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Wednesday, October 21, 2020

हिन्दुओं की हत्या पर मौन रहने वालें हिन्दू ‘फ्रांस की जनता’ होना कब सीखेंगे?

21 अक्टूबर 2020


फ्रांस में एक शिक्षक की इस्लामी आतंकवादी ने हत्या कर दी। घटना श्वेत पश्चिमी विकसित राष्ट्र में हुई थी तो निंदा वैश्विक थी एवं क्षोभ सार्वजानिक। भारत में ऐसी घटनाओं का इतना सामान्यीकरण हो चुका है कि अब न जनता से प्रतिक्रिया होती है न सरकार से। यदि प्रतिक्रिया हो भी तो शाब्दिक निंदा पर ही इस्लामविरोधी इत्यादि आरोप लगा कर लोगों को चुप करा दिया जाता है। श्वेतवर्णी समाज के एक व्यक्ति के जीवन का मूल्य चार अश्वेतों के समान अमेरिकी संविधान में 1964 तक माना जाता था।




वैचारिक दासता के दौर में आज भी उसमें अधिक परिवर्तन नहीं है जब यूरोप के राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र के प्रताड़ित को शरण दें तो उसे मानवता कहा जाता है परन्तु यही जब भारत नागरिकता संशोधन के द्वारा करना चाहे तो वही पश्चिमी देश झुण्ड बना कर भारत की सम्प्रभुता पर टूट पड़ते हैं। ऐसे में आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारत में सरकार भी एक रामलिंगम, ध्रुव त्यागी, कमलेश तिवारी या राहुल राजपूत की हत्या पर सार्वजानिक वक्तव्य देने से बचती है। ऐसी मानव जीवन की क्षति पर सरकार की ओर से हर्जाना भी भिन्न-भिन्न मिलता है। सत्ता की सौतेली संतान होने का कष्ट उभर आता है, और लोग सरकार से नाराज़ हो लेते हैं।

भारतीय जनता पार्टी दूसरी बार सरकार में है परन्तु ऐसे समय रोष भाजपा के समर्थकों में अधिक दिखता है। फ्रांस के राष्ट्रपति इस जघन्य घटना की निंदा बिना लाग लपेट के इस्लामिक कट्टरवाद को जिम्मेदार ठहराते हुए कर सकते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं? इस प्रश्न पर मेरा एक ही उत्तर है कि हमें वे तस्वीरें देखनी चाहिए जो फ्रांस की घटना के पश्चात विभिन्न शहरों में दिखती हैं। सैकड़ों की संख्या में फ्रांसीसी नागरिक सड़कों पर उतरे यह कहते हुए – “हम भयभीत नहीं हैं।” दिल्ली में राहुल राजपूत की हत्या हुई, करौली में पुजारी की हत्या हुई, उन्नाव में दो पुजारियों की हत्या हुई, पालघर में साधुओं की पुलिस के सामने हत्या हुई। हम पूछते हैं कि सरकार कुछ क्यों नहीं बोली, प्रधानमंत्री कुछ क्यों नहीं बोले?

सरकार बनने के बाद राजनीतिक दलों का काम समाप्त होता है परंतु समर्थकों का काम आरंभ होता है। नेता रोडवेज़ के ड्राइवर की तरह होते हैं और सवारी भरने पर ही बस में बैठते हैं। हज़ार लोगों का जुलूस कई शहरों में निकाल दीजिए, नेता पहुँच जाएँगे और समर्थन में भाषण भी देंगे। समर्थन में उतरी संख्या ही उनके राजनीतिक सरोकार तय करती है, उन्हें स्पष्ट बोलने का साहस देती है। झारखंड में एक हत्या हुई, केरल से लेकर दिल्ली तक लोग सड़क कर उतर गए। दिल्ली में पिछले दो महीने में दो हत्याएँ हुईं। तबरेज तो मार पीट के पाँच दिन बाद मरा, ये दोनों हत्याएँ तो तथ्यात्मक रूप से पिटाई से ही हुई। कितने लोग सड़क पर उतरे? पालघर में साधुओं की हत्या पर कितनी रैलियां निकली?

