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Thursday, July 6, 2023

छात्रा से रेप करने वाला मौलवी गिरफ्तार, कही कोई खबर नहीं


6 July 2023

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🚩मौलवी व पादरियों पर यौन शोषण के हजारों मामले हैं लेकिन मीडिया का कैमरा व तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग इसपर मौन हो जाता है जबकि किसी साधु-संत पर साजिश के तहत झूठे आरोप लगे तो भी मीडिया चिल्लाने लगती है। ऐसे बिकाऊ मीडिया की बातों में आकर कुछ तथाकथित सेक्युलर हिंदू भी हिंदू धर्मगुरुओं के खिलाफ गलत टिप्पणी करने लग जाते हैं।


🚩मौलवी ने किया रेप


🚩उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक मदरसे का मौलवी रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पीड़िता उसकी नाबालिग छात्रा है। कारी मोहम्मद अहमद पर नशीला पदार्थ खिलाकर छात्रा से रेप और अश्लील वीडियो बनाने का आरोप है। इसके बाद वह पीड़िता को ब्लैकमेल करने लगा। मुँह खोलने पर जादू-टोने से उसके परिवार को खत्म करने की धमकी दी। 26 जून 2023 को पीड़िता ने पुलिस में शिकायत की। अगले दिन आरोपित मौलवी गिरफ्तार कर लिया गया।


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मामला कानपुर के बिठूर थाना क्षेत्र का है। मौलवी कारी मोहम्मद अहमद अपने घर में लंबे समय से मदरसा चला रहा है। आसपास के बच्चे यहाँ दीनी तालीम लेने आते है। नाबालिग पीड़िता भी उसके मदरसे में आती थी। कथित तौर पर मौलवी की अश्लीलता और छेड़छाड़ से परेशान होकर उसने 2018 में ही मदरसा जाना बंद कर दिया। लेकिन मौलवी किसी न किसी बहाने से उसे बुलाकर अश्लील हरकतें करता रहता था।


🚩पीड़िता ने शिकायत में बताया है कि 22 जनवरी 2022 को मौलवी ने अपनी बीवी के बीमार होने का बहाना बनाकर उसे अपने घर खाना बनाने के लिए बुलाया। इस दौरान उसने लड़की को नशीला पदार्थ खिला दिया जिससे वो बेसुध हो गई। नशे की हालत में मोहम्मद अहमद ने उससे रेप किया और इसका वीडियो बना लिया। इस वीडियो के बहाने मौलवी अक्सर पीड़िता को ब्लैकमेल करने लगा। 17 मई 2023 को एक बार फिर मौलवी ने लड़की को घर बुला कर रेप किया। आखिरकार प्रताड़ना से आजिज आ कर लड़की ने सारी बात अपने घर वालों को बता दी।


🚩पीड़िता का यह भी आरोप है कि मौलवी खुद को जादू-टोने का एक्सपर्ट बताता था। जब भी वह मौलवी की करतूतों का विरोध करती थी तब उसे और उसके परिवार को झाड़-फूँक से खत्म करने की धमकी देता था। शिकायत में पीड़ित परिवार ने खुद को मौलवी से डरा होने की बात कही है। पुलिस ने 27 जून (मंगलवार) को मौलवी कारी मोहम्मद अहमद को गिरफ्तार कर लिया। आरोपित पर IPC की धाराओं के साथ पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है। मौलवी को जेल भेज दिया गया है।


🚩आपको तो केबल एक मोलावी के बारे में ही बताया लेकिन ऐसे हजारों मामले है जो मौलवी रेप करते पकड़े गए हैं। ईसाई पादरि जो रेप करते है उनके तो अनगिनती मामले है लेकिन इसपर सब चुप रहते हैं।


🚩जब भी किसी पवित्र हिंदू साधु-संत पर कोई झूठा आरोप लगता है तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया इस तरह खबर चलाती है कि जैसे बड़ा आतंकवादी हो, तथाकथित सेक्युलर भी जोरों से चिल्लाने लगते हैं और हिंदू धर्म पर टिप्पणियां करने लगते हैं तथा सबसे बड़ी बात तो यह है कि इल्जाम लगते ही न्यूज . हो जाती है, अनेक झूठी कहानियां बन जाती हैं। इससे तो यह सिद्ध होता है कि मीडिया को इस बात का पहले ही पता होता है कि कौन से हिन्दू साधु-संत पर कौन सा इल्जाम लगने वाला है और उनके खिलाफ किस तरीके से झूठी कहानियां बनाकर खबरें चलानी है? लगता है यह सब पहले से ही तय कर लिया जाता होगा!


