23 जून 2020
भारत में शूर, बुद्धिमान और साहसी कई वीरांगनाएँ पैदा हुई, जिनके नाम से ही मुगल सल्तनत काँपने लगती थी पर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के इतिहास में उनको कहीं स्थान नहीं दिया गया इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों व अंग्रेजो का इतिहास पढ़ाया जाता है । आज अगर सही इतिहास पढ़ाया जाए तो हमारी भावी पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की तरफ मुड़कर भी नही देखेगी इतना महान इतिहास है अपना।
भारत की नारियों में अथाह सामर्थ्य है, अथाह शक्ति है। भारतीय संस्कृति के बताये हुए मार्ग के अनुसार अपनी छुपी हुई शक्ति को जाग्रत करके अवश्य महान बन सकती है । आज स्वतन्त्रता और फैशन के नाम पर नारियों का शोषण किया जा रहा है। नारी अबला नही बल्कि सबला है। नारी कितनी महान है उसका आपको एक महान नारी की याददाश्त को ताजा कराते हैं।
रानी दुर्गावती का जन्म 10 जून, 1525 को तथा हिंदु कालगणनानुसार आषाढ शुक्ल द्वितीया को चंदेल राजा कीर्ति सिंह तथा रानी कमलावती के गर्भ से हुआ । वे बाल्यावस्था से ही शूर, बुद्धिमान और साहसी थीं । उन्होंने युद्धकला का प्रशिक्षण भी उसी समय लिया । प्रचाप (बंदूक) भाला, तलवार और धनुष-बाण चलाने में वह प्रवीण थी । गोंड राज्य के शिल्पकार राजा संग्राम सिंह बहुत शूर तथा पराक्रमी थे । उनके सुपुत्र वीरदलपति सिंह का विवाह रानी दुर्गावती के साथ वर्ष 1542 में हुआ । वर्ष 1541 में राजा संग्राम सिंह का निधन होने से राज्य का कार्यकाज वीरदलपति सिंह ही देखते थे । उन दोनों का वैवाहिक जीवन 7-8 वर्ष अच्छे से चल रहा था । इसी कालावधि में उन्हें वीरनारायण सिंह नामक एक सुपुत्र भी हुआ ।
रानी दुर्गावती ने राजवंशव की बागडोर थाम ली
दलपतशाह की मृत्यु लगभग 1550 ईसवी सदी में हुई । उस समय वीर नारायण की आयु बहुत अल्प होने के कारण, रानी दुर्गावती ने गोंड राज्यकी बागडोर (लगाम) अपने हाथों में थाम ली । अधर कायस्थ एवं मन ठाकुर, इन दो मंत्रियों ने सफलतापूर्वक तथा प्रभावी रूप से राज्य का प्रशासन चलाने में रानी की मदद की । रानी ने सिंगौरगढ से अपनी राजधानी चौरागढ स्थानांतरित की । सातपुडा पर्वत से घिरे इस दुर्ग का (किलेका) रणनीतिकी दृष्टि से बडा महत्त्व था।
कहा जाता है कि इस कालावधि में व्यापार बडा फूला-फला । प्रजा संपन्न एवं समृद्ध थी । अपने पति के पूर्वजों की तरह रानी ने भी राज्य की सीमा बढाई तथा बडी कुशलता, उदारता एवं साहस के साथ गोंडवन का राजनैतिक एकीकरण ( गर्हा-काटंगा) प्रस्थापित किया । राज्यके 23000 गांवों में से 12000 गांवों का व्यवस्थापन उसकी सरकार करती थी । अच्छी तरह से सुसज्जित सेना में 20,000 घुडसवार तथा 1000 हाथीदल के साध बडी संख्या में पैदल सेना भी अंतर्भूत थी । रानी दुर्गावती में सौंदर्य एवं उदारता का धैर्य एवं बुद्धिमत्ता का सुंदर संगम था । अपनी प्रजा के सुख के लिए उन्होंने राज्य में कई काम करवाए तथा अपनी प्रजा का ह्रदय (दिल) जीत लिया । जबलपुर के निकट ‘रानीताल’ नामका भव्य जलाशय बनवाया । उनकी पहल से प्रेरित होकर उनके अनुयायियों ने चेरीतल का निर्माण किया तथा अधर कायस्थ ने जबलपुर से तीन मील की दूरी पर अधरतल का निर्माण किया । उन्होंने अपने राज्य में अध्ययन को भी बढावा दिया ।
शक्तिशाली राजा को युद्ध में हराया
राजा दलपति सिंह के निधन के उपरांत कुछ शत्रुओं की कुदृष्टि इस समृद्धशाली राज्य पर पडी । मालवा का मांडलिक राजा बाजबहादुर ने विचार किया, हम एक दिन में गोंडवाना अपने अधिकार में लेंगे । उसने बडी आशा से गोंडवाना पर आक्रमण किया; परंतु रानी ने उसे पराजित किया । उसका कारण था रानी का संगठन चातुर्य । रानी दुर्गावती द्वारा बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजा को युद्ध में हराने से उसकी कीर्ति सर्वदूर फैल गई । सम्राट अकबर के कानोंतक जब पहुंची तो वह चकित हो गया । रानी का साहस और पराक्रम देखकर उसके प्रति आदर व्यक्त करने के लिए अपनी राजसभा के (दरबार) विद्वान `गोमहापात्र’ तथा `नरहरिमहापात्र’को रानी की राजसभा में भेज दिया । रानी ने भी उन्हें आदर तथा पुरस्कार देकर सम्मानित किया । इससे अकबर ने सन् 1540 में वीर नारायण सिंह को राज्यका शासक मानकर स्वीकार किया । इस प्रकारसे शक्तिशाली राज्य से मित्रता बढने लगी । रानी तलवार की अपेक्षा बंदूक का प्रयोग अधिक करती थी । बंदूक से लक्ष साधने में वह अधिक दक्ष थी । ‘एक गोली एक बली’, ऐसी उनकी आखेट की पद्धति थी । रानी दुर्गावती राज्यकार्य संभालने में बहुत चतुर, पराक्रमी और दूरदर्शी थी।