जब आप अपनी बात नहीं उठा सकते हैं तो सरकार क्यों उठाएगी? यदि लोग सड़क पर 2014 में नहीं उतरते तो आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में नहीं होती। बस का ड्राइवर बस यात्रियों को पहुँचाने के लिए चलाता है, लॉंग ड्राइव के लिए नहीं। कोई भी बस का ड्राइवर बिना सवारी ख़ाली बस लेकर कही नहीं जाएगा।

राजनीतिक बस पर चढ़िये, राजनीति भी बदलेगी, राजनैतिक संवाद भी। दस बड़े शहरों में दो-दो हज़ार की संख्या में लोग सड़क पर उतर कर पालघर पर न्याय मांगते तो मोदी क्या राष्ट्रपति भी राष्ट्र को संबोधित कर के निंदा करते। पालघर में कैमरे पर साधुओं की हुई हत्या पर तो सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय मांगने वाले भी चुप हैं।

राजनीति एक बस स्टैंड है। हम एक नागरिक के नाते उस बस पर चढ़ना चाहते हैं जो भरी हुई है क्योंकि हमें लगता है वो बस पहले निकलेगी। सरकार भरी हुई बस को पहले स्टैंड से निकालती है। दोनों बातों में विरोधाभास है। हम टहल रहे हैं कि ड्राइवर आए तो बस में चढ़ेंगे, ड्राइवर चाय की प्याली पर प्याली पीते हुए दूर से दृष्टि रखे है की सवारियाँ भरें तो बस में जा के बैठे। क्या कार सेवा के बिना राम जन्मभूमि का निर्णय होता? न्यायपालिका उसे कश्मीरी पंडितों के केस की तरह प्राचीन मान कर न्यायपालिका से बाहर क्यों नहीं भेज देती? क्योंकि उस प्रश्न की बस तो अयोध्या गंतव्य के लिए निकली वह सवारियों से भरी हुई है।

सरकार आपके सोशल मीडिया के उत्कर्ष प्रलाप को पढ़कर काम नहीं करेगी। यह न तो सरकार के स्वभाव में है, न ही यह सरकार के लिए उचित ही है। सोशल मीडिया पर तो लोग मिनी स्कर्ट पर भी क्षोभ प्रकट करने लगते हैं, उस विलाप और प्रलाप पर सरकार कोई रूचि क्यों ले। उस पर कोई दल अपनी राजनीतिक पूँजी क्यों लगाएगा? भारत में 13 मिलियन या 1.3 करोड़ लोग ट्विटर पर हैं। मान लीजिए भाजपा के वोट शेयर के बराबर, लगभग 40% भाजपा समर्थक हैं। ये बने कोई पचास लाख। 130 करोड़ के देश में क्या राजनीति पचास लाख लोगों के विचारों पर होगी? मैं तो यह मानता हूँ कि ऐसा भ्रम पैदा कर के सत्ता पक्ष व विपक्षियों को व्यस्त रखा जाता हैं। कांग्रेस की सम्पूर्ण राजनीति सोशल मीडिया पर सिमट गई है और यह मान कर चल रही है की सरकारें वहीं से बनती हैं। राहुल गाँधी ट्विटर पर ज्ञान देते हैं, चुनाव हार जाते हैं।

घरों में बैठ कर समाज या सरकार दोनों नहीं बदली जाती। विपरीत विचारधारा सड़क पर उतरती है, अदालत में जाती है, माहौल बनाती है और सरकार को उस पर झुकना ही पड़ता है। महाराष्ट्र में यदि जनता धरने पर उतरती, अदालत में अर्ज़ी दाखिल होती तो पालघर के लिए जाँच के लिए केंद्रीय ब्यूरो क्यों न उतरता या किसी न्यायाधीश के निरीक्षण में जाँच क्यों नहीं होती। साधुओं के परिवारों को, राहुल राजपूत के परिवार को शासन से वही मदद क्यों नहीं मिलती जो जुनैद और तबरेज़ को मिली। मोदी जी भी सार्वजनिक मंचों से घटना की निंदा करते। 130 करोड़ के देश में एक हत्या अन्य हत्याओं के मुक़ाबले प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के ध्यान या समय के योग्य क्यों है, इसका निर्णय इस पर है कि मूक रहने पर और बोलने पर कितना समर्थन मिलता है।