🚩वहीं, दूसरी ओर किसी मौलवी या ईसाई पादरी पर आरोप सिद्ध हो जाये, तभी भी न मीडिया खबर दिखाती है और ना ही सेक्युलर कुछ बोलते हैं। इससे साफ होता है कि ये गैंग केवल हिंदुत्व के खिलाफ है।


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Monday, January 11, 2021

नन द्वारा चर्च में ‘पाप का प्रायश्चित’ करने पर पादरी करते है रेप

11 जनवरी 2021


भारत मे साधु-संत देश, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं उनको साजिश के तहत बदनाम किया जाता है, झूठे केस में जेल भेजा जाता है और मीडिया द्वारा तथा "आश्रम" जैसी फिल्में बनाकर उनको बदनाम किया जाता है। वहीं दूसरी ओर जो मौलवी व ईसाई पादरी मासूम बच्चे-बच्चियों और ननों के साथ रेप करते हैं उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं फिर भी मीडिया, प्रकाश झा जैसे बिकाऊ निर्देशक इसको देखकर आँखों पर पट्टी बांध लेते हैं क्योंकि इनको पवित्र हिन्दू साधु-संतो को बदनाम करने के पैसे मिलते है और हिंदू सहिष्णु हैं तो इन षडयंत्र को सहन कर लेते हैं।




सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (जनवरी 8, 2021) को केरल की ईसाई महिलाओं की एक रिट याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, जिसमें मालंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च में अनिवार्य कन्फेशन (अपने पापों को पादरी के सामने प्रायश्चित करना) की परम्परा को चुनौती दी गई है। याचिका में इसे धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध करार दिया गया है। मुख्य याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में संशोधन कर और नए फैक्ट्स आलोक में लाने की अनुमति भी दे दी है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस रमासुब्रमण्यन की पीठ इस मामले को सुनेगी।
 
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कन्फेशन के एवज में पादरी यौन फेवर माँगते हैं, सेक्स करने को कहते हैं।
इन महिलाओं का कहना था कि उन्हें अपने चुने हुए पादरी के समक्ष भी कन्फेशन करने दिया जाए। साथ ही ये भी कहा गया कि ईसाई महिलाओं के लिए कन्फेशन अनिवार्य करना असंवैधानिक है, क्योंकि पादरियों द्वारा इसे लेकर ब्लैकमेल करने की घटनाएँ सामने आई हैं। केरल और केंद्र की सरकारों को भी इस मामले में पक्ष बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत के अटॉर्नी जनरल केसी वेणुगोपाल से भी प्रतिक्रिया माँगी है। AG ने बताया कि ये मामला मालंकारा चर्च में जैकोबाइट-ऑर्थोडॉक्स गुटों के संघर्ष से उपज कर आया है।

ये संघर्ष भी सुप्रीम कोर्ट पहुँचा था, लेकिन तीन जजों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला दे दिया था। मुकुल रोहतगी ने ध्यान दिलाया कि ऐसे मामले संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ ये भी देखना होगा कि क्या कन्फेशन एक अनिवार्य धार्मिक प्रक्रिया हुआ करती थी। किसी बिलिवर की ‘राइट टू प्राइवेसी’ का धार्मिक प्राधिकरण के आधार पर पादरी द्वारा उल्लंघन किया जा सकता है या नहीं, उन्होंने इस पर भी विचार करने की सलाह दी।

उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ पादरी महिलाओं द्वारा किए गए कन्फेशन का गलत इस्तेमाल करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं, जिस पर रोहतगी ने कहा कि वो याचिका में संशोधन कर ऐसी घटनाओं को जोड़ेंगे। कन्फेशन को लेकर इससे पहले भी याचिकाएँ आ चुकी हैं। कन्फेशन के अंतर्गत लोग पादरी की उपस्थिति में अपने ‘पापों’ को लेकर प्रायश्चित करते हैं।

