Showing posts with label हिन्दू. Show all posts
Showing posts with label हिन्दू. Show all posts

Sunday, November 29, 2020

जानिए भारत की व्यवस्था ने कैसे बना दिया हिन्दू को दूसरा दर्जे का नागरिक..

29 नवम्बर 2020


दुनिया में अभी 2-3 तरीके के राज्य हैं एक तो खुद बोलते हैं, हम क्रिश्चियन हैं । ईसाई धर्म पर आधारित राज्य हैं, बाइबल को मानते हैं, हाथ में बाइबल लेकर शपथ ली जाती है राज्य व्यवस्था उसके आधार पर की जाती है । अपना एक स्टेंडर्ड कंटूटिशन भी होता है । दूसरे इस्लामिक राज्य हैं, तीसरे कुछ कम्युनिस्ट राज्य हैं । लेकिन दुनिया में एक अकेला राज्य भारत ऐसा है जो किसीके पक्ष में है या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन हिंदुओं के विरोध में पूरी व्यवस्था है ।




हमारा कोई सेक्युलर राज्य नहीं है हिन्दू राज्य बनाने की बात लोग करते हैं, लेकिन अभी जो हमारी राज्य व्यवस्था है कि हिन्दू विरोधी राज्य व्यवस्था है ये राज्य व्यवस्था आपको मोटिवेट करती है कि आप हिन्दू धर्म को छोड़े, ये राज्य व्यवस्था आपको इस प्रकार का रोज सुबह उठने के साथ सोने तक ये एहसास कराती है कि आप इस देश में सेकंड क्लास है डिवीजन है, दूसरे दर्जे के नागरिक हैं । आप देश के अन्य नागरिकों के बराबर नहीं है । आपका बच्चा अगर पैदा होगा तो उसके अधिकार किसी अन्य धर्म में पैदा होने वाले बच्चों से कम होंगे । किसी अन्य धर्म में पैदा होता है तो सरकार उसे पैसा देगी, पढ़ने जाएगा तो सरकार उसे बस्ता देगी, किताब देगी, स्कॉलरशिप देगी, रिजर्वेशन देगी, नौकरी केवल धर्म आधारित पैसा रिजर्वेशन, व्रोटेशन, मोटिवेशन केवल और केवल धर्म आधारित पैसा रिजर्वेशन, प्रोक्शन, संगठन , मोटिवेशन इस देश की राज्य व्यवस्था दे रही है । उसमें भी शब्द यूज़ करते है कि minority अल्पसंख्यक। मेरे को लगता है पूरे ब्रह्मांड में 25 करोड़ वाला अल्पसंख्यक केवल भारत में ही बैठा हुआ है । और वो इतना अल्पसंख्यक है कि उसके हर बच्चे के 7-8 बच्चे पैदा हो रहे हैं । जब ये कहा गया कि मुसलमानों  की तरक्की के लिए योजना लाओ तो मुझे लगता है कि नसबन्दी की योजना सबसे बड़ी योजना है जिससे मुसलमानों की तरक्की हो सकती है । 

एक ही योजना ऐसी है जिससे तरक्की हो सकती है। लेकिन उनका विश्वास नहीं है उनका विश्वास है कि पॉपुलेशन देहात में । मैं अपना व्यक्तिगत तौर पे ये उदाहरण देता हूँ कि विधायक होने के नाते मैं अपने दफ्तर में बैठा था सरकार विधवा महिलाओं को पेंशन देती है। तो मेरे पास एक 24 वर्ष की एक महिला आई जो विधवा थी और विधवा की बेटी थी, शादी के लिए भी सरकार सहायता देती है । तो वो मुझसे ये कहने आई कि मेरी बेटी की शादी में सरकार सहायता देगी क्या? तो मैंने कहा आपकी बेटी की उम्र कितनी है? तो उसने कहा 12 साल है शादी की बात चल रही है मैने कहा 18 साल से पहले शादी गैरकानूनी है । करना भी मत कोई कानूनी कार्यवाही हो जाएगी और सरकारी सुविधा कुछ मिल ही नहीं सकती क्योंकि कागज पे सर्टिफिकेट होना चाहिए कि 18 से ज्यादा उम्र है। फिर मैंने उससे पूछा कि 12 साल की बेटी की शादी की बात कर रही हो तुम्हारे और कितने बच्चे है? 24 साल में विधवा हो चुकी उस बहन के 8 बच्चे हैं । और जिसकी वो 12 साल में शादी की बात कर रही है उसके भी 24 की होते होते 8 बच्चे हो जाएंगे । 

