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Tuesday, August 25, 2020

भारतीय गोवंश की अदभुत विशेषताएँ, जानकर रह जाएंगे दंग, मिट जाएंगे सभी रोग।

25 अगस्त 2020


भारतीय गायें विदेशी तथाकथित गायों की तरह बहुत समय तक जंगलों में हिंसक पशु के रूप में घूमते रहने के बाद घरों में आकर नहीं पलीं, वे तो शुरु से ही मनुष्यों द्वारा पाली गयी हैं। भारतीय गायों के लक्षण हैं- उनका गल कम्बल (गले के नीचे झालर सा भाग), पीठ का कूबड़, चौड़ा माथा, सुंदर आँखें तथा बड़े मुड़े हुए सींग। भारतीय गोवंश की कुछ नस्लें हैं, गिर, थारपारकर, साहीवाल, लाल सिंधी आदि।



भारतीय गायों पर करनाल की 'नेशनल ब्यूरो ऑफ जेनेटिक रिसोर्सेस' (एनबीएजीआर) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि इनमें उन्नत ए-2 एलील जीन पाया जाता है, जो इन्हें स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस जीन की आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) 100 प्रतिशत तक पायी जाती है, जबकि विदेशी नस्लों में यह 60 प्रतिशत से भी कम होती है।

भारतीय गायों में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। गायें अपने लम्बे सींगों के द्वारा सूर्य की किरणों को इस सूर्यकेतु नाड़ी तक पहुँचाती हैं। इससे सूर्यकेतु नाड़ी स्वर्णक्षार बनाती है, जिसका बड़ा अंश दूध में और अल्पांश में गोमूत्र में आता है।

भारतीय गाय के दूध में ओमेगा-6 फैटी ऐसिड होता है, जिसकी कैंसर नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। विदेशी नस्ल की गायों के दूध में इसका नामोनिशान तक नहीं है। भारतीय गाय के दूध में अनसैचुरेटेड फैट होता है, इससे धमनियों में वसा नहीं जमती और यह हृदय को भी पुष्ट करता है।

भारतीय गाय चरते समय यदि कोई विषैला पदार्थ खा लेती है तो दूसरे प्राणियों की तरह वह विषैला तत्त्व दूध में मिश्रित नहीं होता। भारतीय गाय संसार का एकमात्र ऐसा  प्राणी है जिसके मल-मूत्र का औषधि तथा यज्ञ पूजा आदि में उपयोग होता है।

परमाणु विकिरण से बचने में गाय का गोबर उपयोगी होता है। भारतीय गाय के गोबर-गोमूत्र में रेडियोधर्मिता को सोखने का गुण होता है।

भारतीय गोवंश का पंचगव्य निकट भविष्य में प्रमुख जैव-औषधि बनने की सीमा पर खड़ा है। अमेरिका ने पेटेंट देकर स्वीकार किया है कि कैंसर नियंत्रण में गोमूत्र सहायक है।

संतों ने तो यहाँ तक बताया  है कि "कोई बीमार आदमी हो और डॉक्टर, वैद्य बोले, 'यह नहीं बचेगा' तो वह आदमी गाय को अपने हाथ से कुछ खिलाया करे और गाय की पीठ पर हाथ घुमाये तो गाय की प्रसन्नता की तरंगें हाथों की उंगलियों के अग्रभाग से उसके शरीर के भीतर प्रवेश करेगी, रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी और वह आदमी तंदुरुस्त हो जायेगा, 6 से 12 महीने लगते हैं लेकिन असाध्य रोग भी गाय की प्रसन्नता से मिट जाते हैं।"

भारतीय गाय की पीठ पर, गलमाला पर प्रतिदिन आधा घंटा हाथ फेरने से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। गोबर को शरीर पर मलकर स्नान करने से बहुत से चर्मरोग दूर हो जाते हैं। गोमय स्नान को पवित्रता और स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम माना गया है। इस प्रकार भारतीय गाय की अनेक अदभुत विशेषताएँ हैं। धनभागी हैं वे लोग, जिनको भारतीय गाय का दूध, दूध के पदार्थ आदि मिलते हैं और जो उनकी कद्र करते हैं।

भारत में प्राचीन काल से ही गाय की पूजा होती रही है क्योंकि गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास माना गया है इसलिए गाय को माता का दर्जा भी दिया है, कहते है कि बच्चा जन्मे और किसी कारणवश उसकी माता का निधन हो जाये तो बच्चे को गाय का दूध पिलाने पर जिंदा रह सकता है । कहते है कि जननी दूध पिलाती, केवल साल छमाही भर ! गोमाता पय-सुधा पिलाती, रक्षा करती जीवन भर !!

गौ-माता भारत देश की रीढ की हड्डी है। जो सभी को स्वस्थ-सुखी जीवन जीने में मदद रूप बनती है । सभी को आजीवन गौ-माता की रक्षा के लिए कटिबद्ध रहना चाहिए ।

गौमाता की इतनी उपयोगीता और उसकी हत्या हो रही है उससे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि सभी को मिलकर गौ-माता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाकर तन-मन-धन से इसकी रक्षा करनी चाहिए ।

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Wednesday, December 21, 2016

भारतीय गोवंश में है विश्व का सर्वोत्तम दूध !!!

भारतीय गोवंश में है,विश्व का सर्वोत्तम दूध..!!!