केरल के एक नन ने अपनी आत्मकथा में आरोप लगाया था कि एक पादरी अपने कक्ष में ननों को बुला कर ‘सुरक्षित सेक्स’ का प्रैक्टिकल क्लास लगाता था। इस दौरान वह ननों के साथ यौन सम्बन्ध बनाता था। उसके ख़िलाफ़ लाख शिकायतें करने के बावजूद उसका कुछ नहीं बिगड़ा। उसके हाथों ननों पर अत्याचार का सिलसिला तभी थमा, जब वह रिटायर हुआ। सिस्टर लूसी ने लिखा था कि उनके कई साथी ननों ने अपने साथ हुई अलग-अलग घटनाओं का जिक्र किया और वो सभी भयावह हैं। ऐसे तो हजारों पादरियों पर अपराध साबित हो चुके है कि ये लोग बच्चों एवं ननों का यौन शोषण करते हैं।

कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर ही हो गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता का पोल खुल चुकी है । चर्च  कुकर्मो की  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है । पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने पादरियों द्वारा किये गए इस कुकृत्य के लिए माफी माँगी थी । 

हिंदू धर्म के पवित्र साधु-संतों को पर झूठे आरोप लगाए जाते ह, झूठी कहानियां बनाकर मीडिया द्वारा बदनाम किया जाता है लेकिन इन सही अपराधों को मीडिया आज छुपा रही है, सेक्युलर, लिबरल्स सब मौन बैठे है।

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Wednesday, November 25, 2020

पादरी करता रहा दो बच्चियों का रेप, मीडिया में सन्नाटा, पुलिस भी शांत है...

25 नवंबर 2020


वर्तमान में देश में एक बड़ा षड्यंत्र चल रहा है। जो साधु-संत देश, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं उनको बदनाम किया जाता है, झूठे केस में जेल भेजा जाता है और मीडिया द्वारा तथा आश्रम जैसी फिल्में बनाकर उनको बदनाम किया जाता है। वहीं दूसरी ओर जो मौलवी व ईसाई पादरी मासूम बच्चे-बच्चियों के साथ रेप करते हैं उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं फिर भी मीडिया, प्रकाश झा जैसे बिकाऊ निर्देशक इसको देखकर आँखों पर पट्टी बांध लेते हैं क्योंकि इनको पवित्र हिन्दू साधु-संतो को बदनाम करने के पैसे मिलते है और हिंदू सहिष्णु हैं तो इन षडयंत्र को सहन कर लेते हैं।




आपको बता दें कि महाराष्ट्र के संभाजीनगर में ईसाई पादरी अमित शंकर पिछले 2 सालों से एक लड़की के साथ बलात्कार कर रहा था इतना ही नहीं उसकी हवस नहीं बुझी तो उस लकड़ी की नाबालिग छोटी बहन को भी बना लिया हवस का शिकार।

दोनो बहनों ने संबंधित पुलिस स्टेशन उस्मानपुरा में 3 महीने पहले पोक्सो एक्ट के तहत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाया है। लेकिन पुलिस कोई कार्यवाही नहीं कर रही है और न ही कोई मीडिया दिखा रहा है केवल सुदर्शन न्यूज़ के अलावा। पीड़िता अपना दर्द बता रही है चक्कर लगा रही है लेकिन पादरी की गिरफ्तारी नहीं हो रही है।

अगर किसी साधु-संत पर साजिश के तहत झूठा मुकदमा दर्ज किया गया होता तो मीडिया 24 घण्टे खबरे दिखाती, अनेक डिबेट करती झूठी कहानियां बनाती और पुलिस आधी रात को गिरफ्तार कर लेती यही एक दो घटना नही अनेकों साधु-संतों के साथ हुआ हैं और चल रहा हैं।