तो इतने में हमारे बच्चे कॉलेज पास करके सोचते हैं कि आगे जिंदगी में क्या करना है उसमें इनके 8×8=64 बच्चे उनके घर में खेलते होते हैं । और उन 64 बच्चों के पैदा होने पर भारत की सरकार पैसा देती है । स्कूल जाएंगे तो पैसा देगी, नौकरी करेंगे तो लोन भारत की सरकार देगी रिजर्वेशन देगी और सिंदे साहब की बात पर अगर कोई ज्यादा पढ़ना लिखना शुरू कर दे तो उसकी उच्च शिक्षा में या नौकरी में इतिहास में भारत की आज़ादी के बाद upsc में सबसे ज्यादा मुस्लिम हाईएस्ट अधिकारियों का चयन हुआ है । 

ये कोई सहयोग नहीं है प्रॉपर योजना बना के प्लानिंग से ट्रेनिंग देकर उनके बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क आवास, निःशुल्क प्रशिक्षण देकर उत्साहित किया जाता है कि हर साल ज्यादा से ज्यादा लोग IAS बने और ये भारत की सरकार की नीति है । ये कोई धर्म की अपनी संस्था की नीति नहीं है भारत की सरकार की नीति है । तो धर्म आधारित भेदभाव इस हद तक हो चुका है कि साउथ के आफ्रीका में काले और गोरे का भेद, हमें ये बात कहनी होगी, हम ये बात कहने में झिझकते हैं हिंदुओं की मेजोरिटी है कि काले और गोरे बीच में किया गया था अधिकार का साउथ अफ्रीका में, वो भेद हिंदुओं में और अन्य धर्म के अंदर आज भी किया जा रहा है । दूसरे दर्जे की नागरिकता दे दी गई है ।


हमारे मंदिरों के बारे में कोई भी निर्णय ले सकता है हमारी परंपराओं के बारे में कोई भी निर्णय ले सकता है । ये कोई मजाक नहीं है आपका इतिहास ही आपको नहीं बताया जा रहा है । आपका इतिहास आपसे छुपाया जा रहा है आपका वर्तमान अटकाया जा रहा है राज्यव्यवस्था है । क्यों रामकृष्ण समाज मजबूर हो गया कोर्ट जाने के लिए ? कि हमें अल्पसंख्यक घोषित करो । क्यों आई ये स्थिति क्योंकि अल्पसंख्यक कराके वो अपनी परंपरा बना सकता है वो अपना एक मिशन चला सकता है । लेकिन वो अल्पसंख्यक नहीं है तो वो अपने ही बच्चों को अपने ही धर्म के बारे में ज्ञान नहीं दे सकता । अपनी परंपरा का संगठन नहीं कर सकता ।

सबरीमाला पर न्यायालय बोला महिला जाएगी ये महिलाओं के अधिकारों की बात है कल को कोर्ट बोलेगा नवरात्रि में दुर्गा पूजा में लड़कों का भी पूजन करो कन्या पूजा क्यों करते हो? ये भी समानता की बात है कि अपने हमारे धर्म को नहीं मानो, आस्था को नहीं मानो, परंपरा को नहीं मानो । और मंदिर के अंदर बैठे देवता के प्राणप्रतिष्ठा की ये मानने से आपने इनकार कर दिया क्योंकि वो देवता जीवित है प्राण की प्रतिष्ठा की हुई है, उसकी मर्जी से किसीसे मिलेगा नहीं मिलेगा और आपने ये मान लिया कि देवता के प्राण के प्राण ही नहीं है वो एक निर्जीव है तो उसमें आपने पब्लिक से emporiums secular spare is public spare ये कोर्ट बोल रहा है। भाई जाके कोर्ट में याचिका डाल दी मुझे तो ठंड लगती है नंगे पैर जूता पहन के जाऊंगा तो कोर्ट बोलेगा नंगे पैर जूता पहन के जा क्योंकि पब्लिक स्पेयर है । 

