “आयोग इस मामले की गहन जाँच और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध करता है। यह पत्र मिलने के 3 दिन के भीतर बच्चों की जानकारी और अन्य सभी आवश्यक दस्तावेज आयोग के सामने प्रस्तुत किए जाएँ।”


🚩एपेन मोहन किडंगलील पर ओडिशा पुलिस ने 24 जून 2023 को मामला दर्ज किया था। किडंगलील पर प्रार्थना सभा आयोजित करने के नाम पर अनुसूचित जनजाति (ST) समाज के गरीब लोगों को लालच देकर ईसाई बनाने की कोशिश का आरोप है। इन लोगों में बच्चे भी शामिल हैं। इसके बाद उसे पकड़कर VHP के कार्यकर्ताओं ने पुलिस को सौंप दिया।


🚩22 जून 2023 को VHP कार्यकर्ताओं को जगतसिंहपुर क्षेत्र के काटेसिंहपुर गाँव में धर्मांतरण कार्यक्रम की जानकारी मिली थी। जब वे मौके पर पहुँचे तो पाया कि कनाडा की नागरिकता रखने वाला एपेन मोहन करीब 33 स्थानीय निवासियों को ईसाई बनने के लिए उकसा रहा था। इनमें महिलाओं सहित 11 नाबालिग भी थे।


🚩ईसाई धर्मांतरण की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार 


🚩मध्य प्रदेश के इंदौर में गणेश और जॉनी पकड़ा गया है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर में बेदराम गुड़िया और राधे निषाद विरासत की गिरफ्तारी हुई है। दो अलग राज्यों के शहरों में हुई इस गिरफ्तारी में समानता यह है कि इन पर हिंदुओं को लालच देकर ईसाई बनाने की कोशिश का आरोप है।


🚩उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हिंदुओं को ईसाई बनाने की तैयारी बकायदा सभा लगाकर की जा रही थी। लेकिन बजरंग दल कार्यकर्ताओं के अचानक पहुँच जाने के कारण रंग में भंग पड़ गया। विरोध और हंगामे के बाद मौके पर पुलिस आई और दो लोगों की गिरफ्तारी हुई। यह मामला सीतापुर जिले में सकरन थाना क्षेत्र अंतर्गत पकरिया पुरवा गाँव का है। दैनिक भास्कर रिपोर्ट के अनुसार, गाँव के बेदराम गुड़िया के घर पर सभा लगाकर सैकड़ों हिंदुओं को इकट्ठा किया गया था। आरोप है कि पादरी राधे निषाद विरासत ईसाई मजहब की पुस्तकों और यीशु मसीह के नाम पर लोगों का धर्मांतरण कराने की कोशिश कर रहा था।


🚩स्थानीय ग्रामीणों ने इसकी सूचना बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को दी। उन्होंने मौके पर पहुँचकर धर्मांतरण की गतिविधि को रोकने की कोशिश की। लेकिन इससे सभा में मौजूद महिलाएँ भड़क गईं। कई महिलाओं ने लाठी-डंडे लेकर बजरंग दल कार्यकर्ताओं पर हमला कर दिया। इससे कुछ लोगों को चोट भी आई है। मौके पर पुलिस भी पहुँची तो आरोपितों के पास से ईसाइयत से जुड़ी किताबें व कुछ अन्य दस्तावेज भी मिले। इसके बाद पुलिस ने धर्मांतरण के लिए सभा का आयोजन करने वाले मकान मालिक बेदराम गुड़िया और पादरी राधे निषाद विरासत को गिरफ्तार कर लिया।


🚩इंदौर में भी लालच देकर धर्मांतरण की कोशिश


🚩धर्मांतरण का दूसरा मामला मध्य प्रदेश के इंदौर में बाणगंगा इलाके का है। रमा देवी कुर्मी नाम की महिला ने अपने पड़ोसी गणेश और जॉनी नामक एक व्यक्ति पर धर्मांतरण के लिए लालच देने का आरोप लगाया है। आरोप है कि गणेश के घर में हर सप्ताह प्रार्थना सभा होती है। इसमें शामिल होने वाले हिंदुओं को पैसों का लालच दिया जाता है।