आपको बता दें कि पादरियों के कुकर्म को छिपाना और हिंदू साधु-संतों को झूठे बदनाम करने के पीछे का कारण यह है कि करोडों लोग साधु-संतों के प्रति श्रद्धा रखते हैं और उनके आश्रम में जाते हैं और वहाँ उनको भारतीय संस्कृति के अनुसार जीने का सही तरीका मिलता है फिर वे अपने धर्म के प्रति आस्थावान हो जाते हैं जिसके कारण वे ईसाई मिशनरियों के चुंगल में नहीं आते हैं औऱ वें विदेशी प्रोडक्ट भी नहीं खरीदते जिसके कारण ईसाई मिशनरियों का जो लक्ष्य है भारत में धर्मांतरण करके अपनी वोटबैंक बढ़ाकर सत्ता हासिल करना और जो विदेशी कंपनियों के सामान नहीं बिकने पर उनको अरबो-खरबों रूपये का घाटा होना। इसके कारण ये लोग अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचकर हिंदुओं की आश्रम व साधु-संतों के प्रति आस्था को नष्ट करने के लिए साज़िशें रच रहे हैं और प्रकाश झा जैसे जयचंद गद्दारी करके अपने ही धर्म के खिलाफ फिल्में बनाते हैं और मीडिया भी उनके पैसे मिलने पर साधु-संतों को बदनाम करते हैं।

यहाँ आपको ईसाई पादरियों के दुष्कर्मों की लिस्ट दे रहे है इससे आप अनुमान लगा सकते है कि ये लोग समाज को कैसे बर्बाद कर रहे है।

★2017 में केरल के वायनाड में चिल्ड्रन होम चलाने वाला फादर साजी जोसफ दर्जनों नाबालिग लड़कों का बलात्कार करने के अपराध में पकड़ा गया था।

★जुलाई 2018 में फादर जॉनसन मैथ्यू एक विवाहित महिला का रेप करने में अपराध में पकड़ा गया था।

★फरवरी 2018 मेंगलुरु में 3 ईसाई पादरी एक किशोरी का सामूहिक बलात्कार करने के अपराध में पकड़े गए थे।

★ 2018 आंध्रा में एक 45 वर्षीय क्रिश्चन पादरी 11 वर्षीय बच्ची का रेप करने के अपराध में पकड़ा गया था।

★असम में 60 वर्षीय चन्द्र कुमार नामक ईसाई पास्चर 10 वर्षीय बालिका का बलात्कार करने के आरोप में पकड़ा गया था।

★मध्यप्रदेश के झबुआ में 33 वर्षीय ईसाई प्रीस्ट फादर प्रकाश डामोर 17 वर्षीय बालिका का बलात्कार करने और उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के अपराध में पकड़ा गया था।

★ 30 वर्षीय चर्च के एक पादरी और चर्च के 9 अन्य कर्मचारियों को 2014 के तित्ताकुड़ी में 2 नाबालिग लड़कियों के रेप केस में आजीवन कारावास की सजा हुई है।

★ केरल के एर्नाकुलम जिले में पुलिस ने सिरो मालाबार चर्च के फादर जॉर्ज पडायततिल को चर्च में तीन 9 वर्षीय बच्चियों का बलात्कार करने के अपराध में गिरफ्तार किया था।

★एशिया, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप से ये शर्मनाक समाचार निकल रहे हैं कि कैथोलिक चर्च के अंदर दशकों से हजारों बच्चों का यौन-शोषण होता रहा है और अधिकारियों ने पहले यह समाचार दबाने का प्रयास किया ।

★जर्मनी के प्रमुख अखबारों ने यह समाचार दिया है कि 1600 पादरियों ने 3677 नाबालिगों का यौन-शोषण किया ।

ईसाई पादरियों के दुष्कर्म की यह तो मात्र कुछ घटनाएं हैं, पूरी लिस्ट बनाएंगे तो एक बड़ी पुस्तक भी छोटी पड़ेगी।

कई ईसाई पादरी हैं जिन्होंने कई छोटे बच्चों के साथ और कई नन के साथ रेप किया है पर मीडिया इस पर मौन रहती है। दूसरी तरफ न्यायालय भी उनको तुरंत राहत दे देती है। बिशप फ्रैंको को 21 दिन में ही जमानत हासिल हो गई थी जबकि 85 वर्षीय हिंदू संत आसाराम बापू के खिलाफ 5 साल तक न्यायालय में सुनवाई होती रही पर 1 दिन भी जमानत नहीं दी गई, हर बार खारिज कर दिया गया ।

हिंदू धर्मगुरुओं पर हो रहे षड्यंत्र को समझना होगा और सावधान रहना होगा।

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Sunday, October 4, 2020

भारत में बलात्कार कब से शुरू हुआ? आज रेप बढ़ने का कारण सरकार है?

