19 जून 2020
भारतवर्ष पर अनेक आक्रमणकारी आयें, उसमें भी अंग्रेज और वामपंथीयों ने बड़ी चालाकी की, उन्होंने देखा कि यहां का इतिहास इतना महान है कि कोई भी पढ़ेगा तो हमारी सत्ता ही खत्म हो जाएगी इसलिए उन्होंने सबसे पहले इतिहास को विकृत किया और आज विद्यालयों में इतिहास विकृत करके पढ़ाया जाता है, असली इतिहास पढ़ाया जाए तो समस्त दुनिया भारत को प्रणाम करेगी और हर भारतीय अपने इतिहास पर गर्व करेगा।
आज चीन भले पाकिस्तान की तरह भारत के खिलाफ साजिश कर रहा हो, लेकिन पाकिस्तान की तरह चीन भी हिन्दुराष्ट्र ही था, उसको इतिहास याद रखना चाहिए।
आपको बता दें कि वैसे तो संपूर्ण जम्बूद्वीप पर हिन्दू साम्राज्य स्थापित था। जम्बूद्वीप के 9 देश थे उसमें से 3 थे- हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष। उक्त तीनों देशों को मिलाकर आज इस स्थान को चीन कहा जाता है।
चीन प्राचीनकाल में हिन्दू राष्ट्र था। 1934 में हुई एक खुदाई में चीन के समुद्र के किनारे बसे एक प्राचीन शहर च्वानजो 1000 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हिन्दू मंदिरों के लगभग एक दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं। यह क्षेत्र प्राचीन काल में हरिवर्ष कहलाता था, जैसे भारत को भारतवर्ष कहा जाता है।
वैसे वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मंदिर तो नहीं हैं, लेकिन एक हजार वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फूच्यान प्रांत में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं।
भारतीय प्रदेश अरुणाचल के रास्ते लोग चीन जाते थे और वहीं से आते थे। दूसरा आसान रास्ता था बर्मा। हालांकि लेह, लद्दाख, सिक्किम से भी लोग चीन आया-जाया करते थे, लेकिन तब तिब्बत को पार करना होता था। तिब्बत को प्राचीनकाल में त्रिविष्टप कहा जाता था। यह देवलोक और गंधर्वलोक का हिस्सा था।
मात्र 500 से 700 ईसा पूर्व ही चीन को महाचीन एवं प्राग्यज्योतिष कहा जाता था, लेकिन इसके पहले आर्य काल में यह संपूर्ण क्षेत्र हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष नाम से प्रसिद्ध था।
महाभारत के सभापर्व में भारतवर्ष के प्राग्यज्योतिष (पुर) प्रांत का उल्लेख मिलता है। हालांकि कुछ विद्वानों के अनुसार प्राग्यज्योतिष आजकल के असम (पूर्वात्तर के सभी 8 प्रांत) को कहा जाता था। इन प्रांतों के क्षेत्र में चीन का भी बहुत कुछ हिस्सा शामिल था।
रामायण बालकांड (30/6) में प्राग्यज्योतिष की स्थापना का उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण में इस प्रांत का दूसरा नाम कामरूप (किंपुरुष) मिलता है। स्पष्ट है कि रामायण काल से महाभारत कालपर्यंत असम से चीन के सिचुआन प्रांत तक का क्षेत्र प्राग्यज्योतिष ही रहा था। जिसे कामरूप कहा गया। कालांतर में इसका नाम बदल गया।
चीनी यात्री ह्वेनसांग और अलबरूनी के समय तक कभी कामरूप को चीन और वर्तमान चीन को महाचीन कहा जाता था। अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य ने भी ‘चीन’ शब्द का प्रयोग कामरूप के लिए ही किया है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कामरूप या प्राग्यज्योतिष प्रांत प्राचीनकाल में असम से बर्मा, सिंगापुर, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा तक फैला हुआ था। अर्थात यह एक अलग ही क्षेत्र था जिसमें वर्तमान चीन का लगभग आधा क्षेत्र आता है।
इस विशाल प्रांत के प्रवास पर एक बार श्रीकृष्ण भी गए थे। यह उस समय की घटना है, जब उनकी अनुपस्थिति में शिशुपाल ने द्वारिका को जला डाला था। महाभारत के सभापर्व (68/15) में वे स्वयं कहते हैं- कि ‘हमारे प्राग्यज्योतिष पुर के प्रवास के काल में हमारी बुआ के पुत्र शिशुपाल ने द्वारिका को जलाया था।’