🚩रमा देवी ने कहा है कि 30 जून 2023 को जॉनी और उसकी पत्नी शाली उनसे अपने घर में सभा रखने को कहा। इनकार करने पर जॉनी और उसकी पत्नी ने हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करना शुरू कर दिया। बहस के बाद रमा देवी ने दोनों को घर से भगा दिया। इसके बाद 3 जून को जॉनी और उसकी पत्नी शाली एक बार फिर रमा देवी के घर आ धमके। इस बार उनके साथ में गणेश भी था।


🚩आरोप है कि इन लोगों ने रमा देवी को लोन माफ कराने, बच्चों की पढ़ाई और शादी के लिए पैसे देने समेत कई तरह के प्रलोभन दिए। इसके बाद रमा देवी ने फोन कर अपने परिचितों और पुलिस को बुला लिया। पुलिस ने 295-A के तहत मामला दर्ज कर गणेश और जॉर्ज को गिरफ्तार कर लिया है।


🚩रमा देवी का कहना है कि गणेश जिस फैक्ट्री में काम करता था, वहाँ भी लोगों को धर्मांतरण के लिए लालच देता था। इसके चलते फैक्ट्री मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया था। कोरोना के समय जब उसकी पत्नी का निधन हो गया तो वह उसे दफनाने पर अड़ गया था। रमा देवी के अनुसार एक बार वह पूजा कर रहीं थी तो गणेश ने उनसे कहा कि इस तरह की पत्थर की मूर्ति भगवान नहीं हो सकती। यीशू को भगवान मानकर ईसाई बन जाओ।


🚩आप लोग अब समझ सकते हैं, कि किस तरह से ये ईसाई मिशनरी वाले ,भोले भाले लोगों को बेवकूफ बना कर धर्म परिवर्तन कराते  हैं,वैसे ये लोग धर्म परिवर्तन का काम एक वर्ग विशेष के साथ ही करते हैं। सभी हिन्दू ऐसे लोगों पर ध्यान दें और उनको मुँहतोड़ जवाब दे।


🚩भारत सरकार से देश के सभी हिन्दूओ की मांग है कि भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा हो रहे धर्मान्तरण के धंधे पर रोक लगाए।


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Wednesday, August 26, 2020

मदर टेरेसा का असली चेहरा, गरीबों को मदद नही बल्कि धर्मान्तरण करवाना था।

26 अगस्त 2020


मदर टेरेसा का आज जन्मदिन था लेकिन ट्वीटर पर एक टॉप ट्रेंड चल रहा था #TeresaNoSaint इसमें जनता बता रही थी कि मदर टेरेसा कोई संत नही बल्कि मिशनरियों की कठपुतली थी उसने भारत में गरीबों की मदद के बहाने गरीबों का शोषण किया और दान के पैसे से हिंदुस्तानियों का धर्मान्तरण करवाया।




मदर टेरेसा 24 मई 1931 को कलकत्ता आई और यही की होकर रह गई। कोलकाता आने पर धन की उगाही करने के लिए मदर टेरेसा ने अपनी मार्केटिंग आरम्भ करी। उन्होंने कोलकाता को गरीबों का शहर के रूप में चर्चित कर और खुद को उनकी सेवा करने वाली के रूप में चर्चित कर अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करी। वे कुछ ही वर्षों में "दया की मूर्ति", "मानवता की सेविका", "बेसहारा और गरीबों की मसीहा", “लार्जर दैन लाईफ़” वाली छवि से प्रसिद्ध हो गई। बड़े शातिर तरीके से उन्होंने अपनी मार्केटिंग करी कि जिससे यह लगे की गरीबों की वह सबसे बड़ी हमदर्द है। इसका परिणाम यह निकला की विश्व स्तर पर उनकी बढ़िया छवि बन गई जिससे न केवल अकूत धन की उन पर वर्षा हुई बल्कि नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला। इसका दूरगामी प्रभाव यह हुआ कि हिन्दू समाज उनके धर्मान्तरण के असली उद्देश्य की अनदेखी कर उन्हें संत मानने लग गया। 31 मई 2010 को BBC मे खबर थी। कुछ हिन्दुओं की मूर्खता देखिये उन्होंने इंग्लैंड के वेम्ब्ली में 14 साल और 16 मिलियन पौंड (लगभग 15 करोड़ रूपए) खर्च करके आलीशान मंदिर का निर्माण किया उसमें हिन्दू देवी देवताओं के अतिरिक्त वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप या बन्दा बैरागी नहीं अपितु मदर टेरेसा की मूर्ति लगा डाली। खबर का लिंक-