04 अक्टूबर 2020


भारतीय संस्कृति में नारी को नारायणी का दर्जा दिया गया है और उसको पूज्य भाव से देखते हैं और अपनी पत्नी के अलावा परस्त्री को माता समान माना जाता हैं। प्राचीन भारत मे बच्चों को गुरुकुल में भेजते थे उसमे 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। किसी भी बहन बेटी के सामने बुरी नजर से भी नही देखते थे बलात्कार की तो बात ही नहीं लेकिन भारत में विदेशी मुगल आक्रमणकारियों ने आकर भारत की बहू-बेटियो, माताओं के साथ बलात्कार किया उसके बाद अंग्रेजों ने भी यही सिलसिला जारी रखा, प्राचीन भारत मे कभी बलात्कार शब्द ही नही था।




आज विदेशी चैनल, बॉलीबुड, चलचित्र, अश्लील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा युवक-युवतियों को अश्लीलता परोसी जा रही है। विभिन्न सामयिकों और समाचार-पत्रों में भी तथाकथित पाश्चात्य मनोविज्ञान से प्रभावित मनोचिकित्सक और ‘सेक्सोलॉजिस्ट’ युवा छात्र-छात्राओं को चरित्र, संयम और नैतिकता से भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं। पाठयक्रम में भी संयम की कही भी शिक्षा नही दी जा रही है, बॉलीबुड, विज्ञापनों और इंटरनेट पर भरपूर तरीके से अश्लीलता परोसी जा रही है जिसके कारण आज मासूम बच्चियां भी बलात्कार की शिकार हो रही हैं, कुवारी लड़कियां गर्भवती बन जाती हैं और हर दिन खबरें आती रहती हैं कि आज फलानी बच्ची, लड़कीं अथवा महिला के साथ बलात्कार हुआ। कड़े कानून भी बनाये फिर भी नही रुक रहा है, इसके पीछे यही सब कारण हैं।

बलात्कार रोकने में अगर सबसे अहम भूमिका कोई निभा सकता है तो वो सरकार है, सरकार अगर पाठ्यक्रम में संयम की शिक्षा दे, अश्लीलता वाली फिल्में सेंसर बोर्ड पास ही न करे, अश्लीलता के विज्ञापन, सीरियल, वेबसाइट, इंटरनेट, साहित्य आदि सभी पर रोक लगा दें तो आज देश मे 80% बलात्कार रुक जाएंगे।
 
आज चारों तरफ बॉलीवुड, हॉलीवुड आदि भिन्न-भिन्न तरह के चलचित्रों की होड़ लगी हुई है। हमारे देश में ही नहीं अपितु प्रत्येक देश में फ़िल्म-जगत ने बच्चों, युवाओं, महिलाओं, वृद्धों आदि सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। प्रायः लोग यह समझते हैं कि फ़िल्म देखना कोई बुरी बात नहीं क्योंकि यह तो सिर्फ एक मनोरंजन है और इससे हमारे देश का नाम ऊंचा होता है, किसी देश के देशवासियों को सम्मानित किया जाता है, इस देश में रहने वाले व्यक्ति उच्च श्रेणी के कलाकार हैं, इन्हें 'बेस्ट-फ़िल्म' का अवार्ड मिलना चाहिए इत्यादि लेकिन इस बात पर ध्यान कोई नहीं देता कि "हमारे देश की संस्कृति को बिगाड़ने में सबसे बड़ा हाथ इन फ़िल्म-जगत वालों का है।" आज के समय तरह-तरह की फिल्मों में अश्लील/कॉमेडी/रोमांस/एक्शन आदि के चलते अधिकांश व्यक्तियों को उनके जीवन का उद्देश्य तक पता नहीं होता। यहां तक की बच्चों को भी एक "कैरियर काउन्सलर" की आवश्यकता पड़ती है। प्राचीन संस्कृति और परम्परा तो खत्म हो चुकी है। अध्यात्म तो विलुप्त ही हो चुका है। व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग को छोड़कर भौतिक मार्ग को अपना रहा है। आज व्यभिचार तेजी से बढ़ रहे हैं, अपशब्द ११-१२ वर्ष के बच्चों को कंठस्थ होते हैं। फिल्मी-दुनिया को देखकर आज कोई बच्चा अथवा व्यक्ति शिखा और यज्ञोपवीत का ग्रहण नहीं करता।