इस प्रकार के वातावरण तक हम पहुंच चुके हैं हमारी संस्कृति की न्यायपालिका चुप है क्योंकि वोट बैंक सबसे बड़ी कमजोरी है क्योंकि वोट बैंक कहाँ बढ़ाया जा रहा है रणनीति के तहत दिल्ली में एक डेमोग्राफिक है जिसमें अगले दस साल के बाद दिल्ली की 70 विधानसभाओं में से 48 विधानसभाओं में वही व्यक्ति चुनाव जीत पाएंगे जिनको मुस्लिम समाज समर्थन देंगे । 70 में से 48 ये दिल्ली के अंदर होगा अगले 10 सालो में इसप्रकार से डेमिग्राफिक चेंज हो रही है । हो सकता है पूरे भारत में भी ये स्थिति आ सकती है धीरे धीरे 5 साल, 10 साल, 15 साल या 20 साल इस देश की ऐसी ही कोई लोकसभा या विधानसभा की सीट बचेगी जिसमें धर्म के आधार पर चुनाव और धर्म के नाम पर 15-20 साल के बाद ऐसी कोई सरकार आती है तो केवल मुस्लिम वोट के आधार पर आती है इसको एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है । 

हिन्दू चार्टर की जब हम बात करते हैं तो ये एक इस देश में हिंदुओं की मांग तो रखी जाए बोला तो जाए। अगर हम कहते हैं हिंदुओं को मुसलमान के समान अधिकार दिया जाए तो कहेंगे सम्प्रदायी हो । भड़काऊ बातें करते हो तुम्हारी बातों से दंगा फैल सकता है । तुम आतंकवादी हो केवल समान अधिकार मांगने पर इतनी बात बोल दी जाती है, लेकिन बचपन में एक बात सीखा दी गई थी कि बिना रोये माँ भी दूध नहीं देती तो अपनी बात कहने का, अपनी बात मांगने का बार-बार कहने का की हमें सेकंड क्लास के डिवीजन मत बनाओ बराबरी का अधिकार दो । 

ये ये अधिकार दो इलीगल है ये कोई आज सार्वजनिक मंच पर आकर देश का राजनेता बोल ही नहीं रहा मिनोरटी कमीशन इलीगल है, मिनोरटी को दिये जाने वाली सारी सुविधाएं इलीगल है, गैरसंवैधानिक है, उनप्रोसेक्यूशन है । हमारा संविधान बनाने वालों को मेरा ये मानना है, ये मन में आस्था अभी भी है कि जिन्होंने संविधान बनाया शायद उनकी नियत नहीं थी ऐसा करने की वो तो शायद ये सोचते थे कि हिंदुओं को तो अधिकार मिल ही जायेगा । हिन्दू राष्ट्रमंत्री, हिन्दु  सरकार हिंदुओं को तो मिल ही जाएगा बाकियों के लिए लिख दो उनकी नियत तो शायद ऐसी होगी, लेकिन उसके बाद जो व्याख्या की गई इस संविधान की वो ये कह दी गई कि हिंदुओं को ही नहीं दिया जाएगा बाकी सबको दे दो। 

और इस प्रकार से ये देश चलाया गया संविधान में सब्सिडी डाल दिये गए जो ना हमारी परंपरा में आते हैं ना धार्मिक परंपरा में आते हैं,  ना आध्यात्मिक, न सामाजिक देश की संस्कृति में ही नहीं आते । ये संविधान उनको हमारे संविधान में डाल दिया गया और उसके आधार पर ये सारे कमिश्नर रिपोर्ट को बार बार कहना, हक से कहना और मांगना और ये सुरक्षित करना कि इस देश के जितने भी लोग सरकारों पर पदों पर बैठे हैं, जिस चीज पर बैठे हैं उनको पता लगे, भारतीय जन मानस को पता लगे कि उसके साथ अन्याय हुआ है । लोग अन्याय देख रहें है अन्याय के प्रत्यक्ष भी गवाह है विटनेस हैं । ये अगर बार बार बोलेंगे तो इसका एक दबाव जरूर बनेगा । कपिल मिश्रा, विधायक, दिल्ली

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, October 21, 2020

हिन्दुओं की हत्या पर मौन रहने वालें हिन्दू ‘फ्रांस की जनता’ होना कब सीखेंगे?

21 अक्टूबर 2020


फ्रांस में एक शिक्षक की इस्लामी आतंकवादी ने हत्या कर दी। घटना श्वेत पश्चिमी विकसित राष्ट्र में हुई थी तो निंदा वैश्विक थी एवं क्षोभ सार्वजानिक। भारत में ऐसी घटनाओं का इतना सामान्यीकरण हो चुका है कि अब न जनता से प्रतिक्रिया होती है न सरकार से। यदि प्रतिक्रिया हो भी तो शाब्दिक निंदा पर ही इस्लामविरोधी इत्यादि आरोप लगा कर लोगों को चुप करा दिया जाता है। श्वेतवर्णी समाज के एक व्यक्ति के जीवन का मूल्य चार अश्वेतों के समान अमेरिकी संविधान में 1964 तक माना जाता था।