दिसम्बर 21, 2016 

दुनियाभर में दूध की शुद्धता की मिसाल बनी भारतीय दुधारू संपदा पर ग्रहण लग चुका है। 

मवेशियों की दर्जनों प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। सिंथेटिक दूध का प्रचलन, हरे चारों की कमी एवं पशु कटान की वजह से पोषण की गंगा का स्रोत सूखने लगा है। 


दूध बढ़ाने के नाम पर भारतीय नस्लों के साथ विदेशी नस्लों की घोलमेल ने अमृत को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। न्यूजीलैंड में प्रोफेसर डा. वुडफोर्ड ने शोध पत्र में साफ किया है कि भारत की सभी गायों में बीटा कैसिन-दो पाया जाता है, जिसमें स्वास्थ्य एवं बुद्धिवर्धक समस्त गुणधर्म हैं। दर्जनों रोगों को समूल नष्ट करने की प्रवृत्ति का वैज्ञानिक आधार पर सत्यापन किया जा चुका है।
भारतीय गोवंश में है विश्व का सर्वोत्तम दूध !!!

वैदिक मान्यता के मुताबिक, भारतीय गोवंश समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ, इसी वजह से जंगली प्रवृत्ति से दूर रहा। दूध की गुणवत्ता के वैज्ञानिक आंकलन में भी भारतीय गोवंश की प्रामाणिकता सिद्ध हुई है। 

न्यूजीलैंड के डा. कीथ वुडफोर्ड ने एशिया एवं यूरोपीय नस्लों पर शोध कर निष्कर्ष निकाला कि प्राचीन काल में यूरोपीय नस्ल की गायों में म्यूटेशन होने की वजह से दूध में बीटा कैसिन ए-दो खत्म हो गया और इसकी जगह बीटा कैसिन-एक नामक विषाक्त प्रोटीन बनने लगा, जबकि भारतीय नस्लों में म्यूटेशन न होने से दूध की गुणवत्ता बनी रही। उत्तर प्रदेश मेरठ में 1200 डेयरियों में से उत्पादित करीब 20 लाख लीटर दूध में से 60 फीसदी का उत्पादन गायों से होता है। कई केन्द्रों में गाय के दूध से जुड़े उत्पादों को भी बनाया जा रहा है।

विदेशी नस्ल के दूध में अफीम !!

अमेरिका में हुए शोध के मुताबिक विदेशी नस्ल की गायों में बीटा कैसिन ए-एक नामक दुग्ध प्रोटीन पाया जाता है, जिसे अफीम जैसा जहरीला बताया गया। इस दूध का प्रोटीन पाचन के मध्य एक उत्पाद बनाता है जो पाचन से पहले ही रक्तप्रवाह में मिल जाता है, जिससे हृदय रोग, शुगर, कैंसर, सिट्जनोफ्रेनिया, एवं अन्य कई जानलेवा बीमारियां बनती हैं। द डेविल इन मिल्क नामक किताब में साफ किया गया है कि ए-दो प्रकार के दूध का प्रयोग ही मानव स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। अमेरिका एवं न्यूजीलैंड की कंपनियां जेनेटेकली टेस्टेड ए-दो दूध बाजार में उपलब्ध करवा रही हैं।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक...???

भारतीय पशुओं की नस्लीय विशेषता हमेशा सम्मान का पात्र रही है। गोवंश के मूत्र में रेडियोधर्मिता सोखने की क्षमता पायी जाती है, जो भोपाल गैस त्रासदी के दौरान भी सिद्ध हो चुकी है। गोबर से लीपे हुए घरों पर कम असर हुआ। अमेरिका ने भी गोमूत्र में कैंसर विरोधी तत्व होने को लेकर पेटेंट दिया है। गाय के दूध से स्वर्ण भस्म भी बनता है। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने भी गाय के दूध को सर्वोत्तम माना है। गाय का घी खाने से कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता।

-डा. डी.के. सधाना, पशु वैज्ञानिक, एनडीआरआइ, करनाल

देशी गाय के दूध से बनी दही में ऐसा बैक्टीरिया पाया जाता है जो एड्स विरोधी गुणधर्म रखता है। जैव प्रौद्योगिकी के इस युग में गोवंश के लिए अपार संभावनाएं हैं। भारतीय जलवायु की विविधता से भी दूध की गुणवत्ता बढ़ती है।

– डा. मनोज तोमर, वैज्ञानिक, जिला विज्ञान केन्द्र।

दूध : कुछ तथ्य...!

1. पश्चिम यूपी में गाय-भैंसों के बीच गाय की भागीदारी 60  फीसदी तक है, जो वक्त के साथ कम होती जा रही है।

2. पशुपालन के प्रति अरुचि एवं अंधाधुंध कटान की वजह से अब देश में नस्ल कम हो गई।

3. दुनिया की सर्वोत्तम नस्ल गिर गाय की संख्या सौराष्ट्र में दस हजार से भी कम, जबकि ब्राजील में सर्वाधिक है।

4. कई कृषि विवि में साहीवाल, गिर, थारपारकर, अंगोल एवं राठी समेत उत्तम नस्ल की गायों का संस्थान खोला गया, किंतु विदेशी फंड के लिए क्रास ब्रीड का राग अलापा जा रहा है।

5. विश्वभर में 250 गायों के नस्ल में से 32 नस्लें भारतीय गोवंश की हैं।

6. केरल की वैचूर प्रजाति दुनिया की सबसे छोटी नस्ल है। सांड की ऊंचाई महज तीन फुट होती है। जिनकी संख्या कम हो चुकी है।

7. इस प्रजाति की गाय में सर्वाधिक 7 फीसदी वसा पाया जाता है, किंतु संख्या बढ़ाने पर सरकारों ने कोई रुचि नहीं ली।

संदर्भ : हिन्दू जन जागृति समिति

अभी सरकार को कत्लखाने पर सब्सिडी बन्द करके भारतीय गोवंश की नस्लों की गौशाला के लिए सब्सिडी देनी चाहिए जिससे फिर से भारतीय गोवंश में बढ़ोतरी हो और देश में गौ दुग्ध से हर व्यक्ति स्वस्थ्य रहे ।