प्राचीन काल में ऐसा नहीं था। उस समय बच्चों को गुरुकुल भेजा जाता था और वहां उन्हें वैदिक शिक्षाएं दी जाती थीं। इससे वह अध्यात्म की ओर उन्नति करते थे और अपने जीवन का लक्ष्य स्वयं से निर्धारित करते थे। आर्यसमाज इन्हीं वैदिक शिक्षाओं पर जोर देता रहा है तथा फ़िल्म-जगत का विरोध भी करता रहा है। हमारा मत है कि "हमें अपने बच्चों को फिल्म-जगत से दूर रखना चाहिए व स्वयं भी दूर रहना चाहिए" क्योंकि अपनी संस्कृति को बिगाड़ने में सबसे बड़ा हाथ फिल्मी-दुनिया का ही है। इसके स्थान पर वैदिक पुस्तकें बच्चों को पढ़ाई जाए तो वह अपने जीवन का लक्ष्य स्वयं निर्धारित कर सकेंगे व अध्यात्म पथ पर उन्नति कर सकेंगे।

मेरे एक मित्र है, जो कि फ़िल्म जगत के समर्थक है। उनका मानना है कि हमें अपने बच्चों के साथ सिनेमाघरों में जाकर फ़िल्म देखना चाहिए। उन्होंने मुझे भी फिल्मी दुनिया का समर्थन करने हेतु इस तरह से कहा- "इससे हम अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत कर पाते हैं, उन्हें समय देते हैं। जिसमें उन्हें खुशी मिलती है वह हम करते हैं।"

उन्होंने अपनी शंका व्यक्त करते हुए पूछा- अब बताइये इसमें गलत क्या है? हम तो अपने बच्चों की खुशी के लिए यह कर रहे हैं।

मेरा उत्तर- बच्चों की खुशी के लिए थोड़ा बहुत उनके मन का करना अच्छी बात है; जैसे पढ़ाई में उनकी सहायता करना, घुमाना-फिराना, खेलना आदि। इससे वह खुश भी होते हैं लेकिन "यदि बच्चा कहे कि- मुझे गाली देने में बड़ा मजा आता है, लड़कियों के साथ घूमने में सुख की अनुभूति होती है, मेरे मित्र मादक पदार्थ का सेवन करते हैं- उनको देखकर मुझे भी इच्छा होती है और कभी-कभी मैं भी कर लिया करता हूँ" तो क्या आप उसे रोकेंगे नहीं? क्या तब भी आप यही कहेंगे कि जिसमें उसकी खुशी है हम वही करेंगे? अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने यही उदाहरण क्यों दिया? यह उदाहरण मैंने इसलिए दिया ताकि हम इन कुकर्मों के जड़ तक पहुंचे।

उच्श्रृंखलता क्यों बढ़ रही है?

सन् २०१७ में फ़िल्म जुड़वा 2 में वरुन धवन पर फिल्माया गाना 'सुन गणपति बप्पा मोरिया परेशान करें मुझे छोरियां' यह गीत हिन्दू समाज में बड़ी तेजी से प्रचलित हुआ था। यहां तक कि मन्दिर के कार्यक्रमों, विवाह-समारोह आदि में यही गीत बजाया जा रहा था। आप बताइये क्या भगवान् से यही प्रार्थना या विनती करनी चाहिए कि "हमें छोरियों से बचाओ"? सन् २०१५ में फ़िल्म "मैं तेरा हीरो" में वरुण धवन पर फिल्माया एक और गाना 'भोले मेरा दिल माने ना', सन् २०१२ में फ़िल्म रेडी में सलमान खान पर फिल्माया गाना 'इश्क के नाम पे करते सभी अब रासलीला है मैं करूं तो साला करैक्टर ढीला है' आदि। यह गीत उद्दंडता नहीं फैला रहे तो क्या कर रहे हैं?