अपेक्षाएं होती हैं तो ऐसे प्रश्न उठते हैं। ऐसे ही प्रश्न योगी आदित्यनाथ से भी पूछे जाते हैं। उनसे यही कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री बनाए हो प्रभु, लठैत नहीं रखे हो। सड़क बन रही है, कोरोना नियंत्रण में है, दंगे दिल्ली से उत्तरप्रदेश नहीं फैले, माफिया के घर टूट रहे हैं, उद्योग आ रहे हैं। गोरखपुर में बालकों की जापान इनसेमफिलिटिस से मृत्यु लगभग बंद हो गई है। प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री का पद संवैधानिक पद है। अब कॉलोनी में ‘जागते रहो, जागते रहो’ कर के भी महाराज जी लाठी पीटते तो नहीं घूमेंगे।

एक ओर वह वर्ग या समाज है जो राजनीतिक एवं वैधकीय अतिसक्रियता का लाभ शासन से और न्यायपालिका से अपनी पसंद के निर्णय एवं वक्तव्य निकाल रहा है। आपको सत्ता का वही स्नेह चाहिए तो आपको भी सड़क पर आना होगा, एक संख्या बल सड़क पर दिखाना होगा जिसकी विदेशी मीडिया भी उपेक्षा न कर सके। यदि दिल्ली की या मुंबई की सड़कें भर जाएँ पालघर पर तो उन्हें रिपोर्ट करना होगा, उन्हें इसका कारण भी अपनी रिपोर्ट में लिखना होगा।

आप न्यायपालिका का ध्यानाकर्षण इन विषयों पर करते रहे तो उन पर निर्णय भी होंगे और समाचार पत्रों को छापने भी होंगे। आप बीस करोड़ पोस्ट कार्ड लिख के प्रधानमंत्री कार्यालय भेजेंगे तो प्रधानमंत्री भी उस पर ध्यान देंगे, कानून भी संसद में लाएँगे। मंदिर भी सरकारी प्रतिबन्ध से बाहर निकालेंगे, संभवतः संविधान के आपातकाल में किये गए संशोधन भी हटेंगे यदि जैसा वामपंथी करते हैं दक्षिणपंथी कानून, मीडिया और सड़क पर प्रदर्शन को साथ में जोड़ कर मुहिम चलाते हैं।

भारत पर गौरी या ख़िलजी की जीत का बड़ा कारण जनता का जातियों में कटा रहना था, जिसके कारण बड़ा वर्ग न युद्ध के लिए प्रशिक्षित था ना ही उसमें रुचि रखता था। जैसे आज लोग पालघर या दिल्ली लिंचिंग पर मोदी को कोसते हैं, तब पृथ्वीराज चौहान को कोसते होंगे। सोचिए पसंद की सरकार को सत्ता पर बैठा कर जनता के कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती है। सत्ता वर्षों से बने समीकरणों को, लोकतंत्र ही सामाजिक सिद्धांतों में परिवर्तन ला सकता। एक राष्ट्र की जनता जब अपने शासकों को सामाजिक परिवर्तनों का उत्तरदायित्व सौंप कर उदासीन एवं निष्क्रिय हो जाती है, उसका क्षेत्र जावा से, वियतनाम से, ईरान से, बर्मा से पाकिस्तान और बांग्लादेश से संकुचित होता होता वहाँ पहुँच जाता है जहाँ एक संस्कृति के लिए अपने पँजों पर खड़े होने की भूमि भी नहीं होती है।

संस्कृति की रक्षा निष्क्रिय प्रेम से नहीं होती है, सक्रिय कर्म से होती है। यदि भ्रष्ट्राचार के विरोध में जनता 2014 में सड़क पर नहीं उतरी होती, तो आज प्रधानमंत्री मोदी भी सत्ताधीश नहीं हुए होते। संख्या बल वही सक्षम होता है जो साक्ष्य होता है, स्पष्ट होता है। सरकार को चुनकर हमने कोई ठेका नहीं दिया है और दिया भी हो तो उपभोक्ता की उपेक्षा की स्थिति में तो ठेकेदार उतना ही और उसी गुणवत्ता का कार्य करता है जितना न्यूनतम आवश्यक हो। सरकार से उस न्यूनतम सीमा से अधिक कार्य कराना हो तो बोलना होगा, लिखना होगा, पहुँचना होगा, सबसे बढ़कर – एक हो कर दिखना होगा।