क्रिस्टोफर हिचेन्स (अप्रैल 1949-दिसंबर 2011) ने टेरेसा पर एक किताब लिखी है। 'द मिशनरी पोजीशन : मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस'। क्रिस्टोफर हिचेन्स अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ब्रिटिश-अमेरिकी लेखक और पत्रकार है। इसमें वे लिखते हैं कि मीडिया के एक विशेष वर्ग द्वारा महिमामंडित टेरेसा के 600 मिशन दुनियाभर में हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं जिन्हें 'मरने वालों का बसेरा' कहा जाता है। इन स्थानों पर रोगियों को रखा जाता है, जिनके बारे में चिकित्सकों ने चौंकाने वाले बयान दिए हैं। चिकित्सकों के मुताबिक, जहां रोगियों को रखा जाता है, वहां साफ-सफाई नहीं होती। रोगियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलने और उनके लिए दर्द निवारक दवाएं नहीं होने पर भी उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया। क्रिस्टोफर हिचेंस के अनुसार, जब इस बारे में पूछा गया तो टेरेसा का जवाब था- ''गरीबों, पीडितों द्वारा अपने नसीब को स्वीकार करता देखने और जीसस की तरह कष्ट उठाने में एक तरह का सौंदर्य है। उन लोगों के कष्ट से दुनिया को बहुत कुछ मिलता है।''

हालांकि जब टेरेसा खुद बीमार पड़ीं तो अपने ऊपर इन सिद्धांतों को लागू नहीं किया। न ही इन अस्पतालों को अपने इलाज के लिए उपयुक्त समझा न टेरेसा ने अपना इलाज यहां कराया। यह बात दिसंबर 1991 की है। ‘मदर टेरेसा की कमाई बंगाल के किसी भी फर्स्ट क्लास क्लीनिक को खरीद सकती थी। लेकिन क्लीनिक न चलाकर एक संस्था चलाना एक सोचा समझा फैसला था। समस्या कष्ट सहने की नहीं है, लेकिन कष्ट और मौत के नाम पर एक कल्ट चलाने की है। मदर टेरेसा खुद अपने आखिरी दिनों में अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित सबसे महंगे अस्पतालों में से एक स्क्रप्सि क्लीनिक एंड रिसर्च फाउंडेशन में भर्ती हुईं।

क्रिस्टोफ़र हिचेन्स ने 1994 में एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी, जिसमें मदर टेरेसा के सभी क्रियाकलापों पर विस्तार से रोशनी डाली गई थी। बाद में यह फ़िल्म ब्रिटेन के चैनल-फ़ोर पर प्रदर्शित हुई और इसने काफ़ी लोकप्रियता अर्जित की। बाद में अपने कोलकाता प्रवास के अनुभव पर उन्होंने एक किताब भी लिखी “हैल्स एन्जेल” (नर्क की देवदूत) इसमें उन्होंने कहा है कि “कैथोलिक समुदाय विश्व का सबसे ताकतवर समुदाय है। जिन्हें पोप नियंत्रित करते हैं, चैरिटी चलाना, मिशनरियाँ चलाना, धर्म परिवर्तन आदि इनके मुख्य काम हैं। जाहिर है कि मदर टेरेसा को टेम्पलटन सम्मान, नोबल सम्मान, मानद अमेरिकी नागरिकता जैसे कई सम्मान इसी कारण से मिलें।

