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Saturday, November 14, 2020

दीपावली के दूसरे दिन नूतन वर्ष, बलि प्रतिपदा, गोवर्धन पूजन में क्या करें?

14 अक्टूबर 2020


दीपावली वर्ष का आखिरी दिन है और नूतन वर्ष प्रथम दिन है। यह दिन आपके जीवन की डायरी का पन्ना बदलने का दिन है।

दीपावली का दूसरा दिन अर्थात् नूतन वर्ष का प्रथम दिन (गुजराती पंचांग अनुसार) जो वर्ष के प्रथम दिन हर्ष, दैन्य आदि जिस भाव में रहता है, उसका संपूर्ण वर्ष उसी भाव में बीतता है। 'महाभारत' में पितामह भीष्म महाराज युधिष्ठिर से कहते है-




यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।
हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।

'हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में ही व्यतीत होता है।'

अतः वर्ष का प्रथम दिन हर्ष में बीते, ऐसा प्रयत्न करें। वर्ष का प्रथम दिन दीनता-हीनता अथवा पाप-ताप में न बीते वरन् शुभ चिंतन में, सत्कर्मों में प्रसन्नता में बीते ऐसा यत्न करें।

आज के दिन से हमारे नूतन वर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसलिए भी हमें अपने इस नूतन वर्ष में कुछ ऊँची उड़ान भरने का संकल्प करना चाहिए।

बलि प्रतिपदा:-

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलि प्रतिपदा के रूप में मनाई जाती है । इस दिन भगवान श्री विष्णु ने दैत्यराज बलि को पाताल में भेजकर बलि की अतिदानशीलता के कारण होनेवाली सृष्टि की हानि रोकी । बलिराजा की अतिउदारता के परिणामस्वरूप अपात्र लोगों के हाथों में संपत्ति जाने से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । तब वामन अवतार लेकर भगवान श्रीविष्णु ने बलिराजा से त्रिपाद भूमिका दान मांगा । उपरांत वामनदेव ने विराट रूप धारण कर दो पग में ही संपूर्ण पृथ्वी एवं अंतरिक्ष व्याप लिया । तब तीसरा पग रखने के लिए बलिराजा ने उन्हें अपना सिर दिया । वामनदेव ने बलि को पाताल में भेजते समय वर मांगने के लिए कहा । उस समय बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलिराज्य होने का वर मांगा । वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावली की अमावस्या एवं बलिप्रतिपदा । तब से इन तीन दिनों को ‘बलिराज्य’ कहते हैं ।

गोवर्धनपूजन

इस दिन गोवर्धनपूजा करने की प्रथा है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन इंद्रपूजन के स्थान पर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जाने के स्मरण में गोवर्धन पूजन करते हैं । इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की तिथि पर प्रात:काल घर के मुख्य द्वार के सामने गौ के गोबर का गोवर्धन पर्वत बना कर उसपर दूर्वा एवं पुष्प डालते हैं । शास्त्र में बताया है कि, इस दिन गोवर्धन पर्वत का शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलों से उसे सुशोभित करें । इनके समीप कृष्ण, इंद्र, गाएं, बछड़ों के चित्र सजाकर उनकी भी पूजा करते हैं एवं झांकियां निकालते हैं । परंतु अनेक स्थानों पर इसे मनुष्य के रूप में बनाते हैं और फूल इत्यादि से सजाते  हैं ।  चंदन, फूल इत्यादि से  उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं,

_गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ।_
_विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु_

इसका अर्थ है, पृथ्वी को धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने आपको भुजाओं में उठाया था । आप मुझे करोड़ों गौएं प्रदान करें । गोवर्धन पूजन के उपरांत गौओं एवं बैलों को वस्त्राभूषणों तथा मालाओं से सजाते हैं । गौओं का पूजन करते हैं । गौमाता साक्षात धरतीमाता की प्रतीकस्वरूपा हैं । उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवों को पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं । ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं । उनका पूजन करने के उपरांत अपने पापनाश के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं । धर्मसिंधु में इस श्लोक द्वारा गौमाता से  प्रार्थना की है,

_लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।_
_घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।। – धर्मसिंधु_

इसका अर्थ है, धेनुरूप में विद्यमान जो लोकपालों की साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञ के लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापों का नाश करें । पूजन के उपरांत गौओं को विशेष भोजन खिलाते हैं । कुछ स्थानों पर गोवर्धन के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओं के चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं ।

बता दें की दीपावली की रात्रि में वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए शुभ संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए नववर्ष के प्रभात में अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में और मंदिर में जाकर नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है 'नूतन वर्ष।'
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’ एवं संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य ऋषि प्रसाद से)

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Saturday, April 11, 2020

हमारा नूतन वर्ष आ रहा है कल, जानिए इतिहास और इतना जरूर करें....