अश्लीलता/व्यभिचार को बढ़ावा-

व्यभिचार बढ़ने का कारण भी फिल्मी-दुनिया ही है। जब बॉलीवुड में सब तरह के मनोरंजन समाप्त होने लगे तब पाश्चात्य सभ्यता ने नग्नता/अश्लीलता को जन्म दिया। अश्लील फिल्में दिखाकर खुलेआम नग्नता का प्रचार किया। इसमें मुख्य योगदान पॉर्नस्टार "सनी लियॉनी" का है। परिणामस्वरूप आज यह हो रहा है कि अखबारों में यह खबर पढ़ने को मिलती है कि "एक बाप ने अपनी बेटी का बलात्कार किया"।

अपशब्द तथा मादक पदार्थ का खुलेआम प्रचार-आजकल तो सभी फिल्मों में अपशब्द का प्रयोग हो रहा है। इसका प्रभाव बच्चों और युवाओं पर इतनी तेजी से पड़ रहा है कि उन्हें अपशब्द का पूरा शब्दकोश कंठस्थ रहता है। प्रत्येक फ़िल्म में शुरू होने से पूर्व यह लिखा होता है "धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है..."। अब इतना लिखने के बावजूद भी उसी फ़िल्म में मादक-पदार्थों का सेवन करना दिखलाया जाता है। इन फिल्मों से प्रभावित हो १८-२० के युवा तम्बाकू/धूम्रपान का शिकार हो रहे हैं।

दरअसल हम अपनी तुलना अपने आस-पास के लोगों अथवा समाज से करते हैं। यदि किसी से पूछो कि क्या आप झूठ बोलते हो? तो वह कहता है कि "मेरा पड़ोसी तो प्रतिदिन झूठ बोलता है, मैं तो कभी-कभी बोल लेता हूँ।" हम अपनी तुलना समाज के उन व्यक्तियों से करते हैं जो अपनी परम्पराओं, संस्कृतियों को समाप्त करने में लगे हैं, जिनका कोई लक्ष्य नहीं होता या होता भी है तो सिर्फ अपनी उन्नति और वह भी भौतिक रूप से। अच्छा यह बताइये, जो अध्यात्म मार्ग त्याग कर भौतिक मार्ग पर उन्नति कर रहे हैं क्या वह ऐश्वर्य के स्वामी हैं? क्या वह सुख की जिंदगी जी रहे हैं? नहीं। तो फिर हम अपनी तुलना उनसे क्यों करें? तुलना करनी है तो ऋषियों से करो, ऋषियों के ग्रन्थों से करो, महापुरुषों से करो। उनसे तुलना करने से क्या लाभ "जिन्होंने अपने जीवन में एक भी सिद्धान्त नहीं बनाया हो?" अब मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या फिल्म जगत वाले अपने संस्कृति की रक्षा कर रहे या संस्कृति बिगाड़ रहे हैं? आपके बच्चे का भविष्य बना रहे या बिगाड़ रहे हैं? अपने भगवान पर अश्लील गीत बनाकर उनका सम्मान कर रहे या उन्हें कलंकित कर रहे?

"इतना जानने के बावजूद लोग अपने बच्चों को सिनेमाघरों में ले जाकर यही अश्लीलता भरे गाने और पिक्चर दिखाकर बहुत खुश होते हैं कि आज हमने अपने बच्चों के साथ 'सिनेमाघरों' में समय बिताया। बच्चों के साथ समय बिताना ही है तो उन्हें प्रेरणादायी पुस्तकें, क्रांतिकारियों को जीवनी, सामान्य ज्ञान, वीर रस से भरी कविताएं इत्यादि पढ़ाओ, वैदिक पुस्तक लाकर पढ़ो-पढ़ाओ और उसका महत्व बताओ। यदि फ़िल्मी-दुनिया से अपने बच्चों की रक्षा न कर सके तो यह स्पष्ट है कि "अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद करने में आपका भी उतना ही योगदान है जितना कि फिल्मजगत वालों का।" -प्रियांशु सेठ

इस पर सरकार चाहे तो तुंरत रोक लगा सकती है और देश मे फिर से महिलाओं को वास्तविक सम्मान मिलने लगेगा।

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