अकबर का सेनानी तीन बार रानि से पराजित
अकबर ने वर्ष 1563 में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानी को (सरदार) गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानी ने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेना की कुछ टुकडियों को घने जंगल में छिपा रखा और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया । एक पर्वत की तलहटी पर आसफ खान और रानी दुर्गावती का सामना हुआ । बडे आवेश से युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे; परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की । इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावती ने आसफ खान को पराजित किया । आसफ खान ने एक वर्ष की अवधि में 3 बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ।
स्वतंत्रता के लिए आत्मबलिदान
अंतमें वर्ष 1564 में आसफखान ने सिंगारगढ पर घेरा डाला; परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई । यह समाचार पाते ही आसफ खान ने रानी का पीछा किया । पुनः युद्ध आरंभ हो गया । दोनो ओर से सैनिकों को भारी क्षति पहुंची । रानी प्राणों पर खेलकर युद्ध कर रही थीं । इतने में रानी के पुत्र वीरनारायण सिंह के अत्यंत घायल होने का समाचार सुनकर सेना में भगदड मच गई । सैनिक भागने लगे । रानी के पास केवल 300 सैनिक थे । उन्हीं सैनिकों के साथ रानी स्वयं घायल होनेपर भी आसफ खान से शौर्य से लड रही थी । उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकों ने उसे सुरक्षित स्थान पर चलने की विनती की; परंतु रानी ने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए ।” अंतमें घायल तथा थकी हुई अवस्था में उसने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है; परंतु हमारे शरीर का नख भी शत्रु के हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है । इसलिए आप भाले से हमें मार दीजिए । हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए”; परंतु सैनिक वह साहस न कर सका, तो रानी ने स्वयं ही अपनी तलवार गले पर चला ली।
वह दिन था 24 जून 1564 का, इस प्रकार युद्ध भूमि पर गोंडवाना के लिए अर्थात् अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक वह झूझती रही । गोंडवाना पर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावती का अधिराज्य था, जो मुगलों ने नष्ट किया । इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावती का अंत हुआ । इस महान वीरांगना को हमारा शतशः प्रणाम !
जिस स्थान पर उन्होंने अपने प्राण त्याग किए, वह स्थान स्वतंत्रता सेनानियों के लिए निरंतर प्रेरणा का स्रोत रहा है ।
उनकी स्मृति में 1883 में मध्यप्रदेश सरकार ने जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रखा ।
इस बहादुर रानी के नामपर भारत सरकार ने 24 जून 1988 को डाकका टिकट प्रचलित कर (जारी कर) उनके बलिदान को श्रद्धांजली अर्पित की ।
गोंडवाना को स्वतंत्र करने हेतु जिसने प्राणांतिक युद्ध किया और जिसके रुधिर की प्रत्येक बूंद में गोंडवाना के स्वतंत्रता की लालसा थी, वह रणरागिनी थी महारानी दुर्गावती । उनका इतिहास हमें नित्य प्रेरणादायी है।
आज की भारतीय नारियाँ इन आदर्श नारियों से प्रेरणा पाकर आगे बढ़े, पाश्चात्य संस्कृति की तरफ न भागे । भारत की नारियां अपने बच्चों में सदाचार, संयम आदि उत्तम संस्कारों का सिंचन करें तो वह दिन दूर नहीं, जिस दिन पूरे विश्व में भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति की दिव्य पताका पुनः लहरायेगी। भारतकी नारियों आपमें बहुत महानता छुपी है आप चाहे तो शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह जैसे महान पुत्रो को जन्म देकर अपनी कोख को पावन कर सकती है, आप पाश्चात्य संस्कृति अपनाकर अपने को दिन-हीन नही बनाना बल्कि ऋषि-मुनियों एवं भगवद्गीता के अनुसार आचरन करके अपने को महान बनाना।
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