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Tuesday, December 8, 2020

साल 2002 में आज ही गौमूत्र को अमेरिका ने करवा लिया था पेटेंट..

08 दिसंबर 2020


इसको बुद्धिहीनता माना जाय, विडम्बना कही जाय या विदेशी शक्तियों की कोई सोची समझी साजिश.. गाय की रक्षा के मुद्दे को जहाँ तथाकथित आधुनिकता की धारा में बह रहे लोग पिछड़ी सोच वाले उन्मादी बता रहे हैं तो तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड सवाल करती है कि क्या गाय इंसानों से ऊपर हो गयी है ..




वामपंथी विचारधारा के लोग जो बाबरी में पूर्ण आस्था रखते हैं पर श्रीरामजन्मभूमि के नाम से बिदकते हैं उनके लिए तो गौ रक्षा किसी आतंकवाद से कम नहीं है.., इतना ही नहीं, देश पर सबसे ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने तो गौ सेवा के साथ मॉब लिंचिंग जैसे शब्द भी जोड़ डाले जिसमें पीड़ित केवल एक पक्ष और पीड़ा देने वाला एक वर्ग घोषित किया गया है ..

भारत के एक तथाकथित शांतिप्रिय समूह के वोट के लिए ये सब कुछ चलता रहा और अगर हिन्दू समाज पर सबसे ज्यादा आघात किया गया तो वो गाय को सामने रख कर ..इस गाय की सेवा, रक्षा करने का आदेश हिंदुओं के शास्त्रों में भी है लेकिन उन पावन ग्रंथों को कपोल कल्पित किताबे बता दिया गया .. 

लेकिन ग्रन्थ और वैज्ञानिकता बार बार कहती रही कि गाय इंसानों के लिए एक ईश्वरीय वरदान के समान है जिसका संरक्षण और संवर्धन जरूरी है। एक स्वस्थ समाज के लिए.. कुछ प्रदेशो में गाय की रक्षा के लिए कानून भी बने पर उसको लगातार चुनौती मिलती रही गौ हत्यारो की तरफ से.. 

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की घटना इसका जीवंत प्रमाण है और बाकी जिलो में जारी गौ तस्करी भी श्रद्धा और संविधान को सीधी चुनौती मानी जा सकती है ..सवाल ये है कि इंसान के सर्वोपरि होने का क्या ये मतलब है कि वो जिसे चाहे मार कर खा जाए ? क्या धन धान्य से भरी इस श्यामला धरती पर कुछ लोग बिना गौ मांस खाये रह नहीं सकते ?

किस डॉक्टर का वो कौन सा पर्चा है जिसमे गौ मांस जरूरी बताया गया है ..यदि किसी नवजात बच्चे की माँ नहीं है या उसको दूध पिलाने में सक्षम नहीं है तो डॉक्टरों के निर्देश पर उसको गाय का दूध पिला कर पाला जा सकता है .. इसीलिए गाय को मां भी कहा जाता है..

लेकिन दूध ही नहीं गौ मूत्र भी इंसानों के लिए अमृत है इसको आज ही के दिन अमेरिका ने 17 साल पहले ही मान लिया था और 2002 में गौ मूत्र को औषधि के रूप में बनाने के लिए बाकायदा पेटेंट भी करवा लिया था .. भारत मात्र गौ मांस के लोभियों और स्वघोषित सेकुलरों के दबाव में पीछे रह गया था जिन्होंने तथाकथित आधुनिक लोगों के दिमाग मे ये भर दिया था कि गौ रक्षा पुरानी विचारधारा के उन्मादी लोगों का कार्य है ..

अमेरिका ने 8 दिसम्बर 2002 को जिस गौ मूत्र को अमृत के समान स्वास्थ्यवर्धक औषधि मान मात्र 17 साल पहले पहचान कर कर पेटेंट करवाया था, उसको हिंदुओं के शास्त्र, ग्रन्थ और वेद लाखों वर्ष पहले ही लिख कर गए थे..

रामायण में प्रभु श्रीराम के समय से भी पहले गौ रक्षा व गौ सेवा का आदेश वेदों में सनातनियो को मिला है पर वो भारत मे विदेशी शक्तियों द्वारा संचालित वर्ग के कहने में आ गए और गंवा बैठे अपने ही पुरखों द्वारा मिली हुई अनमोल धरोहर को..

भारत की पारंपरिक जैव संपदा नीम, हल्दी और जामुन के बाद अब गोमूत्र को भी अमरीकी वैज्ञानिकों ने शक्तिवर्धक दवा के स्रोत के रूप में आज ही के दिन अर्थात 2002 को पेटेंट कर लिया था.. ऐसे ही नही वो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बना जो ओलंपिक आदि में सबसे ज्यादा पदक प्राप्त करता है ..

भारत की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार तब वामपंथी सोच व तब विपक्ष से तालमेल बनाती ही रह गयी लेकिन उतनी देर में अपना नफा नुकसान समझते हुए अमेरिका ने इसे पेंटेट कर लिया। वैदिक काल अर्थात प्राचीन समय से ही गोमूत्र को पंच गव्य का हिस्सा माना जाता रहा है और इसका इस्तेमाल शक्तिवर्धक औषधियों के निर्माण में किया जाता था।

पंचगव्य में गाय का दूध, दही, घी, गोबर के साथ गोमूत्र को भी शामिल किया गया है ।अमरीका द्वारा इसे पेटेंट किए जाने से यह बात अब पूरी तरह प्रमाणिक हो चुकी है कि इसमें मनुष्य को दीर्घायु बनाने वाले तत्व मौजूद हैं। गोमूत्र के पहले नीम हल्दी और जामुन को अमरीका मे पेटेंट किए जाने को लेकर देश में तब हिंदूवादी समूहों ने विरोध दर्ज करवाया था क्योंकि गाय के समान हिन्दू नीम को भी देव मान कर उसको जल आदि चढ़ाते थे..

लेकिन उन्हें पुरानी सोच वाला बताया गया और आखिरकार गाय के साथ नीम भी अमेरिका ने पेटेंट करवा कर वामपंथी सोच व गौ हत्यारो की विचारधारा वालों के मंसूबे सफल कर दिए थे .. इसमें कोई आश्चर्य नहीं की कल कोई ये कुतर्क दे कि क्या हवा इंसानों से बढ़ कर है, इसलिए हवा बन्द करो, क्या पानी इंसानों से बढ़ कर है , इसलिए पानी बन्द करो..

ये वही कुतर्क हैं जिनके चलते गाय भारत की धरोहर होते हुए भी भारत के हाथों से निकल कर अमेरिका के पास चली गयी.. भारत मे तो एक शासन में गौ रक्षा की मांग करने वाले सन्तो पर गोलियां बरसा दी गयी थीं जिसके लिए आज तक किसी ने न्याय की या सज़ा की मांग नहीं की थी .. 

8 दिसम्बर को इतिहास द्वारा नीम और गाय के महत्व को याद दिलाते हुए सभी गौ रक्षको व गौ सेवकों को साधुवाद है जिनके संघर्षों के चलते अभी भी थोड़े बहुत गौ वंश बचे हुए हैं और देश मे एक छोटा सा ही सही पर एक वर्ग गाय, नीम आदि को देवतुल्य मान कर बचाये हुए है...।

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