वैचारिक दासता के दौर में आज भी उसमें अधिक परिवर्तन नहीं है जब यूरोप के राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र के प्रताड़ित को शरण दें तो उसे मानवता कहा जाता है परन्तु यही जब भारत नागरिकता संशोधन के द्वारा करना चाहे तो वही पश्चिमी देश झुण्ड बना कर भारत की सम्प्रभुता पर टूट पड़ते हैं। ऐसे में आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारत में सरकार भी एक रामलिंगम, ध्रुव त्यागी, कमलेश तिवारी या राहुल राजपूत की हत्या पर सार्वजानिक वक्तव्य देने से बचती है। ऐसी मानव जीवन की क्षति पर सरकार की ओर से हर्जाना भी भिन्न-भिन्न मिलता है। सत्ता की सौतेली संतान होने का कष्ट उभर आता है, और लोग सरकार से नाराज़ हो लेते हैं।

भारतीय जनता पार्टी दूसरी बार सरकार में है परन्तु ऐसे समय रोष भाजपा के समर्थकों में अधिक दिखता है। फ्रांस के राष्ट्रपति इस जघन्य घटना की निंदा बिना लाग लपेट के इस्लामिक कट्टरवाद को जिम्मेदार ठहराते हुए कर सकते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं? इस प्रश्न पर मेरा एक ही उत्तर है कि हमें वे तस्वीरें देखनी चाहिए जो फ्रांस की घटना के पश्चात विभिन्न शहरों में दिखती हैं। सैकड़ों की संख्या में फ्रांसीसी नागरिक सड़कों पर उतरे यह कहते हुए – “हम भयभीत नहीं हैं।” दिल्ली में राहुल राजपूत की हत्या हुई, करौली में पुजारी की हत्या हुई, उन्नाव में दो पुजारियों की हत्या हुई, पालघर में साधुओं की पुलिस के सामने हत्या हुई। हम पूछते हैं कि सरकार कुछ क्यों नहीं बोली, प्रधानमंत्री कुछ क्यों नहीं बोले?

सरकार बनने के बाद राजनीतिक दलों का काम समाप्त होता है परंतु समर्थकों का काम आरंभ होता है। नेता रोडवेज़ के ड्राइवर की तरह होते हैं और सवारी भरने पर ही बस में बैठते हैं। हज़ार लोगों का जुलूस कई शहरों में निकाल दीजिए, नेता पहुँच जाएँगे और समर्थन में भाषण भी देंगे। समर्थन में उतरी संख्या ही उनके राजनीतिक सरोकार तय करती है, उन्हें स्पष्ट बोलने का साहस देती है। झारखंड में एक हत्या हुई, केरल से लेकर दिल्ली तक लोग सड़क कर उतर गए। दिल्ली में पिछले दो महीने में दो हत्याएँ हुईं। तबरेज तो मार पीट के पाँच दिन बाद मरा, ये दोनों हत्याएँ तो तथ्यात्मक रूप से पिटाई से ही हुई। कितने लोग सड़क पर उतरे? पालघर में साधुओं की हत्या पर कितनी रैलियां निकली?

जब आप अपनी बात नहीं उठा सकते हैं तो सरकार क्यों उठाएगी? यदि लोग सड़क पर 2014 में नहीं उतरते तो आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में नहीं होती। बस का ड्राइवर बस यात्रियों को पहुँचाने के लिए चलाता है, लॉंग ड्राइव के लिए नहीं। कोई भी बस का ड्राइवर बिना सवारी ख़ाली बस लेकर कही नहीं जाएगा।

राजनीतिक बस पर चढ़िये, राजनीति भी बदलेगी, राजनैतिक संवाद भी। दस बड़े शहरों में दो-दो हज़ार की संख्या में लोग सड़क पर उतर कर पालघर पर न्याय मांगते तो मोदी क्या राष्ट्रपति भी राष्ट्र को संबोधित कर के निंदा करते। पालघर में कैमरे पर साधुओं की हुई हत्या पर तो सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय मांगने वाले भी चुप हैं।