एक फ़िल्म कुछ वर्षों पहले आई थी- गुलाल! उसके एक वाक्य को शिष्टता का आवरण पहना कर यह लेख समाप्त करता हूँ- “अपने पृष्ठपटल पर बैठे रहने से स्वराज्य नहीं आएगा, धर्म और संस्कृति की रक्षा नहीं होगी।” राष्ट्रीय राजनीति उतनी ही नैतिक होगी जितना नागरिक जागृत होगा। एक बार फिर फ्रांस में सड़कों पर उमड़ी, श्रद्धांजलि देती जनता का चित्र देखें और विचार करें।

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Wednesday, May 20, 2020

क्या इस खबर को छुपाया जा रहा है? इतने दिन हो गए अभी तक क्यो नही बताई गई?

20 मई 2020

🚩पुराणों में हमने पढा था कि कोई साधु-संत हवन करते अथवा तप करते तो उनको राक्षस लोग आकर प्रताड़ित करते थे, विघ्न डालते थे, हड्डियां फेकते थे यहाँ तक कि उनकी हत्या भी कर देते थे अथवा कोई राक्षक राजा होता था तो उनको जेल में डालकर प्रताड़ित करता था, क्योंकि साधु-संतों द्वारा जो समाज सुधार का कार्य होता था वो राक्षकों को पसंद नही आता था। यह सिलसिला आज भी जारी है, आज भी साधु-संत गांव-गांव , नगर-नगर जाकर भारतीय संस्कृति का प्रचार करते है, लोगो को सन्मार्ग पर चलाते है, व्यसन, मांस आदि छुड़वाते हैं, क्लबो और फिल्मों में जाने से रोकते है समाज में जो भी कुरीतियां अथवा बुराइयां फैली है उनको दूर करते हैं और जो लोग धर्मान्तरण आदि करवाते है उनके खिलाफ डटकर मुकाबला करते हैं इसलिए राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति के विरोधी लोगो को यह रास नही आ रहा है जिसके कारण जैसे पहले राक्षक लोग साधु-संतों के साथ करते थे ऐसी ही प्रताड़ना आज भी साधु-संतों के साथ कर रहे हैं।

पंजाब में संत की निर्मम तरीके से हुई हत्या...

🚩देश के अलग-अलग हिस्सों में एक के बाद एक संतों को निशाना बनाया जा रहा है। इस बार खबर पंजाब से आई है, जहां एक संत की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई। 

🚩खबरों के मुताबिक पंजाब के काठगढ़ थाना क्षेत्र में स्वराज माजदा फैक्ट्री के सामने नूरपुरबेदी स्थित डेरा ऋषि मुनि देशम आश्रम में रविवार (17 मई, 2020) को संत महा योगेश्वर महाराज का शव मिला। महात्मा के शव की पहचान नही हो पा रही थी, उनकी एक बाजू भी नही थी, महात्मा के बाल सिर से उखाड़े थे व सिर धड़ से अलग था उनका कमर तक शरीर खून से लथपथ था।

🚩इसकी जानकारी उस समय हुई कि जब पनियाली कलाँ का रहने वाला एक शिष्य जगदीश लाल आश्रम में उनके लिए भोजन लेकर पहुँचा था।

🚩जगदीश लाल के मुताबिक वह आश्रम में पहुँचा तो उसे आश्रम के अंदर से बदबू आ रही थी, उसने अंदर जाकर देखा तो कमरे में सारा सामान बिखरा हुआ था, जबकि संत महाराज का शव सड़ा हुआ जमीन पर पड़ा हुआ था। इसकी जानकारी तत्काल पुलिस को दी गई।

🚩कुछ ही देर में सूचना पर थाना काठगढ़ की पुलिस मौके पर पहुँची गई। इसके बाद पहुँची फारेंसिक टीम ने मौके से सबूत एकत्रित किए। इसी के साथ पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। वहीं पुलिस ने संत के भाई दिनेश कुमार के बयानों के आधार पर मुकदमा दर्ज कर लिया है। संत के भाई ने बताया कि लॉकडाउन और राज्य में लागू कर्फ्यू के कारण आश्रम पर श्रद्धालुओं का आवागमन बेहद कम हो गया था।

