26 अप्रैल 2020
पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण भले ही आज भारत में भगवान श्री राम और रामायण का महत्व कम समझ पा रहे हैं, लेकिन कई विदेशी बुद्धिजीवी लोगों ने गीता, रामायण आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया और आखिरी सार पर आये कि दुनिया में सबसे श्रेष्ठ हिन्दू धर्म ही है और बाद में उन्होंने हिन्दू धर्म भी अपना लिया।
ऐसे ही अमेरिका के विश्वविद्यालय ऑफ हवॉई के प्राध्यापक रामदास ने बताया कि उन्होंने रामायण सीखने के लिए अंग्रेजी का भी त्याग कर दिया।
जबलपुर : गुरु ने दो वर्ष तक अंग्रेजी न बोलने का संकल्प दिला दिया। फिर हिंदी बोलना सीखा। दो वर्ष तक लगातार अभ्यास किया और हिंदी सीख ली। अब भारत में सभी से हिंदी में ही बात करता हूँ । कुछ समय पहले यह बात चर्चा के दौरान अमेरिका के विश्वविद्यालय ऑफ हवॉई में धर्म विभाग के प्राध्यापक रामदास ने कही।
उन्होंने बताया कि मां काफी गरीब थी, जो दूसरों के घरों में सफाई करने जाया करती थी । वहां से पुस्तकें ले आती थी। एक बार महात्मा गांधी की पुस्तक लेकर आईं, जिसे पढ़कर भारत आने का मन हुआ। लोगों के सहयोग से 20 साल की उम्र में पहली बार भारत आया। दूसरी बार 22 वर्ष की उम्र में भारत आया। उन्होंने बताया कि इसके बाद चित्रकूट में मानस महाआरती त्यागी महाराज के सानिध्य में आया और उनसे दीक्षा ले ली।
अमेरिका में रामलीला करती है स्टार्नफील्ड की टीम
25 साल पहले विश्वविद्यालय में अचानक महर्षि वाल्मीकि का चित्र दिखा, इसमें उन्हें अपने पिता का चेहरा दिखार्इ दिया। उनके बारे में जानकारी एकत्रित की और वाल्मीकि रामायण पढा तभी से रामायण को विस्तृत जानने की प्रेरणा निर्माण हुई। यह बात विश्व रामायण परिषद में शामिल होने आए महर्षि विश्वविद्यालय ऑफ मैनेजमेंट पेयरफिल्ड, लोवा यूएसए के प्रोफसर माइकल स्टार्नफिल्ड ने कही। उन्होंने बताया कि उनकी 400 लोगों की एक टीम है, जिसमें बच्चे, युवा व बुजुर्ग शामिल हैं, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित रामलीला करते हैं। उनकी ड्रेस भारतीय रामलीला से मिलती जुलती है।
थाईलैंड की प्राथमिक शिक्षा में शामिल है रामायण
बैंकाक के सिल्पाकॉर्न विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्राध्यापक बूंमरूग खाम-ए ने बताया कि थाईलैंड में रामायण, लिटरेचर की तरह स्कूल और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल है। विश्वविद्यालय के खोन (नाट्य) विभाग के छात्र सबसे अधिक रामलीला को पसंद करते हैं। थाईलैंड में रामायण को रामाकेन और रामाकृति बोलते हैं। जो वाल्मीकि रामायण से मिलती जुलती है, किंतु इसमें थाई कल्चर का समावेश है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के अनेक विद्यार्थी रामायण पर पीएचडी कर रहे हैं। इसमें से कुछ वर्ल्ड रामायण कांफ्रेंस में शामिल होने जबलपुर आए हैं।
थाईलैंड की रामायण में हनुमानजी ब्रह्मचारी नहीं
प्राध्यापक बंमरूग खाम-ए ने बताया कि भारत की वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को ब्रह्मचारी बताया गया है। जबकि थाईलैंड की रामायण (रामाकेन) में हनुमानजी की पत्नी और पुत्र का उल्लेख है।
हम हिंदी प्रेमी हैं
कुछ वर्ष पहले थाईलैंड से आई चारिया धर्माबून हिंदी प्रेमी है। पढ़ाई के दौरान राम के चरित्र से प्रभावित होकर रामायण पर पीएचडी कर रही हैं। उन्होंने अपने इस प्रेम को टीशर्ट पर ‘हम हिंदी प्रेमी हैं’ के रूप में भी लिख रखा है। वर्ल्ड रामायण कांफ्रेंस में शामिल होने उनके साथ सुपापोर्न पलाइलेक, चोनलाफाट्सोर्न बिनिब्राहिम और पिबुल नकवानीच आए हैं। सभी शिल्पाकर्न विश्वविद्यालय से रामायण में पीएचडी कर रहे हैं। पीएचडी करने वाले विद्यार्थी रामायण पर आधारित पैंटिंग और रामलीला भी करते हैं।
भारत के मंदिरों का इतिहास खोज निकाला
अमेरिका के डॉ. स्टीफन कनाप ने बताया कि उन्हें हर विषय की गहराई में जाना अच्छा लगता है। 1973-74 में रामायण के बारे में जानकारी मिली, जिसे पढ़ा और इसकी खोज में भारत आया। यहां रामायण के संबंध में काफी खोज की। अनेक किताबें लिख चुके डॉ. स्टीफन ने बताया कि उन्होंने भारत के मंदिरों के इतिहास की खोज कर उन पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
हिन्दू पुराणों और शास्त्रों में इतना गूढ़ रहस्य है कि अगर मनुष्य उसको ठीक से पढ़कर समझे तो सुखी स्वस्थ और सम्मानित जीवन जी सकता है । इस लोक में तो सुखी रह सकता और परलोक में भी सुखी रह सकता है ।
जिसके जीवन में हिन्दू संस्कृति का ज्ञान नही है उसका जीवन तो धोबी के कुत्ते जैसा है न घर का न घाट का, इस लोक में भी दुःखी चिंतित और परेशान रहता है और परलोक में भी नर्क में जाकर दुःख ही पाता है ।
अतः बुद्धिमान व्यक्ति को समय रहते रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता पढ़कर भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने जीवन को ढाल लेना चाहिये।
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