राजनीति एक बस स्टैंड है। हम एक नागरिक के नाते उस बस पर चढ़ना चाहते हैं जो भरी हुई है क्योंकि हमें लगता है वो बस पहले निकलेगी। सरकार भरी हुई बस को पहले स्टैंड से निकालती है। दोनों बातों में विरोधाभास है। हम टहल रहे हैं कि ड्राइवर आए तो बस में चढ़ेंगे, ड्राइवर चाय की प्याली पर प्याली पीते हुए दूर से दृष्टि रखे है की सवारियाँ भरें तो बस में जा के बैठे। क्या कार सेवा के बिना राम जन्मभूमि का निर्णय होता? न्यायपालिका उसे कश्मीरी पंडितों के केस की तरह प्राचीन मान कर न्यायपालिका से बाहर क्यों नहीं भेज देती? क्योंकि उस प्रश्न की बस तो अयोध्या गंतव्य के लिए निकली वह सवारियों से भरी हुई है।

सरकार आपके सोशल मीडिया के उत्कर्ष प्रलाप को पढ़कर काम नहीं करेगी। यह न तो सरकार के स्वभाव में है, न ही यह सरकार के लिए उचित ही है। सोशल मीडिया पर तो लोग मिनी स्कर्ट पर भी क्षोभ प्रकट करने लगते हैं, उस विलाप और प्रलाप पर सरकार कोई रूचि क्यों ले। उस पर कोई दल अपनी राजनीतिक पूँजी क्यों लगाएगा? भारत में 13 मिलियन या 1.3 करोड़ लोग ट्विटर पर हैं। मान लीजिए भाजपा के वोट शेयर के बराबर, लगभग 40% भाजपा समर्थक हैं। ये बने कोई पचास लाख। 130 करोड़ के देश में क्या राजनीति पचास लाख लोगों के विचारों पर होगी? मैं तो यह मानता हूँ कि ऐसा भ्रम पैदा कर के सत्ता पक्ष व विपक्षियों को व्यस्त रखा जाता हैं। कांग्रेस की सम्पूर्ण राजनीति सोशल मीडिया पर सिमट गई है और यह मान कर चल रही है की सरकारें वहीं से बनती हैं। राहुल गाँधी ट्विटर पर ज्ञान देते हैं, चुनाव हार जाते हैं।

घरों में बैठ कर समाज या सरकार दोनों नहीं बदली जाती। विपरीत विचारधारा सड़क पर उतरती है, अदालत में जाती है, माहौल बनाती है और सरकार को उस पर झुकना ही पड़ता है। महाराष्ट्र में यदि जनता धरने पर उतरती, अदालत में अर्ज़ी दाखिल होती तो पालघर के लिए जाँच के लिए केंद्रीय ब्यूरो क्यों न उतरता या किसी न्यायाधीश के निरीक्षण में जाँच क्यों नहीं होती। साधुओं के परिवारों को, राहुल राजपूत के परिवार को शासन से वही मदद क्यों नहीं मिलती जो जुनैद और तबरेज़ को मिली। मोदी जी भी सार्वजनिक मंचों से घटना की निंदा करते। 130 करोड़ के देश में एक हत्या अन्य हत्याओं के मुक़ाबले प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के ध्यान या समय के योग्य क्यों है, इसका निर्णय इस पर है कि मूक रहने पर और बोलने पर कितना समर्थन मिलता है।

अपेक्षाएं होती हैं तो ऐसे प्रश्न उठते हैं। ऐसे ही प्रश्न योगी आदित्यनाथ से भी पूछे जाते हैं। उनसे यही कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री बनाए हो प्रभु, लठैत नहीं रखे हो। सड़क बन रही है, कोरोना नियंत्रण में है, दंगे दिल्ली से उत्तरप्रदेश नहीं फैले, माफिया के घर टूट रहे हैं, उद्योग आ रहे हैं। गोरखपुर में बालकों की जापान इनसेमफिलिटिस से मृत्यु लगभग बंद हो गई है। प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री का पद संवैधानिक पद है। अब कॉलोनी में ‘जागते रहो, जागते रहो’ कर के भी महाराज जी लाठी पीटते तो नहीं घूमेंगे।

एक ओर वह वर्ग या समाज है जो राजनीतिक एवं वैधकीय अतिसक्रियता का लाभ शासन से और न्यायपालिका से अपनी पसंद के निर्णय एवं वक्तव्य निकाल रहा है। आपको सत्ता का वही स्नेह चाहिए तो आपको भी सड़क पर आना होगा, एक संख्या बल सड़क पर दिखाना होगा जिसकी विदेशी मीडिया भी उपेक्षा न कर सके। यदि दिल्ली की या मुंबई की सड़कें भर जाएँ पालघर पर तो उन्हें रिपोर्ट करना होगा, उन्हें इसका कारण भी अपनी रिपोर्ट में लिखना होगा।