24 मार्च 2020

*🚩जो भारतवासी अंग्रेजों के नये साल में एक-एक माह पहले ही बधाई देने के लिये लाइन लगाए हुए थे कल उन्हीं भारतवासियों का नया साल आ रहा है, लेकिन कोई भी भारतवासी मैसेज नहीं कर रहा है ।*

*🚩अंग्रेजों ने हमें कैसा मानसिक गुलाम बना लिया है इससे साफ पता चलता है कि आजादी मिले भले 72 साल हो गये हों लेकिन मानसिक गुलामी नहीं गई है क्योंकि भारतवासी खुद का नववर्ष भूल गए हैं और अंग्रेजों का नववर्ष बड़े हर्षोल्लास से मना रहे हैं ।*

*🚩कवि ने इसपर कविता लिखी है आप भी पढ़कर समझ जाएंगे कि हमें कौन सा नया साल मनाना है ?*

*ना पक्षियों की चहक, ना ही सुंदर-सुंदर फूलों की महक।*
*भयंकर ठिठुरती सर्दी में, जन जीवन भी सामान्य नहीं।।*

*01 जनवरी को नववर्ष, है ईसाई नववर्ष।*
*यह नहीं है हिन्दू संस्कृति, यह हमें मान्य नहीं।।*

*ये नववर्ष हमारे संतों ने नहीं, पोप ग्रिगोरी 13वें ने चलाया था।*
*जनवरी महीने का ये नाम, जानूस गॉड के नाम पर बनाया था।।*

*क्यों मनाएँ हम ऐसा नववर्ष, जिसमें नहीं है कोई उत्कर्ष।*
*चैत्र मास शुक्लपक्ष प्रतिपदा को, आओ मनाएँ हिन्दू नववर्ष।।*

*सुंदर मनोरम इस दिन को, वसंत ऋतु का आगमन होता है।*
*इस दिन वातावरण भी, विशेष सात्विकता संजोता है।।*

*पेड़ पौधे लहराते हैं, रंग बिरंगे सुंदर फूल महकते हैं।*
*देखकर प्रकृति की अनुपम सुंदरता, पक्षी भी चहकते हैं।।*

*ब्रह्माजी ने इस दिन सृष्टि रचना की, सतयुग का आरंभ हुआ।*
*भगवान राम का राजतिलक हुआ, हिन्दू कालगणना का शुभारंभ हुआ।।*

*करने को सृष्टि की रक्षा, भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ।*
*भगवान झूलेलाल का अवतरण हुआ, जिससे विश्व का उद्धार हुआ।।*

*महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा, पंजाब में इसे बैशाखी बुलाते हैं।*
*आंध्र, तेलंगाना में उगाडी, असम में बिहू नाम से मनाते हैं।।*

*25 मार्च को नववर्ष स्वागत में, आओ हम सब मिलकर दीप जलाएं।*
*रंगोली बनाए, भजन संकीर्तन करें, घर घर भगवा पताका फहराए।।*
*-कवि सुरेंद्र कुमार*

*🚩हिन्दू संस्कृति के अनुसार इस साल 25 मार्च 2020 को नूतन वर्ष आ रहा है । हिन्दू समाज पहले नूतन वर्ष बड़े धूम-धाम से मनाता था लेकिन दुर्भाग्य है कि अंग्रेजों ने अपना कैलेंडर रख दिया और इतिहास से वास्तविक नूतनवर्ष को गायब कर दिया जिसके कारण आज के हिन्दू भारत को गुलाम बनाने वाला नूतनवर्ष मना रहे हैं और अपना नूतनवर्ष भूल गए ।*

*★ चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि ।*
*-ब्रम्हपुराण*

*🚩अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सतयुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है ।*

*इस साल सभी भारतीयों को चैत्री शुक्ल प्रतिपदा को अपने घर पर भगवा ध्वज फहरायें, सूर्य भगवान को अर्घ्य दें, शंख ध्वनि और भजन-कीर्तन करें।*

*★🚩आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।*

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Monday, March 27, 2017

भारतीय संस्कृति का चैत्री नूतन वर्ष - 28 मार्च

भारतीय संस्कृति का चैत्री नूतन वर्ष - 28 मार्च

चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि ।
– ब्रम्हपुराण

अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सत्ययुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी #आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है । यह दिन महाराष्ट्र में ‘गुडीपडवा’ के नाम से भी मनाया जाता है । गुडी अर्थात् ध्वजा । पाडवा शब्द में से ‘पाड’ अर्थात पूर्ण; एवं ‘वा’ अर्थात वृद्धिंगत करना, परिपूर्ण करना । इस प्रकार पाडवा इस शब्द का अर्थ है, परिपूर्णता ।
Gudi Padwa - Chetichand

गुड़ी (बाँस की ध्वजा) खड़ी करके उस पर वस्त्र, ताम्र- कलश, नीम की पत्तेदार टहनियाँ तथा शर्करा से बने हार चढाये जाते हैं।

गुड़ी उतारने के बाद उस शर्करा के साथ नीम की पत्तियों का भी प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है, जो जीवन में (विशेषकर वसंत ऋतु में) मधुर रस के साथ कड़वे रस की भी आवश्यकता को दर्शाता है।

वर्षारंभके दिन सगुण #ब्रह्मलोक से प्रजापति, ब्रह्मा एवं सरस्वतीदेवी इनकी सूक्ष्मतम तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । 