कॉलेट लिवरमोर टेरेसा के ही मिशन में काम करने वाली एक आस्ट्रेलियाई नन है। इन्होने अपने मोहभंग और यातनाओं पर एक किताब लिखी है- 'होप एन्ड्योर्स'। इसमें उन्होंने अपने 11 साल के अनुभव के बारे में लिखा है कि कैसे ननों को चिकित्सीय सुविधाओं, मच्छर प्रतिरोधकों और टीकाकरण से वंचित रखा गया ताकि वे 'जीसस के चमत्कार पर विश्वास करना सीखें'। कॉलेट ने पुस्तक में इस बात का भी उल्लेख किया है कि वे किस तरह एक मरणासन्न रोगी की सहायता करने के कारण संकट में पड़ गई थी। उन्होंने लिखा है कि वहां पर तंत्र उचित या अनुचित के स्थान पर आदेश का पालन करने पर जोर देता है। जब कॉलेट को एलेक्स नामक एक बीमार बालक की सहायता करने से रोका गया तब उन्होंने टेरेसा को अलविदा कह दिया और लोगों से अपील की कि वे अपनी बुद्धि का उपयोग करें।

अरूप चटर्जी जो कोलकाता में रहते है अपनी पुस्तक "द फाइनल वर्डिक्ट" में लिखते है कि दान से मिलने वाले पैसे का प्रयोग सेवा कार्य में शायद ही होता होगा। मिशनरी में भर्ती हुए आश्रितों की हालत भी इतने धन मिलने के उपरांत भी उनकी स्थिति कोई बेहतर नहीं थी। टेरेसा दूसरो के लिए दवा से अधिक प्रार्थना में विश्वास रखती थी। जबकि खुद का इलाज कोलकाता के महंगे अस्पताल में कराती थी। मिशनरी की एम्बुलेंस मरीजों से अधिक नन आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य करती थी। यही कारण था की मदर टेरेसा की मृत्यु के समय कोलकाता निवासी उनकी शवयात्रा में न के बराबर शामिल हुए थे।”

डॉ.रॉबिन फ़ॉक्स जो “ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल शोध पत्रिका लेंसेट (Lancet) के सम्पादक थे ने 1991 में एक बार मदर के कलकत्ता स्थित चैरिटी अस्पतालों का दौरा किया था। उन्होंने पाया कि बच्चों के लिये साधारण दवाईयाँ तक वहाँ उपलब्ध नहीं थी और न ही “स्टर्लाइज्ड सिरिंज” का उपयोग हो रहा था। जब इस बारे में मदर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “ये बच्चे सिर्फ़ मेरी प्रार्थना से ही ठीक हो जायेंगे"।

रोमन कैथोलिक में किसी को सन्त घोषित करना हो तो उसकी पहली शर्तें होती है, उपरोक्त व्यक्ति के नाम के साथ कोई चमत्कार घटित होता दिखाया जाये। अगर चमत्कार का 'प्रमाण' पेश किया गया तो उपरोक्त व्यक्ति का 'बीटिफिकेशन' होता है अर्थात उसे ईसा के प्रिय पात्रों में शुमार किया जाता है, जिसका ऐलान वैटिकन में आयोजित एक बड़े धार्मिक जलसे में लाखों लोगों के बीच किया जाता है तथा दूसरे चरण में उसे सन्त घोषित किया जाता है जिसे 'कननायजेशन' कहते है।

अभी कुछ साल पहले मदर टेरेसा का बीटिफिकेशन हुआ था, जिसके लिए राईगंज के पास की रहनेवाली किन्हीं मोनिका बेसरा से जुड़े 'चमत्कार' का विवरण पेश किया गया था। गौरतलब है कि 'चमत्कार' की घटना की प्रामाणिकता को लेकर सिस्टर्स आफ चैरिटी के लोगाें ने लम्बा चौड़ा 450 पेज का विवरण वैटिकन को भेजा था। यह प्रचारित किया गया था कि मोनिका के टयूमर पर जैसे ही मदर टेरेसा के लॉकेट का स्पर्श हुआ, वह फोड़ा छूमन्तर हुआ। दूसरी तरफ खुद मोनिका बेसरा के पति सैकिया मूर्म ने खुद 'चमत्कार' की घटना पर यकीन नहीं किया था और मीडियाकर्मियों को बताया था कि किस तरह मोनिका का लम्बा इलाज चला था। दूसरे राईगंज के सिविल अस्पताल के डाक्टरों ने भी बताया था कि किस तरह मोनिका बेसरा का लम्बा इलाज उन्होंने उसके टयूमर ठीक होने के लिए किया। https://www.facebook.com/288736371149169/posts/3667777206578385/