आप न्यायपालिका का ध्यानाकर्षण इन विषयों पर करते रहे तो उन पर निर्णय भी होंगे और समाचार पत्रों को छापने भी होंगे। आप बीस करोड़ पोस्ट कार्ड लिख के प्रधानमंत्री कार्यालय भेजेंगे तो प्रधानमंत्री भी उस पर ध्यान देंगे, कानून भी संसद में लाएँगे। मंदिर भी सरकारी प्रतिबन्ध से बाहर निकालेंगे, संभवतः संविधान के आपातकाल में किये गए संशोधन भी हटेंगे यदि जैसा वामपंथी करते हैं दक्षिणपंथी कानून, मीडिया और सड़क पर प्रदर्शन को साथ में जोड़ कर मुहिम चलाते हैं।

भारत पर गौरी या ख़िलजी की जीत का बड़ा कारण जनता का जातियों में कटा रहना था, जिसके कारण बड़ा वर्ग न युद्ध के लिए प्रशिक्षित था ना ही उसमें रुचि रखता था। जैसे आज लोग पालघर या दिल्ली लिंचिंग पर मोदी को कोसते हैं, तब पृथ्वीराज चौहान को कोसते होंगे। सोचिए पसंद की सरकार को सत्ता पर बैठा कर जनता के कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती है। सत्ता वर्षों से बने समीकरणों को, लोकतंत्र ही सामाजिक सिद्धांतों में परिवर्तन ला सकता। एक राष्ट्र की जनता जब अपने शासकों को सामाजिक परिवर्तनों का उत्तरदायित्व सौंप कर उदासीन एवं निष्क्रिय हो जाती है, उसका क्षेत्र जावा से, वियतनाम से, ईरान से, बर्मा से पाकिस्तान और बांग्लादेश से संकुचित होता होता वहाँ पहुँच जाता है जहाँ एक संस्कृति के लिए अपने पँजों पर खड़े होने की भूमि भी नहीं होती है।

संस्कृति की रक्षा निष्क्रिय प्रेम से नहीं होती है, सक्रिय कर्म से होती है। यदि भ्रष्ट्राचार के विरोध में जनता 2014 में सड़क पर नहीं उतरी होती, तो आज प्रधानमंत्री मोदी भी सत्ताधीश नहीं हुए होते। संख्या बल वही सक्षम होता है जो साक्ष्य होता है, स्पष्ट होता है। सरकार को चुनकर हमने कोई ठेका नहीं दिया है और दिया भी हो तो उपभोक्ता की उपेक्षा की स्थिति में तो ठेकेदार उतना ही और उसी गुणवत्ता का कार्य करता है जितना न्यूनतम आवश्यक हो। सरकार से उस न्यूनतम सीमा से अधिक कार्य कराना हो तो बोलना होगा, लिखना होगा, पहुँचना होगा, सबसे बढ़कर – एक हो कर दिखना होगा।

एक फ़िल्म कुछ वर्षों पहले आई थी- गुलाल! उसके एक वाक्य को शिष्टता का आवरण पहना कर यह लेख समाप्त करता हूँ- “अपने पृष्ठपटल पर बैठे रहने से स्वराज्य नहीं आएगा, धर्म और संस्कृति की रक्षा नहीं होगी।” राष्ट्रीय राजनीति उतनी ही नैतिक होगी जितना नागरिक जागृत होगा। एक बार फिर फ्रांस में सड़कों पर उमड़ी, श्रद्धांजलि देती जनता का चित्र देखें और विचार करें।

Official  Links:👇🏻
🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Friday, June 19, 2020

कभी हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था पूरा चीन, फहराती थी सनातन धर्म की पताका!

19 जून 2020

🚩भारतवर्ष पर अनेक आक्रमणकारी आयें, उसमें भी अंग्रेज और वामपंथीयों ने बड़ी चालाकी की, उन्होंने देखा कि यहां का इतिहास इतना महान है कि कोई भी पढ़ेगा तो हमारी सत्ता ही खत्म हो जाएगी इसलिए उन्होंने सबसे पहले इतिहास को विकृत किया और आज विद्यालयों में इतिहास विकृत करके पढ़ाया जाता है, असली इतिहास पढ़ाया जाए तो समस्त दुनिया भारत को प्रणाम करेगी और हर भारतीय अपने इतिहास पर गर्व करेगा।

🚩आज चीन भले पाकिस्तान की तरह भारत के खिलाफ साजिश कर रहा हो, लेकिन पाकिस्तान की तरह चीन भी हिन्दुराष्ट्र ही था, उसको इतिहास याद रखना चाहिए।