🚩वहीं मामले को लेकर अब पुलिस जाँच में जुट गई है। पुलिस हत्या के पीछे आश्रम की भूमि पर कब्जे और उसमें चोरी की नीयत आदि पहलुओं को लेकर भी जाँच कर सकती है, क्योंकि आश्रम के पास तीन एकड़ की भूमि है।

🚩थाना प्रभारी परमिंदर सिंह ने बताया कि संत का शव गल चुका था और यह कत्ल कुछ दिन पहले का हुआ था। लूटपाट से और दरवाजे की तोड़फोड़ से यह लुटेरों का काम लगता है। पुलिस ने संत के भाई के बयानों के आधार पर मामला दर्ज किया।

🚩जानकारी के मुताबिक 85 वर्षीय संत अवधूत महायोगेश्वर पिछले 40 सालों से भी ज्यादा समय से इस आश्रम रह रहे थे, जो कि हिमाचल के जिला मंडी के सरकाघाट के रहने वाले थे। वह अग्नि अखाड़ा काली कमली वाले ऋषिकेश से जुड़े हुए थे।

🚩आपको बता दें कि इससे पहले भी महाराष्ट्र के पालघर 16 अप्रैल, 2020 को 2 साधुओं सहित 3 लोगों की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी। इस घटना का वीडियो 3 दिन बाद सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ था, जिसके बाद लोगों को सच्चाई पता चली थी।

🚩संतों की मॉब लिंचिंग पर अखिल भारतीय संत समिति ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इसकी सीबीआई जाँच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भी दो साधुओं की हत्या की गई। कुछ इसी तरह अब पंजाब में एक संत की हत्या की घटना सामने आई है। 

🚩पालघर की खबर को जैसे छुपाया गया था ऐसे ही इस खबर को भी छुपाया जा रहा है? पालघर का 3 दिन बाद वीडियो वायरल हुआ फिर जनता को पता चला कुछ मीडिया तो लीपापोती करने लगी कि चोर समझकर मार दिया जबकि बाद में सच्चाई पता चली की वे संत हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे थे और सभी हिंदुओ को एक कर रहे थे और धर्मान्तरण पर रोक लगा रहे थे इसलिए हत्या हुई थी।

🚩इन सबसे पता चलता है की भारत मे जिस तरह से ईसाई मिशनरियां धर्मान्तरण करवा रही हैं ओर नक्सलवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और मीडिया उनके पक्ष लेकर खड़ी रहती है तथा हिंदू साधु-संतों को जिस तरह से बदनाम कर रही है इससे साफ पता चलता है कि भारतीय संस्कृति को तोड़ने के लिए कार्य को जोरो-शोरो से किया जा रहा है और उसके बचाने के लिए सबसे ज्यादा आगे साधु-संत आते हैं इसलिए वें सबसे ज्यादा टारगेट पर है क्योंकि वें आदिवासियों को जीवनोपयोगी सामग्री, मकान आदि देते है जिससे मिशनरियों के प्रभाव में वे लोग न आये और धर्मपरिवर्तन न करे, दूसरा जिनका धर्मपरिवर्तन हो चुका है उनकी घरवापसी करवाते है इन सभी कारणों से मिशनरियां और इस्लाम स्टेट चिढ़ते है और साधु संतों को झूठे केस में फंसाकर मीडिया से बदनाम करवाकर जेल भिजवाते है या हत्या कर देते है और आम जनता को साधुओं के खिलाफ करते है जिससे उनका काम आसानी हो सके और भारत की भोली जनता उनके बहकावे में आ जाये और निर्दोष लोगों की हत्या तक करने को तैयार हो जाये।https://bit.ly/2LNJsJK

🚩अभी भी हिंदुओं के लिए समय है चेत जाए एकजुट होकर राष्ट्रवादी सरकार को वोट दे और बिकाऊ मीडिया का सोशल मीडिया पर पर्दाफाश करे और धर्मान्तरण पर रोक लगाकर साधु-संतों की रक्षा करे।

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