ईसाई मिशनरीयों का पक्षपात इसी से समझ में आता है की वह केवल उन्हीं गरीबों की सेवा करना चाहती हैं, जो ईसाई मत को ग्रहण कर ले। भारत में कार्य करने वाली ईसाई संस्थाओं का एक चेहरा अगर सेवा है तो दूसरा असली चेहरा प्रलोभन, लोभ, लालच, भय और दबाव से धर्मान्तरण भी करना हैं। इससे तो यही प्रतीत होता है की जो भी सेवा कार्य मिशनरी द्वारा किया जा रहा है उसका मूल उद्देश्य ईसाईकरण ही है।

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Saturday, July 11, 2020

कोरोना में ईसाई मिशनरीज बनवा रही है चर्च और करवा रही है धर्मान्तरण। मीडिया और कानून सोए हैं गहन निंद्रा में।

11 जुलाई 2020


🚩कोरोना वायरस की महामारी के दौरान इसाई मिशनरियों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध चर्च निर्माण से लेकर धर्मांतरण के कई मामले सामने आए हैं। आपको बता दें कि किसी एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की देशभर में कोरोना के कारण आश्रम में रहने वालों को बाहर किया जाए और जरूरत पड़ने पर आश्रम बंद करवाया जाए नहीं तो सरकार के नीति नियमों से चलना चाहिए। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनने को तैयार हुई, मीडिया भी जोर शोर से खबरें चलाने लगी लेकिन दूसरी तरफ कोरोना में ईसाई मिशनरी पुरे जोश से धर्मान्तरण करवा रहे हैं और चर्च बनवा रहे हैं। उस पर न मीडिया कुछ बोल रही है और ना ही न्यायालय कोई संज्ञान ले रहा है।

🚩मिशनरियां द्वारा चर्च और धर्मान्तरण का खेल

1. उत्तराखंड राज्य में प्रलोभन देकर और युवाओं को गुमराह कर अनुसूचित जाति के लोगों को निशाना बनाकर उन्हें चर्च निर्माण और धर्मांतरण के लिए उकसाया जाता है।

2. आंध्र प्रदेश में जिस गांव में केवल हिंदू रहते हैं , वहाँ चर्च बनाया जा रहा, शिकायत किया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है ऊपर से प्रशासन ने ग्रामीणों का उत्पीड़न कर रही हैं।


3. झारखंड में लातेहार के एक गाँव से पादरी द्वारा जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की खबर सामने आई है, जहाँ के पाँच युवकों ने 23 सदस्यों के साथ अपने पिता के विरोध के बाद भी धर्म परिवर्तन कर लिया। इसकी जानकारी मिलते ही पिता ने अब अपने बेटों को संपत्ति से बेदखल करते हुए थाने में धर्म परिरवर्तन कराने वाले के खिलाफ में मुकदमा दर्ज कराया है।

4. झारखंड धनबाद झरिया पुनर्वास के नाम पर दो दर्जन परिवारों का धर्म परिवर्तन कर उन्हें ईसाई बना दिया गया। ये मामला सामने आने के बाद हिंदू संगठनों और स्थानीय लोगों ने इसका जमकर विरोध किया और प्रशासन को शिकायत दर्ज कराई थी।

🚩झारखण्ड से समाचार ये भी मिल रहे हैं कि मदर टेरेसा से सम्बंधित संगठन की ईसाई नन बच्चें बेचते पकड़ी गई हैं। 280 बच्चों की गुमशुदगी की खबर है। कभी केरल से समाचार मिलता है कि पादरियों ने नन का यौन शोषण किया। कभी समाचार मिलता है कि ईसाई अनाथालय में बच्चों का यौन शोषण हुआ। कभी समाचार मिलता है कि तमिलनाडु में ईसाई संस्था अंगों को निकाल कर बेचती हैं। मीडिया इन ख़बरों को कभी प्रमुखता से नहीं दिखाता। इसके कुछ दिनों पहले तक गोवा और दिल्ली के ईसाई आर्कबिशप देश में भय के माहौल की बात कर रहे थे बड़ी प्रमुखता से दिखाते हैं।