चैत्र #शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रजापति तरंगें सबसे अधिक मात्रा में पृथ्वी पर आती हैं । इस दिन सत्त्वगुण अत्यधिक मात्रा में #पृथ्वी पर आता है । यह दिन वर्ष के अन्य दिनों की तुलना में सर्वाधिक सात्त्विक होता है ।

प्रजापति #ब्रह्मा द्वारा तरंगे पृथ्वी पर आने से वनस्पति के अंकुरने की भूमि की क्षमता में वृद्धि होती है । तो बुद्धि प्रगल्भ बनती है । कुओं-तालाबों में नए झरने निकलते हैं ।

#चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन #धर्मलोक से धर्मशक्ति की तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आती हैं और पृथ्वी के पृष्ठभाग पर स्थित धर्मबिंदु के माध्यम से ग्रहण की जाती हैं । तत्पश्चात् आवश्यकता के अनुसार भूलोक के जीवों की दिशा में प्रक्षेपित की जाती हैं ।

इस दिन #भूलोक के वातावरण में रजकणों का प्रभाव अधिक मात्रा में होता है, इस कारण पृथ्वी के जीवों का #क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव भी कम रहता है । इस कारण वातावरण अधिक #चैतन्यदायी रहता है ।
भारतीयों के लिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन अत्यंत शुभ होता है । 

साढे तीन मुहूर्तों में से एक #मुहूर्त

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढे तीन मुहूर्त होते हैं । इन साढे तीन #मुहूर्तों की विशेषता यह है कि अन्य दिन शुभकार्य हेतु मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण #शुभमुहूर्त ही होता है ।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, #वरुणावतार संत #झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु #अंगददेवजी का #जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी।


चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रकृति सर्वत्र माधुर्य #बिखेरने लगती है।

भारतीय संस्कृति का यह नूतन वर्ष जीवन में नया उत्साह, नयी चेतना व नया आह्लाद जगाता है। वसंत #ऋतु का आगमन होने के साथ वातावरण समशीतोष्ण बन जाता है।

सुप्तावस्था में पड़े जड़-चेतन तत्त्व गतिमान हो जाते हैं । नदियों में #स्वच्छ जल का संचार हो जाता है। आकाश नीले रंग की गहराइयों में चमकने लगता है।

#सूर्य-रश्मियों की प्रखरता से खड़ी फसलें परिपक्व होने लगती हैं ।

किसान नववर्ष एवं नयी फसल के स्वागत में जुट जाते हैं। #पेड़-पौधे नव पल्लव एवं रंग-बिरंगे फूलों के साथ लहराने लगते हैं।

बौराये आम और कटहल नूतन संवत्सर के स्वागत में अपनी सुगन्ध बिखेरने लगते हैं । सुगन्धित वायु के #झकोरों से सारा वातावरण सुरभित हो उठता है ।

कोयल कूकने लगती हैं । चिड़ियाँ चहचहाने लगती हैं । इस सुहावने मौसम में #कृषिक्षेत्र सुंदर, #स्वर्णिम खेती से लहलहा उठता है ।

इस प्रकार #नूतन_वर्ष का प्रारम्भ आनंद-#उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता सुंदर भूमिका बना देती है । इस बाह्य #चैतन्यमय प्राकृतिक वातावरण का लाभ लेकर व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में भी उपवास द्वारा #शारीरिक #स्वास्थ्य-लाभ के साथ-साथ जागरण, नृत्य-कीर्तन आदि द्वारा भावनात्मक एवं आध्यात्मिक जागृति लाने हेतु नूतन वर्ष के प्रथम दिन से ही माँ आद्यशक्ति की उपासना का नवरात्रि महोत्सव शुरू हो जाता है ।

#नूतन वर्ष प्रारंभ की पावन वेला में हम सब एक-दूसरे को सत्संकल्प द्वारा पोषित करें कि ‘सूर्य का तेज, चंद्रमा का अमृत, माँ शारदा का ज्ञान, भगवान #शिवजी की #तपोनिष्ठा, माँ अम्बा का शत्रुदमन-सामर्थ्य व वात्सल्य, दधीचि ऋषि का त्याग, भगवान नारायण की समता, भगवान श्रीरामचंद्रजी की कर्तव्यनिष्ठा व मर्यादा, भगवान श्रीकृष्ण की नीति व #योग, #हनुमानजी का निःस्वार्थ सेवाभाव, नानकजी की #भगवन्नाम-निष्ठा, #पितामह भीष्म एवं महाराणा प्रताप की #प्रतिज्ञा, #गौमाता की सेवा तथा ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु का सत्संग-सान्निध्य व कृपावर्षा - यह सब आपको सुलभ हो ।

इस शुभ संकल्प द्वारा ‘#परस्परं #भावयन्तु की सद्भावना दृढ़ होगी और इसी से पारिवारिक व सामाजिक जीवन में #रामराज्य का अवतरण हो सकेगा, इस बात की ओर संकेत करता है यह ‘#राम राज्याभिषेक दिवस।

अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए बधाई-पत्र लिखें, दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहरायें, #सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें, #मंदिरों आदि में #शंखध्वनि करके नववर्ष का स्वागत करें  ।