🚩आपको बता दें कि वैसे तो संपूर्ण जम्बूद्वीप पर हिन्दू साम्राज्य स्थापित था। जम्बूद्वीप के 9 देश थे उसमें से 3 थे- हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष। उक्त तीनों देशों को मिलाकर आज इस स्‍थान को चीन कहा जाता है।

🚩चीन प्राचीनकाल में हिन्दू राष्ट्र था। 1934 में हुई एक खुदाई में चीन के समुद्र के किनारे बसे एक प्राचीन शहर च्वानजो 1000 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हिन्दू मंदिरों के लगभग एक दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं। यह क्षेत्र प्राचीन काल में हरिवर्ष कहलाता था, जैसे भारत को भारतवर्ष कहा जाता है।

🚩वैसे वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मंदिर तो नहीं हैं, लेकिन एक हजार वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फूच्यान प्रांत में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं।

🚩भारतीय प्रदेश अरुणाचल के रास्ते लोग चीन जाते थे और वहीं से आते थे। दूसरा आसान रास्ता था बर्मा। हालांकि लेह, लद्दाख, सिक्किम से भी लोग चीन आया-जाया करते थे, लेकिन तब तिब्बत को पार करना होता था। तिब्बत को प्राचीनकाल में त्रिविष्टप कहा जाता था। यह देवलोक और गंधर्वलोक का हिस्सा था।

🚩मात्र 500 से 700 ईसा पूर्व ही चीन को महाचीन एवं प्राग्यज्योतिष कहा जाता था, लेकिन इसके पहले आर्य काल में यह संपूर्ण क्षेत्र हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष नाम से प्रसिद्ध था।

🚩महाभारत के सभापर्व में भारतवर्ष के प्राग्यज्योतिष (पुर) प्रांत का उल्लेख मिलता है। हालांकि कुछ विद्वानों के अनुसार प्राग्यज्योतिष आजकल के असम (पूर्वात्तर के सभी 8 प्रांत) को कहा जाता था। इन प्रांतों के क्षेत्र में चीन का भी बहुत कुछ हिस्सा शामिल था।

🚩रामायण बालकांड (30/6) में प्राग्यज्योतिष की स्थापना का उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण में इस प्रांत का दूसरा नाम कामरूप (किंपुरुष) मिलता है। स्पष्ट है कि रामायण काल से महाभारत कालपर्यंत असम से चीन के सिचुआन प्रांत तक का क्षेत्र प्राग्यज्योतिष ही रहा था। जिसे कामरूप कहा गया। कालांतर में इसका नाम बदल गया।

🚩चीनी यात्री ह्वेनसांग और अलबरूनी के समय तक कभी कामरूप को चीन और वर्तमान चीन को महाचीन कहा जाता था। अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य ने भी ‘चीन’ शब्द का प्रयोग कामरूप के लिए ही किया है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कामरूप या प्राग्यज्योतिष प्रांत प्राचीनकाल में असम से बर्मा, सिंगापुर, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा तक फैला हुआ था। अर्थात यह एक अलग ही क्षेत्र था जिसमें वर्तमान चीन का लगभग आधा क्षेत्र आता है।

🚩इस विशाल प्रांत के प्रवास पर एक बार श्रीकृष्ण भी गए थे। यह उस समय की घटना है, जब उनकी अनुपस्थिति में शिशुपाल ने द्वारिका को जला डाला था। महाभारत के सभापर्व (68/15) में वे स्वयं कहते हैं- कि ‘हमारे प्राग्यज्योतिष पुर के प्रवास के काल में हमारी बुआ के पुत्र शिशुपाल ने द्वारिका को जलाया था।’

🚩चीनी यात्री ह्वेनसांग (629 ई.) के अनुसार इस कामरूप प्रांत में उसके काल से पूर्व कामरूप पर एक ही कुल-वंश के 1,000 राजाओं का लंबे काल तक शासन रहा है। यदि एक राजा को औसतन 25 वर्ष भी शासन के लिए दिया जाए तो 25,000 वर्ष तक एक ही कुल के शासकों ने कामरूप पर शासन किया। अंग्रेज इतिहासकारों ने कभी कामरूप क्षेत्र के 25,000 वर्षीय इतिहास को खोजने का कष्ट नहीं किया। करते भी नहीं, क्योंकि इससे आर्य धर्म या हिन्दुत्व की गरिमा स्थापित हो जानी थी।