🚩निष्पक्ष रूप से यह दोहरे मापदंड है। इनका प्रयोजन हिन्दू समाज से सम्बंधित किसी खबर को राई का पहाड़ बनाकर दिखाना होता है। और ईसाई या मुस्लिम समाज से सम्बंधित किसी भी खबर को जितना हो सके। उतना छुपाना होता है। ईसाई समाज हिन्दुओं का धर्मान्तरण व्यापक रूप से करता आया हैं। मानवता की सच्ची सेवा में प्रलोभन, लोभ, लालच, भय, दबाव से लेकर धर्मान्तरण का कोई स्थान नहीं है। इससे तो यही सिद्ध हुआ कि जो भी सेवा कार्य मिशनरी द्वारा किया जा रहा है। उसके मूल उद्देश्य ईसा मसीह के लिए भेड़ों की संख्या बढ़ाना है।

🚩मदर टेरेसा की संस्थाएं धर्मान्तरण के कार्य करने के लिए प्रसिद्द हैं। यही लोग मदर टेरेसा को संत मानते है। संत वही होता है जो पक्षपात रहित आचरण वाला हो एवं जिसका उद्देश्य केवल मानवता की भलाई है। ईसाई मिशनरीयों का पक्षपात इसी से समझ में आता है की वह केवल उन्हीं गरीबों की सेवा करना चाहती है जो ईसाई मत को ग्रहण कर ले। विडंबना यह है की ईसाईयों को पक्षपात रहित होकर सेवा करने का सन्देश देने के स्थान पर मीडिया हिन्दू संगठनों की आलोचना अधिक प्रचारित करता है।

🚩हमारे देश के संभवतः शायद ही कोई चिंतक ऐसे हुए हों जिन्होंने प्रलोभन द्वारा धर्मान्तरण करने की निंदा न की हो। महान चिंतक स्वामी दयानंद का एक ईसाई पादरी से शास्त्रार्थ हो रहा था। स्वामी जी ने पादरी से कहा कि हिन्दुओं का धर्मांतरण करने के तीन तरीके है। पहला जैसा मुसलमानों के राज में गर्दन पर तलवार रखकर जोर जबरदस्ती से बनाया जाता था। दूसरा बाढ़, भूकम्प, प्लेग आदि प्राकृतिक आपदा जिसमें हज़ारों लोग निराश्रित होकर ईसाईयों द्वारा संचालित अनाथाश्रम एवं विधवाश्रम आदि में लोभ-प्रलोभन के चलते भर्ती हो जाते थे और इस कारण से आप लोग प्राकृतिक आपदाओं के देश पर बार बार आने की अपने ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और तीसरा बाइबिल की शिक्षाओं के जोर शोर से प्रचार-प्रसार करके। मेरे विचार से इन तीनों में सबसे उचित अंतिम तरीका मानता हूँ। स्वामी दयानंद की स्पष्टवादिता सुनकर पादरी के मुख से कोई शब्द न निकला। स्वामी जी ने कुछ ही पंक्तियों में धर्मान्तरण के कुचक्र का पर्दाफाश कर दिया। स्वामी जी ईसाई प्रचारकों द्वारा हिन्दू देवी देवताओं की निंदा करने के सख्त आलोचक थे।