चीनी यात्री ह्वेनसांग (629 ई.) के अनुसार इस कामरूप प्रांत में उसके काल से पूर्व कामरूप पर एक ही कुल-वंश के 1,000 राजाओं का लंबे काल तक शासन रहा है। यदि एक राजा को औसतन 25 वर्ष भी शासन के लिए दिया जाए तो 25,000 वर्ष तक एक ही कुल के शासकों ने कामरूप पर शासन किया। अंग्रेज इतिहासकारों ने कभी कामरूप क्षेत्र के 25,000 वर्षीय इतिहास को खोजने का कष्ट नहीं किया। करते भी नहीं, क्योंकि इससे आर्य धर्म या हिन्दुत्व की गरिमा स्थापित हो जानी थी।
कालांतर में महाचीन ही चीन हो गया और प्राग्यज्योतिषपुर कामरूप होकर रह गया। यह कामरूप भी अब कई देशों में विभक्त हो गया। कामरूप से लगा ‘चीन’ शब्द लुप्त हो गया और महाचीन में लगा ‘महा’ शब्द हट गया।
पुराणों के अनुसार शल्य इसी चीन से आया था जिसे कभी महाचीन कहा जाता था। माना जाता है कि मंगोल, तातार और चीनी लोग चंद्रवंशी हैं। इनमें से तातार के लोग अपने को अय का वंशज कहते हैं, यह अय पुरुरवा का पुत्र आयु था। (पुरुरवा प्राचीनकाल में चंद्रवंशियों का पूर्वज है जिसके कुल में ही कुरु और कुरु से कौरव हुए)। इस आयु के वंश में ही सम्राट यदु हुए थे और उनका पौत्र हय था। चीनी लोग इसी हय को हयु कहते हैं और अपना पूर्वज मानते हैं।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार चीन वालों के पास ‘यू’ की उत्पत्ति इस प्रकार लिखी है कि एक तारे (तातार) का समागम यू की माता के साथ हो गया। इसी से यू हुआ। यह बुद्घ और इला के समागम जैसा ही किस्सा है। इस प्रकार तातारों का अय, चीनियों का यू और पौराणिकों का आयु एक ही व्यक्ति है। इन तीनों का आदिपुरुष चंद्रमा था और ये चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं।
संदर्भ : कर्नल टॉड की पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ और पं. रघुनंदन शर्मा की पुस्तक ‘वैदिक संपत्ति’ और ‘हिन्दी-विश्वकोश’ आदि से)
पुरातन इतिहास हमारा इतना महान रहा है तभी तो धोखे से हमलें करने वाले पूर्व में सभी तैयारी के साथ भारतीय जवानों पर अटेक करते है फिर भी भारतीय जवान 1 के बदले 2 का बदला ले लेते हैं।
चीन भारत को हमेशा धोखा देता आया है इस बार भी यही किया और हमारे जवान शहीद हुए, हमारा कर्तव्य है देश और जवानों के साथ खड़े रहने का तभी हम बच पायेंगें।
हमे क्या करना चाहिए ?
★ जो समान चीन का खरीद लिया है उसका उपयोग करें क्योंकि उसका पैसा चीन की जेब में जा चुका है अतः उसे तोड़ देना या उपयोग न करना स्वाभिमान नही बेवकूफी कही जाएगी।
★सबसे पहले अपने मोबाइल से चीनी ऐप को डिलीट करें। इसके प्रमुख ऐप हैं beauty plus, share it, Tik Tok, Hello, UC browser, PubG, wechat, true caller, clean master. आदि आदि यदि इन ऐप को डिलीट करने से आपकी रोजी रोटी प्रभावित नही होती या इन चीन के ऐप की सहायता से आप भारतीय समाज में बहुत बड़ा अवेयरनेस नही ला रहे हैं और ये सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर है तो इसे तत्काल डिलीट कर दें।
★अगर आप Tik Tok पर नाचने गाने और PubG पर खेलने का मोह नही छोड़ सकते तो समझ लीजिए कहीं न कहीं आप इस जवानों की मौत हो या भारतीयता की बात किसी के प्रति संवेदनशील नही हैं। आप स्वार्थी हैं। देश के साथ नही हैं।
★ अपने मोबाइल को चीन से मुक्त करने के बाद दैनिक जीवन के प्रोडक्ट पर आइये नया मोबाइल, टीवी, इलेक्ट्रॉनिक सामान सस्ते के चक्कर में चीन का खरीद कर उसे सुदृढ न बनाएं। प्रत्येक चीनी सामान का विकल्प उपलब्ध है,यदि विकल्प उपलब्ध है तो उसका उपयोग करें।
★ अपने मित्रों, दुकानदार, व्यापारियों, सहकर्मियों को चीन के समान का यथासंभव उपयोग न करने या कम करने के लिए समझाएं एवं चीनी प्रोडक्ट कोई ऑफर कर रहा है तो सार्वजनिक रूप से मना करें।
केंद्र सरकार अपना काम कर ही रही है और करेगी लेकिन सबसे पहले हमें कार्य यही करना है कि मोबाइल से सभी चायनीज़ App हटाये और आगे से कोई भी समान खरीदें तो चाइना का न ले यही देशभक्ति हैं।
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