भारतीय संस्कृति का चैत्री नूतन वर्ष - 28 मार्च
चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि ।
– ब्रम्हपुराण
अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सत्ययुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी #आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है । यह दिन महाराष्ट्र में ‘गुडीपडवा’ के नाम से भी मनाया जाता है । गुडी अर्थात् ध्वजा । पाडवा शब्द में से ‘पाड’ अर्थात पूर्ण; एवं ‘वा’ अर्थात वृद्धिंगत करना, परिपूर्ण करना । इस प्रकार पाडवा इस शब्द का अर्थ है, परिपूर्णता ।
Gudi Padwa - Chetichand |
गुड़ी (बाँस की ध्वजा) खड़ी करके उस पर वस्त्र, ताम्र- कलश, नीम की पत्तेदार टहनियाँ तथा शर्करा से बने हार चढाये जाते हैं।
गुड़ी उतारने के बाद उस शर्करा के साथ नीम की पत्तियों का भी प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है, जो जीवन में (विशेषकर वसंत ऋतु में) मधुर रस के साथ कड़वे रस की भी आवश्यकता को दर्शाता है।
वर्षारंभके दिन सगुण #ब्रह्मलोक से प्रजापति, ब्रह्मा एवं सरस्वतीदेवी इनकी सूक्ष्मतम तरंगें प्रक्षेपित होती हैं ।
चैत्र #शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रजापति तरंगें सबसे अधिक मात्रा में पृथ्वी पर आती हैं । इस दिन सत्त्वगुण अत्यधिक मात्रा में #पृथ्वी पर आता है । यह दिन वर्ष के अन्य दिनों की तुलना में सर्वाधिक सात्त्विक होता है ।
प्रजापति #ब्रह्मा द्वारा तरंगे पृथ्वी पर आने से वनस्पति के अंकुरने की भूमि की क्षमता में वृद्धि होती है । तो बुद्धि प्रगल्भ बनती है । कुओं-तालाबों में नए झरने निकलते हैं ।
#चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन #धर्मलोक से धर्मशक्ति की तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आती हैं और पृथ्वी के पृष्ठभाग पर स्थित धर्मबिंदु के माध्यम से ग्रहण की जाती हैं । तत्पश्चात् आवश्यकता के अनुसार भूलोक के जीवों की दिशा में प्रक्षेपित की जाती हैं ।
इस दिन #भूलोक के वातावरण में रजकणों का प्रभाव अधिक मात्रा में होता है, इस कारण पृथ्वी के जीवों का #क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव भी कम रहता है । इस कारण वातावरण अधिक #चैतन्यदायी रहता है ।
भारतीयों के लिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन अत्यंत शुभ होता है ।
साढे तीन मुहूर्तों में से एक #मुहूर्त
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढे तीन मुहूर्त होते हैं । इन साढे तीन #मुहूर्तों की विशेषता यह है कि अन्य दिन शुभकार्य हेतु मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण #शुभमुहूर्त ही होता है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, #वरुणावतार संत #झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु #अंगददेवजी का #जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रकृति सर्वत्र माधुर्य #बिखेरने लगती है।
भारतीय संस्कृति का यह नूतन वर्ष जीवन में नया उत्साह, नयी चेतना व नया आह्लाद जगाता है। वसंत #ऋतु का आगमन होने के साथ वातावरण समशीतोष्ण बन जाता है।
सुप्तावस्था में पड़े जड़-चेतन तत्त्व गतिमान हो जाते हैं । नदियों में #स्वच्छ जल का संचार हो जाता है। आकाश नीले रंग की गहराइयों में चमकने लगता है।
#सूर्य-रश्मियों की प्रखरता से खड़ी फसलें परिपक्व होने लगती हैं ।
किसान नववर्ष एवं नयी फसल के स्वागत में जुट जाते हैं। #पेड़-पौधे नव पल्लव एवं रंग-बिरंगे फूलों के साथ लहराने लगते हैं।
बौराये आम और कटहल नूतन संवत्सर के स्वागत में अपनी सुगन्ध बिखेरने लगते हैं । सुगन्धित वायु के #झकोरों से सारा वातावरण सुरभित हो उठता है ।
कोयल कूकने लगती हैं । चिड़ियाँ चहचहाने लगती हैं । इस सुहावने मौसम में #कृषिक्षेत्र सुंदर, #स्वर्णिम खेती से लहलहा उठता है ।
इस प्रकार #नूतन_वर्ष का प्रारम्भ आनंद-#उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता सुंदर भूमिका बना देती है । इस बाह्य #चैतन्यमय प्राकृतिक वातावरण का लाभ लेकर व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में भी उपवास द्वारा #शारीरिक #स्वास्थ्य-लाभ के साथ-साथ जागरण, नृत्य-कीर्तन आदि द्वारा भावनात्मक एवं आध्यात्मिक जागृति लाने हेतु नूतन वर्ष के प्रथम दिन से ही माँ आद्यशक्ति की उपासना का नवरात्रि महोत्सव शुरू हो जाता है ।
#नूतन वर्ष प्रारंभ की पावन वेला में हम सब एक-दूसरे को सत्संकल्प द्वारा पोषित करें कि ‘सूर्य का तेज, चंद्रमा का अमृत, माँ शारदा का ज्ञान, भगवान #शिवजी की #तपोनिष्ठा, माँ अम्बा का शत्रुदमन-सामर्थ्य व वात्सल्य, दधीचि ऋषि का त्याग, भगवान नारायण की समता, भगवान श्रीरामचंद्रजी की कर्तव्यनिष्ठा व मर्यादा, भगवान श्रीकृष्ण की नीति व #योग, #हनुमानजी का निःस्वार्थ सेवाभाव, नानकजी की #भगवन्नाम-निष्ठा, #पितामह भीष्म एवं महाराणा प्रताप की #प्रतिज्ञा, #गौमाता की सेवा तथा ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु का सत्संग-सान्निध्य व कृपावर्षा - यह सब आपको सुलभ हो ।
इस शुभ संकल्प द्वारा ‘#परस्परं #भावयन्तु की सद्भावना दृढ़ होगी और इसी से पारिवारिक व सामाजिक जीवन में #रामराज्य का अवतरण हो सकेगा, इस बात की ओर संकेत करता है यह ‘#राम राज्याभिषेक दिवस।
अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए बधाई-पत्र लिखें, दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहरायें, #सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें, #मंदिरों आदि में #शंखध्वनि करके नववर्ष का स्वागत करें ।
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