🚩महात्मा गांधी ईसाई धर्मान्तरण के सबसे बड़े आलोचकों में से एक थे। अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी लिखते है "उन दिनों ईसाई मिशनरी हाई स्कूल के पास नुक्कड़ पर खड़े हो हिन्दुओं तथा देवी देवताओं पर गालियां उड़ेलते हुए अपने मत का प्रचार करते थे। यह भी सुना है कि एक नया कन्वर्ट (मतांतरित) अपने पूर्वजों के धर्म को, उनके रहन-सहन को तथा उनके गलियां देने लगता है। इन सबसे मुझमें ईसाइयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई।" इतना ही नहीं गांधी जी से मई, 1935 में एक ईसाई मिशनरी नर्स ने पूछा कि क्या आप मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगाना चाहते है तो जवाब में गांधी जी ने कहा था,' अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं तो मैं मतांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूँ। मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में जहाँ मिशनरी पैठे है, वेशभूषा, रीतिरिवाज एवं खानपान तक में अंतर आ गया है।

🚩समाज सुधारक एवं देशभक्त लाला लाजपत राय द्वारा प्राकृतिक आपदाओं में अनाथ बच्चों एवं विधवा स्त्रियों को मिशनरी द्वारा धर्मान्तरित करने का पुरजोर विरोध किया गया जिसके कारण यह मामला अदालत तक पहुंच गया। ईसाई मिशनरी द्वारा किये गए कोर्ट केस में लाला जी की विजय हुई एवं एक आयोग के माध्यम से लाला जी ने यह प्रस्ताव पास करवाया की जब तक कोई भी स्थानीय संस्था निराश्रितों को आश्रय देने से मना न कर दे तब तक ईसाई मिशनरी उन्हें अपना नहीं सकती।

🚩समाज सुधारक डॉ अम्बेडकर को ईसाई समाज द्वारा अनेक प्रलोभन ईसाई मत अपनाने के लिए दिए गए मगर यह जमीनी हकीकत से परिचित थे कि ईसाई मत ग्रहण कर लेने से भी दलित समाज अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित ही रहेगा। डॉ आंबेडकर का चिंतन कितना व्यवहारिक था यह आज देखने को मिलता है।''जनवरी 1988 में अपनी वार्षिक बैठक में तमिलनाडु के बिशपों ने इस बात पर ध्यान दिया कि धर्मांतरण के बाद भी अनुसूचित जाति के ईसाई परंपरागत अछूत प्रथा से उत्पन्न सामाजिक व शैक्षिक और आर्थिक अति पिछड़ेपन का शिकार बने हुए हैं। फरवरी 1988 में जारी एक भावपूर्ण पत्र में तमिलनाडु के कैथलिक बिशपों ने स्वीकार किया 'जातिगत विभेद और उनके परिणामस्वरूप होने वाला अन्याय और हिंसा ईसाई सामाजिक जीवन और व्यवहार में अब भी जारी है। हम इस स्थिति को जानते हैं और गहरी पीड़ा के साथ इसे स्वीकार करते हैं।' भारतीय चर्च अब यह स्वीकार करता है कि एक करोड़ 90 लाख भारतीय ईसाइयों का लगभग 60 प्रतिशत भाग भेदभावपूर्ण व्यवहार का शिकार है। उसके साथ दूसरे दर्जे के ईसाई जैसा अथवा उससे भी बुरा व्यवहार किया जाता है। दक्षिण में अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों को अपनी बस्तियों तथा गिरिजाघर दोनों जगह अलग रखा जाता है। उनकी 'चेरी' या बस्ती मुख्य बस्ती से कुछ दूरी पर होती है और दूसरों को उपलब्ध नागरिक सुविधाओं से वंचित रखी जाती है। चर्च में उन्हें दाहिनी ओर अलग कर दिया जाता है। उपासना (सर्विस) के समय उन्हें पवित्र पाठ पढऩे की अथवा पादरी की सहायता करने की अनुमति नहीं होती। बपतिस्मा, दृढि़करण अथवा विवाह संस्कार के समय उनकी बारी सबसे बाद में आती है। नीची जातियों से ईसाई बनने वालों के विवाह और अंतिम संस्कार के जुलूस मुख्य बस्ती के मार्गों से नहीं गुजर सकते। अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों के कब्रिस्तान अलग हैं। उनके मृतकों के लिए गिरजाघर की घंटियां नहीं बजतीं, न ही अंतिम प्रार्थना के लिए पादरी मृतक के घर जाता है। अंतिम संस्कार के लिए शव को गिरजाघर के भीतर नहीं ले जाया जा सकता। स्पष्ट है कि 'उच्च जाति' और 'निम्न जाति' के ईसाइयों के बीच अंतर्विवाह नहीं होते और अंतर्भोज भी नगण्य हैं। उनके बीच झड़पें आम हैं। नीची जाति के ईसाई अपनी स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष छेड़ रहे हैं, गिरजाघर अनुकूल प्रतिक्रिया भी कर रहा है लेकिन अब तक कोई सार्थक बदलाव नहीं आया है। ऊंची जाति के ईसाइयों में भी जातिगत मूल याद किए जाते हैं और प्रछन्न रूप से ही सही लेकिन सामाजिक संबंधोंं में उनका रंग दिखाई देता है।