🚩कालांतर में महाचीन ही चीन हो गया और प्राग्यज्योतिषपुर कामरूप होकर रह गया। यह कामरूप भी अब कई देशों में विभक्त हो गया। कामरूप से लगा ‘चीन’ शब्द लुप्त हो गया और महाचीन में लगा ‘महा’ शब्द हट गया।

🚩पुराणों के अनुसार शल्य इसी चीन से आया था जिसे कभी महाचीन कहा जाता था। माना जाता है कि मंगोल, तातार और चीनी लोग चंद्रवंशी हैं। इनमें से तातार के लोग अपने को अय का वंशज कहते हैं, यह अय पुरुरवा का पुत्र आयु था। (पुरुरवा प्राचीनकाल में चंद्रवंशियों का पूर्वज है जिसके कुल में ही कुरु और कुरु से कौरव हुए)। इस आयु के वंश में ही सम्राट यदु हुए थे और उनका पौत्र हय था। चीनी लोग इसी हय को हयु कहते हैं और अपना पूर्वज मानते हैं।

🚩एक दूसरी मान्यता के अनुसार चीन वालों के पास ‘यू’ की उत्पत्ति इस प्रकार लिखी है कि एक तारे (तातार) का समागम यू की माता के साथ हो गया। इसी से यू हुआ। यह बुद्घ और इला के समागम जैसा ही किस्सा है। इस प्रकार तातारों का अय, चीनियों का यू और पौराणिकों का आयु एक ही व्यक्ति है। इन तीनों का आदिपुरुष चंद्रमा था और ये चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं।
संदर्भ : कर्नल टॉड की पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ और पं. रघुनंदन शर्मा की पुस्तक ‘वैदिक संपत्ति’ और ‘हिन्दी-विश्वकोश’ आदि से)

🚩पुरातन इतिहास हमारा इतना महान रहा है तभी तो धोखे से हमलें करने वाले पूर्व में सभी तैयारी के साथ भारतीय जवानों पर अटेक करते है फिर भी भारतीय जवान 1 के बदले 2 का बदला ले लेते हैं।

🚩चीन भारत को हमेशा धोखा देता आया है इस बार भी यही किया और हमारे जवान शहीद हुए, हमारा कर्तव्य है देश और जवानों के साथ खड़े रहने का तभी हम बच पायेंगें। 

🚩हमे क्या करना चाहिए ?

★ जो समान चीन का खरीद लिया है उसका उपयोग करें क्योंकि उसका पैसा चीन की जेब में जा चुका है अतः उसे तोड़ देना या उपयोग न करना स्वाभिमान नही बेवकूफी कही जाएगी।

★सबसे पहले अपने मोबाइल से चीनी ऐप को डिलीट करें। इसके प्रमुख ऐप हैं beauty plus, share it, Tik Tok, Hello, UC browser, PubG, wechat, true caller, clean master. आदि आदि यदि इन ऐप को डिलीट करने से आपकी रोजी रोटी प्रभावित नही होती या इन चीन के ऐप की सहायता से आप भारतीय समाज में बहुत बड़ा अवेयरनेस नही ला रहे हैं और ये सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर है तो इसे तत्काल डिलीट कर दें।

★अगर आप Tik Tok पर नाचने गाने और PubG पर खेलने का मोह नही छोड़ सकते तो समझ लीजिए कहीं न कहीं आप इस जवानों की मौत हो या भारतीयता की बात किसी के प्रति संवेदनशील नही हैं। आप स्वार्थी हैं। देश के साथ नही हैं।

★ अपने मोबाइल को चीन से मुक्त करने के बाद दैनिक जीवन के प्रोडक्ट पर आइये नया मोबाइल, टीवी, इलेक्ट्रॉनिक सामान सस्ते के चक्कर में चीन का खरीद कर उसे सुदृढ न बनाएं। प्रत्येक चीनी सामान का विकल्प उपलब्ध है,यदि विकल्प उपलब्ध है तो उसका उपयोग करें।

★ अपने मित्रों, दुकानदार, व्यापारियों, सहकर्मियों को चीन के समान का यथासंभव उपयोग न करने या कम करने के लिए समझाएं एवं चीनी प्रोडक्ट कोई ऑफर कर रहा है तो सार्वजनिक रूप से मना करें।

🚩केंद्र सरकार अपना काम कर ही रही है और करेगी लेकिन सबसे पहले हमें कार्य यही करना है कि मोबाइल से सभी चायनीज़ App हटाये और आगे से कोई भी समान खरीदें तो चाइना का न ले यही देशभक्ति हैं।

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/azaadbharat





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