🚩महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।

🚩इस प्रकार से प्राय: सभी देशभक्त नेता ईसाई धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है।

🚩पश्चिम बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला जिसका नाम मोनिका बेसरा है, उसे टीबी और पेट में ट्यूमर हो गया था। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल के डॉ. रंजन मुस्ताफ़ उसका इलाज कर रहे थे। उनके इलाज से मोनिका को काफ़ी फ़ायदा हो रहा था और एक बीमारी लगभग ठीक हो गई थी। अचानक एक दिन मोनिका बेसरा ने अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उसका ट्यूमर पूरी तरह से ठीक हो गया। मिशनरी द्वारा मोनिका बेसरा के ठीक होने को चमत्कार एवं मदर टेरेसा को संत के रूप में प्रचारित करने का बहाना मिल गया। यह चमत्कार का दावा हमारी समझ से परे हैं की एक ओर जीवन में अनेक बार मदर टेरेसा को चिकित्सकों की आवश्यकता पड़ी, कई बार भयंकर बीमार हुई थी, उन्हीं मदर टेरेसा की कृपा से ईसाई समाज उनके नाम से प्रार्थना करने वालो को बिना दवा केवल दुआ से चमत्कार द्वारा ठीक होना मानता है। अगर कोई हिन्दू बाबा चमत्कार द्वारा किसी रोगी के ठीक होने का दावा करता है तो सेक्युलर लेखक उस पर खूब चुस्कियां लेते है मगर जब पढ़ा लिखा ईसाई समाज ईसा मसीह से लेकर अन्य ईसाई मिशनरियों द्वारा चमत्कार होने एवं उससे सम्बंधित मिशनरी को संत घोषित करने का महिमा मंडन करता है तो उसे कोई भी सेक्युलर लेखक दबी जुबान में भी इस तमाशे को अन्धविश्वास नहीं कहता।

🚩जब मोरारजी देसाई की सरकार में सांसद ओमप्रकाश त्यागी द्वारा धर्म स्वातंत्रय विधेयक के रूप में धर्मान्तरण के विरुद्ध बिल पेश हुआ तो इन्ही मदर टेरेसा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर इस विधेयक का विरोध किया और कहाँ था की ईसाई समाज सभी समाज सेवा की गतिविधिया जैसे की शिक्षा, रोजगार, अनाथालय आदि को बंद कर देगा अगर उन्हें अपने ईसाई मत का प्रचार करने से रोका जायेगा। तब प्रधान मंत्री देसाई ने कहाँ था इसका अर्थ क्या यह समझा जाये की ईसाईयों द्वारा की जा रही समाज सेवा एक दिखावा मात्र हैं और उनका असली प्रयोजन तो धर्मान्तरण हैं। देश के तत्कालीन प्रधान मंत्री का उत्तर ईसाई समाज की सेवा के आड़ में किये जा रहे धर्मान्तरण की पोल खोल रहा है।

🚩अब भी मदर टेरेसा एवं अन्य ईसाई संस्थाओं के कटु उद्देश्य को जानकर मीडिया इन संस्थाओं का अगर समर्थन करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस करने के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं किया जा सकता। हिन्दू समाज को संगठित होकर ईसाई धर्मान्तरण के विरुद्ध कार्य करना चाहिए। कहीं देर न हो जाये। डॉ विवेक आर्य

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